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Saturday, January 03, 2009

दोहा गोष्ठी ३ : दोहा सबका मीत है


दोहा सबका मीत है, सब दोहे के मीत.
नए साल में नेह की, 'सलिल' नयी हो नीत.

सुधि का संबल पा बनें, मानव से इन्सान.
शान्ति सौख्य संतोष दो, मुझको हे भगवान.

गुप्त चित्र निज रख सकूँ, निर्मल-उज्ज्वल नाथ.
औरों की करने मदद, बढ़े रहें मम हाथ.

कबीर
नए साल में आपको, मिले सफलता-हर्ष.
नेह नर्मदा नित नहा, पायें नव उत्कर्ष.

नए वर्ष की रश्मि दे, खुशियाँ कीर्ति समृद्धि.
पा जीवन में पूर्णता, करें राष्ट्र की वृद्धि.

जन-वाणी हिन्दी बने, जग-वाणी हम धन्य.
इसके जैसी है नहीं, भाषा कोई अन्य.

'सलिल' शीश ऊंचा रखें, नहीं झुकाएँ माथ.
ज्यों की त्यों चादर रहे, वर दो हे जगनाथ.


दोहा गोष्ठी में दोहा रसिकों का स्वागत.

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब.
पल में परलय होयेगी, बहुरि करेगो कब्ब.

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर.
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर.

दोहे रचे कबीर ने, शब्द-शब्द है सत्य.
जन-गण के मन में बसे, बनकर सूक्ति अनित्य.

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय.
टूटे तो फ़िर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय.


दोहा संसार के राजपथ से जनपथ तक जिस दोहाकार के चरण चिह्न अमर तथा अमिट हैं वह हैं कबीर ( संवत १४५५ - संवत १५७५ )। कबीर के दोहे इतने सरल की अनपढ़ इन्सान भी सरलता से बूझ ले, साथ ही इतने कठिन की दिग्गज से दिग्गज विद्वान् भी न समझ पाये। हिंदू कर्मकांड और मुस्लिम फिरकापरस्ती का निडरता से विरोध करने वाले कबीर निर्गुण भावधारा के गृहस्थ संत थे। कबीर वाणी का संग्रह बीजक है जिसमें रमैनी, सबद और साखी हैं।

रहीम
मुगल सम्राट अकबर के पराक्रमी अभिभावक बैरम खान खानखाना के पुत्र अब्दुर्रहीम खानखाना उर्फ़ रहीम ( संवत १६१० - संवत १६८२) अरबी, फारसी, तुर्की, संस्कृत और हिन्दी के विद्वान, वीर योद्धा, दानवीर तथा राम-कृष्ण-शिव आदि के भक्त कवि थे। रहीम का नीति तथा शृंगार विषयक दोहे हिन्दी के सारस्वत कोष के रत्न हैं। बरवै नायिका भेद, नगर शोभा, मदनाष्टक, श्रृंगार सोरठा, खेट कौतुकं ( ज्योतिष-ग्रन्थ) तथा रहीम काव्य के रचियता रहीम की भाषा बृज एवं अवधी से प्रभावित है। रहीम का एक प्रसिद्ध दोहा देखिये-

नैन सलोने अधर मधु, कहि रहीम घटि कौन?
मीठा भावे लोन पर, अरु मीठे पर लोन।


कबीर-रहीम आदि को भुलाने की सलाह हिन्द-युग्म के वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि की आसंदी से श्री राजेन्द्र यादव द्वारा दी जा चुकी है किंतु...

पूजा जी! छंद क्या है? पाठ २ में देखें. दोहा क्या है? यह बिना कुछ कहे शुरू से अब तक कहा जा रहा है। अगले किसी पाठ में परिभाषा यथास्थान दी जायेगी। श्लोक संस्कृत काव्य में छंद का रूप है जो कथ्य के अनुसार कम या अधिक लम्बी, कम या ज्यादा पंक्तियों का होता है। इन तीनों में अन्तर यह है कि छंदशास्त्र में वर्णित नियमों के अनुरूप पूर्व निर्धारित संख्या, क्रम, गति, यति का पालन करते हुए की गयी काव्य रचना छंद है।
श्लोक तथा दोहा क्रमशः संस्कृत तथा हिन्दी भाषा के छंद हैं। ग्वालियर निवास स्वामी ॐ कौशल के अनुसार-

दोहे की हर बात में, बात बात में बात.
ज्यों केले के पात में, पात-पात में पात.


श्लोक से आशय किसी पद्यांश से होता है जो सामान्यतः किसी स्तोत्र (देव-स्तुति) का भाग होता है। श्लोक की पंक्ति संख्या तथा पंक्ति की लम्बाई परिवर्तनशील होती है।

तन्हाजी! 'ग्री' के उच्चारण में लगनेवाला समय 'कृ' के उच्चारण में लगनेवाले समय से दूना है इसलिए ग्रीष्मः = ग्रीष् 3 + म: २ +५ तथा कृष्ण: = कृष् २ + ण: २ = ४। हृदयं = ४, हृदयः = ४, हृदय = ३। पाठ ३ में य पर बिंदी न होना टंकण-त्रुटि है।

दोहा घणां पुराणां छंद:


११ वीं सदी के महाकवि कल्लोल की अमर कृति 'ढोला-मारूर दोहा' में 'दोहा घणां पुराणां छंद' कहकर दोहा को सराहा गया है। राजा नल के पुत्र ढोला तथा पूंगलराज की पुत्री मारू की प्रेमकहानी को दोहा ने ही अमर कर दिया।

सोरठियो दूहो भलो, भलि मरिवणि री बात.
जोबन छाई घण भली, तारा छाई रात.


आतंकवादियों द्वारा कुछ लोगों को बंदी बना लिया जाय तो उनके संबंधी हाहाकार मचाने लगते हैं, प्रेस इतना दुष्प्रचार करने लगती है कि सरकार आतंकवादियों को कंधार पहुँचाने पर विवश हो जाती है। एक मंत्री की लड़की को बंधक बना लिए जाने पर भी आतंकवादी छोड़े जाते हैं। मुम्बई बम विस्फोट के बाद भी रुदन करते चेहरे हजारों बार दिखानेवाली मीडिया ने पूरे देश को भयभीत कर दिया।

संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश तीनों में दोहा कहनेवाले, 'शब्दानुशासन' के रचयिता हेमचन्द्र रचित दोहा बताता है कि ऐसी परिस्थिति में कितना धैर्य रखना चाहिए।

भल्ला हुआ जू मारिआ, बहिणि म्हारा कंतु.
लज्जज्जंतु वयंसि यहु, जह भग्गा घर एन्तु.


अर्थात - भला हुआ मारा गया, मेरा बहिन सुहाग.
मर जाती मैं लाज से, जो आता घर भाग.

अम्हे थोवा रिउ बहुअ, कायर एंव भणन्ति.
मुद्धि निहालहि गयण फलु, कह जण जाण्ह करंति.

भाय न कायर भगोड़ा, सुख कम दुःख अधिकाय.
देख युद्ध फल क्या कहूँ, कुछ भी कहा न जाय.


गोष्ठी के अंत में : तेरा तुझको तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा-

जग सारा अपना लिया, बिसरा मुझको आज.
दुखी किया आचार्य जी, मनु सचमुच नाराज.

दोहों में संजीव जी, छूटा मनु का नाम.
विवश हुए आचार्य जी, उत्तर दें तज काम.

दोहे की महिमा पढी, हुआ ह्रदय को हर्ष.
हमें अगर विस्मृत किया, क्यों होगा उत्कर्ष.

दिल गदगद है खुशी से, आँखों में मुस्कान.
दोहा शोभा युग्म पर, सलिल सदृश गतिमान.

दोहा गाथा से बढ़ा, हिन्दयुग्म का मान.
हर दोहे में निहित है, गहरा-गहरा ज्ञान.

पिछड़ गयी तो क्या हुआ, सीमा आयीं आज.
सबसे आगे जायेंगी, शीघ्र ग्रहण कर राज.

सलिल-धार सम बह रहा, दोहा गहरी धार.
हमें भुला कर तोड़ दी, क्यों सीमा सरकार.

बिन सीमा होगी सलिल, धारा बेपरवाह.
सीमा में रह बहेगी, तभी मिलेगी थाह.

देर हुई दरबार में, क्षमा करें महाराज.
दोहा महफिल में हमें, करें सम्मिलित आप.

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2 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजना का कहना है कि -

वाह वाह वाह !
अतिसुन्दर आलेख और मन मुग्ध करते दोहे..आनंद आ गया पढ़कर.
बहुत बहुत आभार.

manu का कहना है कि -

आचार्य को प्रणाम ...........सही कहा आपने....दोहो को भुलाने की शिक्षा मुख्या अतिथि द्बारा दी जा चुकी है.....मैं भी वही ग्रहण कर रहा था ...सो देर से पहुंचा ....आशा है क्षमा करेंगे.....

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