फटाफट (25 नई पोस्ट):

Monday, December 06, 2010

जरूरी संवादों के संग नवंबर यूनिप्रतियोगिता के परिणाम


   संक्रामक गति से से बढते बाजारीकरण के बीच जहाँ कि हमारे जीवन की मूलभूत चीजें भी उत्पादों मे तब्दील होती जा रही हों और आर्थिक ताकतें हमारे विचारों पर भी कब्जा जमाती जा रही हों, वहाँ साहित्य बाजारवाद के इन बढ़ते खतरों से परे नही है। पठनीयता के क्षरण के इस दौर मे जबकि सार्थक लेखन हाशिये पर धकेला जा रहा है, शब्दों का अपने अस्तित्व के प्रति संघर्ष और ज्यादा अहम होता जा रहा है। साहित्य की तमाम विधाओं के संग कविता भी बाजारी-अतिक्रमण के इसी संकट से जूझ रही है। नितदिन बढ़ती चुनौतियों के बीच तमाम गंभीर साहित्यिक पत्रिकाओं का कोमा मे पहुँचते जाना, समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं मे कविता के सिकुड़ते कॉलम, कविता-संग्रहों के संस्करणों के घटते प्रकाशन और साहित्यिक मंचों पर लोकप्रिय कविताओं का जमीनी सरोकारों से परे होते जाना कविता के इसी संक्रमण-काल के संकेत हैं।
    घटती पठनीयता के इस दौर मे इंटरनेट संचार और संवाद के सबसे त्वरित और ग्लोबल माध्यम के रूप मे उभरा है। हिंद-युग्म पर हमारा प्रयास इंटरनेट की इसी ताकत का सहारा लेते हुए सामयिक साहित्य को आम पाठक से जोड़े रखने का रहा है। हमारी मासिक यूनिप्रतियोगिता इसी की एक कड़ी है जिसकी लोकप्रियता ही इसकी सफ़लता का सबूत है। प्रतियोगिता को हर माह तमाम प्रतिभागियों और पाठकों से मिलता समर्थन हमारे लिये अत्यधिक उत्साह की बात है। यह इंटरनेट के वैश्विक पाठक वर्ग के बीच हिंदी के प्रचार के हमारे प्रयासों के सफ़लता ही है कि हिंद-युग्म के कविता पृष्ठ को प्रतिदिन एक हजार से कहीं अधिक हिट्स मिलते हैं।  मगर इंटरनेट पर सार्थक पठनीयता की मशाल जलाये रखने के लिये और वर्तमान कविता के अपने समय के साथ आम आदमी और उसके सरोकारों से जुड़े रहने के इन प्रया्सों के लिये हमारे पाठकों का समर्थन और सक्रिय मार्गदर्शन सबसे जरूरी शर्त है।

   इस बार यूनिप्रतियोगिता के नवंबर-2010 संस्करण के परिणाम ले कर हम उपस्थित हैं। परिणामों पर जाने से पहले हम सभी प्रतिभागियों और सारे पाठकों का आभार प्रकट करना चाहेंगे जिनके निरंतर समर्थन और मार्गदर्शन से यूनिप्रतियोगिता अपने 47 संस्करण निर्बाध पूरे कर सकी है। नवंबर माह मे कुल 41 कवियों ने भाग लिया। पिछले माहों की तरह इस बार भी अंक-निर्धारण दो चरणों मे किया गया। इस बार कविताओं की कुल संख्या भले ही पिछले महीनों से कुछ कम रही हो, मगर एक साथ कई समान रूप से अच्छी कविताएँ आने से निर्णायकों का काम कुछ मुश्किल रहा और कविताओं के बीच अंकों का अंतर भी कम रहा। पहले चरण के 3 निर्णायकों के दिये अंकों के आधार पर कुल 21 कविताएं दूसरे चरण मे गयीं। दूसरे चरण मे दो निर्णायकों ने उन कविताओं को उनके शिल्प, विषय की सामयिकता, कथ्य की नवीनता और स्रजनशीलता जैसे मानकों पर आँक कर उन्हे अंक दिये। इस तरह अंतिम वरीयता के आधार पर कुल 14 कविताएं हिंद-युग्म पर प्रकाशन के लिये छाँटी गयीं। नवंबर माह के यूनिकवि का सम्मान वसीम अकरम को मिला जिनकी कविता ’संवाद जरूरी है’ इस माह की यूनिकविता बनी है।

यूनिकवि: वसीम अकरम

   वैसे हिंद-युग्म के नियमित पाठकों के लिये वसीम अकरम कोई नया नाम नही हैं। इससे पहले इनकी दो कविताएं हिंद-युग्म पर प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी पहली कविता ’खाप सरपंच’ मई माह मे चौथे स्थान पर रही थी, फिर जून माह मे इनकी कविता ’दहशतगर्दी’ भी बारहवें स्थान पर प्रकाशित हुई थी। वसीम अकरम का जन्म उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद मे हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्यिक अंग्रेजी मे स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल करने वाले वसीम बचपन से ही पठन-पाठन मे सक्रिय रहे हैं। इन्होने गज़ल, कविता, लेख, कहानी आदि कई विधाओं मे हाथ आजमाया है और इनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित भी होती रही हैं। इनकी रुचि लेखन के अलावा गायन मे भी रही है और इनके शब्दों और सुरों से सजा हुआ एक एलबम ’नैना मिला के’ भी रिलीज हो चुका है और एक अन्य एल्बम पर काम चल रहा है। अभी दिल्ली मे स्वतंत्र पत्रकार की हैसियत से कार्य कर रहे हैं और मयूर विहार, दिल्ली मे निवास कर रहे हैं। इनके लेख तमाम समाचार पत्रों मे आते रहते हैं।
वसीम अकरम की ज्यादातर कविताएं हमारे बीच मौजूद सामयिक समस्याओं को अपना विषय बनाती हैं और सामाजिक विसंगतियों के मुकाबिल अपनी आवाज बुलंद करती हैं। प्रस्तुत कविता भी शोषण के खिलाफ़ वंचितों के संघर्ष के इसी स्वर को परवाज देते हुए हमारे समय के सबसे जरूरी प्रश्नों को टालने की बजाय उनका सामना करने की जरूरत पर बल देती है।
संपर्क: 9899170273


यूनिकविता: संवाद ज़रूरी है

संवाद ज़रूरी है
सुबह, शाम और रात के उन लम्हों से
जो ख़ूबसूरत होते हुए भी
कुछ के लिए
किसी भयानक टीस की तरह हैं।

संवाद ज़रूरी है
उन मुट्ठियों से
जो हक़ के लिए तनने से पहले ही
डर जाती हैं कि कहीं
पूरा हाथ ही न काट दिया जाये।

स्ंवाद ज़रूरी है
उस घर से
जिस घर में युवराज के
छद्म कदम तो पड़ते हैं
मगर रोटी के चंद टुकड़ों के
लड़खड़ाते क़दम भी नहीं पड़ते।

स्ंवाद ज़रूरी है
उस पैसे से
जो अनाज के दानों पर लिखे
ग़रीब, मज़दूर के नामों को काट कर
उस पर अमीरों का नाम लिख देता है।

संवाद ज़रूरी है
उन आर्थिक नीतियों से

जो देश को महाशक्ति तो बनाती हैं
मगर भूखों के पेट में
दो दाने भी नहीं उड़ेल पातीं।

संवाद ज़रूरी है
धर्म के उन ठेकेदारों से
जो ईंट, पत्थर से बनी बेजान इमारतों के लिए
इंसान को इंसान के ख़ून का
प्यासा बना देते हैं।

स्ंवाद ज़रूरी है
उस आधी दुनिया से
जिसका दामन हक़ से खाली है,
और जो बाजारवाद की बलिबेदी पर
मजबूर है चढ़ने के लिए।

संवाद ज़रूरी है
उन ग़रीब के बच्चों से
जिनकी आंखों में
आसमां छूने का ख़्वाब तो है
मगर जूठे बरतन धोने के सिवा
कोई पंख नहीं है उनके पास।

संवाद ज़रूरी है
हर उस शय से
जिसकी ज़द में आकर
तहज़ीब, रवायत और इंसानियत
सब अपना वजूद खो रहे हैं।
______________________________________________________________
पुरस्कार और सम्मान-   विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

  इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं

डॉ॰ सुरेश तिवारी
शाहिद मिर्जा शाहिद
उमेश पंत
संगीता सेठी
नवीन चतुर्वेदी
आलोक उपाध्याय
स्वप्निल तिवारी 'आतिश'
धर्मेंद्र कुमार सिंह
आलोक तिवारी

हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त अन्य भी कई कविताएं प्रकाशित करते हैं। इस बार जिन चार अन्य कवियों की कविता प्रकाशित करेंगे उनके नाम हैं-

सुधांशु शेखर पांडेय ’प्रफ़ुल्ल’
रंजना डीन
अनिल जिंगर ’फ़राग’
आशीष पंत

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 दिसंबर 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

  हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले शेष कवियों के नाम निम्नांकित हैं

प्रशांत श्रीवास्तव
रानी विशाल
नीलेश माथुर
आकुल
नरेंद्र कुमार तोमर
देवेश पांडे
स्नेह सोनकर पीयुष
अशोक शर्मा
पूज़ा तोमर
नूरैन अंसारी
सनी कुमार
डॉ श्याम गुप्ता
बोधिसत्व कस्तुरिया
अश्विनी राय
विमला किशोर
धर्मेंद्र मन्नू
शीलक राम जांगड़
मिहिर रंजन पात्र
मयंक सिंह सचान
राकेश पुरी
डॉ राजीव श्रीवास्तव
इस्मत जैदी ’शेफ़ा’
शोभा रस्तोगी
डॉ अनिल चड्डा
योगेश कुमार ध्यानी
ऋषभ मिश्रा
रवि शंकर पांडे

नोट- जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि यूनिपाठक/यूनिपाठिका का सम्मान हम वार्षिक पाठक सम्मान के तौर पर सुरक्षित रख रहे हैं। वार्षिक सम्मानों की घोषणा वर्ष के अंत में की जायेगी और हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव 2010 में उन्हें सम्मानित किया जायेगा।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

8 कविताप्रेमियों का कहना है :

rachana का कहना है कि -

संवाद ज़रूरी है
उन ग़रीब के बच्चों से
जिनकी आंखों में
आसमां छूने का ख़्वाब तो है
मगर जूठे बरतन धोने के सिवा
कोई पंख नहीं है उनके पास।
bahut sunder aap ko bahut bahut badhai
rachana

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

संवाद ज़रूरी है
हर उस शय से
जिसकी ज़द में आकर
तहज़ीब, रवायत और इंसानियत
सब अपना वजूद खो रहे हैं।

सुन्दर कविता के लिए बधाई स्वीकार कीजिए

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

भाई वसीम अकरम जी प्रतियोगिता जीतने पर बहुत बहुत बधाई| आपने तो तीनों स्टम्प उखाड़ दिए|

आज की युवा पीढ़ी को साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न देखना वाकई एक सुखद अनुभव है| धन्य हैं आप और धन्य हैं आपके संस्कार| परवरदिगार आप को सदा सलामत रखे और आप यूँही साहित्य की सेवा के लिए समर्पित रहें| आपकी कविता के कुछ हिस्से - जो सीधे कलेजे को चीर के अंदर उतर गये और जो मुझे बहुत पसंद आए, वो ये हैं:-

युवराज के छद्म कदम.................
बाजारवाद की बलिबेदी पर................
जूठे बरतन धोने के सिवा कोई पंख नहीं है.....
जिसकी ज़द में आकर..............

इस का मतलब ये मत समझना वसीम भाई कि मुझे बाकी हिस्से अच्छे नहीं लगे| अलबत्ता, ये वो हिस्से हैं जिन्होने रोका और पढ़ कर सोचने पर विवश किया|

बहुत बहुत बधाई वसीम| जीते रहो प्यारे और पढ़ाते रहो और भी मजेदार कविताएँ|

चलते चलते, बहुत बहुत आभार हिंद युग्म टीम का ऐसे सुंदर और सराहनीय प्रयासों के लिए| और साथ में बहुत बहुत धन्यवाद भाई धर्मेन्द्र कुमार का यहाँ का पता ठिकाना देने के लिए|

सदा का कहना है कि -

संवाद ज़रूरी है
हर उस शय से
जिसकी ज़द में आकर
तहज़ीब, रवायत और इंसानियत
सब अपना वजूद खो रहे हैं ...

बहुत ही सुन्‍दर ...बधाई के साथ शुभकामनायें ।

Anonymous का कहना है कि -

जो देश को महाशक्ति तो बनाती हैं
मगर भूखों के पेट में
दो दाने भी नहीं उड़ेल पातीं।
सार्थक!सार्थक! साथक! क्या बात है वसीम जी ! पहले तो बधाई है आपको यूनिकवि बनने के लिए! इससे पहले भी आपकी रचनाओं को पढ़ा है . झकझोर कर रख देने वाली और सच्चाई से रुबरु कराती है आपकी कविताएं! हिन्दयुग्म को प्रतियोगिता की गरिमा बनाए रखने के लिए बधाई और आभार!

Mrityunjay Kumar Srivastava का कहना है कि -

कवि ने बहुमुखी सतर्कता के साथ जीवन की बहुविध हलचलों को जिस प्रकार अपनी रचना में समेटा है,वह स्तुत्य है.....जूठे बरतन धोने के सिवा
कोई पंख नहीं है उनके पास......यह पंक्ति ह्रदय को छू गई......कवि को साधुवाद.....जोरे कलम और जियादा................

इस्मत ज़ैदी का कहना है कि -

वसीम साहब सब से पहले तो आप बधाई स्वीकार करें
बेहतरीन कविता है ,बहुत ख़ूब!
ख़ास बात ये है कि कविता की हर पंक्ति ख़ुद को पढ़वा रही है और मानव मन को झिंझोड़ रही है

संवाद ज़रूरी है
हर उस शय से
जिसकी ज़द में आकर
तहज़ीब, रवायत और इंसानियत
सब अपना वजूद खो रहे हैं।

सारी बेतरतीबी की जड़ ही शायद हमारी ख़ामोशी और संवादहीनता है

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar का कहना है कि -

एक अरसे के बाद ‘हिन्द-युग्म’ पर आ सका हूँ...कुछ व्यस्तताएँ रहीं।

आज वसीम को पढ़कर अच्छा लगा...बधाई!

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)