हम हर महीने के पहले सोमवार को हिन्द-युग्म यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणामों की उद्घोषणा करते हैं। मार्च २००९ की यूनिकवि प्रतियोगिता में कुल ४४ कवियों ने भाग लिया। हम इस प्रतियोगिता में आईं कविताओं से यूनिकविता चुनने के काम एक से अधिक चरणों में ५ से अधिक निर्णायकों की मदद से करते हैं। मार्च महीने की यूनिकविता चुनने में हमें पहले चरण में ३ जजों तथा दूसरे चरण में भी ३ जजों से सहयोग मिला। पहले चरण की निर्णय प्रक्रिया पूरी करने के बाद कुल २१ कविताओं को अंतिम चरण के ३ जजों को भेजा गया। कुल ६ जजों द्वारा दिये गये औसत अंकों के आधार पर डॉ॰ सुरेश तिवारी की कविता 'बस्तर के जंगलों में' को यूनिकविता चुना गया। अब तक २७ यूनिकवि चुने जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ राज्य से हमें पहला यूनिकवि डॉ॰ सुरेश तिवारी के रूप में मिला है।
यूनिकविः डॉ॰ सुरेश तिवारी
16 मार्च, सन् 1958 को बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में जन्मे डॉ. सुरेश तिवारी एम.ए. (हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, समाजशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, लोक प्रशासन, ग्रामीण विकास (एमएआरडी), पीएचडी (समाजशास्त्र) एल.एल.बी.
आयुर्वेद रत्न, डी.एड., बी.एड. जैसी शिक्षा प्राप्त की है। इनकी ढेरों कृतियाँ पहले ही प्रकाशित हैं। जीवनयात्रा (कविता संग्रह)- स्मृति प्रकाशन, जगदलपुर, आओ सैर करें (बस्तर के पर्यटन स्थल) - स्मृति प्रकाशन, जगदलपुर, नदी बोलती है (कविता संग्रह)- विश्वभारती प्रकाशन, नागपुर, मॉँ दंतेश्वरी (ऐतिहासिक)- विश्वभारती प्रकाशन, नागपुर, टूटते बिखरते लोग (कहानी संग्रह)- विश्वभारती प्रकाशन, नागपुर।'
पुरस्कृत कविता- बस्तर के जंगलों में
मेरे बस्तर के जंगलों में
अभी भी पाये जाते हैं पेड़,
पेड़ों में है लकड़ियाँ,
लकड़ियों में बसी कई जिंदगी,
जिंदगी में जीवन की झलक.
चींटी से लेकर आदमी तक.
पेड़...
करते हैं प्रतीक्षा
कोसी, देवे, हिड़मे और जोगी का
जिन्हें देखते ही
खिल उठती है बाँछें
देती इन्हें उपहार.
पत्ते, दातून, सूखी लकड़ियाँ,
चार, चिरौंजी, लाख, धूप
इनके साथ उन्मुक्त मुस्कान,
प्राणवायु, उर्जा
और देती है इन्हें
दो जून की रोटी.
तन ढँकने को लंगोटी.
पेड़...
कोसा, देवा, मासो का
पदचाप पहचानते हैं.
हिड़मा के कुल्हाड़ी सजे कंधों को
पेड़ अच्छी तरह जानते हैं.
आज भी...
जोगा तलाशता है,
इन पेड़ों में - गाड़ी की डाँड़ी
नागर का जूड़ा
टंगिया का बेंठ
पर न जाने क्यों .
तपने लगी है
सावन में भी जेठ.
अब
लगने लगा है डर
बदलने लगे इनके भी तेवर
खो गया भोलापन
मोटीयाती हुई खाल में
उलझ गये ये लोग
शहरी वीरप्पन के जाल में
इसीलिये...
जंगलों में
रह गये हैं ठूंठ
जमीन की सतह से उठे हुये
दिखते हैं सब शाख से कटे हुये
झूठी पड़ गयी है-
सुरेश की वो पंक्तियाँ
जिनमें लिखा था
कि...
जिनकी जड़ें
जितनी गहरी होती है
वो पेड़
उतनी ही घनी छाँव देती है
पनाह पाती जिंदगी
एक-एक कर चले गये
पास के पेड़ों पर
और करने लगे हैं प्रतीक्षा
उस पेड़ की भी
ठूंठ में तब्दील हो जाने की
फिर भी ...
इन ठूंठों को है विश्वास
कि हांदा आयेगा
इन ठूंठों को सहलायेगा
और
इन सूखे ठूंठों से
फिर
एक नया कोपल
झाँकता नजर आयेगा.
प्रथम चरण मिला स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण मिला स्थान- प्रथम
पुरस्कार और सम्मान- प्रशस्ति-पत्र, हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक प्रति।
इसके अतिरिक्त हम जिन अन्य १० कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे और जिन्हें हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक-एक प्रति भेंट करेंगे, उसके नाम हैं (दूसरे से ११वें स्थान तक की कविताओं के रचनाकारों के)-
मुकेश कुमार तिवारी
शीरिष खरे
मनोज भावुक
मुहम्मद अहसन
अरुण मित्तल अद्भुत
रश्मि प्रभा
मनु बंसल (मनु बेतखल्लुस)
दिनेश दर्द
आलोक सारस्वत
पूजा अनिल
मार्च महीने की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के दोनों खिताबों पर इस बार मध्य प्रदेश के प्रतिभागियों का ही कब्जा है। छत्तीसगढ़ राज्य भी मध्य प्रदेश की जमी का ही पुराना हिस्सा है। हालाँकि यूनिपाठक मूल मध्य प्रदेश से है और शहरी जमीं का वाशिंदा है। यह पाठक हिन्द-युग्म के सभी मंचों को बहुत शिद्दत से पढ़ता है और टिप्पणियों को हिन्द-युग्म के कवि भूपेन्द्र राघव की तरह छंद में देता है। और आजकल छंद-व्यवहार का हुनर भी सिखला रहा है। आप सभी समझ गये होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। जी हाँ, इस बार के यूनिपाठक हिन्द-युग्म पर दोक्षा की कक्षा चलाने वाले आचार्य संजीव सलिल हैं।
यूनिपाठक- संजीव सलिल
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' एक व्यक्ति मात्र नहीं अपितु संस्था भी है. अपनी बहुआयामी गतिविधियों के लिए दूर-दूर तक जाने और सराहे जा रहे सलिल जी ने हिन्दी साहित्य में गद्य तथा पद्य दोनों में विपुल सृजन कर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई है. गद्य में कहानी, लघु कथा, निबंध, रिपोर्ताज, समीक्षा, शोध लेख, तकनीकी लेख, तथा पद्य में गीत, दोहा, कुंडली, सोरठा, गीतिका, ग़ज़ल, हाइकु, सवैया, तसलीस, क्षणिका, भक्ति गीत, जनक छंद, त्रिपदी, मुक्तक तथा छंद मुक्त कवितायेँ सरस-सरल-प्रांजल हिन्दी में लिखने के लिए बहु प्रशंसित सलिल जी शब्द
साधना के लिए भाषा के व्याकरण व पिंगल दोनों का ज्ञान व् अनुपालन अनिवार्य मानते हैं. उर्दू एवं मराठी को हिन्दी की एक शैली मानने वाले सलिल जी सभी भारतीय भाषाओं को देवनागरी लिपि में लिखे जाने के महात्मा गाँधी के सुझाव को भाषा समस्या का एक मात्र निदान तथा राष्ट्रीयता के लिए अनिवार्य मानते हैं.
सलिल साहित्य सृजन के साथ-साथ साहित्यिक एवं तकनीकी पत्रिकाओं और पुस्तकों के स्तरीय संपादन के लिए समादृत हुए हैं. वे पर्यावरण सुधार, पौधारोपण, कचरा निस्तारण, अंध श्रद्धा उन्मूलन, दहेज़
निषेध, उपभोक्ता व नागरिक अधिकार संरक्षण, हिन्दी प्रचार, भूकंप राहत, अभियंता जागरण आदि कई क्षेत्रों में एक साथ पूरी तन्मयता सहित लंबे समय से सक्रिय हैं. ९ कृतियाँ प्रकाशित, २५ अप्रकाशित पाण्डुलिपियाँ, ८ पत्रिकाओं, १४ स्मारिकाओं और ९ पुस्तकों का सम्पादन। ११ संस्कृत स्तोत्र और २ अंग्रेज़ी काव्यकृतियों का हिन्दी काव्यनुवाद। ६० से अधिक सम्मान।
पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु २०० तक की पुस्तकें।
हम दो और पाठकों शन्नो अग्रवाल और संगीता पुरी की पठनीयता को नमन करते हुए हम हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक-एक प्रति भेंट कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त जिन अन्य ३३ कवियों ने प्रतियोगिता में भाग लेकर इस आयोजन को सफल बनाया, उनके नाम हैं-
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
पिंकी वाजपेयी
सुरेन्द्र कुमार अभिन्न
अमन 'बस अमन '
आचार्य संजीव 'सलिल'
आकांक्षा पारे
अंकित
शिखा वार्ष्नेय
शन्नो अग्रवाल
निक्की सिंह
विपिन
श्यामल सुमन
प्रदीप वर्मा
मिथिलेश सिंह
हिमांशु कुमार पाण्डेय
गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
सुनील कुमार 'सोनू'
ममता पंडित
दिगम्बर नासवा
कमलप्रीत सिंह
देवेन्द्र कुमार मिश्रा
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
मुकेश सोनी
प्रकाश गौड़ा
गौतम केवलिया
अभिनव झा
आलोक गौड़
विवेक रंजन श्रीवास्तव
पारूल माहेश्वरी
मंजु गुप्ता
ब्रह्मनाथ
शिवानी
सुधीर परवाना "बेजान"
आप सभी ने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया, हम आभारी है। निवेदन है कि अप्रैल २००९ की यूनिकवि तथा यूनिपाठक प्रतियोगिता में भी ज़रूर भाग लें। इससे संबंधित उद्घोषणा के लिए यहाँ देखें।
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
एक बेहतर यूनिकवि का चयन और उत्कृष्ट कविता के पुरस्कृत होने के लिये हिन्द युग्म प्रशंसा का पात्र है । धन्यवाद ।
नए यूनि कवि का अभिनन्दन
आभारी हूँ याद दिलाया
पीछे छूटा बस्तर फिरसे
वह बस्तर है जहाँ जिन्दगी
खुशियों से भरपूर हमेशा
हैं अभाव भी बेहद घातक
लेकिन विजयी है जिजीविषा
भवन नहीं,
व्यापार नहीं,
शिक्षा का आधार नहीं.
झूठ नहीं,
मक्कार नहीं,
लालच भी स्वीकार नहीं.
एक समय भूखे रहकर भी
लड़ता है वह
अन्यायी से.
नहीं मानता हार
गिरे...उठ...
फिर चल पड़ता..
एक लंगोटी ही काफी है..
टंगिया...
धनुही...
मुर्गा...
महुआ...
चीता-चीटी...
पर्वत ...
नदिया....
अपनी दुनिया...
नहीं शेर से डरता
पर वह
डरता है हम भले जनों से.
सोचें क्या है हममें ऐसा?
क्यों डरता है बस्तरवासी
वह वनवासी.
yunikavi aur yuni paathak dono ko haardik badhaaii
यूनिकवि डॉ. सुरेश तिवारी और यूनिपाठक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' को हार्दिक बधाई.
पूजा अनिल
यूनिकवि सुरेश जी और यूनिपाठक आचार्य जी को हार्दिक बधाई
सादर
रचना
इतनी बेहतरीन रचना के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
मैं बस्तर तो कभी गया नहीं, लेकिन सुरेश जी के शब्दों को पढकर पूरा का पूरा बस्तर मेरे सामने आ गया। बस्तर और बस्तर के लोगों का दर्द आँखों के सामने घूमने लगा है। इस दर्द से न्याय करने में यूनिकवि सफल हुए हैं। इसलिए मेरी तरफ़ से उन्हें ढेरों बधाईयाँ।
सलिल जी के बारे में क्या कहूँ। वे हमारे गुरू हैं और गुरूओं पर टीका-टिप्पणी नहीं की जाती। सलिल जी ऎसे हीं युग्म को संवारते रहे,यही उनसे गुजारिश है। और हाँ सलिल जी ने नए यूनिकवि के अभिनन्दन के लिए जो कविता गढी है, वो भी किसी मायने में कम नहीं है। सलिल जी को अनेकों शुभकामनाएँ।
-विश्व दीपक
डॉ. सुरेश जी,
हार्दिक बधाईयाँ, एक श्रेष्ठ रचना और रचनाकार को यूनीकवि चुने जाने के लिये.
हिन्दीयुग्म को इस सार्थक पहल के लिये ढेरों बधाईयाँ.
मुकेश कुमार तिवारी
पहली बधाई यूनी पाठक को,,,,,
कारण ,,,वे पाठकों के पाठक और कवियों के कवी जो हैं,,,,,
दोनों में ही अपनी मिसाल आप हैं,,,,,,
फिर यूनी कवी जी को यूनी कवी होने की बधाईयाँ
आपने प्रकृति को जान कर ,,,,समझ कर अपनी कविता में ढाला है,,,
बहुत अच्छी लगी रचना ,,,,,
यूनिकवि व यूनिपाठक को ढेरों बधाइयाँ.कविता बहुत स्तरीय लगी परन्तु "जिन्दगी में जीवन की झलक "जिंदगी है तो जीवन तो होगा ही पता नहीं कवि यहाँ क्या कहना चाहता है खैर शेष रचना बहुत ही बहुत सुन्दर ओर यथार्थ पर टिकी हुई लगी सुरेश जी को पुन: बधाई सन्देश
यूनिकवि डॉ. सुरेश तिवारी और यूनिपाठक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' को हार्दिक बधाई ... कविताएं अच्छी लगी।
पिछले माह मेरी कविता 'उस वर्ष' का अकारण , बिना किसी सदर्भ के, बिना किसी प्रष्ठ भूमि के , आचार्य जी द्वारा उपहास किया गया और मुझे भी तिरस्कार कर के अपमानित करने का प्रयत्न किया गया . मैं ने कोई प्रतिक्रिया करना उचित नही समझा था . दोनों टिप्पणियाँ निम्नवत हैं.
said...
...इसलिए की उसके बाद का साल अभी नहीं आया, अर्थात ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव....किसी की खुशियाँ अच्छी लग्न तो ठीक है पर किसी का दुःख-दर्द अच्छा लगे या उस से सहानुभूति हो...?
said...
ऐसा भी संभव है की उस वर्ष के बाद कोई और मिल गयी हो...बहरहाल इस पर शोध के लिए १ अप्रैल को जाच आयोग गठित किया जाना चाहिए...
March 28, 2009 8:41 AM
इन गैर मर्यादित टिप्पणियों के बाद भी यदि आचार्य जी को यूनी पाठक का पुरस्कार मिल रहा है तो उन को और हिन्दयुग्म दोनों को बधाई
ह्ह्छ
कविता में लिए गए प्रतीक अच्छे हैं |
बधाई |
अवनीश तिवारी
अहसान जी,
दुष्यंत कुमार का एक शेर याद आ गया
"देख दहलीज से ये काई नहीं जाने वाली
ये खतरनाक सच्चाई नहीं जाने वाली
तू परेशान बहुत है तू परेशान न हो
इन खुदाओं की खुदाई नहीं जाने वाली"
मैं तो इसीलिये कम बोलता हूँ ................ मुझे लगता है यहाँ कविता नहीं अकविता प्रतियोगिता हो रही है
कुछ लोग तो हमेशा इंतज़ार करते हैं की अरुण अद्भुत की टिपण्णी आये और उसके विपरीत विचार लिखा जाए
खैर .......सब चलता है .............
कुछ भी कहो हम सब को एक मंच प्रदान करने के लिए हम हिन्दयुग्म का शुक्रिया अदा तो कर ही सकते हैं.............
अरुण 'अद्भुत'
सुरेश जी और आचार्य आप दोनों को बधाई।
एमपी की भूधरा पर, जन्मे हैं दो कवि,
एक तो है यूनिपाठक, दूजा है यूनिकवि।
प्रणाम आचार्य...
आपसे सीखा दोहा, बहुत कुछ अभी बाकि..
कविता क्या अकविता क्या, भेद समझना बाकि
अच्छी सीधी सरल कविता है . पर्यवावरण व परिवेश की समस्याओं के प्रति एक नर्म संवेदंशेलता प्रर्दशित करती है . कविता की निम्न दो पंक्तियों में विरोधाभास प्रतीत हो रहा है.
"मेरे बस्तर के जंगलों में अभी भी पाये जाते हैं पेड़,"
"इसीलिये...जंगलों में रह गये हैं ठूंठ जमीन की सतह से उठे हुये"
उपरोक्त दोनों स्थितियां एक साथ संभव नहीं हैं
बहर हाल तिवारी जी को यूनी कवी बनने की बधाई
e pidhi ke unikavi avam unipathak dono ko badhai.
chandrashekhar sharma
ahsan bhaai,
aap hasi thitholi ko maryada aur amaryada ke saath jod sakte hain ,maaloom n tha ,aap waakai thodi alag hi maansikta rakhte hain ,
uni kavi aur unipaathak ko dheron badhaaiyan
मैं जरा लेट हो गयी. सॉरी.
But it's never too late to congratulate. ऐसा मेरा मानना है. तो मेरी तरफ से भी सभी यूनीकवियों व यूनीपाठकों को बहुत बधाई और शुभकामनाएं!
priya mitron
aapke dwara mile maan-samman ke liye aabhar.aapki tippanion ke liye dhanyavad.Ahsaan Bhai ki tone se kai bar headmaster jaisi smell aati hai. vo shabd ko hi kavita samajh lete hain. unhe kavita ki samajh bhi nahi hai. vastav me shabd kavita nahi hote,ghazal,nazm,geet,chhand sabhi kuchh ho sakte hai shabd.in sabka mizaz bhi alag hota hai.Ahsan Bhai ne kafi din afsari ki hai isliye samajhte hai ki jo vo kahate hain vohi sahi hai. khair bhashan nahi dena hai.aabhari hoon.
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