प्रतियोगिता की बारहवीं कविता वसीम अकरम की है। पाठक वसीम अकरम से परिचित हो चुके हैं। पिछले महीने इनकी एक कविता
'खाप सरपंच' को पाठकों ने खूब पसंद किया था।
पुरस्कृत कविता: दहशतगर्दी
अभी तो शहर को पूरी तरह से शहर होना था
अभी तो रौनक़े-बाज़ार मुग्रो-सहर होना था
अभी तो धूप की तासीर का आगाज़ होना था
अभी तो रुख़ हवा का और बेअंदाज़ होना था
अभी तो शाम के सारे मनाजिर रक्स करने थे
अभी तो माहो-अख़्तर के दिलों में रंग भरने थे
अभी तो बुलबुलों के परों का परवाज़ बाक़ी था
अभी तो शहरे-मौसिक़ी का हसीं साज़ बाक़ी था
अभी तो वक्त के सारे तकाज़े आने थे बाक़ी
अभी तो लम्हों-लम्हों के जनाज़े आने थे बाक़ी
के तुमने ख़ुश हवा में ज़हर बमों का मिला डाला
ये गलियों में मिला डाला,वो कूचों में मिला डाला
लगाकर मौत का सामान ख़ुद परवाज़ कर बैठे
बहाकर ख़ून इंसां का ख़ुदी पर नाज़ कर बैठै
न तुमने ये कभी सोचा कि ख़ूं इंसान का होगा
न तो हिंदू का ख़ूं होगा न मुसलमान का होगा
बिछाकर मज़हबी शतरंज चाल दहशत की चलते हो
जेहादी नाम से इंसानियत का सर कुचलते हो
मासूमियत का तुम जो क़त्लेआम करते हो
ख़ुदा वाले ख़ुदा की ज़ात को बदनाम करते हो
ख़ून मज़लूम का हो ये मेरा ईमां नहीं कहता
करो तुम दीन को रुसवा कोई कुर्आँ नहीं कहता
इस जेहाद से रब की मुहब्बत मिल नहीं सकती
बहाकर ख़ून इंसां का वो जन्नत मिल नहीं सकती
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
ख़ुदा वाले ख़ुदा की ज़ात को बदनाम करते हो
ye nazm padke saahir yaad aa rahe hain
bahut hi khoobsurat nazm hai
main dua karunga ki ye unke bhi samajh me aa jaye jinke liye likhi gayi hai
wasim bhai aapko bahut badhai
न तुमने ये कभी सोचा कि ख़ूं इंसान का होगा
न तो हिंदू का ख़ूं होगा न मुसलमान का होगा
खूँ तो खूँ है वह हिन्दू और मुसलमान नहीं होता है
सुन्दर रचना
लगाकर मौत का सामान ख़ुद परवाज़ कर बैठे
बहाकर ख़ून इंसां का ख़ुदी पर नाज़ कर बैठै
गहरे भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
न तुमने ये कभी सोचा कि ख़ूं इंसान का होगा
न तो हिंदू का ख़ूं होगा न मुसलमान का होगा
बिछाकर मज़हबी शतरंज चाल दहशत की चलते हो
जेहादी नाम से इंसानियत का सर कुचलते हो
वाह ! क्या बात है वसीम जी आपकी पहली कविता भी दमदार थी और यह भी जबरद्स्त रही..यथार्थ पर लिखी हुई बेहद गंभीर और सोचने पर मजबूर कर देने वाली सार्थक रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई!!!!
Kaheen kaheen lay toot_ti nazar aayi.. Warna umda hai yai kavita...
mera comment fir delete ho gaya
nyways, nazm acchi lagi, behtareen lagi.
Main janaab anonymous se guzarish karungi ki pehle sahir ko acche se padhein.
ek comment aur...
hamaari mail ID shaayad kisi ne haik kar li hai...khul nahin rahi ...
shailesh ji koi madad kar sakein to bataaiyegaa...
manu 'be-takhallus'
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