फटाफट (25 नई पोस्ट):

कृपया निम्नलिखित लिंक देखें- Please see the following links

एक छोटी सी कविता


धरती को बता देगें, अम्बर को दिखा देंगे
अन्दर जो सुलगता है उसे और हवा देंगे

बेनाम नहीं रहना, बेजान नहीं रहना
है सच का साया तो ज़ुल्म नहीं सहना

तकदीर बदल देंगे, तस्वीर बदल देंगे
सूरज जो निकलता है उसे नई सहर देंगे

कवि- अवनीश गौतम

प्रतिध्वनि


दुख लौट आता है
जैसे लौट आती है प्रतिध्वनि

या कैसे कहूँ
कि हर प्रतिध्वनि में
लौटता है दुख ही

कि मैं जब भी हँसता हूँ
हँसी टकरा कर लौटती है
सिसकियों की आवाज़ में
लेता हूँ प्रियजनों का नाम
एक खोई हुई चाय की प्याली का नाम
पुकारता हूँ उस जगह का नाम
जहाँ से वाबस्ता हूँ मैं
कहीं से टकरा कर लौटती है मेरी आवाज़
सिसकियों की शक्ल में

यहाँ इसी दुनिया में कहीं न कहीं
कोई न कोई दीवार या गुफा या पहाड़ ज़रूर है
जिससे टकरा कर हर आवाज़
रुलाई में तब्दील हो जाती है

किसी को पता है इसके बारे में
मैं तोड़ना चाहता हूँ इस दीवार को
गुफा हो तो पाटना चाहता हूँ
पहाड़ हो तो उस पार जाना चाहता हूँ
-अवनीश गौतम

कोलाज


उसने नहीं बनाया
एक भी नफीस चित्र

अपनी पूरी जिन्दगी में
मुक्कम्मल किया है
सिर्फ एक कोलाज

अपनी काग़ज़ की नाव
फाड़ कर बनाई है नदी
पतंग फाड़ कर बनाया है आकाश

प्रेमिका के पत्र फाड़ कर बनाए है
बिना फूलों वाले पेड़

पिता की झुर्रियाँ ले कर बनाई है
घर की दीवारें
अपने सिर के तमाम बाल नोच कर
बनाई है उस घर की छत

और उस घर के बाहर एक
एक बहुत बडा कूड़ेदान बनाया है
नफीस चित्र बानाने की
विधियाँ बताने वाली किताब को फाड़ कर

उसने नहीं बनाया
एक भी नफीस चित्र
अपनी पूरी जिन्दगी में
मुक्कम्मल किया है
सिर्फ एक कोलाज!

रचनाकाल 1990

--अवनीश गौतम