यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता से प्रकाशित होने वाली कविताओं के स्तर को लेकर व इनकी निर्णय प्रक्रिया को लेकर कई तरह के प्रश्न/आलोचनाएँ हिन्द-युग्म को प्राप्त होती रही हैं। हिन्द-युग्म अपने अंकुरणकाल से ही अपनी सभी गतिविधियों की पारदर्शिता में विश्वास करता आया है। यह मानता आया है कि पाठकों/आलोचकों के सुझावों पर अमल करके ही अपनी प्रक्रियाओं व स्तर में सुधार लाया जा सकता है। इसीलिए प्रत्येक माह की प्रतियोगिता से प्रकाशित होने वाली सभी कविताओं के साथ प्रत्येक चरण के प्रत्येक निर्णयकर्ता द्वारा दिये गये अंक को भी प्रकाशित करता है।
निर्णय की प्रक्रिया को और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से इस बार हिन्द-युग्म ने अंतिम चरण का जजमेंट भी एक से अधिक जजों द्वारा कराया। चरणों की संख्या को कम किया और निर्णयकर्ताओं की संख्या में वृद्धि की।
इस बार यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए कुल ५८ प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं, जिनमें से प्रथम चरण के निर्णायकों द्वारा दिये गये अंकों के औसत के आधार पर २३ कविताओं को दूसरे चरण यानी अंतिम चरण के निर्णय के लिए चुना गया। इस बार अंतिम चरण में भी पहले चरण के औसत अंक सम्मिलित किये गये। इस प्रकार पावस नीर की कविता 'मेरे घर चलोगे?' को यूनिकविता चुना गया। पावस नीर इससे पहले भी प्रतियोगिता में भाग लेते रहे हैं और प्रकाशित होते रहे हैं।
यूनिकवि- पावस नीर
मूलतः गुमला झारखण्ड से, १०वीं तक वहीं पढ़ाई, फिर डी॰ पी॰ एस॰ रांची से १२वीं, आजकल दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी स्नातक की पढ़ाई जारी। बचपन से घर पर साहित्य का माहौल मिला, या यूं कहें कविता घर के खाने में घुली मिली रही। पहली बार ६ठी कक्षा में किसी को प्रभावित करने के लिए कविता लिखे, खैर वो प्रयास तो असफल रहा पर कविता का प्रयास अभी भी जारी है. पहली कविता प्रभात ख़बर में छपी। फिलहाल अखबारों में स्वत्रांत लेखन के साथ कविता-लेखन का प्रयास चल रहा है
पुरस्कृत कविता- मेरे घर चलोगे?
वहाँ कोने में अकेला खड़ा है मेरा बल्ला
और कब से खपरैल पर अटकी पड़ी है भाई की गेंद
घर चलो
उसे उतारेंगे, मन बहलेगा
वही मेरे पड़ोस में फिरता है एक पोटली वाला
उसने अपने बोरे में छुपा के रखे है कितने बचपन
घर चलो
उससे थोड़ी कविता उधार मांग आएंगे
वहीं रास्ते में जो पड़ता है बूढ़ा पीपल
उसके नीचे दिन भर सोयी रहती है रात
घर चलो
उसे जगाकर पूछेंगे चाँद का पता
तुम कह रह थे कल-बड़ी गर्मी है यहाँ ?
वहाँ भी सर्दियों में भी बर्फ नहीं पड़ती कभी
शायद अभी भी पत्तों पर गिरती हो ओस
घर चलो
अंगुलिओं पर मोती का फिसलना देखेंगे
यहाँ चुभता है सूरज बहुत
घर चलो
माँ ने रोशनदान में थोड़ी धूप छुपा रखी है
बोलो ना, मेरे घर चलोगे?
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ९, ७॰२, ७, ७॰६
औसत अंक- ७॰७
स्थान- प्रथम
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ८॰५, ६॰९, ६, ७॰७(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२७५
स्थान- प्रथम
पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने मार्च माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम।
पाठकों की बात करें तो कुछ स्थाई पाठकों ने हमेशा की तरह हिन्द-युग्म को अधिकाधिक पढ़ा जिनमें सीमा गुप्ता, अल्पना वर्मा, महक, सुरिन्दर रत्ती, बर्बाद देहलवी के नाम प्रमुख हैं। मगर जिस पाठिका ने सबसे अधिक प्रभावित किया वो मार्च माह से पहले हिन्द-युग्म पर बिलकुल भी नहीं दिखाई देने वाली और मार्च माह से अचानक सक्रिय होने वाली पाठिका हैं। अंजु गर्ग ने हिन्द-युग्म के सभी मंचों की सभी प्रविष्टियों को पढ़ा, उनपर टिप्पणियाँ कीं। हिन्द-युग्म पर सबसे जल्दी टिप्पणी करने वाली पाठिका भी ये ही रहीं। इसलिए हिन्द-युग्म इन्हें मार्च माह की यूनिपाठिका चुन रहा है।
यूनिपाठिका- अंजु गर्ग
जन्म स्थान - फरीदाबाद
आयु - २१ वर्ष
शिक्षा - राजकीय महिला पॉलीटेकनिक, फरीदाबाद से कम्प्यूटर में डिप्लोमा
हिन्दी साहित्य में मेरी विशेष रुचि है, कहानियाँ, कविताएँ, उपन्यास पढ़ना बेहद पसंद है। दसवीं कक्षा में हिन्दी विषय में स्वाती पराग जब से इन्होंने पढ़ी तब से इन्हें कविता लिखने का शौक लगा। इसके लिए ये अपनी माता श्री का आभार प्रकट करती हैं जब भी इन्होंने कुछ लिखा इनकी माता ने श्रोता बन कर इनका साथ दिया है। जब भी ये किसी घटना, प्रकृति के नियम की तरफ़ सोचती हैं तो उसे कविता में ढालने की कोशिश करती हैं। मूलरूप से प्रकृति, जिंदगी, संसार की रीत, घटित घटनाओं पर लिखती हैं।
हिंद युग्म को जब से इन्होंने जाना है तब से इनका हिन्दी की तरफ़ लगाव और बढ़ गया है।
पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।
दूसरे स्थान पर इन्हीं के बराबर हिन्द-युग्म पर सक्रिय सीमा सचदेव ने भी हमें बहुत अधिका पढ़ा।
तीसरे स्थान के पाठक जीतेश नौगरैया और चौथे स्थान के पाठक एकलव्य टिप्पणियों की संख्या के मामले में तो समान रहे लेकिन अनियमित रहे।
क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के पाठकों को प्रो॰ सी॰ बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' का कविता-संग्रह 'वतन को नमन' भेंट करते हैं।
एक ख़ास व्यक्तित्व का यहाँ जिक्र करना आवश्यक है। २० मार्च के बाद हिन्द-युग्म को एक ऐसी पाठिका मिलीं जिन्हें हिन्द-युग्म पर आकर इतना अच्छा लगा कि इन्होंने इसे रोज़ की खुराक बना डाला। श्रीमती पूजा अनिल जिस गति से हिन्द-युग्म को पढ़ रही हैं, उस तरह से हिन्द-युग्म का संग्रहालय १-२ महीनों में कम पड़ जायेगा। इनकी पठनियता को नमन।
इसके अतिरिक्त अमित अरूण साहू, राज भाटिया और आशा जोगलेकर आदि पाठकों ने भी हिन्द-युग्म को समय-समय पर पढ़ा। बहुत-बहुत धन्यवाद।
स्तर को बनाये रखने के लिए हिन्द-युग्म ने अब शीर्ष १० कविताओं को ही प्रकाशित करने का निर्णय लिया है।
जिन अन्य ९ कवियों की कविताएँ इस बार प्रकाशित होंगी उनके नाम निम्नुसार हैं-
अरूण मित्तल 'अद्भुत'
नागेन्द्र पाठक
रूपेश पाण्डेय 'रूपक'
सतपाल ख़्याल
दीपेन्द्र शर्मा
देवन्द्र कुमार पाण्डेय
दीप जगदीप
डॉ॰ मीनू
सतीश वाघमरे
हिन्द-युग्म उपर्युक्त ९ कवियों को ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र 'दत्त' के काव्य-संग्रह 'एक लेखनी के सात रंग' की एक-एक प्रति भेंट करेगा।
हिन्द-युग्म उन सभी कवियों और पाठकों का आभारी है जिन्होंने हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। शेष प्रतिभागियों के नाम इस प्रकार हैं-
अनुराग आर्या
विनय के॰ जोशी
अनिल जींगर
अवनीश एस॰ तिवारी
अनिल कुमार
सुजीत कुमार सुमन
डॉ॰ महेश चंद्र गुप्ता 'खलिश'
अजय काशिव
सविता दत्ता
डॉ॰ नीरज
सीमा गुप्ता
गोविन्द शर्मा
अमित अरूण साहू
प्रदीप कुमार
रचना श्रीवास्तव
सुमीत प्रताप सिंह
सीमा सचदेव
चंदन कुमार झा
गुलशन सूकलाल
कुमार लव
प्रशेन क्यावाल
सुधीर मेशराम
विजय तिवारी
शिशिर श्रीवास्तव
विवेक कुमार पाण्डेय
अजीत पाण्डेय
जीतेश नौगरैया
तपन शर्मा
सुनील प्रताप सिंह
सी॰ आर॰ राजश्री
प्राजक्ता 'मानसी'
प्रेमचंद सहजावाला
मेनका कुमारी
अभिषेक ताम्रकर
अंजु गर्ग
नीलाश्री मित्तल
पंकज बसलियाल
सन्नी चंचलानी
अमलेन्दु त्रिपाठी
सुरिन्दर रत्ती
दीपक कुमार भनरे
देवेन्द्र कुमार मिश्रा
महक
राहुल उपाध्याय
शम्भु नाथ
जय नारायण त्रिपाठी 'अद्वितीय'
संजीव कुमार गोयल 'सत्य'
श्रवण द्विवेदी
हम यह कामना करते हैं कि आप अच्छा से अच्छा लिखें और यह निवेदन भी करते हैं कि इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाते रहें। अप्रैल माह की प्रतियोगिता के आयोजन से सम्बंधित सूचना यहाँ देखें।
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27 कविताप्रेमियों का कहना है :
सभी विजेताओं को बहुत बहुत बधाई |
नीर की रचना बिल्कुल नयी तरह की है, सूक्ष्म बातों को इन्होने बडे अच्छे तरीके से पेश किया है | बधाई |
अंजू गर्ग को बधाई |
-- अवनीश तिवारी
हिंद युग्म ने वाकई बहुत ही सराहनीय कार्य किया है नए कवियों को बढावा देना उनको पुरुस्कार देकर सम्मानित करना, एक सशक्त मंच दिया जिससे वो अपनी बात अन्तर जाल के मध्यम से विश्व के कोने कोने तक पहुँचा सकते हैं - धन्यवाद - सुरिन्दर रत्ती
पावस नीर और अंजू जी को बधाई - सुरिन्दर रत्ती
पावस नीर जी और अंजू जी को बहुत बहुत बधाई ,
पूजा अनिल
यूनी कवि पावस नीर को बहुत बहुत बधाई.
'पावस' तुम्हारा नाम बहुत प्यारा है.
तुम्हारी कविता भी बहुत अच्छी है.
हिन्दयुग्म को इस बार प्रतियोगिता में ५८ प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं जानकर बेहद खुशी हुई-यह तो अपने आप में एक उपलब्धी ही है--बधाई और शुभकामनाएं.
अंजू गर्ग जी आप को भी मुबारक बाद -और धन्यवाद ख़ास-[इसलिए कि ऐसा लगता कि यूनी पाठिका की कुर्सी दिसम्बर माह के बाद से ही महिलाओं ने कस कर पकड़ रखी है और आप ने इस बार इस में सहयोग दिया और आगे भी जारी रखियेगा-:)]
सभी पाठकों और हिन्दयुग्म टीम को भी शुभकामनाएं.
April 07, 2008 5:43 PM
सभी विजेता और प्रतियोगियो को बधाइ
यूनिकवि पावस नीर तथा यूनिपाठिका अँजू को बहुत -बहुत बधाई । कविता में भाग लेने वाले सभी कवियों को भी बधाई। कविता लिखना और प्रतियोगिता में भाग लेना बहुत प्रभावी है।
पावस जी व अंजू जी को बधाई। और सभी प्रतियोगियों का धन्यवाद। इस बार ५८ लोगों ने बाग लिया ये जानकर बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही ये आंकड़ा बढ़ता रहे।
एक और बात। हिंदयुग्म ने ३० कविताओं से घटाकर १० कवितायें प्रकाशित करने का निर्णय सही लिया है। इससे स्तर तो बढ़ेगा ही और प्रतियोगियों को भी अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलेगी। क्योंकि अब प्रकाशित करवाने के लिये और मेहनत करने की जरूरत है :-)
पावस जी और अंजू जी को बहुत बहुत बधाई . १० कविताएँ प्रकाशित करने का कदम वाकई बहुत अच्छा है. बाकि ९ कविताओं का इंतजार रहेंगा .
डा. रमा द्विवेदीsaid...
पावस नीर और अंजू गर्ग जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..
युनिकवि और युनिपाठिका दोनो को हार्दिक बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
पावस नीर और अंजू जी आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई.......सीमा सचदेव
पावस नीर और अंजू गर्ग जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..:)
Congratulations Mr Pawas and Ms Garg.
Decline in the number of the work from 30 to 10 is appreciable step to maintain the level simultaneously it encourages new writer like me to do something more poetic to be in the Top 10.
Badhai to all the participants and winners. Let’s hope we see more participant from different parts of the country as well as across the world.
Sunny Chanchlani
पावस नीर और अंजू गर्ग को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई.. एवं स्वागत..
पावस नीर जी एवं अंजू जी दोनों को बधाई। युग्म पर प्रतिभागियों की बढ़्ती संख्या सुखद है। साथ ही स्तरीयता बढ़ाने के लिए गये निर्णय स्वागतयोग्य हैं।
सभी विजेताओं खास कर पावस नीर और अंजू गर्ग जी को शुभ कामनाएं।
प्रतियोगिता में बढ़ती प्रविष्टियों की संख्या सीप में उगते नए मोतियों सा अहसास देती हैं। हिंद युग्म ऐसी सीप के समान लग रहा है, जो हिंदी के अथाह सागर में से मोती चुन चुन कर ला रहा है। शीर्ष दस कवियों को छापने का निर्णय भी वाजिब है। हीरे के परख करने को जौहरी को कसौटी सख्ती से रगड़नी ही पड़ती है। इस बार पावस को दोहरी बधाई दे दें, उनकी कविता का पंजाबी अनुवाद भेज रहा हूं। मेरी कविता को सम्मान देने के लिए आभार।
बहुत खूब !
पावस नीर ! आपके तो नाम से ही कविता टपकती है और आपने कविता में इतने मौलिक भावों को इतनी सहज अभिव्यक्ति दी है कि मैं यह पूछने पर बाध्य हूँ, "क्या मुझे अपने घर ले चलोगे ?"
अंजू जी ! युनिपाठिका बनने की बधाई ! आख़िर यह आप जैसी समर्थ एवं समर्पित पाठकों की अभिरुचि ही है जो नित नए रचनाकारों का अवतरण और पुराने रचनाकारों में प्रन्जलता आ रही है !
सर्वप्रथम मैं पारश जी को बधाई देता हूँ ...
काफी सारगर्भित कविता लिखी है आपने ..
तदुपरांत न्र्यक बंधुओं एवं विद्जानो को धन्यवाद की वो अपना कीमती समय निकलकर हिन्दी के इस तप को आगे बढ़ने एवं हम जैसे स्वतंत्र कवियों की कविताओं को पढ़ने का कसता उठाते हैं ..
साथ मी हिन्दी युग्म की टीम को बहुत बहुत बधाई एक सफल प्रयाश के लिए ..
पावस जी और अंजू जी को कोटिशः बधाई.आप दोनों आगे भी अपने परिचय के अनुसार लगे रहिए.
आलोक सिंह "साहिल"
सभी विजेता
और
प्रतियोगियो को..... बधाइ |
शुभकामनाएं |
तपती दोपहरिया में ----पावस नीर ----। वाह। मजा आ गया। बहुत दिनों के बाद एक अच्छी कविता पढ़ने को मिली। कविता की कई लाइनें हॄदय को छू जाती हैं। जैसे--वहॉ कोने में अकेला पड़ा है मेरा बल्ला और कबसे खपरैल पर अटकी पड़ी है भाई की गेंद़---------वहीं रास्ते में जो पड़ता है बूढ़ा पीपल उसके नीचे सोई रहती है रात-----------माँ ने रोशनदान में थोड़ी धूप छुपा रखी है------। पावस नीर को ढेर सारा गुलाब-ढेर सारी बधाइयाँ तथा प्रतियोगिता के जजों को अच्छे चयन के लिए धन्यवाद।---देवेन्द्र पाण्डेय-सारनाथ-वाराणसी।
पावस नीर जी और अंजू जी को बहुत बहुत बधाई ,
"सभी विजेताओं और प्रतियोगियो को बहुत बहुत बधाई"
Regards
घर चलो
अंगुलिओं पर मोती का फिसलना देखेंगे
यहाँ चुभता है सूरज बहुत
घर चलो
माँ ने रोशनदान में थोड़ी धूप छुपा रखी है
बोलो ना,
बहुत ही सुन्दर अन्दाज में बयां होती दिल की छोटी से छोटी बात बधाई ।
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