बहुत दिनों बाद आप सबसे रूबरू हो रहा हूं, बीच में कई सारी बातें हो गई हैं । जिंदगी कई सारे रास्तों से होकर गुज़र आई और गई सारे रास्ते अभी भी प्रतीक्षा में हैं । पिछली बार जब मैंने ये ग़ज़ल की कक्षायें प्रारंभ की थीं तो ऐसा लगा नहीं था कि इतने सारे लोग मिलेंगें जो ग़ज़ल सीखने के इच्छुक होंगें । जब भी कहीं किसी ब्लाग पर कोई ग़ज़ल देखता और उसके एबों की तरफ नज़र जाती तो मन दुखी हो जाता था कि कितने ख़राब तरीके से लिखी गई ग़ज़ल है । मगर बात वही है कि दुखी होने से कुछ नहीं होता । अगर आपको लगता है कि कहीं कुछ ग़लत हो रहा है तो आपको फिर बजाये इसके कि आप ये बतायें कि ग़लत क्या है, ये करना चाहिये कि लोगों को ये बतायें कि सही क्या है । क्योकि जब तक आप सही नहीं बतायेंगें तब तक लोगों को आपकी बात पर यकीन कैसे होगा कि आप सही कह रहे हैं । वो चाहे अपने ब्लाग पर ग़ज़ल की कक्षाओं की बात हो या फिर हिंद युग्म पर हो उसके पीछे मंशा ये ही थी कि ग़लती कर रहे लोगों को ये बताया जाये कि सही क्या है । कई सारे लोगों के मेल मिलते हैं कि उन्होंने अपनी पुरानी लिखी हुई ग़ज़लों को फाड़ कर फैंक दिया है क्योंकि उन्हें अपनी ग़ज़लों के सारे एब स्वयं ही नज़र आने लगे हैं । शिक्षक का काम ही ये होता है कि वो सीखने वालों को विषय में इतना पारंगत कर दे कि सीखने वालों को स्वयं ही गुण और दोष नज़र आने लगें । दरअसल में होता ये ही है कि कविता में क्रमबद्धता होती है । आप अपने को सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर लाते हैं और वो सारी कवितायें जो कि आपने केवल लिखने के लिये लिखी होती हैं वे कवितायें आपको फिर स्वयं ही लगने लगती हैं कि ये तो हमने बहुत हलका लिख दिया है । हममें से कई सारे लोग अपनी ग़लतियों को स्वीकार करने से डरते हैं । डरते हैं, का उपयोग मैं इसलिये कर रहा हूं कि हमें पता होता है कि हम ग़लत कर रहे हैं फिर भी जाने क्यों डरते हैं । और फिर ये भी कि हम एक स्थिति में ये मान ने लगते हैं कि हम तो अब सब कुछ सीख गये हैं जो भी लिख देंगें वो श्रेष्ठ ही होगा । बस यहीं से हमारे अंदर की कविता मरने लगती है । हम रुक जाते हैं ।
तिस पर भी ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जो आपकी दस अच्छाइयों को तो छुपा जाती है पर आपकी एक ग़लती को चीख चीख कर बताती है कि देख लो इस शायर ने कैसा कारनामा किया है । तो बात ये कि ग़लती का यहां पर कोई भी प्रावधान नहीं है । मगर ये भी सच है कि पिछले कुछ वर्षों से जिस विधा ने सबसे जियादह लिखने वालों का ध्यान आकर्षित किया है वो ग़ज़ल ही है । ऐसा इसलिये क्योंकि ग़ज़ल में व्याकरण के अलावा सबकी स्वतंत्रता है । गीत में तो मुश्किल ये है कि यदि आप एक भाव पर लिख रहे हैं तो उसका निर्वाह पूरे गीत में करना होता है । विशेषकर हिंदी ग़ज़लों के क्षेत्र में तो एक क्रांति सी आ रही है । ग़ज़ल में अब अरबी और फारसी के मोटे मोटे शब्द नहीं होते । अब आसान हिंदी के शब्दों पर ग़ज़लें लिखी जा रही हैं और लोकप्रिय भी हो रहीं हैं । पिछले दिनों एक सुंदर सा शेर कहीं सुनने को मिला ''समय से जूझिये यूं जाइये मत, गवाही दीजिये तुतलाइये मत'' । पूरा शेर हिंदी में हैं और गहरे पैठ कर असर छोड़ता है । अब तो उर्दू के शायर भी हिंदी के आम बोल चाल के शब्दों पर ही ग़जल लिख रहे हैं । तो मतलब ये कि हिंदी ने ग़ज़ल में अपना जो नया मोर्चा खोला है वो कई सारी संभावनाओं से भरा है, स्वयं बशीर बद्र साहब कहते हैं कि आने वाले समय के मीर और ग़ालिब हिंदी से ही आयेंगें । मगर बात वही है कि ग़ज़ल व्याकरण की स्वतंत्रता नहीं देती । आपको बहर में तो कहना ही होगा, नहीं कहा तो आपकी ही ग़ज़ल आपके ही खिलाफ चीख चीख कर गवाही देगी ।
ग़जल कविता की ही एक विधा है और ग़ज़ल का इतिहास बताता है कि ग़ज़ल का व्याकरण तैयार करने में हिन्दुस्तानी काव्य शास्त्र की मदद ली गई थी । और यही कारण है कि कई कई बहरें किसी न किसी मात्रिक छंद के अनुसार ही नजर आती हैं । इसीलिये हिंदी वालों को ग़ज़ल हमेशा से पसंद आती रही है ।
शैलेष जी से जैसी बात हुई थी उस अनुसार पूर्व की ही तरह हम दो कक्षायें सप्ताह की रखेंगें । मंगलवार को कक्षा और शुक्रवार को समस्या समाधान । एक बात का ध्यान रखें कि अपनी समस्याएं मंगलवार की कक्षा पर ही आधारित रखें उससे मुझे और आपको दोनों को आसानी होगी । एक और समस्या जो मेरे सामने आ रही है वो है मध्यप्रदेश में बिजली का संकट मैं जिस जिला मुख्यालय पर बैठा हूं वहां आठ से नौ घंटे की कटौती हो रही है । गांवों में तो केवल एक घंटे बिजली मिल रही है तो यदि मैं इस चक्कर में कभी कक्षा नहीं ले पाया तो प्रयास करूंगा कि अगले दिन कक्षा ले ली जाये ।
आज केवल मेल मुलाकात और सौजन्य भेंट का दिन था । आज चूंकि कक्षा नहीं ली गई है अत: शुक्रवार हेतु आप पिछली कक्षाओं पर आधारित प्रश्न पूछ सकते हैं । पिछली कक्षाओं में जो कुछ बताया जा चुका है हम उससे ही आगे प्रारंभ करेंगें । एक बार रीकैप करके जल्दी जल्दी में ये ज़रूर देखने की कोशिश करेंगें कि पहले हम क्या क्या कर चुके थे ।
आशा है ये दूसरा सत्र लम्बा और आप सबके लिये रोचक होगा ।
नमस्कार
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
गुरू जी
शुक्रवार की कक्षा का इंतजार रहेगा
गुरू जी,
मैने रेडियो पर कुछ गज़ले ऐसी सुनी है जिनका रदीफ एक होने से एक गजल सुनते ही दूसरी दिमाग मे घूमने लगती है
उदाहरणः
गजल-रहे ईश्क की इंतहा चाहता हूँ,
जुनूं सा कोई रहनुमा चाहता हूँ.
दूसरी- तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ ये दूसरा शायद गीत है और
एक याद नही आ रही वो भी कुछ ऐसी ही है
इसलिए रदीफ चुनते हुए दिक्कत आ रही है
सुमित भारद्वाज
"समय से जूझिये यूं जाइये मत,
गवाही दीजिये तुतलाइये मत''
सुभान अल्लाह...अब आप यहाँ आ गए हैं समझिये जानकारी का खजाना हाथ लग जाएगा और प्रसाद स्वरुप ऐसे नायाब शेर पढने को मिलेंगे सो अलग. अपनी तो लाटरी लग गई समझिये...ज़हे-नसीब जो आप आए.
नीरज
नमस्कार गुरु जी,
अब सप्ताह के दो दिनों का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.
गुरु जी प्रणाम
जब आपने यहाँ पर क्लास बंद की थी तो मेरे पास कई सवाल थे जिनका कोई जवाब मुझे सूझ नही रहा था और वो कुछ दिन कितनी बेचैनी भरे थे मेरे सिवा और कौन जान सकता है
और फ़िर आपके ब्लॉग जब मिला तो ही मन शांत हो पाया था ये क्लास जो आप यहाँ पर चलायेगे मेरे लिए भी काफी लाभदायक होगी क्योकि मैंने आपके ब्लॉग की क्लास बहुत जल्दी में पूरी की थी १ साल की क्लास लगभग १० दिन में सो मेरे लिए तो ये एक अच्छा रिविज़न होगा
क्लास शुरू होने के इंतज़ार में
आपका वीनस केसरी
गुरू जी,
मेरा होमवर्क भी जाँच लें ...प्लीज :)
लगी है कक्षा बेहतरीन ग़जलकारी की।
ग़जल है कहनी,बने का़फिया पिचकारी की॥
गुरू सुबीर सिखाया किए कानून-ए-मतला।
औ रुक्न,वज़्न,व मिसरे की कलमकारी की॥
चुना जो काफिया - रदीफ़ अपने मतले में।
शेर- दर- शेर निभा लेने की फनकारी की॥
लिखा किए थे जो कविता बना के तुकबन्दी।
कसेंगे उसको कसौटी कसीदाकारी की॥
हुए शागिर्द तो कह डालो भी मक्ता-ए-ग़जल।
तूने ‘सिद्धार्थ’ अजब सी ये अदाकारी की॥
धन्यवाद सर , आप आए ........
मै क्या कहूँ ,मेरे पास तो शब्द ही नही है कि कैसे अपनी खुशी जाहिर करूँ............
अगली क्लास का इंतज़ार रहेंगा.......
" आप आए तो हिन्दयुग्म पर बहार आ गई "
अमित अरुण साहू
हिंदी और गज़ल के बीच जो बास्ता है वो आपने बड़े ही प्यारे और एक खूबसूरत अंदाज़ मे बताया ,जो मुझे काफी पसंद आया !
खैर हिंदी युग्म पर नापसंद जैसा तो कुछ भी नहीं है !अनमोल तहों से बाकिफ कराने के लिए
शुक्रिया
संजय सेन सागर
सप्ताह के बस दो दिन....बुहुहुहुहुहुहुहुहुहु!!!!!
इतने सारे शक-सवाल हैं-लेकिन गुरू जी जैसा कि आपने कहा है ये तो धैर्य का काम है.धिमी आँच पर धिरे-धिरे पकाया जाने लायक.
शुक्र है हिन्दी-युग्म वालों.
सर,
सादर प्रणाम ,
जैसा की आज हमारी बात हो ही रही थी,और मुझे आप समझा रहे थे के अरबी और फारसी से मेरे ग़ज़ल के प्रवाह में थोड़ा सा प्रॉब्लम आरहा है और आज सुबह ही आपने मुझे कहा था की अगला ग़ज़ल का मीर या गालिब हिन्दी से ही पैदा होगा ...
मैं उमीद करता हूँ के आपका प्यार और आशीर्वाद मेरे ऊपर बना रहेगा और मैं अच्छा लिखने के लायक बन पाउँगा या मुझे लोग पसंद करेंगे..
आपका विनीत ,
अर्श
गुरु जी प्रणाम !
पिछली बार की कक्षाओं की posts पिछले दो-चार दिनों में पढी ... बहुत सारे सवाल अभी से हैं ... लेकिन आप की अब की कक्षाओं के आधार पर फिर से शुरू कर रहा हूँ. बिल्कुल ही अनाड़ी हूँ .... मात्राओं को पढने / गिनने से शुरू करना है .... लेकिन करना है .....
जैसे मन की कोई मुराद पूरी हो रही हो ...
गुरू जी,
आप बस शुरु कीजिये.. अब इंतज़ार मुश्किल हो रहा है...
गुरू जी,
अच्छा है जो क्लास फ़िर शुरू हुई। मेरे जैसे अनाड़ियों के लिये रिवीजन जरूरी था।
एक सवाल. क्या कारण है कि दुष्यंत के अलावा किसी हिन्दी ग़ज़ल कार के श'एर आम बोलचाल या भाषण इत्यादि के बीच उद्धृत नही होते हैं
मुहम्मद अहसन
पंकजी को दुबारा आने के लिए धन्यवाद |
हिंद युग्म और शैलेश को भी |
इसबार का सफर लंबा और कामयाब रहे ऐसी शुभकामनाएं
अवनीश तिवारी
"ग़ज़ल आने वाले समय की हिंदी कविता है, आने वाले समय के मीर और गालिब हिंदी से ही आयेंगें"
sach kha subir ji aapne.
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