दोहा भास्कर काव्य नभ, दस दिश रश्मि उजास
गागर में सागर भरे, छलके हर्ष हुलास
आगामी पाठों में रस, भाव, संधि, बिम्ब, प्रतीक, शैली, अलंकार आदि काव्य तत्वों की चर्चा करने का उद्देश्य यह है कि पाठक दोहों में इन तत्वों को पहचानने और सराहने के साथ दोहा रचते समय इन तत्वों का समावेश कर सकें
रसः काव्य को पढ़ने या सुनने से मिलनेवाला आनंद ही रस है। काव्य मानव मन में छिपे भावों को जगाकर रस की अनुभूति कराता है। भरत मुनि के अनुसार "विभावानुभाव संचारी संयोगाद्रसनिष्पत्तिः" अर्थात् विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रस के ४ अंग स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव व संचारी भाव हैं-
स्थायी भावः मानव ह्र्दय में हमेशा विद्यमान, छिपाये न जा सकनेवाले, अपरिवर्तनीय भावों को स्थायी भाव कहा जाता है।
रस श्रृंगार हास्य करुण रौद्र वीर भयानक वीभत्स अद्भुत शांत वात्सल्य
स्थायी भाव रति हास शोक क्रोध उत्साह भय घृणा विस्मय निर्वेद संतान प्रेम
विभावः
किसी व्यक्ति के मन में स्थायी भाव उत्पन्न करनेवाले कारण को विभाव कहते हैं। व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति भी विभाव हो सकती है। विभाव के दो प्रकार आलंबन व उद्दीपन हैं।
आलंबन विभाव के सहारे रस निष्पत्ति होती है। इसके दो भेद आश्रय व विषय हैं
आश्रयः जिस व्यक्ति में स्थायी भाव स्थिर रहता है उसे आश्रय कहते हैं। शृंगार रस में नायक नायिका एक दूसरे के आश्रय होंगे।
विषयः जिसके प्रति आश्रय के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न हो, उसे विषय कहते हैं "क" को "ख" के प्रति प्रेम हो तो "क" आश्रय तथा "ख" विषय होगा।
उद्दीपन विभाव- आलंबन द्वारा उत्पन्न भावों को तीव्र करनेवाले कारण उद्दीपन विभाव कहे जाते हैं। जिसके दो भेद बाह्य वातावरण व बाह्य चेष्टाएँ हैं। वन में सिंह गर्जन सुनकर डरनेवाला व्यक्ति आश्रय, सिंह विषय, निर्जन वन, अँधेरा, गर्जन आदि उद्दीपन विभाव तथा सिंह का मुँह फैलाना आदि विषय की बाह्य चेष्टाएँ हैं ।
अनुभावः आश्रय की बाह्य चेष्टाओं को अनुभाव या अभिनय कहते हैं। भयभीत व्यक्ति का काँपना, चीखना, भागना आदि अनुभाव हैं।
संचारी भावः आश्रय के चित्त में क्षणिक रूप से उत्पन्न अथवा नष्ट मनोविकारों या भावों को संचारी भाव कहते हैं। भयग्रस्त व्यक्ति के मन में उत्पन्न शंका, चिंता, मोह, उन्माद आदि संचारी भाव हैं। मुख्य ३३ संचारी भाव निर्वेद, ग्लानि, मद, स्मृति, शंका, आलस्य, चिंता, दैन्य, मोह, चपलता, हर्ष, धृति, त्रास, उग्रता, उन्माद, असूया, श्रम, क्रीड़ा, आवेग, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अवमर्ष, अवहित्था, मति, व्याथि, मरण, त्रास व वितर्क हैं।
रस
शृंगार संयोगः
तुमने छेड़े प्रेम के, ऐसे राग हुजूर
बजते रहते हैं सदा, तन मन में संतूर
---अशोक अंजुम, नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार
वियोगः
हाथ छुटा तो अश्रु से, भीग गये थे गाल
गाड़ी चल दी देर तक, हिला एक रूमाल
चंद्रसेन "विराट", चुटकी चुटकी चाँदनी
हास्यः
आफिस में फाइल चले, कछुए की रफ्तार
बाबू बैठा सर्प सा, बीच कुंडली मार
राजेश अरोरा"शलभ", हास्य पर टैक्स नहीं
व्यंग्यः
अंकित है हर पृष्ठ पर, बाँच सके तो बाँच
सोलह दूनी आठ है, अब इस युग का साँच
जय चक्रवर्ती, संदर्भों की आग
करुणः
हाय, भूख की बेबसी, हाय, अभागे पेट
बचपन चाकर बन गया, धोता है कप प्लेट
डॉ. अनंतराम मिश्र "अनंत", उग आयी फिर दूब
रौद्रः
शिखर कारगिल पर मचल, फड़क रहे भुजपाश
जान हथेली पर लिये, अरि को करते लाश
सलिल
वीरः
रणभेरी जब जब बजे, जगे युद्ध संगीत
कण कण माटी का लिखे, बलिदानों के गीत
डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा "यायावर", आँसू का अनुवाद
भयानकः
उफनाती नदियाँ चलीं, क्रुद्ध खोलकर केश
वर्षा में धारण किया, रणचंडी का वेश
आचार्य भगवत दुबे, शब्दों के संवाद
वीभत्सः
हा, पशुओं की लाश को, नोचें कौए गिद्ध
हा, जनता का खून पी, नेता अफसर सिद्ध
सलिल
अद्भुतः
पांडुपुत्र ने उसी क्षण, उस तन में शत बार
पृधक पृधक संपूर्ण जग, देखे विविथ प्रकार
डॉ. उदयभानु तिवारी "मधुकर", श्री गीता मानस
शांतः
जिसको यह जग घर लगे, वह ठहरा नादान
समझे इसे सराय जो, वह है चतुर सुजान
डॉ. श्यामानंद सरस्वती "रौशन", होते ही अंतर्मुखी
वात्सल्यः
छौने को दिल से लगा, हिरनी चाटे खाल
पान करा पय मनाती, चिरजीवी हो लाल
सलिल
भक्तिः
दूब दबाये शुण्ड में, लंबोदर गजमुण्ड
बुद्धि विनायक हे प्रभो!, हरो विघ्न के झुण्ड
भानुदत्त त्रिपाठी "मधुरेश", गोहा कुंज
दोहा में हर रस को अभिव्यक्त करने की सामर्थ्य है। पाठक अपनी रुचि के अनुकूल खड़ी बोली या टकसाली हिंदी के
दोहे भेजें। पसंद आने का कारण भी लिखें जिन्हें अभ्यास हो वे स्वरचित दोहे भेजें।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
दोहो के इतने सुन्दर उदहारण एक अच्छे व्याख्यान के बाद पढ़ कर मन हर्षित हो गया
बहुत अच्छा लगा..
सादर
शैलेश
वाह गजब का ज्ञान है, मैंने छंद के बारे में काफी पढ़ा है, दोहे के बारे में भी, दोहे लिखता भी हूँ......... पर एक बात है की वो सब तो दस प्रतिशत ही था असली चीज़, इतने विस्तार से तो अब आई है.... हिंद युग्म इसे लिए बधाई का ही नहीं नमन का पात्र है....... लीजिये इतनी देर में एक दोहा भी आ गया:
हिंद युग्म की भेंट है, सब कवियों को आज
दोहा लिखना सीखिए, छंदों का सरताज
आचार्य को प्रणाम,
इस पाठ में क्यूंकि गिनती नही है...इसलिए ये मेरे जैसे के लिए बहुत ही मजेदार है....बस दोहे है ..बिना जमा घटा किए ...मजा अ गया.......और एक बात जो मैं कुछ दिन से बके जा रहा हूँ..........
कविता को ही काटता, ले कविता की आड़ ,
कवि कहाँ करते हैं यूँ, कविता से खिलवाड़....
छंद, लेय और भाव बिन,कविता है बेजान
जीवन-राग नकार रहा, कैसा है नादान ,
amaa miyaan,
pahle kamment to main de rahaa thaa.......ek aur dohaa bannaane baitha aur aap aa gaye......kyaa haseen itefaaq hai....
isme bhi mazaa a gayaa.........
manu.....
salil ji,
aapne bahut hi upyogi jaankaari di hai.
ras ke chaar angon ke baare mein jaanane ko mila.....isi tarah dheere-dheere chhand aur doha likhne ki vidhiyaan bhi seekh loonga.
bahut bahut shukriya.
- Vishwa Deepak
आचार्य सलिल जी ,
आपने बहुत ही उपयोगी जानकारी उदाहरणों के साथ दी है. पाठ भी छोटा होने से जल्दी समझ में आ गया . और साथ में बहुत से भावों के उदाहरण दोहे , दोहा के विस्तृत क्षेत्र को समझाने में बड़े सहायक हुए हैं. बहुत बहुत धन्यवाद.
निरख निरख छवि कान्हा की,उमड़े स्नेह ममत्व ,
देख देख हर्षाये माता, भूली जगत समस्त .
धन्यवाद
पूजा अनिल
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