माह के प्रथम सोमवार को हिन्द-युग्म एक पर्व की तरह मनाता रहा है। इन दिनों छठ पर्व की धूम है। छठ में सूर्य की उपासना की जाती है। इस सोमवार हम भी हिन्दी कविता के कवि-सूर्य और पाठक-सूर्य से आपका परिचय करा रहे हैं। मतलब अक्टूबर माह की यूनिकवि और यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम को प्रकाशित कर रहे हैं। यूनिकवि के लिए इस बार हमें कुल ३३ कविताएँ प्राप्त हुई थीं, जिसमें से जजों ने विजय कुमार सप्पत्ती की कविता 'सिलवटों की सिहरन' को यूनिकविता चुना।
यूनिकवि- विजय कुमार सप्पत्ती
मूलतः नागपुर के रहने वाले विजय कुमार सप्पत्ती वर्तमान में MIC इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड, हैदराबाद में वरिष्ठ महाप्रबंधक (मार्केटिंग) हैं। इन्हें कविता-लेखन और फोटोग्राफी से प्यार है। कविता लेखन में नये हैं। अब तक २५० से अधिक कविता लिख चुके हैं जो मुख्यतः प्रेम और संबंधों पर है।
पुरस्कृत कविता- सिलवटों की सिहरन
अक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटें बना जाता है …..
मेरे हाथ, मेरे दिल की तरह
कांपते हैं, जब मैं
उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ …..
तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छू जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था ,
मैं सिहर-सिहर जाती हूँ, कोई अजनबी बनकर तुम आते हो
और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …
तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे-धीमे उतरता है
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में,
पर तेरी मुस्कराहट,
जाने कैसे बहती चली आती है ,
न जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …..
कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
कोई माझी, तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......
मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोड़े है ........
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰२५, ४, ४॰५, ६॰७५
औसत अंक- ५॰६२५
स्थान- नौवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ७॰५, ५॰६२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७१
स्थान- पहला
पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।
चूँकि यूनिकवि ने नवम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविता प्रकाशित करने का वचन दिया है, अतः शर्तानुसार रु १०० प्रत्येक कविता के हिसाब से रु ३०० का नग़द इनाम दिया जायेगा।
हिन्द-युग्म प्रत्येक माह कम से कम १० कवियों को उपहार-स्वरूप पुस्तकें देकर इनका प्रोत्साहन करता आया है। इस बार हम जिन अन्य नौ कवियों को अनुभूति-अभिव्यक्ति की प्रधान सम्पादिका पूर्णिमा वर्मन का काव्य-संग्रह 'वक़्त के साथ’ की एक-एक प्रति भेंट करेंगे, वे हैं
मनीष मिश्रा
पूजा अनिल
सुजीत कुमार सुमन
रोहित
दिव्य प्रकाश
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
स्मिता मिश्रा
तपन शर्मा
सुनील कुमार ’सोनू’
उपर्युक्त सभी कवियों की कविताएँ १-१ करके हिन्द-युग्म पर प्रकाशित होंगी। इन सभी कवियों से निवेदन है कृपया अपनी कविता ३० नवम्बर से पहले अन्यत्र प्रकाशित न करें/ करवायें
उपर्युक्त कवियों से निवेदन है कि अक्तूबर माह की अपनी कविता-प्रविष्टि को न तो अन्यत्र कहीं प्रकाशित करें ना प्रकाशनार्थ भेजें क्योंकि हम इस माह के अंत तक एक-एक करके प्रकाशित करेंगे।
इस बार बहुत से नये पाठकों ने अक्टूबर माह के उतर्राद्ध में हिन्द-युग्म पर दस्तक दी है। जिनमें अर्श, मुहम्मद अहसन, मुफ़लिस के नाम प्रमुख हैं। हमेशा की तरह दीपाली मिश्रा ने हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा है। दीपाली अगस्त माह की यूनिपाठिका के पुरस्कार से सम्मानित भी की गई है। लेकिन इस बार हम हिन्द-युग्म को कम लेकिन संजीदा तौर पर पढ़ने वाली लक्ष्मी ढौंडियाल को यूनिपाठिका बना रहे हैं। जिनकी २-३ कविताएँ हमारे यहाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। वो अपना चित्र वगैरह हमें देने से मना करती रही हैं, इसलिए हम उनका पूरा परिचय यहाँ नहीं प्रकाशित कर पा रहे हैं।
यूनिपाठिका- लक्ष्मी ढौंडियाल
कवयित्री लक्ष्मी ढौंडियाल मूलतः गढ़वाल से हैं और हिन्दी में एम॰ए॰ किया है। वर्तमान में दिल्ली में किसी गैर सरकारी संगठन में स्टैनोग्राफर के पद पर कार्यरत हैं।
पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु २०० तक की पुस्तकें।
दूसरे से चौथे स्थान के पाठक के रूप में हमने क्रमशः नीति सागर, संजीव सलिल और मानविंदर भिंबर को चुना है, जिन्हें हम हिन्द-युग्म की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट करेंगे।
हम निम्नलिखित कवियों का भी धन्यवाद करते हैं, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर इसे सफल बनाया और यह निवेदन करते हैं कि नवम्बर २००८ की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में भी अवश्य भाग लें।
यश दीप
ज़ूबी मंसूर
दीपा मिट्टीमनी
संगीता त्रिपाठी
अरूण मित्तल
रचना श्रीवास्तव
संगीता त्रिपाठी
राशिद अली
राजी कुशवाहा
अभिलाषा शर्मा
अनुपम अग्रवाल
हरकीरत कलसी
निशांत भट्ट
अलोका
दीपाली मिश्रा
प्रदीप मनोरिया
सौरभ
राजीव सारस्वत
गोपाल कृष्ण भट्ट ’आकुल’
पारूल शानू
लक्ष्मी ढौंडियाल
नीति सागर
महेश कुमार वर्मा
जितेंद्र तिवारी
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
अति सुंदर | यूनी पाठक और उनी कवि दोनों को हार्दिक बधाई......सीमा सचदेव
कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
कोई माझी, तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......
मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोड़े है ........
आप की कविता के भाव अति सुंदर हैं
आप दोनों को मेरी तरफ़ से शुभकामनायें
सादर
रचना
विजय कुमार जी और लक्ष्मी जी को बहुत-बहुत बधाई..
विजय जी आपकी कविता पसंद आई...बहुत खुबसूरत है एक-एक पंक्ति
विजय जी और लक्ष्मी जी को बधाई...
खूबसूरत कविता...
सभी विजेताओ और प्रतियोगियो को बधाई
अच्छी कविता
सुमित भारद्वाज
चेहरा जितना खतरनाक , कविता उतनी ही प्यारी।
अब मेरे यानि अनोंइमुस के कई अवतार हो गए जो न कविता जानते हैं न कविता पर कुछ कहना और चहरे जैसे व्यक्तिगत कटाक्ष कर, अनाम का नाम बदनाम करने लग गए हैं बस आपके ब्लॉग से रुखसत लेता हूँ.वैसे इस पर अब कवितायें भी स्तरीय नहीं आतीं ,जो आती हैं वे विजिटर को समझ नहीं आती ,यानी अधकचारों की क्लास है
vijay ji aur laxmi ji ko sath jodein to. VIJAYLAXMI banta hai.deewali ke awasar par yah bahut hi sukhad sanyog hai.aap dono ko dheron shubhkamnayein.
ALOK SINGH "SAHIL"
aap ne bahut achcha likha hai.....
mai koi kavi nahi jo shabdon ko motiyaan bana , unhe piro k ek maala banadun...
itna he kehta hun sahaab...
aapko mera hai adaab...
aap jaise logon ho tho
sehre me bhi khil jaaye gulaab...
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Haath kangan ko aarsi kya yeh keh sakta hun mai aap k kvita ko dekh kar kabhi humko bhej dijiye kavita
at mramkey@gmail.com
Regards Rama
wow u write very well..Haath kangan ko aarsi kya ? itna he keh sakte hain hum....
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bhej rahe aapko hum apna adaab..
aap tho hain la javaab...
sehre me khila ho jaise gulaab...
sweekar kijiye aur bhejiye humko javaab...
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hum koi kavi nahi jo aap k bhaanti shabdon ko motiyon me dhaal k . unhe pirokar ek manmohak maala bana daale...Agar aitraaz na ho tho humko apni kavitaayen hamaare email id me bhej dijiye ga janaab..
mramkey@gmail.com
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कविता दिल को छू गयी. विजय जी को बधाई और लक्ष्मी जी को भी यूनिपाठिका बनने की बधाई!
सप्पत्ती जी,
मुझे आपकी कविता पढ़कर बहुत संतोष हुआ कि मराठी मूल के भी बहुत से कवि हिन्दी में बढ़िया कविताएँ लिख रहे हैं। तुषार जोशी जी हिन्द-युग्म पर शुरूआत से बने हुए हैं। एक दफ़ा सतीश वाघमरे भी हिन्द-युग्म पर यूनिकवि बने थे। आपको बहुत-बहुत बधाई।
लक्ष्मी ढौंडियाल जी,
आप परदे से बाहर आइए और हिन्द-युग्म के पाठकों को अपना पूरा परिचय दीजिए। बधाई तो स्वीकार ही कर लें।
शेष विजेताओं को बधाइयाँ और प्रतिभागियों से निवेदन कि जब तक सफलता मिल न जाये कविताएँ भेजते रहें।
कई अवतारों वाले 'अनाम' जी,
यह तो सच है कि यह अधकचरों की क्लास है। वैसे भी दुनिया में कोई भी पूरी तक से पक नहीं पाता है, पकने का एक ही मतलब होता है कि चू जायेगा, आम की तरह और हम-आप उसका अंतिम संस्कार कर देंगे। ऐसे देखें तो यहाँ के कवि तो शायद ही कभी पक पायें, हो सकता है कि हमेशा सीखने वालों की पंक्ति में ही बने रहें। आप रूख़सत तो ले रहे हैं कि लेकिन आपसे गुज़ारिश है कि समय-समय पर आप पधारें और यह ज़रूर बताते रहें कि आपके हिसाब से अभी और कितनी कसर बाकी है।
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