अथर्ववेद का कथन है-
रुहो रुरोह रोहितः (अथर्ववेद १३।३।२६)अर्थात् उन्नति उसकी होती है, जो प्रयत्नशील है। और यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि हिन्द-युग्म टीम प्रयत्नशील है एवम् इसकी उन्नति सुनिश्चित है। उन्नति के प्रारम्भिक लक्षण दिखने भी लगे हैं। पिछले ८ महीनों से हम 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' का आयोजन कर रहे हैं। पहली बार हमारी प्रतियोगिता में ६ यूनिकर्मियों ने भाग लिया था। आज हम जिस अगस्त अंक का परिणाम लेकर प्रस्तुत हैं, उसमें कुल ३६ कवियों ने भाग लिया।
जनवरी माह में दैनिक पाठकों की संख्या
५० के आसपास थी, अगस्त माह में वो भी
८०० से ऊपर चली गई। ये सब पाठकों के प्रोत्साहन और हमारी टीम की मेहनत के प्रतिफल हैं।
यह स्वभाविक भी है, जब प्रतिभागी बढ़ेंगे, जजों को भी अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। अब तक प्रथम चरण के जजों को सभी कविताएँ सौंपी जाती थी, लेकिन इस बार चूँकि कविताएँ अधिक की संख्या में थीं, इसलिए बेहतर निर्णय के लिए प्रथम चरण के निर्णय को दो उपचरणों में विभाजित किया गया। एक उपचरण में दो जज रखे गये जिन्हें १८-१८ कविताएँ सौंपी गईं। सभी के अंकों का सामान्यीकरण करके श्रेष्ठ २२ कविताएँ चुनी गईं, जिन्हें द्वितीय चरण के जज को भेजा गया।
यहाँ हम यह बताते चलें कि क्रमिक दो-तीन कविताओं के प्राप्ताकों में इतना कम अंतर होता है (अमूमन दशमलव के दूसरे या तीसरे स्थान का अंतर) कि हमें हमेशा श्रेष्ठ १०, १२ या १५ चुनने में बहुत तकलीफ़ होती है। लेकिन तुरंत इस बात की खुशी होती है कि अधिकांश प्रतिभागी इसे भी सकारात्मक लेते हैं और बारम्बार प्रयास करते हैं।
प्रायः हम दूसरे चरण के निर्णय के बाद १० कविताओं को चुनते हैं, लेकिन १० से १३ वें स्थान तक की कविताओं के प्राप्तांक में इतना कम अंतर था कि टॉप १३ कविताएँ लेनी पड़ीं। यही हाल तीसरे चरण का हुआ। हम अंतिम जज को ६ कविताएँ भेजना चाहते थे, लेकिन कविताओं में इतनी सशक्त प्रतिस्पर्धा थी कि आठ भेजनी पड़ी।
अंतिम चरण का निर्णय बहुत ही कठिन रहा। आज हम शुरूआत की जिन ४ कविताएँ प्रकाशित करने जा रहे हैं, उनको कोई क्रम नहीं दिया जा सकता। लेकिन चूँकि यूनिकविता चुननी थी। आखिरकार अंतिम निर्णयकर्ता ने
'कन्या भ्रूण हत्या' को यूनिकविता चुना। बहुत खुशी की बात है कि हमसे नित नये कवि जुड़ रहे हैं। इस बार के यूनिकवि राहुल पाठक का चेहरा हम सबके लिए नया है। मिलते/मिलवाते हैं इनसे-
यूनिकवि- राहुल पाठकपरिचय- 
इनका जन्म छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में अगस्त 1982 को हुआ जहाँ पर इनकी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा हुई। कवि के माता- पिता दोनों ही अध्यापक हैं। इनकी मौसी जी राज्यपाल द्वारा सर्वश्रेष्ठ अध्यापक के पुरस्कार से जब सम्मानित हुईं तब इन पर बहुत प्रभाव पड़ा। चूँकि कवि की मौसी जी ही इनके विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका थी अतः हिंदी विषय में इनकी रुचि प्रारंभ से ही रही। हिंदी के अनेक महान कवियों की रचनाएँ इन्हें बचपन में ही कंठस्थ हो गयी थीं। राष्ट्र कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी का इनपर बहुत प्रभाव रहा है। विद्यालयकालीन शिक्षा के बाद इन्होंने इंदौर की आई. पी. एस. एकेडेमी में M.C.A. { MASTAR OF COMPUTER APPLICATION} में प्रवेश लिया और अभी अंतिम वर्ष के छात्र हैं। अध्ययन समाप्त होने के पूर्व ही कैप जैमिनी नामक कंपनी में इनका चयन हो चुका है। अध्ययन में व्यस्तता के चलते साहित्य-संसार से संपर्क बिल्कुल टूट गया था। जब यह हिन्द-युग्म के यूनिकवि विपुल शुक्ला के संपर्क में आए तब साहित्य में रुचि उत्पन्न हुई और नयी प्रेरणा से लेखन कार्य शुरू हो गया।
पुरस्कृत कविता- कन्या भ्रूण हत्याठीक कुछ छः माह की
नव मैं इस धरा पर
आने को तत्पर
पर हाय दुर्भाग्य!
मै अबला, बला
परिवार के सदस्यों को
मेरे रिश्तेदारों को
ख़ुद पिता को
दादा-दादी को
नापसंद
मेरा तयशुदा अंत
कुविचार-विमर्श और डील
जल्लाद तैयार क्रुवर डील
रोती माँ क्षमादन माँगती मेरा
बेबस लाचार
दीन मुक़र्रर
अर्थी तैयार
मैं और माँ उस पार
चाकुओं-औज़ारो का मेला
हमारा कुछ पल का साथ अकेला
आती चिमटी पेरों पार मेरे
सहमती, जीवनदान
माँगती अकेली मैं
चीत्कार इस बार
भीषण दर्द पैर उस पार
बिलखती मैं
गर्भगृह का अंधकार
अंतरनाद
पुनः जकड़
पकड़-पकड़
अंग-अंग
भंग-भंग
मेरे आँसुओं से भीगता माँ का पेट
खींचता मेरा शरीर
टूटता नाभि का जुड़ाव
माँ और मेरा
अंतिम छुवन
उसकी घुटन
अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्रणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होने छः माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ७॰६६४७
औसत अंक- ८॰५८२३
स्थान- छठवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५८२३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰५४११
स्थान- ग्यारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता ठीक बन पड़ी है व तादात्म्य स्थापित करने में सफल भी। यदि टंकित करने के बाद एक बार देख लिया जाता तो कई परिवर्तन हो सकते। आगे और अभ्यास से बेहतर रचना की अपेक्षा की जा सकती है।
अंक- ५॰५
स्थान- तीसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-कविता सम-सामयिक तो है ही। प्रवाह कविता के प्राण हो गये हैं। कविता का आरंभ नितांत साधारण है किंतु कवि ने शब्दों को ऐसा चुना है कि पाठक जुड़ता जाता है। और दूसरा अंतरा प्रवाह और भाव दोनों में डुबोने की क्षमता रखता है। संवेदना और शिल्प दोनों ने मिल कर कविता को उँचाई प्रदान की है विषेशकर कविता का अंतिम पैरा:
अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्राणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होंने छ: माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया
स्तब्ध करने वाली पंक्तियाँ है। समाज की नपुंसकता को उकेरती हैं। बिम्ब, भाव, प्रवाह और समसामयिकता.....बहुत बधाई कविवर।
कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८॰५/10
कुल योग: १६॰५/२०
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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने सितम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम और।
पुस्तक
'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
यूनिकवि राहुल पाठक तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट)
डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।
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पिछले दो महीनों से स्मिता तिवारी की व्यस्तता के कारण हम यूनिकविता के साथ उनकी पेंटिंग प्रकाशित नहीं कर पा रहे थे, मगर इस बार यह बताते हुए हम बहुत खुश हैं कि इस बार एक नहीं, वरन दो-दो पेंटर की पेंटिंगें इस कविता के साथ प्रकाशित कर रहे हैं।
पहली पेंटिंग है,
इस बार के काव्य-पल्लवन की कुछ कविताओं पर कैनवास खींच चुके अजय कुमार की।

और दूसरी है हमारे-आपके लिए बिलकुल नये पेंटर सिद्धार्थ सारथी की पेंटिंग। यह पेंटिंग भी सभी पाठकों को समर्पित।

इस बार पाठकों में बहुत घमासान रहा। रचना सागर, विपिन चौहान 'मन', रविकांत पाण्डेय और शोभा महेन्द्रू हमारे ऐसे पाठक रहे हैं, जिनकी टिप्पणियों की संख्या के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जा सकता क्योंकि उस मामले में कोई किसी से कम नहीं है।
मगर शोभा महेन्द्रू ने जिस आवृत्ति और ऊर्जा से हमें पढ़ा है, वो शायद अतुलनीय है। ऊर्जा और उत्साह की जो आहुति इस यज्ञ प्रयास में ये सभी पाठक डाल रहे हैं, निश्चित रूप से उसकी तुलना पुरस्कारों से नहीं की जा सकती। बस हम नमन कर सकते हैं। इन चारों के मध्य वर्गीकरण का हमारा कोई भी आधार कमज़ोर होगा। इसलिए यूनिकवि की तरह यूनिपाठक चुन रहे हैं।
यूनिपाठिका- शोभा महेन्द्रूपरिचय- 
इनका जन्म उत्तरांखण्ड की राजधानी देहरादून में १४ मार्च सन् १९५८ में हुआ। हिन्दी साहित्य में प्रारम्भ से ही रुचि रही। विद्यार्थी काल में ही शरद, प्रेमचन्द, गुरूदत्त, भगवती शरण, शिवानी आदि को पढ़ा। लेखन में भी बहुत रुचि प्रारम्भ से ही रही। हमेशा अपने जीवन के अनुभवों को डायरी में लिखा। कभी आक्रोश, कभी आह्लाद, कभी निराशा लेखन में अभिव्यक्त होती रही किन्तु जो भी लिखा स्वान्तः सुखाय ही लिखा। लेखन के अतिरिक्त भाषण, नाटक और संगीत में इनकी विशेष रुचि है। इन्होंने गढ़वाल विश्व विद्यालय से हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की है। वर्तमान में फरीदाबाद शहर के 'मार्डन स्कूल' में हिन्दी की विभागाध्यक्ष हैं। हिन्दी के प्रति सबका प्रेम बढ़े और हिन्दी भाषा बोलने और सीखने में सब गर्व का अनुभव करें, यही इनका प्रयास है।
चिट्ठा- अनुभव--------------------------------------------------------------------------------
पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।
पुस्तक
'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
यूनिपाठिक शोभा महेन्द्रू तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट)
डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।
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दूसरे स्थान पर हमने रखा है हमारे सक्रियतम पाठक
रविकांत मिश्र को। तीसरे स्थान पर हैं
विपिन चौहान 'मन' और चौथे स्थान पर काबिज़ हैं
रचना सागर। तीनों को
कवि कुलवंत सिंह की काव्य-पुस्तक
'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति। विपिन चौहान 'मन' को एक बार और 'निकुंज' भेजी गई थी, लेकिन उनकी शिकायत है कि अभी तक यह पुस्तक उन्हें नहीं मिली। अब तो दुबारा भेजी जा रही है, पक्का मिलेगी। यद्यपि उद्घोषणा के अनुसार रविकांत पाण्डेय को
डॉ॰ कुमार विश्वास की काव्य-पुस्तक
'कोई दीवाना कहता है' मिलनी चाहिए, लेकिन वो भी हम रचना सागर को भेंट कर रहे हैं क्योंकि हम किताबों को अधिकतम हाथों में सौंपना चाहते हैं न कि अधिकतम किताबों को एक हाथ में। यह पुस्तक विपिन चौहान 'मन' को पिछले माह भेज दी गई थी। इसलिए रचना जी इसकी हकदार हैं।
इसके अतिरिक्त हमारे स्थाई पाठक, सहयोगी, मार्गदर्शक
तपन शर्मा, गीता पंडित, पीयूष पण्डया, घुघुती बासूती, कमलेश, राकेश, संजीत त्रिपाठी आदि ने खूब पढ़ा। हम उम्मीद करते हैं कि हमें और नये पाठक मिलेंगे और वर्तमान पाठक भी अपनी श्रद्धा बनाये रखेंगे।
फ़िर से कविताओं का रूख़ करते हैं। कहने के लिए दूसरे स्थान की कविता (वैसे सभी प्रथम हैं) का शीर्षक भी 'कविता' ही है। इसके रचनाकार हैं रविकांत पाण्डेय। इनकी कविता
'मिट गया हूँ मैं' ने पिछली बार भी टॉप १० में ज़गह बनाई थी। इस बार भी इनका टॉप में बने रहना इनकी रचनात्मक शक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करता है।
कविता- कविता
कवयिता- रविकांत पाण्डेय, कानपुरमेरी कविता.....
पढ़ना मत, चूक जाओगे
बन सके यदि
जीओ इसे, जान जाओगे.......
कि
कविता को जन्म देने के लिए
गुजरना पड़ता है कवि को
प्रसव-पीड़ा से....
कि
कविता ज्यों-ज्यों बड़ी होती है
देना पड़ता है-
वस्त्र-तन ढँकने को,
अन्न-भूख मिटाने को........
कि
कविता जब जवान होती है
शृंगार माँगती है......
कि
कविता झेलती है-
कभी गरीबी का दंश भी
जहाँ शौक दम तोड़ देते हैं
कभी पलती है राजसी ठाट में
जहाँ अभावों के बादल नही होते........
कि
कभी पड़ती है
छाया अकाल मृत्यु की
और कभी लाँघ जाती है कविता
इस देहरी को
और बन जाती है
समयातीत।
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰१९३७५, ८॰८२१४२
औसत अंक- ८॰५०७५८९
स्थान- आठवीं
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ८॰५०७५८९(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰७५३७९४
स्थान- सातवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-अलग विषय पर लिखी इस कविता में प्रौढ़ता की सम्भावनाएँ निहित हैं। रचनाशीलता की गुत्त्थियाँ खोलने का प्रयास करती रचना में गद्य व स्फीति अतिरिक्त आ गए हैं।
अंक- ५॰२
स्थान- चौथा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-कविता क्या है? क्यों है? कैसी है...कवि का मंथन गहरा है। विचारों की परिपक्वता के साथ कवि के विषय किस तरह बदलते हैं, सुन्दरता से प्रस्तुत हुआ है।
कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १६/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें। कुमार विश्वास की ओर से 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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हमारे सदस्यों की चिंता थी कि हमें जम्मु शहर से बहुत कम पाठक मिलते हैं, लेकिन इस बार के तीसरे स्थान के कवि विनय मघु ने यह सिद्ध किया कि अब हम वहाँ भी पहुँच रहे हैं। और सिर्फ पहुँचे ही नहीं बल्कि स्तरीय कवि को जोड़ भी पा रहे हैं। मघु जी की कविता 'नन्ही छाती' इस परिणाम की तीसरी कविता है।
कविता- नन्ही छाती
कवयिता- विनय मघु, जम्मुनन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है।
वह
छाती जिस में
दिखता नहीं कोई उभार
और
जिसमें बहती नहीं
कभी दूघ की नदियाँ
जिसकी मांग बरसों
से कर रही हैं,
एक
चुटकी भर सिंदुर का
इंतजार
ताकि,
वह भी
औरों की तरह
माथे पर सजा सके बिंदिया
बनाने वाले ने जिसे
छोड़ दिया दुनिया
में
निवस्त्र
अपने नंगे
जिस्म को
लालची भेड़ियों
की नज़रों से
बचाने के लिए
ओढ़ लेती हैं
जो एक
चादर
जो
आग से तापती हैं
वो
ओरों को
क्या दु:ख देगी,
जो अपने
जख्मों पर मरहम
छुपते-छुपते मलती हैं
नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है
दोपहर
जो
रामायण सी पवित्र
है।
फूलों की पंखुड़ियों की तरह
कोमल
तथा
हिमालय की बर्फ सी
दिल से
साफ है
उस जैसी
और
कौन
अभागन होगी,
जो अपनी ही
आग
में आहिस्ता-आहिस्ता
पिघलती है,
नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है।
जो
बरसों
से
बैठी हैं राधा की तरह
पत्थरों के पनघट पर
और
नयनों से जिसके
आंसुओं की धारा बह रही हैं
जो चुप है होंठों से
मगर
दिल से
भाम-भाम
पुकार रही हैं
हा!
वह दोपहर
ही तो है
जो एक एक बूंद को तड़पती है,
जो हर पल आग में जलती है,
बादलों के दर-दर भटकती है,
और
अक्सर अभागन
लौट आती है
खाली हाथ
बिना कुछ पाये,
निराशा के सिवाये।
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰५, ८॰६३६३६३
औसत अंक- ८॰५६८१८१
स्थान- सातवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५६८१८१(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९४५
स्थान- बारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-प्रतीक का निर्वाह आद्यंत हुआ है। अर्थ की अन्विति,बिम्ब व प्रतीक व्यवस्था अच्छी बन पडी है। कविता का मुहावरा व लयात्मकता भी भली लगती है। कवि में सम्भावनाएँ हैं । वर्तनी ठीक करने पर भी ध्यान देना होगा।
अंक- ६
स्थान- प्रथम
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-इस कविता के भीतर की संवेदना झकझोर देती है। चित्रण और दोपहर के साथ कवि ने जो संकल्पना जोड़ी है कि पढ़ते हुए वह जलन पाठक के भीतर भी महसूस होने लगती है। सहजता कवि ने अपनायी है और कविता को कहीं भी कमजोर नहीं पड़ने दिया है। कविता में पंक्तियों को तोड़ते हुए कई स्थानों पर कवि असावधान हुआ है किंतु उसके शब्द संवेदना उकेरने में कहीं भी असफल नहीं हुए।
कला पक्ष: ७॰५/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५॰५/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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पिछली बार टॉप १० में न पहुँच पाये विजय दवे ने पुनः प्रयास किया और यह सिद्ध कर दिया कि उनकी आवाज़ को कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। उनकी 'तुम कब आओगी' शृंखला की तीन कविताएँ ४वें स्थान पर रही।
कविता- तीन कविताएँ ( तुम कब आओगी ?)
कवयिता- विजय दवे, भावनगर (गुजरात)१) तुम कब आओगी ?मेरी आंखों में उमड़ते हुए समंदर की हर एक बूँद में
तेरी तस्वीर बंद है .
तेरी हर एक तस्वीर को मैं झांका करता हूँ
चोरी-चोरी, चुपके-चुपके .
मेरे होठों पर कई दिनों से
तितली बैठने नहीं आयी .
मेरी आंखों में कई दिनों से
एक कटी-पतंग उड़ रही है .
मेरे कानों में निरव स्वर ने
झंकार देना छोड़ दिया है .
मेरी अंगुलियों ने स्पर्श संवेदना
गंवा दी है .
मैं एक बुत-सा बन गया हूँ
मुझे पारसमणि की तलाश है .
तुम कब आओगी ?
(२) तुम कब आओगी ?रात के अंधेरों ने
मुझे बिस्तर पर तड़पते हुए देखा है .
कभी-कभार खुली आंखें
सपना देख रही होती है .
बगल में रहे पेड़ के पत्तों की खड़खड़ाहट
झांका करती है ,
मेरे बिस्तर पर , जो मेरे जिस्म से
भरा पड़ा होता है .
चुपके-चुपके याद दस्तक दे जाती है
मेरे उद्विग्न मन के पट पर
और
उस रात मैं ज़िंदा जलाया जाता हूँ
- उन यादों के हाथों , जो तेरे जाने के बाद आती हैं
मेरे कानों में तेरे अट्टहास की आवाज़
गुंजने लगती है .
उस दिन मेरा बिस्तर मुझे
मेरी आंखों के नीचे गीला हुआ मिलता है
फिर मैं अपने आपको पूछ बैठता हूँ
तुम कब आओगी ?
(३) तुम आओगी या नहीं ?अध खुली आंखों में इंतज़ार ने
अभी-अभी टपकना शुरू किया है .
टेबुल पर पड़ी किताब के पन्ने
छत पर लटके पंखे से उलटते रहते है .
तुम आओगी या नहीं
यह मुझे नहीं पता
मगर
हर रोज़ तुम्हारी याद सपनों में आकर
मुझे जागने को विवश कर देती है .
कभी उत्तर मिलेगा या नहीं
कि
तुम आओगी या नहीं ?
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ९॰५
औसत अंक- ९॰५
स्थान- प्रथम
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-९, ९॰५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ९॰२५
स्थान- दूसरा
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-प्रतीक्षा व वियोग को व्यक्त करती इन पंक्तियों की सम्वेदना प्रभावशाली है।कवि के पास स्थितिविशेष को सहजता से रूपायित करने की सूझ है। अतिरिक्त गद्यात्मकता से बचा जा सकता था । वर्तनी की चूकें सुधार ली जानी चाहिएँ।
अंक- ५॰७
स्थान- दूसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-'तुम कब आओगी?' के तीनों भाग बहुत सुन्दर बन पड़े हैं। कवि के बिम्बों को पढ़ते हुए अनेक स्थानों पर गुलजार के बिम्बों सा अनूठापन दिखा। संपूर्णता में बेहद उत्कृष्ट रचनायें।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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अब हम बात करते हैं टॉप १० रचनाकारों में से अन्य ६ की (जिनमें से कई नये हैं), जिनको कवयित्री
डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक
'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी।
अनिता कुमार
विपिन चौहान 'मन'
पंकज रामेन्दू मानव
आनंद गुप्ता
सुनीता यादव
संतोष कुमार सिंह
इसके अतिरिक्त २६ कवि और हैं जिनका हम धन्यवाद करते हुए यह निवेदन करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लें और पुनः प्रयास करें।
अजय कुमार आईएएस
आशिष दूबे
सुनील कुमार सिंह (तेरा दीवाना)
संजय लोधी
डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना
पीयूष दीप राजन
पीयूष पण्डया
दिव्य प्रकाश दूबे
श्रीकांत मिश्र 'कांत'
कवि कुलवंत सिंह
मनोहर लाल
पागालोकी बरात
हरिहर झा
अनुभव गुप्ता
जन्मेजय कुमार
शोभा महेन्द्रू
हिमांशु दूबे
ममता किशोर
आशुतोष मासूम
उत्कर्ष सचदेव
दीपक गोगिया
हेमज्योत्सना पराशर
तपन शर्मा
प्रदीप गावन्डे
प्रवीण परिहार
रिंकु गुप्ता
निवेदन- सभी प्रतिभागी कवियों से निवेदन है कि वो कृपया अपनी रचनाओं को ३० सितम्बर २००७ तक कहीं प्रकाशित न करें/करवायें, क्योंकि हम अधिक से अधिक कविताओं को युग्म पर प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे।
अंत में सभी प्रतिभागियों का हार्दिक धन्यवाद करते हुए हम यह निवेदन करते हैं कि इसी प्रकार हमारे आयोजनों का हिस्सा बनकर हमारा उत्साह बढ़ाते रहें।
सितम्बर माह की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्घोषणा
यहाँ की जा चुकी है।
धन्यवाद।