यह हिन्दी कविता और हिन्द-युग्म के लिए एक बहुत अच्छी बात है कि हमारे प्रतिभागी बार-बार इस प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। हमारे आयोजनों में उनकी दिलचस्पी बनी हुई है। एक बार न चुने के बाद भी बारम्बार भाग लेते हैं। उन्हें अपनी रचनाधर्मिता पर यक़ीन होता है। ऐसा ही यक़ीन था हमारे इस बार के यूनिकवि अखिलेश कुमार श्रीवास्तव को।
जुलाई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में हमें कुल 48 कविताएँ प्राप्त हुईं। पिछली बार की भाँति निर्णय दो चरणों में 3-3 जजों की मदद से हुआ। पहले चरण के निर्णय के बाद हमारे पास कुल 25 कविताएँ बची रह गईं, जिन्हें अगले चरण के 3 जजों की और अधिक अनुभवी दृष्टि से छनना था। इस तरह से 6 जजों द्वारा दिये गये अंकों के औसत के आधार पर अखिलेश कुमार श्रीवास्तव की कविता 'बहन' पहले स्थान पर आई। इससे पहले भी मई माह की प्रतियोगिता में अखिलेश की कविता 'मैं हिंदी का लेखक हूँ' ने तीसरा स्थान बनाया था।
यूनिकवि- अखिलेश कुमार श्रीवास्तव
अखिलेश कुमार श्रीवास्तव पेशे से इंजीनियर हैं। वर्तमान में जुबीलेंट ऑरगेनोसिस लिमिटेड, गजरौला (जेपी नगर) में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत हैं। हिन्द-युग्म की एक ख़ासियत यह भी रही है कि इसके अधिकांश लेखक गैरपेशेवर हैं। 14 फरवरी 1980 को गोरखपुर में जन्मे अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित संस्थान हरकोट बटलर टेक्नोलॉजिकल इंस्ट्टीयूट से केमिकल इंजीनियरिंग में बी॰टेक किया है। अब तक इनका रचनाकर्म स्वांत-सुखाय ही रहा है। कवि का मानना है कि ये यथार्थ और संवेदना के कवि हैं।
पुरस्कृत कविता- बहन
आँसू जैसी पाकीजा है माँ की छाया थोड़ी सी
उसकी दुआओं में जन्नत वो मन्नत एक जरूरी सी।
अक्सर ख्वाब दरकते देखे मैंने अपने सपनो में
चौखट पर आ जाती है ले हाथों मैं पंजीरी सी।
मोजा-बस्ता पटरी-पेन्सिल मेरे किताबों की अम्मी
मेरे टिफिन का सोंधापन थी कुल्हड़ खीर कटोरी सी।
नानी की गुड़िया है दादा जी की दवा की पुड़िया
भैया के राखी का धागा, मलिया की गुलमोहरी सी।
घर के अंदर रहा करो ये शहर भरा अजनबियों से
अम्मा के माथे की सिलवट बाबू की कमजोरी सी।
दामन आग लगा बैठे जो कसम अग्नि की खाए थे
चर चर कर के जर गयी बहना इक फूस की डोरी सी।
प्रथम चरण मिला स्थान- पाँचवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- प्रथम
पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र। अगस्त माह के अन्य तीन सोमवारों की कविता प्रकाशित करवाने का मौका।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें हम सुशील कुमार की पुस्तक 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक-एक प्रति भेंट करेंगे, उनके नाम हैं-
मंजु गुप्ता
दिव्य प्रकाश दुबे
अकेला मुसाफ़िर
सजीवन मयंक
मुहम्मद अहसन
योगेश कुमार ध्यानी ''बावरा मन''
स्वप्निल तिवारी "आतिश"
मेयनुर
डॉ भूपेन्द्र
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार अंत की 7 कविताओं के प्राप्तांक में दशमलव के दूसरे और तीसरे स्थान में भिन्नता रही, इसलिए हम अन्य जिन 7 कवियों की कविताएँ एक-एक करके प्रकाशित करेंगे, उनके नाम हैं-
आलोक उपाध्याय 'नज़र'
अनुज शुक्ला
तारव अमित
गौरव शर्मा 'लम्स'
स्मिता मिश्रा
संगीता सेठी
शोभना चौरे
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 अगस्त 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
इस बार हमारे पाठकों ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई, उससे हमें बहुत ऊर्जा मिली। हमें लगा कि हमारे कदम सार्थकता की ओर बढ़ रहे हैं। पिछले माह के यूनिपाठक शामिख़ फ़राज़ ने वार्षिक पाठक सम्मान के लिए अपनी दावेदारी मजबूत की। वहीं मंजू गुप्ता और दीपाली पंत दिवारी 'दिशा' ने इस कदर सभी मंचों को पढ़ा कि हमारे लिए इनमें से एक को चुनना बहुत मुश्किल लगा। फिर भी हमने इस माह की यूनिपाठिका के लिए दीपाली पंत तिवारी 'दिशा' को चुना, इस उम्मीद के साथ कि अगस्त माह के यूनिपाठक सम्मान के लिए अन्य प्रतिभागियों में नई ऊर्जा का संचार हो, एक चुनौती मिले, क्योंकि दीपाली के त्वरित कमेंट अपने-आप में प्रेरणास्रोत हैं।
यूनिपाठिका- दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
दीपाली पन्त तिवारी "दिशा" बैंगलौर में रहती हैं। जब ये बारहवीं कक्षा में पढ़ती थीं तभी से कविता लेखन का शौक लगा। खेलकूद, संगीत, नृत्य, तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने की रूचि भी छुटपन से है। शादी से पूर्व शिक्षण कार्य भी किया और इलैक्ट्रोनिक मीडिया से भी जुडी रहीं। इन्होंने "रेडियो प्रसारण तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार" का कोर्स किया है। आकाशवाणी रामपुर में रेडियो कलाकार के रूप में कार्य किया है। कई रेडियो वार्ताओं में भाग लिया है। बरेली के चेनल वी एम दर्पण में न्यूज रिपोर्टर, न्यूज एंकर तथा एंकर के रूप में कार्य किया है। कई स्टोरीज में तथा विज्ञापनों में आवाज़ दी है। और आजकल इंटरनेट पर खूब सक्रिय हैं।
पुरस्कार और सम्मान- सुशील कुमार के कविता-संग्रह 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक प्रति तथा प्रशस्ति-पत्र।
इस बार हमने दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के विजेता पाठकों के लिए हमने क्रमशः मंजू गुप्ता, निर्मला कपिला और सदा को चुना है। इन तीनों विजेताओं को भी सुशील कुमार के कविता-संग्रह 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक-एक प्रति भेंट की जायेगी।
इनके अलावा हम विनोद पाण्डेय, ओम आर्य, गिरिजेश राव इत्यादि का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवगत कराया।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें।
अनुराधा शर्मा
कमलप्रीत सिंह
ऋतु सरोहा
मृत्युंजय साधक
अनिल चड्डा
प्रदीप वर्मा
नागेंद्र
दिपाली "आब'
कविता रावत
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
पूजा अनिल
अनु केवलिया
अम्बरीष श्रीवास्तव
मृत्युंजय
विनोद पांडेय
गुप्ता दीपक
ब्रह्मनाथ त्रिपाठी
शन्नो अग्रवाल
सिद्धार्थ कुमार
शेली खत्री
रवि कांत 'अनमोल'
अमित अरुण साहू
नील श्रीवास्तव
देवेन्द्र कुमार मिश्रा
बोधिसत्व कस्तूरिया
फहद अहमद
सीमा सिंघल
कुलदीप अन्जुम
डा. कमल किशोर सिंह
संजय अग्रवाल
नीलेश माथुर
आलोक गौड़
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
श्रीवास्तव और दिशा जी को बहुत बहुत बधाई और आपका धन्यवाद कि आपने मुझे भी पाठकों मे सम्मान दिया आभार्
उसकी दुआओं में जन्नत वो मन्नत एक जरूरी सी
यूनिकवि श्रीवास्तव जी को बहुत-बहुत बधाई एवं यूनिपाठकों में दिशा जी के साथ-साथ मंजू गुप्ता एवं निर्मला जी को भी ढेरों बधाई ।
हिन्दयुग्म का धन्यवाद
अखिलेश जी को बधाई तथा अन्य सभी प्रतिभागियों को भी बधाई.
हमारी कोशिश आगे भी जारी रहेगी
आभार
हजारी प्रसाद द्विवदी का आज यह पाठ पढा रही थी 'क्या निराश हुआ जाये 'जिसका सार था की आशा जिन्दा है . यूनिपाठक के करीब होते हुए पता नहीं कौन बला काम कर रही है ......यूनी कवि को ,मेरे को टक्कर देने वाली प्यारी दिशा जी को कोटि -कोटि बधाई .
दिशा जी को बहुत बहुत बधाई!!!
srivastav ji bahut bahut badhai, aapko unikavi chune jane ke liye. kavita bahut khoobsurat hai aapki.
YNI KAVI AUR YUNI PATHKON KO BADHAAI....
BAHUT ACHCHEE LAGI RACHNAA....
'घर के अंदर रहा करो ये शहर भरा अजनबियों से
अम्मा के माथे की सिलवट बाबू की कमजोरी सी।
दामन आग लगा बैठे जो कसम अग्नि की खाए थे
चर चर कर के जर गयी बहना इक फूस की डोरी सी।'
अखिलेश जी, हिंदयुग्म परिवार में आपका स्वागत है....आगे भी बढ़िया कविताएं पढ़वाते रहें..
दिशा जी, आपसे क्या कहें....यूनिपाठक वगैरह तो सब कहने की बातें हैं....आप तो पहले ही से हिंदयुग्म में रच-बस गई हैं....अच्छा है, नए लोग जुड़ रहे हैं तो नए जोश से हम ज़मीनी स्तर पर भी काम कर सकेंगे...
Mari kavita ko samman dene ke liye dhayabad.
is kavita ke baare main aage charcha karunga abhi itna hi ki sahaj sabdo ki kavita pathako ko kavita ke kareeb layegi.
prayaash safal raha , hindyugm aur uske pathako ko dhanyabad.
अखिलेश जी और दिशा जी आप दोनों को बहुत बहुत बधाई हो .मंजू जी, निर्मला जी और सदा जी आप को भी बधाई हो
सादर
रचना
दीपाली जी को यूनी पाठिका बन्ने पैर बधाई.
आज के युग में हर दूसरा आदमी कवी है पर हर हजारवा आदमी भी शायद पाठक न हो.कविता सुनना आसान है पैर पढ़ना कठिन. वो भी हम जैसे लोगो को जिन्हें न कथ्य का बोध है न सिल्प का सहूर.
मैं भी लगभग कविताये सारी कविताये पड़ता हूँ युग्म पर कमेन्ट nah. इ दे पाता. आगे से ईमानदार कोशिश करूँगा.
पूरी का कोई भी शे'र अच्छा नहीं कहा जा सकता है. बल्कि पूरी ग़ज़ल ही खूबसूरत है. किसी इअक शे;र की अकेले तारीफ नहीं की जा सकती. बधाई
आँसू जैसी पाकीजा है माँ की छाया थोड़ी सी
उसकी दुआओं में जन्नत वो मन्नत एक जरूरी सी।
अक्सर ख्वाब दरकते देखे मैंने अपने सपनो में
चौखट पर आ जाती है ले हाथों मैं पंजीरी सी।
मोजा-बस्ता पटरी-पेन्सिल मेरे किताबों की अम्मी
मेरे टिफिन का सोंधापन थी कुल्हड़ खीर कटोरी सी।
नानी की गुड़िया है दादा जी की दवा की पुड़िया
भैया के राखी का धागा, मलिया की गुलमोहरी सी।
घर के अंदर रहा करो ये शहर भरा अजनबियों से
अम्मा के माथे की सिलवट बाबू की कमजोरी सी।
दामन आग लगा बैठे जो कसम अग्नि की खाए थे
चर चर कर के जर गयी बहना इक फूस की डोरी सी।
साथ ही यूनिपाठक दिशा जी को बधाई.
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