जबसे तुम ले गये हमारी रात
हर तरफ़ हो गई भिखारी रात
चांद जैसा नहीं है, चांद तो है
बस यही सोच के गुज़ारी रात
सारा दिन इंतेज़ार करते हैं
फिर उसे ढूंढ़ते हैं सारी रात
उसने फिर मेरे दिन भी जीत लिये
बे-वजह मैंने उससे हारी रात
हमने दिन सारे बेच डाले हैं
आपके साथ है हमारी रात
--नाज़िम नक़वी
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
उसने फिर मेरे दिन भी जीत लिये
बे-वजह मैंने उससे हारी रात
हमने दिन सारे बेच डाले हैं
आपके साथ है हमारी रात
अति सुन्दर, बहुत ही भाव पूर्ण रचना,
धन्याद
विमल कुमार हेडा
चांद जैसा नहीं है, चांद तो है
बस यही सोच के गुज़ारी रात..
सुन्दर रचना!!!
बहुत सुंदर गज़ल है . बधाई .
नाजिम नकवी साहब मैंने आपको कई बार बैठक पर पढ़ा है. आप काफी शानदार रहते हैं लेकिन आज आपकी ग़ज़ल में कोई खास मज़ा नहीं आया. मुझे यह कुछ कमज़ोर ग़ज़ल लगी. वैसे यह शे'र पसंद आया.
हमने दिन सारे बेच डाले हैं
आपके साथ है हमारी रात
सुंदर रचना ...
चांद जैसा नहीं है, चांद तो है
बस यही सोच के गुज़ारी रात
कितनी खूबसूरत सी बात कह दी आपने..बहुत उम्दा!
जबसे तुम ले गये हमारी रात
हर तरफ़ हो गई भिखारी रात
खूबसूरत ग़ज़ल नाजिम साहेब, मतला ख़ास पसंद आया.
--
Regards
-Deep
उसने फिर मेरे दिन भी जीत लिये
बे-वजह मैंने उससे हारी रात
क्या बात है हुज़ूर....
बहुत शानदार शे'र है...
बे-वजह उस से मैंने हारी रात
shaamikh ne bilkul sahi kaha.
चाँद से कुछ कम बात रह गयी
चाँद से कुछ कम बात रह गयी
चाँद से कुछ कम बात रह गयी
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