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Thursday, December 25, 2008

चित्र और रचनाः भाग 2








काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन




विषय - चित्र पर आधारित कवितायें

चित्र - मनुज मेहता

अंक - इक्कीस

माह - दिसम्बर २००८







जब भी हम कोई शब्द बोलते हैं तो उसका चित्र हमारे मस्तिष्क में अपने आप बन जाता है। उसी तरह जब हम कोई चित्र या दृश्य देखते हैं तो उसके बारे में हमारे विचार खुद ब खुद बन जाते हैं। हम भी चाहते हैं कि पाठक वही विचार शब्दों में ढाले और हमें लिख भेजे। काव्यपल्लवन में इस बार भी हमने कुछ ऐसी ही कोशिश की और उसमें कामयाब हुए। हमें कुछ टिप्पणियाँ मिलीं कि चित्र पर लिखने में कठिनाई हो रही है। हम विश्वास दिलाते हैं कि आने वाले अंकों में चित्र इससे अधिक स्पष्ट होंगे। हम आगे इस आयोजन को और भी रोचक बनाने का प्रयास करेंगे। आइये जानते हैं कि एक चित्र पर १५ व्यक्तियों के अलग अलग विचार।

२६ दिसम्बर २००८: दिलशेर दिल से हमें गज़ल मिल गई थी किन्तु फॉंन्ट सही न होने के कारण पढ़ने में असमर्थता थी। उन्होंने कल फॉन्ट बताया तो आज हम यह गज़ल प्रकाशित कर रहे हैं।


Kavyapallavan

आवश्यक सूचना: यदि आप भी अपना कोई चित्र अथवा फोटॊ जनवरी माह के काव्यपल्लवन के अंक के लिये भेजना चाहें, तो हमें ३० दिसम्बर तक kavyapallavan@gmail.com पर भेजें। कृपया ध्यान रहे कि आपकी तस्वीर अथवा स्केच कहीं भी प्रकाशित न हुए हों।

आपको हमारा यह प्रयास कैसा लग रहा है?-टिप्पणी द्वारा अवश्य बतायें।

*** प्रतिभागी ***
आचार्य संजीव 'सलिल' | मनु ’बेतखल्लुस’ | शारदा अरोड़ा | विवेकरंजन श्रीवास्तव | रचना श्रीवास्तव | गरिमा सिंह | शामिख फ़राज़ | कमलप्रीत सिंह | एम ऐ शर्मा " सेहर" | अनिरुद्ध सिंह | रश्मि सिंह | अखिलेश श्रीवास्तवजय कुमार | महेश कुमार वर्मा | सोमेश्वर पांडेय | दिलशेर दिल

~~~अपने विचार, अपनी टिप्पणी दीजिए~~~




हरी धरा नीला गगन, स्वच्छ सुनहरी रेत.
नीली पीली नाव पर, बैठा जाल समेत .

बाधा नदिया को करे, कोशिश नौका पार.
दृढ़ हाथों में थाम ली है मैंने पतवार.

तूफानों से सदा ही, मैं लेता हूँ होड़.
लहरों-भंवरों से सगा नाता सकूं न तोड़.

एक एक मिलकर हुए, अपने हाथ अनेक.
हर संकट को जीत लें, जाग्रत रखें विवेक.

श्वासा-आशा है 'सलिल', नाव और पतवार.
तन-मन हो यदि साथ तो, हो जीवन उद्धार.

नहीं किसी से दोस्ती, नहीं किसी से बैर.
नौका-नदिया मनाते, रब से सब की खैर.

अनिल अनल भू नभ सलिल, रखें हमेशा साफ.
जो फैलाए मलिनता करें न उसको माफ़.

रेत नाव पतवार सा, रिश्ता जोडें आप.
हर सुख-दुःख में साथ रह, करें एकता जाप.

नीला पीला या हरा कोई भी हो रंग.
'सलिल' हौसला जीतता, जीवन की हर जंग.

हम मछुआरे शान्ति के, सच्चे पहरेदार.
दूर रहें आतंक से, सदा लुटाएं प्यार.

'सलिल' न सीखा हारना, हँस झेलें तूफ़ान.
गिरे उठे आगे बढे, यही हमारी शान.

--आचार्य संजीव 'सलिल'





क्यूँ रेत पे उतरे हैं ,समंदर के काफिले,
क्या ज़ीस्त में नमी की जरूरत नहीं रही,
अय नाखुदाओ मुझको फ़कत इतना बता दो,
कब डूबते सहराओं से जीती कोई कश्ती

--मनु ’बेतखल्लुस’





मुझको कोई नहीं रोकेगा
रस्सियाँ लेकर
मैं बड़ी दूर चला जाऊंगा
पतवारें लेकर
अठखेलियाँ करनी हैं , लहरों से
समँदर के इशारे लेकर
कितने दिल धड़कते हैं , मेरे सीने में
मांझी से सहारे लेकर
मंजिलें दूर सही , सफर लंबा तो क्या
जोश आयेगा
बिछडे दिलों के मिलने की साँसें लेकर
रोजी-रोटी कमाने की आसें लेकर
बंधा हुआ हूँ अपनी मर्जी से ,किनारों से
साहिल से मिलने की तमन्ना लेकर
केरल का तट हो , मौसम विकट हो
मुझको कोई नहीं रोकेगा
रस्सियाँ लेकर

--शारदा अरोड़ा






किश्तियो के सहारे आतंक की
घुसपैठ से सब गफलत में हैं,
हम मछुआरे वो तटरक्षक,
और सैलानी सब साँसत में है।
हर मछली अब बारूदी इक
मगरमच्छ सी हमको लगती है,
देख भाल कर कोना कोना
किश्ती खेना अब आदत में है।
आतंकी अब तुम्हें डुबाकर,
पानी में ही मार गिरायेंगे ,
अब करना ना
हिम्मत घुसने की , हम ताकत में है।
जाग गया है देश हमारा,
जाग गया है हर मछुआरा
थर थर काँप रहे
आतंकी छिपे हुये हैं,
सब आफत में है !
दहशत का आतंक मिटाने
दुनियां भर भारत के पीछे पीछे है।
खत्म होयेगा यह वहशीपन आतंकवाद अब लानत में है!!
--विवेकरंजन श्रीवास्तव





जीवन अपनों का सजाना तो है
रेत में ही सही पर घर बनाना तो है

हाँ मालुम है के तूफान का अन्देशा है
मौजों में कश्ती फ़िर भी बहाना तो है

भूख के आगे पलट जाते हैं हर एक तूफान
इस बात का ख़ुद को यकीं दिलाना तो है

हर सीप में मोती मिलता नही दोस्तों
सुना हमने भी ये फ़साना तो है

समां गए कितने लहरों में उस रोज
उजडे इस चमन को फ़िर से बसाना तो है

भूखे रह जायें या सो जायें वो पीके पानी
क़र्ज़ बनिए का फ़िर भी चुकाना तो है

बहुत रो लिए तुम सुन के दास्ताँ मेरी
तेरे इन आसुंओं को अब हँसाना तो है

समुन्दर न सही समुन्दर सा हौसला तो दे
ज़िन्दगी से रिश्ता हम को निभाना तो है

सब कुछ खो के बुत सा बैठा है वो
घाव बन न जाए नासूर उस को रुलाना तो है

--रचना श्रीवास्तव





डालते हैं फिर अपनी नांव लहरों में,
चलो फिर एक बार समंदर का इम्तेहान लें.
कभी तो कम होंगे ज्वार, हवा देगी संग हमारा,
तब तक रुकें क्यूँ, हम ख़ुद ही हैं अपना सहारा.
चल फिर से पतवार उठा, लड़ने को इस ज्वार से,
चीर के सीना गहरे सागर का मोती चुनने हैं हमें.
कल टूटी थी एक नय्या तो क्यों धीमें हों गीत हौसले के,
नई लहरों पर होके सवार, नए स्वप्न बुनने हैं हमें.
इरादे पक्के पाएं हैं हमनें, क्या हुआ जो
पक्की छत का साया नहीं मिला कभी.
नंगे पाँव हैं रेत की ज़मीन पर तो क्या,
सपने हमारे तो हवाओं के हैं साथी सभी.
चल सूरज की ओर बढ़ा कदम अपनी नांव के,
कि वहीँ हैं खजाना खुशियों और सुकून का.
तूफानों का भी सामना आसन होगा,
संग होगा अगर उन्हें पाने के जूनून का.
चलो डालते हैं नांव फिर से इन लहरों पे,
आगे बढ़ चलने का फिर वक्त हुआ.
हार के, रुक के बैठ जाना नहीं, सुन, देख, पहचान,
यही है वो रास्ता जो हर रात सितारों में ढूँढा.

--गरिमा सिंह





ज़िन्दगी भी इक कश्ती ही तो है
जो दुनिया के इस समंदर में
बचपन के इस साहिल से
बुढापे के उस साहिल तक
चलती जाती है बस चलती जाती है
बातें सुख दुःख की लहरों से करती
कुछ अपनी कहती कुछ उनकी सुनती
बढ्ती जाती है बस बढ्ती जाती है
सुख की लहरें जब कोई बात कहें तो
उछलसी जाती है हाँ उछलसी जाती है
दुःख की लहरें जब ख़बर कोई सुनाये
थम सी जाती है बस थम सी जाती है
फसे जो कभी मुसीबतों के भंवर में तो
हिम्मत ओ हौसले की पतवारों से
निकलती जाती है बस निकलती जाती है.
ज़िन्दगी भी एक कश्ती ही तो है
ज़िन्दगी भी एक कश्ती ही तो है

--शामिख फ़राज़






सफीनों ने वक़्त पड़े कई काम संवारे हैं
लंबे सफर के बाद आज हासिल किनारे हैं

पानी पे ही चलना रहा जिनका है धरम
डूबते हों को तिनका ही नहीं ये भी तो सहारे हैं

साहिल से बना रिश्ता दौरान सफर पानी
हर तरफ़ समंदर कहीं दूर नज़ारे हैं

कोई पार ही हो तो ये पहुंचा ही दें सब को
मंझदार के सफर में कब दूर किनारे हैं

इस ज़रिया ऐ सफर से बहुत सारी उम्मीदें
सागर की लहरों से पुरजोर इशारे हैं

थकन किसे नहीं होती लंबे सफर के बाद
राहत का ये मंज़र है ये ठांव हमारे हैं

--कमलप्रीत सिंह





हाफतें लड़खड़ाते जीवन में चारों तरफ़ जल ही जल है
उठती उतरती लहरों मैं आने वाला इनका कल है

ज़िन्दगी को लगा दाँवं पर रोटी की तलाश में
कर्मठ पर असहाय ये मछुआरों का दल है

उलझनों से भरी हो भले ही ये ज़िन्दगी
कब तक न होगा कोई इसमे सफल है

उषा किरण से आखिरी किरण तक
न खोया इन्होंने कभी कोई पल है

कभी तो होगा इस जीवन का सवेरा
दूर हो कर अँधेरा खिलेगा कमल है

--एम ऐ शर्मा "सेहर"




ओ साथी चलो ,
हम क्षितिज के पार चलें,
जहाँ एक सुंदर सपना बैठा है इंतजार में ,
उस क्षितिज के पार चलें जहाँ शान्ति हो हर ओर,
उस क्षितिज के पार चलें,
चलो ये दुनिया छोड़कर ,
नई दुनिया में चलें,
जहाँ शान्ति हो.
ओ साथी चलो उस क्षितिज की ओर चलें
पर ध्यान रहे कोई,
पीछे न छूटे,
वरना सपने सच नहीं हो पाएँगे,
वो टूटकर बिखर जाएँगे,
आओ दुनिया वालों हम चलें वहां,
जहाँ खुशी हो,
मुस्कान हो,
ये दुनिया बहुत सूनी सी लगती है,
वीरान सी लगती है,
हम सब एक साथ चलेंगे ,
प्यार की नाव में,
भाईचारे के साथ,
तो हम दूसरी दुनिया में ,
पहुँच जाएँगे,
क्षितिज के उस पार जहाँ,
केवल हम होंगे प्यार करने वाले और कोई नहीं,
वहां हमारे सपने सच होंगे,
हम वहां देवताओं से मिलेंगे,
जो केवल प्यार बांटते हैं,
उनसे मिलेंगे जो खुशी बांटते हैं,
हम वहां खुश रहेंगे ,
उस क्षितिज के पार चलो ,
ओ साथी उस क्षितिज के पार चलो

--अनिरुद्ध सिंह






ढूंढती फिरती मैं मंजिल
सागर की तलाश थी
उसकी मौजो की बाहों में
ख़ुद को डुबोने की प्यास थी
मेरा अस्तित्व ,वो बन जाए
बस यही एक आस थी
चलती थी नदी के किनारे किनारे
मिलन के सपने संजोये प्यारे प्यारे
समंदर तक तो जाएगा ये रास्ता
किनारे को साहिल समझती थी
बस मिल ही जाएगा वो मुझको
उसको हासिल ही समझती थी
चलते चलते थकने लगे थे पाँव मेरे
धुंधलाने लगी थी मंजिल
और आँखों के सामने थे अंधेरे
अचानक घटाये छाने लगी
बूंदे जोरो से बरसने लगी
नदी में एक तूफान उमडा
टूटने लगे सारे तटों के बंधन
स्थिर अवनि पे ऐसा उफान उमडा
बहा ले गए सैलाब , किनारे
लिए संग मुझे चलने लगे धारे
घबराने लगी की गर्दिश में आ गए सितारे
हाय , ये मुझपे क्या गुजरा

धीरे से जब मैंने पलके खोली
सामने चाँद मुस्कुराया और लहरे बोली
जरा देख , कर लिया तय सफर कितना
दौड़ रही अब तू मेरे जितना
पतवार बना ख़ुद का संकल्प
मत सोच कश्ती का विकल्प
जलधि में सामने का जो ख्वाब सजा
तो तू , ख़ुद ही नदी बन जा
सोते से मानो जैसे में जागी
छोड़ किनारे नदी संग भागी
अब दूर नही मुझसे सपने
लगी नदी बन मैं चलने
रह गए थोड़े से फासले
मिट गए किस्मत से सारे गिले
खोज रही थी जिसको बाहर
वो तो मेरे ही पास थी ............

--रश्मि सिंह





जीवन की वैतरणी पार करने के लिए
किसी न किसी धर्मं में
पंजीकरण होना जरूरी है.
अलग अलग नाम , निशान और झंडे वाले फोल्डर
परमेश्वर का काम आसन कर देते है.
उसकी सुविधा के लिए
मैंने अपने नाव पर
लगा दिया है क्राश का निशान.
पर कुछ लोग नहीं चाहते की
में परमेश्वेर से मिलू
और मांगू
ढेरो मछलियों का वरदान.
बीच समंदर चलाते है मुझ पर असलहा
नीला पानी कर देते है लाल.
समंदर का खारापन हमारे खून से कितना कम हुआ
मैं नहीं जानता.
पर हाँ
मेरी तैरती अधजिन्दा लाश ने देखा था
उनकी नाव पर निसान दूसरा था
और झंडे का रंग भी.
इस घटना के बाद समंदर की मछलिया
कहाँ छुप गयी
यह बस्ती में चर्चा का विषय है.
बात सिर्फ धर्म की होती तो भी बच जाता.
सवाल पूर्वाग्रहों का है
उन्हें हर रोज़ दो चार आदमियों का खून चाहिए
और
तीज त्योहारों पर
दो चार सऔ आदमियों का.

--अखिलेश श्रीवास्तव





एक मछुआरा व्याकुल है
समन्दर में जाने को
ये नहीं पता कब है
लोट के आने को
ना डर है उसे आसमाँ का
ना डर है उसे तूफाँ का
ना ही डर है उसे मौत का
वो निकल पड़ता जुगाड़ करने रोटी दो वक्त का
ठान लेता है ज़िंदगी और
मौत से लड़ने को
एक मछुआरा व्याकुल है
समन्दर में जाने को
ये नहीं पता कब है
लोट के आने को
समन्दर के लहरों को देख
के बचपन बिताया है
समन्दर के किनारे सुंदर
घर बसाता है
समन्दर में ही जिंदगी गुजार देता है
नहीं सोचता किसी और दुनिया में रुख करने को
एक मछुआरा व्याकुल है
समन्दर में जाने को
ये नहीं पता कब है
लौट के आने को

--जय कुमार





श्रम करने को हैं लाचार
करते हैं अपना व्यापार
जो है देश का आधार
जो है देश का आधार

जीवन में नहीं है आराम
करते रहते हरदम काम
करते रहते हरदम काम

देश विकाश में इनका
महत्त्वपूर्ण है योगदान
महत्त्वपूर्ण है योगदान

इनके ही मेहनत से
मेरा देश है महान
मेरा देश है महान

--महेश कुमार वर्मा




देख भाई,
मेरी नाव की पतवार ठीक नहीं है,
रुके यह बीच मझधार ठीक नहीं है
माना यह अन्य नाव से छोटी है,
पर मेरे परिवार की रोजी-रोटी है
इसे जल्दी लहरों के बीच कर दे,
भाई, इसे जल्दी से ठीक कर दे
जाल अपना मैं सागर में फैलाऊँगा,
तो घर अपने राशन ले-जा पाऊँगा
कुछ दिन से सागर बहुत चढा है,
मेरा परिवार भूखा झोपडे में पड़ा है
सरकार की तो आज भी ताकीद है,
देखा जाएगा जो भी अपना नसीब है
शायद सागर आज मेरी झोली भर दे,
परिवार के खाने का कुछ प्रबंध कर दे.........
इसलिए भाई, जल्दी से मेरी नाव ठीक कर दे

--सोमेश्वर पांडेय





तुम से जुदा हूँ,रंज नहीं,शादमं हूँ मैं।
तेरी गुज़िस्ता रातों का एक राज़दां हूँ मैं।

साहिल के अनक़रीब ही,डूबा जो बदनसीब,
उस बावफ़ा सफ़ीने का, खुद बादवां हूँ मैं।

तुम तो न चल सकोगे मेरे साथ दो क़दम,
ख़ारों की ज़द में एक हसीं गुलसितां हूँ मैं।

आई ख़िज़ां,बहार ने आँसू बहा दिये,
शिकवा करें तो किससे करें, बाग़बां हूँ मैं।

दिल है उदास,गदिशे-दौरा है आजकल,
खुद अपनी ज़िन्दगी का ही,बारेगिरां हूँ मैं।

अफ़सोस है,तू भूल गया,मुझको राहबर,
सेहरा में जो लुटा था,वही कारवां हूँ मैं।

ऐ हमसफ़र,तू देख ज़रा `दिल´ की आँख से,
ज़िन्दा किसी उम्मीद पे, ऐ जानेजां हूँ मैं।

--दिलशेर दिल





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28 कविताप्रेमियों का कहना है :

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

तपन जी, भले ही इस बार चित्र कठिन हो पर मुझे इस बार की रचनायें पिछली प्रतियोगिता के मुकाबले
ज्‍यादा बेहतर लगीं। मनु जी की चार पंक्‍तियाँ सभी पर भारी हैं-

क्यूँ रेत पे उतरे हैं ,समंदर के काफिले,
क्या ज़ीस्त में नमी की जरूरत नहीं रही,
अय नाखुदाओ मुझको फ़कत इतना बता दो,
कब डूबते सहराओं से जीती कोई कश्ती

--मनु ’बेतखल्लुस’
शारदा अरोडा़ जी की कविता में भी काफी गहराई लगी-

मंजिलें दूर सही सफर लंबा तो क्‍या
जोश आयेगा
बिछडे दिलों की साँसे लेकर

विवेकरंजन जी ने मछुआरों के माध्‍यम से अपनी देशभक्‍ति का परिचय दिया है....

रचना श्रीवास्‍तव जी की रचना भी बहुत अच्‍छी लगी खास कर ये पंक्‍तियाँ-

समुन्‍दर न सही समुन्‍दर सा हौसला तो दे
जिंदगी से रिश्‍ता हमको निभाना तो है

कमलप्रीत सिंह जी की गजल ने भी मन मोह लिया....गरिमा सिंह, शामिख.एम ऐ शर्मा और रश्‍मि सिंह
जी ने भी अच्‍छा लिखा। सभी रचनाकारों एवं हिन्‍द- युग्‍म को बहुत- बहुत बधाई...!

Ria Sharma का कहना है कि -

एक मछुआरा व्याकुल है
समन्दर में जाने को
ये नहीं पता कब है
लौट के आने को

जय कुमार जी की रचना मैं
मछुआरे की व्याकुलता का सरल भाव
प्रभावित करता है
लिखते रहे

Unknown का कहना है कि -

Rashmi ji aapki kavita bahut pasand aayi. sagharsh aur phir kabhi kabhi tut kar har jana par ant me vijay ke ullas ka jo chitran aapne kiya wo ek aam admi ko prerit karta hai.Is sahaj aur jivit kavita ke liye aap badhai ke patra hai.

Anonymous का कहना है कि -

में हरकीरत जी की बात से सहमत हूँ मनु जी जिस तरह कार्टून में बहुत कुछ कह जाते हैं उसी तरह यहाँ भी थोड़े में बहुत कह गए हैं
सादर
रचना

Anonymous का कहना है कि -

एक एक मिलकर हुए, अपने हाथ अनेक.
हर संकट को जीत लें, जाग्रत रखें विवेक.

सलिल जी ये लाइन बहुत ही सुंदर है
rachana

Anonymous का कहना है कि -

साहिल से मिलने की तमन्ना लेकर
केरल का तट हो , मौसम विकट हो
मुझको कोई नहीं रोकेगा
रस्सियाँ लेकर
केरल का तट ये लिख के आप ने मुझे देश याद दिला दिया
rachana

Anonymous का कहना है कि -

जाग गया है देश हमारा,
जाग गया है हर मछुआरा
थर थर काँप रहे
आतंकी छिपे हुये हैं,
सब आफत में है !
ji hum jage hain bas jage hain yahi tammana hai

Anonymous का कहना है कि -

चलो फिर एक बार समंदर का इम्तेहान लें.
इरादे पक्के पाएं हैं हमनें, क्या हुआ जो
पक्की छत का साया नहीं मिला कभ
सही कहा है आप ने

Anonymous का कहना है कि -

ज़िन्दगी भी इक कश्ती ही तो है
जो दुनिया के इस समंदर में
बचपन के इस साहिल से
बुढापे के उस साहिल तक
चलती जाती है बस चलती जाती है
बहुत फिलौसोफिकल बात बहुत ही गहरी बात कही आप ने

Anonymous का कहना है कि -

सफीनों ने वक़्त पड़े कई काम संवारे हैं
लंबे सफर के बाद आज हासिल किनारे हैं
सुंदर लिखा है

manu का कहना है कि -

१...२...३...४...५..६...७...
रचना जी ,
आप तो ऐ के ४७ लेकर आ गयीं ...
जल्दी से क्लिक कर दूँ नहीं तो पता नहीं कितनी और.......???

ऐसे ही कह दिया अगर बुरा लगा हो तो सारी....
कभी इतनी टिप्पणियाँ बन्दे ने देखीं नहीं ना...????

Anonymous का कहना है कि -

मेरे प्यार भरे शब्द यदि आप को ऐ के ४७ लगे तो शायद मुझसे ठीक से लिख नही गया .पर जो शब्द जो लाइन मुझे कविता में अच्छी लगी वो लिखी है .
प्यार है ४७ नही
सादर
रचना

Divya Narmada का कहना है कि -

मनु की कश्ती जीतती, सेहरा कर विश्वास.
नमी-ख्वाब हैं आँख में, 'सलिल' ह्रदय में आस.

रस्सी लेकर रोक मत, दे मुझको पतवार.
'सलिल'-शारदा मंजिलें, जीतें सागर पार.

मगरमच्छ आतंक का, कर न सके नुकसान.
जाग्रत 'सलिल' विवेक अब, दुश्मन ले पहचान.

अंदेशा तूफ़ान का, रचना सर पर क़र्ज़.
श्री वास्तव में मिले तब, 'सलिल' करे जब फ़र्ज़.

इम्तहान लेने चलें, सागर का कर जोर..
'सलिल' न गरिमा घट सके, चल सूरज की ओर.

शामिख कश्ती जिंदगी, सुख-दुःख लहर अपार.
'सलिल' समंदर पार कर, ले हिम्मत पतवार.

कमल किसे होती नहीं, थकन सफर के बाद.
'सलिल' समंदर पार कर, मंजिल पा ले दाद.

लगा जिंदगी दांव पर, रोटी सकें तलाश.
'सलिल' सहर हो जिंदगी, मिले सफलता काश.

क्षितिज पार अनिरुद्ध चल, जहाँ शान्ति हर ओर.
'सलिल प्यार की नाव में, थामे जीवन-डोर.

रश्मि खोज बाहर रही, जो वह भीतर मौन.
देख नदी में स्वयं को, 'सलिल' पूछता कौन.

मैं परमेश्वर से मिलूँ, पूछूं हे अखिलेश!.
नीला पानी लाल क्यों, करता धर्म विशेष.

मछुआरा व्याकुल हुआ, गहे समंदर थाह.
जय तूफां को कर सके, 'सलिल' मिलेगी वाह

करें अहर्निश काम जो, लें आराम न लेश.
सदा बढाते देश का, वे सम्मान महेश.

चलो सुधारें नाव को, ठीक रखें पतवार.
सोमेश्वर डगमग नहीं हो, जाकर मझधार. .


.


.

manu का कहना है कि -

आचार्य को प्रणाम...
मुझे मालूम है के टिप्पणियों का सिलसिला लंबा हो जायेगा ...पर आचर्य की कलम पे नज़र पड़ते ही जब शीश झुकता है..तो इसे रोकना मेरे बस से बाहर है.
कविताओं के क्रम में आचार्य के क़दमों तले मेरी दो लाइन रखा जाना मेरा सौभाग्य है ..

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

बहुत रो लिए तुम सुन के दास्ताँ मेरी
तेरे इन आसुंओं को अब हँसाना तो है
.
रचना जी बहुत खूब,
दर्द तो मन की किसी दरार से अचानक निकल , अपनो को दुखी कर ही देता है, लेकिन यह अहसास कि मेरे दुख के कारण से निकले आंसुओ को हंसाया जाए | भई वाह !
.
उषा किरण से आखिरी किरण तक
न खोया इन्होंने कभी कोई पल है
.
सेहर जी काश एसा सभी के जीवन में हो पाए, बहुत अच्छी सोच |
.
और अंत में संजीव जी के लिए
.
दोहा सरिता मन बहे , तन लीन जग कार्य |
खद्योत मध्य आलौकित, लौ सलिल आचार्य ||
सादर,

Ria Sharma का कहना है कि -

हरी धरा नीला गगन, स्वच्छ सुनहरी रेत.
नीली पीली नाव पर, बैठा जाल समेत .

सलिलजी आपके बारे मै कुछ कहना
सूरज को दिए दिखाने जैसा है

'गागर में सागर '
उपर्युक्त दो पंक्तियों में पूरी कविता ने
सारे चित्र व चित्रण को
पूरी खूबसूरती व इमानदारी से समाहित किया है

सभी प्रतिभागियों के लिए लिखा गया काव्य ....

निःशब्द !!!

शत् शत् प्रणाम सलिलजी

Ria Sharma का कहना है कि -

हरकीरत जी एवं
विनय जी

हौसला अफज़ाई के लिए

आभार !!!

Vivek Ranjan Shrivastava का कहना है कि -

इस बार तो लगता है कि सलिल जी ने सब को दोहा ज्ञान से एसा सराबोर किया है कि सब कुछ दोहे में ही कहा जा रहा है ! भई वाह !

Dilsher Khan का कहना है कि -

Rachna Shrivastava ji aur Betakhallus ji ki rachnayen kafi achchhi hain

Dilsher Khan का कहना है कि -

Ye meri Ghazal hai,
Pasand aane par jab dena chahen de den, thanks

Ghazal

Ghosla jab bhi daal par rakhna.
Tinka tinka sambhaal kar rakhana.

Raah mein senkdon hain kaante bichhe,
Har qadam dekh bhaal kar rakhna.

Ek din tum se milne aaunga,
Apne aansu sambhaal kar rakhna.

Kyun Chamakte ho jugnuon ki tarah,
Khud ko shamma sa dhaal kar rakhna.

Ab to ghar mein bhi hai bahut mushkil,
Apni izzat sambhaal kar rakhna.

Kaam hai sirf ye siyasat ka,
Ghar mein gundon ko paal kar rakhna.

Achchhi aadat nahi hai kaam koi,
Aaj ka kal pe taal kar rakhna.

Sirf itni si iltija hai meri,
Is gazal ko sambhaal kar rakhna.

Dilsher ‘Dil’
42, Gonda Mohalla,
Datia (M.P.)475661
Mob.-9926296434

jai kumaar का कहना है कि -

der aaye magar durust aaye,
Dilsher ji ki rachna mein:
tum to na chal sakoge mere saath do qadam,
kharon se saja ek hasin gulsitan hun mein.
ne waqai aaj ka kadwa sach pesh kiya hai.

jai kumaar का कहना है कि -

Dilsher dil ji ki comment mein bheji hui rachna ka jawaw nahi.

raah mein senkdon hain kaante bichhe,
har qadam dekhbhal kar rakhna,

aur

ab to ghar mein bhi hai bahut mushkil,
apni izzat sambhaal kar rakhna,

khaskar ye sher :

Ek din tum se milne aaunga,
apne aansu sambhal kar rakhna.

Wah! wah!

Anonymous का कहना है कि -

चाँद पर दाग ये दिख रहा कैसे!
कोई हमसे कहे, ये लगा कैसे!

यूँ तो थामी हैं सबने गुलेलें यहाँ,
फिर भी चिड़ियों ने दाना चुगा कैसे!

जिनकी आँखों पे चश्मा-फरेबी लगा,
उनको कह दूँ यहाँ, रहनुमा कैसे!

जहाँ दो वक़्त की रोटी मिल ना सकी,
उस गरीबी में बच्चा, पढ़ा कैसे!

नफरतों के धमाके ही गूँजे यहाँ,
तो गीत उलफत का तुमने सुना कैसे!

है मेरा ये वतन, मेरी पहचान मगर,
तुमने, हम हैं अलग, ये कहा कैसे!

-ज्योतिबाला खरे
पटेरिया गली,
होलिपुरा,
दातिया (म.प्र.)475661

Anonymous का कहना है कि -

सच ज्योतिबाला जी,
जहाँ दो वक्त की रोटी मिल न सकी,
उस गरीबी में बच्चा, पढ़ा कैसे!
आँख से आंसू निकाल दिए आपने ......

- राकेश चौधरी

Anonymous का कहना है कि -

यूँ तो थामी हैं सबने गुलेलें यहाँ,
फिर भी चिडियों ने दाना चुगा कैसे!
ज्योति जी ने बहुत ही हिम्मत का परिचय दिया है, आपको शुभकामनायें ...
-अनीता शर्मा भागलपुर

Anonymous का कहना है कि -

गुरूजी , क्या ज्योतिबाला जी की ग़ज़ल बहर में है? और उसमे कोई कमी नही है?......
-मनु

Anonymous का कहना है कि -

मनु जी मुझे तो इसमें कोई कमी नज़र नही आई...
आपको लगी हो तो बताएं.....
-प्रकाश

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