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Wednesday, May 14, 2008

माँ


माँ तेरे आँचल में मैने सरपट दौड़ लगायी थी ।
कभी लगी जो ठोकर मुझको में माँ-माँ चिल्लाई थी ॥

तेरी ऊँगली थाम कर मैने, रूक-रूक चलना सीखा था ।
माँ तेरा स्पर्श प्यार का, सचमुच कितना नीका था ॥
याद मुझे है एक-एक लोरी, तूने मुझे सुनायी थी ।
हुआ उदास मन मेरा कभी तो, तेरे पास ही आयी थी ॥
कभी लगी जो ठोकर ....................

निराहार रह मुझको माँ तू, अपना दूध पिलाती थी ।
मेरी वेदना से पहले माँ, तेरी आँख भर आती थी ॥
मेरे एक झूठ पर मुझपर, कितना तू चिल्लायी थी ।
दातुन काजल चोटी करनी, तूने ही सिखलायी थी ॥
कभी लगी जो ठोकर ....................

माँ तेरी पोषित ये डाली, आज बड़ी सी शाख हुई ।
मुझे पता है मेरी खातिर माँ तू एक दिन राख हुई ॥
नही छूट सकता ये बंधन प्रान पखेरू उड़ने तक ।
नही छोड़कर जाने की तो क़सम तूने भी खाई थी ॥
कभी लगी जो ठोकर ....................

धन्य धन्य माँ धन्य कोटि तू ये तेरी प्रभुताई थी ॥
धन्य धन्य माँ धन्य कोटि तू ये तेरी प्रभुताई थी ॥
धन्य धन्य माँ धन्य कोटि तू ये तेरी प्रभुताई थी ॥

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

राघव जी
सुंदर लिखा है.

सीमा सचदेव का कहना है कि -

नही छूट सकता ये बंधन प्रान पखेरू उड़ने तक ।
नही छोड़कर जाने की तो क़सम तूने भी खाई थी ॥
माँ के लिए बहुत ही प्यारी कविता |

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

निराहार रह मुझको माँ तू, अपना दूध पिलाती थी ।

-- क्या खूब लिखा है |

अवनीश तिवारी

Prabhakar Pandey का कहना है कि -

सुंदरतम रचना।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

तेरी ऊँगली थाम कर मैने, रूक-रूक चलना सीखा था ।
माँ तेरा स्पर्श प्यार का, सचमुच कितना नीका था ॥
याद मुझे है एक-एक लोरी, तूने मुझे सुनायी थी ।
हुआ उदास मन मेरा कभी तो, तेरे पास ही आयी थी ॥
कभी लगी जो ठोकर ....................

वाह अलग सी लगी यह कविता राघव जी ..माँ पर लिखा बहुत ही अच्छा लगा इस रूप में भी :)

Anonymous का कहना है कि -

राघव जी,बेहतरीन कविता,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

माँ तेरा स्पर्श प्यार का, सचमुच कितना नीका था ॥
याद मुझे है एक-एक लोरी, तूने मुझे सुनायी थी ।
हुआ उदास मन मेरा कभी तो, तेरे पास ही आयी थी ॥
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...बधाई
सुनीता यादव

ममता पंडित का कहना है कि -

माँ तेरे आँचल में मैने सरपट दौड़ लगायी थी ।
कभी लगी जो ठोकर मुझको में माँ-माँ चिल्लाई थी ||

सच है आज भी जब ठोकर लगती है, सबसे पहले माँ ही याद आती है, बहुत ही सुंदर रचना, राघव जी बधाई |

Unknown का कहना है कि -

Raghav it's really very nice.......poem.

all d best for your future

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

माँ विषय पर लिखी रचनाओं की समीक्षा हो ही नहीं सकती। इस शब्द में ही कविता है और आपने तो समंदर लिख दिया..

***राजीव रंजन प्रसाद

Pooja Anil का कहना है कि -

भूपेंद्र राघव जी ,

माँ के लिए जो भी लिखा जाए अच्छा ही होता है, माँ के लिए लिखी आपकी भावनाएँ भी पसंद आई , शुभकामनाएँ

^^पूजा अनिल

विश्व दीपक का कहना है कि -

प्रभुताई शब्द होता है क्या? ;)

कविता टुकड़ों में बेहद अच्छी है। एक साथ पढने पर "माँ तेरी...... खाई थी" वाला पैराग्राफ थोड़ा अलग-सा लगता है और मेरे अनुसार इसमें फिट नहीं बैठता। लेकिन अलग से वो भी बहुत अच्छा है।

माँ पर कविता लिखने के लिए बहुत-बहुत बधाई।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Gyaana-Alka Madhusoodan Patel का कहना है कि -

maa ka nam hi to maatrashakti he.jisne pavitra shabda ki mahima samajh li vo jeevan me kabhi har nahi sakta kyoki uska drashtikona hi badal jata he.achchi soch leker aage badna hi uska uddeshya ban jata he.
kavi bandhu raghavjee ko unke sunder vicharo ko behatreen roop se prastut karne k hardik badhai.
ek pathika+sahityakaar
alka madhusoodan patel

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

राघव जी ,
माँ का क्या महत्त्व होता है एक बच्चे के जीवन में उसे कितनी अच्छी तरह उकेरा है आपने कविता में. धन्यबाद.

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

इस कविता का पढ़ कर अगर मैंने टिपण्णी नहीं की.. तो मैंने माँ शब्द का अर्थ नहीं समझ पाया..

मैंने इस कविता पढ़ कर फिर से वो प्यार जीवंत किया..

सादर
शैलेश

chenlili का कहना है कि -

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Anonymous का कहना है कि -

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