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अप्रैल 2011 की यूनिकवि प्रतियोगिता के परिणाम



 
     अप्रैल 2011 की युनिकवि प्रतियोगिता के परिणाम आ गये हैं, जिन्हे ले कर हम आपके समक्ष उपस्थित हैं। पिछले कुछ माहों मे निर्णय आने मे होने वाले विलम्ब की वजह से परिणाम प्रकाशित करने की अवधि मे थोड़ा व्यतिक्रम होता गया है, जिसे हम दुरुस्त करने की कोशिश कर रहे हैं। अप्रैल माह के आयोजन के द्वारा प्रतियोगिता ने अपने बावन महीनों का पड़ाव पार कर लिया है। प्रतिभागियों का जोश और पाठकों का नियमित प्रोत्साहन इस प्रतियोगिता की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है।

     अप्रैल माह की प्रतियोगिता के लिये हमारे पास कुल 38 जायज प्रविष्टियाँ आयीं, जिनको दो चरणों मे परखा गया। पहले चरण मे चार निर्णायक तय किये गये, इन निर्णायकों द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर 21 कविताओं को दूसरे यानी अंतिम चरण के निर्णय के लिए भेजा गया। अंतिम चरण में 2 निर्णयक थे, जिनके द्वारा दिये गये अंकों और पुराने औसत अंकों के औसत के आधार पर कविताओं का अंतिम वरीयता क्रम निर्धारित किया गया। हालाँकि इस बार निर्णायकों को यह भी लगा कि कविताओं का सामूहिक स्तर पिछले माहों की तुलना मे कुछ कमतर रहा है। इसलिये हमने शीर्ष की सिर्फ़ सात कविताओं को प्रकाशित करने का निर्णय किया है। कविता अपने मन के भावों को अभिव्यक्त करने के माध्यम के अलावा शब्दों के हथौड़े से सामाजिक-सांस्कृतिक-वैचारिक जड़ता की दीवारों को तोड़ने और हमारी सोच की हदों को और विस्तृत करने का औजार भी होती है। एक अच्छी कविता कहलाये जाने के लिये उसमे कथ्य/शिल्प स्तर पर मौलिकता का समावेश होना जरूरी शर्त होता है। जो कविताएँ प्रचिलित लीक को चुनौती दे कर मौलिकता की इस कसौटी पर खरी उतरती हुई अपने समय के सच को शब्दों की रोशनी मे लाने की हिम्मत करती हैं, वही कविताएं कालातीत हो पाती हैं और अपने वक्त का दस्तावेज बन जाती हैं। आशा है कि हमारे उत्साही प्रतिभागी हर बार अपनी अभिव्यक्ति की सीमाओं को चुनौती देते हुए हर रचना के संग परिपक्वता के नये मुकाम पार करते रहेंगे। शीर्ष की तीनों कविताओं के बीच इस बार ज्यादा फ़र्क नही रहा है मगर सारे निर्णायकों की पसंद के आधार पर पंकज रामेंदु अप्रैल माह के लिये हिंद-युग्म के यूनिकवि घोषित हुए हैं।

युनिकवि: पंकज रामेंदु 


  पंकज रामेंदु का जुड़ाव हिंद-युग्म से काफ़ी पुराना रहा हैं मगर इधर एक लंबे अंतराल के बाद उनकी हिंद-युग्म पर वापसी हुई है। उनकी पिछली कविता 2008 मे हिंद-युग्म पर प्रकाशित हुई थी। हमारे पुराने पाठक संभवतः उनसे परिचित होंगे मगर नये पाठकों के लिये हम एक बार पुनः उनका परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं।

पंकज का जन्म मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 29 मई 1980 को हुआ। इनको पढ़ने का शौक बचपन से है, इनके पिताजी भी कवि हैं, इसलिए साहित्यिक गतिविधयों को इनके घर में अहमियत मिलती है। लिखने का शौक स्नातक की कक्षा में आनेपर लगा या यूँ कहिए की इन्हें आभास हुआ कि ये लिख भी सकते हैं। माइक्रोबॉयलजी में परास्नातक करने के बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी मे कुछ दिनों तक काम किया, लेकिन लेखक मन वहाँ नहीं ठहरा, तो नौकरी छोड़ी और पत्रकारिता में स्नात्तकोत्तर करने के लिए माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय जा पहुँचे। डिग्री के दौरान ही ई टीवी न्यूज़ में रहे। एक साल बाद दिल्ली पहुँचे और यहाँ जनमत न्यूज़ चैनल में स्क्रिप्ट लेखक की हैसियत से काम करने लगे। वर्तमान में स्क्रिप्ट लेखक हैं और लघु फ़िल्में, डाक्यूमेंट्री तथा अन्य कार्यक्रमों के लिए स्क्रिप्ट लिखते हैं। कई लेख जनसत्ता, हंस, दैनिक भास्कर और भोपाल के अखबारों में प्रकाशित।

     पंकज की प्रस्तुत कविता जो इस बार की यूनिकविता चयनित हुई है, साहित्य के एक बेहद महत्वपूर्ण मगर उपेक्षित नाम भुवनेश्वर को याद करने के बहाने वर्तमान हिंदी साहित्य के परिदृश्य पर गहरा कटाक्ष करती है। हम अपने पाठकों को बताते चलें कि भुवनेश्वर का जन्म 1910 मे शाहजहाँपुर (उ प्र) मे हुआ था। अपने कुछ नाटकों और कहानियों के बल पर परिपक्वता के मामले मे वो अपने समय के साहित्य से कहीं आगे निकल गये थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कहानी ’भेड़िये’ हंस मे सर्वप्रथम 1938 मे प्रकाशित हुई थी, जिसे कई आलोचक हिंदी की पहली आधुनिक कहानी मानते हैं। मगर अपने बेहद स्वाभिमानी और तल्ख स्वभाव के चलते वो तत्कालीन साहित्य के राजपथ से निर्वासित और समकालीन साहित्यकारों मे सर्वथा उपेक्षित ही रहे। उनकी मृत्यु 1955 मे गहरी गुमनामी और फ़ाकाकशी के दौर मे हुई। गत 2010 भुवनेश्वर की जन्मशती का वर्ष था।

युनिकविता: पीड़ा (भुवनेश्वर के बहाने) 

वो लिखता था,
लिखता क्या था आतंक,
आंतक उनके लिए
जो मान बैठे थे खुद को खुदा,
शब्दों का ब्रह्मा,
जो ये मानते थे कि वो जानते हैं,
जो ये मानते थे कोई नहीं जानता,
जो ये मानते थे जानना भी उन्हे आता है,
जो ये मानते थे कलम उनके बाप की है,
जो ये मानते थे लिखना उन्हें आता है,
वे आतंकित हो गये थे,
नये शब्दों के चयन से
एक असुरक्षा घिर गई थी उनके मन में
उसकी लेखनी में आम सा कुछ था,
कुछ साधारण सा लगने वाला
जिसे हर कोई समझ जाता था
जो हर एक की बात थी,
उसमें कुछ आधुनिकता थी
कुछ ऐसा जो अब तक नहीं लिखा गया था
या जिसे लिखने की हिम्मत नहीं जुटा सका था कोई।
वो भय बन गया था अचानक
उसे सब समझते थे जिसे हम आम कहते हैं
औऱ जिसे नासमझ भी कहा जाता है
वो उनकी बोली उनकी भाषा की बात थी
उसने वो बात भी कही या लिखी
जो शायद उस दौर की सोच में नही थी।
बस आलोचनाओं के कीड़े
धीरे धीरे कुतरने लग गये उसे,
बुद्धिजीवियों के पिरान्हा रूपी समूह ने
साहित्यिक मांस को नोच डाला था
शब्दों के गोश्त को चबा-चबा कर
सब कुछ पचा गये
और सुबह की जुगाली में
दांत में फंसे हुए गोश्त के टुकड़े को
किसी पैनी चीज़ से कुरेद कर निकाल फेंका था,
वो टुकड़ा जो किसी कहानी, किसी कविता का हिस्सा था
हवा में विलीन हो गया,
सुना है वो जो आतंक था
वो सर्दी के आतंक से ठिठुर गया था।
आजकल साहित्य का मांस नोचने वाले
जिनके पुरखों ने उसके गोश्त का मज़ा चखा था
उसके शब्दों के मांस का फिर लुत्फ उठा रहे हैं,
उसके मरने पर अफसोस जता रहे हैं
उसकी याद में गोष्ठी पर गोष्ठी सजा रहे हैं,
जिसमें कहानी के किसी टुकड़े को
एकांकी के किसी कतरे को
कविता के किसी पल को याद किया जा रहा है
और उसे भी, जो कभी आतंक था
उसे भुनाया जा रहा है
कैसा अजीब है ये रवैया
तिल तिल कर मरना,
फिर एक दिन चुपचाप खामोश हो जाना,
कितना मुश्किल है
दुनिया में अमर हो पाना ।
___________________________________________
पुरस्कार और सम्मान: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें तथा प्रशस्तिपत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

  इसके अतिरिक्त अप्रैल माह की शीर्ष की जिन छ: कविताओं का हम प्रकाशन करेंगे, उनके रचनाकारों का क्रम निम्नवत है-

नरेंद्र कुमार तोमर
चैन सिंह शेखावत
धर्मेंद्र कुमार सिंह
रोहित रुसिया
शामिख फ़राज़
निशीथ द्विवेदी

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ  7 जून 2011 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

     हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले शेष कवियों के नाम निम्नांकित हैं (शीर्ष 21 के अन्य प्रतिभागियों के नाम अलग रंग से लिखित हैं)

राकेश जाज्वल्य
विशाल बाग
संगीता सेठी
आलोक उपाध्याय
शोभा रस्तोगी
सुरेंद्र अग्निहोत्री
सनी कुमार
निशा त्रिपाठी
रेणु दीपक
अनंत आलोक
गौरव कुमार ’विकल’
दीपक वर्मा
अरविंद कुमार पुरोहित
विजय विगमल
शील निगम
कमल जोशी पथिक
सीमा स्मृति मलहोत्रा
गंगेश ठाकुर
प्रवीण कुमार
यानुचार्या मौर्य यानु
मेयनुर खत्री
जोमयिर जिनि
वंदना सिंह
अनिल चड्डा
स्नेह सोनकर पीयुष
बलराम मीना दाऊ
दीपक कुमार
डॉ गौरव गर्ग
अनुपम चौबे
विभोर गुप्ता
एकनाथ उत्तम तेलतुंबडे

विशेष:  इस बार किसी पाठक को यूनिपाठक सम्मान हेतु योग्य नही पाया गया है। हमारा अपने पाठकों से अनुरोध है कि अपनी रचनात्मक और निष्पक्ष प्रतिक्रियाओं से रचनाकारों का मार्गदर्शन करें।

मार्च माह की यूनिप्रतियोगिता के परिणाम




   मार्च माह की यूनिप्रतियोगिता के परिणाम ले कर हम उपस्थित हैं। हमारे निर्णायकों के अतिशय व्यस्तता के चलते परिणामों की घोषणा मे इस बार काफ़ी बिलम्ब हुआ जिसके लिये हम पाठकों और प्रतिभागियों से क्षमा माँगते हैं और उनके धैर्य के लिये हार्दिक आभारी हैं। मार्च माह 2011 की प्रतियोगिता हमारी मासिक यूनिकवि और यूनिपाठक प्रतियोगिता का 51वाँ संस्करण थी। इस बार प्रतियोगिता मे कुल 38 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिनमे कई नये नाम भी शामिल थे। सभी रचनाएं विगत माहों की तरह ही 2 चरणों मे आँकी गयीं। पहले चरण के तीन निर्णायकों के द्वारा दिये अंकों के आधार पर 18 रचनाओं को दूसरे चरण के लिये भेजा गया। दूसरे चरण मे दो निर्णायकों ने बची हुई कविताओं को परखा। इस बार कई अच्छी कविताओं के आने से निर्णायकों का काम आसान नही था और शीर्ष की कविताओं के बीच अंतर भी काफ़ी कम रहा। दोनों चरण के कुल अंकों के आधार पर कविताओं का वरीयता क्रम निर्धारित किया गया। मार्च 2011 की प्रतियोगिता के यूनिकवि बनने का श्रेय दर्पण साह को मिला है जिनकी कविता ’लोकतंत्र दरअसल’ को निर्णायकों ने यूनिकविता चुना है।

यूनिकवि: दर्पण साह

    23 सितम्बर 1981 को पिथौरागढ़(कुमायूँ), उत्तराँचल में जन्मे दर्पण शाह 'दर्शन' को साहित्य में रूचि अपने परिवार से विरासत में मिली। विज्ञान और होटल मैनेजमेंट के छात्र होते हुए भी ये हमेशा से ही साहित्य रसिक रहे। बचपन से ही इन्हें सीखने की लालसा को हमेशा एक विद्वान् कहलाने से ऊपर रखना सिखलाया गया। कहानी-लेखन के अतिरिक्त कविता-लेखन, ग़ज़ल-नज़्म लेखन इनकी मूल विधाओं में शामिल है। दर्शन मूलतः साहित्य के बने-बनाए ढर्रे पर चलने के बजाय प्रयोगधर्मी साहित्य के सृजन में यकीन रखते हैं। खाली समय में दिल को छू लेने वाला संगीत सुनना दर्शन जी का पसंदीदा शगल है। सम्प्रति एमेडियस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली में तकनीकी-सलाह प्रभारी दर्पण हिंद-युग्म के प्रकाशन ’संभावना डॉट कॉम’ का हिस्सा भी रह चुके हैं।
दूरभाष: 09899120246

यूनिकविता: लोकतंत्र दरअसल...

गुस्से की तलाश में
जब मैं निकलूंगा राजपथ,
बस वहाँ पर
बेरोजगार 'जन' के
कांपते हुए कंधे मिलेंगे मुझे
"कंधे जो कल तक झुक जायेंगे"
ये नहीं बताऊंगा मैं आपको !
(बोलने का अधिकार- लोकतंत्र के नाम पर / चुप रहने की आदत- देशभक्ति की खातिर)
अपेक्षाओं के भविष्य में
बहुत हद तक  संभव है कि
कल वो 'जन' इंडिया गेट के बीचों बीच खड़ा हो जाएगा,
फाड़ के उड़ा देगा अपने सर्टिफिकेट
अपने शरीर में मिट्टी-तेल छिड़क के जला लेगा अपने आप को;
या बस ४ दिन से लगातार इस्तेमाल किये गए
कुंद पड़े ब्लेड से
लोकतंत्र की कोई नस काटने की कोशिश करेगा।
या अगर ज़िहादी हुआ तो
बम भी फोड़ सकता है !
पर भाइयों-बहनों,
श्रोताओं-दर्शकों,
डरने की कोई बात नहीं.
क्यूंकि,
लोकतंत्र वास्तव में तसल्ली का ऐसा खुशफ़हमी षड़यंत्र है
जिसमें हर बच जाने वाले को
ये शुक्र है कि उन्हें कुछ नहीं हुआ
मरने तक !

क्रांति की तलाश में
जब में निकलूंगा मलाड,
एक भूखा, अलाव तापता
'गण' मिलेगा मुझको.
कल के 'मुम्बई मिरर' के पृष्ठ १० में
विज्ञापनों से खाली बची जगह के बीच
उस अनाम 'कोई' की
कभी न पढ़ी जाने वाली 'कोई एक और' खबर होगी.
ये नहीं जान पायेंगे आप.
क्यूंकि,
आपके व्यस्त कार्यक्रम में
सीढियां चढ़ना ज़्यादा ज़रूरी है
(वो सीढियां बन के ही आपके नीचे कुचल के मारा गया था)
(ये) जानना कम
और समझना बिल्कुल नहीं।
फिर भी एक उम्मीद से फ़िर जाऊँगा चर्च गेट
कि शायद कोई जुलुस
उसके सरोकारों की अगुआई कर रहा होगा।
जुलुस जिसमें
'कमल', 'हाथ' या 'हंसिया' के झंडे नहीं होंगे,
बस मशालें होंगी,
उस अलाव से ज़्यादा 'दीप्त'
बहरहाल,
उस खबर के सामने एक विज्ञापन पे तो ध्यान गया होगा न आपका?
'व्हेन डिड यू फील सिल्क लेटली ?'
सच बताइए
व्हेन डिड यू फील रिवोल्यूशन लेटली?
डिड यू एवर ?
आई डोन्ट थिंक सो,
क्यूंकि,
अफ़सोस कि लोकतंत्र में
उसी तरह अलग हैं मायने
भ्रष्टाचार और हत्या के
जैसे क्रांति और देशद्रोह के।

युवतम-राष्ट्र का 'विजयी-पौरुष-उत्साह' तलाशने जब मैं निकलूंगा लहुराबीर
समर्पण (हार नहीं) की ग्लानि-जनित लज्जा के कारण
'वी शैल ओवरकम' का 'सतरंगी-उम्मीदी-स्त्रैण-दुपट्टा' ओढ़े
सहमा 'मन' मिलेगा मुझे.
तथापि,
ग़ालिब से इत्तफाक रखने के बावजूद,
मैं मणिकर्णिका घाट रोज़ राख कुरेदने जाऊँगा,
कि शायद राख हुए उत्तेजना के स्थूल शरीर में,
आत्माभिमानी मन का कुछ बचा हिस्सा
पक्षपात के अनुभव का इँधन पाकर ही सही
जल उठे कभी।
किन्तु हाँ !
लोकतंत्र,
हर पाँच साल में बांटी जाने वाली
कच्ची शराब में प्रयुक्त ऐसी 'शर्करा' है
जिसका 'चुनाव-परिणाम'
किसी भी पंचवर्षीय योजना के
'वसा' से ज़्यादा 'इंस्टेंट' है !

लोकतंत्र दरअसल...
...२४ तीलियों वाला रैखिक-वृत्त है...
'फॉर दी' से शुरू होकर वाया 'बाय दी', 'टू दी' नामक गंतव्य तक पहुँचता हुआ...
...जन गण मन !

एक कथन जो प्रश्न भी है:
राष्ट्र के चौंसठ-साला इतिहास के विश्लेषण के बाद
सफल लोकतंत्र के ऊपर गर्वानुभूति तर्कसंगत है.

लोकतंत्र,
..."जो हुआ बेशक वो बुरा हुआ"
और,
"जो होगा वो यकीनन अच्छा ही होगा"
के बीच का ऐसा देशभक्त-सेतु है,
जिसका
'सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण' होने के कारण
चित्र खींचना मना है।
अस्तु,
विश्लेषण भी !
नहीं तो मैं आपको ज़रूर बताता कि...
क्रांतियों की अपेक्षा
लोकतंत्र (मैं इसे षड़यंत्र कहता) की सफलता का प्रतिशत
सदैव अधिक ही होना है भाई !
क्यूंकि 'लोकतंत्र' वस्तुतः
क्रांति की तरह
यू. पी. या बिहार बोर्ड का पढ़ा नहीं,
किसी 'ए-रेटेड' बी-स्कूल में एजुकेटेड है.

लोकतंत्र,
दरअसल ऐसा 'आशीर्वाद' है
जो कांग्रेसियों द्वारा
'राजशाही-की-गालियों' के 'पर्यायवाची'
और भाजपाईयों द्वारा,
'दिव्य-भगवा-श्राप' के 'समानार्थक'
प्रयुक्त होता आया है।

लोकतंत्र,
राष्ट्र-ध्वज का ऐसा नवीनतम-सामाजिक संस्करण है
जिसके सामयिक-साम्प्रदायिक रंगों में
'काफ़्का ऑन द शोर' सा अद्भुत शिल्प है.
'हिन्दू-भगवा' और 'मुस्लिम-हरा' सगे भाई हैं जहाँ...
...'बाप की जायजाद के बंटवारे' वास्ते !

लोकतंत्र,
'सूचना के अधिकार' के साथ
'पद और गोपनीयता की शपथ'
और ''किसान' के साथ
'भुखमरी' का
सर्वविदित-विरोधाभास है।

लोकतंत्र
जो चंद रोज़ पहले तक
विश्व बैंक और अमेरिका की कठपुतली थी !
अब अपना वास्तविक-आर्थिक-मूल्य जान लेने के बाद
माफ़ करना, पर
'स्विस-बैंक' और 'लाल फीताशाही' की 'पेज़ थ्री' रखैल है !

लोकतंत्र,
दरअसल,
काटे जा चुके
'स्वर्णिम अतीत के जंगल' से,
'योजनाओं के नियोजित उद्यान' तक वाले
राष्ट्रीय राजमार्ग में लगा
'कार्य प्रगति पर है'
का सूचना-पट्ट है!
_________________________________________________________
पुरस्कार और सम्मान: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें तथा प्रशस्तिपत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

    इसके अतिरिक्त मार्च माह के शीर्ष 10 के अन्य कवि जिनकी कविताएं हम यहाँ प्रकाशित करेंगे और जिन्हे हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें दी जायेगी, उनका क्रम निम्नवत है-

धर्मेंद्र कुमार सिंह
दीपक चौरसिया ’मशाल’
राकेश जाज्वल्य
संगीता सेठी
मुकेश कुमार तिवारी
अखिलेश श्रीवास्तव
अनिता निहलानी
मनोज गुप्ता ’मनु’
रितेश पांडेय

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 18 मई 2011 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

     हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले शेष कवियों के नाम निम्नांकित हैं (शीर्ष 18 के अन्य प्रतिभागियों के नाम अलग रंग से लिखित हैं)

सुवर्णा शेखर दीक्षित
कौशल किशोर
बृह्मनाथ त्रिपाठी
स्नेह सोनकर ’पीयुष’
कैलाश जोशी
नवीन चतुर्वेदी
डॉ अनिल चड्डा
निशा त्रिपाठी
शील निगम
प्रदीप वर्मा
मृत्युंजय साधक
सनी कुमार
केशवेंद्र कुमार
गंगेश कुमार ठाकुर
संदीप गौर
विवेक कुमार पाठक अंजान
मनोहर विजय
दीपाली मिश्रा
राजेश पंकज
सुरेंद्र अग्निहोत्री
सीमा स्मृति मलहोत्रा
आकर्षण गिरि
जोमयिर जिनि
आनंद राज आर्य
अभिषेक आर्य चौधरी
शशि आर्य
यानुचार्या मौर्य

यूनिपाठक सम्मान: मार्च माह की रचनाओं पर आयी टिप्पणियों गुणवत्ता के आधार पर डॉ अरुणा कपूर हमारी इस माह की यूनिपाठिका हैं। आशा है कि आगे भी उनकी गंभीर और रचनात्मक प्रतिक्रियाओं का लाभ हमारे कवियों को मिलता रहेगा। डॉ अरुणा को यूनिपाठिका के तौर पर हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें और प्रशस्तिपत्र दिया जायेगा।


जनवरी 2011 की यूनिप्रतियोगिता के परिणाम



हिंद-युग्म की जनवरी 2011 की यूनिकवि प्रतियोगिता के परिणाम ले कर हम उपस्थित है। परिणामों की घोषणा मे विलम्ब के लिये क्षमा माँगते हुए हम प्रतियोगिता के सभी प्रतिभागियों और अपने पाठकों द्वारा धैर्य रखने के लिये आभारी हैं।
जनवरी माह की प्रतियोगिता यूनिप्रतियोगिता के उन्चासवीं कड़ी थी। इस बार कुल 40 प्रतिभागियों की कविताएं सम्मिलित की गयीं, जिन्हे दो चरणों मे परखा गया। प्रथम चरण के तीन निर्णायकों के दिये अंकों के आधार पर 20 कविताओं को द्वितीय चक्र मे स्थान मिला, जहाँ दो निर्णायकों ने कविताओं के शिल्प, कथ्य, सामयिकता आदि के विविध पक्षों के आधार पर उनको आँका। इस प्रतियोगिता की एक खास बात यह रही कि कई सारी ग़ज़लें प्रविष्टि के तौर पर शामिल हुई। इस बार की यूनिकविता का खिताब भी एक ग़ज़ल को गया है, जिसके रचनाकार होने का श्रेय नवीन चतुर्वेदी को जाता है। निर्णायकों ने उन्हे जनवरी माह का यूनिकवि चुना है।

यूनिकवि: नवीन चतुर्वेदी

हमारे नियमित पाठक नवीन जी की कलम से परिचित होंगे। नवीन जी प्रतियोगिता से कुछ समय पहले ही जुड़े हैं और इनकी पहली ही रचना नवंबर माह मे छठे स्थान पर रही थी। मुख्यतया गज़ल विधा मे महारथ रखने वाले नवीन जी रचनाकार के अलावा एक गंभीर पाठक के तौर पर भी हिंद-युग्म पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। अंतर्जाल पर साहित्यिक अभिरुचि के प्रचार-प्रसार मे खासे सक्रिय नवीन जी का परिचय हम पहले भी अपने पाठकों से करा चुके हैं मगर अपने नये पाठकों के लिये एक बार पुनः उनका संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं। नवीन सी चतुर्वेदी का जन्म अक्टूबर 1968 मे मथुरा मे हुआ। वाणिज्य से स्नातक नवीन जी ने वेदों मे भी आरंभिक शिक्षा ग्रहण की है। अभी मुम्बई मे रहते हैं और साहित्य के प्रति खासा रुझान रखते हैं। आकाशवाणी मुंबई पर कविता पाठ के अलावा अनेकों काव्यगोष्ठियों मे भी शिरकत की है और आँडियो कसेट्स के लिये भी लेखन किया है। ब्रजभाषा, हिंदी, अंग्रेजी और मराठी मे लेखन के साथ नवीन जी ब्लॉग पर तरही मुशायरों का संचालन भी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा नयी पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने का प्रयास है।

यूनिकविता: ग़ज़ल

गगनचरों को दे बुलावा चार दानों पर|
बहेलिए फिर ताक में बैठे मचानों पर |१|

बुजुर्ग लोगों से सुना है वो सुनाता हूँ|
हवाएँ भी हैं नाचती दिलकश तरानों पर |२|

हुनर हो कोई भी, बड़ी ही कोशिशें माँगे|
न खूँ में होता है, न मिलता ये दुकानों पर |३|

अवाम के पैसे पचाना जानते हैं जो|
हुजूम बैठा ही रहे उन के मकानों पर |४|

विकास की खातिर मदद के नाम पर यारो|
लुटा रहे लाखों करोड़ों कारखानों पर |५|

जिन्हें तरक्कियों से निस्बतें होतीं हरदम|
न ध्यान देते वो फ़िज़ूलन तंज़ - तानों पर |६|

पहाड़ की चोटी तलक वो ही पहुँचते हैं|
फिसल चुके हों जो कभी उन की ढलानों पर |७|
____________________________________________________________
पुरस्कार और सम्मान: हिंद-युग्म से सद्यप्रकाशित सुधीर गुप्ता ’चक्र’ के नये काव्य-संग्रह ’उम्मीदें क्यों’ की प्रति तथा प्रशस्तिपत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

 इसके अतिरिक्त दिसंबर माह के शीर्ष 10 के अन्य कवि जिनकी कविताएं हम यहाँ प्रकाशित करेंगे और जिन्हे हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें दी जायेगी, उनका क्रम निम्नवत है-

वसीम अकरम
वंदना सिंह
सुवर्णा शेखर दीक्षित
धर्मेंद्र कुमार सिंह
डिम्पल मल्होत्रा
अनिता निहलानी
अरविंद कुमार पुरोहित
सुधीर गुप्ता चक्र
आरसी चौहान

शीर्ष दस के अतिरिक्त हम जिन चार अन्य कविताओं का प्रकाशन इस प्रतियोगिता के अंतर्गत करेंगे, उनके रचनाकारों के नाम हैं


अनवर सुहैल
सनी कुमार
रमा शंकर सिंह
विवेक कुमार पाठक अंजान

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 10 मार्च 2011 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें

  हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले शेष कवियों के नाम निम्नांकित हैं

मनोज कुमार
पंकज भूषण पाठक प्रियम
रविंद्र कुमार श्रीवास्तव बेजुबान
बोधिसत्व कस्तुरिया
योगेश कुमार ध्यानी 
प्रदीप वर्मा
आलोक गौर
सुमित वत्स
शोभा रस्तोगी शोभा
अल्पना गिरि
नीलेश माथुर
ब्यूटी मालाकार
रवि शंकर पांडेय
विनोद वर्मा प्रेम अंजाना
रतन प्रसाद शर्मा
शील निगम
अनिरुद्ध सिंह चौहान
विभूति कुमार
दीपक कुमार
योगेंद्र शर्मा व्योम
प्रवेश सोनी
रिक्की पुरी
आशीष पंत
आलोक उपाध्याय
प्रवीण चंद्र राय
सीमा स्मृति मलहोत्रा

यूनिपाठक सम्मान

   पिछले कुछ माहों से हमने यूनिपाठक सम्मान की घोषणा नही की थी। विगत कुछ माहों मे प्रकाशित रचनाओं पर पाठकों द्वारा की गयी प्रतिक्रियाओं को आँकते हुए इस बार यूनिपाठक का खिताब धर्मेंद्र कुमार सिंह ’सज्जन’ को जाता है। एक पाठक के तौर पर अपनी निरंतरता और प्रतिक्रियाओं की गुणवत्ता और उससे झलकती पठनीयता के आधार पर सहज ही धर्मेंद्र जी प्रभावित करते हैं। यूनिप्रतियोगिता मे नियमित रूप से हिस्सा लेने वाले धर्मेंद्र जी ’एक अच्छा लेखक होने के लिये अच्छा पाठक बनना भी अपरिहार्य है’ की उक्ति को चरितार्थ करते हैं।
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पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें और वार्षिकोत्सव मे वरिष्ठ साहित्यका्र द्वारा प्रशस्ति पत्र

 इसके अतिरिक्त जिन चार अन्य पाठकों का हम उल्लेख करना चाहेंगे जिन्होने पिछले कुछ माहों मे अपनी रचनात्मक प्रतिक्रियाओं द्वारा कवियों का उत्साह बढाया है वे निम्नवत हैं

स्वप्निल कुमार आतिश
रंजना सिंह
एम वर्मा
जितेंद्र जौहर

दिसंबर यूनिप्रतियोगिता के परिणाम


   हमारे निर्णायकों की कुछ निहित व्यस्तताओं के चलते दिसंबर माह की प्रतियोगिता के परिणामों को प्रकाशित करने मे कुछ विलम्ब हुआ, जिसके लिये हम पाठकों और प्रतिभागियों से क्षमाप्रार्थी हैं। कविता अपने समय से संवाद करने और उसकी धड़कनों को अपने जेहन के दस्तावेज मे दर्ज करने की सशक्त माध्यम है। तो यूनिप्रतियोगिता हमारे प्रतिभागियों के लिये कविता की कला को समझने और अपने आप को मांजने का महत्वपूर्ण माध्यम रही है। इसी वजह से तमाम कवि/कवियत्रियाँ परिणाम की फ़िक्र किये बिना निरंतर हर माह इसमे भाग लेते हैं।
   दिसंबर माह का संस्करण इस प्रतियोगिता के अबाध आयोजन की अड़तालिसवीं कड़ी था। प्रतियोगिता मे इस बार कुल 40 कविताएं शामिल हुई थीं। जिन्हे कि पांच निर्णायकों द्वारा दो चरणों मे आंका गया। पहले चरण के 3 निर्णायकों की पसंद के आधार पर 20 कविताओं ने दूसरे चरण मे जगह बनाई जिसमे दो निर्णायकों ने अपनी कसौटी पर उनको परखा। अंतिम अंक सूची के आधार पर कविताओं का वरीयता क्रम निर्धारित किया गया। निर्णायकों के मुताबिक इस माह कई अच्छी कविताओं के शामिल होने से शीर्ष कविताओं का क्रम निर्धारित कर पाना एक कठिन काम भी रहा, जो हमारे लिये खुशी की बात है। अंतिम अंक-तालिका के आधार पर स्वप्निल कुमार आतिश की कविता ’सड़क’ को इस बार की यूनिकविता का गौरव हासिल हुआ है। आतिश पिछले कई माह से युनिप्रतियोगिता के अहम हिस्सा रहे हैं और उनकी तमाम गज़लें और नज़्में पहले भी शीर्ष दस मे शामिल हुई हैं। मगर अभी तक उनकी कविताएं यूनिकविता बनने के पायदान से कुछ पीछे रह जाती थीं। मगर इस बार की उनकी कविता को सभी जजों ने शीर्ष पर रखा और इस तरह पिछले साल की अंतिम प्रतियोगिता के यूनिकवि का खिताब आतिश को हासिल हुआ है।

यूनिकवि: स्वप्निल कुमार ’आतिश’

   युवा कवि आतिश की पैदाइश गाजीपुर (उ.प्र.) की रही। घर मे पहले से ही पढ़ने-लिखने का माहौल था और साहित्यिक संस्कार और समझ अपनी माँ से हासिल हुए। दिल्ली मे ग्रेजुएशन के लिये आये और तब से इसी शहर के हो कर रह गये। आतिश ने बायोटेक से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। पहली बार जगजीत सिंह की गायी मिर्जा ग़ालिब की ग़ज़लें सुनते हुए ग़ालिब को समझने की ललक जागी। फिर उनकी शायरी का सफ़हा-दर-सफ़हा खूबसूरत सफ़र इतना दिलचस्प और मानीखेज लगा कि शायरी से गहरा रिश्ता कायम हो गया। उसके बाद रही कसर गुलज़ार साहब की नज़्मों ने पूरी कर दी। तब से गज़लों, नज्मों और कविताओं से शुरू हुआ सिलसिला बदस्तूर जारी है। गुलज़ार के अलावा निदा फ़ाज़ली, दुष्यंत कुमार, बच्चन और कुँअर बेचैन की रचनाओं ने भी गहरा असर डाला है। आतिश नज्मों-कविताओं के अलावा स्क्रिप्ट राइटिंग, अनुवाद वगैरह से भी जुड़े हैं। कई गज़लें-नज़्में पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित भी हुई हैं। किसी दिन मुम्बई जा कर खुद की स्क्रिप्टों पर काम करने की ख्वाहिश है। साथ ही अपनी मातृभाषा भोजपुरी को भी कला-साहित्य मे इज्जत दिलाने का मंसुबा भी रखते हैं। फिलहाल अपनी पहचान बनाने की कोशिश और तलाश जारी है। हिंद-युग्म पर एक कवि और पाठक के तौर पर खासे सक्रिय रहे हैं।
प्रस्तुत कविता सड़क को सरकारी विकास के प्रतीक के रूप मे इस्तेमाल करती है और इसी बहाने विकास के किसी समाज के भविष्य से कायम अनसुलझे रिश्ते की गिरहें खोलने की कोशिश करती है।
सम्पर्क:  8826308023

यूनिकविता: सड़क

अब पक्की हो गयी है,
कच्ची थी तो तन्नी सा
बरम बाबा के पास
रुक जाती थी,
अब भी रूकती है
पता है उसे
कि कच्चियै हो जायेगी
फिर एक दिन ..!

सड़क जब कच्ची थी
त फेंकूआ के घर
लड़का हुआ था,
सड़क पक्की होते होते
बच्चे का नाम
घूरा धरा गया,
नहीं बदलता
नाम रखने का तरीका
सड़क पक्की होने से...!

जब सडक कच्ची थी
गांव का एगो आसिक
सोचता था
“रख दें एक अँजूरी
जो भैंसही का पानी आसमान में
त फलानी
आजो चाँद देख लेगी,
सड़क पक्की हो गयी
पर ऊ
आजो वइसहीं सोचता है...!

सुदेसर बिदेसर के जाल में
आजो कुछ नहीं फंसता,
नदी में मछरी
सड़क पक्की हो जाने से
थोरही आ जायेगी ..!

चहेंटुआ पहले ठाकुर साब किहाँ
काम करता था
सड़क बनते ही
बम्बई भाग गया
अब बर्तन धोता है
एगो होटल में...!

सड़क पक्की होने से
खाली सड़क पक्की होती है
नहीं पक्का होता गांव का भाग्य,
हाँ
बढ़ जाता है खतरा
गांव के सहर चले जाने का
या सहर के गांव में आ जाने का ।
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पुरस्कार और सम्मान-   विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

  इसके अतिरिक्त दिसंबर माह के शीर्ष 10 के अन्य कवि जिनकी कविताएं हम यहाँ प्रकाशित करेंगे और जिन्हे समयांतर की वार्षिक सदस्यता दी जायेगी, उनका क्रम निम्नवत है

सौरभ राय ’भगीरथ’
अनिल कार्की
नरेंद्र तोमर
सुरेंद्र अग्निहोत्री
डॉ नागेश पांडेय ’संजय’
धर्मेंद्र कुमार सिंह
वसीम अकरम
ऋतु वार्ष्णेय
डॉ अनिल चड्डा

  शीर्ष दस के अतिरिक्त हम जिन चार अन्य कविताओं का प्रकाशन इस प्रतियोगिता के अंतर्गत करेंगे, उनके रचनाकारों के नाम हैं

सुधीर गुप्ता ’चक्र’
संगीता सेठी
चारु मिश्रा ’चंचल’
राजेश पंकज

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 7 फ़रवरी 2011 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

  हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले शेष कवियों के नाम निम्नांकित हैं

अश्विनी कुमार राय
स्वामी आनंद प्रसाद मनसा
रिक्की पुरी
नूरैन अंसारी
सुधांशु शेखर पांडेय ’प्रफ़ुल्ल’
मृत्युंजय श्रीवास्तव साधक
पुष्पेंद्र पटेल
डिम्पल मलहोत्रा
शन्नो अग्रवाल
स्नेह सोनकर ’पीयूष’
बोधिसत्व कस्तुरिया
डाँ ज्योति शोनक
विवेक जैन
धर्मेंद्र मन्नू
जोमयिर जिनि
अनिरुद्ध यादव
सनी कुमार
नीरज पाल
दीपक कुमार
अनामिका घटक
विमला किशोर
मनोज सिंह भावुक
विनय मलिक
सीमा स्मृति मलहोत्रा
प्रदीप वर्मा
अनवर सुहैल


अक्टूबर माह की प्रतियोगिता के परिणाम


आज अक्टूबर माह की यूनिप्रतियोगिता के परिणाम ले कर हम उपस्थित हैं। हमारी मासिक कविता प्रतियोगिता का यह छियालिसवाँ निर्बाध आयोजन था। प्रतिभागियों की निरंतरता हमारे लिये बहुत उत्साहजनक बात रहती है। इस बार भी प्रतियोगिता के तमाम नियमित प्रतिभागियों ने अपनी रचनाएँ हमें भेजीं थी। वहीं कई नये नाम भी इस प्रतियोगिता से जुड़े।

अक्टूबर माह के लिये कुल 52 रचनाएं शामिल की गयीं, जिन्हे 2 चरणों मे आँका गया। प्रथम चरण के 2 निर्णायकों के दिये अंकों के आधार पर हमने उन कविताओं को अलग कर दिया जिन्हे कोई अंक प्रा्प्त नही हुआ थ। इस तरह कुल 17 कविताएँ दूसरे चरण मे गयीं। दूसरे चरण के निर्णायकों के दिये अंको मे पहले चरण का औसत जोड़ कर कविताओं का क्रम निर्धारित किया गया। इस माह के परिणाम की सबसे महत्वपूर्ण बात रही  कि निर्णायकों ने एक यूनिकवियत्री को चुना है। अपर्णा भटनागर की कविता ’क्या अंत टल नही सकता’ सबसे अधिक अंक ले कर यूनिकविता बनने मे सफल रही। अपर्णा भटनागर पिछले कुछ महीनों से प्रतियोगिता मे नियमित भाग ले रही हैं और उनकी कविताएं पाठकों द्वारा काफ़ी सराही जाती रही हैं। सितंबर माह मे उनकी एक कविता ग्यारहवें पायदान पर रही थी।

यूनिकवियत्री: अपर्णा भटनागर

अपर्णा जी का जन्म 6 अगस्त 1964 को जयपुर (राजस्थान) मे हुआ। इन्होने हिंदी और अंग्रेजी मे परास्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। अभी का निवास-स्थान अहमदाबाद (गुजरात) मे है। इन्होने 2009 तक दिल्ली पब्लिक स्कूल मे हिंदी विभाग मे कोआर्डिनेटर पद पर कार्य किया है। मनुपर्णा के नाम से भी लिखने वाली अपर्णा पिछले कुछ समय से अंतर्जाल के साहित्यिक परिवेश मे सक्रिय हुई हैं और इनकी रचनाएँ कई अन्य जगहों पर भी प्रकाशित हैं। एक काव्य-संग्रह ’मेरे क्षण’ भी प्रकाशित हुआ है।
 यहाँ प्रस्तुत उनकी कविता अनगिनत समस्याओं से घिरे हमारे विश्व को एक नये आशावादी नजरिये से परखने की कोशिश करती है और दुनिया के लिये जरूरी तमाम खूबसूरत चीजों के बीच जीवन के बचे रहने की उत्कट इच्छा को स्वर देती है।
सम्पर्क: 23, माधव बंग्लोज़ -2, मोटेरा, अहमदाबाद (गुजरात)

यूनिकविता: क्या अंत टल नहीं सकता ?

इस संसार के अंत से पहले
देखती हूँ कई झरोखे सानिध्य के
खुले हैं
अनजाने प्रेम की हवाएं बहने लगी हैं
खोखली बांसुरियों ने बिना प्रतिवाद के
घाटियों की सुरम्य हथेलियों में
सीख लिया है बजना ..
मछलियाँ सागर की लहरों पर
फिसल रही हैं
उन्मत्त
कि मछुआरों ने समेट लिए हैं जाल !
अपने चेहरों पर सफ़ेद पट्टियाँ रंगे
कमर पर पत्ते कसे
जूड़े में बाँस की तीलियाँ खोंसे
युवा-युवतियों ने तय किया है
इस पूर्णिमा रात भर नृत्य करना ...
माँ अपने स्तन से बालक चिपकाये
बैठी है चुपचाप
आँचल में ममता के कई युग समेटे ..
अचानक खेत जन्म लेने लगे हैं
गाँव किसी बड़े कैनवास पर
खनक रहे हैं ..
शहरों का धुआँ
चिमनियों में लौट गया है
अफगनिस्तान में ढकी आतंकी बर्फ पिघल रही है
सहारा के जिप्सी पा चुके हैं नखलिस्तान
साइबेरिया के निस्तब्ध आकाश में पंख फैलाये उड़ रहे हैं रंगीन पंछी
लीबिया की पिचकी छाती
धड़क रही है साँसों के संगीत से
उधर दूर पश्चिम में सूरज तेज़ी से डूब रह है
अतल सागर रश्मियों में
और दरकने लगा है पूर्णिमा का चाँद
कांच की किरिच-किरिच ..
लपक कर एक बिजली कौंधती है ..
आह ! क्या अंत टल नहीं सकता ?
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पुरस्कार और सम्मान-   विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं-

विनीत अग्रवाल
हिमानी दीवान
मनोज भावुक
सुधीर गुप्ता ’चक्र’
जया पाठक श्रीनिवासन
धर्मेंद्र कुमार सिंह
आरसी चौहान
प्रवेश सोनी
देवेश पांडे


हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त जिन दो अन्य कवियों की कविता प्रकाशित करेंगे उनके नाम हैं-

सत्यप्रसन्न
शील निगम

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 30 नवंबर 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। शीर्ष 17 कवियों के नाम अलग रंग से लिखित है।

मंजू महिमा भटनागर
विकास गुप्ता
आलोक उपाध्याय
योगेंद्र शर्मा व्योम
डॉ भूपेंद्र सिंह
नूरैन अंसारी
सचिन कुमार जैन
मंजरी शुक्ल
धीरज सहाय
पूजा तोमर
डा अनिल चड्डा
रंजना डीन
प्रेम वल्लभ पांडेय
अश्विनी कुमार राय
अनिरुद्ध यादव
राम डेंजारे
विवेक मिश्र
विवेक शर्मा
डा राजीव श्रीवास्तव
धर्मेंद्र मन्नू
अशोक शर्मा
सनी कुमार
सीमा सिंहल ’सदा’
जितेंद्र जौहर
आकर्षण कुमार गिरि
कैलाश जोशी
मृत्योंजय साधक
डा नूतन गैरोला
अजय दुरेजा
सुतीक्षण प्रताप कौशिक
शिप्रा साह
जोमयिर जिनि
दीपक कुमार
कमलप्रीत सिंह
स्नेह ’पीयूष’
संगीता सेठी
मनोज शर्मा ’मनु
प्रकाश पंकज
अजय सोहनी
अम्बरीष श्रीवास्तव
साधना डुग्गर

नोट- जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि यूनिपाठक/यूनिपाठिका का सम्मान हम वार्षिक पाठक सम्मान के तौर पर सुरक्षित रख रहे हैं। वार्षिक सम्मानों की घोषणा दिसम्बर 2010 में की जायेगी और उसी महीने हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव 2010 में उन्हें सम्मानित किया जायेगा।

सितंबर माह यूनिप्रतियोगिता के परिणाम: महेंद्र वर्मा बने यूनिकवि


   हम सितंबर 2010 की यूनिप्रतियोगिता के परिणाम ले कर उपस्थित हैं। कुछ निर्णायकों की अतिशय व्यस्तता के चलते परिणाम घोषित करने मे 3 दिन का विलम्ब हुआ, जिसके लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि सितंबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता हिंद-युग्म के इस मासिक कविता आयोजन का 45वाँ पड़ाव है। हर माह प्रतियोगिता से कई नये प्रतिभागियों का जुड़ना इस आयोजन की बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण है। आशा है कि आगे भी नयी प्रतिभाएँ यूनिप्रतियोगिता के माध्यम से सामने आती रहेगीं और उन्हे पाठकों की गंभीर प्रतिक्रियाओँ का प्रतिसाद मिलता रहेगा।
   यहाँ हम एक बात कहना चाहेंगे कि प्रतियोगिता के नियमों मे स्पष्ट कर देने के बावजूद कई प्रतिभागियों की पूर्वप्रकाशित या ब्लॉग आदि पर प्रकाशित प्रविष्टियाँ भी आ जाती हैं, जिन्हे कि हमें खेद सहित अस्वीकृत करना पड़ता है। अतः हम भावी प्रतिभागियों से अनुरोध करेंगे कि कृपया भविष्य मे पूर्णतः अप्रकाशित व मौलिक रचनाएँ ही प्रतियोगिता के लिये भेजें। साथ ही पिछले माहों मे भेजी जा चुकी किसी रचना को दोबारा प्रतियोगिता के लिये न भेजें।
   इस बार प्रतियोगिता मे कुल 46 प्रविष्टियाँ सम्मिलित थीं। प्रथम चरण के 3 निर्णायकों द्वारा प्रदत्त अंकों के आधार पर कुल 18 कविताएँ द्वितीय चरण के लिये चयनित हुईं। द्वितीय चरण मे 2 निर्णायकों ने उन्हे आँका। दोनों चरणों के कुल प्राप्तांकों के औसत के आधार पर सभी 18 कविताओं का क्रम निर्धारित किया गया। कुल अंकों के आधार पर महेंद्र वर्मा की ग़ज़ल को सितंबर माह की यूनिकविता बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। इस बार कुछ अरसे के बाद एक ग़ज़ल यूनिकविता के रूप मे चुन कर आयी है। महेंद्र वर्मा पिछले कुछ माहों से ही यूनिप्रतियोगिता से जुड़े हैं। इनकी एक कविता जुलाई माह मे 13वें स्थान पर रही थी। वैसे तो इनका परिचय हम पाठकों से पहले करा चुके हैं, मगर यहाँ एक बार पुनः सितंबर माह के यूनिकवि का परिचय हम अपने पाठकों से बाँट रहे हैं।

यूनिकवि: महेंद्र वर्मा

जन्म - 30 जून 1955 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले के गांव बेरा में।
शैक्षणिक योग्यता - बी.एस-सी.,एम.ए.,दर्शनशास्त्र।
व्यवसाय- व्याख्याता
पता - जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बेमेतरा,जिला दुर्ग, छत्तीसगढ़।
रुचियां - साहित्य, संगीत,विविध कलाएं और अध्ययन-लेखन।
साहित्यिक उपलब्धियां- बचपन से ही साहित्य पढ़ने लिखने का शौक। विविध विधाओं मे रचनाएं जैसे, आलेख, निबंध, गजलें, बाल कविताएं आदि के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। नवभारत,अमृत संदेश, सापेक्ष,सुरति योग आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। आकाशवाणी रायपुर से ग़ज़लें एवं वार्ताएं प्रसारित। अंतर्जाल की पत्रिका रचनाकार में ग़ज़लें प्रकाशित, सृजनगाथा एवं आखर कलश में ग़ज़लें प्रकाशनार्थ स्वीकृत। छत्तीसगढ़ की विद्यालयीन पाठ्य पुस्तक में एक गीत सम्मिलित। निष्ठा साहित्य समिति, बेमेतरा द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह ‘‘निनाद‘‘ का संपादन। ‘सुरति योग‘ आध्यात्मिक पत्रिका के चार विशेषांकों का संपादन। विगत 25 वर्षों से वार्षिक स्मारिका शिक्षक दिवस का सम्पादन।

यूनिकविता: ग़ज़ल

आपकी दीवानगी बिल्कुल लगे मेरी तरह,
ये अचानक आप  कैसे हो गए मेरी तरह।

इक अकेला मैं नहीं कुछ और भी हैं शहर में,
जेब में  रक्खे हुए दो चेहरे,  मेरी  तरह।

भीड़ से पूछा किसी ने, किस तरह हो आदमी,
हो गई मुश्किल, कि सारे कह उठे मेरी तरह।

लोग, जो सब जानने का कर रहे दावा मगर,
दरहक़ीकत वे नहीं कुछ जानते  मेरी तरह।

किसलिए यूँ  आह के  पैबंद  टांके जा रहे,
क्या जिगर मे छेद हैं अहसास के मेरी तरह।

खुदपरस्ती  के अंधेरे में भला कैसे  जिएँ,
देख  जैसे जल रहे हैं ये दिये  मेरी तरह।

मजहबी धागे  उलझते जा रहे थे, और वे,
नोक से तलवार की सुलझा रहे मेरी तरह।

पुरस्कार और सम्मान-   विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं-


आरसी चौहान
आशीष पंत
जितेंद्र जौहर
मनोज सिंह ’भावुक’
जया पाठक
ज्योत्स्ना पांडे
धर्मेंद्र कुमार  सिंह सज्जन
कौशल किशोर
शील निगम


हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित
4 अन्य कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-


मनुपर्णा भटनागर
डॉ अनिल चड्डा
प्रियंका चित्रांशी
आलोक गौड़


उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 अक्टूबर 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

  हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। शीर्ष 18 कवियों के नाम अलग रंग से लिखित है।

अनिल कुलश्रेष्ठ
संतोष कुमार सिंह
कैलाश जोशी
वसीम अकरम
देवी नागरानी
राम डेंजारे
शेखर तिवारी
राजीव श्रीवास्तव
पवन तिवारी
योगेंद्र वर्मा व्योम
सोहन चौहान
संजीवन मयंक
रिम्पा परवीन
प्रवीण आर्य
सुरेंद्र अग्निहोत्री
अनिरुद्ध यादव
राकेश पुरी रिक्की
नूरैन अंसारी
अश्विनी राय
सनी कुमार
बोधिसत्व कस्तुरिया
नीरज पाल
जोमयिर जिनि
मुकुल उपाध्याय
अजय दुरेजा
प्रकाश यादव निर्भीक
श्याम गुप्ता
मंजरी शुक्ला
ऋषभ कुमार
अशोक शर्मा
अरविंद कुरील सागर
तोशा दुबे

नोट- हम यूनिपाठक/यूनिपाठिका का सम्मान वार्षिक पाठक सम्मान के तौर पर सुरक्षित रख रहे हैं। वार्षिक सम्मानों की घोषणा दिसम्बर 2010 में की जायेगी और उसी महीने हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव 2010 में उन्हें सम्मानित किया जायेगा।

उत्तराखंड का पहला यूनिकवि (परिणाम)


हिन्द-युग्म पर आयोजित होने वाली यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता एक ग्लोबल प्रतियोगिता है, जिसमें दुनिया भर के हिन्दी-कवि और उनकी कविताओं के रसज्ञ भाग लेते हैं। जनवरी 2007 से यह हर महीने आयोजित हो रही है। आज हम इसके 43वें संस्करण के परिणाम लेकर उपस्थित हैं। 43वीं यूनिकवि प्रतियोगिता (जो कि जुलाई 2010 में आयोजित की गई थी) में कुल 46 कवियों ने भाग लिया।

निर्णय 2 चरणों में सम्पन्न हुआ। पहले चरण में 4 जज और दूसरे चरण में 2 जज शामिल थे। पहले चरण में सभी जजों को अपनी पसंद की 10 कविताओं को चुनने का कार्यभार सौंपा गया। पहले चरण के निर्णायकों ने अपनी पसंद की 10 कविताओं को 10 में से अंक भी दिये। इस प्रकार कुल 24 कविताएँ दूसरे चरण के निर्णय के लिए चुनी गयीं।

दूसरे चरण में 2 निर्णायक शामिल थे। इन दो निर्णायकों द्वारा 24 कविताओं को दिये गये अंकों और पहले चरण के जजों द्वारा दिये गये अंकों के औसत तथा पसंदों की संख्या के आधार पर शीर्ष 24 कविताओं के क्रम निर्धारित किये गये।

पहली बार हमें 43वें कवि के रूप में उत्तराखंड राज्य से यूनिकवि मिला है। पिछले 42 महीनों से ऐसा संयोग नहीं आया कि इस नये राज्य से हमें कोई यूनिकवि मिल सके, जबकि उत्तराखंड राज्य हिन्दी कवियो का गढ़ है।

यूनिकवि- अनिल कार्की

इनकी उम्र पच्चीस वर्ष है। उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के मुवानी पीपलतड़ बरला से इन्होंने अपनी जीवन यात्रा आरंभ की, इनका परिवार पूरी तरह निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार है। दुनिया के यथार्थ में से जो इनकी दुनिया का छोटा सा यथार्थ था, इनका अपना जनपद और गाँव था, दुनिया के इस कोने में साहित्य के अपने माइने थे। वह इन्हें कभी विचारधारओं में जकड़े हुए नही मिले, ये सच्चाई हैं कि इन्होंने बहुत ज्यादा अध्ययन भी नही किया है। अब जाकर पिछले तीन सालों में मैने कुछ किताबों का अध्ययन अपने बड़े भाई रूपेश डिमरी जिन्होंने इन्हें किताबों की दुनिया से परिचय करवाया, किया उनमें - पाश, गोरख पाण्डे, नागार्जुन, मुक्तिवोध, त्रिलोचन, रघुवीर सहाय, शमशेर, मंगलेश डबराल, श्याम मनोहर जोशी, श्रीलाल शुक्ल, भीष्म सहानी, काशीनाथ सिंह, राजेन्द्र यादव, विष्णु सखाराम खांड़ेकर की ययाति, खुशवंत सिह, आदि थे। वर्तमान में पिथौरागढ़ से ही समकालीन कविता की पत्रिका का संपादन करते हुए कुमाँऊ विश्वविद्यालय डीएसबी परिसर नैनीताल से डॉ. शिरीष कुमार मौर्य के निर्देशन में हिन्दी शोधकार्य कर रहे हैं। ये अपने मित्र पंकज भट्ट का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इन्हें हिन्द-युग्म में कविता भेजने के लिए प्रेरित किया।
फोन संपर्क- 9456757646
पता- ग्राम,पोस्ट- भदेलवाड़ा ऐंचौली
जिला -पिथौरागढ़
पिन-252630

यूनिकविता- मौन अपेक्षित है


जिला पुस्तकालय पिथौरागढ़ में दीवार पर टंगी तख्ती ‘मौन अपेक्षित है’ और सामने टेबल पर बैठी हमउम्र लड़की को देखकर-

किताबें,
कुछ-कुछ शोर,
गूँजता है-
एक नई किस्म की कम्पनी है।
एक पौधशाला।
व्यवस्था के नए चाकर यहीं पैदा होते हैं अब,
पूछो- सब आई.ए.एस., पी.सी.एस.,
मास्टरों, प्रोफेसरों की लम्बी कतार,
यहीं से निकलेगी कल,
ये वही जगह है- जहाँ दीवार पर टंगी है एक तख्ती,
जिस पर लिखा है- मौन अपेक्षित है।
कभी-कभार समाजशास्त्र, इतिहास, भूगोल पढ़ते हुए-
हल्के से निकल आती है,
लचर व्यवस्था की बात।
फिर दूसरे ही पल सावधान हो जाते हैं यह कहकर सब-
क्या लेना व्यवस्था से हमें, ये करियर की लड़ाई है।
इन टेबलों पर बैठ चाय पी लेने
या व्याख्यान दे देने से नहीं बचने वाली,
कविता, कहानी की अस्मिता।
वो बेच दी जायेगी
अलग-अलग फ्लेवरों में तुम्हारे ही सामने।
खुद को हिजड़ा कहने में भी तालियाँ नहीं बजेंगी।
कभी-कभी प्रतियोगिता परीक्षा की,
मोटी किताब के बीच हँसता है-
एक चेहरा कुछ देर के लिए,
तो लगता है, चालीस करोड़ भूखे नंगों का देश भी
हँसेगा, मुस्कुरायेगा।
हमने सोचा था कि धरती बहुत बड़ी है।
उसकी परिधि पर मानवता का महायज्ञ होगा।
और हम धीरे-धीरे अन्दर की ओर सिमटेंगे।
किसी केन्द्र बिन्दु पर।
कौन सा केन्द्र बिन्दु?
प्रेमिका की नाभि पर आधुनिकता देखने का निर्णय हमारा है।
उसके अधखुले जिस्म को चाट लेने का ख्वाब हमने ही सजाया है।
नहीं इस तरह नहीं!
बस घिन से थूक देने से काम नहीं चलेगा!
ये देश अकेले हमारा या अकेले उनका नहीं है।
ये चालीस करोड़ भूखे-नंगों का देश है, लूले और लंगड़ों का भी।
ये रिक्शा, टम्पो, इक्का, तांगा, बैलगाड़ी का देश है।
और कहाँ धरे के धरे रह गये तुम्हारे पोलियो के टीके!
चोरो! पुराने माल को हाईब्रिड बनाकर बेच रहे हो!
इस तरह कैमेस्ट्री, फिजिक्स, गणित का ट्यूशन पढ़ा लेना-
बुद्धिजीवी बन जाना नहीं होता।
किसी बार में बैठकर बियर की चुस्कियों के साथ,
शोषितों की बात करना अच्छा लगता है।
किसी अखबार का सम्पादक बन जाना भी अच्छा है।
और सुनो! क्यों पढ़ रही हो ये सब?
इसलिए न कि! अब लड़के पढ़ी-लिखी पत्नियाँ माँगते हैं।
ये मोटी किताबें दूल्हे पाने के लिए नहीं,
दूल्हे बने सत्ता के खिलाफ़ हथियार हैं।
आधुनिकता के मायने, फिगर मेन्टेन कर-
पतली कमर लचकाते हुए रैम्प पर उतरना नहीं होता है।
ये सब के सब वहशी चीर-फाड़ डालेंगे तुम्हें!
और तुम कानून की दुहाई देते रहना,
इस तरह नहीं-
कमीना होकर भी लड़ना अच्छा तो है-
दूध का धुला कोई नहीं होता।
पर मौन बिल्कुल अपेक्षित नहीं है!
ये तख्ती जो पुस्तकालय में टंगी है-
जिसपे लिखा है ‘मौन अपेक्षित है’
ये तख्तियाँ कल तुम्हारे घरों पे होंगी,
ये तख्तियाँ कल हमारे गले में डाल देंगी सरकारें।
मौन अपेक्षित नहीं है।
बस आज समझ लेना होगा-
मौन को अपेक्षित मान लेना ही-
मुखर हो जाने का सवाल है।
सवाल छोटा है पर-
बहुत बड़ा है मौन होना,
इस मौन के खिलाफ।
पुरस्कार और सम्मान-   विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं-

शेखर मल्लिक
योगेंद्र वर्मा व्योम
एम वर्मा
अपर्णा भटनागर
खन्ना मुजफ़्फ़रपुरी
स्वप्निल तिवारी आतिश
सुधीर गुप्ता 'चक्र'
मनोज वर्मा मनु
डिम्पल मलहोत्रा


हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 6 अन्य कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-

राजेश पंकज
दीपक कुमार
महेंद्र वर्मा
अनवर सुहैल
सुभाष राय
आलोक उपाध्याय 'नज़र'

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 अगस्त 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। शीर्ष 24 कवियों के नाम अलग रंग से लिखित है।

सुरेंद्र अग्निहोत्री
अनिता निहलानी
हरदीप राणा कुँअर जी
विवेक जैन
जोमयिर जिनी
ऋतु सरोहा 'आँच'
शामिख फ़राज
अश्विनी राय
मनसा आनंद मानस
लोकेश उपाध्याय
खान साब खान
सीमा सिंहल ’सदा’
सनी कुमार
हरप्रीत धंजल
अनिरुद्ध यादव
अशोक कुमार शर्मा
आलोक गौर
शील निगम
हरकीरत हकीर
उषा वर्मा
विभोर मिश्र खज़िल
आशीष पंत
अंजू गर्ग
विनय कृष्ण
संगीता सेठी
सुमिता केशवा
प्रदीप वर्मा
कमल किशोर सिंह
रश्मि सिंह
नरेंद्र कुमार तोमर

नोट- हम यूनिपाठक/यूनिपाठिका का सम्मान वार्षिक पाठक सम्मान के तौर पर सुरक्षित रख रहे हैं। वार्षिक सम्मानों की घोषणा दिसम्बर 2010 में की जायेगी और उसी महीने हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव 2010 में उन्हें सम्मानित किया जायेगा।

जून 2010 की यूनिप्रतियोगिता के परिणाम


हर महीने के पहले सोमवार को हिन्द-युग्म हिन्दी कविता के उदीयमान सितारों को वेब पर टाँकता है। हिन्दी कविता का यह दीया पिछले 42 महीनों से रोशन है, जिसमें यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के प्रतिभागी अपनी कलम और पठन का तेल अनवरत रूप से डाल रहे हैं। जून 2010 माह की प्रतियोगिता कई मामलों में खास है। पिछले 2-3 महीनों से हमारी भी और हमारे गंभीर लेखकों की भी यह शिकायत थी कि पाठकों की प्रतिक्रियाएँ अपेक्षित संख्या और तीव्रता के साथ नहीं मिल रही हैं। लेकिन बहुत खुशी की बात है कि जून माह में बहुत से पाठकों ने कविताओं को प्रथम वरीयता देकर, पढ़ा और हमारा और कवियों का मार्गदर्शन तथा प्रोत्साहन किया।

जून 2010 की प्रतियोगिता की दूसरी खासियत यह रही कि कविताओं का स्तर बहुत बढ़िया रहा। जब हमारे निर्णायकों तक एक ही दर्जे की ढेरों कविताएँ पहुँचती हैं तो उन्हें मुश्किल भी होती है और एक तरह की खुशी भी। आप खुद अंदाज़ा लगाइए कि शुरू की 7 कविताओं को निर्णय प्रक्रिया के पहले चरण के सभी 3 जजों और दूसरे चरण के दो जजों ने पसंद किया और इस तरह से अंक दिये कि उसका स्थान लगभग एक जैसा बन रहा था। कुल 58 प्रतिभागी थे। पहले चरण के निर्णय के बाद 28 कविताओं को दूसरे चरण के निर्णय के लिए प्रेषित किया गया। हमारे लिए यूनिकवि चुनना बहुत मुश्किल भरा काम था। इनमें से 2 कवि पहले भी हिन्द-युग्म के यूनिकवि रह चुके हैं। दो युवा कवि हिन्द-युग्म पर लम्बे समय से लिख रहे हैं और ग़ज़ल लिखने में महारत है। दोनों मूलरूप से ग़ाज़ीपुर (उ॰प्र॰) से हैं। एक फिलहाल इलाहाबाद में हैं और दूसरे दिल्ली में। इन्हीं में से एक कवि आलोक उपाध्याय 'नज़र' को हम जून 2010 का यूनिकवि चुन रहे हैं।


यूनिकवि- आलोक उपाध्याय 'नज़र'

उपाध्याय मूलतः उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के टोकवा गांव के निवासी हैं। वर्तमान में Crest Logix Softseve Pvt Ltd इलाहबाद में बतौर Software Engineer काम कर रहे हैं। साथ ही IGNOU से MCA की पढ़ाई भी कर रहे हैं। बचपन से ही उर्दू साहित्य और हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव रहा है। हालाँकि पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्यिक नहीं थी लेकिन इनकी माँ ने अपने मन की कोमलता बचपन में ही इनके मन के अन्दर कहीं डाल दी थी। वक़्त-वक़्त पर मिली उपेक्षाओं और एकाकीपन ने उस कोमल मन पर प्रहार किया तो ज़ज्बात और सोच कागजों पर उभरने लगे। कवि की 2 ग़ज़लें 38 यूनिकवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह 'सम्भावना डॉट कॉम' में भी संकलित हैं।

फोन संपर्क- 9307886755

यूनिकविता- ग़ज़ल

जिंदगी के अंदाज़ जब नशीले हो गए
दुःख के गट्ठर और भी ढीले हो गए

'मरता क्या न करता' कदम दर कदम
और जीने के उसूल बस लचीले हो गए

टीस सी उठती है हमेशा ही दिल में
दफन सारे ही दर्द क्यूँ नुकीले हो गए

कल से देखोगे न ये शिकन माथे पे
बिटिया सायानी थी हाथ पीले हो गए

ये बेवक्त दिल का मानसून तो देखिये
जो संजोये थे ख्वाब वो गीले हो गए

जहाँ तक तुम थे तो वादियाँ साथ थी
तुम गए क्या ! रास्ते पथरीले हो गए

हीर का शहर बहा वक़्त के सैलाब में
और ख़ाक सब रांझों के कबीले हो गए

'नज़र' मिलने मिलाने में सब्र तो रखिये
गुस्ताख़ हो गए तो कभी शर्मीले हो गए
______________________________________________________________
पुरस्कार और सम्मान-   विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं-

सत्यप्रसन्न
स्वप्निल तिवारी आतिश
एम वर्मा
सुलभ जायसवाल
हिमानी दीवान
अभिषेक कुशवाहा
नमिता राकेश
प्रभा मजूमदार
संगीता सेठी


हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 9 अन्य कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-

सनी कुमार
वसीम अकरम
अविनाश मिश्रा
ऋतु सरोहा ’आँच’
अनवर सुहैल
शील निगम
आशीष पंत
योगेंद्र वर्मा व्योम
प्रवीण कुमार स्नेही

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 1 अगस्त 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

जैसाकि हमने बताया कि हिन्द-युग्म पर बहुत से पाठक पूरी ऊर्जा के साथ सक्रिय हैं। इन्हीं में से एक हैं दीपाली आब, जो खुद एक अच्छी कवयित्री भी हैं और सच कहने में विश्वास रखती हैं। अपनी टिप्पणियों से कवियों का प्रोत्साहन करती हैं और बेहतर लिखने की प्रेरणा देती हैं। हमने इनको जून 2010 की यूनिपाठिका चुना है।

यूनिपाठिका- दीपाली आब

दीपाली सांगवान 'आब' दिल्ली से हैं और कविता वाला दिल रखती हैं। ये चाहती हैं कि युवा पीढी में भी साहित्य के प्रति प्रेम जागृत हो। ये मानती हैं कि आजकल के माहौल में जिस प्रकार की शायरी पनप रही है वो शायरी को धीरे धीरे दीमक की भाँति खा रही है। कविता पढने और लिखने का शौक इन्हें बचपन से ही रहा है। दीपाली इसी बात को ऐसे कहती हैं कि कविता इनका प्रेम है। संवेदनाओं को उजागर करना इन्हें अत्यंत प्रिय है, मनुष्य की अनेक संवेदनाएं ऐसी होती हैं जो अनछुई, अनसुनी रह जाती हैं, उन्ही संवेदनाओं को ये सामने लाने का प्रयास करती हैं। इनका यही प्रयास है कि जितना इन्होंने सीखा है, उसे दूसरो तक भी पहुँचा पायें। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा करने के उपरांत दिल्ली में ही एक डिजाइनर स्टोर संभालती हैं। और साथ ही साथ उच्च-स्तरीय डिग्री को भी हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं।

पुरस्कार- समयांतर की 1 वर्ष की मुफ्त सदस्यता । हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र।

इनके अतिरिक्त डॉ॰ अरुणा कपूर ने खूब पढ़ा और टिप्पणियाँ की। इन्हें भी समयांतर की वार्षिक सदस्यता निःशुल्क प्रदान की जायेगी।

हिन्द-युग्म दिसम्बर 2010 में वर्ष 2010 के वार्षिकोत्सव का आयोजन करेगा जिसमें यूनिकवियों और पाठकों को सम्मानित करेगा। पाठकों से अनुरोध है कि आप कविताओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी ज़रूर करें ताकि यूनिपाठक का पदक भी आपके नाम हो सके।

हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 19 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।

संतोष गौड़ ’राष्ट्रप्रेमी’
दीपाली आब
दीपक बेदिल
कविता रावत
सुधीर गुप्ता ’चक्र’
रिम्पा परवीन
राजेंद्र स्वर्णकार
अपर्णा भटनागर
नीलेश माथुर
सुरेंद्र अग्निहोत्री
तरुण जोशी नारद
ब्रजेंद्र श्रीवास्तव उत्कर्ष
प्रकाश जैन
अमित चौधरी
अमिता निहलानी
नीलाक्षी तनिमा
सुरेखा भट्ट
अविनाश रामदेव
अमिता कौंडल
अनिल चड्डा
उषा वर्मा
तरुण ठाकुर
ओम राज पांडेय ’ओमी’
ऋषभ मिश्रा
सुमन मीत
रामपती कश्यप
चंद्रमणि मिश्रा
प्रदीप शुक्ला
अश्विनी राय
वेदना उपाध्याय
अवनीश सिंह चौहान
अमित अरुण साहू
शिवम शर्मा
दीपक वर्मा
कुमार देव
अंतराम पटेल
कैलाश जोशी
लोकेश उपाध्याय
अनरूद्ध यादव

36वाँ यूनिकवि और 36वाँ यूनिपाठक


देखते ही देखते हिन्द-युग्म की यूनिप्रतियोगिता ने अपना 36वाँ पग भी धर लिया और सबसे बड़ी बात यह रही कि अपने हर कदम के साथ इसने पिछले कदमों से कहीं अधिक मजबूत इरादों के साथ सिंहनाद की। पिछले तीन सालों में हिन्द-युग्म की इस प्रतियोगिता में 500 से अधिक कवियों और कई हज़ार पाठकों ने भाग लिया और कम से कम इतना कहा जा सकता है कि हमारे निर्णायकों ने हमेशा ऐसी सम्भावनाओं को चुना जिनमें से कई बहुत परिपक्व कविताएँ लिख रहे हैं।

36वीं यूनिकवि प्रतियोगिता में कुल 52 प्रतिभागियों ने भाग लिया। संख्या के हिसाब से इसकी तुलना नवम्बर 2009 माह में आयोजित यूनिकवि प्रतियोगिता से की जाये तो तो बहुत कम है, लेकिन यदि जजों की मानें तो कविताओं के स्तर के हिसाब दिसम्बर 2009 की यूनिकवि प्रतियोगिता अधिक सफल है।

पहले चरण में 3 निर्णायकों की पसंद के आधार पर कुल 26 कविताओं को दूसरे चरण में जगह दी गई। दूसरे चरण में भी 3 निर्णायकों से रचनाओं पर विचार माँगे गये, जिसके आधार पर हमने राज कुमार शर्मा "राजेशा" की कविता 'नाराज़गी का वृक्ष' को यूनिकविता चुना। इनकी कविता को सभी जजों ने पसंद किया।

राजेशा इससे पहले भी यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग ले चुके हैं, परंतु पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं।

यूनिकवि- राज कुमार शर्मा 'राजेशा'

जन्‍म 7 मई 1972 को गुरदासपुर, पंजाब में। सम्पूर्ण स्कूली एवं कॉलेज शिक्षा भोपाल में ही सम्पन्न हुई। उच्च शिक्षा में एम.ए. (हिन्दी साहित्य) और बी.एड. (हिन्दी भाषा शिक्षण) की उपाधि भोपाल विश्वविद्यालय से प्राप्त।
इनके जीवन में काव्य का उदय, इनके जीवन में सोच-विचार की क्षमता आने के साथ ही हुआ। नवीं कक्षा में अध्ययन के समय से ही कविताएँ और शे'र दिमाग में आने लगे। स्कूली किताब-कॉपि‍यों के पिछले पन्नों पर मिली कविताओं पर शिक्षकों और सहपाठियों की प्रेरणास्पद टिप्पणियों से उत्साह बढ़ा। इसी के साथ चित्रकला और मूर्तिकला की ओर भी रूझान रहा। बचपन से ही हिन्दी साहित्य में रूचि थी। स्कूली पाठ्यपुस्तकों से इतर भी पुस्तकालयों और पुरानी साहित्य सामग्री खरीद कर पढ़ते रहे, रूचि बढ़ती रही। पढ़ाई-लिखाई, रोजगार-संघर्ष और जीवन की अन्य गतिविधियों को एक तरफ रखते हुए काव्य और कलायात्रा जारी है।

चूंकि महाविद्यालयीन जीवन से ही कम्प्यूटर संचालन कार्य के सम्पर्क में आ गये इसलिए एमए बीएड की उपाधि उपरांत जीवकोपार्जन की शुरूआत भोपाल से प्रकाशित एक मासिक पत्रिका ओजस्विनी में ‘‘ग्राफिक्स डिजाइनर’’ के रूप में की। विभिन्न निजी विज्ञापन एजेंसियों में कार्य करते हुए बने सम्पर्कों से भोपाल शहर के निवासियों में कुशल ग्राफिक्स डिजाइनर के रूप में जाने जाते हैं।

संप्रति‍: भोपाल की एक विज्ञापन एजेंसी में वरिष्ठ ग्राफिक्स डिजाइनर के रूप में कार्यरत।

पुरस्कृत कविता- नाराज़गी का वृक्ष

मैं नाराजगी का पेड़ हो गया हूँ
मेरी जड़ें काले अँधेरों में बहुत गहरी गई हैं
मुझे अनन्त गहराइयों तक आते हैं
नाराज होने के बहाने

माँ बाप से नाराज हूँ
कि उन्होंने अच्छे गर्भनिरोधक क्यों नहीं बरते।

शिक्षकों से नाराज हूँ
उन्होंने वो सब नहीं सीखने दिया
जो मैंने कक्षा में बैठकर
बाहर झाँकते हुए सीखना चाहा।

पड़ोसियों से नाराज हूँ
आधे पड़ोसी,
रिश्तेदारों से अच्छे थे
पर हर मकान बदलने के साथ ही
बदल जाते थे पड़ोसी
और
आधे पड़ोसी
इतने कमीने थे
कि हर नए घर के एक ओर
पुराने से कई गुना कमीना
पड़ोसी मिलता था।

दोस्तों से नाराज हूँ
क्योंकि कोई है ही नहीं
दोस्त-सा।

प्रेमिका से नाराज हूँ
कि
उसने मेरे प्रेम निवेदन के बारे में
सोचा तक नहीं
क्योंकि मैं उस तक
पैरों से चलने वाली
साईकिल से पहुँचा था।

बीवी से नाराज हूँ
कि वो फिल्मी हिरोइनों की तरह
एकउम्र की ही क्यों नहीं रहती
हर साल
मेरी जिस्म के बेडोलपन से
दुगनी बेडोलता से
बदल रहा है उसका जिस्म!
और वो होना ही नहीं चाहते
जिस्म के सिवा
कुछ और।

बच्चों से नाराज हूँ
कि वो तीन से पाँच साल की उम्र में ही
क्यों नहीं गाते
- श्रेया घोषाल की तरह सेक्सी गीत
- क्यों नहीं जमाते सचिन की तरह चौके-छक्के
और कुछ नहीं तो
क्यों नहीं करते ऐसी पेन्टिंग्स
जो करोड़ों में बिकें।

उन नेताओं से नाराज हूँ
जो चुनाव में खड़े ही नहीं होते
और अगर वो खड़े हों भी
तो जिन्हें मैं वोट कदापि नहीं दूँगा।

नि‍र्धनों से नाराज हूँ
कि बहुत कम कीमत है उनके वोट की
जि‍ससे दि‍हाड़ी भर की
दारू भी नहीं खरीदी जा सकती।

नाराज हूँ
जंगली जानवरों से
कि वो यदा-कदा खा जाते हैं किसी मनुष्य को

नाराज हूँ मनुष्य से
कि वो सारी प्रजाति के
जंगली घरेलू
समुद्री और नभचर
सारे प्राणियों को खा गया है
उसकी हवस को न पचा पाने के परिणामों से
सारा वातावरण दूषित है।

गांव और शहर से नाराज हूँ
गांव में दादी, नाना, बुआ, चाचा, मौसी
सभी मर गये हैं
शहर में,
मैं 40 साल रहते हुए भी
अजनबी हूँ
और लगातार होता जा रहा हूँ
और भी अजनबी।

अन्दर और
बाहर होने से नाराज हूँ।

घर की चारदीवारी में
मुझे घुटन महसूस होती है
और बाहर
दो पाँवों वालों के
चार पहिया वाहनों के पिछाड़े से निकला
जहरीला धुँआ है।

नाराज हूँ मौत नाम की चीज से
जो अचानक आती है
इतनी अचानक
कि मैं हर पल उसका इंतज़ार करूँ
तो भी
वो उतनी ही अचानक आयेगी
जितनी किसी चींटी की मौत पर
या अचानक धरती की मौत पर।

मैं सोचता हूं
मेरे नाराज होने से ही हो जायेगा सबकुछ
कोई बताये -
अतीत इति‍हास में कभी
ऐसा कुछ हुआ है क्‍या???


पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। जनवरी माह के अन्य तीन सोमवारों को कविता प्रकाशित करवाने का मौका। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें प्रेषित की जायेंगी, उनके नाम हैं-

अखिलेश कुमार श्रीवास्तव
प्रशांत प्रेम
चंद्रकांत सिंह
अरविंद श्रीवास्तव
उमेश पंत
संगीता सेठी
तरुण ठाकुर
अनुराधा शर्मा
प्रिया


हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 5 कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-

देवेश पांडे
आलोक उपाध्याय ’नजर’
भावना सक्सेना
अनामिका (सुनीता)
धर्मेंद्र सिंह


उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 8 फरवरी 2010 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

विनोद कुमार पाण्डेय 6 महीने से अधिक समय से कविताओं को पढ़ रहे हैं और यथासम्भव अपने सुझाव और प्रोत्साहन दे रहे हैं। दिसम्बर 2009 में इन्होंने कविता पृष्ठ को सबसे अधिक पढ़ा।

यूनिपाठक- विनोद कुमार पाण्डेय

हिन्द-युग्म के अत्यधिक सक्रिय पाठक विनोद कुमार पांडेय एक अच्छे कवि भी हैं। वाराणसी( उत्तर प्रदेश) में जन्मे और वर्तमान में नोएडा (उत्तर प्रदेश) को अपनी कार्यस्थली बना चुके विनोद की एक कविता ने अक्टूबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में सातवाँ स्थान बनाया है। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से संपन्न करने के पश्चात नोएडा के एक प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज से एम.सी.ए. करने के बाद नोएडा में ही पिछले 1.5 साल से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी मे सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहे हैं। खुद को गैर पेशेवर कहने वाले विनोद को ऐसा लगता है कि शायद साहित्य की जननी काशी की धरती पर पले-बढ़े होने के नाते साहित्य और हिन्दी से एक भावनात्मक रिश्ता जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। लिखने और पढ़ने में सक्रियता 2 साल से,पिछले 8 माह से ब्लॉग पर सक्रिय,हास्य कविता और व्यंग में विशेष लेखन रूचि,अब तक 50 से ज़्यादा कविताएँ और ग़ज़लों का लेखन। हाल ही में एक हास्य व्यंग 'चाँद पानी पानी हो गया' एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में भी प्रकाशित हुआ और बहुत पसंद किया गया। फिर भी इसे अभी लेखनी की शुरूआत कहते हैं और उम्मीद करता हैं कि भविष्य में हिन्दी और साहित्य के लिए हमेशा समर्पित रहेंगे। लोगों का मनोरंजन करना और साथ ही साथ अपनी रचनाओं के द्वारा कुछ अच्छे सार्थक बातों का प्रवाह करना भी इनका एक खास उद्देश्य होता है।

पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र।

इस बार हमने दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के विजेता पाठकों के लिए हमने क्रमशः मनोज कुमार, डॉ॰ श्याम गुप्ता और राकेश कौशिक को चुना है। इन तीनों विजेताओं को भी विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें भेंट की जायेगी।

हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 15 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।

अरविंद कुरील
अनिल चड्डा
मृत्युजय साधक
मेयनुर
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अरविंद शर्मा
सखी सिंह
नीरज वशिष्ठ
कुमार कश्यप
विनोद कुमार पांडेय
साबिर घायल
विजय आनंद
अम्बरीष श्रीवास्तव
किशोर कुमार जैन
बोधिसत्व कस्तुरिया
विजय सिंह
कुलदीप पाल
सुमिता केशवा
सुखपाल सिंह
शैली खत्री
अर्चना सोनी
अमोद श्रीवास्तव
दीपक
विमल हेडा
नीलिमा शर्मा
उमेश्वर दत्त नेशीथ
एम वर्मा
प्रियंका सागर
कैलाश जोशी
आदर्श मौर्य
सुजीत कुमार जलज
अनीता निहलानी
कमल किशोर सिंह
रेनु दीपक
अजय दुरेजा
नागेंद्र पाठक
लकी चतुर्वेदी

35वीं यूनिप्रतियोगिता के परिणाम


सर्वप्रथम हम अपने पाठकों से माफी माँगते हैं कि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से हमें नवम्बर माह की यूनि प्रतियोगिता का परिणाम प्रकाशित करने में विलम्ब हुआ।

नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में सबसे अधिक कवियों ने भाग लिया। नवम्बर माह की यूनिकवि की होड़ में कुल 67 कवि शामिल हुए जो हिन्द-युग्म की इस मासिक प्रतियोगिता के लिए सर्वाधिक प्रतिभागिता है।

हम एक खुशख़बरी के साथ भी उपस्थित हैं कि इस परिणाम से हमारे विजेताओं को प्रतिष्ठित पत्रिका 'समयांतर' की ओर से उपहार प्रेषित किये जायेंगे। इससे व्यक्तिगत लेखकों द्वारा भेजे जाने वाले उपहारों को प्राप्त होने में होनेवाले विलम्ब से भी हम बच पायेंगे। श्रेष्ठ कविताओं का प्रकाशन भी समयांतर में किया जायेगा।

नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता का निर्णय 2 चरणों में कराया गया। पहले चरण में 2 जजों द्वारा दूसरे चरण में 3 जजों के निर्णय को शामिल किया गया। पहले चरण के निर्णय के बाद कुल 28 कविताओं को दूसरे चरण के निर्णय के लिए भेजा गया। और सभी पाँच निर्णायकों की पसंद और इनके द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर रवीन्द्र शर्मा 'रवि' की कविता 'हम कब लौटेंगे' को इस माह की सर्वश्रेष्ठ कविता चुना गया।

रवीन्द्र शर्मा 'रवि' ने अक्टूबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता से हिन्द-युग्म पर दस्तक देना शुरू किया है। अक्टूबर माह की प्रतियोगिता में भी इनकी एक ग़ज़ल ने शीर्ष 10 में स्थान बनाया था।

यूनिकवि- रवीन्द्र शर्मा 'रवि'

पंजाब के गुरदासपुर जिले के पस्नावाल गाँव में जन्मे किन्तु राजधानी दिल्ली में पले बढे रवींद्र शर्मा 'रवि 'प्रकृति को अपना पहला प्रेम मानते हैं। शहरी जीवन को बहुत नज़दीक से देखा और भोगा, किन्तु यहाँ के बनावटीपन के प्रति घृणा कभी गयी नहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स से बी॰ कॉम॰ (आनर्स ) करने के उपरांत एक राष्ट्रीय कृत बैंक में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत।

विद्यार्थी जीवन में प्राथमिक विद्यालय में ही भाषण कला में निपुण होने के कारण "नेहरु "नाम से संबोधित किया जाने लगे। सन् १९६९ में महात्मा गाँधी कि जन्मशती के दौरान अंतर विद्यालय भाषण प्रतियोगिता में दिल्ली में प्रथम पुरस्कार एवं कई अन्य पुरस्कार जीते। सन् १९७९ में नागरिक परिषद् दिल्ली द्बारा विज्ञान भवन में आयोजित आशु लेख प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाये। उसी वर्ष महाविद्यालय द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ट साहित्यकार के रूप में सन्मानित काव्य संग्रह "अंधेरों के खिलाफ", "हस्ताक्षर समय के वक्ष पर", क्षितिज कि दहलीज पर और "परिचय-राग" में कवितायें प्रकाशित। समाचार पत्र पंजाब केसरी में लगभग १२ कहानियों का प्रकाशन। इसके अतिरिक्त नवभारत टाईम्स आदि अनेक समाचार पत्रों में रचनाओं को स्थान मिला। राजधानी के लगभग सभी प्रतिष्टित मुशायरों, कवि सम्मेलनों, काव्य गोष्ठियों में लगातार काव्यपाठ। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओ का प्रसारण। दिल्ली की साहित्यिक संस्थाओं "परिचय साहित्य परिषद्", "डेल्ही सोसाइटी ऑफ़ औथोर्स", हल्का ए तशनागाना अ अदब", पोएट्स ऑफ़ डेल्ही", "आनंदम", "कवितायन","उदभव" इत्यादि से सम्बद्ध।
रवींद्र शर्मा "रवि" को इस बात का गर्व है कि उन्होंने पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरे के बारे में तब लिखना शुरू कर दिया था जब कोई इसकी बात भी नहीं करता था। रवींद्र शर्मा "रवि " का मानना है कि उनकी कविता गाँव और शहर कि हवा के घर्षण से उपजी ऊर्जा है।

पुरस्कृत कविता- हम कब लौटेंगे

बताओ बापू
हम कब लौटेंगे
अपने उसी छोटे से गाँव में
जहाँ
एक प्यारी सी सफ़ेद हवेली बनाने का सपना लेकर
तुम इस जगमगाते शहर में चले आये थे
बहुत ढेर से पैसे बटोरने
आज से कई साल पहले ....
कितना कुछ बदल गया है इस बीच ...
शहर की सड़कों की तमाम कालिख
तुम्हारी आँखों के नीचे वाले गड्ढों में सिमट आई है
साफ़ दीखता है
तुम्हारे गले की नीली नसों में
ज़हरीली दूषित हवा का रंग
अकाल पीड़ित धरती की मानिंद तुम्हारा माथा
ज्योतिष के लिए चुनौती हो गया है ..
इतने दिशाहीन हो गए हो तुम
कि अक्सर जब भी मैंने
रात के सन्नाटे में
तुमसे ध्रुवतारे के विषये में पूछा है
तो यूँ ही ऊँगली उठाते हुए
समझ नहीं पाए हो तुम
कि उत्तर कहाँ है ...
और ये भी
कि सफ़ेद दूधिया बगुलों की कतारें
इस शहर के आकाश से होकर
क्यों नहीं गुज़रती सांझ ढले ....
मैने स्वयं देखा था तुम्हें
क्षितिज तक फैले धान के खेतों को
गाकर लांघते हुए
फिर ऐसा क्या है
इन काली सपाट सड़कों में
जो चूस लेता है हर रोज़
तुम्हारी सहजता का एक हिस्सा
और हर शाम
एक सहमा हुआ व्यक्तित्व लाद कर घर ले आते हो तुम
लौट आते हो हर शाम
आधे-अधूरे से
और फिर देर रात तक करते रहते हो
बंधुआ मजदूरों कि सी बातें ...
तब मुझे अक्सर लगा है
कि तुमने सचमुच खो दी है
इन्द्रधनुषी रंगों की पहचान
और तुम्हारा इस अचेतना से लौट आना
असाध्य हो गया है शायद .....
याद करो बापू
क्या तुम्हें बिलकुल याद नहीं
जब तुमने अपना गाँव छोड़ा था ...
गाँव का आवारा पीला चाँद
बहुत दूर तक
गाड़ी के साथ दौड़ा था ...
नदियाँ-नाले फलांगता
अलसी के कुँआरे फूलों को रौंदता
बया के घोंसलों में उलझता
पोखर के पानी पर तिरता ...
और फिर जाने कहाँ गुम हो गया था
शहर की तेज चकाचौंध रोशनियों में ...
याद करो बापू
सफेदे के लम्बे वृक्ष
हाथ हिला हिला कर
रोकते रहे थे तुम्हें
और बूढ़े अनुभवी पीपल ने दूर तक
अपने सूखे पत्ते दौड़ाए थे तुम्हारे पीछे ...
तब तुमने
सफेदे के वृक्षों की तुलना
शहर की गगनचुम्बी इमारतों से की थी
इस बात से अनभिज्ञ
कि इमारत जितनी बड़ी होती है
इंसान उतना ही छोटा
और शहर में
गाँव वाला चाँद कभी नहीं उगता ...
सच कहना बापू
कैसा लगता है तुम्हें
अब उसी भीड़ का हिस्सा होना
जिसकी नियति
बदहवास दौड़ते जाने के सिवा कुछ भी नहीं
बहुत कुछ पाकर भी तुम
कुछ नहीं बटोर पाए हो
अपनी माटी की गंध भी खो आये हो ...
सुनो बापू
मैं तुम्हे आदर्श की तरह नहीं
आत्मज की तरह निभाऊंगा
तुम्हें एक बार
उसी सोंधी माटी वाले गाँव में
ज़रूर ले जाऊंगा ...
बहुत संभव है
उस गाँव के उजड्ड लोगों ने
अब भी सहेज रखे हों
इंसानियत के आदमकद अंधविश्वास ...
आओ लौट चलें बापू
शायद तुम्हारी चेतना के मरुथल में
सावनी हवाओं से हरारत आ जाए
शायद हमारा वह चाँद
किसी झाड़ में फंसा पा जाए
कोई विरही पगडण्डी
हमें स्टेशन तक लेने आ जाए ....
फिर मैं तुम्हें गाते हुए देखूंगा
और जी भर कर देखूंगा
सफ़ेद बगुले
पनघट का पीपल
जवान सफेदे
और दूर तक छिटके
सरसों के कुआरे फूल ...
बताओ बापू
हम कब लौटेंगे ....


पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। दिसम्बर माह के अन्य दो सोमवारों को कविता प्रकाशित करवाने का मौका। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें प्रेषित की जायेंगी, उनके नाम हैं-

अभिषेक कुशवाहा
मनोज कुमार
आवेश तिवारी
जतिन्दर परवाज़
भावना सक्सैना
आलोक उपाध्याय "नज़र"
संगीता सेठी
उमेश पंत
शामिख़ फ़राज़


हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 3 कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-

दीपक मशाल
अभिषेक पाठक
डॉ॰ अनिल चड्डा


उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 दिसम्बर 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

पाठकों में राकेश कौशिक के रूप हिन्द-युग्म को बहुत ऊर्जावान पाठक मिला है। राकेश कौशिक की टिप्पणियों से ऐसा लगता है कि वे हर पोस्ट को बहुत ध्यान से पढ़ते हैं और अपनी समझ के अनुसार उसकी समीक्षा भी करते हैं। विनोद कुमार पाण्डेय ने राकेश कौशिक को कड़ी टक्कर दी। लेकिन वे काफी अनियमित रहे। इसलिए हमने राकेश कौशिक को ही यूनिपाठक बनाने का फैसला किया है।

यूनिपाठक- राकेश कौशिक

पच्चीस साल से राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नई दिल्ली में कार्यरत। वर्तमान में कार्यकारी निदेशक के निजी सहायक के पद पर कार्यरत। 15 साल पहले, अनायास ही सितम्बर के महीने में कार्यालय में मनाये जाने वाले हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत होने वाली हिंदी काव्य पाठ प्रतियोगिता से कविता लेखन की शुरूआत। लेखनी और वाणी पर माँ सरस्वती की कृपा की ऐसी बरसात हुई कि इनकी पहली कविता को ही प्रथम पुरुस्कार का सम्मान मिला। शौक को हवा लगी और हर वर्ष प्रतियोगिता के लिए कविता लिखने लगे, कवितायें लोगों को पसंद आने लगीं, कार्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुईं और कभी-कभी कविता पाठ कार्यालय की सीमाओं से बाहर भी निकलने लगे। लेखनी और वाणी पर वीणा वादिनी की अनुकम्पा होती रही ....... जारी है।

विशेष: इन्हें यदि कोई सम्मान मिलता है तो उसमें इनकी पत्नी, बेटा और बेटी का बहुत बड़ा सहयोग है।

पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र।

इस बार हमने दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के विजेता पाठकों के लिए हमने क्रमशः विनोद कुमार पांडेय, सफरचंद और डॉ॰ श्याम गुप्ता को चुना है। इन तीनों विजेताओं को भी विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें भेंट की जायेगी।

हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 13 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।

प्रियंका सागर
रवि ठाकुर "गाफिल"
मृत्युंजय साधक
शंकर सिंह
डॉ.कृष्ण कन्हैया
आलोक गौड़
अम्बरीष श्रीवास्तव
राकेश कौशिक
रतन कुमार शर्मा
मंजु गुप्ता
मुहम्मद अहसन
सौरभ कुमार
कुमार देव
रोहित अरोरा
अमित श्रीवास्तव
जितेन्द्र कुमार दीक्षित
राजेशा
दिवाकर कुमार रंजन (कविराज)
कमलप्रीत सिंह
स्नेह पीयूष
डॉ॰ कमल किशोर सिंह
राजीव यादव
दिव्य प्रकाश दुबे
रंजना डीने
लीना गोला
माधव माधवी
एम वर्मा
विनोद कुमार पांडेय
धर्मेन्द्र मन्नु
राम निवास 'इंडिया'
उमेश पंत
मनोज मौर्य
डॉ॰ भूपेन्द्र
कुलदीप पाल
पृथ्वीपाल रावत
अजय दुरेजा
सुनील गज्जाणी
स्वर्ण ज्योति
शारदा अरोरा
विवेक रंजन श्रीवास्तव
किशोर कुमार खोरेन्द्र
दीपक ...... इटानगर
उमेश्वर दत्त"निशीथ"
रेणू दीपक
पिंकी वाजपेयी
शन्नो अग्रवाल
भरत बिष्ट (लक्की)
अरविन्द कुरील
सुशील कुमार पटियाल
डा श्याम गुप्त
कविता रावत
एम के बिजेवार (आतिश)
चंद्रकांत सिंह
नीति सागर
अनिल यादव

सुधि कवि को सुधी पाठक


सर्वप्रथम इस बात के लिए हम अपने पाठकों से माफी चाहते हैं कि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से अगस्त माह की यूनि प्रतियोगिता का परिणाम निर्धारित तिथि (सोमवार, 7 सितम्बर 2009) से 8 दिन विलम्ब से प्रकाशित कर रहे हैं।

अगस्त माह की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता इस प्रतियोगिता की 32वीं कड़ी है। जैसाकि हमने इस महीने उद्‍घोषणा की है कि अप्रैल 2009 से दिसम्बर 2009 के यूनिकवियों को हिन्द-युग्म के आगामी वार्षिक समारोह में सम्मानित किया जायेगा। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे इस कदम से इस सम्मान का मान बढ़ेगा और प्रतिभागियों को और बेहतर कविता लिखने की प्रेरणा मिलेगी।

अगस्त माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में कुल 45 कवियों ने भाग लिया। निर्णय दो चरणों में कराया गया। पहले चरण में 4 जज तय किये गये, इन निर्णायकों द्वारा दिये गये अंकों के औसत के आधार पर 22 कविताओं को दूसरे यानी अंतिम चरण के निर्णय के लिए भेजा गया। अंतिम चरण में 2 जज थे, जिनके द्वारा दिये गये अंकों और पुराने औसत अंकों के औसत के आधार पर सुधीर सक्सेना 'सुधि' को यूनिकवि चुना गया।

सुधीर सक्सेना 'सुधि' 1 वर्ष से भी अधिक समय से हिन्द-युग्म की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। पिछले वर्ष इसी महीने में इनकी एक कविता शीर्ष 10 में प्रकाशित हुई थी।

यूनिकवि- सुधीर सक्सेना 'सुधि'

सुधीर सक्सेना 'सुधि' की साहित्य लेखन में रुचि बचपन से ही रही. बारह वर्ष की आयु से ही इनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं. हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनेक रचनाएँ प्रकाशित. आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी प्रसारण। बाल साहित्य में भी खूब लिखा. पत्रकारिता व लेखन के क्षेत्र में राजस्थान साहित्य अकादमी, राजस्थान पाठक मंच, भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर, बाल गंगा { बाल साहित्यकारों की राष्ट्रीय संस्था, जयपुर }, चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट के अलावा अन्य अनेक पुरस्कारों से सम्मानित 'सुधि' की अब तक नौ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

पुरस्कृत कविता- उम्र के भावुक पड़ाव पर बच्चे

उम्र के भावुक पड़ाव पर
ठहरे हैं जो बच्चे
उन्हें देखने दो-
हरियाली/ सावन...
रंगने दो
मनभावन कल्पनाओं का आँगन.
भावुकता अपने मापदंडों पर
निर्धारित करना चाहती है
अपना रास्ता.
इंद्रधनुष के खिले रंग...
नरम धूप... या महक में डूबी शाम...
लिखने दो, लिखते हैं वे
हथेली की स्लेट पर
जिस भी मौसम का नाम!

उम्र के भावुक पड़ाव पर
ठहरे बच्चे-
अपने तरीके से सोचते हैं,
अपने तरीके से लिखते हैं और
अपने तरीके से रचना चाहते हैं,
अपनी स्मृतियों का संसार.
बच्चे जब-
भावुक उम्र का पड़ाव छोड़कर
आगे बढ़ेंगे तो कौन जाने
इनकी स्मृति की मुस्कान
संगीत बन जाए
ज़िंदगी के होठों पर।
अनकहा, अनजाना ही न बीत जाए
खिलखिलाकर हँसने, गाने का मौसम!
इसलिए-
अपनी राहों पर
उजियारा फैलाने का
जो ख़त लिख रहे हैं बच्चे
उन्हें लिखने दो।
हो सकता है-
वक़्त का डाकिया
उनके दूधिया दाँत झर जाने तक
ख़त का जवाब ले ही आए!
और फिर बच्चा
सारी उम्र मुस्कुराए!


प्रथम चरण मिला स्थान- दूसरा


द्वितीय चरण मिला स्थान- प्रथम


पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। सितम्बर माह के अन्य दो सोमवारों की कविता प्रकाशित करवाने का मौका।

इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें हम मुहम्मद अहसन की पुस्तक 'नीम का पेड़' की एक-एक प्रति भेंट करेंगे, उनके नाम हैं-

डा0 अनिल चड्डा
ओम आर्य
आलोक उपाध्याय "नज़र"
नीलेश माथुर
मेयनूर
संगीता सेठी
मृत्युंजय साधक
कुमार आशीष
मुकुल उपाध्याय


हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार अंत की 4 कविताओं के प्राप्तांक में दशमलव के दूसरे और तीसरे स्थान में भिन्नता रही, इसलिए हम अन्य जिन 4 कवियों की कविताएँ एक-एक करके प्रकाशित करेंगे, उनके नाम हैं-

धर्मेन्द्र चतुर्वेदी 'धीर'
मुहम्मद अहसन
प्रिया


उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 30 सितम्बर 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

हिन्द-युग्म पर पिछले 2 महीनों से जिस तरह से अनामी टिप्पणियाँ मिल रही हैं, वह हमें यह विचार करने पर विवश करती है कि एक पाठक की अभिव्यक्ति की सीमा-रेखा क्या हो। बहुत से अनामी टिप्पणीकारों ने हमारे स्थाई पाठकों को बुरा-भला कहा। हिन्द-युग्म पाठकों को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार देता है, लेकिन बात हिन्द-युग्म पर प्रकाशित सामग्रियों को लेकर होनी चाहिए। आगे से व्यक्तिगत आक्षेप-प्रत्याक्षेप को हटाने का निर्णय हिन्द-युग्म ने लिया है।

एक मिसाल की बात यह भी रही कि इस तरह के आक्षेपों के बाद भी, बिना विचलित हुए मंजू गुप्ता हिन्द-युग्म को लगातार पढ़ती रहीं और हमें प्रोत्साहित करती रहीं। मंजू गुप्ता को हमने यूनिपाठिका चुनने का निर्णय लिया है।

यूनिपाठिका- मंजू गुप्ता

21 दिसम्बर 1953 को ऋषिकेश (उत्तराखंड) में जन्मी मंजु गुप्ता एम ए (राजनीति शास्त्र) और बी॰एड॰ जैसी पढ़ाइयाँ की है। जयहिंद जुनियर हाई स्कूल एवं पंजाब-सिंध क्षेत्र हाई स्कूल, ऋषिकेश में अध्यापन कर चुकीं मंजु वर्तमान में जयपुरियर, हाई स्कूल, सानपाडा, नवी मुंबई में हिंदी शिक्षिका हैं। योग, खेल, जन-सम्पर्क, पेंटिग में रुचि रखने वाली मंजु की 2000 से अधिक रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। प्रान्त पर्व पयोधि (काव्य), दीपक (नैतिक कहानियाँ) सॄष्टि (खंड काव्य), संगम (काव्य), अलबम (नैतिक कहानियाँ), भारत महान (बाल गीत), सार (निबंध), परिवर्तन (नैतिक कहानियाँ) इनकी पुस्तकें हैं और जज्बा (देशभक्ति के गीत) प्रेस में है। समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांत पर्व पयोधि में समेटने वाली प्रथम महिला कवयित्री का श्रेय मंजु को प्राप्त है। मुम्बई दूरदर्शन द्वारा आयोजित साम्प्रदायिक सद्‍भाव-सौहार्द्र पर कवि सम्मेलन में सहभाग, गांधी की जीवन शैली, निबंध-स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित, शाम-ए-मुशायरा में सहभागिता, ट्विन सिटी व्यंजन स्पर्धा में प्रथम, मॉडर्न कॉलेज, वाशी द्वारा सावित्रीबाई फूले पुरस्कार से सम्मानित, भारतीय संस्कॄति प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित प्रीत रंग प्रतियोगिता में पुरस्कॄत, राष्ट्रीय स्तर पर 1967 में उत्तर प्रदेश की खेल स्पर्धा में पुरस्कॄत, आकाशवाणी मुंबई से कविताएं प्रसारित, राष्ट्रभाषा महासंघ द्वारा पुरस्कृत।
सम्मान: वार्ष्णेय सभा, मुंबई द्वारा वार्ष्णेय चेरिटेबल नवी मुंबई द्वारा एकता वेलफेयर कल्चर असोसिएन मैत्रेय फाउंडेशन, विरार

पुरस्कार और सम्मान- मुहम्मद अहसन के कविता-संग्रह 'नीम का पेड़' की एक प्रति तथा प्रशस्ति-पत्र।

इस बार हमने दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के विजेता पाठकों के लिए हमने क्रमशः विनोद कुमार पांडेय, निर्मला कपिला और विमल कुमार हेड़ा को चुना है। इन तीनों विजेताओं को भी मुहम्मद अहसन के कविता-संग्रह 'नीम का पेड़' की एक-एक प्रति भेंट की जायेगी।

इनके अलावा हम दीपाली सांगवान, नीति सागर वाणी गीत इत्यादि का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवगत कराया।

हम शामिख फ़राज़, मुहम्मद अहसन और दीपाली पंत तिवारी' दिशा' इत्यादि जैसे अतिसक्रिय पाठकों से निवेदन करेंगे कि कृपया इसी तरह से पढ़ते रहें और हिन्द-युग्म वार्षिक पाठक सम्मान-2009 के लिए अपनी दावेदारी सुनिश्चित करते जायें।

हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें।

राम निवास 'इंडिया'
विनोद कुमार पाण्डेय
प्रदीप मानोरिया
दीपाली 'आब'
पूजा अनिल
सुजीत कुमार 'जलज'
केशवेन्द्र कुमार
कमलप्रीत सिंह
सौरभ कुमार
रतन शर्मा
शामिख फ़राज़
अमिता कौंडल
मैत्रयी बनर्जी
संजीवन मयंक
मंजू गुप्ता
दीपाली पन्त तिवारी"दिशा"
जोशी
अम्बरीष श्रीवास्तव
विमल कुमार हेड़ा
ब्रजेश पाण्डेय
त्रिभुवन मिश्रा
सुमीता प्रवीण
आलोक
शारदा अरोरा
डा. कमल किशोर सिंह
केतन कनौजिया 'शाइर'
अनिल यादव
नीरज पाल
अनुज शुक्ला
कविता रावत
क्षितिज़ गुप्ता
एम वर्मा