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हिन्दी कविता की नवल किरणें


माह के प्रथम सोमवार को हिन्द-युग्म एक पर्व की तरह मनाता रहा है। इन दिनों छठ पर्व की धूम है। छठ में सूर्य की उपासना की जाती है। इस सोमवार हम भी हिन्दी कविता के कवि-सूर्य और पाठक-सूर्य से आपका परिचय करा रहे हैं। मतलब अक्टूबर माह की यूनिकवि और यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम को प्रकाशित कर रहे हैं। यूनिकवि के लिए इस बार हमें कुल ३३ कविताएँ प्राप्त हुई थीं, जिसमें से जजों ने विजय कुमार सप्पत्ती की कविता 'सिलवटों की सिहरन' को यूनिकविता चुना।

यूनिकवि- विजय कुमार सप्पत्ती

मूलतः नागपुर के रहने वाले विजय कुमार सप्पत्ती वर्तमान में MIC इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड, हैदराबाद में वरिष्ठ महाप्रबंधक (मार्केटिंग) हैं। इन्हें कविता-लेखन और फोटोग्राफी से प्यार है। कविता लेखन में नये हैं। अब तक २५० से अधिक कविता लिख चुके हैं जो मुख्यतः प्रेम और संबंधों पर है।

पुरस्कृत कविता- सिलवटों की सिहरन

अक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटें बना जाता है …..

मेरे हाथ, मेरे दिल की तरह
कांपते हैं, जब मैं
उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ …..

तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छू जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था ,
मैं सिहर-सिहर जाती हूँ, कोई अजनबी बनकर तुम आते हो
और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …

तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे-धीमे उतरता है
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में,
पर तेरी मुस्कराहट,
जाने कैसे बहती चली आती है ,
न जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …..

कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
कोई माझी, तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......

मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोड़े है ........


प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰२५, ४, ४॰५, ६॰७५
औसत अंक- ५॰६२५
स्थान- नौवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ७॰५, ५॰६२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७१
स्थान- पहला




पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।

चूँकि यूनिकवि ने नवम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविता प्रकाशित करने का वचन दिया है, अतः शर्तानुसार रु १०० प्रत्येक कविता के हिसाब से रु ३०० का नग़द इनाम दिया जायेगा।

हिन्द-युग्म प्रत्येक माह कम से कम १० कवियों को उपहार-स्वरूप पुस्तकें देकर इनका प्रोत्साहन करता आया है। इस बार हम जिन अन्य नौ कवियों को अनुभूति-अभिव्यक्ति की प्रधान सम्पादिका पूर्णिमा वर्मन का काव्य-संग्रह 'वक़्त के साथ’ की एक-एक प्रति भेंट करेंगे, वे हैं

मनीष मिश्रा
पूजा अनिल
सुजीत कुमार सुमन
रोहित
दिव्य प्रकाश
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
स्मिता मिश्रा
तपन शर्मा
सुनील कुमार ’सोनू’

उपर्युक्त सभी कवियों की कविताएँ १-१ करके हिन्द-युग्म पर प्रकाशित होंगी। इन सभी कवियों से निवेदन है कृपया अपनी कविता ३० नवम्बर से पहले अन्यत्र प्रकाशित न करें/ करवायें

उपर्युक्त कवियों से निवेदन है कि अक्तूबर माह की अपनी कविता-प्रविष्टि को न तो अन्यत्र कहीं प्रकाशित करें ना प्रकाशनार्थ भेजें क्योंकि हम इस माह के अंत तक एक-एक करके प्रकाशित करेंगे।

इस बार बहुत से नये पाठकों ने अक्टूबर माह के उतर्राद्ध में हिन्द-युग्म पर दस्तक दी है। जिनमें अर्श, मुहम्मद अहसन, मुफ़लिस के नाम प्रमुख हैं। हमेशा की तरह दीपाली मिश्रा ने हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा है। दीपाली अगस्त माह की यूनिपाठिका के पुरस्कार से सम्मानित भी की गई है। लेकिन इस बार हम हिन्द-युग्म को कम लेकिन संजीदा तौर पर पढ़ने वाली लक्ष्मी ढौंडियाल को यूनिपाठिका बना रहे हैं। जिनकी २-३ कविताएँ हमारे यहाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। वो अपना चित्र वगैरह हमें देने से मना करती रही हैं, इसलिए हम उनका पूरा परिचय यहाँ नहीं प्रकाशित कर पा रहे हैं।

यूनिपाठिका- लक्ष्मी ढौंडियाल

कवयित्री लक्ष्मी ढौंडियाल मूलतः गढ़वाल से हैं और हिन्दी में एम॰ए॰ किया है। वर्तमान में दिल्ली में किसी गैर सरकारी संगठन में स्टैनोग्राफर के पद पर कार्यरत हैं।

पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु २०० तक की पुस्तकें।

दूसरे से चौथे स्थान के पाठक के रूप में हमने क्रमशः नीति सागर, संजीव सलिल और मानविंदर भिंबर को चुना है, जिन्हें हम हिन्द-युग्म की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट करेंगे।

हम निम्नलिखित कवियों का भी धन्यवाद करते हैं, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर इसे सफल बनाया और यह निवेदन करते हैं कि नवम्बर २००८ की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में भी अवश्य भाग लें।

यश दीप
ज़ूबी मंसूर
दीपा मिट्टीमनी
संगीता त्रिपाठी
अरूण मित्तल
रचना श्रीवास्तव
संगीता त्रिपाठी
राशिद अली
राजी कुशवाहा
अभिलाषा शर्मा
अनुपम अग्रवाल
हरकीरत कलसी
निशांत भट्ट
अलोका
दीपाली मिश्रा
प्रदीप मनोरिया
सौरभ
राजीव सारस्वत
गोपाल कृष्ण भट्ट ’आकुल’
पारूल शानू
लक्ष्मी ढौंडियाल
नीति सागर
महेश कुमार वर्मा
जितेंद्र तिवारी

मेजर गौतम राजऋषि- हिन्द-युग्म के नये यूनिकवि


हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में पिछली बार हमने ग़ज़ल लेखक पराग अग्रवाल को हमने यूनिकवि चुना था। सितम्बर माह की प्रतियोगिता के लिए आईं ग़ज़ल प्रविष्टियों का मूल्यांकन अलग से कराया गया। ४४ कविताओं में से ९ कविताओं को ग़ज़ल के पैमाने पर मापा गया। अन्य कविताओं के प्राप्तांकों के साथ ग़ज़लों के अंकों को शामिल करते वक़्त उनका सामान्यीकरण (Normalisation) किया गया। इस प्रकार प्रथम चरण के ६ जजों द्वारा दिये गये अंकों के औसत के आधार पर २२ कविताओं को दूसरे चरण के जजमेंट के लिए भेजा गया, जहाँ दो जजों के द्वारा दिये गये अंकों और प्रथम चरण के औसत के औसत के आधार पर गौतम राजऋषि की ग़ज़ल को यूनिकविता चुना गया।

गौतम राजऋषि

Gautam Rajrishiउम्र के बत्तीसवें पायदान पर खड़े गेतम राजऋषि जीवन के छोटे-मोटे अनुभवों को बस शब्दों में बाँध लेने की कोशिश करते हैं। सेना में हैं। जन्म और प्रारम्भिक शिक्षा बिहार के कोशी प्रभावित सहरसा में. इंटरमीडियेट करने के पश्‍चात राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, पुणे में दाखिला ले लिया जहाँ तीन साल के सैन्य-प्रशिक्षण के बाद भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में फिर एक साल का विशिष्ट प्रशिक्षण और तब से भारतीय सेना की पैदल-वाहिनी (इन्फैन्ट्री) में हैं। "मेजर" के पद पर हैं फिलहाल। विगत दस सालों की सैन्य-सेवा आधे से ज्यादा कश्मीर घाटी में अनाम लड़ाइयाँ लड़ते हुये बीती है। एक साल के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति-सेना के साथ अफ्रीका के कांगो गणराज्य में सेवारत थे और अभी पिछले डेढ़ सालों से उत्‍तराखंड की इस मनोरम वादी देहरादून में हैं- उसी भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षक के तौर पर जहाँ कभी खुद ये एक कैडेट हुआ करते थे। साहित्य से जुडा़व बचपन से रहा। कविता और ग़ज़ल पढ़ते-सुनते एक रोज अहसास हुआ कि खुद भी लिख सकते हैं। बशीर बद्र, निदा फाजली, वसीम बरेलवी, राहत इंदौरी, मुक्तीबोध, दुष्यंत कुमार, अहमद फ़राज़, गुलज़ार, फ़िराक...ये कुछ नाम हैं जिन्हें पढ़ते-गुनते बड़े हुए हैं। और गज़लों के अराधक-याचक-पुजारी हैं। किताब खरीदने और जमा करने का शौक है। गज़लों और कविताओं का काफी अच्छा संकलन इक्कठा किया है। और दुसरी तरफ कौमिक्स के दीवाने हैं। अपनी वर्दी और फ़ौज के अनुशासन की तरह ग़ज़ल के अनुशासन पर खड़ा उतरने की कोशिश कर रहे हैं अपने गुरु पंकज सुबीर की शागिर्दगी में. आज ये यूनिकवि बने हैं, इसका श्रेय ये अपने गुरु को ही देते हैं।

पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल

हवा जब किसी की कहानी कहे है
नये मौसमों की जुबानी कहे है

फ़साना लहर का जुड़ा है जमीं से
समुन्दर मगर आसमानी कहे है

कटी रात सारी तेरी करवटों में
कि ये सिलवटों की निशानी कहे है

यहाँ ना गुजारा सियासत बिना अब
मेरे मुल्क की राजधानी कहे है

"मुहल्ले की सारी गली मुझको घूरे"
हुई जबसे बेटी सयानी कहे है

"रिवाजों से हट कर नहीं चल सकोगे"
जड़ें ये मेरी खानदानी कहे है

नयी बात हो अब नये गीत छेड़ो
गुजरती घड़ी हर पुरानी कहे है

(बहर-मुतकारिब मुसमन सालिम, १२२-१२२-१२२-१२२)



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ८॰२५, ४, ६, ९, ७, ८॰२
औसत अंक- ७॰०७५
स्थान- पहला


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ७॰६, ७ॅ०७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२२५
स्थान- पहला


एक जज की टिप्पणी- ग़ज़ल की एक लाइन 'मुहल्ले की सारी गली मुझको घूरे' की ज़गह 'न जाने सभी क्यों मुझे घूरते हैं' किया जा सकता है। इससे शे'र और सुंदर बन पड़ेगा।


पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।

चूँकि यूनिकवि ने अक्टूबर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविता प्रकाशित करने का वचन दिया है, अतः शर्तानुसार रु १०० प्रत्येक कविता के हिसाब से रु ३०० का नग़द इनाम दिया जायेगा।

यूनिकवि गौतम राजऋषि को तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी की ओर से 'येलो पिरामिड' भेंट की जायेगी तथा यूनिकवि को डॉ॰ गरिमा तिवारी से मेडिटेशन पर एक पैकेज का ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने का अधिकार होगा (लक पैकेज़ छोड़कर)।

इस बार हम शीर्ष १३ कविताओं का प्रकाशन करेंगे ताकि पाठकों की निर्णायक दृष्टि भी सभी स्तरीय कविताओं पर पड़ सके। शीर्ष १३ के अन्य १२ कवि हैं- (यद्यपि हम शीर्ष १० कविताओं का ही प्रकाशन करना चाहते थे, लेकिन अंतिम ३ कविताओं के प्राप्तांक लगभग बराबर थे, इसलिए हम शीर्ष १३ का प्रकाशन कर रहे हैं)

पुष्कर चौबे
रचना श्रीवास्तव
लक्ष्मी ढौंडियाल
सुधी सिद्धार्थ
अरूण मित्तल
माला शर्मा
हरबिंदर सिंह कलसी
संजीव वर्मा
बज़्मी नक़वी
निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
केशव कर्ण
दीपक मिश्रा

उपर्युक्त लिखित नामों में से शीर्ष ९ कवियों को शशिकांत सदैव अपना काव्य संग्रह 'स्त्री की कुछ अनकही' भेंट करेंगे।

उपर्युक्त कवियों से निवेदन है कि सितम्बर माह की अपनी कविता-प्रविष्टि को न तो अन्यत्र कहीं प्रकाशित करें ना प्रकाशनार्थ भेजें क्योंकि हम इस माह के अंत तक एक-एक करके प्रकाशित करेंगे।

पाठकों की बात करें तो पिछले १ साल से हिन्द-युग्म से जुड़ी रचना श्रीवास्तव हिन्द-युग्म को लगातार पढ़ती रहीं, पहले केवल पढ़ती रहीं, फिर कमेंट करना शुरू किया, शुरूआत में रोमन में लिखा, फिर हमारे अनुरोध पर देवनागरी में करने लगीं। इस बार ही हम इन्हें यूनिपाठिका बना रहे हैं।

रचना श्रीवास्तव

लखनऊ (उ॰प्र॰) में जन्मी रचना को लिखने की प्रेरणा बाबा स्वर्गीय रामचरित्र पाण्डेय और माता श्रीमती विद्यावती पाण्डेय और पिता श्री रमाकांत पाण्डेय से मिली। भारत और डैलस (अमेरिका) की बहुत सी कवि गोष्ठियों में भाग लिया, और डैलास में मंच संचालन भी किया। अभिनय में अनेक पुरस्कार और स्वर्ण पदक मिला, वाद-विवाद प्रतियोगिता में पुरुस्कार, लोक संगीत और न्रृत्य में पुरुस्कार, रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस), रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा), रेडियो संगीत (हियूस्टन) में कविता पाठ। कृत्या, साहित्य कुञ्ज, अभिव्यक्ति, सृजन गाथा, लेखिनी, रचनाकर, हिंद-युग्म, हिन्दी नेस्ट, गवाक्ष, हिन्दी पुष्प, स्वर्ग विभा, हिन्दी-मीडिया इत्यादि में लेख, कहानियाँ, कवितायें, बच्चों की कहानियाँ और कवितायें प्रकाशित।

पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु २०० तक की पुस्तकें।

यूनिपाठिका रचना श्रीवास्तव को तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी की ओर से 'येलो पिरामिड' भेंट की जायेगी तथा यूनिपाठिक को डॉ॰ गरिमा तिवारी से मेडिटेशन पर एक पैकेज का ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने का अधिकार होगा (लक पैकेज़ छोड़कर)।

इस बार हम जिन्हें दूसरे से चौथे स्थान का पाठक चुन रहे हैं, उन्होंने बहुत अधिक तो नहीं पढ़ा, लेकिन जितना भी पढ़ा, उससे यह उम्मीद जगती है कि आने वाले समय में हिन्दी साहित्य को पाठकों की कमी खलने वाली नहीं है। दूसरे से चौथे स्थान के पाठक के रूप में हमने क्रमशः फ़िरदौस खान, मानविंदर भिंबर और सुरेन्द्र 'अभिन्न' को चुना है, जिन्हें मसि कागद की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट की जायेंगी।

हम निम्नलिखित कवियों का भी धन्यवाद करते हैं, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर इसे सफल बनाया और यह निवेदन करते हैं कि अक्टूबर २००८ की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में भी अवश्य भाग लें।

पुनीत मिश्रा
केतन कनौजिया "काफिर"
सुमन कुमारी 'मेनका'
सुमन कुमार सिंह
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जीष्णु
दीपाली मिश्रा
दिनेश गहलोत
अनु शर्मा
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
जसप्रीत कौर
सनत जैन
सुरेन्द्र कुमार अभिन्न
उत्पल कांत मिश्रा
शाशिकांत शर्मा
नीलम मिश्रा
अनिल जींगर
सीमा 'स्‍मृति'
अभिषेक चित्रांश
प्रमोद कुमार
अनूप सिंह यादव
नीरा राजपाल
आशीष कुमार श्रीवास्तव
सुनील कुमार ’सोनू’
अविनाश वाचस्पति
महेश कुमार वर्मा
कमल प्रीत सिंह
सुरिंदर रत्ती
तपन शर्मा
कबीर मल्होत्रा
जय नारायण त्रिपाठी "अद्वितीय"

18वीं यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम


आज हम जून २००८ की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम लेकर प्रस्तुत हैं। यूनिकवि प्रतियोगिता में कुल ५४ कवियों ने भाग लिया। बहुत खुशी की बात है कि हिन्द-युग्म की पहुँच अब छोटे-छोटे शहरों तक भी हो रही हैं, जहाँ से हम प्रतिभाओं को एक वैश्विक मंच पर लाकर सत्य-सृजन के पन्नों की संख्या बढ़ा रहे हैं। निर्णय दो चरणों के ६ जजों द्वारा कराया गया। पहले चरण से ३० कविताएँ चुनकर अंतिम चरण के जजों को प्रेषित की गईं, जिनके द्वारा दिये गये औसत अंकों के आधार पर रोहतक (हरियाणा) निवासी श्याम सखा 'श्याम' की कविता 'मैं जब भी हक ओ हकूक की बात करता हूं' को यूनिकविता चुना गया।

श्याम सखा ‘श्याम’

जन्म-२८ अगस्त १९४८ रोहतक
जननी-श्रीमति जयन्ती देवी
पिता- श्री आर॰आर॰शास्त्री
जन्म सहायिका-नान्ही दाई [पाकिस्तान चलीं गई बंटवारे में]
सम्प्रति- अनिवार्य -चिकित्सा
ऐच्छिक-पठन-लेखन,छायांकन,घुमक्क्ड़ी
शिक्षा-डिग्रियां, एम.बी;बी,एस, एफ़.सी.जी.पी,एल.एल.बी[प्रथम]
जीवन की पाठशाला में अनेक पीड़ाओं से आनन्द ढूँढ़ने की कला पूज्य पिताजी व एक स्नेहिल मित्र डाक्टर एन के वर्मा [सर्जन] अब इहलोक में नही दोनों
पुरस्कार: दोस्तो की गालियां, रिश्तेदारों की जलन व डाह
मूल निवास- रूह कुछ टूटे दिलों में, पार्थिव शरीर-आधा दिन गोहाना अस्पताल में, रात-रोहतक
शेष वक़्त-सफर में गोहाना से रोहतक व बैक
लेखन= भाषा -हिन्दी,पंजाबी,अंग्रेजी,पंजाबी व उर्दू [देवनागरी लिपि में]
प्रकाशित पुस्तकें- ३ उपन्यास,३ कहानी सं,४ कविता सं.१ गज़ल सं,१ लघुकथा सं,एक दोहा सतसई,१ लोक कथा सं.
प्रकाशन प्रतीक्षा में-कई विधाओं की १६ पुस्तकें
लेखन सम्मान-
१ पं.लखमी चंद पुरस्कार [ हरियाणा साहित्य अकादमी का लोक-साहित्य व लोक संस्कृति पर सर्वोच्च पुर.राशि १ लाख रु]
२ अब तक हिन्दी पंजाबी हरयाण्वी की ६ पुस्तकें व ५ कहानियां हिन्दी व पंजाबी अकादमी द्वारा पुर.]
३ पद्मश्री मुकुटधर पांडेय [ छ्त्तीस गढ़ सरिजन सम्मान २००७ ४ अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण कथा सं अकथ हेतु २००७]
५ कथा-बिम्ब कथा पुर.मुम्बई, राष्ट्र धर्म कथा पु २००५ लखनऊ
६ सम्पाद्क शिरोमणि पु श्रीनाथ द्वारा साहित्य मंडल राजस्थान
७ रोटरी इन्टरनेशनल व अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
चिकित्सा क्षेत्र- चिकित्सा रत्न सम्मान-इन्डियन मेडिकल एशोसिएसन हरियाणा का सर्वोच्च सम्मान
विशेष= श्री श्रीलाल शुक्ल, डा.रामदरश मिश्र,डा नरेन्द्र कोहली व श्रीमति चित्रा मुदगल के कहानी सं,
कविता सं पर पत्रों के अलावा लगभग ५०० पाठको के पत्र
= एक उपन्यास कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय व महर्षि दयानन्द वि, के एम,ए फाइनल पाठ्यक्रम में
एक कहानी भी
= फोटो ग्राफी में कार्य के अतिरिक्त श्री अशोक बहल [फोटो ग्राफर आफ डैडी, चाहत,महेश भट्ट की
फिल्मों व अन्य अनेक फिल्मों ,इम्तिहान व सैलाब सीरियल] के प्रथम फोटो शिक्षक होने का
श्रेय
= साहित्य पर अब तक पी,एच,डी हेतु एक शोध व एम फिल हेतु ३ लघु शोध सम्पन्न
पता- जब सोने को जमीं है
ओढ़ने को आसमां है
दोस्तो फिर क्यों पूछते हो
मेरा घर कहां है
सम्पर्क- shyamskha@yahoo.com घुमन्तू भाष-०९४१६३-५९०१९

पुरस्कृत कविता- मैं जब भी हक ओ हकूक की बात करता हूं

मैं
जब भी
हक ओ हकूक
की बात करता हूं
मैं
जब भी
इन्सां के वजूद की
बात करता हूं
तो
लोग
लाठियां लेकर
मारने दौड़े चले आते हैं
चिल्लाते हैं
कि
इस पर
मसीहा उतर आया है
फिर
किसी इन्सान पर
बुद्ध, ईसा या माक्र्स
बनने का
भूत समाया है
मानो
ये सब
लक्कड़बग्घे थे
जो
बच्चों को
उठा ले जाते थे
पहले जब ऐसी बातों
पर
सर फुटौवल होता था
तो दोस्त
समझाते थे
कि
पगले
ऐसी बातें मत किया
और को जीने दे
और खुद भी जिया कर
पर मैं
उनकी बातें पचा नहीं पाता था
अब जब भी
हको हकूक
या इन्सा के वजूद की
बात पर
पिट-पिटा कर
घर लौटता हूं
तो
पत्नी आंचल से
मेरा
लहू पौंछती है
घी
हल्दी से
शरीर की चोट सेकती है
कातर
निरीह
आंखों से मेरे दिल में
झांकती है,
उसकी इन
नजरों से
मैं कमजोर पड़ जाता हूं
मेरी
रूह आंन्धी में
दीए की मानिन्द कांपती है
मैं सोचता हूं
कि अब तक
जो ख्वाब बुने थे
इन्सानियत के
सारे के सारे तोड़ दूं
पर
तभी सामने आ खड़ी होती है
बसु
माने
छोटी सी
प्यारी सी
बेटी
मेरी बेटी बसुदा
साफ
पाक आंखों से झांकती
मानो मेरी
कमजोरी को भांपती
जैसे
पूछती हो
पापा फिर कौन लड़ेगा?
उन लोगों ने
जिन्होंने खरीद लिया है
दाखिले
इंजिनयरिंग
और मेडिकल कालेजों के
जिन्होंने
मिलकर बांट ली है
सारी
नौकरियां
जाति धर्म
और भाई भतीजावाद
का नारा लगाकर
विश्वमुद्राकोष और पूंजीवादियों के हाथों
छीन रहे हैं
दस्तकारों के जीने का हक
मैं लड़खड़ाता सा
पत्नी के
कान्धे का सहारा लेकर
खड़ा होता हूं
और
अपनी कमजोरी की लाश
पर
खड़ा होकर चिल्लाता हूं
इंकलाब
जिन्दाबाद।
और
एक बार फिर
तैयार हो जाता हूं
ह्को-हकूक की
लड़ाई लड़ने के लिये



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰८५, ६
औसत अंक- ६॰४२५
स्थान- चौथा


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ५॰५, ७, ७॰७, ६॰४३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰१२५
स्थान- प्रथम


पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।

यूनिकवि श्याम सखा 'श्याम' को तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी की ओर से 'येलो पिरामिड' भेंट की जायेगी तथा यूनिकवि को डॉ॰ गरिमा तिवारी से मेडिटेशन पर एक पैकेज का ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने का अधिकार होगा (लक पैकेज़ छोड़कर)।

शीर्ष १० में हमने इस बार कवियों को चुना है क्योंकि अंतिम ३ कविताओं के प्राप्तांक लगभग बराबर थे। वे हैं-

देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
विनय के॰ जोशी
यश
तपन शर्मा
अर्पिता नायक
पल्लवी त्रिवेदी
रेनू जैन
पंकज उपाध्याय
विजय शंकर चतुर्वेदी
अरूण मित्तल 'अद्भुत'
रचना श्रीवास्तव

उपर्युक्त लिखित नामों में से शीर्ष ९ कवियों को मसि-कागद की ओर से कुछ चुनिंदा पुस्तकें दी जायेंगी। साथ ही साथ संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य संग्रह 'मौत से जिजीविषा तक' भेंट करेंगे।


पाठकों की बात करें तो जून माह में देवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने जिस शिद्दत से हिन्द-युग्म को पढ़ा वो काबिले तारीफ है। इन्होंने एक-एक कविता की समीक्षा की और रचनाकारों को सम्बल दिया। इसलिए हम इन्हें जून माह का यूनिपाठक चुन रहे हैं।

देवेन्द्र कुमार पाण्डेय

जन्म तिथि- ०४-०७-१९६३
कार्यालय- कार्यालय जि०वि०नि०-वाराणसी में लेखाकार पद पर कार्यरत।
शिक्षा- बी०काम०आनर्स -एम०काम०-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय-वाराणसी।
पता- सा-१०/६५- शांती नगर कालोनी-गंज-सारनाथ-वाराणसी।
साहित्यिक गतिविधि- न्यूनतम-----बचपन से शौकिया कविता लेखन---विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित-आकाशवाणी-दूरदर्शन से काव्य-पाठ-----मूलतः व्यंग लेखन में ही कार्य।

पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु २०० तक की पुस्तकें।

यूनिपाठक देवेन्द्र कुमार पाण्डेय को तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी की ओर से 'येलो पिरामिड' भेंट की जायेगी तथा यूनिपाठक को डॉ॰ गरिमा तिवारी से मेडिटेशन पर एक पैकेज का ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने का अधिकार होगा (लक पैकेज़ छोड़कर)।

दूसरे स्थान के पाठक संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी ने भी हिन्द-युग्म को बहुत पढ़ा। हालाँकि टिप्पणी करने में ये थोड़े अनियमित रहे, लेकिन जब भी किया तो लगा कि इन्हें कविता की बारीक समझ है और कवियों के मददगार हो सकते हैं। इन्हें मसि-कागद की ओर से ढेरों पुस्तकें भेंट की जायेंगी।

क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान के पाठक के लिए हमने चुना है करण समस्तीपुरी (केशव कुमार 'कर्ण') और रेनू जैन को। इन्हें भी मसि-कागद की ओर से कुछ चुनिंदा पुस्तकें भेंट की जायेंगी।

इसके अतिरिक्त इस माह से हिन्द-युग्म को दो बहुत उर्जावान पाठकों ने पढ़ना शुरू किया है। एक है ब्रह्मनाथ त्रिपाठी 'अंजान' और दूसरे है अनुराग शर्मा उर्फ स्मार्ट इंडियन। हमें उम्मीद है ये दोनों भविष्य के यूनिपाठक साबित होंगे।

हम शेष ४२ कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। हम गुजारिश करेंगे कि प्रयास जारी रखें, यूनिकिवि की मंजिल बहुत दूर नहीं।

शम्भू चौधरी
सन्नी चंचलानी
शम्भू नाथ
हकीम हरी हरण 'हथौड़ा'
स्मिता पाण्डेय
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
डॉ॰ विवेक श्रीवास्तव
शलभ जैन
अरविन्द चौहान
डॉ॰ गरिमा तिवारी
सुरिंदर रत्ती
शिवेश शक्तिदिव्या
अशरफ़ अली 'रिंद'
जीतेन चौथानी
संजीव कुमार बब्बर
सीमा सचदेव
कुंज बियानी
कृष्ण कुमार यादव
केशव कुमार कर्ण
आलोक सिंह साहिल
मीना जैन
सुजीत कुमार सुमन
विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'
रविन्द्र दास
पूजा अनिल
कमल प्रीत सिंह
गोविंद शर्मा
अनुराग शर्मा
रश्मि सिंह
ममता पंडित
मनीष जैन
पंकज रामेन्दू मानव
अनिरूद्ध सिंह चौहान
ब्रह्मनाथ त्रिपाठी अंजान
निर्भीक प्रकाश
कमला भंडारी
राकेश कुमार सकराल
सतीश वाघमरे
वीरेन्द्र आर्या
सुनील कुमार सोनू
सुमित भारद्वाज
डॉ॰ अनिल चड्डा

जुलाई माह की प्रतियोगिता के विजाताओं को हम पहले से पाँच गुना पुरस्कार दे रहे हैं। ज़रूर भाग लें। अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें।

कविता के गुलशन में विचरण करती पठनीयता की सीमा (परिणाम)


यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम इस सत्य को पुनः स्थापित करते हैं कि किसी भाषा और उसके साहित्य का विकास दुनिया में कहीं भी और किसी के भी द्वारा हो सकता है, बशर्ते सच्चे मन का सेवक हो।

हिन्द-युग्म पर बहुत से कवि और पाठक हिन्दी के जन्मस्थल भारत के बाहर से आते हैं। यद्यपि वे भारत से संबंध रखते है, फिर भी अपनी मिट्टी से काफी समय से दूर हैं और विदेश में भी पूरे जतन से निज भाषा और निज साहित्य की सेवा कर रहे हैं।

अप्रैल माह से एक रूसी व्यक्ति वसेवोलोड पापशेव यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। उनका मानना है कि वो एक दिन यूनिकवि बनकर रहेंगे। फिलहाल शुरूआत है। जानकारी के लिए बता दें कि उन्हें यूनिकोड (हिन्दी) टाइपिंग आती है।

मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए कुल ४५ कविताएँ प्राप्त हुई थीं, दो चरणों में ७ जजों द्वारा निर्णय कराये जाने के बाद मॉरिशस निवासी गुलशन सुखलाल की कविता 'मेरे अजन्मे पुत्र' को प्रथम स्थान की कविता चुना गया। गुलशन इससे पहले और २ बार इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुके हैं, तथापि इनकी पुरानी कविताओं ने हमारे निर्णायकों को बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया था। गुलशन सुखलाल के बारे में बहुत अधिक जानकारी हमारे पास नहीं है क्योंकि यूनिकवि के निर्णय के बाद परिचय और चित्र आदि के लिए हमने इनसे संपर्क साधा (ईमेल द्वार), परंतु इन्होंने अभी तक कोई उत्तर नहीं भेजा। फिर हमने गूगल पर (इनकी ईमेल आईडी के साथ) सर्च किया, तब इनका फ़ेसबुक प्रोफाइल मिला, जहाँ से हमें यह चित्र मिला। एक और सूत्र के अनुसार दक्षिण एशिया केंद्र द्वारा प्रायोजित एक कार्यक्रम 'द्वीपों के समूह को राष्ट्रीयता की तलाश' पर मॉरिशस विश्वविद्यालय में शोधरत गुलशन सुखलाल ने अपना भाषण दिया था। भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद के एक सूत्र पर मॉरिशस के एलूमनियों की सूची है, उसमें गुलशन सुखलाल का नाम सबसे ऊपर है और निम्नलिखित विवरण है-

Name : Mr. Gangadharsing (Gulshan) Sooklall
Address : Mahatma Gandhi Rd, Petit Raffray
Tel. : 2820005, Mob:7890702
Email:
gulshansooklall@yahoo.co.uk
gulshansooklall@hotmail.com
Period of Study : 1995 to 2000
University : Delhi
College : Hansraj
Course/s : B.A. (Hons) Hindi, M.A. Hindi
Present Occupation : Lecturer, MGI (Mahatma Gandhi Institue, Mauritius)
Financing : General Cultural Scholarship, ICCR
Comments : The exp. of study in India are undeniably the best ;moments in student life. As far as suggestions are concerned, I believe many things might have changed in the six years since I have been back. Yet the two major areas requiring urgent attention from the authorities have been dissemination prior to departure for India and the arrival arrangements that follow and secondly lodging for international scholars. One very meaningful change that can be brought about is the setting of small forums for ICCR scholars within each univ. for cultural and exp. sharing. Such forums may arrange for international students to have first hand exp. of Indian family life and culture. The ICCR summer or winter tours fail in this objective as the students visit places more as tourists and not as cultural ambassadors.

पूर्णिमा वर्मन जी ध्यान दिलाया कि इनकी प्रोफाइल और इनकी कविताएँ अनुभूति पर भी उपलब्ध हैं

यदि आप खोजें तो आपको कुछ अन्य जानकारियाँ भी प्राप्त हो सकती हैं।

पुरस्कृत कविता- मेरे अजन्मे पुत्र

कुछ शब्द हैं तुम्हारे लिए
मेरे अजन्मे पुत्र...

आने से पहले ही तुम्हारे
सपनों, ईरादों, योजनाओं की बनाता जा रहा हूँ मैं कतारें
कुछ रहेंगी याद और
कुछ जाऊँगा भूल।

कुछ काम हैं तुम्हारे लिए
मेरे अजन्मे पुत्र
बड़ा होते हुए या
बड़ा होने पर...

याद दिलाना मुझे
कि तुम्हारे भविष्य
तुम्हारी सफलता, स्वास्थ्य, सौन्दर्य
और तुम्हारी भावनाओं का निर्णय
दुनिया के दूसरे कोने में बैठा कोई मार्कैटिंग गुरू
अपने विज्ञापनों के लुभावने शब्दों से
अपनी कौड़ी के मोल बिकने वाले सामानों से
नहीं करेगा।
याद दिलाना मुझे कि
यदि आज मैं तुम्हारे लिए
ये शब्द लिख पा रहा हूँ
तो इसलिए नहीं
कि मैं प्रमाण पत्रों के पीछे भागा हूँ

याद दिलाना कि
पीठ पर किताबों का बोझ लादे
देश के भविष्य के जिस बढ़ते हुजूम की
मैं निन्दा करता रहा हूँ
उसी में तुम्हें ढकेल कर
अपने कर्तव्यों की इति न समझूँ ।

याद दिलाना कि मैं तुम्हें
इस काबिल बनाऊँ कि
तुम भी ऐसे शब्द लिख पाओ
अपने अजन्मे पुत्र के लिए

याद दिलाना कि
तुम इसलिए नहीं होगे अलग
या बेहतर
ग़रीब पड़ोसी के
बच्चे से
कि तुम हो साफ़ सुथरे
सफर करते हो गाड़ी में
या क्योंकि वह
सरकारी पठशाला में पढ़ता है।

याद दिलाना मुझे तुम
कि मेरी गाड़ी, मेरे घर,
मेरी नौकरी और पगार की तरह
तुम
दोस्तों-दुश्मनों के सामने
मेरा बड़प्पन जताने के
साधन नहीं हो
’शोपीस’ नहीं जिसमें
बचपन में ही
दुनिया भर का ज्ञान
क्विज़ के उत्तरों की पोथियाँ
और सभी सम्भव कलाएँ भरकर
मैं माध्यम बनाकर
अपना अहम् संतुष्ट करूँ ।

याद दिलाना मुझे कि
मैं तुम्हें याद दिलाऊँ
मेरी सम्पत्ति,
ओहदा, मान, नाम
नहीं हैं बपौति तुम्हारी
कमाया है मैंने
कमाना होगा तुम्हें भी ।

याद दिलाना
कि मैं तुम्हें
मिट्टी में खेलने दूँ
बारिश में भीगने दूँ
धीमी गति से चलने दूँ
साईकल से गिरने दूँ
दोस्तों से भिड़ने दूँ
हाथ से खाने दूँ
खुलकर हँसने दूँ
अपनी बात कहने दूँ

और यदि कभी,
तुम्हारी नज़रों में ‘सुपर-हीरो’
तुम्हारा यह पिता अपनी
बाहरी और भीतरी कमज़ोरियों के सामने
अपनी नपुंसकता का प्रमाण देने लगे
तो तुम
उसे ये सभी बातें याद दिलाना
क्योंकि तुम्हारे भविष्य के साथ जुड़ा है
मेरा भी भविष्य।



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ६॰५, ५॰८, ८॰५
औसत अंक- ६॰७
स्थान- दूसरा


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰५, ९, ५॰९, ६॰७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२७५
स्थान- प्रथम


पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।

यूनिकवि गुलशन सुखलाल से यदि अगले कुछ दिनों में संपर्क नहीं हो पाता है तो हिन्द-युग्म शर्तानुसार यह अवसर हम दूसरे स्थान के कवि को देगा। दूसरे स्थान के कवि प्रेम सहजवाला को हम पिछले माह की तरह पुनः आमंत्रित करेंगे

इसलिए प्रेम सहजवाला को दूसरे स्थान की कविता को मिलने वाली पुस्तक के अतिरिक्त प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द पुरस्कार भी दिया जायेगा।

इससे पहले कि हम विजेता पाठकों की बात करें, पूजा अनिल, महक, अल्पना वर्मा और आलोक सिंह साहिल का विशेष आभार व्यक्त करेंगे, ये सभी बहुत धैर्य के साथ हिन्द-युग्म को पढ़ते हैं।

इस बार यूनिपाठिका का खिताब हिन्द-युग्म को मार्च २००८ से लगातार पढ़ रहीं, दो बार से दूसरे स्थान की पाठिका के रूप में पुरस्कृत और बाल-उद्यान को अपनी सुंदर-सुंदर कविताओं से नवाजने वालीं सीमा सचदेव के नाम जाता है।

शिक्षा :- एम.ए. हिन्दी, एम.एड.,पी.जी.डी.सी.टी.टी.एस.., ज्ञानी
जन्म:- २ अक्तूबर ,१९७४
जन्म स्थान :- गाँव:- खुइयाँ सरवर ,अबोहर (पंजाब)
लेखन कार्य:- बचपन से ही हिन्दी कविताएँ लिखने में रुचि थी, और बहुत सारी कविताएँ लिखी भी लेकिन सँजो कर न रखने से खो गईं, इन्हें आज तक इसका मलाल है। इन्होंने अपनी पहली कविता आठ या नौ साल की उम्र में लिखी थी। इन्होंने अभी जितना सँजो कर रखा है ,वो है:-
१. मेरी आवाज भाग-१
२. मानस की पीड़ा ( २० भाग ,श्री रामचरित मानस पर आधारित)
३.सञ्जीवनी ( ३ खण्ड काव्य १. ब्रजबाला ,२.कृष्ण-सुदामा , कृष्ण-गोपी प्रेम )
४.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-१ ( बाल-कथाएँ हिन्दी कविता के माध्यम से)
५.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-२
६.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-३
७.नन्ही कलियाँ
८.आओ गाएँ ( बहुत छोटी बाल-कविताएँ)
9.खट्टी-मीठी यादें (इन्हीं की न भूलने वाली यादों पर आधारित तथा कुछ रेखाचित्र)
10. मेरी आवाज भाग-२ पर कार्य कर रही हैं |
"मेरी आवाज़ भाग-१" ,"मानस की पीड़ा" ,तथा "सन्जीवनी" ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं तथा रचनाकार पर उपलब्ध हैं | "आओ सुनाऊँ एक कहानी" की बहुत सी कथा-काव्य तथा "नन्ही कलियाँ" और "आओ गाएँ" की कुछ कविताएँ "बाल-उद्यान" में प्रकाशित, कुछ कविताएँ वेब हिन्दी मैग्जीन "कृत्या" में प्रकाशित तथा समय समय पर "दक्षिण भारत" हिन्दी पत्रिका में इनकी कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं। जल्दी ही बाकी सभी पुस्तकें भी ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो जाएँगी।
अब ये अपने पति के साथ बंगलूरु (कर्नाटक) में रहती हूँ, पेशे से हिन्दी अध्यापिका हैं। और इनका एक दो वर्ष पाँच माह का बेटा भी है |

पुरस्कार- रु ३०० का नकद ईनाम, रु २०० की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र।

हिन्द-युग्म ने जितना धैर्यवान पाठक पैदा किया है, वो इसके लिए गौरव की बात की है। दूसरे स्थान के पाठक के रूप में हमने चुना है, बहुत अधिक सक्रिय कवि-पाठक देवेन्द्र कुमार पाण्डेय को जो अक्सर ही यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लेते हैं और इनकी कविताएँ शीर्ष १० में जगह बनाती हैं। इन्हें पुरस्कार स्वरूप मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट की जायेंगी।

क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान पर हमने डॉ॰ रमा द्विवेदी और ममता पंडित को रखा है, जिन्होंने भी हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा और हमारा मार्गदर्शन किया तथा हमारा आत्मबल बढ़ाया। इन्हें भी पुरस्कार स्वरूप रोहतक हरियाणा से प्रकाशित त्रैमासिक हिन्दी साहित्यकि पत्रिका 'मसि-कागद' की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट की जायेंगी।

इसके अतिरिक्त पल्लवी त्रिवेदी, देवेन्द्र कुमार मिश्रा, सुमित भारद्वाज, डॉ॰ अनुराग आर्या, अपूर्ण, ने भी हमें खूब पढ़ा। इनका भी बहुत-बहुत धन्यवाद।

इस माह से हिन्द-युग्म को संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी, डॉ॰ एस॰ के॰ मित्तल, बाल किशन और गिरीश बिल्लोर मुकुल के रूप में नये पाठक मिले हैं। हिन्दी को इनसे भी बहुत उम्मीदें हैं।

हमारे पुराने पाठक शैलेश जमलोकि भी १ जून से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। मतलब हम उम्मीद का आकाश चौड़ा कर सकते हैं।

उन १० कवियों के नाम जिनकी कविताएँ शीर्ष १० (अंत की दो कविताओं का प्राप्तांक लगभग बराबर था इसलिए शीर्ष १० में ११ कविताएँ हैं) में स्थान बनाई हैं और जो एक-एक करके जून माह में प्रकाशित होंगी, वे हैं-

प्रेमचंद सहजवाला
यश
पीयूष तिवारी
पल्लवी त्रिवेदी
अरूण मित्तल 'अद्भुत'
देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
केशव कुमार कर्ण
निखिल सचान
अजीत पाण्डेय
सुरिन्दर रत्ती

उपर्युक्त सभी १० कवियों को कवि शशिकांत 'सदैव' की काव्य-पुस्तक 'दर्द की क़तरन' भेंट की जायेगी।

इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रत्येक प्रतिभागी का उतना ही महत्व है क्योंकि एक के न शामिल होने मात्र से आयोजन की सफलता कम होती है। इसलिए हम सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हैं और निवेदन करते हैं कि सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए बारम्बार भाग लें, इस माह की प्रतियोगिता की उद्घोषणा यहाँ है

निम्नलिखित कवियों ने भी इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसकी शोभा बढ़ाई।

विनय के॰ जोशी
मृदुल कीर्ति
पंकज रामेन्दू मानव
अभिनव झा
सीमा सचदेव
श्याम सखा 'श्याम'
रेनू जैन
डॉ॰ अनिल चड्डा
नीरा राजपाल
मयंक शर्मा
नागेन्द्र पाठक
प्रशेन क्यावल
मैत्रेयी बनर्जी
सुमीत भारद्वाज
सतीश वाघमरे
रितु कुमारी
वीरेन्द्र आर्या
कमलप्रीत सिंह
डॉ॰ एस॰ के॰ मित्तल
शिखा वार्षने
अमित अरूण साहू
अंजु गर्ग
गोविन्द शर्मा
आलोक सिंह साहिल
सविता दत्ता
रचना श्रीवास्तव
सुरेखा आनंदराम भट्ट
अर्चना शर्मा
ममता पंडित
पूनम
देवेन्द्र शर्मा
पूजा अनिल
सी॰ आर॰ राजश्री
वसेवोलोड पापशेव

प्रतियोगिता ने 38 और 8 सालों के बाद हिन्दी लिखने-पढ़ने से जोड़ा (परिणाम)


पूरी दुनिया में ब्लॉगिंग की जो पैठ है, उससे सभी वाकिफ़ हैं। हिन्दी ब्लॉगिंग भी नित नये आयाम रच रही है। हिन्द-युग्म ने ब्लॉगिंग की इसी शक्ति को पहचानकर इसका इस्तेमाल भाषाई आंदोलन, कला आंदोलन और सामाजिक आंदोलन के रूप में कर रहा है।

इस बार की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम इस प्रयास की सफलता पर मुहर लगाते हैं और यह संदेश देते हैं कि- मन से लगे रहो, मंज़िल दूर नहीं !

अप्रैल २००८ के यूनिकवि सतीश वाघमरे मूलतः मराठी भाषी हैं। सतीश कहते हैं- "स्कूल छूटने के ३३ वर्षों के बाद हिन्दी कविता से मेरी मुलाक़ात हिन्द-युग्म पर तब हुई, जब मैं ब्लॉगअड्डा के माध्यम से काव्य-पल्लवन तक पहुँचा। काव्य-पल्लवन में कविताएँ लिखने लगा। हिन्द-युग्म से मुझे कविता लिखने की प्रेरणा मिली और सुधी पाठकों की प्रतिक्रियाओं की ऊर्जा ने मुझे अच्छे से अच्छा लिखने की ताकत दी।"

यूनिकवि सतीश वाघमरे मुम्बई के एक सरकारी बैंक में कार्यरत हैं। इनकी कविता 'रूबरू' इस बार की यूनिकविता है। अंतिम चरण के एक निर्णयकर्ता को इनकी ग़ज़लरूपी कविता इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे १० में से १० अंक दे दिया।

इस बार कुल ४९ प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। पहले चरण में ४ निर्णयकर्ता और दूसरे चरण (अंतिम चरण) में ३ निर्णयकर्ता नियुक्त किये गये। दूसरे चरण में २१ कविताएँ प्रेषित की गईं।

पुरस्कृत कविता- रूबरू

वो बैठे हैं रूबरू और शाम ढलने को है
दरमियाँ का शीशा अब पिघलने को है

छोड़ आया बीच मझधार यादों को तेरी
डूबती यह नैया अब सम्हलने को है

क्या है ये शोरो-गुल, क्यों धुआँ सा है
शायद फिर कारवां निकलने को है

तेरे संग तराशे थे जो नाजों से हमने
वक़्त का दरिया वो लम्हे निगलने को है

मैंने जल्दबाजी में काटी है जिंदगी,पर
इतमिनान से बड़े दम निकलने को है

रोज नया ऐलाने-जंग सुनता हूँ मैं
देखें कौन इंसानियत कुचलने को है

मुद्दतों बाद हल्की मुस्कुराहट ये कैसी
जानता हूँ अब ये लावा उगलने को है



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३॰५, ७॰२५, ५॰६५, ७
औसत अंक- ५॰८५
स्थान- आठवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰५, ५॰५, १०, ५॰८५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९६२५
स्थान- प्रथम


पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।

यूनिकवि सतीश वाघमरे हिन्द-युग्म के स्तर को लेकर बहुत संवेदनशील हैं, और इन्हें लगता है कि शायद ये मई माह की तीन अन्य सोमवारों को स्तरीय कविताएँ नहीं दे सकेंगे, इन्होंने तीन अन्य सोमवारों को कविता प्रकाशित करने से मना कर दिया है।

शर्तानुसार यह अवसर हम दूसरे स्थान के कवि को दे रहे हैं। दूसरे स्थान के कवि प्रेम सहजवाला ने हमारा यह निमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया है।


इसलिए प्रेम सहजवाला को दूसरे स्थान की कविता को मिलने वाली पुस्तक के अतिरिक्त प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द पुरस्कार भी दिया जाता है।

शीर्ष १० के अन्य ९ कवि जिन्हें हम डॉ॰ रमा द्विवेदी का काव्य-संग्रह 'दे दो आकाश' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट करेंगे, वे हैं-

प्रेम सहजवाला
महक
रेनू जैन
अनुराधा शर्मा
देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
अक्षय शर्मा
आलोक सिंह साहिल
अनिल जींगर
पल्लवी त्रिवेदी
विनय के॰ जोशी


यहाँ १ अतिरिक्त कवि इसलिए भी शामिल किया जा रहा है क्योंकि १०वें और ११वें स्थान की कविता के प्राप्तांकों में मामूली सा अंतर था। दूसरे को न प्रकाशित करना हमें अन्याय लगा, इसलिए उसे भी शामिल कर रहे हैं।

हिन्द-युग्म के इस बार की यूनिपाठक पुरस्कार की हक़दार (यानी यूनिपाठिका) की भी लगभग यूनिकवि जैसी कहानी है।

मोहनलाल सुखाड़िया विश्व विद्यालय, उदयपुर, राजस्थान से प्राणी शास्त्र में एम॰एस॰सी॰ की पढ़ाई कर चुकी पिछले ८ वर्षों से अपने देश से दूर वर्तमान में स्पेन में निवास कर रहीं श्रीमती पूजा अनिल को जब मार्च २००८ में हिन्द-युग्म के बारे में बता चला तो हिन्दी-युग्म के हिन्दी प्रचार-प्रसार के प्रयासों से प्रभावित होकर इसमें हरसम्भव मदद का मन बना लिया। साहित्य से इनके मन के तार बचपन में ही जुड़ गये थे क्योंकि इनके पिताजी का हिन्दी साहित्य से विशेष जुड़ाव था, इस कारण इन्होंने ११ वर्ष की अवस्था में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। हिन्द-युग्म मन के उसी तार को दुबारा बजा दिया। २७ मार्च के बाद इन्होंने हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा। रोमन से यूनिकोड टाइपिंग पर आ गईं। सार्थक टिप्पणियाँ की। यूनिपाठिका पूजा अनिल ने हिंद युग्म से पहले कहीं भी अपनी रचनाएं नहीं भेजी। पढ़ाई के दौरान अपने स्कूल-कॉलेज की पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती थीं। पूजा अनिल को आम बोलचाल की भाषा में आस पास की घटनाओं और व्यक्तित्वों, प्रकृति पर लिखना पसंद है।

इस बार यूनिपाठका के पुरस्कार का निर्धारण करना बहुत अधिक मुश्किल रहा। सीमा सचदेव जो हिन्द-युग्म को फरवरी २००८ से पढ़ रही हैं और खूब पढ़ रही हैं, इस पुरस्कार की लगभग उतनी ही हक़दार थीं, जितनी की पूजा अनिल। लेकिन सीमा सचदेव द्वारा कभी-कभी की गईं रोमन टिप्पणियों के आधार पर हमने पूजा को विजयी बना दिया। हम सीमा सचदेव से आग्रह करेंगे कि कृपया इसे साकारात्मक लेते हुए और अधिक ऊर्जा के साथ हिन्द-युग्म पढ़ें। पिछली बार भी हमने इन्हें हिन्द-युग्म का द्वितीय पुरस्कार दिया था। इस बार भी दे रहे हैं।

इस बार इन्हें कई सारी पुस्तकें पुरस्कार के रूप में साहित्यिक पत्रिका 'मसि-कागद' की ओर से भेंट की जायेगी।

सुमीत भारद्वाज और रेनू जैन ने भी हिन्द-युग्म को बहुत पढ़ा। इन्हें हम क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान का पाठक चुनते हैं और प्रो॰ सी॰ बी श्रीवास्तव 'विदग्ध' की एक-एक पुस्यक भेंट करते हैं।

अल्पना वर्मा, महक आदि हिन्द-युग्म के पास ऐसे पाठक हैं जिन्हें पुरस्कार से ऊपर मानकर बार-बार धन्यवाद और प्रणाम किया जा सकता है। ये पठनियता की प्रेरणास्रोत हैं।

इसके अतिरिक्त मासूमशायर, भारती, देवेन्द्र पाण्डेय, जीतेश, मैत्रेयी बनर्जी ने हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा। इनका भी बहुत-बहुत धन्यवाद।

मई माह से पल्लवी त्रिवेदी, रश्मि प्रभा और अर्चना शर्मा के नाम की कई सारी ऊर्जावान पाठिकाओं की दस्तक हिन्द-युग्म पर आ चुकी है। उम्मीद करते हैं कि हिन्द-युग्म का पाठक-वर्ग और समृद्ध होगा।

हम सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करना चाहेंगे जिन्होंने हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर इसे सफल बनाया। अन्य ३८ कवियों के नाम जिन्होंने इस आयोजन की शोभा बढ़ाई-

तपन शर्मा
अमित अरूण साहू
दिव्या श्रीवास्तव
केशव कुमार कर्ण
मित्तल
दीपा जोशी
सन्नी चंचलानी
सी॰आर॰ राजश्री
संजीव कुमार गोयल 'सत्य'
सीमा सचदेव
मैत्रेयी बनर्जी
विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'
रमानुज यादव
सुमीत भारद्वाज
पंखुड़ी कुमारी
सुजीत कुमार सुमन
अभिनव कुमार झा 'छोटू'
सुमन कुमारी 'मेनका'
डॉ॰ शीला सिंह
पंकज रामेन्दू मानव
नागेन्द्र पाठक
रेणु शर्मा
अंजु गर्ग
शाहिद अजनबी
चंदन कुमार झा
राम गोपाल सिंह 'हिरण्यकार'
देवेन्द्र कुमार मिश्र
पूजा अनिल
रविन्दर टमकोरिया 'व्याकुल'
कुणाल पिम्पलकर
डॉ॰ अनिल चड्डा
आनंद पाण्डेय
रचना श्रीवास्तव
हरि बाजपेयी
राजीव सिंहा
अनुपमा मनचंदा
पूनम
वसेवोलोड पापशेव


कृपया इस प्रतियोगिता में बार-बार भाग लें और अपनी रचनात्मकता सिद्ध करें। मई माह की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्घोषणा यहाँ है।

दक्षिण का कवि उत्तर की पाठिका (जनवरी अंक के परिणाम)


हिन्द-युग्म के लिए और पूरे हिन्दी जगत के लिए यह बहुत खुशी की बात है कि हिन्द-युग्म लोगों का रूझान हिन्दी की दिशा में बढ़ाने में धीरे-धीरे सफल हो रहा है। एक बार पुनः हम यह कह पा रहे हैं कि जनवरी २००८ माह की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' में कुल ५० प्रतिभागी कवि रहे जोकि अब तक की अधिकतम संख्या है। आज हम इसी अंक के परिणामों के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।

जब कविताएँ अधिक हों, तो निर्णय भी उसी अनुपात में मुश्किल हो जाता है। फिर भी किसी न किसी को तो विजेता होना ही होता है। पूर्व की भाँति इस बार भी ४ चरणों में जजमेंट हुआ (पहले चरण में १ जज, दूसरे में २ और तीसरे व चौथे चरण में १-१ जज) ।

हिन्द-युग्म की पहली प्रतियोगिता पिछले वर्ष जनवरी माह में ही आयोजित हुई थी, और एक बहुत सुखद संयोग है कि पिछली बार का यूनिकवि (पहला यूनिकवि आलोक शंकर) दक्षिण भारत से था, और इस बार का यूनिकवि भी दक्षिण से है। एक और संयोग यह भी है कि अब ये दोनों यूनिकवि बेंगलूरु शहर में ही निवास कर रहे हैं।

यूनिकवि- केशव कुमार 'कर्ण'
परिचय-पिता- श्री राघवेन्द्र प्रसाद
माता- श्रीमती वीना कर्ण
जन्म तिथि- ०१.०२.१९८०
(एक फरबरी उन्नीस सौ अस्सी )
पैतृक स्थान - रेवारी
जिला- समस्तीपुर, बिहार।
प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा- पैतृक गांव में।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से स्नातकोत्तर हिन्दी में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त !
नालंदा मुक्त विश्व विद्यालय से पत्रकारिता एवं जन-संचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा !
बिहार से स्वतंत्र पत्रकारिता की शुरुआत कर बंगलोर से प्रकाशित हिन्दी साप्ताहिक जनाग्रह में सात मास तक उप सम्पादकीय दायित्व निभाने के बाद सम्प्रति बंगलोर में ही एक कंपनी ऑनमोबाइल ग्लोबल लिमिटेड में बतौर स्क्रिप्ट राइटर कार्यरत !
साहित्य से अनुरक्ति- विरासत में ! अध्ययन से और दृढ़तर !

पुरस्कृत कविता- स्मृति शिखर से

स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
उर सिहर गया, क्षण ठहर गया,
और अतीत बना दर्पण !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
कर यत्न दिया विश्राम इसे,
पीड़ा उर की बतलाऊं किसे ?
यह काल आवरण ओढ़ पड़ी,
स्मरण पटल में जा गहरी !
पर पुनः पवन से पा जीवन,
फिर जाग उठी यादों की अगन !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
नीरव नीड़ में शांत शिथिल,
दृग में अतीत का स्वप्न लिए !
किस्मत को कौन बदल सकता,
क्या मिला बहुत प्रयत्न किए !
जगा गयी स्मरण बिहग को,
अरुणोदय की तीक्ष्ण किरण !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
अकुला कर दिन बिहग बोला,
अलसाई निज पलकें खोला !
सुदीर्घ रत का प्रात जान,
खग उर नीड़ से पंख तान !
पंछी पर अंकुश कौन रखे,
पा गया निमिष में दूर गगन !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
अम्बर का अंत कहाँ पाबै,
बीते हुए कल कैसे आबे !
आ गया गगनचर फिर थक के,
आशा फिर मिलने की रख के !
उर धीर भरा सुर पीड भरा,
वो गाने लगा हो मस्त मगन !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !



प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰०५
स्थान- छठवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰३, ५॰८, ८॰०५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७१६
स्थान- आठवाँ


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-शब्दों की पुनरावृत्ति, कथ्य में भटकाव।
अंक- कथ्य: ४/२ शिल्पः ३/२ भाषा: ३/२
कुल- १०/६
स्थान- पाँचवाँ


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
रचना का प्रवाह, कवि की भाषा पर पकड और बिम्ब सभी सराहनीय हैं। संस्कृतनिष्ठता से साधारण हिन्दी और यदा-कदा देशज शब्दों का जिस तरह कवि ने संयोजन किया है कि वे प्रयोग की दृष्टि से उदाहरण बन गये हैं।
कला पक्ष: ९/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १७॰५/२०



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने फरवरी माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम।

यूनिकवि केशव कुमार 'कर्ण' तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।



हमारे अत्यंत सक्रिय पाठक आलोक सिंह 'साहिल' इस बार यदा-कदा ही दिखे। हाँ सीमा गुप्ता, अल्पना वर्मा, महक आदि हमेशा की तरह ही हमें खूब पढ़ती रहीं। अल्पना वर्मा से हमने हिन्द-युग्म की सक्रिय कार्यकर्ता बनने के लिए निवेदन किया है ताकि हिन्द-युग्म को वो नई दिशा दे सकें। कृपया वो इसे भी एक सम्मान की तरह स्वीकार करें।

सीमा गु्प्ता पहले रोमन में टिप्पणियाँ करती थीं, मगर अब देवनागरी में करने लगी हैं। मतलब हम अपने उद्देश्य में सफल रहे और सीमा गुप्ता यूनिपाठिका बनने में सफल रहीं। सीमा गुप्ता अच्छी पाठिका ही नहीं वरन अच्छी कवयित्री भी हैं, हिन्द-युग्म के मंच पर प्रकाशित होती रही हैं।

यूनिपाठिका- सीमा गुप्ता

11-10-1971 को अम्बाला में जन्मी कवयित्री सीमा गुप्ता ने अपनी पहली कविता 'लहरों की भाषा' तब ही लिख ली थी जब वो चौथी कक्षा की छात्रा थीं। यहीं से इन्हें लिखने की प्रेरणा मिली। वाणिज्य में परास्नातक कवयित्री सीमा गुप्ता नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीज, गुड़गाँव में महाप्रबंधक की हैसियत से काम कर रही हैं। इनकी रचनाएँ 'हरियाणा जगत', 'रेपको न्यूज़' आदि जैसे कई समाचार पत्रों में कई बार प्रकाशित हो चुकी हैं। मुख्यरूप से ये दुःख, दर्द और वियोग आदि पर कविताएँ लिखती हैं, जिसका ये कोई कारण नहीं बता पाती हैं, बस्स खुद को सहज महसूस करती हैं।

साहित्य से अलग इनकी दो पुस्तकें 'गाइड लाइन्स इंटरनल ऑडटिंग फॉर क्वालिटी सिस्टम' और 'गाइड लाइन्स फॉर क्वालिटी सिस्टम एण्ड मैनेज़मेंट रीप्रीजेंटेटीव' प्रकाशित हो चुकी हैं।

संपर्क-
सीमा गुप्ता
महा प्रबंधक,
नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीज
प्लॉट नं॰ १९४, फेज़-१
उद्योग विहार, गुड़गाँव- १२२००१



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

यूनिपाठिका सीमा गुप्ता तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।



शैलेश चंद्र जमलोकि की टिप्पणियाँ दिन-प्रतिदिन व्यस्क होती जा रही हैं, वो एक पाठक से अच्छे समीक्षक बनते जा रहे है, मगर टिप्पणियाँ करने में नियमित नहीं है, जबकि सबसे अधिक की संख्या में हिन्द-युग्म पर टिप्पणियाँ वही करते हैं। इसलिए एक बार फिर से हम इन्हें दूसरे स्थान का पाठक चुनते हैं और यह उद्‌घोषणा करते हैं कि विश्व पुस्तके मेला २००८ से इन्हें कुछ पुस्तकें प्रेषित करेंगे।

तीसरे स्थान पर हमने पाठिका महक को चुना है, यद्यपि इन्होंने सभी टिप्पणियों को रोमन में ही लिखा है, फिर भी ये पढ़ने में बहुत सक्रिय हैं। हम इनसे आग्रह करेंगे कि कृपया ये भी हिन्दी में टंकण करना आरम्भ कर दें। एक-दो दिनों में इतनी अभ्यस्त हो जायेंगी कि हिन्दी में कमेंट लिखने में आनंद मिलने लगेगा। इन्हें हमप्रो॰सी॰बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' की पुस्तक 'वतन को नमन' भेंट करते हैं।

चौथे स्थान के पाठक के रूप में हमने चुना है दिव्य प्रकाश दूबे को, जो हिन्द-युग्म पढ़ते ज़रूर कम हैं, लेकिन जहाँ भी टिप्पणी करते हैं सशक्त हस्ताक्षर छोड़ जाते हैं। इन्होंने 'क्या यही प्यार है' वाले विमर्श को बहुत सुंदर गति दी है। इन्हें पाना भी हिन्द-युग्म का सौभाग्य है। इन्हें भी हम प्रो॰सी॰बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' की पुस्तक 'वतन को नमन' भेंट करते हैं।

इसके अतिरिक्त दिव्या माथूर, मधु, ममता गुप्ता, गीता पंडित आदि पाठिकाओं ने भी हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा और हम आशा करते हैं कि ये भी इतना पढ़ेंगी कि यूनिपाठिका का निर्णय मुश्किल हो जायेगा।

दिवाकर मिश्र भी हमेशा की तरह फार्म में थे। काव्य-पल्लवन के ताज़े अंक पर इनकी प्रतिक्रियाएँ तो देखते ही बनती हैं।

हम अवनीश एस॰ तिवारी का विशेष धन्यवाद देना चाहेंगे जिनके प्रयासों से हिन्द-युग्म को नये पाठक ही नहीं वरन स्थान-स्थान पर सम्मान भी मिल रहा है।

टॉप १० कवियों के अन्य ९ कवियों के नाम जिन्हें कथाकार सूरज प्रकाश द्वारा सम्पादित पुस्तक 'कथा दशक' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी और जिनकी कविताएँ एक-एक करके प्रकाशित होंगी, निम्नलिखित हैं-

पंकज रामेन्दू 'मानव'
डॉ॰ मीनू
कवि दीपेन्द्र
विनय के जोशी
हरिहर झा
विपिन चौधरी
दिव्य प्रकाश दूबे
प्रेम सहजवाला
बर्बाद देहलवी

उन अन्य दस कवियों के नाम जो टॉप २० की शोभा बढ़ा रहे हैं और जिनकी कविताएँ १-१ करके २९ फरवरी से पहले प्रकाशित होंगी-

सुनील प्रताप सिंह
सुदर्शन गुप्ता 'मौसम'
ममता गुप्ता
पावस नीर
संजीव कुमार गोयल
आलोक सिंह 'साहिल'
प्रगति सक्सेना
नीतू तिवारी
अमिता मिश्र 'नीर'
पुष्यमित्र

उपर्युक्त सभी कवियों से निवेदन है कि २९ फरवरी २००७ तक न अपनी कविता कहीं प्रकाशित करें और न हीं कहीं प्रकाशनार्थ भेजें।

इस बार कवियों की सूची लम्बी है। निम्नलिखित कवियों का भी हम धन्यवाद करते हैं जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया और निवेदन करते हैं कि आगे भी इसी प्रकार हिन्द-युग्म के सभी आयोजनों में शिरकत करते रहें।

राजन पाठक
दिव्या माथूर
सुमन कुमार सिंह
महेश चंद्र गुप्ता 'खलिश'
अश्वनी कुमार गुप्ता
शिवानी सिंह
निर्भीक प्रकाश
सतीश वाघमरे
अवनीश एस॰ तिवारी
अजय शुक्ला
सीमा गुप्ता
शम्भू नाथ
जगदीप सिंह
महक
पूरण भारद्वाज
साकेत सम्राट
राजीव सारस्वत
अमित खरे
नदीम अहमद 'कवीश'
नरेश राणा
जावेद अली 'खुश्बू'
रविन्दर टमकोरिया 'व्याकुल'
अंजु गर्ग
रूपेश श्रीवास्तव
पंकज झा
शैलेश चंद्र जमलोकि
शाहिद 'अजनबी'
अमरदीप
विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'
संजय साह

सभी विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई।

2008 की पहली यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता


आज हिन्द-युग्म ने हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के आयोजन का १ वर्ष का पूरा कर लिया है विगत वर्ष में हमने इस प्रतियोगिता १२ अंकों का सफल आयोजन किया और यह हिन्द-युग्म के लिए यह गौरव की बात है कि हमने प्रतिभागियों की संख्या में चाहे वो कवियों की हो या पाठकों की , उत्तरोत्तर प्रगति की। जनवरी २००७ में हमें मात्र ६ प्रतिभागी कवियों से इसकी शुरूआत की थी और दिसम्बर २००७ में हमें ४८ प्रतिभागी मिले। अर्थात् ७००% की वृद्धि। निश्चित रूप से इसके लिए पूरी टीम, पाठकों का बड़ा वर्ग और जिन्हें भी प्रोत्साहित करके, आलोचना करके, मार्गदर्शन देकर हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, बधाई के पात्र हैं।

जब इस प्रतियोगिता की शुरूआत हुई थी तो इंटरनेट पर हिन्दी के प्रयोग का प्रोत्साहन था, लेकिन आज हमने अपने लक्ष्यों को बहुत विस्तार दिया है। हमसे इंटरनेट के बाहर की दुनिया भी जुड़ रही है और हम भी बाहर तक जा रहे हैं।

इस बार हम नववर्ष में हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के नये अंक के लिए कविताओं की प्रविष्टियाँ आमंत्रित करते हैं। नये पाठकों को बता दें कि 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' का आयोजन प्रत्येक माह होता है। कविता प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कवियों को अपनी मौलिक तथा अप्रकाशित रचनाएँ महीने की १५ वीं तारीख तक भेजनी होती है, तथा पाठकों को पहले दिन से महीने के आखिरी दिन तक यहाँ प्रकाशित सभी प्रविष्टियों पर टिप्पणियाँ करनी होती है।

यूनिकवि बनने के लिए-

१) अपनी कोई मौलिक तथा अप्रकाशित कविता १५ जनवरी २००८ की मध्यरात्रि तक hindyugm@gmail.com पर भेजें।

(महत्वपूर्ण- मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं के अतिरिक्त गूगल, याहू समूहों में प्रकाशित रचनाएँ, ऑरकुट की विभिन्न कम्न्यूटियों में प्रकाशित रचनाएँ, निजी या सामूहिक ब्लॉगों पर प्रकाशित रचनाएँ भी प्रकाशित रचनाओं की श्रेणी में आती हैं।)

२) कोशिश कीजिए कि आपकी रचना यूनिकोड में टंकित हो।
यदि आप यूनिकोड-टाइपिंग में नये हैं तो आप हमारे निःशुल्क यूनिप्रशिक्षण का लाभ ले सकते हैं।

३) परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, इतना होने पर भी आप यूनिकोड-टंकण नहीं समझ पा रहे हैं तो अपनी रचना को रोमन-हिन्दी ( अंग्रेजी या इंग्लिश की लिपि या स्क्रिप्ट 'रोमन' है, और जब हिन्दी के अक्षर रोमन में लिखे जाते हैं तो उन्हें रोमन-हिन्दी की संज्ञा दी जाती है) में लिखकर या अपनी डायरी के रचना-पृष्ठों को स्कैन करके हमें भेज दें। यूनिकवि बनने पर हिन्दी-टंकण सीखाने की जिम्मेदारी हमारे टीम की।

४) एक माह में एक कवि केवल एक ही प्रविष्टि भेजे।

यूनिपाठक बनने के लिए

चूँकि हमारा सारा प्रयास इंटरनेट पर हिन्दी लिखने-पढ़ने को बढ़ावा देना है, इसलिए पाठकों से हम यूनिकोड ( हिन्दी टायपिंग) में टंकित टिप्पणियों की अपेक्षा रखते हैं। टायपिंग संबंधी सभी मदद यहाँ हैं।

१) १ जनवरी २००८ से ३१ जनवरी २००८ के बीच की हिन्द-युग्म पर प्रकाशित अधिकाधिक प्रविष्टियों पर हिन्दी में टिप्पणी (कमेंट) करे।

२) टिप्पणियों से पठनीयता परिलक्षित हो।

३) हमेशा कमेंट (टिप्पणी) करते वक़्त समान नाम या यूज़रनेम का प्रयोग करें।

४) हिन्द-युग्म पर टिप्पणी कैसे की जाय, इस पर सम्पूर्ण ट्यूटोरियल यहाँ उपलब्ध है।

कवियों और पाठकों को निम्न प्रकार से पुरस्कृत और सम्मानित किया जायेगा-

१) यूनिकवि को रु ६०० का नकद ईनाम, रु १०० की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र।

२) यूनिपाठक को रु ३०० का नकद ईनाम, रु २०० की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र।

३) क्रमशः दूसरे, तीसरे और चथे स्थान के पाठकों को प्रो॰ सी॰बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'वतन को नमन' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

४) टॉप १० कवियों को तथा शीर्ष दो पाठकों को वरिष्ठ कथाकार सूरज प्रकाश द्वारा सम्पादित कहानी की पुस्तक 'कथा दशक' की एक-एक प्रति।

५) यूनिकवि और यूनिपाठक को तत्वमीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पाने का अधिकार होगा। (लक पैकेज़ को छोड़कर)

प्रतिभागियों से भी निवेदन है कि वो समय निकालकर यदा-कदा या सदैव हिन्द-युग्म पर आयें और सक्रिय कवियों की रचनाओं को पढ़कर उन्हें सलाह दें, रास्ता दिखायें और प्रोत्साहित करें।

प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले सभी 'नियमों और शर्तों' को पढ़ लें।

आप भाग लेंगे तो हमारे प्रयास को बल मिलेगा, तो आइए और हमारा प्रोत्साहन कीजिए।

डॉक्टर कवयित्री इंजीनियर पाठक (नवम्बर अंक के परिणाम)


अक्टूबर और नवम्बर के महीने में इतने पर्व-त्यौहार आते हैं कि कोई भी अपने घर जाने, अपनों से मिलने के अलावा किसी भी और चीज़ के बारे में सोच नहीं पाता। ऐसे में हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में प्रतिभागियों की संख्या घटना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन अक्टूबर माह की प्रतियोगिता में ३४ कवियों के भाग लेने के बावजूद, नवम्बर माह के प्रतिभागियों की संख्या ४१ तक पहुँच गई।

आज हम इसी अंक का परिणाम लेकर प्रस्तुत हैं। हमेशा की तरह चार चरणों में जजमेंट का काम पूरा हुआ। पहले चरण के दो निर्णायकों द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर २७ कविताओं को दूसरे दौर में जाने का अवसर मिला, जहाँ उनकी भिड़ंत तीन नये निर्णायकों से थी और साथ में पुराने अंक भी लेकर चलना था।

तीसरे चरण के जज के पास १५ जा पाईं, जहाँ टॉप १० कविताओं का निर्णय हो सका। अंतोगत्वा कवयित्री डॉ॰ अंजलि सोलंकी की 'क्षणिकाएँ' प्रथम रहीं। यह दूसरा अवसर है कि कोई कवयित्री यूनिकवयित्री बन रही है। इससे पहले अगस्त माह में अनुराधा श्रीवास्तव यूनिकवयित्री रह चुकी हैं।

यूनिकवयित्री- डॉ॰ अंजलि सोलंकी

इनका जन्म 19-09-1980 को उत्तर प्रदेश के जिवाना ग्राम में हुआ। शिक्षा संगरिया (राजस्थान) से शुरू हुई। अभी तक जारी है। फिलहाल चण्डीगढ़ में MD PATHOLOGY का फाइनल इयर है। लिखनो का शौक या लत बचपन से ही पड़ गई थी, जो भी मन मे आया लिख डाला। सभी रचनायें इन्हीं तक ही सीमित रहीं। बचपन मे काफी पढ़ा है मगर अभी साहित्य पर पकड़ कुछ कमज़ोर है। फिर भी अपनी सरल भाषा में भावनाओं को पिरोने कि कोशिश जारी है। कुछ वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद अब लिखना शुरू किया है।

पुरस्कृत कविता- क्षणिकाएँ

1
तेरा वादा,
एक अनकहा प्रश्न
एक अनसुना उत्तर,
एक अनाचाहा विवाद,
एक अभागा सा रिश्ता....

2.
आज रात जी भर के रो लूँ
सुना है
कल दर्द की नीलामी में,
अन्धेरा भी बिकेगा.....

3 .
युग बीते फैसले सुनते-सहते
चल
दुनिया का आखिरी निर्णय
हम सुना डाले.....

4
मेरी जिद के चर्चे जमाने में है
हुआ कुछ नहीं,
मैंने सच को सच कहा था...

5
मेले में भीड़,
उमड़ती है,
बिखरती है,
लौट जाती है, भग्न अवशेष छोड़कर
तेरे वादों की तरह...

6
इस शहर की दोस्ती
तेरे वादों जैसी है
बिन बात जन्म लेती है,
कभी मरती नहीं,
मगर
कम्बख्त निभती भी नहीं....

7
तुमने ही कहा था,
हर आंसू दफना देना
मैं कब्रिस्तान में रहने लगी हूँ
थोड़ी जगह और चाहिये.....




प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰२, ६॰५
औसत अंक- ६॰३५
स्थान- तेरहवाँ




द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ७॰६, ७, ६॰३५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२३७५
स्थान- दूसरा




तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-यदि शब्द चयन में अधिक सतर्कता बरती जाती तो क्षणिकाएं और बेहतर हो सकती थीं
अंक- मौलिकता: ४/३ कथ्य: ३/२॰५ शिल्प: ३/२
कुल- १०/७॰५
स्थान- तीसरा




अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
सभी क्षणिकायें कथ्यपूर्ण हैं और इस विधा के पैनेपन की शर्त का निर्वाह करती हैं। बिम्बों में भी गहरायी है।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ७॰५/१०
कुल योग: १४॰५/२०




पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने दिसम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम।

यूनिकवयित्री डॉ॰ अंजलि सोलंकी तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।




चित्र- चूँकि क्षणिकाओं के किसी समूह में अलग-अलग तरह के भाव होते हैं, अतः इस पर पेंटिंग बनवाना एक जबरदस्ती होती, इसलिए बिना चित्र के ही हम क्षणिकाएँ प्रकाशित कर रहे हैं।



यूनिकवयित्री डॉ॰ अंजलि सोलंकी जी की क्षणिकाओं का गुजराती अनुवाद विजयकुमार दवे ने अभी-अभी किया है। और अपने गुजराती ब्लॉग पर यहाँ प्रकाशित किया है। डॉ॰ अंजलि सोलंकी की कविताएँ गुजराती पाठकों तक पहुँची, इसके लिए हम विजयकुमार दवे जी के आभारी हैं।


हमें यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि पिछले माह हमें बहुत से ऊर्जावान पाठक मिले। ८० से अधिक प्रविष्टियों के प्रकाशित होने के बावज़ूद पाठकों ने अधिकाधिक पोस्टों को पढ़ा और टिप्पणियाँ की।

इस बार के यूनिपाठक अवनीश एस तिवारी ने तो हिन्द-युग्म के सभी मंचों को पढ़ा, यहाँ तक कि काव्य-पल्लवन की २५ कविताओं पर अलग-अलग टिप्पणी की। हम सहृदय धन्यवाद के साथ यूनिपाठक का सम्मान इन्हें दे रहे हैं।

यूनिपाठक- अवनीश एस॰ तिवारी

जन्म- २७-०५-१९८१
शिक्षा- बी. ई. अभियंता (कंप्यूटर)
संप्रति- कंप्यूटर प्रोग्रामर के रूप में मुम्बई में कार्यरत
रुचि- हिन्दी साहित्य विशेष कर हिन्दी गद्य
भारतीय संस्कृति को जानना
अमिताभ बच्चन की फिल्में देखना और किशोर कुमार के गाने सुनना

प्रिय कवि- मैथलिशरण गुप्त जी, निराला, बच्चन और आज के - हरि ओम पवार जी, देवल आशीष और बहुत सारे।

प्रिय मंच संचालक- अशोक चक्रधर जी, कुमार विश्वास जी |
ईश्वर, माता - पिता के आशीर्वाद और आप सभी के स्नेह से जीवन के हर क्षेत्र मे सफलता पाना ही लक्ष्य है |
मुम्बई का पूरा पता -
A1, 702 Neelyog Apartment Gaurishankar wadi-2, Pant nagar , Ghatkopar(E), Mumbai-40075
मोबाइल- 9819851492
ईमेल- anish12345@gmail.com



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिपाठक अवनीश एस॰ तिवारी तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।



दूसरे स्थान पर हमारे पुराने पाठक रणधीर 'राज' हैं। इन्होंने १-१५ नवम्बर तक तो हमें खूब पढ़ा लेकिन बाद में ये अपनी परिक्षाओं में व्यस्त हो गये, नहीं तो अवनीश जी को कड़ी टक्कर मिलती।

चूँकि पिछली बार इन्हें हम 'कोई दीवाना कहता है' और 'निकुंज' दोनों भेंट कर चुके हैं, अतः इन्हें हिन्द-युग्म की ओर से कथाकार सूरज प्रकाश द्वारा सम्पादित कहानी-संग्रह 'कथा दशक' भेंट कर रहे हैं।

तीसरे स्थान पर हमें कम लेकिन गम्भीरता से पढने वाले रविन्दर टमकोरिया 'व्याकुल' हैं। दो और पाठकों को हम एक ही स्थान यानी चौथे स्थान पर रखकर पुरस्कृत करना चाहेंगे। शैलेश जमलोकी जिन्होंने बहुत शिद्दत से हमें पढ़ना शुरू किया है, तथा आलोक कुमार सिंह 'साहिल' जिन्होंने पहले तो रोमन में ही टिप्पणियाँ की लेकिन अब हिन्दी (यूनिकोड) भी सीख लिये हैं। उम्मीद करते हैं कि ये सभी पाठक इस माह से अपनी धुआँधार टिप्पणियों द्वारा हमारा प्रोत्साहन करेंगे।

उपर्युक्त तीनों पाठकों को कवि कुलवंत सिंह की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी।

इसके अतिरिक्त हम मीनाक्षी, परमजीत बाली, आशा जोगलेकर, सन्नी चंचलानी, कुमुद अधिकारी, डॉ॰ रामजी गिरि, राम चरण वर्मा 'राजेश', मनीष कुमार, अनिता कुमार और सागर चन्द नाहर आदि का विशेष आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने हमें बहुत कम पढ़ा लेकिन गंभीरता से पढा। हम यह अनुरोध करेंगे कि आप हमारे नियमित पाठक बनकर हमारा प्रोत्साहन करें।

टॉप १० के अन्य नौ कवियों के नाम जिनको प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नक़ाबों के शहर में' भेंट की जायेगी तथा एक-एक इनकी कविताएँ प्रकाशित होंगी, निम्नलिखित हैं-

सीमा गुप्ता
ऋतुराज
दिव्या श्रीवास्तव
पंखुड़ी कुमारी
आनंद गुप्ता
पंकज रामेन्दू मानव
मंजिल
शिवानी सिंह
डॉ॰ सी॰ जयशंकर बाबू

टॉप २० के अन्य १० कवियों के नाम जिनकी कविताएँ दिसम्बर माह में एक-एक करके प्रकाशित होंगी, वो हैं-

दिव्य प्रकाश दूबे
हरिहर झा
अमिता मिश्र 'नीर'
मनुज मेहता
रविकांत पाण्डेय
देव मेहरा
कवि दीपेन्द्र (दीपेन्द्र शर्मा)
रविन्दर टमकोरिया 'व्याकुल'
आलोक कुमार सिंह 'साहिल'
दिनेश गेहलोत

उपर्युक्त कवियों से निवेदन है कि कृपया वो अपनी कविताएँ ३१ दिसम्बर तक अन्यत्र न प्रकाशित करें/करायें।

शेष २१ कवियों के नाम जिनकी कविताएँ भी सराहनीय थीं और जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। हम यह निवेदन भी करेंगे कि इस प्रतियोगिता के परिणामों को सकारात्मक लेते हुए पुनः और पुनः इसमें भाग लें क्योंकि बहुत से कवियों ने इस आयोजन को काव्य-कार्यशाला मानकर कई बार भाग लिया है और अब वो यूनिकवि हैं।

अवनीश एस॰ तिवारी
आशीष मौर्य
सुमन कुमार सिंह
तपन शर्मा
निर्जीव (दिवेश मेहता)
सन्नी चंचलानी
विजयकुमार दवे
दिनेश चन्द्र जैन
गौरव पोटनीस
विनय चन्द्र पाण्डेय
पीयूष मिश्रा
विनय माघु
अमलेन्दू त्रिपाठी
साधना दुग्गड़
अंजू गर्ग
राम चरण वर्मा
आशीष दूबे
राहुल उपाध्याय
अनुभव गुप्ता
अमित सिंह
कीर्ति वैद्य

अंत में सभी का धन्यवाद।

इस माह की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्‌घोषणा हो चुकी है। कृपया आप सभी भाग लें। पूरा विवरण यहाँ है।

दशम् यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम


ओ आस्था के अरुण!
हाँक ला
उस ज्वलन्त के घोड़े
खूँद डालने दे
तीखी आलोक-कशा के तले तिलमिलाते पैरों को
नभ का कच्छा आँगन!

बढ़ आ, जयी !
सँभाल चक्रमण्डल यह अपना

('कितनी नावों में कितनी बार' से)


प्रत्येक माह हिन्द-युग्म भी हिन्दी काव्य के नवअरुणों का आव्हान करता है। अक्टूबर माह में हमने दसवीं बार 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' के माध्यम से कविता के नव हस्ताक्षरों से उनका चक्रमण्डल सँभालने की गुहार की थी।

३४ कवियों ने हमारी पुकार सुनी। हर बार की तरह इन कवियों के ज्वलन्त घोड़ों ने ४ चरणों के ७ जजों के साथ दौड़ लगाई। २२ कविताएँ दूसरे दौर में पहुँचीं, १५ तीसरे में, तो १० अंतिम में।

अंत में बचे रह गये, अपनी पताका 'कवि की बेटी' के साथ अक्टूबर माह के यूनिकवि अभिषेक पाटनी

यूनिकवि- अभिषेक पाटनी

जन्मतिथि- १८ सितम्बर १९७७

शिक्षा- 'पत्रकारिता व जन्सम्प्रेषण' में स्नात्कोत्तर (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी)
हिन्दी-साहित्य में सनात्कोत्तर (पटना विश्वविद्यालय, पटना)

उपलब्धियाँ- राँची स्थित स्पेनिन संस्था द्बारा 'स्पेनिन सृजन सम्मान २००७' से सम्मानित
तमाम हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ व निबंध प्रकाशित

रुचियाँ- रचनात्मक लेखन और गीत-संगीत सुनना।

उद्देश्य- पत्रकारिता के माध्यम से समाज के विस्थापित नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना

स्थायी पता- क्वार्टर न0 - १२, रोड न0 -३, श्री कृष्ण नगर, पटना (बिहार)-८००००१

पत्राचार पता- बी- १३, प्रथम तल, सेक्टर - १५, अलका सिनेमा के पीछे, नोएडा (उत्तर प्रदेश)-२०१३०१

ईमेल- patni12@gmail.com, मोबाइल-९९७१५८१७१४

पुरस्कृत कविता- कवि की बेटी

कवि की बेटी
उसके लिये तो
जन्म से ही
श्रंगारिक स्रोत थी
कभी अल्हड़
कभी नवयौवना
कभी प्रौढ़ा
और
कभी मर्दिनी का
रूप लिये
उसकी तमाम
कविताओं की
अद्वितीय नायिका!

किंतु
उस रूप में
कभी नहीं
ढली
जिस रूप में
कल
बाज़ार में
कुछ लोगों ने
उसे देखा
घूरा
छुआ
और
अंतत: भोगा (?)

जी हाँ! सरेआम
कवि की बेटी
सामूहिक बलात्कार
की शिकार हुई.

कवि ने
अपनी कल्पना में
उसे हर रूप में
ढाला था
रंगा था
पर.....
इस रंग की उसने
कल्पना तक नहीं की थी
(दूसरों के लिये भी नहीं)

उसकी बेटी
उसकी लेखनी से
कई युगों में
ढलती रही
किंतु
इतनी बड़ी नहीं हुई
जितना कल
कुछ लोगों ने
उसे बलात
बना डाला था!

अब वह
शब्दों के ढेर से
कैसे उसकी
तार-तार हुई
ज़िन्दगी को ढाँपेगा?
और
उन कविताओं का
क्या होगा
जिनकी नायिका के
हर रूप में
वह ढली है?

क्या वे कवितायें
फिर पढ़ी जायेंगी?
क्या उन कविताओं को
पढ़ा जा सकता है????




प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ७॰५,७
औसत अंक- ७॰१७
स्थान- छठवाँ




द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰१, ७॰५,
औसत अंक- ६॰३०
स्थान- सातवाँ




तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-किसी घटना को कविता में ढालना बड़े जोखिम का काम है।जोखिम इसलिए कि सीधे-सीधे विचार या मत प्रकट करना तो बहुत आसान है। बहुत आत्मसात करना होगा। कथ्य का चुनाव नई तरह से किया है। कल्पना का रंग भरने का प्रयास अच्छा है।
अंक- ६॰१
स्थान- छठवाँ




अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
यह कविता जिन शब्दों में बुनी जानी चाहिये थी, कवि के तेवरों ने वैसा ही प्रस्तुतिकरण किया है। कवि की प्रेरणा, कवि की बेटी की परिणति और फिर यह प्रश्न कि “क्या उन कविताओं को पढ़ा जा सकता है????” उस नासूर की ओर इशारा करता है जो कि हमारे समाज की काया पर है।
कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १६॰५/२०




पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने नवम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम और पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिकवि अभिषेक पाटनी तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।




चित्र- जैसाकि हमने उद्‌घोषणा की थी कि इस बार हम टॉप १० की सभी कविताओं पर हमारे चित्रकारों द्वारा चित्र भी प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे, तो यूनिकविता पर चित्र बना भेजा है श्रीमती स्मिता तिवारी ने।

पाठकों में भी इस बार पहले से ज्यादा घमासान रहा।

शिवानी सिंह और रणधीर "राज" जिस तरह की विश्लेषात्मक प्रतिक्रियाएँ देने में लगे थे, उससे लग रहा था कि इस बार यूनिपाठक चुनना बहुत मुश्किल होगा, परन्तु पता नहीं क्यों माह के तीसरे पड़ाव पर इनकी प्रतिक्रियाएँ नहीं आईं। हम अनुरोध करेंगे कि आपदोनों पुनः सक्रिय हो जाय।

यूनिपाठिका का ख़िताब इस बार श्रीमती गीता पंडित के नाम जाता है, जिन्होंने हमारी हर एक गतिविधि पर नज़र रखी और हमारा उत्साहवर्धन किया।

यूनिपाठिका- गीता पंडित

परिचय- गीता पंडित का परिचय पढ़िए उन्हीं की जुबानी।

परिचय क्या, एक अनवरत खोज है मेरी, स्वयं को जानने की। जान पाऊँ, तो संभवतः 'उस' को जान पाऊँ जो अभीष्ट है। लेखनी ही माध्यम है इस खोज की। साहित्य साधना है, कर रही हूँ। फलेच्छा क्योंकि गीता-धर्म नहीं है, इसलिये गीता पंडित साधना-रत है, केवल। रसिक हूँ, अतः समय और अवसर मिलते ही संगीत-कार्यक्रमों में सम्मिलित
होने की उत्कंठा बनी रहती है। यदा-कदा नाटकों मे मंच-स्पर्श भी किया। घर की दीवारों पर लगे तैल-चित्रों में अपने ही विचारों को चित्रित कर पाने में अंशतः सफलता मिली। यूँ सफलता तो सागर-शोधन की तरह है।
एम.ए.इंग.(लिट.) और फिर एम.फिल.(लिंग्विस्टिक्स) किया, किंतु रूप गृहिणी का ही है। श्रद्धेय जनक, प्रसिद्ध कवि श्री "मदन शलभ" का वरद-हस्त इस विधा में रत रहने की प्रेरणा रहा है। किसी गीत के पहले दो बोल पिता ने घुट्टी में दे दिये होंगे..... उसी गीत को पूर्ण करने के प्रयास मे लगी हूँ। वो जहाँ हैं, वहीं से मेरे स्व-धर्म और स्व-कर्म पर दृष्टि रखें।
शेष शारदे के हाथ।

संपर्क- १९९ ग्राउंड फ़्लोर, गंगा-लेन, सेक्टर-५, वैशाली (गाजियाबाद)-उत्तर प्रदेश
ईमेल- gieetika1@gmail.com



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति। (यह पुरस्कार हमने पिछली बार इन्हें भेजा है, अतः यह पुस्तक हम इस बार तृतीय स्थान के पाठक को भेंट कर रहे हैं)।

यूनिपाठिक गीता पंडित तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।


दूसरे स्थान के पाठक के लिए हमने चुना है समीक्षात्मक टिप्पणियाँ लिखने वालीं पाठिका शिवानी सिंह को। इन्हें पुरस्कार स्वरूप कवि कुलवंत सिंह की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति तथा डॉ॰ कुमार विश्वास की काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जाती है।

तीसरे स्थान के पाठक के रूप में एक और नया चेहरा हमारे सामने आता है, रणधीर "राज" का। इनके उत्साह का क्या कहें ! इनकी एक एक टिप्पणी कविता का सार-तत्व है। कविताओं को बिलकुल निचोड़ लेते हैं ये। इन्हें भी पुरस्कार स्वरूप कवि कुलवंत सिंह की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति तथा डॉ॰ कुमार विश्वास की काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जाती है।

अवनीश तिवारी जो कि अनिश के नाम से प्रतिक्रियाएँ करते हैं, हिन्द-युग्म को मिला नया उपहार हैं। हमारी हर गतिविधि पर दृष्टि ही नहीं रखते, बल्कि उनमें भाग भी लेते हैं। इन्होंने बहुत सी टिप्पणियों का उपहार हमें दिया है, हम भी इन्हें चतुर्थ स्थान के पाठक का सम्मान अर्पित करते हैं। कवि कुलवंत सिंह इन्हें अपनी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट करेंगे।

इनलोगों के अतिरिक्त विकास मलिक, रविन्दर टमकोरिया, दिवाकर मणि, आशा जोगलेकर इत्यादि ने हमें पढ़ा, सराहा, सलाह दी। हिन्द-युग्म आप सभी से गुज़ारिश करता है कि हमारे इस सकारात्मक प्रयास में बराबर साथ देते रहें।

साथ ही साथ हम अपने पुराने यूनिपाठकों जैसे सुनील डोगरा 'ज़ालिम', आर्य मनु और कुमार आशीष से अनुरोध करेंगे कि हिन्द-युग्म के निरंतर परिमार्जित करने में हमारा साथ देते रहें।

अभी तक हम परिणाम के साथ शीर्ष ४ कविताएँ प्रकाशित करते थे। लेकिन बहुत से पाठकों की शिकायत थी कि इतनी सारी बातें, कविताएँ और पेंटिंगें एक साथ देखने-सुनने से उनका असली मज़ा चला जाता है। इसलिए हमने निर्णय लिया कि इस बार से हम एक-एक करके कविताएँ, कवियों का परिचय व उनपर बनीं पेंटिंगें प्रकाशित करेंगे।

टॉप १० के अन्य ९ कवियों के नाम जिनमें से शुरू के ६ कवियों को हम डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक "मैं चल तो दूँ" की स्वहस्ताक्षरित प्रति वो क्रमशः ८वें, ९वें और दसवें स्थान के कवियों को सृजनगाथा की ओर से 'विहंग' भेजेंगे, निम्नलिखित हैं-

मंज़िल
तपन शर्मा
अंजलि सोलंकी कठपालिया
कुमार आशीष
कवि कुलवंत सिंह
सुनील प्रताप सिंह (तेरा दीवाना)
सन्नी चंचलानी
रवीन्दर टमकोरिया
सुनीता यादव

टॉप २० के अन्य १० कवियों के नाम जिनकी कविताएँ १-१ करके नवम्बर माह में हिन्द-युग्म पर प्रकाशित होंगी।

हरि एस॰ बाजपेई
श्यामल किशोर झा
पंकज रामेन्दू मानव
अरुण मिश्रा
अनुराधा शर्मा
सुनील डोगरा 'ज़ालिम'
सौम्या अपराजिता
प्रगति सक्सेना
रजनीश सचान
हरिहर झा

उपर्युक्त सभी प्रतिभागी कवियों से निवेदन है कि जिस कविता के साथ आप प्रतियोगिता में भाग लिए थे, कृपया उसे ३० नवम्बर तक अन्यत्र प्रकाशित न करें/करवायें।

निम्न कवियों ने भी प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारा हौसला बढ़ाया है। हम इनसे यहीं उम्मीद करते हैं कि वो परिणाम को सकारात्मक लेंगे और बढ़-चढ़कर इस बार भी यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लेंगे।

दिव्या श्रीवास्तव
अमलेन्दु त्रिपाठी
प्रतिष्ठा शर्मा
सुमन कुमार सिंह
दिनेश गहलोत
पारुल्क (पारुल कुमारी)
अभिषेक कुमार
विजय मधू
आशुतोष कुमार मिश्रा (मासूम)
शिवानी सिंह
संदीप सिंह
मनुज मेहता
साधना दुग्गड़
अवनीश एस॰ तिवारी

सभी प्रतिभागियों का बहुत-बहुत धन्यवाद। हिन्दी को जिस ऊर्जा की आवश्यकता है, वो हमें आप सभी से मिल रही है। सहयोग देना ज़ारी रखिए।

नवम्बर माह की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' से संबंधित पूरी जानकारी यहाँ है।

हिन्दी में लिखिए और जीतिए ईनाम, पाइए सम्मान


महीने की पहली तारीख और हिन्दी-प्रेमियों से हमारा यह अनुरोध कि कृपया वो 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' में भाग लें, के बीच ११ महीना पुराना नाता है।

आज हम पुनः इस गुज़ारिश के साथ उपस्थित हैं कि 'हिन्द-युग्म' की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' में भाग लेकर लिखने और पढ़ने वालों का मनोबल बढ़ायें।

एक कवि का २० प्रतिभागियों या ३० या ४० प्रतिभागियों के बीच भी प्रथम आना उसके उत्साह को बढ़ाता है। उसे अपनी शैली पर विश्वास बढ़ता है। समीक्षकों की राय उसे और बेहतर लिखने की राह बताती हैं। जिनकी कविताएँ प्रथम नहीं होतीं, उन्हें भी आत्म-आलोचना, आत्म-मंथन का अवसर मिलता है। हम यह अवसर आपको दे रहे हैं।

आपकी कविता पर पेंटिंग बनाने वाले हमारे चित्रकारों में भी अजब का उत्साह है। इसे लपक लीजिए। यूनिकवि का ख़िताब आपके इंतज़ार में है।

जब तक पाठक न हों तब तक न तो लिखने का मज़ा है, न कोई मतलब। आप पाठक ही कवि के असली मूल्यांकन कर्ता हैं। हमारे जजमेंट के बाद आखिरी जजमेंट के लिए आपके मार्गदर्शन आवश्यक होते हैं।

आपकी आलोचनाओं के कारण ही हम स्वमीमांसा करके बेहतर करने का प्रयास कर पाते हैं। आपके द्वारा हमारा उत्साहवर्धन, मार्गदर्शन और आलोचना ही मिलकर हिन्द-युग्म का भविष्य सुनिश्चित करते हैं।

यूनिकवि बनने के लिए-

१) अपनी कोई अप्रकाशित कविता १५ नवम्बर २००७ की मध्यरात्रि तक hindyugm@gmail.com पर भेजें।

(महत्वपूर्ण- मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं के अतिरिक्त गूगल, याहू समूहों में प्रकाशित रचनाएँ, ऑरकुट की विभिन्न कम्न्यूटियों में प्रकाशित रचनाएँ, निजी या सामूहिक ब्लॉगों पर प्रकाशित रचनाएँ भी प्रकाशित रचनाओं की श्रेणी में आती हैं।)

२) कोशिश कीजिए कि आपकी रचना यूनिकोड में टंकित हो।
यदि आप यूनिकोड-टाइपिंग में नये हैं तो आप हमारे निःशुल्क यूनिप्रशिक्षण का लाभ ले सकते हैं।

३) परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, इतना होने पर भी आप यूनिकोड-टंकण नहीं समझ पा रहे हैं तो अपनी रचना को रोमन-हिन्दी ( अंग्रेजी या इंग्लिश की लिपि या स्क्रिप्ट 'रोमन' है, और जब हिन्दी के अक्षर रोमन में लिखे जाते हैं तो उन्हें रोमन-हिन्दी की संज्ञा दी जाती है) में लिखकर या अपनी डायरी के रचना-पृष्ठों को स्कैन करके हमें भेज दें। यूनिकवि बनने पर हिन्दी-टंकण सीखाने की जिम्मेदारी हमारे टीम की।

४) एक माह में एक कवि केवल एक ही प्रविष्टि भेजे।

यूनिपाठक बनने के लिए

चूँकि हमारा सारा प्रयास इंटरनेट पर हिन्दी लिखने-पढ़ने को बढ़ावा देना है, इसलिए पाठकों से हम यूनिकोड ( हिन्दी टायपिंग) में टंकित टिप्पणियों की अपेक्षा रखते हैं। टायपिंग संबंधी सभी मदद यहाँ हैं।

१) १ नवम्बर २००७ से ३० नवम्बर २००७ के बीच की हिन्द-युग्म पर प्रकाशित अधिकाधिक प्रविष्टियों पर हिन्दी में टिप्पणी (कमेंट) करे।

२) टिप्पणियों से पठनियता परिलक्षित हो।

३) हमेशा कमेंट (टिप्पणी) करते वक़्त समान नाम या यूज़रनेम का प्रयोग करें।

४) हिन्द-युग्म पर टिप्पणी कैसे की जाय, इस पर सम्पूर्ण ट्यूटोरियल यहाँ उपलब्ध है।

कवियों और पाठकों को निम्न प्रकार से पुरस्कृत और सम्मानित किया जायेगा-

१) यूनिकवि को रु ६०० का नकद ईनाम, रु १०० की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र।

२) यूनिपाठक को रु ३०० का नकद ईनाम, रु २०० की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र।

३) क्रमशः दूसरे, तीसरे और चोथे स्थान के पाठकों को कवि कुलवंत सिंह की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

४) दूसरे से दसवें स्थान के कवियों को प्रो॰ अरविंद चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नकाबों के शहर में' की एक-एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।

5) टॉप २ कवियों और टॉप २ पाठकों को डॉ॰ कुमार विश्वास की ओर से उनकी पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की एक-एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।

७) यूनिकवि और यूनिपाठक को तत्वमीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पाने का अधिकार होगा। (लक पैकेज़ को छोड़कर)

८) इस बार भी हमारी कोशिश रहेगी कि हम नवम्बर माह की प्रतियोगिता से चुनी गईं टॉप १० कविताओं में से प्रत्यके पर पेंटिंग प्रकाशित करें। तो बस कला को कला से जोड़ने के लिए तैयार हो जाइए।

प्रतिभागियों से भी निवेदन है कि वो समय निकालकर यदा-कदा या सदैव हिन्द-युग्म पर आयें और सक्रिय कवियों की रचनाओं को पढ़कर उन्हें सलाह दें, रास्ता दिखायें और प्रोत्साहित करें।

प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले सभी 'नियमों और शर्तों' को पढ़ लें।

आप भाग लेंगे तो हमारे प्रयास को बल मिलेगा, तो आइए और हमारा प्रोत्साहन कीजिए।

आठवीं प्रतियोगिता के परिणाम


अथर्ववेद का कथन है-

रुहो रुरोह रोहितः (अथर्ववेद १३।३।२६)

अर्थात् उन्नति उसकी होती है, जो प्रयत्नशील है। और यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि हिन्द-युग्म टीम प्रयत्नशील है एवम् इसकी उन्नति सुनिश्चित है। उन्नति के प्रारम्भिक लक्षण दिखने भी लगे हैं। पिछले ८ महीनों से हम 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' का आयोजन कर रहे हैं। पहली बार हमारी प्रतियोगिता में ६ यूनिकर्मियों ने भाग लिया था। आज हम जिस अगस्त अंक का परिणाम लेकर प्रस्तुत हैं, उसमें कुल ३६ कवियों ने भाग लिया।

जनवरी माह में दैनिक पाठकों की संख्या ५० के आसपास थी, अगस्त माह में वो भी ८०० से ऊपर चली गई। ये सब पाठकों के प्रोत्साहन और हमारी टीम की मेहनत के प्रतिफल हैं।

यह स्वभाविक भी है, जब प्रतिभागी बढ़ेंगे, जजों को भी अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। अब तक प्रथम चरण के जजों को सभी कविताएँ सौंपी जाती थी, लेकिन इस बार चूँकि कविताएँ अधिक की संख्या में थीं, इसलिए बेहतर निर्णय के लिए प्रथम चरण के निर्णय को दो उपचरणों में विभाजित किया गया। एक उपचरण में दो जज रखे गये जिन्हें १८-१८ कविताएँ सौंपी गईं। सभी के अंकों का सामान्यीकरण करके श्रेष्ठ २२ कविताएँ चुनी गईं, जिन्हें द्वितीय चरण के जज को भेजा गया।

यहाँ हम यह बताते चलें कि क्रमिक दो-तीन कविताओं के प्राप्ताकों में इतना कम अंतर होता है (अमूमन दशमलव के दूसरे या तीसरे स्थान का अंतर) कि हमें हमेशा श्रेष्ठ १०, १२ या १५ चुनने में बहुत तकलीफ़ होती है। लेकिन तुरंत इस बात की खुशी होती है कि अधिकांश प्रतिभागी इसे भी सकारात्मक लेते हैं और बारम्बार प्रयास करते हैं।

प्रायः हम दूसरे चरण के निर्णय के बाद १० कविताओं को चुनते हैं, लेकिन १० से १३ वें स्थान तक की कविताओं के प्राप्तांक में इतना कम अंतर था कि टॉप ‍१३ कविताएँ लेनी पड़ीं। यही हाल तीसरे चरण का हुआ। हम अंतिम जज को ६ कविताएँ भेजना चाहते थे, लेकिन कविताओं में इतनी सशक्त प्रतिस्पर्धा थी कि आठ भेजनी पड़ी।

अंतिम चरण का निर्णय बहुत ही कठिन रहा। आज हम शुरूआत की जिन ४ कविताएँ प्रकाशित करने जा रहे हैं, उनको कोई क्रम नहीं दिया जा सकता। लेकिन चूँकि यूनिकविता चुननी थी। आखिरकार अंतिम निर्णयकर्ता ने 'कन्या भ्रूण हत्या' को यूनिकविता चुना। बहुत खुशी की बात है कि हमसे नित नये कवि जुड़ रहे हैं। इस बार के यूनिकवि राहुल पाठक का चेहरा हम सबके लिए नया है। मिलते/मिलवाते हैं इनसे-

यूनिकवि- राहुल पाठक

परिचय-
इनका जन्म छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में अगस्त 1982 को हुआ जहाँ पर इनकी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा हुई। कवि के माता- पिता दोनों ही अध्यापक हैं। इनकी मौसी जी राज्यपाल द्वारा सर्वश्रेष्ठ अध्यापक के पुरस्कार से जब सम्मानित हुईं तब इन पर बहुत प्रभाव पड़ा। चूँकि कवि की मौसी जी ही इनके विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका थी अतः हिंदी विषय में इनकी रुचि प्रारंभ से ही रही। हिंदी के अनेक महान कवियों की रचनाएँ इन्हें बचपन में ही कंठस्थ हो गयी थीं। राष्ट्र कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी का इनपर बहुत प्रभाव रहा है। विद्यालयकालीन शिक्षा के बाद इन्होंने इंदौर की आई. पी. एस. एकेडेमी में M.C.A. { MASTAR OF COMPUTER APPLICATION} में प्रवेश लिया और अभी अंतिम वर्ष के छात्र हैं। अध्ययन समाप्त होने के पूर्व ही कैप जैमिनी नामक कंपनी में इनका चयन हो चुका है। अध्ययन में व्यस्तता के चलते साहित्य-संसार से संपर्क बिल्कुल टूट गया था। जब यह हिन्द-युग्म के यूनिकवि विपुल शुक्ला के संपर्क में आए तब साहित्य में रुचि उत्पन्न हुई और नयी प्रेरणा से लेखन कार्य शुरू हो गया।

पुरस्कृत कविता- कन्या भ्रूण हत्या

ठीक कुछ छः माह की
नव मैं इस धरा पर
आने को तत्पर
पर हाय दुर्भाग्य!
मै अबला, बला
परिवार के सदस्यों को
मेरे रिश्तेदारों को
ख़ुद पिता को
दादा-दादी को
नापसंद
मेरा तयशुदा अंत
कुविचार-विमर्श और डील
जल्लाद तैयार क्रुवर डील

रोती माँ क्षमादन माँगती मेरा
बेबस लाचार
दीन मुक़र्रर
अर्थी तैयार
मैं और माँ उस पार
चाकुओं-औज़ारो का मेला
हमारा कुछ पल का साथ अकेला
आती चिमटी पेरों पार मेरे
सहमती, जीवनदान
माँगती अकेली मैं
चीत्कार इस बार
भीषण दर्द पैर उस पार
बिलखती मैं
गर्भगृह का अंधकार
अंतरनाद
पुनः जकड़
पकड़-पकड़
अंग-अंग
भंग-भंग
मेरे आँसुओं से भीगता माँ का पेट
खींचता मेरा शरीर
टूटता नाभि का जुड़ाव
माँ और मेरा
अंतिम छुवन
उसकी घुटन

अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्रणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होने छः माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ७॰६६४७
औसत अंक- ८॰५८२३
स्थान- छठवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५८२३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰५४११
स्थान- ग्यारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता ठीक बन पड़ी है व तादात्म्य स्थापित करने में सफल भी। यदि टंकित करने के बाद एक बार देख लिया जाता तो कई परिवर्तन हो सकते। आगे और अभ्यास से बेहतर रचना की अपेक्षा की जा सकती है।
अंक- ५॰५
स्थान- तीसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता सम-सामयिक तो है ही। प्रवाह कविता के प्राण हो गये हैं। कविता का आरंभ नितांत साधारण है किंतु कवि ने शब्दों को ऐसा चुना है कि पाठक जुड़ता जाता है। और दूसरा अंतरा प्रवाह और भाव दोनों में डुबोने की क्षमता रखता है। संवेदना और शिल्प दोनों ने मिल कर कविता को उँचाई प्रदान की है विषेशकर कविता का अंतिम पैरा:

अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्राणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होंने छ: माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया

स्तब्ध करने वाली पंक्तियाँ है। समाज की नपुंसकता को उकेरती हैं। बिम्ब, भाव, प्रवाह और समसामयिकता.....बहुत बधाई कविवर।

कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८॰५/10
कुल योग: १६॰५/२०
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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने सितम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम और।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिकवि राहुल पाठक तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।
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पिछले दो महीनों से स्मिता तिवारी की व्यस्तता के कारण हम यूनिकविता के साथ उनकी पेंटिंग प्रकाशित नहीं कर पा रहे थे, मगर इस बार यह बताते हुए हम बहुत खुश हैं कि इस बार एक नहीं, वरन दो-दो पेंटर की पेंटिंगें इस कविता के साथ प्रकाशित कर रहे हैं।

पहली पेंटिंग है, इस बार के काव्य-पल्लवन की कुछ कविताओं पर कैनवास खींच चुके अजय कुमार की।

और दूसरी है हमारे-आपके लिए बिलकुल नये पेंटर सिद्धार्थ सारथी की पेंटिंग। यह पेंटिंग भी सभी पाठकों को समर्पित।

इस बार पाठकों में बहुत घमासान रहा। रचना सागर, विपिन चौहान 'मन', रविकांत पाण्डेय और शोभा महेन्द्रू हमारे ऐसे पाठक रहे हैं, जिनकी टिप्पणियों की संख्या के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जा सकता क्योंकि उस मामले में कोई किसी से कम नहीं है।

मगर शोभा महेन्द्रू ने जिस आवृत्ति और ऊर्जा से हमें पढ़ा है, वो शायद अतुलनीय है। ऊर्जा और उत्साह की जो आहुति इस यज्ञ प्रयास में ये सभी पाठक डाल रहे हैं, निश्चित रूप से उसकी तुलना पुरस्कारों से नहीं की जा सकती। बस हम नमन कर सकते हैं। इन चारों के मध्य वर्गीकरण का हमारा कोई भी आधार कमज़ोर होगा। इसलिए यूनिकवि की तरह यूनिपाठक चुन रहे हैं।

यूनिपाठिका- शोभा महेन्द्रू

परिचय-
इनका जन्म उत्तरांखण्ड की राजधानी देहरादून में १४ मार्च सन् १९५८ में हुआ। हिन्दी साहित्य में प्रारम्भ से ही रुचि रही। विद्यार्थी काल में ही शरद, प्रेमचन्द, गुरूदत्त, भगवती शरण, शिवानी आदि को पढ़ा। लेखन में भी बहुत रुचि प्रारम्भ से ही रही। हमेशा अपने जीवन के अनुभवों को डायरी में लिखा। कभी आक्रोश, कभी आह्लाद, कभी निराशा लेखन में अभिव्यक्त होती रही किन्तु जो भी लिखा स्वान्तः सुखाय ही लिखा। लेखन के अतिरिक्त भाषण, नाटक और संगीत में इनकी विशेष रुचि है। इन्होंने गढ़वाल विश्व विद्यालय से हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की है। वर्तमान में फरीदाबाद शहर के 'मार्डन स्कूल' में हिन्दी की विभागाध्यक्ष हैं। हिन्दी के प्रति सबका प्रेम बढ़े और हिन्दी भाषा बोलने और सीखने में सब गर्व का अनुभव करें, यही इनका प्रयास है।
चिट्ठा- अनुभव
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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिपाठिक शोभा महेन्द्रू तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।
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दूसरे स्थान पर हमने रखा है हमारे सक्रियतम पाठक रविकांत मिश्र को। तीसरे स्थान पर हैं विपिन चौहान 'मन' और चौथे स्थान पर काबिज़ हैं रचना सागर। तीनों को कवि कुलवंत सिंह की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति। विपिन चौहान 'मन' को एक बार और 'निकुंज' भेजी गई थी, लेकिन उनकी शिकायत है कि अभी तक यह पुस्तक उन्हें नहीं मिली। अब तो दुबारा भेजी जा रही है, पक्का मिलेगी। यद्यपि उद्‌घोषणा के अनुसार रविकांत पाण्डेय को डॉ॰ कुमार विश्वास की काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' मिलनी चाहिए, लेकिन वो भी हम रचना सागर को भेंट कर रहे हैं क्योंकि हम किताबों को अधिकतम हाथों में सौंपना चाहते हैं न कि अधिकतम किताबों को एक हाथ में। यह पुस्तक विपिन चौहान 'मन' को पिछले माह भेज दी गई थी। इसलिए रचना जी इसकी हकदार हैं।

इसके अतिरिक्त हमारे स्थाई पाठक, सहयोगी, मार्गदर्शक तपन शर्मा, गीता पंडित, पीयूष पण्डया, घुघुती बासूती, कमलेश, राकेश, संजीत त्रिपाठी आदि ने खूब पढ़ा। हम उम्मीद करते हैं कि हमें और नये पाठक मिलेंगे और वर्तमान पाठक भी अपनी श्रद्धा बनाये रखेंगे।

फ़िर से कविताओं का रूख़ करते हैं। कहने के लिए दूसरे स्थान की कविता (वैसे सभी प्रथम हैं) का शीर्षक भी 'कविता' ही है। इसके रचनाकार हैं रविकांत पाण्डेय। इनकी कविता 'मिट गया हूँ मैं' ने पिछली बार भी टॉप १० में ज़गह बनाई थी। इस बार भी इनका टॉप में बने रहना इनकी रचनात्मक शक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

कविता- कविता

कवयिता- रविकांत पाण्डेय, कानपुर


मेरी कविता.....
पढ़ना मत, चूक जाओगे
बन सके यदि
जीओ इसे, जान जाओगे.......
कि
कविता को जन्म देने के लिए
गुजरना पड़ता है कवि को
प्रसव-पीड़ा से....
कि
कविता ज्यों-ज्यों बड़ी होती है
देना पड़ता है-
वस्त्र-तन ढँकने को,
अन्न-भूख मिटाने को........
कि
कविता जब जवान होती है
शृंगार माँगती है......
कि
कविता झेलती है-
कभी गरीबी का दंश भी
जहाँ शौक दम तोड़ देते हैं
कभी पलती है राजसी ठाट में
जहाँ अभावों के बादल नही होते........
कि
कभी पड़ती है
छाया अकाल मृत्यु की
और कभी लाँघ जाती है कविता
इस देहरी को
और बन जाती है
समयातीत।
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰१९३७५, ८॰८२१४२
औसत अंक- ८॰५०७५८९
स्थान- आठवीं
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ८॰५०७५८९(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰७५३७९४
स्थान- सातवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-अलग विषय पर लिखी इस कविता में प्रौढ़ता की सम्भावनाएँ निहित हैं। रचनाशीलता की गुत्त्थियाँ खोलने का प्रयास करती रचना में गद्य व स्फीति अतिरिक्त आ गए हैं।
अंक- ५॰२
स्थान- चौथा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता क्या है? क्यों है? कैसी है...कवि का मंथन गहरा है। विचारों की परिपक्वता के साथ कवि के विषय किस तरह बदलते हैं, सुन्दरता से प्रस्तुत हुआ है।

कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १६/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें। कुमार विश्वास की ओर से 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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हमारे सदस्यों की चिंता थी कि हमें जम्मु शहर से बहुत कम पाठक मिलते हैं, लेकिन इस बार के तीसरे स्थान के कवि विनय मघु ने यह सिद्ध किया कि अब हम वहाँ भी पहुँच रहे हैं। और सिर्फ पहुँचे ही नहीं बल्कि स्तरीय कवि को जोड़ भी पा रहे हैं। मघु जी की कविता 'नन्ही छाती' इस परिणाम की तीसरी कविता है।

कविता- नन्ही छाती

कवयिता- विनय मघु, जम्मु


नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है।

वह
छाती जिस में
दिखता नहीं कोई उभार
और
जिसमें बहती नहीं
कभी दूघ की नदियाँ
जिसकी मांग बरसों
से कर रही हैं,
एक
चुटकी भर सिंदुर का
इंतजार
ताकि,
वह भी
औरों की तरह
माथे पर सजा सके बिंदिया
बनाने वाले ने जिसे
छोड़ दिया दुनिया
में
निवस्त्र
अपने नंगे
जिस्म को
लालची भेड़ियों
की नज़रों से
बचाने के लिए
ओढ़ लेती हैं
जो एक
चादर
जो
आग से तापती हैं

वो
ओरों को
क्या दु:ख देगी,
जो अपने
जख्मों पर मरहम
छुपते-छुपते मलती हैं

नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है

दोपहर
जो
रामायण सी पवित्र
है।
फूलों की पंखुड़ियों की तरह
कोमल
तथा
हिमालय की बर्फ सी
दिल से
साफ है
उस जैसी
और
कौन
अभागन होगी,
जो अपनी ही
आग
में आहिस्ता-आहिस्ता
पिघलती है,

नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है।

जो
बरसों
से
बैठी हैं राधा की तरह
पत्थरों के पनघट पर
और
नयनों से जिसके
आंसुओं की धारा बह रही हैं
जो चुप है होंठों से
मगर
दिल से
भाम-भाम
पुकार रही हैं
हा!
वह दोपहर
ही तो है
जो एक एक बूंद को तड़पती है,
जो हर पल आग में जलती है,
बादलों के दर-दर भटकती है,
और
अक्सर अभागन
लौट आती है
खाली हाथ
बिना कुछ पाये,
निराशा के सिवाये।
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰५, ८॰६३६३६३
औसत अंक- ८॰५६८१८१
स्थान- सातवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५६८१८१(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९४५
स्थान- बारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
प्रतीक का निर्वाह आद्यंत हुआ है। अर्थ की अन्विति,बिम्ब व प्रतीक व्यवस्था अच्छी बन पडी है। कविता का मुहावरा व लयात्मकता भी भली लगती है। कवि में सम्भावनाएँ हैं । वर्तनी ठीक करने पर भी ध्यान देना होगा।
अंक- ६
स्थान- प्रथम
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
इस कविता के भीतर की संवेदना झकझोर देती है। चित्रण और दोपहर के साथ कवि ने जो संकल्पना जोड़ी है कि पढ़ते हुए वह जलन पाठक के भीतर भी महसूस होने लगती है। सहजता कवि ने अपनायी है और कविता को कहीं भी कमजोर नहीं पड़ने दिया है। कविता में पंक्तियों को तोड़ते हुए कई स्थानों पर कवि असावधान हुआ है किंतु उसके शब्द संवेदना उकेरने में कहीं भी असफल नहीं हुए।

कला पक्ष: ७॰५/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५॰५/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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पिछली बार टॉप १० में न पहुँच पाये विजय दवे ने पुनः प्रयास किया और यह सिद्ध कर दिया कि उनकी आवाज़ को कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। उनकी 'तुम कब आओगी' शृंखला की तीन कविताएँ ४वें स्थान पर रही।

कविता- तीन कविताएँ ( तुम कब आओगी ?)

कवयिता- विजय दवे, भावनगर (गुजरात)


१) तुम कब आओगी ?

मेरी आंखों में उमड़ते हुए समंदर की हर एक बूँद में
तेरी तस्वीर बंद है .
तेरी हर एक तस्वीर को मैं झांका करता हूँ
चोरी-चोरी, चुपके-चुपके .
मेरे होठों पर कई दिनों से
तितली बैठने नहीं आयी .
मेरी आंखों में कई दिनों से
एक कटी-पतंग उड़ रही है .

मेरे कानों में निरव स्वर ने
झंकार देना छोड़ दिया है .
मेरी अंगुलियों ने स्पर्श संवेदना
गंवा दी है .

मैं एक बुत-सा बन गया हूँ
मुझे पारसमणि की तलाश है .
तुम कब आओगी ?

(२) तुम कब आओगी ?

रात के अंधेरों ने
मुझे बिस्तर पर तड़पते हुए देखा है .
कभी-कभार खुली आंखें
सपना देख रही होती है .
बगल में रहे पेड़ के पत्तों की खड़खड़ाहट
झांका करती है ,
मेरे बिस्तर पर , जो मेरे जिस्म से
भरा पड़ा होता है .

चुपके-चुपके याद दस्तक दे जाती है
मेरे उद्विग्न मन के पट पर
और
उस रात मैं ज़िंदा जलाया जाता हूँ
- उन यादों के हाथों , जो तेरे जाने के बाद आती हैं
मेरे कानों में तेरे अट्टहास की आवाज़
गुंजने लगती है .
उस दिन मेरा बिस्तर मुझे
मेरी आंखों के नीचे गीला हुआ मिलता है
फिर मैं अपने आपको पूछ बैठता हूँ

तुम कब आओगी ?

(३) तुम आओगी या नहीं ?

अध खुली आंखों में इंतज़ार ने
अभी-अभी टपकना शुरू किया है .
टेबुल पर पड़ी किताब के पन्ने
छत पर लटके पंखे से उलटते रहते है .
तुम आओगी या नहीं
यह मुझे नहीं पता
मगर
हर रोज़ तुम्हारी याद सपनों में आकर
मुझे जागने को विवश कर देती है .
कभी उत्तर मिलेगा या नहीं
कि
तुम आओगी या नहीं ?
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ९॰५
औसत अंक- ९॰५
स्थान- प्रथम
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-९, ९॰५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ९॰२५
स्थान- दूसरा
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
प्रतीक्षा व वियोग को व्यक्त करती इन पंक्तियों की सम्वेदना प्रभावशाली है।कवि के पास स्थितिविशेष को सहजता से रूपायित करने की सूझ है। अतिरिक्त गद्यात्मकता से बचा जा सकता था । वर्तनी की चूकें सुधार ली जानी चाहिएँ।
अंक- ५॰७
स्थान- दूसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
'तुम कब आओगी?' के तीनों भाग बहुत सुन्दर बन पड़े हैं। कवि के बिम्बों को पढ़ते हुए अनेक स्थानों पर गुलजार के बिम्बों सा अनूठापन दिखा। संपूर्णता में बेहद उत्कृष्ट रचनायें।

कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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अब हम बात करते हैं टॉप १० रचनाकारों में से अन्य ६ की (जिनमें से कई नये हैं), जिनको कवयित्री डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी।

अनिता कुमार
विपिन चौहान 'मन'
पंकज रामेन्दू मानव
आनंद गुप्ता
सुनीता यादव
संतोष कुमार सिंह

इसके अतिरिक्त २६ कवि और हैं जिनका हम धन्यवाद करते हुए यह निवेदन करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लें और पुनः प्रयास करें।

अजय कुमार आईएएस
आशिष दूबे
सुनील कुमार सिंह (तेरा दीवाना)
संजय लोधी
डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना
पीयूष दीप राजन
पीयूष पण्डया
दिव्य प्रकाश दूबे
श्रीकांत मिश्र 'कांत'
कवि कुलवंत सिंह
मनोहर लाल
पागालोकी बरात
हरिहर झा
अनुभव गुप्ता
जन्मेजय कुमार
शोभा महेन्द्रू
हिमांशु दूबे
ममता किशोर
आशुतोष मासूम
उत्कर्ष सचदेव
दीपक गोगिया
हेमज्योत्सना पराशर
तपन शर्मा
प्रदीप गावन्डे
प्रवीण परिहार
रिंकु गुप्ता

निवेदन- सभी प्रतिभागी कवियों से निवेदन है कि वो कृपया अपनी रचनाओं को ३० सितम्बर २००७ तक कहीं प्रकाशित न करें/करवायें, क्योंकि हम अधिक से अधिक कविताओं को युग्म पर प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे।

अंत में सभी प्रतिभागियों का हार्दिक धन्यवाद करते हुए हम यह निवेदन करते हैं कि इसी प्रकार हमारे आयोजनों का हिस्सा बनकर हमारा उत्साह बढ़ाते रहें।

सितम्बर माह की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्‌घोषणा यहाँ की जा चुकी है।

धन्यवाद।