चिड़ि़या
चिड़ि़या उड़ी
उसके पीछे दूसरी चिड़िया उड़ी
उसके पीछे तीसरी चिड़िया उड़ी
उसके पीछे चौथी चिड़िया उड़ी
और देखते ही देखते पूरा गांव कौआ हो गया।
कौआ करे कांव-कांव ।
जाग गया- पूरा गांव ।
जाग गया तो जान गया
जान गया तो मान गया
कि जो स्थिती कल थी वह आज नहीं है
अब चिड़िया पढ़-लिख चुकी हैं
किसी के आसरे की मोहताज नहीं है ।
अब आप नहीं कैद कर सकते इन्हें किसी पिंजडे़ में
ये सीख चुकी हैं -उड़ने की कला
जान चुकी हैं तोड़ना-रिश्तों के जाल
अब नहीं फंसा सकता इन्हें कोई बहेलिया
प्रेम के झूठे दाने फेंक कर
ये समझ चुकी हैं -बहेलिये की हर इक चाल
कैद हैं तो सिर्फ इसलिये कि प्यार करती हैं तुमसे ।
तुम इसे
इनकी नादानी समझने की भूल मत करना ।
इन्हें बढ़ने दो
इन्हें पढ़ने दो,
इन्हें जानने दो
इन्हें जानने दो हर उस बात को जिन्हें जानने का इन्हें पूरा हक़ है ।
ये जानना चाहती हैं
कि क्यों समझा जाता है इन्हें -पराया धन ?
क्यों होती हैं ये पिता के घर में-मेहमान ?
क्यों करते हैं पिता-कन्या दान ?
क्यों अपने ही घर की दहलीज़ पर दस्तक के लिए
मांगी जाती है -दहेज ?
क्यों करते हैं लोग इन्हें अपनाने से-परहेज ?
इन्हें जानने दो हर उस बात को
जिन्हें जानने का इन्हे पूरा हक है ।
रोकना चाहते हो,
बांधना चाहते हो
पाना चाहते हो
कौओं की तरह चीखना नहीं
चिड़ियों की तरह चहचहाना चाहते हो
तो सिर्फ एक काम करो
इन्हें प्यार करो
इतना प्यार करो कि ये जान जायँ
कि तुम इनसे प्यार करते हो ।
फिर देखना -
तुम्हारा गांव, तुम्हारा घर, तुम्हारा आंगन,
खुशियों से चहचहा उठेगा।
-देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रश्न यह है कि यह कविता है या अकविता, कविता है कि समाज सुधार सम्बन्धी भाषण या लेख. इस में कवित्व या मिठास कहाँ है, कोई गहन सोच कहाँ है.
मुहम्मद अहसन
आप की सोच सही है .उसको जानना चाहिए जो वो जानना चाहती है .सच कहा है
सादर
रचना
अहसान भाई ,
हम आप की बात से कतई इतफ़ाक नही रखते हैं ,आपने अज्ञेय जी की कवितायें नही पढ़ी हैं ,शायद | आप बहुत बड़े कविकार हैं शायद , कविता के मर्म और संदेश को समझे ,आज के परिप्रेछ्य में इससे बढ़िया संदेश और क्या हो सकता है ,देवेन्द्र जी आपकी इस तथाकथित अकिवता के सुंदर भाव के लिए आपको साधुवाद व्यक्त करना चाहूंगी
अगेय की कविता छोडिये ,या मुक्तिबोध की आप उनके नाम १००० आदमियों से पूछे पता लग्जयेगा कितने जानते हैं,उन्हीलोगों से , कबीर दिनकर महादेवी नीरज,शैलेन्द्र,हस्रात्जैपुरी,के बारे में पूचेंपता लग जायेगा,आगे व् मुक्तिबोध पाठ्य पुस्तकों के कवि हैं या बना दिए गए हैं बस ,मोहम्मद अहसान की बात ठीक है ,समझाने वाले समझ गए ना समझे वो ?
ये जानना चाहती हैं
कि क्यों समझा जाता है इन्हें -पराया धन ?
क्यों होती हैं ये पिता के घर में-मेहमान ?
क्यों करते हैं पिता-कन्या दान ?
क्यों अपने ही घर की दहलीज़ पर दस्तक के लिए
मांगी जाती है -दहेज ?
क्यों करते हैं लोग इन्हें अपनाने से-परहेज ?
बहुत सुंदर ....मुझे इस कविता में कोई कमी नही लगती.
मुहम्मद अहसान भाई-
प्रश्न के लिए शुक्रिया। अब यह कविता है या अकविता इसे हिन्दयुग्म के पाठक ही तय करें तो बेहतर है। वैसे---कफ़स के बुलबुल जो बात अच्छी लगेगी वही बात सैयाद को बुरी भी लग सकती है।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
देवेन्द्र जी,
कवि का काम केवल वस्तुस्थिति को सामने ला देना होता है। चीज़ों को समझने के लिए स्वच्छ और असली दर्षण देता है। आपकी कविता शुरूआत में ऐसा ही करती है, लेकिन अंत में आप 'do, don't do' की भाषा इस्तेमाल किये हैं जिससे कवि को बचना चाहिए। चीज़े साफ हो जायेंगी तो लोग खुद समझ जायेंगे कि क्या करना है।
शैलेश जी ने सही कहा आपकी कविता की शुरुआत बहुत अच्छी हुई और पढ़ने में मजा भी आया | आप ने जो चिडिया और कौया का उपमान दिया वो भी बहुत अच्छा लगा लेकिन बाद में एक भाषण सा लगा | वैसे कविता/ अकविता का भाव बहुत अच्छा लगा |
अगर कविता में कवित्त ही न हो तो कैसी कविता !
अज्ञेय जी की बात छोडिये .
क्या कवि ने संदेश देने या समाज सुधारने का ठेका ले रखा है . उसे तो बस कविता गाना चाहिए . कविता तो सुंदर और सरस होनी चाहिए.
हो सकता है मैं ही जाहिल हूँ !
मुहम्मद अहसन
अहसन भाई ,
हिन्दयुग्म के मंच पर कोई नाराज हो ऐसा तो न ही हो तो अच्छा है ,देखिये वैचारिक मतभेद ही तो उन्नति की ओर ले जाते है ,हम सिर्फ़ इतना कह रह हैं ,सच तो अप्रिय होता है कड़वा भी होता है ,अब आप उसमे मिठास ढूंढ रहे है ?चलिए यह भी सही , अगर कविता के माध्यम से समाज को कोई अच्छा संदेश समाज को दिया जाता है तो उसे भाषण ही क्योँ कवि की भी नातिक जिम्मेदारी बनती है अपने आसपास की बुराईयों से सारे कौओं को अवगत कराएँ | समाज की निम्न सोच आप भी इससे अनभिज्ञ नही हैं ,अगर एक को भी प्रभावित करदे तो उसका काम तो सफल हुआ |
अहसान भाई नाराजगी छोडिये और हल्ला बोल कहिये
एक बात और ये परदा नसीन कौन हैं ,जो १००० आदमी ऐसे इकट्ठे करने की बात कररहे हैं जो अगेय और मुक्तिबोध को जानते हैं ,कबीर के दोहे पढ़ा लिखा इंसान भी नही समझ पाता, तो सीधे ढंग से कही गई बात ही समझ जाए तो क्या कहना ,रही बात अगेय जी की तो ये जानते हैं ,आप ,हम और कवि महोदय बस इतना ही काफ़ी है |
हाँ एक बात भूल गया था शीर्षक पंक्ति बहुत सुंदर है .
मुहम्मद अहसन
नीलम जी,
अज्ञेय जी तो ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कवि और लेखक थे . उन्हें पढ़े लिखे लोग ही समझते हैं. हम ऐसे कविता की कम समझ रखने वाले लोग कबीर और तुलसी और बिहारी पर ही संतुष्ट हो लेते हैं.
मुहम्मद अहसन
chidiya udi.. in khaayalo ko padhke zehen me, uhaapoh si ho uthi , kavitaa akavita, kuchh vichaaro ko, bandhaano me banadhna anuchit hota hain, aapke me kuch taar kahi kahi tute hain, lekin is tarhaa kaa likhne ke liye tahe dil se aapko mubaarakbaad
ishwar aapki lekhni ko aur penaa banaaye
मोहम्मद अहसान जी के कथन में दम है और इस तरह की समीक्षा को खुले ह्रदय से स्वीकार करने से नवोदित कवियों का विकास ही होगा,
Anonymous टिप्पणियाँ भी बहुत मूल्यवान होती हैं क्योंकि उनके द्वारा व्यक्ति बिला-वजह की बुराई लिए बिना ही अपने ह्रदय की बात सामने रख सकता है. सिर्फ़ अनाम होने की वजह से उनका वजन कम नहीं आँका जा सकता है.
नीलम जी की बात में मैं इतना और जोड़ना चाहूंगा कि कबीर, रहीम, मीरा, सूर या तुलसी जैसा बनना तो असंभव सा है ही (क्योंकि आज के कवि में उनकी लगन का हजारवां हिस्सा भी ढूंढ पाना नादानी लगती है) मगर अज्ञेय की रचनाओं में भी बहुत कुछ ऐसा है जो तुकबंदी के बाहर का है. सिर्फ़ तुकबंदी का अभाव ही उन्हें अज्ञेय नहीं बनाता है.
इस कविता के कवित्व पर टिप्पणी करना मेरे लिए छोटा मुंह बड़ी बात होगा मगर यदि देवेन्द्र जी "स्थिती" जैसे शब्दों की वर्तनी ठीक कर दें और शब्दों तथा विराम चिन्हों के बीच का अवांछित स्पेस हटा दें तो कविता स्वच्छ ज़रूर हो जायेगी.
मुझे तो इसका शीर्षक ही इतना भाया कि अब तक दोहरा रहा हूं....आगे क्या कहूं
अहसान भाई को पुनः शुक्रिया कि उन्हें शीर्षक पंक्ति अच्छी लगी।
स्मार्ट इण्डियन महोदय कृपया मेरी कविता की तुलना श्रद्धेय अग्येय जी से न करें। मैं तो उनके चरणों की धूल भी नहीं। उन्होने जितना साहित्य बेकार समझकर रद्दी की टोकरी में फेंक दिया होगा उतना भी मैं नहीं लिख सका। स्थिति की वर्तनी मैं ठीक नहीं कर सकता। ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया।
दरअसल आज तक मैं यही नहीं जान सका कि कवित्त किसे कहते हैं! जब कभी संवेदना की कोई दबी नस फूट पड़ती है, शौकिया कुछ लिखकर मन हल्का कर लेता हूँ। जिसे पढ़कर किसी ने 'कविता' कहा होगा-----सो भेजने की हिमाकत कर बैठता हूँ।
शैलेश जी-
जब मैने शीर्षक पंक्ति लिखी तो 'चिड़िया' मेरे दिल में बैठ गई। मुझसे कहने लगी---मैं क्यों उड़ी ---यह तो लिखो।
जब मैने------तुम इसे उनकी नादानी समझने की भूल मत करना । ---लिखकर बात समाप्त करनी चाही तो मुझपर हंसने लगी। कहने लगी---तुम भी कायर निकले। इससे मेरा क्या लाभ होगा? और मैं वही-वही लिखता गया जो चिड़िया मुझसे कहती गई। वस्तुतः मेरे जैसा कम जानकार व्यक्ति दिल से लिखता है दिमाग से नहीं। मेरी समझ में उस साहित्य का कोई अर्थ नहीं जिससे समाज के किसी वर्ग का कोई भला न हो।
अंत में मै नीलम जी को तहेदिल से धन्यवाद देना चाहूँगा जिनकी जोरदार पैरवी ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि मेरी चिड़िया निरर्थक नहीं है।
---देवेन्द्र पाण्डेय।
priy devendrji,
chidiya wisheshan dekar kanhi aap ladkinyo ka awamulyan to nanhi kar rahe hain?
--prem ballabh pandey
देवेन्द्र जी भाई बहुत खूब आपके भाव सचमुच प्रभावी ओर सच्चे हैं ओर सभी को वास्तव में जहाँ सोचने के लिए मजबूर करते हैं वहीं सभी चिड़ियों को उड़ान भरने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं| आपका कविता की प्रेरणा पाने सम्बंधी स्पष्टीकरण भी अच्छा लगा| वास्तव में भावों को यथावत पन्ने पर उतारने से उसमें मॉलिकता बनी रहती है| एक बार फिर बधाई |
सोमेश्वर पांडे
आदरणीय प्रेम जी-
चिड़िया विशेषण नहीं माध्यम है। मेरी चिड़िया उस गाँव की है जहाँ उसके पढ़ने पर भी पाबंदियाँ लगाई जाती हैं और उड़ते देख पूरा गाँव कौए की तरह चीखने लगता है। आपकी टिप्पणी से लगा कि लड़कियों की तुलना चिड़ियों से करना भी आप लड़कियों का अवमुल्यन समझते हैं। मुझे अपनी बात कहने के लिए यही माध्यम मिला। मेरा विश्वास है कि समग्र कविता के भाव को समझ कर भी आपने यह टिप्पणी की है । मैं आपके उच्च भावनाओं की कद्र करता हूँ।
हिन्दयुग्म में आपका स्वागत है।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
behat hi umda kavita hai
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