आज हम जून २००८ की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम लेकर प्रस्तुत हैं। यूनिकवि प्रतियोगिता में कुल ५४ कवियों ने भाग लिया। बहुत खुशी की बात है कि हिन्द-युग्म की पहुँच अब छोटे-छोटे शहरों तक भी हो रही हैं, जहाँ से हम प्रतिभाओं को एक वैश्विक मंच पर लाकर सत्य-सृजन के पन्नों की संख्या बढ़ा रहे हैं। निर्णय दो चरणों के ६ जजों द्वारा कराया गया। पहले चरण से ३० कविताएँ चुनकर अंतिम चरण के जजों को प्रेषित की गईं, जिनके द्वारा दिये गये औसत अंकों के आधार पर रोहतक (हरियाणा) निवासी श्याम सखा 'श्याम' की कविता 'मैं जब भी हक ओ हकूक की बात करता हूं' को यूनिकविता चुना गया।
श्याम सखा ‘श्याम’
जन्म-२८ अगस्त १९४८ रोहतक
जननी-श्रीमति जयन्ती देवी
पिता- श्री आर॰आर॰शास्त्री
जन्म सहायिका-नान्ही दाई [पाकिस्तान चलीं गई बंटवारे में]
सम्प्रति- अनिवार्य -चिकित्सा
ऐच्छिक-पठन-लेखन,छायांकन,घुमक्क्ड़ी
शिक्षा-डिग्रियां, एम.बी;बी,एस, एफ़.सी.जी.पी,एल.एल.बी[प्रथम]
जीवन की पाठशाला में अनेक पीड़ाओं से आनन्द ढूँढ़ने की कला पूज्य पिताजी व एक स्नेहिल मित्र डाक्टर एन के वर्मा [सर्जन] अब इहलोक में नही दोनों
पुरस्कार: दोस्तो की गालियां, रिश्तेदारों की जलन व डाह
मूल निवास- रूह कुछ टूटे दिलों में, पार्थिव शरीर-आधा दिन गोहाना अस्पताल में, रात-रोहतक
शेष वक़्त-सफर में गोहाना से रोहतक व बैक
लेखन= भाषा -हिन्दी,पंजाबी,अंग्रेजी,पंजाबी व उर्दू [देवनागरी लिपि में]
प्रकाशित पुस्तकें- ३ उपन्यास,३ कहानी सं,४ कविता सं.१ गज़ल सं,१ लघुकथा सं,एक दोहा सतसई,१ लोक कथा सं.
प्रकाशन प्रतीक्षा में-कई विधाओं की १६ पुस्तकें
लेखन सम्मान-
१ पं.लखमी चंद पुरस्कार [ हरियाणा साहित्य अकादमी का लोक-साहित्य व लोक संस्कृति पर सर्वोच्च पुर.राशि १ लाख रु]
२ अब तक हिन्दी पंजाबी हरयाण्वी की ६ पुस्तकें व ५ कहानियां हिन्दी व पंजाबी अकादमी द्वारा पुर.]
३ पद्मश्री मुकुटधर पांडेय [ छ्त्तीस गढ़ सरिजन सम्मान २००७ ४ अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण कथा सं अकथ हेतु २००७]
५ कथा-बिम्ब कथा पुर.मुम्बई, राष्ट्र धर्म कथा पु २००५ लखनऊ
६ सम्पाद्क शिरोमणि पु श्रीनाथ द्वारा साहित्य मंडल राजस्थान
७ रोटरी इन्टरनेशनल व अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
चिकित्सा क्षेत्र- चिकित्सा रत्न सम्मान-इन्डियन मेडिकल एशोसिएसन हरियाणा का सर्वोच्च सम्मान
विशेष= श्री श्रीलाल शुक्ल, डा.रामदरश मिश्र,डा नरेन्द्र कोहली व श्रीमति चित्रा मुदगल के कहानी सं,
कविता सं पर पत्रों के अलावा लगभग ५०० पाठको के पत्र
= एक उपन्यास कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय व महर्षि दयानन्द वि, के एम,ए फाइनल पाठ्यक्रम में
एक कहानी भी
= फोटो ग्राफी में कार्य के अतिरिक्त श्री अशोक बहल [फोटो ग्राफर आफ डैडी, चाहत,महेश भट्ट की
फिल्मों व अन्य अनेक फिल्मों ,इम्तिहान व सैलाब सीरियल] के प्रथम फोटो शिक्षक होने का
श्रेय
= साहित्य पर अब तक पी,एच,डी हेतु एक शोध व एम फिल हेतु ३ लघु शोध सम्पन्न
पता- जब सोने को जमीं है
ओढ़ने को आसमां है
दोस्तो फिर क्यों पूछते हो
मेरा घर कहां है
सम्पर्क- shyamskha@yahoo.com घुमन्तू भाष-०९४१६३-५९०१९
पुरस्कृत कविता- मैं जब भी हक ओ हकूक की बात करता हूं
मैं
जब भी
हक ओ हकूक
की बात करता हूं
मैं
जब भी
इन्सां के वजूद की
बात करता हूं
तो
लोग
लाठियां लेकर
मारने दौड़े चले आते हैं
चिल्लाते हैं
कि
इस पर
मसीहा उतर आया है
फिर
किसी इन्सान पर
बुद्ध, ईसा या माक्र्स
बनने का
भूत समाया है
मानो
ये सब
लक्कड़बग्घे थे
जो
बच्चों को
उठा ले जाते थे
पहले जब ऐसी बातों
पर
सर फुटौवल होता था
तो दोस्त
समझाते थे
कि
पगले
ऐसी बातें मत किया
और को जीने दे
और खुद भी जिया कर
पर मैं
उनकी बातें पचा नहीं पाता था
अब जब भी
हको हकूक
या इन्सा के वजूद की
बात पर
पिट-पिटा कर
घर लौटता हूं
तो
पत्नी आंचल से
मेरा
लहू पौंछती है
घी
हल्दी से
शरीर की चोट सेकती है
कातर
निरीह
आंखों से मेरे दिल में
झांकती है,
उसकी इन
नजरों से
मैं कमजोर पड़ जाता हूं
मेरी
रूह आंन्धी में
दीए की मानिन्द कांपती है
मैं सोचता हूं
कि अब तक
जो ख्वाब बुने थे
इन्सानियत के
सारे के सारे तोड़ दूं
पर
तभी सामने आ खड़ी होती है
बसु
माने
छोटी सी
प्यारी सी
बेटी
मेरी बेटी बसुदा
साफ
पाक आंखों से झांकती
मानो मेरी
कमजोरी को भांपती
जैसे
पूछती हो
पापा फिर कौन लड़ेगा?
उन लोगों ने
जिन्होंने खरीद लिया है
दाखिले
इंजिनयरिंग
और मेडिकल कालेजों के
जिन्होंने
मिलकर बांट ली है
सारी
नौकरियां
जाति धर्म
और भाई भतीजावाद
का नारा लगाकर
विश्वमुद्राकोष और पूंजीवादियों के हाथों
छीन रहे हैं
दस्तकारों के जीने का हक
मैं लड़खड़ाता सा
पत्नी के
कान्धे का सहारा लेकर
खड़ा होता हूं
और
अपनी कमजोरी की लाश
पर
खड़ा होकर चिल्लाता हूं
इंकलाब
जिन्दाबाद।
और
एक बार फिर
तैयार हो जाता हूं
ह्को-हकूक की
लड़ाई लड़ने के लिये
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰८५, ६
औसत अंक- ६॰४२५
स्थान- चौथा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ५॰५, ७, ७॰७, ६॰४३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰१२५
स्थान- प्रथम
पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।
यूनिकवि श्याम सखा 'श्याम' को तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी की ओर से 'येलो पिरामिड' भेंट की जायेगी तथा यूनिकवि को डॉ॰ गरिमा तिवारी से मेडिटेशन पर एक पैकेज का ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने का अधिकार होगा (लक पैकेज़ छोड़कर)।
शीर्ष १० में हमने इस बार कवियों को चुना है क्योंकि अंतिम ३ कविताओं के प्राप्तांक लगभग बराबर थे। वे हैं-
देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
विनय के॰ जोशी
यश
तपन शर्मा
अर्पिता नायक
पल्लवी त्रिवेदी
रेनू जैन
पंकज उपाध्याय
विजय शंकर चतुर्वेदी
अरूण मित्तल 'अद्भुत'
रचना श्रीवास्तव
उपर्युक्त लिखित नामों में से शीर्ष ९ कवियों को मसि-कागद की ओर से कुछ चुनिंदा पुस्तकें दी जायेंगी। साथ ही साथ संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य संग्रह 'मौत से जिजीविषा तक' भेंट करेंगे।
पाठकों की बात करें तो जून माह में देवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने जिस शिद्दत से हिन्द-युग्म को पढ़ा वो काबिले तारीफ है। इन्होंने एक-एक कविता की समीक्षा की और रचनाकारों को सम्बल दिया। इसलिए हम इन्हें जून माह का यूनिपाठक चुन रहे हैं।
देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
जन्म तिथि- ०४-०७-१९६३
कार्यालय- कार्यालय जि०वि०नि०-वाराणसी में लेखाकार पद पर कार्यरत।
शिक्षा- बी०काम०आनर्स -एम०काम०-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय-वाराणसी।
पता- सा-१०/६५- शांती नगर कालोनी-गंज-सारनाथ-वाराणसी।
साहित्यिक गतिविधि- न्यूनतम-----बचपन से शौकिया कविता लेखन---विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित-आकाशवाणी-दूरदर्शन से काव्य-पाठ-----मूलतः व्यंग लेखन में ही कार्य।
पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु २०० तक की पुस्तकें।
यूनिपाठक देवेन्द्र कुमार पाण्डेय को तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी की ओर से 'येलो पिरामिड' भेंट की जायेगी तथा यूनिपाठक को डॉ॰ गरिमा तिवारी से मेडिटेशन पर एक पैकेज का ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने का अधिकार होगा (लक पैकेज़ छोड़कर)।
दूसरे स्थान के पाठक संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी ने भी हिन्द-युग्म को बहुत पढ़ा। हालाँकि टिप्पणी करने में ये थोड़े अनियमित रहे, लेकिन जब भी किया तो लगा कि इन्हें कविता की बारीक समझ है और कवियों के मददगार हो सकते हैं। इन्हें मसि-कागद की ओर से ढेरों पुस्तकें भेंट की जायेंगी।
क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान के पाठक के लिए हमने चुना है करण समस्तीपुरी (केशव कुमार 'कर्ण') और रेनू जैन को। इन्हें भी मसि-कागद की ओर से कुछ चुनिंदा पुस्तकें भेंट की जायेंगी।
इसके अतिरिक्त इस माह से हिन्द-युग्म को दो बहुत उर्जावान पाठकों ने पढ़ना शुरू किया है। एक है ब्रह्मनाथ त्रिपाठी 'अंजान' और दूसरे है अनुराग शर्मा उर्फ स्मार्ट इंडियन। हमें उम्मीद है ये दोनों भविष्य के यूनिपाठक साबित होंगे।
हम शेष ४२ कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। हम गुजारिश करेंगे कि प्रयास जारी रखें, यूनिकिवि की मंजिल बहुत दूर नहीं।
शम्भू चौधरी
सन्नी चंचलानी
शम्भू नाथ
हकीम हरी हरण 'हथौड़ा'
स्मिता पाण्डेय
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
डॉ॰ विवेक श्रीवास्तव
शलभ जैन
अरविन्द चौहान
डॉ॰ गरिमा तिवारी
सुरिंदर रत्ती
शिवेश शक्तिदिव्या
अशरफ़ अली 'रिंद'
जीतेन चौथानी
संजीव कुमार बब्बर
सीमा सचदेव
कुंज बियानी
कृष्ण कुमार यादव
केशव कुमार कर्ण
आलोक सिंह साहिल
मीना जैन
सुजीत कुमार सुमन
विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'
रविन्द्र दास
पूजा अनिल
कमल प्रीत सिंह
गोविंद शर्मा
अनुराग शर्मा
रश्मि सिंह
ममता पंडित
मनीष जैन
पंकज रामेन्दू मानव
अनिरूद्ध सिंह चौहान
ब्रह्मनाथ त्रिपाठी अंजान
निर्भीक प्रकाश
कमला भंडारी
राकेश कुमार सकराल
सतीश वाघमरे
वीरेन्द्र आर्या
सुनील कुमार सोनू
सुमित भारद्वाज
डॉ॰ अनिल चड्डा
जुलाई माह की प्रतियोगिता के विजाताओं को हम पहले से पाँच गुना पुरस्कार दे रहे हैं। ज़रूर भाग लें। अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत खूब !
एक सूत्र में सामाजिक सरोकार, रूढियां, बंदिश, संबंधों की संवेदना समेटे यह रचना वस्तुतः यूनिकविता की अधिकारिणी है !!
अनन्य शुभ-कामनाएं !!
साथ ही देवेन्द्र जी को भी यूनिपाठक बनने पर बधाई !!
kahana kya hai sab kuch to unhone apni kavita me likh diya hai
श्याम सखा 'श्याम' जी
आपको को सलाम जी..
छोटी से लेखनी से
बड़ा सा पैगाम जी..
देवेन्द्र कुमार पाण्डेय जी
देखकर कर स्नेह जी
आप जैसे पाठकों से
मन अति प्रसन्न हैं
हिन्द-युग्म धन्य है
जी हिन्द युग्म धन्य है..
बहुत बहुत बधाई दोनों भाषा-सिपाहियों को..
यूनिकवि और यूनिपाठक दोनों को हार्दिक बधाई
बहुत ही संवेदनशील कविता है आपकी श्याम सखा ‘श्याम’ जी
बहुत ही अच्छी,सच में यूनिकविता बनने की अधिकारिणी है
पढ़कर दिल खुश हुआ
यूनिकवि की बधाई स्वीकार करे
और सभी पुरस्कृत कवियों और पाठको को ढेरो बधाइयाँ
bahut hi acha prayash ek baar phir se kiya hi aap logon ne and nayi nayi pratibhon se milne ka acha mouka pradan karte hain aap log
अपनी कमजोरी की लाश
पर
खड़ा होकर चिल्लाता हूं
इंकलाब
जिन्दाबाद।
और
एक बार फिर
तैयार हो जाता हूं
ह्को-हकूक की
लड़ाई लड़ने के लिये
bahut khoob shyam ji...
"अपनी कमजोरी की लाश" yeh shabd bahut sateek aur achhe lage....
श्याम सखा जी व देवेन्द्र कुमार पाण्डेय जी, बहुत बहुत बधाई हो.
श्याम जी,
बहुत ही अच्छी कविता |
जीवन समर में प्रेरणा देती रचना |
देवेन्द्र जी, संतोष जी बधाई स्वीकारे |
श्याम जी और देवेन्द्र जी, आप दोनों को यूनिकवि और यूनिपाठक बनने पर बधाई । श्याम जी, आपने जो लड़ते हुए कमजोर हो जाने वाली बात बताई, वह ईमान के अधिकतर सिपाहियों के साथ होती है । वे भी लड़ते लड़ते थकने लगते हैं और अपने को कमजोर और हारता हुआ सा महसूस करने लगते हैं । उनकी कमजोरी का वध करने वाले तत्त्व जब सही समय पर सक्रिय हो जाते हैं तो वे हारने से बच जाते हैं, यदि उन तत्त्वों को देरी हो जाती है तो सिपाही सचमुच क्रमशः कमजोर होने लगता है और धीरे धीरे मैदान छोड़कर शान्त जिन्दगी जीने लगता है । इसलिए लड़ते हुए साथ ही भगवान से यह प्रार्थना भी करते रहना चाहिए कि मुझे कभी कमजोर न होने देना ।
पत्नी आंचल से
मेरा
लहू पौंछती है
घी
हल्दी से
शरीर की चोट सेकती है
कातर
निरीह
आंखों से मेरे दिल में
झांकती है,
उसकी इन
नजरों से
मैं कमजोर पड़ जाता हूं
मेरी
रूह आंन्धी में
दीए की मानिन्द कांपती है
मैं सोचता हूं
कि अब तक
जो ख्वाब बुने थे
इन्सानियत के
सारे के सारे तोड़ दूं
पर
तभी सामने आ खड़ी होती है
बसु
माने
छोटी सी
प्यारी सी
बेटी
कितनी प्यारी रचना दी है, श्यामजी आपकी सरल भाषा में अभिव्यक्ति वास्तव में यूनिक है. नारी ने जब भी पुरुष कमजोर पडा है अपने प्यार से शक्ति दी है- वह आंचल भले ही मां का रहा हो या पत्नी का. बहिन व बेटी की मुस्कराहट के लिये ही, उनसे शक्ति लेकर ही इन्कलाब का नारा लगता है. सभी प्रतियोगियों को बधाई जो पुरुस्कृत हुये उनको और जो पुरुस्कृत नहीं हुऐ उनको भी.
स्नेही पाठको!
किसी भी लेखक की ताकत उसकी रचना पर मिली प्रतिक्रिया ही होती है। इस रचना ने आपको छूआ और रचना को आपका स्नेह व आशीर्वाद मिला । मैं सचमुच आभारी हूं आप स्भी का।निर्णायक मंडल ने इसे चुना ,सम्मान दिया,उनको भी हार्दिक नमन।
यूनिकवि और यूनिपाठक को मेरी ओर से हार्दिक बधाई।
मुझे श्याम सखा जी की रचना बहुत अच्छी लगी। सरल शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति आपकी महती विशेषता है।
बहुत ही संवेदनशील कविता है आपकी श्याम सखा ‘श्याम’ जी ... बधाई
देवेन्द्र जी को भी यूनिपाठक बनने पर बधाई !!
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