प्रेम की ऋतु फिर से आई
फिर नयन उन्माद छाया
फिर जगी है प्यास कोई
फिर से कोई याद आयाफिर खिलीं कलियाँ चमन में
रूप रस मदमा रहीं----
प्रेम की मदिरा की गागर
विश्व में ढलका रही
फिर पवन का दूत लेकर
प्रेम का पैगाम आया-----
टूटी है फिर से समाधि
आज इक महादेव की
काम के तीरों से छलनी
है कोई योगी-यति
धीर और गम्भीर ने भी
रसिक का बाना बनाया—
करते हैं नर्तन खुशी से
देव मानव सुर- असुर
‘प्रेम के उत्सव’ में डूबे
प्रेम रस में सब हैं चूर
प्रेम की वर्षा में देखो
सृष्टि का कण-कण नहाया
प्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छी रचना....अच्छा लगा पढकर...
प्रेम की वर्षा में देखो
सृष्टि का कण-कण नहाया ।
सुंदर वासंती रचना
सुंदर रचना |
बधाई
अवनीश तिवारी
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया...
प्रेम की ऋतु फिर से आई
फिर नयन उन्माद छाया..
"नयन उन्माद" ..:)
अच्छी रचना है
टूटी है फ़िर से समाधि.....आज इक महादेव की ....
आपको पढ़ना सुखदायी रहा.........बहुत अच्छा लिखा है...
प्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--
vaasaanti prem se raastra prem tak
le jaati hui ,achcha sandesh deti hui ,achchi rachna
badhaai sweekaaren ,sobha ji
सुंदर,बहुत सुंदर...
आलोक सिंह "साहिल"
प्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया
bahut manoram
rachana
प्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--
वाह,
कविता बहुत अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
गीत गुनगुनाती सी सुंदर पंक्तियाँ
सादर!!
धीर और गम्भीर ने भी
रसिक का बाना बनाया—
मधुर भावों से ओतप्रोत
गीत मेरे मन को भाया
सखी लौट फ़िर सावन आया
श्यान सखा श्याम
हिन्दी की कविता में उर्दू के दो तीन शब्द मन में गड़ते रहे
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