मई महीने का यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता का आयोजन कई मायनों में नया रहा। एक तो यह कि इस महीने रु 5500 तक की पुस्तकें देने की उद्घोषणा की गई। वहीं इसमें 56 प्रतिभागियों ने भाग लिया। इससे पहले फरवरी 2008 की प्रतियोगिता में 58 कवियों ने भाग लिया था। सुखद बात यह भी रही कि इस अंक में बहुत से कवियों ने पहली बार भाग लिया।
इस नाते हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ी कि हम अच्छी कविताओं का चयन कर पायें। यूनिकविता के स्तर की 10 कविताएँ चुन पायें। हिन्द-युग्म कहता आया है कि शीर्ष 10 कविताओं का स्थान निर्धारण इसके लिए बहुत मुश्किल होता है। इस बार इसी तरह की मुश्किल तब आई जब प्रथम तथा दूसरे स्थान की कविताओं का प्राप्तांक लगभग बराबर हो गया। इस बार कुल 8 जजों से निर्णय कराया गया। पहले चरण में 4 जज और अंतिम चरण में भी चार जज रखे गये। पहले चरण से 32 कविताओं को चुनकर अंतिम चरण के निर्णायकों को भेजा गया। अंतिम चरण के निर्णायकों द्वारा दिये गये अंकों के साथ पिछले चरण के औसत अंकों को भी जोड़ा जाता है और यह महा-औसत निकालकर कविताओं का स्थान निर्धारण किया जाता है। ग़ौरतलब है कि किसी भी जज को न तो दूसरे जज के बारे में कुछ ज्ञात होता है और नहीं रचनाओं के रचनाकार के बारे में ही।
इस प्रकार जब अंक तालिका बनाई गई तो शीर्ष 2 कविताओं में बहुत छोटा अंतर था। फिर हमने दोनों चरणों के स्थानों की तुलना करके कवि दिबेन की कविता 'कृष्ण और द्रिपदी' को यूनिकविता चुना। साथ ही साथ यह भी तय किया कि बेशक हम दूसरे स्थान के रचनाकार को पहले स्थान वाला पुरस्कार नहीं दे पायेंगे, लेकिन जून के महीने में ही एक अन्य कविता प्रकाशित करने का अवसर ज़रूर देंगे।
जून माह के विजेता कवि यानी यूनिकवि दिबेन की एक कविता 'मछली रानी' पिछले महीने भी प्रकाशित हो चुकी है।
दिबेन सिंह का परिचय बस इतना है कि 13 अक्टूबर 1955 को मुज़फ़्फ़नगर (उ॰प्र॰) में इनका जन्म हुआ। दिबेन की कहानियों की तीन पुस्तकें, दो उपन्यास तथा कविताओं की एक पुस्तक (काँच के ताजमहल) प्रकाशित हो चुके हैं। एम॰ए॰, एल॰एल॰बी॰ तथा वनस्पति विज्ञान में बी॰एसी॰ की आदि की पढ़ाई कर चुके दिबेन इन दिनों बहादुरगढ़ (हरियाणा) में रहते हैं।
पुरस्कृत कविता- कृष्ण और द्रौपदी
तंग अंधेरी बंद कोठरियों में
सिसकती- घुटती रही सुबकियां और
कंठ में दबी चीख,
नहीं रहे कृष्ण भी अब निर्बल के मीत
द्रौपदी का करना अपमान
बन गई दुश्शासन की रोज-रोज की बात
.......और द्रौपदी?
द्रौपदी इस सबकी हो गई अभ्यस्त
क्योंकि उसके पति
बनवास में ही नहीं अब केबिनेट में भी हैं
मैंने भी अपने भीतर बैठे विदुर की हत्या कर दी है
इसके बदले में उन्होंने मुझे दिया है
रोटी का आश्वासन
और मेरी अवैध संतानों को पेंशन
वी आई पी लोगों की
अवैध संतानें वैध करार दे दी गई हैं
तुम कुंती से कह देना
कि कर्ण को नदी में न बहाए।
प्रथम चरण मिला स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण मिला स्थान- प्रथम
पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र। जून माह के अन्य दो सोमवारों की कविता प्रकाशित करनवाने का मौका।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें हम राकेश खंडेलवाल की पुस्तक 'अंधेरी रात का सूरज' की एक-एक प्रति भेंट करेंगे, उनके नाम हैं-
सत्यप्रसन्न
अखिलेश कुमार श्रीवास्तव
आलोक उपाध्याय 'नज़र इलाहाबादी'
उमेश पंत
मुहम्मद अहसन
रवि मिश्रा
जितेन्द्र दवे
श्यामली त्रिपाठी
निर्मला कपिला
इस बार एक और बात बहुत ध्यान देने वाली है कि जजों को कुछ कविताएँ इतनी पसंद आईं कि उन्होंने उन्हें लगभग बराबर अंक दिये। यही कारण है कि शीर्ष 10 के बाद हमारे पास 10 और ऐसी कविताएँ हैं जिनका औसत प्राप्तांक दशमलव के दूसरे या तीसरे स्थान में कम या अधिक है। इसलिए हम निम्नांकित कवियों की कविताएँ भी प्रकाशित करेंगे।
स्वप्निल कुमार 'आतिश'
ऋतु सरोहा
रवि कांत 'अनमोल'
किरण सिन्धु
अम्बरीष श्रीवास्तव
दीपाली "आब"
प्रदीप वर्मा
संगीता सेठी
मनु "बे-तक्ख्ल्लुस"
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 30 जून 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
इस बार पाठकों में मोहम्मद अहसन ने हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा, हाँ यह ज़रूर है कि ये देवनागरी में लिखने में हिचकिचाते रहे या यूँ कह लें कि परेशानी महसूस करते रहे। खैर हम इसे अपनी ही असफलता मानेंगे कि अपने यूनिपाठक को देवनागरी टंकण में अभी तक दक्ष न कर सके।
यूनिपाठक- मोहम्मद अहसन
पढ़ने, लिखने, साहित्य, कला, प्रकृति भ्रमण आदि में रुचि रखने वाले मुहम्मद अहसन वर्तमान में भारतीय वन सेवा के लखनऊ क्षेत्र के मुख्य वन संरक्षक हैं। इनका चिंतन प्रकृति, पर्यावरण, प्रेम, जीवन के मूलभूत सत्य, सामाजिक तनाव इत्यादि की अनुभूतियों के साथ मिलकर जहाँ काव्य के रूप में सामने उभर कर आता है वहीं दूसरी ओर वह अनेकों प्रकार के शौक व हॉबियों के बालिक हैं। मूलरूप से बाराबंकी के रहने वाले हैं और अपनी जड़ों पर गर्व अनुभव करते हैं।
पुरस्कार और सम्मान- राकेश खंडेलवाल के कविता-संग्रह 'अधेरी रात का सूरज' की एक प्रति तथा प्रशस्ति-पत्र।
इनके अतिरिक्त संगीता पुरी ने भी हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा। हम इन्हें भी यह पुस्तक भेंट करेंगे।
जो पाठक लगातार पढ़ रहे हैं और यूनिपाठक का पुरस्कार जीत चुके हैं वे वार्षिक हिन्द-युग्म पाठक सम्मान के प्रतिभागी बनते जा रहे हैं। इसलिए पढ़ने में कोई कसर न छोड़ें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें।
मनोज भावुक
डा. अनिल चड्डा
समीर गुप्ता
डॉ.योगेन्द्र मणि
ज्योत्स्ना पाण्डेय
आलोक गौड़
अभिषेक ताम्रकार “अभि”
ममता गुप्ता
मधुछन्दा चक्रवर्ती
शेली खत्री
ओम प्रभाकर भारती
हिमांशु कुमार पाण्डेय
अनु बंसल
मंजू गुप्ता
केशव कुमार कर्ण
गौरव शर्मा 'लम्स'
पूजा अनिल
सौरभ कुमार
पृथ्वीपाल रावत
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
सोनिया उपाध्याय
शारदा अरोरा
अजय कुमार उपाध्याय
सुधीर परवाना "बेजान"
तरुण सोनी तन्वीर
स्तुति नारायण
अजित गुप्ता
डॉ॰ संजय अग्रवाल
शन्नो
सीमा सिंघल
राजेश बिस्सा
स्वरन सरीन
दिनेश "दर्द"
संजय सेन सागर
कुलदीप यादव
धीरेन्द्र सिंह
जितेन्द्र कुमार दीक्षित
फ़कीर मो॰ घोसी
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26 कविताप्रेमियों का कहना है :
सभी विजेताओं को शुभकामनाएं और बधाईयाँ |
यूनिकवि की रचना अर्थों में बहुत गहरी है |
अवनीश तिवारी
अवैध संतानें वैध करार दे दी गई हैं
तुम कुंती से कह देना
कि कर्ण को नदी में न बहाए।
इसके अलावा कविता में कुछ नहीं है.......... पता नहीं क्यों, पर कविता यूनिकवि के स्तर की नहीं लगी प्रारंभ में लेख सा लग रहा है बीच में कुछ अर्थ स्पस्ट नहीं हो रहा पर हिन्दयुग्म पर तो ये पढने को मिलता ही है ........
बी डी कालिया हमदम जी का एक शेर है
"ये तो पत्थरों की हैं बस्तियां, यहाँ टूटने का रिवाज़ हैं
जो हो दर्पणों सा स्वाभाव तो, कहीं और जा के बसा करो"
सादर
अरुण अद्भुत
यूनिकवि घोषित हुए कवि श्री दिबेन सिंह और यूनीपाठक घोषित हुए श्री मोहम्मद अहसन को बहुत बहुत बधाई. मैंने
दिबेन जी की कविता "कृष्ण और द्रोपदी" को बहुत फुर्सत के साथ पढ़ा. इस कविता पर मैं अपनी लम्बी प्रतिक्रया देना चाहता हूँ किन्तु उसके पहले मैं ये बात स्पष्ट करना चाहूँगा की इस प्रतिक्रया को रचनात्मक रूप और बिना किसी पूर्वाग्रह के देखा जाना चाहिए. माननीय निर्णायक महोदयों की योग्यता, निष्ठा और विद्वत्ता पर प्रश्न-चिह्न उठाना मेरा उद्देश्य नहीं और ना ही मैं ऐसी हिमाकत कर सकता हूँ.
इस भूमिका से पाठक मेरी प्रतिक्रिया के तेवरों का अंदाजा लगा सकते हैं......... यदि फिर भी मुझे अपनी बात रखने का अवसर दिया जाता है तो मैं कल अपनी विस्तृत समीक्षा पोस्ट करूंगा...
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
मोबाइल : 09425800818
अहसान भाई...
सच मुच के पाठक ........!!!!!!
और यूनी कवि...... वाकई के "यूनी कवी" ....
बढिया लिखें...सुंदर लिखें...खूब लिखें....
सदा की तरह बधाई,,,,!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
भारतवर्ष के पुरातन प्रतीकों को वर्तमान स्थितियों से जोड़कर अच्छी-खासी कविता लिखी है. कविता में छिपा व्यंग बेशक वार करता है. खासकर 'अवैध संतानें वैध करार दे दी गई हैं/तुम कुंती से कह देना/कि कर्ण को नदी में न बहाए'. हमारे बदलते जीवन मूल्यों और नैतिकताओं की इससे बढिया मिसाल क्या हो सकती है. छोटी मगर असरदार कविता के लिए यूनिकवी को बधाई.
Krishna aur Dropadi kavita ki pankti mein "banvasi nahi ab cabinet mein bhi hai............." pankti mein vyang ka saundrya dikhai deta hai. Aj ki samajik dasha aur rajnetti par gehara prahar kiya hai. Mahabharat kal ke tathya ko aadhunik sandharbh mein jodkar vyangatmak shabdawali shyalii ko navjeevan diya hai. unikavi ke dason vijyayeee sikandaro ko badhayian.
Manju Gupta.
जहां तक यूनी कवि प्रतियोगिता की बात है, इतना ही कहूँ गा ,
मशहूर हैं क़िस्से तेरी दरियादिली के मेरे साकी
यह मेरी कमनसीबी कि जाम तक न हाथ पहुंचा
-अहसन
जहां तक यूनी पाठक पुरस्कार मिलने कि बात है,
हैरान था साकी मेरे हंगामों से मैखाने में
पेश की मुफ़्त की बोतल कहा खामोश रह
-अहसन
जहां तक मेरे हमेशा देवनागरी में न लिखने की बात है,
साकी मेरी ज़बान की लग्ज़िश पे न जाइयो
कभू कभू तंगी ए वक़्त से सामना था मेरा
-अहसन
जहां तक इस माह की यूनी कविता की बात है इतना ही कहूं गा
सियासी तंज़ की बोतल बड़ी दिलकश
मगर मै ए नाब नहीं सिर्फ देसी शराब है
-अहसन
मै ए नाब - अंगूरी शराब
निःसन्देह दिबेन सिँह जी ने द्रोपदी के माध्यम से युग सत्य को चित्रित किया है. मै अरुण जी से असहमत हूँ. हिन्द युग्म हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जो कर रहा है, वह सराहनीय है. पुरस्कार नही प्रयास अधिक महत्वपूर्ण होते है.
अहसान भाई...
सच मुच के पाठक ........!!!!!!
और यूनी कवि...... वाकई के "यूनी कवी" ....
बढिया लिखें...सुंदर लिखें...खूब लिखें....
सदा की तरह बधाई,,,,!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मन्नू जी क्या बधाई देने की परम्परा चलाई
राष्ट्रप्रेमी जी,
मैं हिन्दयुग्म का बहुत सम्मान करता हूँ हिंदी साहित्य के क्षेत्र में ये एक अतुलनीय प्रयास है..... पर जहाँ तक कविता में गुणवत्ता का विषय है..... मेरी आदत है की मैं स्पष्ट कह देता हूँ जो मुझे अच्छा नहीं लगता.....
और मनु जी.............. उनके क्या कहने वो वो तो टिप्पणियों के जादूगर हैं ....... बात तो मेरी वाली ही कहेंगे, पर इतनी घुमा फिराकर की जलेबी भी शरमा जाए ......... मैं डायरेक्ट कहता हूँ और वो इनडायरेक्ट ............उनकी प्रतिक्रिया पढने में तो कई बार कविता पढने से भी ज्यादा आनंद आता है
अरुण अद्भुत
दिबेन सिंह जी और मुहम्मद अहसन जी को हार्दिक बधाईयाँ।
वैसे अहसन जी की अपनी प्रतिभा है दक्षता भी कि वो किसी भी विषय / अवसर पर अपनी पहचान छोड़ते हैं ( यह मैं उनसे कल ही व्यक्त कर चुका हूँ) साफगोई की मैं कद्र करता हूँ।
तीनों बहुत ही अच्छे शेर कहें है, अहसन साहेब ने।
दिबेन जी कविता बहुत अच्छी लगी, जो आज की छद्म व्याहारिकता पर कड़ी चोट करती है।
दोनें यूनि-कवि और यूनि-पाठक को एक बार फिर से बधाईयाँ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
diben ji aur ahsan ji donon ko badhaai
दीबेंन जी की कविता धारदार है | गुप्त वार करती है | आंसू बाहर नहीं अंदर बहते है यह पढ़ कर ||
मोहम्मद अहसन जी इतनी व्यस्त नौकरी के बावजूद समय निकालते है यह हैरानी की बात है | ढेर सारी बधाई के साथ उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं
मनु भाई, तपन शर्मा जी, संगीता जी एवं सभी अन्य भद्र जन,
आप सब का हार्दिक धन्यवाद.
मुझे पता नहीं अब तक मनु भाई को यूनी पाठक का पुरस्कार मिला कि नहीं किन्तु इस के असली हक़दार वही हैं, उन के अतिरिक्त नीलम जी, अदुभुत जी, संगीता जी वगैरह टिप्पणियाँ देते रहते हैं उन का हक ज्यादा है.
माह मई में मुझे हिन्दयुग्म पर कई बहुत ही अच्छी कवितायेँ पढने को मिलीं जिस में फिर मनु जी की ग़ज़ल लाचार काफिया वाली का ज़िक्र सब से पहले आए गा , श्याम जी की आजाद नज़्म भी बड़ी पुर असर थी , RC की ग़ज़ल 'आदतन ' minus fusion श'एर एवं कई अन्य कवितायेँ zahen में चिपकी हुई हैं, हाँ एक और आज़ाद नज़्म थी उदास उदास सी ,कवित्री का नाम नहीं दिमाग में आ रहा है,
हिन्दयुग्म में अक्सर ही प्रितियोगिता की उच्चस्थ कवितायेँ उतनी स्तरीय नहीं होती हैं, यह मैं ने भी महसूस किया है, बहर हाल हिन्दयुग्म की अपनी कोई नीति अवश्य हो गी कि किस प्रकार की कविताओं को प्रोत्साहित किया जाना है, शाएद मैं ही बूढा और अप्रसांगिक हो गया हूँ.
अहसान जी,
अभी अभी आपके कहे शेर पढता पढता निचे तक आया....
पर आपके आखिरी कमेन्ट की आखिरी लाइन ने दिल तोड़ कर रख दिया....
आज ही कितनी बात की थी आक के बारे में ...के आप न केवल ध्यान से पढ़ते हैं...बल्कि अपनी बे-बाक राय भी देते हैं.....एक दम खुल्लम-खुल्ला...
हम आप से जब इत्तेफाक नहीं रखते तो हम भी खुल कर लिखते हैं....
इस बात से तो कोई भी इनकार नहीं कर सकता के इन सब बातों से हमें क्या लाभ मिलता है...
यदि आलोचना को नकारात्मक ही लिया जाए तो अलग बात है.....
मसलन आपने हमारी गजल की बेहद तारीफ की है,,,,इसके लिए एक बार फिर आपका आभार...
परन्तु हम इसी मंच पर किसी भी समय किसी भी रचना पर एक दम आकी राय के विरुद्ध भी हो सकते हैं................................
कारण.............??
इसी तरह से हम बहुत कुछ जान पाते हैं...बहुत कुछ सीख पाते हैं.....
जब हम किसी के भी बारे में कुछ भी अपनी आई. डी. से लिखते हैं तो इसका एक ही अर्थ होता है...
के हम आपसे बहस कर के अपना ज्ञान बढा रहे हैं...इसमें कुछ भी असुविधा जनक नहीं होना चाहिए...किसी के लिए भी नहीं.....
पर आपकी आख़िरी बात से मुझे वाकई दुःख पहुंचा है...युग्म की चाहे जो भी नीती हो....
हम आपको ऐसे लिखते भी नहीं देख सकते,,,,,
कहाँ तो हम आपसे गुजारिश करने जा रहे थे के कोई ब्लॉग वगैरह बना कर उर्दू सिखाइए...
और आप यूं कह रहे हैं....
यूनी कवि...... तथा यूनी पाठक.... को बधाई |
यूनिकवि की रचना बहुत गहरे अर्थों में है |
कवि की रचना तथ्यपरक हो,
फूंके वो जन - जन में प्राण |
रहे संयमित लेखनी-साधक,
उद्देश्य हो उसका जग कल्याण ||
मनु भाई,
आप पूरी तरेह से मुझे गलत समझे. कविता भी एक dynamic entity है. वक़्त और हालात के साथ इस का मिज़ाज बदलता रहता है. आज ग़ज़ल वो ग़ज़ल नहीं है जो ५० साल पहले थी, ५० साल पहले वाली ग़ज़ल वो नहीं जो मीर के वक़्त थी.
अगर मैं यह मैगजीन निकाल रहा होता तो अपने मिज़ाज के मुताबिक कविताओं को तरजीह देता, और अपने मिज़ाज के लोग मेरे सहयोगी होते और प्रतियोगिता के परिणाम काफी कुछ मेरे मिजाज के मुताबिक होते , बगैर किसी बेईमानी के. बस इतनी सी बात है . स्तरीय या गैर स्तरीय सब subjective यानी व्यक्ति परक है, हिन्दयुग्म की नीति से मेरा मतलब यही था ,किसी के प्रति दुराग्रह नहीं. ; हो सकता है ,शाएद कविता के प्रति रूचि के परिप्रेछ्य में मैं ही अप्रसांगिक हो गया हूँ.
शैलेश जी की जितनी तारीफ़ की जाए कम है, इस तरह की मैगजीन लिकालना बड़े दिल गुर्दे का काम है , उन्ही के बस का, उन्ही की लग्न और मेहनत का है. यह एक पूर्ण कालिक काम है जिसे वो सफलता पूर्वक अंजाम दे रहे हैं , इतना बड़ा मंच इतने लोगों को उपलब्ध करा देना मामूली बात नहीं है.
आप लोगों से वाक़ई ईर्षा होती है, इतनी अच्छी ग़ज़ल लिख लेते हैं, यहाँ जिंदगी बीत गयी मीर से ले कर शाकिर को पढ़ते पढ़ते लेकिन एक शे'एर न मौजूँ हो सका.
सस्नेह व ससम्मान ,
अहसन
यूनिकवि की कविता बेहद पसंद आई....परिचय में कुछ गड़बड़ है...मुज़फ्फरपुर बिहार में है और आपने यूपी दे रखा है...वैसे कोई फर्क नहीं पड़ता....मो अहसनस जी को भी बधाई....
सोचा कि यूनी कविता पर अपनी राय स्थिर करने के लिए इसे फिर से पढ़ा जाए. पढा, कोशिश कर के भी तारीफ़ नहीं कर पा रहा हूँ.
कविता का पहला भाग पहले भी अच्छा लगा था, फिर अच्छा लगा, दूसरे भाग पर पहुँच कर सारा उत्साह ठंढा हो गया. लगा किसी अखबार के अंदर के पन्ने के व्यंग स्तम्भ कार का स्तम्भ पढ़ रहा हूँ.
शुभ कामनाओं सहित
अहसन
thanks for all comments
diben
"....बदले में मुझे दिया है रोटी का आश्वासन,और मेरी अवैध सन्तानों को पेन्शन"। "मेरी अवैध सन्तानों" से कवि का क्या आशय है स्पष्ट नहीं है । शेष रचना पर आई प्रतिक्रियायें स्वयं काफी कुछ कह रही हैं । कवि को प्रतियोगिता जीतने की बधाई ।
यूनिकवि दिबेन सिंह और यूनिपाठक मुहम्मद अहसान जी को मेरी तरफ से मुबारकबाद. दिबेन जी की कविता वाकई यूनिकवि का सुबूत देने के लिए काफी है.
तंग अंधेरी बंद कोठरियों में
सिसकती- घुटती रही सुबकियां और
कंठ में दबी चीख,
नहीं रहे कृष्ण भी अब निर्बल के मीत
मुझे हिन्दयुग्म पर कई बहुत ही अच्छी कवितायेँ पढने को मिलीं
मानव मन पर नहीं है बंधन,
किस पर कब आ जाये ।
मनोभावनाएं सृजन कर,
अपना उसे बनाये ।।
कुछ न सोचे, कुछ न समझे,
कुछ का कुछ हो जाये ।
चलते-चलते जीवन पथ पर,
राह कहीं खोजाये।।
रंग न देखे, रूप न देखे,
आयु, जाति, रिस्तेदारी।
गुरू-शिष्य वैराग्य न देखे,
प्रेम है इन सब पर भारी।।
प्रेम में अंधा होकर प्राणी,
क्या कुछ न कर जाये ।
ठगा ठगा महसूस करे,
अंजाम देख पछताये ।।
जब टूट जाये विश्वास,
खो जाये होशोहवास।
जीवन वन जाये अभिशाप,
रिस्तों में आजाये खटास ।।
सब जानता इंसान ,
अनजान बन जाये ।
प्रेममयी माया के छटे,
गर्दिश में अपने को पाये ।।
कलंकित होकर समाज में,
खुली साँस न ले पाये ।
आत्मग्लानि से मायूस,
लज्जित हो शर्माये।।
गलतियाँ सभी से होतीं,
फिर से न दुहराओ ।
पश्चाताप करो उनका,
सपना मान भूल जाओ।।
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