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Tuesday, April 20, 2010

तुम्हारे जन्मदिन पर


तुम्हें क्या उपहार दूँ आज
जो सबसे कीमती न सही
सबसे अलग हो
हज़ारों वर्षों की यात्राओं के बाद मिले
एक क्षण विशेष को कैसे सजा दूँ
अपनी सदाबहार मनहूसियत को दूर हटा कर
तुम्हारे मन के सबसे सुन्दर कोने में
क्या दूँ उपहार
जो किसी ने न दिया हो किसी को कभी
तुम्हारे भीतर पड़े कई उत्सवों के बासी तोरणद्वार
नोच कर निकाल दूँ
और सजा दूँ नई झालरें
तुम्हारे हृदय में कैसे सहेज दूँ
हज़ारों रंगों के सुरों की लड़ियाँ
जिनकी सुगंध पहुंचे सिर्फ तुम्हारी इन्द्रियों तक
कैसी-कैसी खामोशियाँ और कैसी-कैसी गुनगुनाहटें सजायी हैं
आज तक तुम्हारे तन्तुओं पर
अब कौन सा राग छेड़ दूँ तुम्हारे तारों पर
कि बजता रहे एक अद्‍भुत सम्बंध का अद्‍भुत संगीत जीवन भर
कौन सी कलाकृति उकेर दूँ तुम्हारी हथेलियों पर
कि बदल जायँ सारी रेखाएँ तुम्हारी
और उनमें ख़ामोशी से दिख जाये मेरा नाम
तुम्हें क्या उपहार दूँ
जो कभी नष्ट न हो
काल की इस आपाधापी में
जो बना रहे हमेशा
मेरे जाने के बाद भी
तुम्हारे जाने के बाद भी
मैं जानता हूँ
तुम एक ऐसी किताब हो
जिसे कोई विरला ही पढ़ सकता है
मैंने पढ़ा है
रात-रात भर जागकर
जैसे परीक्षा की तैयारी करता है कोई बालक
मैंने पढ़ा है इसलिये मुझे पता है
कितने पृष्ठ कम हैं यहाँ
मुझे पता है
कहाँ-कहाँ ग़लत छपाई हुई है
कहाँ-कहाँ स्याहियाँ बिखरी हैं
तुम्हारे रोने से
कैसे जिल्द बदल दूँ इस किताब की
क्या दूँ तुम्हें उपहार
जो सोख ले शब्दों को, धुंधलाते आँसुओं को
और फिर से टाँक दे ख़ूबसूरत चमकीले शब्द
जोड़ दे छूट गये पन्नों को
जिन्हें पढ़ कर जब तुम मेरी ओर देखो तो मैं तुम्हें जी लूँ
पूरा का पूरा

यूनिकवि- विमल चंद्र पाण्डेय

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

rachana का कहना है कि -

तुम्हारे भीतर पड़े कई उत्सवों के बासी तोरणद्वार
नोच कर निकाल दूँ
किती सुंदर बात क्या सोच है .पूरी कविता की एक एक लाइन बहुत सुंदर है प्रारंभ से ले के अंत तक
कैसे जिल्द बदल दूँ इस किताब की
क्या दूँ तुम्हें उपहार
जो सोख ले शब्दों को, धुंधलाते आँसुओं को
और फिर से टाँक दे ख़ूबसूरत चमकीले शब्द
जोड़ दे छूट गये पन्नों को
जिन्हें पढ़ कर जब तुम मेरी ओर देखो तो मैं तुम्हें जी लूँ
पूरा का पूरा
सुंदर अति सुंदर
रचना

M VERMA का कहना है कि -

जोड़ दे छूट गये पन्नों को
हाँ यही उपहार सबसे कीमती होगा
बेमिसाल रचना

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

कैसी-कैसी खामोशियाँ और कैसी-कैसी गुनगुनाहटें सजायी हैं
आज तक तुम्हारे तन्तुओं पर
अब कौन सा राग छेड़ दूँ तुम्हारे तारों पर
कि बजता रहे एक अद्‍भुत सम्बंध का अद्‍भुत संगीत जीवन भर
कौन सी कलाकृति उकेर दूँ तुम्हारी हथेलियों पर
कि बदल जायँ सारी रेखाएँ तुम्हारी
और उनमें ख़ामोशी से दिख जाये मेरा नाम
तुम्हें क्या उपहार दूँ!!!

लाज़वाब रचना....बधाई विमल जी

वाणी गीत का कहना है कि -

कैसी-कैसी खामोशियाँ और कैसी-कैसी गुनगुनाहटें सजायी हैं
आज तक तुम्हारे तन्तुओं पर
अब कौन सा राग छेड़ दूँ तुम्हारे तारों पर
कि बजता रहे एक अद्‍भुत सम्बंध का अद्‍भुत संगीत जीवन...
कहाँ-कहाँ ग़लत छपाई हुई है
कहाँ-कहाँ स्याहियाँ बिखरी हैं
तुम्हारे रोने से
कैसे जिल्द बदल दूँ इस किताब की
क्या दूँ तुम्हें उपहार
जो सोख ले शब्दों को, धुंधलाते आँसुओं को
और फिर से टाँक दे ख़ूबसूरत चमकीले शब्द..

शब्द -शब्द कविता उतरती गयी मन में ...
क्या लिखा जा सकता है ऐसी कविताओं पर ...
सिर्फ मौन ही तो ...!!

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

भावनाओं की सफल अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

Unknown का कहना है कि -

सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

Guftugu का कहना है कि -

मैंने पढ़ा है इसलिये मुझे पता है
कितने पृष्ठ कम हैं यहाँ
मुझे पता है
कहाँ-कहाँ ग़लत छपाई हुई है
कहाँ-कहाँ स्याहियाँ बिखरी हैं
तुम्हारे रोने से
कैसे जिल्द बदल दूँ इस किताब की
क्या दूँ तुम्हें उपहार
जो सोख ले शब्दों को, धुंधलाते आँसुओं को
और फिर से टाँक दे ख़ूबसूरत चमकीले शब्द
जोड़ दे छूट गये पन्नों को
जिन्हें पढ़ कर जब तुम मेरी ओर देखो तो मैं तुम्हें जी लूँ
पूरा का पूरा
behad sundar abhivyakti.mubarak ho.smitamishra

Anonymous का कहना है कि -

कितने पृष्ठ कम हैं यहाँ
मुझे पता है
कहाँ-कहाँ ग़लत छपाई हुई है
कहाँ-कहाँ स्याहियाँ बिखरी हैं
तुम्हारे रोने से
सबसे भावपूर्ण लाईने, जिन्हें पढ्ते हुए कवि के साथ जुड जाना स्वाभाविक है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई...

रचना प्रवेश का कहना है कि -

मैंने पढ़ा है इसलिये मुझे पता है
कितने पृष्ठ कम हैं यहाँ
मुझे पता है
कहाँ-कहाँ ग़लत छपाई हुई है
कहाँ-कहाँ स्याहियाँ बिखरी हैं
तुम्हारे रोने से
कैसे जिल्द बदल दूँ इस किताब की
क्या दूँ तुम्हें उपहार
जो सोख ले शब्दों को, धुंधलाते आँसुओं को
और फिर से टाँक दे ख़ूबसूरत चमकीले शब्द
जोड़ दे छूट गये पन्नों को

bahut sunder anubhuti hui in panktiyo ko pad ker ,,,,,,yah panktiya hi sunder uphaar hai ,sampurn pyaar samete huye hai .....badhai

Unknown का कहना है कि -

Bahut sunder kavita....jinke liye itna sunder likha gaya hai bahut khushkismat hain woh... kaun si pankti sabse achhi hai chunna mushkil hai...badhai

amita का कहना है कि -

कितने पृष्ठ कम हैं यहाँ
मुझे पता है
कहाँ-कहाँ ग़लत छपाई हुई है
कहाँ-कहाँ स्याहियाँ बिखरी हैं
तुम्हारे रोने से
bahut sunder rachna hai puri kavita bhav purn ati sunder hai....
amita

अपूर्व का कहना है कि -

विमल पांडेय जी का हिंद-युग्म से जुड़ाव हम पाठकों के लिये बढ़ी सुखद घटना है..इनकी कविताएं युग्म के स्तर पर सर्वथा खरी उतरती हैं..और यह आशा भी जगाती हैं कि आने वाले वक्त मे उनका लेखन और पढने को मिलेगा इस पृष्ठ पर..

gunjesh का कहना है कि -

kawita chehre ke madhyam se smay ka zikr karti hai aur is samy men kawita se bda uphar hm pathkaon ke liye aur kya ho sakta hai .
ye kawita ek shashwatta ko dundti aur yeh shashwatta sirf kawita men hi ho sakti hai ....
मैंने पढ़ा है इसलिये मुझे पता है
कितने पृष्ठ कम हैं यहाँ
yeh is bat ka dawa hai, ki kawi apne sthit apne smay ko behtar trike se pehchante hain, aur usse na bhagte hue usi men jite hain.....

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