हिन्द-युग्म की फरवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता स्तर के हिसाब से बहुत सफल रही क्योंकि अंतिम चरण में हमें यूनिकविता चुनने में बहुत परेशानी हुई। उल्लेखनीय है कि हिन्द-युग्म की यह प्रतियोगिता पिछले 38 महीनों से हर माह आयोजित हो रही है। फरवरी 2010 माह की यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए कुल 43 कविताएँ प्राप्त हुईं। बहुत से प्रतिभागियों समयांतर पत्रिका में प्रकाशित पिछले यूनिकवियों की कविताओं को देखकर इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। निर्णय दो चरणों में कराया गया। पहले चरण में 2 जजों द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर 22 कविताओं को दूसरे चरण में भेजा गया और दूसरे चरण में तीन जजों ने 22 कविताओं में से कृष्णकांत की कविता को यूनिकविता चुना।
यूनिकवि- कृष्णकांत
उत्तर प्रदेश राज्य के गोंडा जिले के छोटे से गाँव में जन्मे कृष्णकांत ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में परास्नातक किया है। फिलहाल बहुत से अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लिख रहे हैं। कृष्णकांत की एक-एक कहानी 'लम्ही' और 'परिकथा' में प्रकाशित हुई है। कृष्णकांत की कुछ कविताएँ भी 'परिकथा' और 'वाक्' में प्रकाशित हो चुकी हैं। कवि इन दिनों हैदराबाद में रहकर मीडिया की बारीकियाँ सीख रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- तेजू सपने देख रहा है
कथरी-कंबल साट के लेटा
माघ की रैना गुरगुर करता
तेजू सपने देख रहा है.........
बीते माघ फाग आयेगा
फूलों से लहराती फसलों में
जीवन-रस भर जायेंगे
ढलती ठंड तपेगी धरती
खेत सुनहले हो जायेंगे
सरसों अलसी अरहर गेहूं
ढो-ढोकर सब घर लायेंगे
रोटी दोनों जून पकेगी
बच्चे जी भर-भर खायेंगे
फसल है अच्छी खाने भर का
खेत में अपने हो जायेगा
और करूंगा मजदूरी जो
वो सबका सब बच जायेगा
लल्लू की अम्मा को भी
कह दूँगा रोज काम पर जाये
साथ लगा दूँगा बच्चों को
ताकि कुछ ज्यादा धन आये
चाहेंगे भगवान अगर तो
अंगना में पाहुन आयेंगे
अबकी बार बड़ी बिटिया के
हाथ में हल्दी लगवायेंगे
कथरी-कंबल साट के लेटा
माघ की रैना गुरगुर करता
तेजू सपने देख रहा है........।
पुरस्कार और सम्मान- समयांतर, की ओर से पुस्तकें तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें प्रेषित की जायेंगी, उनके नाम हैं-
अतुल चतुर्वेदी
आशुतोष माधव
आलोक उपाध्याय ’नजर’
मंजू महिमा
अनिल चड्डा
संगीता सेठी
रवीन्द्र शर्मा 'रवि'
प्रदीप वर्मा
सत्यप्रसन्न
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 2 कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
दिगंबर नासवा
गोपाल दत्त देवतल्ला
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 5 अप्रैल 2010 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
इस बार बहुत से पाठकों ने लगभग एक जैसी ही संख्या में कमेंट किया इसलिए हम यूनिपाठक चुनने की बजाय 2 पाठकों को समयांतर की ओर से पुस्तकें भेजेंगे। वे हैं प्रवीण पाण्डेय और सुमीता केशवा। हम अपने बाकी पाठकों से यह निवेदन करते हैं कि कृपया कविताओं को गंभीरता से पढ़ें और उसपर समीक्षात्मक टिप्पणी करें। इससे हमारा प्रोत्साहना तो होता ही है, कवि को पाठक की सच्ची प्रतिक्रिया भी प्राप्त होती है। हमें भी यूनिपाठक चुनने में आसानी होगी।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 12 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।
मनसा ’आनंद’
अभिषेक पाठक
हिमानी दीवान
नजर द्विवेदी
पारुल माहेश्वरी
स्नेह ’पीयूष’
मृत्युंजय श्रीवास्तव ’साधक’
दीपक कुमार
प्रिया
रामप्रकाश अनंत
बोधिसत्व कस्तुरिया
कमल सिंह
आशीष पंत
रेणु दीपक
पद्म सिंह
ब्रजेंद्र श्रीवास्तव ’उत्कर्ष’
अंकुर त्यागी
तरुण ठाकुर
रतन कुमार शर्मा
नीलम अरोड़ा
राम निवास ’इंडिया’
मनीष जैन
देवेश पाण्डेय
अजय दुरेजा
आनंद गुप्ता
अभिजीत शुक्ला
नीरज वशिष्ठ
लोकेंद्र राजपूत
कविता रावत
अरविंद कुरील
संध्या पडनेकर
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
बेहद ही खूबसूरत
एक मन की व्यथा को आशा की किरण देते हुए .........
कई आयाम है आप की इस रचना में कृष्णकांत जी
बधाई स्वीकारें ...........
तेजू सपने देख रहा है .....
पिछली पोस्ट अधूरी रह गयी थी ..ये पंक्तियाँ बेमिसाल लगी हमें
"फसल है अच्छी खाने भर का
खेत में अपने हो जायेगा
और करूंगा मजदूरी जो
वो सबका सब बच जायेगा"
एक बार फिर बधाई स्वीकारें
बहुत अच्छी कविता.
इस कविता के प्रवाह और भावों की अद्भुत अभिव्यक्ति ने मन मोह लिया.
...बधाई.
कथरी-कंबल साट के लेटा
माघ की रैना गुरगुर करता
तेजू सपने देख रहा है........
बेहद खूबसूरत रचना वाकई तजू महज सपना देख रहा है
तजू को तेजू पढ़ा जाये
कृष्णकांत जी को यूनिकवि बनाने पर बहुत बहुत बधाई, कविता के भाव बहुत सुन्दर है धन्यवाद
साथ ही प्रवीन पांडेय जी एवं सुनीता केशव जी को भी बहुत बहुत बधाई , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
और करूंगा मजदूरी जो
वो सबका सब बच जायेगा
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है. एक आम आदमी के सपने जो शायद सपने ही रह जाते है. कृष्णकांत जी बहुत-बहुत बधाई!
कृष्णकांत जी को यूनिकवि बनाने पर बहुत बहुत बधाई, कविता के भाव बहुत सुन्दर हैं...
प्रवीन पांडेय जी एवं सुनीता केशव जी को भी बहुत बहुत बधाई।
krishnakant ji ne is kavita me ek aam aadmi ke manobhaavon ko abhivyakt kiya hai. bahut sundar kavita. badhai.
कभी हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था कि जब कवि का लगना सब का लगना हो जाये तो कविता है ,नहीं तो एकालाप .कृष्णकांत ने कविता लिखी है -एक खूबसूरत कविता .जहाँ तक इस कविता के पुरस्कृत होने की बात है तो इससे इसका महत्व नहीं बढ जाता है .इसका महत्व इसलिए है कि यह आम आदमी के लिए भयावह समय में लिखी गयी कविता है - जब बहुत कुछ नष्ट हो जाने के बावजूद तेजू के सपने और एक युवा कवि की संवेदना बची है .
कृष्णकांत उत्तर प्रदेश के एक पिछड़े जिले गोंडा से आते है और उस प्रदेश की मुख्यमंत्री नोटों की माला धारण करने में व्यस्त हैं जबकि तेजू कथरी ओढ़कर ठण्ड से गुरगुरा रहा है.
कृष्णकांत को बधाई .
बहुत बधाई विजय के लिए
सुन्दर रचना ...
आज तेजू के सपने बदल रहे हैं ...
सामाजिक और आर्थिक ढाँचे बदल रहे हैं ...
आज तेजू शहर के सपने, नरेगा के सपने और मोबाइल के सपने भी देखने लगा है, रैलियों और चुनावों के सापेक्ष अपनी स्थिति की भी समझ आ रही है
स्थिति बेहतर हुई है
कृष्णकांत जी को बहुत बहुत बधाई, निश्चय ही उनकी कविता सर्वश्रेष्ठ होगी क्योंकि जिस अलग अंदाज़ में उन्होंने एक गरीब मजदूर के स्वाभाविक सपने को मूर्तरूप दिया है वह प्रशंसनीय है.. उन्होंने उसका कोई दुखड़ा नहीं रोया और ना ही व्यथा सुनाने का काम किया. बस सिर्फ और सिर्फ उसके सपने के माध्यम से उसकी तमन्ना कह गए जो कि दिखने में तो साधारण सी चीजें लगती हैं पर उस गरीब के लिए वो भी दूर की कौंड़ी ही हैं.. एक बार फिर बधाई. और हिन्दयुग्म को लगातार निःस्वार्थ हिंदी सेवा के लिए बधाई.
sahitya ke sadhkon ka kartvya nirvahan kiya hai aapne badhai aur shubh kamnayen lekhnee ki nirantarta avshykiy hai
कृष्ण्कांत जी को यूनिकवि चुने जाने पर बधाई..यह खूबसूरत कविता एक बुरे और अंधेरे समय के बीच उन सपनों और आशाओं की बात करती है जो कठिन परिस्थितियों की तमाम आंधियों के बीच भी एक साधारण व्यक्ति के हृदय मे भविष्य के विश्वास की लौ बन कर जलती रहती है..
यूनिपाठक सुमिता जी और प्रवीण जी को भी गंभीर पाठन के प्रति आस्था बचाये रखने के लिये धन्यवाद!!
लल्लू की अम्मा को भी
कह दूँगा रोज काम पर जाये
साथ लगा दूँगा बच्चों को
ताकि कुछ ज्यादा धन आये
चाहेंगे भगवान अगर तो
अंगना में पाहुन आयेंगे
अबकी बार बड़ी बिटिया के
हाथ में हल्दी लगवायेंगे
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