सर्वप्रथम हम अपने पाठकों से माफी माँगते हैं कि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से हमें नवम्बर माह की यूनि प्रतियोगिता का परिणाम प्रकाशित करने में विलम्ब हुआ।
नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में सबसे अधिक कवियों ने भाग लिया। नवम्बर माह की यूनिकवि की होड़ में कुल 67 कवि शामिल हुए जो हिन्द-युग्म की इस मासिक प्रतियोगिता के लिए सर्वाधिक प्रतिभागिता है।
हम एक खुशख़बरी के साथ भी उपस्थित हैं कि इस परिणाम से हमारे विजेताओं को प्रतिष्ठित पत्रिका 'समयांतर' की ओर से उपहार प्रेषित किये जायेंगे। इससे व्यक्तिगत लेखकों द्वारा भेजे जाने वाले उपहारों को प्राप्त होने में होनेवाले विलम्ब से भी हम बच पायेंगे। श्रेष्ठ कविताओं का प्रकाशन भी समयांतर में किया जायेगा।
नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता का निर्णय 2 चरणों में कराया गया। पहले चरण में 2 जजों द्वारा दूसरे चरण में 3 जजों के निर्णय को शामिल किया गया। पहले चरण के निर्णय के बाद कुल 28 कविताओं को दूसरे चरण के निर्णय के लिए भेजा गया। और सभी पाँच निर्णायकों की पसंद और इनके द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर रवीन्द्र शर्मा 'रवि' की कविता 'हम कब लौटेंगे' को इस माह की सर्वश्रेष्ठ कविता चुना गया।
रवीन्द्र शर्मा 'रवि' ने अक्टूबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता से हिन्द-युग्म पर दस्तक देना शुरू किया है। अक्टूबर माह की प्रतियोगिता में भी इनकी एक ग़ज़ल ने शीर्ष 10 में स्थान बनाया था।
यूनिकवि- रवीन्द्र शर्मा 'रवि'
पंजाब के गुरदासपुर जिले के पस्नावाल गाँव में जन्मे किन्तु राजधानी दिल्ली में पले बढे रवींद्र शर्मा 'रवि 'प्रकृति को अपना पहला प्रेम मानते हैं। शहरी जीवन को बहुत नज़दीक से देखा और भोगा, किन्तु यहाँ के बनावटीपन के प्रति घृणा कभी गयी नहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स से बी॰ कॉम॰ (आनर्स ) करने के उपरांत एक राष्ट्रीय कृत बैंक में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत।
विद्यार्थी जीवन में प्राथमिक विद्यालय में ही भाषण कला में निपुण होने के कारण "नेहरु "नाम से संबोधित किया जाने लगे। सन् १९६९ में महात्मा गाँधी कि जन्मशती के दौरान अंतर विद्यालय भाषण प्रतियोगिता में दिल्ली में प्रथम पुरस्कार एवं कई अन्य पुरस्कार जीते। सन् १९७९ में नागरिक परिषद् दिल्ली द्बारा विज्ञान भवन में आयोजित आशु लेख प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाये। उसी वर्ष महाविद्यालय द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ट साहित्यकार के रूप में सन्मानित काव्य संग्रह "अंधेरों के खिलाफ", "हस्ताक्षर समय के वक्ष पर", क्षितिज कि दहलीज पर और "परिचय-राग" में कवितायें प्रकाशित। समाचार पत्र पंजाब केसरी में लगभग १२ कहानियों का प्रकाशन। इसके अतिरिक्त नवभारत टाईम्स आदि अनेक समाचार पत्रों में रचनाओं को स्थान मिला। राजधानी के लगभग सभी प्रतिष्टित मुशायरों, कवि सम्मेलनों, काव्य गोष्ठियों में लगातार काव्यपाठ। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओ का प्रसारण। दिल्ली की साहित्यिक संस्थाओं "परिचय साहित्य परिषद्", "डेल्ही सोसाइटी ऑफ़ औथोर्स", हल्का ए तशनागाना अ अदब", पोएट्स ऑफ़ डेल्ही", "आनंदम", "कवितायन","उदभव" इत्यादि से सम्बद्ध।
रवींद्र शर्मा "रवि" को इस बात का गर्व है कि उन्होंने पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरे के बारे में तब लिखना शुरू कर दिया था जब कोई इसकी बात भी नहीं करता था। रवींद्र शर्मा "रवि " का मानना है कि उनकी कविता गाँव और शहर कि हवा के घर्षण से उपजी ऊर्जा है।
पुरस्कृत कविता- हम कब लौटेंगे
बताओ बापू
हम कब लौटेंगे
अपने उसी छोटे से गाँव में
जहाँ
एक प्यारी सी सफ़ेद हवेली बनाने का सपना लेकर
तुम इस जगमगाते शहर में चले आये थे
बहुत ढेर से पैसे बटोरने
आज से कई साल पहले ....
कितना कुछ बदल गया है इस बीच ...
शहर की सड़कों की तमाम कालिख
तुम्हारी आँखों के नीचे वाले गड्ढों में सिमट आई है
साफ़ दीखता है
तुम्हारे गले की नीली नसों में
ज़हरीली दूषित हवा का रंग
अकाल पीड़ित धरती की मानिंद तुम्हारा माथा
ज्योतिष के लिए चुनौती हो गया है ..
इतने दिशाहीन हो गए हो तुम
कि अक्सर जब भी मैंने
रात के सन्नाटे में
तुमसे ध्रुवतारे के विषये में पूछा है
तो यूँ ही ऊँगली उठाते हुए
समझ नहीं पाए हो तुम
कि उत्तर कहाँ है ...
और ये भी
कि सफ़ेद दूधिया बगुलों की कतारें
इस शहर के आकाश से होकर
क्यों नहीं गुज़रती सांझ ढले ....
मैने स्वयं देखा था तुम्हें
क्षितिज तक फैले धान के खेतों को
गाकर लांघते हुए
फिर ऐसा क्या है
इन काली सपाट सड़कों में
जो चूस लेता है हर रोज़
तुम्हारी सहजता का एक हिस्सा
और हर शाम
एक सहमा हुआ व्यक्तित्व लाद कर घर ले आते हो तुम
लौट आते हो हर शाम
आधे-अधूरे से
और फिर देर रात तक करते रहते हो
बंधुआ मजदूरों कि सी बातें ...
तब मुझे अक्सर लगा है
कि तुमने सचमुच खो दी है
इन्द्रधनुषी रंगों की पहचान
और तुम्हारा इस अचेतना से लौट आना
असाध्य हो गया है शायद .....
याद करो बापू
क्या तुम्हें बिलकुल याद नहीं
जब तुमने अपना गाँव छोड़ा था ...
गाँव का आवारा पीला चाँद
बहुत दूर तक
गाड़ी के साथ दौड़ा था ...
नदियाँ-नाले फलांगता
अलसी के कुँआरे फूलों को रौंदता
बया के घोंसलों में उलझता
पोखर के पानी पर तिरता ...
और फिर जाने कहाँ गुम हो गया था
शहर की तेज चकाचौंध रोशनियों में ...
याद करो बापू
सफेदे के लम्बे वृक्ष
हाथ हिला हिला कर
रोकते रहे थे तुम्हें
और बूढ़े अनुभवी पीपल ने दूर तक
अपने सूखे पत्ते दौड़ाए थे तुम्हारे पीछे ...
तब तुमने
सफेदे के वृक्षों की तुलना
शहर की गगनचुम्बी इमारतों से की थी
इस बात से अनभिज्ञ
कि इमारत जितनी बड़ी होती है
इंसान उतना ही छोटा
और शहर में
गाँव वाला चाँद कभी नहीं उगता ...
सच कहना बापू
कैसा लगता है तुम्हें
अब उसी भीड़ का हिस्सा होना
जिसकी नियति
बदहवास दौड़ते जाने के सिवा कुछ भी नहीं
बहुत कुछ पाकर भी तुम
कुछ नहीं बटोर पाए हो
अपनी माटी की गंध भी खो आये हो ...
सुनो बापू
मैं तुम्हे आदर्श की तरह नहीं
आत्मज की तरह निभाऊंगा
तुम्हें एक बार
उसी सोंधी माटी वाले गाँव में
ज़रूर ले जाऊंगा ...
बहुत संभव है
उस गाँव के उजड्ड लोगों ने
अब भी सहेज रखे हों
इंसानियत के आदमकद अंधविश्वास ...
आओ लौट चलें बापू
शायद तुम्हारी चेतना के मरुथल में
सावनी हवाओं से हरारत आ जाए
शायद हमारा वह चाँद
किसी झाड़ में फंसा पा जाए
कोई विरही पगडण्डी
हमें स्टेशन तक लेने आ जाए ....
फिर मैं तुम्हें गाते हुए देखूंगा
और जी भर कर देखूंगा
सफ़ेद बगुले
पनघट का पीपल
जवान सफेदे
और दूर तक छिटके
सरसों के कुआरे फूल ...
बताओ बापू
हम कब लौटेंगे ....
पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। दिसम्बर माह के अन्य दो सोमवारों को कविता प्रकाशित करवाने का मौका। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें प्रेषित की जायेंगी, उनके नाम हैं-
अभिषेक कुशवाहा
मनोज कुमार
आवेश तिवारी
जतिन्दर परवाज़
भावना सक्सैना
आलोक उपाध्याय "नज़र"
संगीता सेठी
उमेश पंत
शामिख़ फ़राज़
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 3 कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
दीपक मशाल
अभिषेक पाठक
डॉ॰ अनिल चड्डा
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 दिसम्बर 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
पाठकों में राकेश कौशिक के रूप हिन्द-युग्म को बहुत ऊर्जावान पाठक मिला है। राकेश कौशिक की टिप्पणियों से ऐसा लगता है कि वे हर पोस्ट को बहुत ध्यान से पढ़ते हैं और अपनी समझ के अनुसार उसकी समीक्षा भी करते हैं। विनोद कुमार पाण्डेय ने राकेश कौशिक को कड़ी टक्कर दी। लेकिन वे काफी अनियमित रहे। इसलिए हमने राकेश कौशिक को ही यूनिपाठक बनाने का फैसला किया है।
यूनिपाठक- राकेश कौशिक
पच्चीस साल से राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नई दिल्ली में कार्यरत। वर्तमान में कार्यकारी निदेशक के निजी सहायक के पद पर कार्यरत। 15 साल पहले, अनायास ही सितम्बर के महीने में कार्यालय में मनाये जाने वाले हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत होने वाली हिंदी काव्य पाठ प्रतियोगिता से कविता लेखन की शुरूआत। लेखनी और वाणी पर माँ सरस्वती की कृपा की ऐसी बरसात हुई कि इनकी पहली कविता को ही प्रथम पुरुस्कार का सम्मान मिला। शौक को हवा लगी और हर वर्ष प्रतियोगिता के लिए कविता लिखने लगे, कवितायें लोगों को पसंद आने लगीं, कार्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुईं और कभी-कभी कविता पाठ कार्यालय की सीमाओं से बाहर भी निकलने लगे। लेखनी और वाणी पर वीणा वादिनी की अनुकम्पा होती रही ....... जारी है।
विशेष: इन्हें यदि कोई सम्मान मिलता है तो उसमें इनकी पत्नी, बेटा और बेटी का बहुत बड़ा सहयोग है।
पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र।
इस बार हमने दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के विजेता पाठकों के लिए हमने क्रमशः विनोद कुमार पांडेय, सफरचंद और डॉ॰ श्याम गुप्ता को चुना है। इन तीनों विजेताओं को भी विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें भेंट की जायेगी।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 13 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।
प्रियंका सागर
रवि ठाकुर "गाफिल"
मृत्युंजय साधक
शंकर सिंह
डॉ.कृष्ण कन्हैया
आलोक गौड़
अम्बरीष श्रीवास्तव
राकेश कौशिक
रतन कुमार शर्मा
मंजु गुप्ता
मुहम्मद अहसन
सौरभ कुमार
कुमार देव
रोहित अरोरा
अमित श्रीवास्तव
जितेन्द्र कुमार दीक्षित
राजेशा
दिवाकर कुमार रंजन (कविराज)
कमलप्रीत सिंह
स्नेह पीयूष
डॉ॰ कमल किशोर सिंह
राजीव यादव
दिव्य प्रकाश दुबे
रंजना डीने
लीना गोला
माधव माधवी
एम वर्मा
विनोद कुमार पांडेय
धर्मेन्द्र मन्नु
राम निवास 'इंडिया'
उमेश पंत
मनोज मौर्य
डॉ॰ भूपेन्द्र
कुलदीप पाल
पृथ्वीपाल रावत
अजय दुरेजा
सुनील गज्जाणी
स्वर्ण ज्योति
शारदा अरोरा
विवेक रंजन श्रीवास्तव
किशोर कुमार खोरेन्द्र
दीपक ...... इटानगर
उमेश्वर दत्त"निशीथ"
रेणू दीपक
पिंकी वाजपेयी
शन्नो अग्रवाल
भरत बिष्ट (लक्की)
अरविन्द कुरील
सुशील कुमार पटियाल
डा श्याम गुप्त
कविता रावत
एम के बिजेवार (आतिश)
चंद्रकांत सिंह
नीति सागर
अनिल यादव
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
यूनिकवि श्री रविन्द्र शर्मा रवि तथा यूनिपाठक श्री राकेश कौशिक जी को ढेर सारी बधाइयाँ
युनिकवि रविन्द्र शर्मा "रवि" को नवंबर महीने का सर्वश्रेष्ठ कवि का पुरस्कार मिलना कविता के प्रति दिखाई गई न्यायप्रियता को दर्शाया गया है। मैं जज के प्रति भी आभार प्रकट करना चाहूंगा। साथ ही कवि को भी कोटिश:धन्यवाद देना चाहूंगा। गांधी जी के आदर्शों के साथ आज के इस स्वार्थी युग ने मानवता के साथ कैसा खिलवाङ किया है वैसी ही संवेदनशीलता स्पष्टतया कविता में साफ झलकती है। पाठक कौशिक जी को भी सर्वश्रेष्ठ युनि पाठक बनने हेत बधाई।
किशोर कुमार जैन गुवाहाटी असम.
बधाई हो , बहुत ही अच्छी रचना है ये
मानवीय संवेदना की आंच में सिंधी कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है। यूनिकवि श्री रविन्द्र शर्मा रवि तथा यूनिपाठक श्री राकेश कौशिक जी को ढेर सारी बधाइयाँ।
शहर की सड़कों की तमाम कालिख
तुम्हारी आँखों के नीचे वाले गड्ढों में सिमट आई है
साफ़ दीखता है
तुम्हारे गले की नीली नसों में
ज़हरीली दूषित हवा का रंग
मार्मिक अभिव्यक्ति दिल को छू गयी कविता श्री रविन्द्र शर्मा रवि जी को बहुत बहुत बधाई युनि पाठक श्री जौशिक जी को भी बहुत बहुत बधाई
ज्यों-ज्यों शहर का तापमान बढ़ेगा
त्यों-त्यों यह कविता और जीवंत हो चुभेगी
यह प्रश्न तब और मुखर होगा-
बताओ बापू
हम कब लौटेंगे ....
इतनी बढ़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया ये हिन्द युग्म की सफलता है पूरी टीम को बधाई
रविन्द्र शर्मा जी और राकेश जी आप दोनों को बहुत बहुत बधाई .रविन्द्र जी आप की कविता पढ़ के तो मन भर आया .चन का भागना पेड़ में उलझना कितना सजीव चित्रण है
पुनः बधाई
सादर
रचना
रवींद्र शर्मा जी एवं राकेश कौशिक जी को बहुत बहुत बधाई तथा बहुत बहुत शुभ््कामानाये
हिन्द युग्म की बढती लोकप्रियता के लिए भी बहुत बहुत बधाई एवं बहुत बहुत शुभ््कामानाये
विमल कुमार हेडा
रविन्द्रजी,
इतनी सुन्दर कविता को प्रथम आना ही चाहिये था। आज सारा भारत गाँव से शहर की ओर भाग रहा है । बहुत ही जटिल समस्या को आपने अपनी रचना में अति सुन्दरता से चित्रण किया है । बधाई ।
हिंद युग्म और आप सभी का हार्दिक आभार और धन्यवाद्. युनिकवि रविन्द्र शर्मा "रवि" और उनकी कविता का सादर अभिनन्दन. राष्ट्र भाषा हिंदी के सम्मान में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्दि हो इसी आशा के साथ - राकेश कौशिक
यूनिकवि श्री रविन्द्र शर्मा "रवि" और यूनिपाठक श्री राकेश कौशिक जी को हार्दिक बधाईयाँ।
यूनि-कविता ने पलायन और फिर पुनर्वास की चाह के मध्य पले विषाद को जीवंत कर दिया है।
प्रतियोगिता में बढ़ती हुई भागिदारियाँ ही हिन्द-युग्म की अपने प्रयासों में मिली सफलता को दोहराती हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
यूनिकवि और यूनिपाठक को बहुत बहुत मुबारकबाद.
इसी के साथ मैं हिन्दयुग्म की टीम से एक बात कहना चाहूँगा कि मुझे अभी तक फरवरी माह की शीर्ष दस में आने वाली कविता का पुरूस्कार और जून माह के यूनिपाठक का पुरूस्कार (प्रशस्ति पत्र और पुस्तक) अभी तक नही मिला है.कृपया सूचित करें कब तक मिल जायेगा.
आप सभी का फिर से और तिवारी जी, शमिख फ़राज़ जी का तहे दिल से शुक्रिया - उम्मीद है कि हिन्दयुग्म से आपको जबाब मिलेगा
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राकेश कौशिक
यूनिकवि रविन्द्र शर्मा जी को तथा राकेश कौशिक जी को यूनिपाठ्क की बहुत-बहुत बधाई! बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर कविता के लिए शर्मा जी अभार! हिन्दयुग्म को हर महीने सफ़ल प्रयास और उम्दा कविताओ के चयन के लिए ढेरों बधाई !
Congratulations!!
Though, some critical appreciation--
1. The subject is too trivial. World has long back come out of this village-city oology.
Gaon ki thandi hawa aur apnapan, shahar ki makkari aur kalabazari , pata nahin kab tak hum ispe likhte rahenge.
Muaaf kijiyega par vishay me rochakta, main chaah kar bhi khoj nahin paya.
Mera nanana hai ki jab aap bhav-pravan kavita likhte hain to desh kaal aur vatavaran ka farak nahin padta. Jaise ki Maa, eeshwar aur Ishq. Sadiyon se lig ispe likhte rahe hain aur likhte rahenge. Lekin jab ap kavita me mudde uthate hain to wo samkaleen mudde hone chaiye jinse pathak tartamya sthapit kar sake.
Halanki, kavita me alankaro ko thoonsne ki koshis dikhai padtee hai par wo panditya - pradarshan adhik lagta hai bajaye ki kavita ki demand ke.
Kul milakar ek pathak ke roop me kavita mujhe bilkul prabhavit nahin kartee.
Nivedan hai ki is samalochna ko samalochna ki tarah hi lein. Ise vyaktigat roop me lena apradh hoga mere saath.
Unikavi ko bahut bahut badhaiyan....unki uplabdhi par.
सुप्रीमजी,
मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत नहीं हूं । भारत की लगभग 80% आबादी गाँव में ही बसती है । इसलिये गाँव भारत की आत्मा हुए । यदि सभी गाँववासी शहर की ओर पलायन करने लगे तो गाँव तो खाली ही हो जायेंगें और हम आधुनिकता और अपने मूल्यों के बीच भटक जायेंगें । जो व्यक्ति कवि होते हुए गाँव की जमीन से जुड़ा हुआ है तो उसे तो ये बात सतायेगी ही । और कवि अपनी बात को कहेगा ही । हाँ इस बात से सहमत हूं कि यदि किसी मुद्दे को अपनी कविता में उठाना है तो वह समसामयिक होना चाहिये । परन्तु यह एक प्रतियोगिता है और इसमें सर्वश्रेष्ठ कविता को मुद्दे या तकनीकी आधार पर नहीं चुना जा सकता। इसमें एक तुलनात्मक चयन है । आशा है आप मेरी बात समझ गये होंगें ।
रवीन्द्र जी और राकेश जी को बहुत बहुत बधाई..वाकई राकेश जी की टिप्पणी रचनाकारों में भी एक उर्जा भर देती थी..
रवीन्द्र जी आपकी कविता पढ़ी बेहद मार्मिक और भावनाओं से ओतप्रोत ..एक सुंदर विचार को दर्शाती कविता का यह रूप बेहद पसंद आया प्रतियोगिता जीतने के साथ साथ आपने कई लोगो के दिल जीत लिए इस सुंदर कविता के माध्यम से..बहुत बहुत बधाई
Ravindra Sharma 'Ravi' ki rachnaon ki sada se kayal hoon. Unikavi ke roop me unka chayan atyant swagat yogya nirnay hai. Kehna bus aur itna chahoongi ki Raviji ki shayri me ek se ek behtarin ashaar saje hain. Ho sake to unhen bhi prakashit karen. Sambhav hai, aadarniya Supremji un muddon ko khoj paayen, jinki unhen aur aaj ke samay ko apeksha hai.
-- Alka Sinha
kavita itni sundar hai ki har shahri baap se ek baar harek beta jarur puchchega ki BAPU HAM APNE GANV _GHAR KAB LAUTENGE>
very-2 nice
निश्छलता रूपी सम्पदा से मूल्यहीन अमानवीय माहौल में आने का दर्द उकेरती यह बहुत उत्कृष्ट रचना है जिसे रविन्द्र शर्मा 'रवि' की मंजी हुई कलम ही लिख सकती है/ साधुवाद.
Badhai.... kawita bhavpravan aur saayaas hai. vishay ke samsaamayik hone na hone ke viwad kee jarurat Muddaa aadharit Maasik, pakschhik patrika ko ho sakti hai(grahako ki chapal chetna ke khuraak ke liye)... mulya aadharit kawita ko nahi. Ravindra ji ka dard samayik bhi hai aur kam-s-kam maujuda daur me tatkaalik bhi. punah Badhai!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)