तारीखें तारीक सही,
उम्मीदें बारीक सही.....
तालु से तलवों में उतरी
अपनी हर तहरीक सही...
पर
हम सब का
हाल-ओ-मुस्तकबिल
तब हीं तो काबिल होगा,
जब
माज़ी के मरघट का यारों
हर दिल हीं कातिल होगा...
जब
मौज़ूं हर मेहनत होगी
और हौसला भी कामिल होगा..
इस
हिन्द के सख्त सफ़ीने का
जो माज़ी है माझी बन बैठा
उसे ठेलकर
नया दौर जब
दंगल में दाखिल होगा
ठीक उसी दिन
मौजें होंगी
और नया साहिल होगा..
मुझे यकीं है-
जल्द ये मंज़र
हक़ीक़त को हासिल होगा...
फिर क्या गम
कि
अपनी सब
तारीखें तारीक रहीं,
आने वाली नस्लें अब
दुहराएँगी लीक नहीं..
-विश्व दीपक
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
11 कविताप्रेमियों का कहना है :
नया दौर जब
दंगल में दाखिल होगा
ठीक उसी दिन
मौजें होंगी
और नया साहिल होगा..
नया साहिल तलाशना ही होगा, पुराने साहिल पर सड़ांध बहुत है
सुन्दर रचना
अपनी सब
तारीखें तारीक रहीं,
आने वाली नस्लें अब
दुहराएँगी लीक नहीं..
फिर क्या गम ...!!
bahut khoob likha Vishwa Deepak sahab
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
इस
हिन्द के सख्त सफ़ीने का
जो माज़ी है माझी बन बैठा
उसे ठेलकर
नया दौर जब
दंगल में दाखिल होगा
ठीक उसी दिन
मौजें होंगी
और नया साहिल होगा..
बहुत बढ़िया बात कही आपने...सुंदर कविता..बधाई
सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
"मुझे यकीं है-
जल्द ये मंज़र
हक़ीक़त को हासिल होगा..."
bahut khoob...
kunwar ji,
सुन्दर रचना के लिए दीपक जी बहुत-बहुत बधाई!
इस
हिन्द के सख्त सफ़ीने का
जो माज़ी है माझी बन बैठा
उसे ठेलकर
नया दौर जब
दंगल में दाखिल होगा
ठीक उसी दिन
मौजें होंगी
और नया साहिल होगा..
bahut khoob aesa hi hoga .
sunder bhav aur uttam kavita ke lliye badhai
saader
rachana
bahut sundar rachnaa...
majaa aa gayaa.......
umiden bark sahi....shabdon ne jaise ehsaas ko shaql de di ho
bahut shaandar nazm kahi hai deepak ji.
badhai
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)