हमें बहुत खेद है कि हम अप्रैल 2010 की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम अभी तक नहीं प्रकाशित कर पाये। असल में निर्णायकों ने जिस कविता को यूनिकवि चुना, उस कवि ने अपनी कविता को मुंगेर (बिहार) से स्कैन करके भेजा था और कविता के साथ अपना कोई फोन/मो॰ नं॰ भी नहीं छोड़ा था। हमने शनिवार 1 मई को यूनिकवि को ईमेल किया कि कृपया आप अपना परिचय और फोटो ईमेल करें ताकि हम सोमवार 3 मई 2010 को परिणाम प्रकाशित कर सकें। लेकिन अभी तक कवि का कोई उत्तर नहीं आया। गौरतलब है कि यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए प्राप्त प्रविष्टियों को पहले यूनिकोड में टाइप किया जाता है (यदि कविताएँ यूनिकोड में टंकित नहीं हैं तो), उसके बाद कविता से कवियों का नाम व तखल्लुस इत्यादि हटाकर दो या तीन चरणों में 5 से 6 निर्णायकों को भेजा जाता है। निर्णयोंपरांत विजेताओं को ईमेल से सूचित किया जाता है और उनसे परिचय, चित्र और डाक का पता इत्यादि माँगे जाते हैं। इस बार की यूनिकविता के रचनाकार ने बहुत सुदूर क्षेत्र से अपनी कविता भेजी है, इसलिए हमें यह यूनिकवि प्रतियोगिता की एक ऊँची छलांग भी लगी। इससे यह सीख भी मिली कि प्रतियोगिता के अन्य अंकों से प्रतिभागियों द्वारा शुरू में ही परिचय और चित्र मँगवा लिये जाय।
कुछ निर्णायकों ने कहा कि यदि उत्तर नहीं मिल रहा तो दूसरे स्थान के रचनाकार को यूनिकवि घोषित कर सकते हैं। लेकिन फिर सर्वसम्मति से यह तय हुआ कि कवि के डाक के पते पर इस परिणाम के संदर्भ में एक चिट्ठी भेजी जाय और बिना कवि के परिचय और चित्र के कविता प्रकाशित की जाय। हिन्द-युग्म रचना का कद रचनाकार से ऊँचा मानता है और रचना को ही रचनाकार की पहचान।
इसलिए अप्रैल 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता के परिणाम, पहली कविता हम केवल कवि के नाम के साथ प्रकाशित कर रहे हैं। अप्रैल माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में कुल 54 कवियों ने भाग लिया। पहले चरण में 3 जज और दूसरे चरण में 2 जज शामिल किये गये।
यूनिकवि- संजीव कुमार सिंह
पता- कंठ कॉलोनी, अरगड़ा रोड
लल्लू पोखर, मुंगेर (बिहार)- 811201
पुरस्कृत कविता- जलाई गई औरत
वह कौन है
अपरिचिता
सर से पाँव तक
जली हुई औरत
वस्त्र के नाम पर एक पतला कमरबंद
बगल में सोया बच्चा
भंगिमा ऐसी
जैसे गाँधी मृत कस्तूरबा का हाथ थामे
स्थिर चपुचाप बैठे हों
टपकते आँसू
जुंबिश केवल होंठों में
वह औरत कैसे जल गई
या जलाई गई
यह प्रश्न कोतवाली से चक्कर
काटता हुआ
कचहरी की अंधी गलियों में
गुम हो चुका है
मेरे सामने वह
पत्थर में उकेरी गई उत्तर-सी बैठी है
वह स्थिर है
जैसे एक मादा भ्रूण
भारतमाता के गर्भ से टपका हो
आपादमस्तक
रोमविहीन, लाल-गुलाबी चमड़ी
वह ठोस है
नज़रों को धिक्कारती हुई
मरघट में राख बन जाने पर
दो दिन बाद वह
अखबार के अक्स में उतर जायेगी
चाय की चुस्की के साथ
आदतन आह में सिमट जायेगी,
पितृसत्तात्मक दुनिया का इतिहास
लालच और हिंसा
वर्जित फल की तरफ लपकते
कदमों के नीचे कुचले जा रहे बीज
गीली कुंठा का आवेग
गर्भ की मर्दाना मॉनोपली
कितने प्रश्नों का उत्तर
यहाँ है
इस अल्पविराम की आकृत्ति में
बैठी हुई एक जली हुई औरत
यहाँ पर
कोई पूर्णविराम नहीं।
पुरस्कार और सम्मान- समयांतर, की ओर से पुस्तकें तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें प्रेषित की जायेंगी, उनके नाम हैं-
एम वर्मा
नीरा त्यागी
दीपक 'मशाल'
रंजना डीन
संगीता सेठी
ऋतु सरोहा
अवनीश सिंह चौहान
राजेन्द्र स्वर्णकार
स्वप्निल तिवारी 'आतिश'
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 2 कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
सुमीता केशवा
ऋषभ मिश्रा
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 7 जून 2010 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
हिन्द-युग्म दिसम्बर 2010 में वार्षिकोत्सव का आयोजन करेगा, जिसमें वर्ष भर के 12 यूनिकवियों के साथ-साथ 4 पाठकों को भी सम्मानित किया जायेगा। वार्षिक पाठक सम्मान के लिए फिलहाल एम वर्मा पहले दावेदार के रूप में दिखाई दे रहे हैं। अन्य पाठकों से अनुरोध है कि वे हिन्द-युग्म पर प्रकाशित सभी रचनाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी करें और यूनिपाठक सम्मान के हकदार बनें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 12 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।
बोधिसत्व कस्तूरिया
अंतराम पटेल
अनामिका घटक
धमेन्द्र मन्नु
विजय आनंद
पारुल माहेश्वरी
कमलप्रीत सिंह
अंजनी गिरि
मंजू गुप्ता
प्रवेश सोनी
अलका मेहता
डॉ॰ अजमल खान
अरुणा कपूर
तरुण ठाकुर
नीरज पाल
जयेश चांदवानी
रतन कुमार शर्मा
जोमयीर जीनी
मृत्युंजय साधक
नज़र द्विवेदी
सुधीर गुप्ता 'चक्र'
हेमा चंदानी
अजय दुरेजा
दिगम्बर नासवा
गोपाल दत्त देवतल्ला
देवेश पाण्डेय
शिखा गुप्ता
अंजु गर्ग
देव कुमार
रेणू दीपक
राज कुमार शर्मा 'राजेशा'
अमृत सागर
सुमन 'मीत'
दीपक कुमार
पीयूष दीप राजन
स्नेह “पीयूष”
शामिख फ़राज़
सुलभ जायसवाल
आलोक उपाध्याय 'नज़र'
आशीष पंत
राजेश्वर 'अकेला'
शील निगम
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
चलिए देर आये दुरुस्त आये,
प्रतियोगिता के सभी प्रतिभागियों को बधाई, साथ ही बधाई विजेता को.. :)
कविता सच में बहुत मर्मस्पर्शी कटाक्ष है,
वह ठोस है
नज़रों को धिक्कारती हुई
मरघट में राख बन जाने पर
दो दिन बाद वह
अखबार के अक्स में उतर जायेगी
चाय की चुस्की के साथ
आदतन आह में सिमट जायेगी,
येः भाग ख़ास तौर पर रोंगटे खड़े कर देता है..
यही तो होता आया है, अक्सर लोग इस तरह के किस्सों को चाय की चुस्की के साथ भूल जाते हैं
पर कोई कदम नहीं उठाया जाता, ज्यादा से ज्यादा थोडा सा विचार विमर्श होता है, कुछ लोगो के बीच और फिर बात आई गई हो जाती है ..
पितृसत्तात्मक दुनिया का इतिहास
लालच और हिंसा
वर्जित फल की तरफ लपकते
कदमों के नीचे कुचले जा रहे बीज
गीली कुंठा का आवेग
गर्भ की मर्दाना मॉनोपली
कितने प्रश्नों का उत्तर
यहाँ है
इस अल्पविराम की आकृत्ति में
बैठी हुई एक जली हुई औरत
यहाँ पर
कोई पूर्णविराम नहीं।
बहुत खूब.. दाद हाज़िर है ..!!
..
दीप
--
Regards
ऐसे ही लुकी-छिपी रहती हैं असल प्रतिभाएं, मेधायें.. बहुत सुन्दर कविता.. बधाई हो मित्र.
इस अल्पविराम की आकृत्ति में
बैठी हुई एक जली हुई औरत
यहाँ पर
कोई पूर्णविराम नहीं।
बहुत मार्मिक रचना है और वाकई हकदार है उस स्थान के लिये जो इसे मिला है.
बधाई
kavi ji kaa pata kijiye saahib...
bahut sundar likhe hain ye to...
यूनिकवि. संजीव कुमार सिंह जी
को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा
मर्म बेंधती कविता.....
आपके ब्लाग के माध्यम से उत्तम कविताएं और प्रतिभाशाली कविओं को पढ़ने का अवसर मिला है।
आपका काम स्तुत्य है। बधाई कृपया स्वीकारें।
Yatharth se paripurn Marmik rachna....
Uni Kavi Sanjeev Singh ji ko haardik badhai....
यूनिकवि संजीव कुमार सिंह जी को बधाई!
बहुत मार्मिक व सशक्त अभिव्यक्ति है.
एम वर्मा जी तो हमारे बीच सुगम हैं उनकी रचनाओं का रसास्वादन करता रहता हूँ. हिंद युग्म की प्रस्तुति सुन्दर और रोचक है. अन्य सभी प्रतिभागियों को भी बधाई. आगामी अंक में अन्य प्रतिभाओं की रचनाओ का इन्तजार है.
धन्यवाद!
' jalaai gai aurat' samaaj ki asaliyat ki kahaani hai, ek uttam rachna hai...fir bhi meri niji rai hai ki kavita ka shirshak aur bhi upayukt rakha jaa sakata tha!
.... sabhi pratiyogiyon ko hardik badhaai!
behad umda rachana hai..ek dum alag fir b ek aam aurat ki daastan..yunikavi aur baki pratiyogiyon ko dher sari badhai...
यूनीकवी को हार्दिक बधाई
गर्भ की मर्दाना मॉनोपली
कितने प्रश्नों का उत्तर
यहाँ है. क्या बात है. स्वयं के गर्भ में भी हक नहीं. मर्दाना मॉनोपली बहुत सही शब्द चुना है झक्झोर देने के लिए...बहुत ही गंभीर रचना के लिए संजीव जी को हार्दिक बधाई! एम वर्मा जी को भी वार्षिक पाठ्क की बधाई! हिन्दयुग्म परिवार को कुशल संचालन के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामना!
अद्भुत कविता है . . बधाई हो ...
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