भारत माता जब रोती थी,
जंजीरों में बंध सोती थी .
पराधीनता की कड़ियाँ थीं,
जकड़ी बदन पर बेड़ियाँ थीं .
बंदी बन नतमस्तक माता,
देश की हालत बदतर खस्ता,
हर पल था अंधियारा छलता,
सहमी रहती थी जब जनता .
आँसू जलधर से बहते थे,
सहमे सहमे सब रहते थे .
यौवन पतझड़ सा सूखा था,
सावन भी रूखा रूखा था .
भारत भू का कण कण शोषित,
त्रास यातना से अपमानित .
’कल्याण - भूमि’ आतंकित थी,
निज स्वार्थ हेतु संचालित थी .
राष्ट्र हीनता से जकड़ा था,
दीन दासता ने पकड़ा था .
मृत्यु प्राय सी चेतनता थी,
स्तब्ध सिसकती मानवता थी .
अवसाद गरल बन बहता था,
स्वाभिमान आहत रहता था .
गौरव पद तल त्रासित रहता,
झुका हुआ था अंबर रहता .
निष्ठुर क्रीड़ा खेली जाती,
अनय अहिंसा झेली जाती .
धन संपत्ति को लूटा जाता,
ब्रिटिश राज को भेजा जाता .
हिम किरीट की सुप्त शान थी,
पुरा देश की लुप्त आन थी .
राष्ट्र खड़ा पर शिथिल जान थी,
सरगम वंचित अनिल तान थी .
विषाद द्रवित नही होता था,
वेदन में आँसू घुलता था .
आवेग प्रबल उत्पीड़न था,
विवश कसमसाता जीवन था .
कलरव जब कर्कश लगता था,
नत दिव्य भाल जब दिखता था .
आकाश झुका सा लगता था,
चिर ग्रहण भाग्य पर दिखता था,
युगों युगों से गौरव उन्नत,
हिम का आलय झुका था अवनत .
विषम समस्या से था ग्रासित,
विकल, दग्ध ज्वाला से त्रासित .
’पुण्य भूमि’ जब मलिन हुई थी,
पद के नीचे दलित हुई थी .
’तपोभूमि’ संताने व्याकुल,
व्याल घूमते डसने आकुल .
हीरे, पन्ने, मणियां लूटीं,
कलियाँ कितनी रौंदी टूटीं .
आन देश की नोच खसोटी,
कृषक स्वयं न पाये रोटी .
चीर हरण नारी के होते,
भारत निधियां हम थे खोते .
वैभव सारा लुटा देश का,
ध्वस्त हुआ सम्मान देश का .
बाट जोहते सब रहते थे,
तिमिर हटाओ सब कहते थे .
भाव हृदय में सदा मचलते,
मौन परंतु सब सहते रहते .
धरती माँ धिक्कार रही थी,
रो रो कर चीत्कार रही थी .
वीर पुत्र कब पैदा होंगे ?
जंजीरों को कब तोड़ेंगे ?
’जन्मा राजा भरत यहीं क्या ?
नाम उसी से मिला मुझे क्या ?
धरा यही दधीच क्या बोलो ?
प्राण त्यागना अस्थि दान को ?
बोलो बोलो राम कहाँ है ?
मेरा खोया मान कहाँ है ?
इक सीता का हरण किया था,
पूर्ण वंश को नष्ट किया था !
बोलो बोलो कृष्ण कहाँ है ?
उसका बोला वचन कहाँ है ?
धर्म हानि जब भारत होगी,
जीत सत्य की फिर फिर होगी !
अर्जुन अब कब पैदा होगा,
भीम गदा धर कब लौटेगा ?
पुण्य भूमि बेहाल हुई क्या ?
वीरों से कंगाल हुई क्या ?
नृपति अशोक चंद्रगुप्त कहाँ ?
मर्यादा भारत लुप्त कहाँ ?
कहाँ है शान वैशाली की ?
मिथिला, मगध, पाटलिपुत्र की ?
गौतम हो गये बुद्ध महान,
इस धरती पर लिया था ज्ञान .
दिया कितने देशों को दान,
संदेश दबा वह कहाँ महान ?
इसी धरा पर राज किया था,
विक्रमादित्य पर नाज किया था .
जन्मा पृथ्वीराज यहीं क्या ?
कर्मभूमि छ्त्रपति यही क्या ?
चेतक पर घूमा करता था,
हर पत्ता, बूटा डरता था .
घास की रोटी वन में खाई,
पराधीनता उसे न भाई .
जुल्मों की तलवार काटने,
भारत संस्कृति रक्षा करने .
चौक चाँदनी शीश कटाया,
सरे - आम संदेश सुनाया .
चिड़ियों से था बाज लड़ाया,
अजब गुरू गोबिंद की माया .
धरा धन्य थी उसको पाकर,
देश बचाया वंश लुटाकर .
वही धरा अब पूछ रही थी,
रो रो कर अब सूख रही थी .
लौटा दो मेरा स्वाभिमान,
धरती चाहती फिर बलिदान .
पराधीन की कड़ियाँ तोड़ो,
नदियों की धारा को मोड़ो .
कोना कोना भरत जोड़ो,
हाथ उठे जो ध्वंश, मरोड़ो .
सिंह नाद सा गुंजन करने,
तूफानों में कश्ती खेने .
वह अमर वीर कब आयेगा ?
मुझको आजाद करायेगा !
हर बच्चा भारत बोल उठे,
सीने में ज्वाला खौल उठे .
हर दिल में आश जगाये जो,
भूमि निछावर हो जाये जो !
हर - हर बम बम जय घोष करो,
अग्नि क्रांति की हर हृदय भरो .
नर - नारी सब तरुण देख लें,
करना आहुति प्राण सीख लें !
बहुत हुआ अब मर मर जीना,
अनुसाल दासता की सहना . (अनुसाल = पीड़ा)
संभव वीर न भू पे लाना ?
ताण्डव शिव को याद दिलाना !’
हृदय विदारक दारुण क्रंदन,
परम पिता ने कर आलिंगन,
परम वंद्य आत्मा आवाहन,
भारत भेजा अपना नंदन .
बंगा लायलपुर जनपद में,
किसन, विद्यावती के घर में,
ईशा सन उन्नीस सौ सात,
सितंबर सत्ताइस की रात .
जन्म पुण्य आत्मा ने पाया,
क्रांतिकारियों के घर आया .
स्वतंत्रता के चिर सेनानी,
कुटुंब की थी यही कहानी .
सूर्य एक दमका था जग में,
भारत माता के आंगन में .
भाग्यवान बन आया था सिंह,
दादी बोली नाम भगत सिंह .
कवि कुलवंत सिंह
निवास –
2 डी, बद्रीनाथ बिल्डिंग, अणुशक्तिनगर,
मुंबई – 400094; फोन : 09819173477
Email : kavi.kulwant@gmail.com
कार्यालय –
वैज्ञानिक अधिकारी, एम. पी. डी.
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र,
मुंबई – 400085; फोन : 022-25595378
email : singhkw@barc.gov.in
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
कोना कोना भरत जोड़ो,
हाथ उठे जो ध्वंश, मरोड़ो .
बहुत अच्छी पंक्तियां हैं ,जिनकी आज भी जरुरत है/ देश भक्ति से ओतप्रोत भावपूर्ण कविता के लिये आभार!
बहुत अच्छी रचना, देश भक्ति से ओत-प्रोत,
बीच में कविता की लम्बाई के विषय में सोचा
किन्तु भाव इतने प्रवाभपूर्ण थे की पता ही नहीं लगा,,,
bharat maa ki paradheenta ke dard ki vedana bahut achhi tarah se vyakt ki hai aapne
बोलो बोलो कृष्ण कहाँ है ?
उसका बोला वचन कहाँ है ?
धर्म हानि जब भारत होगी,
जीत सत्य की फिर फिर होगी !
अर्जुन अब कब पैदा होगा,
भीम गदा धर कब लौटेगा ?
पुण्य भूमि बेहाल हुई क्या ?
वीरों से कंगाल हुई क्या ?
yah sawal hai jo aaj bhi jan man ke mann mai hai aaj bhi kai paristithiya yathavat hai jabki hum kah rahe hai ki desh ab aazad hai,per dasata ki bediya aaj bhi adhrshy hai per hai ,
bahut samay ke bad desh prem se oat prot ek bahut bahut hi achhi rachana padhne ko mili. dhanyvad.
poonam
अर्जुन अब कब पैदा होगा,
भीम गदा धर कब लौटेगा ?
पुण्य भूमि बेहाल हुई क्या ?
वीरों से कंगाल हुई क्या ?
सूर्य एक दमका था जग में,
भारत माता के आंगन में .
भाग्यवान बन आया था सिंह,
बहुत सुन्दर देशभक्ति के रस मे सराबोर कविता। कुलवन्त जी को बधाई। हिन्द युग्म का धन्यवाद।
दादी बोली नाम भगत सिंह .
बहुत ही ओज पूर्ण रचना , कुलवंत जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद,
विमल कुमार हेडा
कुलवंत जी ,वीर रस से ओत-प्रोत इस कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई! वीर रस की कविताये जैसे लुप्त ही होगई थी .आपने स्कूल के दिनों में पढ़ी वीर रस की कवितायों की याद दिला दी.भरत,दधीच,विक्रमादित्य,अशोकआदि,एक कविता में भारतीय इतिहास की झलक दिखा दी आपने.कृपया इसे बच्चों से रूबरू कराने का प्रयास जरूर कीजिएगा .धन्यवाद.स्मिता मिश्रा
सुन्दर और उद्वेलित करती हुयी ।
बंदी बन नतमस्तक माता,
देश की हालत बदतर खस्ता,
हर पल था अंधियारा छलता,
सहमी रहती थी जब जनता .
किसी महाकाव्य से कम नही..अगली कड़ी का इंतज़ार है...
bahut sunder rachna hai badhai
कविता का इतना बेहतरीन जानकार तो मैं हू नहीं , पर सिर्फ इतना कह सकता हूँ की आज के समय में ऐसी रचना ! अद्भुद.
aap sabhi mitron ka haardik dhanyawaad...
Itna paar paa kar dil gadgad ho gaya...
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