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कविता के गुलशन में विचरण करती पठनीयता की सीमा (परिणाम)


यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम इस सत्य को पुनः स्थापित करते हैं कि किसी भाषा और उसके साहित्य का विकास दुनिया में कहीं भी और किसी के भी द्वारा हो सकता है, बशर्ते सच्चे मन का सेवक हो।

हिन्द-युग्म पर बहुत से कवि और पाठक हिन्दी के जन्मस्थल भारत के बाहर से आते हैं। यद्यपि वे भारत से संबंध रखते है, फिर भी अपनी मिट्टी से काफी समय से दूर हैं और विदेश में भी पूरे जतन से निज भाषा और निज साहित्य की सेवा कर रहे हैं।

अप्रैल माह से एक रूसी व्यक्ति वसेवोलोड पापशेव यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। उनका मानना है कि वो एक दिन यूनिकवि बनकर रहेंगे। फिलहाल शुरूआत है। जानकारी के लिए बता दें कि उन्हें यूनिकोड (हिन्दी) टाइपिंग आती है।

मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए कुल ४५ कविताएँ प्राप्त हुई थीं, दो चरणों में ७ जजों द्वारा निर्णय कराये जाने के बाद मॉरिशस निवासी गुलशन सुखलाल की कविता 'मेरे अजन्मे पुत्र' को प्रथम स्थान की कविता चुना गया। गुलशन इससे पहले और २ बार इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुके हैं, तथापि इनकी पुरानी कविताओं ने हमारे निर्णायकों को बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया था। गुलशन सुखलाल के बारे में बहुत अधिक जानकारी हमारे पास नहीं है क्योंकि यूनिकवि के निर्णय के बाद परिचय और चित्र आदि के लिए हमने इनसे संपर्क साधा (ईमेल द्वार), परंतु इन्होंने अभी तक कोई उत्तर नहीं भेजा। फिर हमने गूगल पर (इनकी ईमेल आईडी के साथ) सर्च किया, तब इनका फ़ेसबुक प्रोफाइल मिला, जहाँ से हमें यह चित्र मिला। एक और सूत्र के अनुसार दक्षिण एशिया केंद्र द्वारा प्रायोजित एक कार्यक्रम 'द्वीपों के समूह को राष्ट्रीयता की तलाश' पर मॉरिशस विश्वविद्यालय में शोधरत गुलशन सुखलाल ने अपना भाषण दिया था। भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद के एक सूत्र पर मॉरिशस के एलूमनियों की सूची है, उसमें गुलशन सुखलाल का नाम सबसे ऊपर है और निम्नलिखित विवरण है-

Name : Mr. Gangadharsing (Gulshan) Sooklall
Address : Mahatma Gandhi Rd, Petit Raffray
Tel. : 2820005, Mob:7890702
Email:
gulshansooklall@yahoo.co.uk
gulshansooklall@hotmail.com
Period of Study : 1995 to 2000
University : Delhi
College : Hansraj
Course/s : B.A. (Hons) Hindi, M.A. Hindi
Present Occupation : Lecturer, MGI (Mahatma Gandhi Institue, Mauritius)
Financing : General Cultural Scholarship, ICCR
Comments : The exp. of study in India are undeniably the best ;moments in student life. As far as suggestions are concerned, I believe many things might have changed in the six years since I have been back. Yet the two major areas requiring urgent attention from the authorities have been dissemination prior to departure for India and the arrival arrangements that follow and secondly lodging for international scholars. One very meaningful change that can be brought about is the setting of small forums for ICCR scholars within each univ. for cultural and exp. sharing. Such forums may arrange for international students to have first hand exp. of Indian family life and culture. The ICCR summer or winter tours fail in this objective as the students visit places more as tourists and not as cultural ambassadors.

पूर्णिमा वर्मन जी ध्यान दिलाया कि इनकी प्रोफाइल और इनकी कविताएँ अनुभूति पर भी उपलब्ध हैं

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पुरस्कृत कविता- मेरे अजन्मे पुत्र

कुछ शब्द हैं तुम्हारे लिए
मेरे अजन्मे पुत्र...

आने से पहले ही तुम्हारे
सपनों, ईरादों, योजनाओं की बनाता जा रहा हूँ मैं कतारें
कुछ रहेंगी याद और
कुछ जाऊँगा भूल।

कुछ काम हैं तुम्हारे लिए
मेरे अजन्मे पुत्र
बड़ा होते हुए या
बड़ा होने पर...

याद दिलाना मुझे
कि तुम्हारे भविष्य
तुम्हारी सफलता, स्वास्थ्य, सौन्दर्य
और तुम्हारी भावनाओं का निर्णय
दुनिया के दूसरे कोने में बैठा कोई मार्कैटिंग गुरू
अपने विज्ञापनों के लुभावने शब्दों से
अपनी कौड़ी के मोल बिकने वाले सामानों से
नहीं करेगा।
याद दिलाना मुझे कि
यदि आज मैं तुम्हारे लिए
ये शब्द लिख पा रहा हूँ
तो इसलिए नहीं
कि मैं प्रमाण पत्रों के पीछे भागा हूँ

याद दिलाना कि
पीठ पर किताबों का बोझ लादे
देश के भविष्य के जिस बढ़ते हुजूम की
मैं निन्दा करता रहा हूँ
उसी में तुम्हें ढकेल कर
अपने कर्तव्यों की इति न समझूँ ।

याद दिलाना कि मैं तुम्हें
इस काबिल बनाऊँ कि
तुम भी ऐसे शब्द लिख पाओ
अपने अजन्मे पुत्र के लिए

याद दिलाना कि
तुम इसलिए नहीं होगे अलग
या बेहतर
ग़रीब पड़ोसी के
बच्चे से
कि तुम हो साफ़ सुथरे
सफर करते हो गाड़ी में
या क्योंकि वह
सरकारी पठशाला में पढ़ता है।

याद दिलाना मुझे तुम
कि मेरी गाड़ी, मेरे घर,
मेरी नौकरी और पगार की तरह
तुम
दोस्तों-दुश्मनों के सामने
मेरा बड़प्पन जताने के
साधन नहीं हो
’शोपीस’ नहीं जिसमें
बचपन में ही
दुनिया भर का ज्ञान
क्विज़ के उत्तरों की पोथियाँ
और सभी सम्भव कलाएँ भरकर
मैं माध्यम बनाकर
अपना अहम् संतुष्ट करूँ ।

याद दिलाना मुझे कि
मैं तुम्हें याद दिलाऊँ
मेरी सम्पत्ति,
ओहदा, मान, नाम
नहीं हैं बपौति तुम्हारी
कमाया है मैंने
कमाना होगा तुम्हें भी ।

याद दिलाना
कि मैं तुम्हें
मिट्टी में खेलने दूँ
बारिश में भीगने दूँ
धीमी गति से चलने दूँ
साईकल से गिरने दूँ
दोस्तों से भिड़ने दूँ
हाथ से खाने दूँ
खुलकर हँसने दूँ
अपनी बात कहने दूँ

और यदि कभी,
तुम्हारी नज़रों में ‘सुपर-हीरो’
तुम्हारा यह पिता अपनी
बाहरी और भीतरी कमज़ोरियों के सामने
अपनी नपुंसकता का प्रमाण देने लगे
तो तुम
उसे ये सभी बातें याद दिलाना
क्योंकि तुम्हारे भविष्य के साथ जुड़ा है
मेरा भी भविष्य।



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ६॰५, ५॰८, ८॰५
औसत अंक- ६॰७
स्थान- दूसरा


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰५, ९, ५॰९, ६॰७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२७५
स्थान- प्रथम


पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।

यूनिकवि गुलशन सुखलाल से यदि अगले कुछ दिनों में संपर्क नहीं हो पाता है तो हिन्द-युग्म शर्तानुसार यह अवसर हम दूसरे स्थान के कवि को देगा। दूसरे स्थान के कवि प्रेम सहजवाला को हम पिछले माह की तरह पुनः आमंत्रित करेंगे

इसलिए प्रेम सहजवाला को दूसरे स्थान की कविता को मिलने वाली पुस्तक के अतिरिक्त प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द पुरस्कार भी दिया जायेगा।

इससे पहले कि हम विजेता पाठकों की बात करें, पूजा अनिल, महक, अल्पना वर्मा और आलोक सिंह साहिल का विशेष आभार व्यक्त करेंगे, ये सभी बहुत धैर्य के साथ हिन्द-युग्म को पढ़ते हैं।

इस बार यूनिपाठिका का खिताब हिन्द-युग्म को मार्च २००८ से लगातार पढ़ रहीं, दो बार से दूसरे स्थान की पाठिका के रूप में पुरस्कृत और बाल-उद्यान को अपनी सुंदर-सुंदर कविताओं से नवाजने वालीं सीमा सचदेव के नाम जाता है।

शिक्षा :- एम.ए. हिन्दी, एम.एड.,पी.जी.डी.सी.टी.टी.एस.., ज्ञानी
जन्म:- २ अक्तूबर ,१९७४
जन्म स्थान :- गाँव:- खुइयाँ सरवर ,अबोहर (पंजाब)
लेखन कार्य:- बचपन से ही हिन्दी कविताएँ लिखने में रुचि थी, और बहुत सारी कविताएँ लिखी भी लेकिन सँजो कर न रखने से खो गईं, इन्हें आज तक इसका मलाल है। इन्होंने अपनी पहली कविता आठ या नौ साल की उम्र में लिखी थी। इन्होंने अभी जितना सँजो कर रखा है ,वो है:-
१. मेरी आवाज भाग-१
२. मानस की पीड़ा ( २० भाग ,श्री रामचरित मानस पर आधारित)
३.सञ्जीवनी ( ३ खण्ड काव्य १. ब्रजबाला ,२.कृष्ण-सुदामा , कृष्ण-गोपी प्रेम )
४.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-१ ( बाल-कथाएँ हिन्दी कविता के माध्यम से)
५.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-२
६.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-३
७.नन्ही कलियाँ
८.आओ गाएँ ( बहुत छोटी बाल-कविताएँ)
9.खट्टी-मीठी यादें (इन्हीं की न भूलने वाली यादों पर आधारित तथा कुछ रेखाचित्र)
10. मेरी आवाज भाग-२ पर कार्य कर रही हैं |
"मेरी आवाज़ भाग-१" ,"मानस की पीड़ा" ,तथा "सन्जीवनी" ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं तथा रचनाकार पर उपलब्ध हैं | "आओ सुनाऊँ एक कहानी" की बहुत सी कथा-काव्य तथा "नन्ही कलियाँ" और "आओ गाएँ" की कुछ कविताएँ "बाल-उद्यान" में प्रकाशित, कुछ कविताएँ वेब हिन्दी मैग्जीन "कृत्या" में प्रकाशित तथा समय समय पर "दक्षिण भारत" हिन्दी पत्रिका में इनकी कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं। जल्दी ही बाकी सभी पुस्तकें भी ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो जाएँगी।
अब ये अपने पति के साथ बंगलूरु (कर्नाटक) में रहती हूँ, पेशे से हिन्दी अध्यापिका हैं। और इनका एक दो वर्ष पाँच माह का बेटा भी है |

पुरस्कार- रु ३०० का नकद ईनाम, रु २०० की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र।

हिन्द-युग्म ने जितना धैर्यवान पाठक पैदा किया है, वो इसके लिए गौरव की बात की है। दूसरे स्थान के पाठक के रूप में हमने चुना है, बहुत अधिक सक्रिय कवि-पाठक देवेन्द्र कुमार पाण्डेय को जो अक्सर ही यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लेते हैं और इनकी कविताएँ शीर्ष १० में जगह बनाती हैं। इन्हें पुरस्कार स्वरूप मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट की जायेंगी।

क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान पर हमने डॉ॰ रमा द्विवेदी और ममता पंडित को रखा है, जिन्होंने भी हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा और हमारा मार्गदर्शन किया तथा हमारा आत्मबल बढ़ाया। इन्हें भी पुरस्कार स्वरूप रोहतक हरियाणा से प्रकाशित त्रैमासिक हिन्दी साहित्यकि पत्रिका 'मसि-कागद' की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट की जायेंगी।

इसके अतिरिक्त पल्लवी त्रिवेदी, देवेन्द्र कुमार मिश्रा, सुमित भारद्वाज, डॉ॰ अनुराग आर्या, अपूर्ण, ने भी हमें खूब पढ़ा। इनका भी बहुत-बहुत धन्यवाद।

इस माह से हिन्द-युग्म को संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी, डॉ॰ एस॰ के॰ मित्तल, बाल किशन और गिरीश बिल्लोर मुकुल के रूप में नये पाठक मिले हैं। हिन्दी को इनसे भी बहुत उम्मीदें हैं।

हमारे पुराने पाठक शैलेश जमलोकि भी १ जून से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। मतलब हम उम्मीद का आकाश चौड़ा कर सकते हैं।

उन १० कवियों के नाम जिनकी कविताएँ शीर्ष १० (अंत की दो कविताओं का प्राप्तांक लगभग बराबर था इसलिए शीर्ष १० में ११ कविताएँ हैं) में स्थान बनाई हैं और जो एक-एक करके जून माह में प्रकाशित होंगी, वे हैं-

प्रेमचंद सहजवाला
यश
पीयूष तिवारी
पल्लवी त्रिवेदी
अरूण मित्तल 'अद्भुत'
देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
केशव कुमार कर्ण
निखिल सचान
अजीत पाण्डेय
सुरिन्दर रत्ती

उपर्युक्त सभी १० कवियों को कवि शशिकांत 'सदैव' की काव्य-पुस्तक 'दर्द की क़तरन' भेंट की जायेगी।

इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रत्येक प्रतिभागी का उतना ही महत्व है क्योंकि एक के न शामिल होने मात्र से आयोजन की सफलता कम होती है। इसलिए हम सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हैं और निवेदन करते हैं कि सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए बारम्बार भाग लें, इस माह की प्रतियोगिता की उद्घोषणा यहाँ है

निम्नलिखित कवियों ने भी इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसकी शोभा बढ़ाई।

विनय के॰ जोशी
मृदुल कीर्ति
पंकज रामेन्दू मानव
अभिनव झा
सीमा सचदेव
श्याम सखा 'श्याम'
रेनू जैन
डॉ॰ अनिल चड्डा
नीरा राजपाल
मयंक शर्मा
नागेन्द्र पाठक
प्रशेन क्यावल
मैत्रेयी बनर्जी
सुमीत भारद्वाज
सतीश वाघमरे
रितु कुमारी
वीरेन्द्र आर्या
कमलप्रीत सिंह
डॉ॰ एस॰ के॰ मित्तल
शिखा वार्षने
अमित अरूण साहू
अंजु गर्ग
गोविन्द शर्मा
आलोक सिंह साहिल
सविता दत्ता
रचना श्रीवास्तव
सुरेखा आनंदराम भट्ट
अर्चना शर्मा
ममता पंडित
पूनम
देवेन्द्र शर्मा
पूजा अनिल
सी॰ आर॰ राजश्री
वसेवोलोड पापशेव

दक्षिण का कवि उत्तर की पाठिका (जनवरी अंक के परिणाम)


हिन्द-युग्म के लिए और पूरे हिन्दी जगत के लिए यह बहुत खुशी की बात है कि हिन्द-युग्म लोगों का रूझान हिन्दी की दिशा में बढ़ाने में धीरे-धीरे सफल हो रहा है। एक बार पुनः हम यह कह पा रहे हैं कि जनवरी २००८ माह की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' में कुल ५० प्रतिभागी कवि रहे जोकि अब तक की अधिकतम संख्या है। आज हम इसी अंक के परिणामों के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।

जब कविताएँ अधिक हों, तो निर्णय भी उसी अनुपात में मुश्किल हो जाता है। फिर भी किसी न किसी को तो विजेता होना ही होता है। पूर्व की भाँति इस बार भी ४ चरणों में जजमेंट हुआ (पहले चरण में १ जज, दूसरे में २ और तीसरे व चौथे चरण में १-१ जज) ।

हिन्द-युग्म की पहली प्रतियोगिता पिछले वर्ष जनवरी माह में ही आयोजित हुई थी, और एक बहुत सुखद संयोग है कि पिछली बार का यूनिकवि (पहला यूनिकवि आलोक शंकर) दक्षिण भारत से था, और इस बार का यूनिकवि भी दक्षिण से है। एक और संयोग यह भी है कि अब ये दोनों यूनिकवि बेंगलूरु शहर में ही निवास कर रहे हैं।

यूनिकवि- केशव कुमार 'कर्ण'
परिचय-पिता- श्री राघवेन्द्र प्रसाद
माता- श्रीमती वीना कर्ण
जन्म तिथि- ०१.०२.१९८०
(एक फरबरी उन्नीस सौ अस्सी )
पैतृक स्थान - रेवारी
जिला- समस्तीपुर, बिहार।
प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा- पैतृक गांव में।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से स्नातकोत्तर हिन्दी में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त !
नालंदा मुक्त विश्व विद्यालय से पत्रकारिता एवं जन-संचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा !
बिहार से स्वतंत्र पत्रकारिता की शुरुआत कर बंगलोर से प्रकाशित हिन्दी साप्ताहिक जनाग्रह में सात मास तक उप सम्पादकीय दायित्व निभाने के बाद सम्प्रति बंगलोर में ही एक कंपनी ऑनमोबाइल ग्लोबल लिमिटेड में बतौर स्क्रिप्ट राइटर कार्यरत !
साहित्य से अनुरक्ति- विरासत में ! अध्ययन से और दृढ़तर !

पुरस्कृत कविता- स्मृति शिखर से

स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
उर सिहर गया, क्षण ठहर गया,
और अतीत बना दर्पण !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
कर यत्न दिया विश्राम इसे,
पीड़ा उर की बतलाऊं किसे ?
यह काल आवरण ओढ़ पड़ी,
स्मरण पटल में जा गहरी !
पर पुनः पवन से पा जीवन,
फिर जाग उठी यादों की अगन !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
नीरव नीड़ में शांत शिथिल,
दृग में अतीत का स्वप्न लिए !
किस्मत को कौन बदल सकता,
क्या मिला बहुत प्रयत्न किए !
जगा गयी स्मरण बिहग को,
अरुणोदय की तीक्ष्ण किरण !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
अकुला कर दिन बिहग बोला,
अलसाई निज पलकें खोला !
सुदीर्घ रत का प्रात जान,
खग उर नीड़ से पंख तान !
पंछी पर अंकुश कौन रखे,
पा गया निमिष में दूर गगन !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !
अम्बर का अंत कहाँ पाबै,
बीते हुए कल कैसे आबे !
आ गया गगनचर फिर थक के,
आशा फिर मिलने की रख के !
उर धीर भरा सुर पीड भरा,
वो गाने लगा हो मस्त मगन !
स्मृति शिखर से चला प्रखर ,
वह मधुर पवन वह मुखर पवन !



प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰०५
स्थान- छठवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰३, ५॰८, ८॰०५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७१६
स्थान- आठवाँ


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-शब्दों की पुनरावृत्ति, कथ्य में भटकाव।
अंक- कथ्य: ४/२ शिल्पः ३/२ भाषा: ३/२
कुल- १०/६
स्थान- पाँचवाँ


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
रचना का प्रवाह, कवि की भाषा पर पकड और बिम्ब सभी सराहनीय हैं। संस्कृतनिष्ठता से साधारण हिन्दी और यदा-कदा देशज शब्दों का जिस तरह कवि ने संयोजन किया है कि वे प्रयोग की दृष्टि से उदाहरण बन गये हैं।
कला पक्ष: ९/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १७॰५/२०



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने फरवरी माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम।

यूनिकवि केशव कुमार 'कर्ण' तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।



हमारे अत्यंत सक्रिय पाठक आलोक सिंह 'साहिल' इस बार यदा-कदा ही दिखे। हाँ सीमा गुप्ता, अल्पना वर्मा, महक आदि हमेशा की तरह ही हमें खूब पढ़ती रहीं। अल्पना वर्मा से हमने हिन्द-युग्म की सक्रिय कार्यकर्ता बनने के लिए निवेदन किया है ताकि हिन्द-युग्म को वो नई दिशा दे सकें। कृपया वो इसे भी एक सम्मान की तरह स्वीकार करें।

सीमा गु्प्ता पहले रोमन में टिप्पणियाँ करती थीं, मगर अब देवनागरी में करने लगी हैं। मतलब हम अपने उद्देश्य में सफल रहे और सीमा गुप्ता यूनिपाठिका बनने में सफल रहीं। सीमा गुप्ता अच्छी पाठिका ही नहीं वरन अच्छी कवयित्री भी हैं, हिन्द-युग्म के मंच पर प्रकाशित होती रही हैं।

यूनिपाठिका- सीमा गुप्ता

11-10-1971 को अम्बाला में जन्मी कवयित्री सीमा गुप्ता ने अपनी पहली कविता 'लहरों की भाषा' तब ही लिख ली थी जब वो चौथी कक्षा की छात्रा थीं। यहीं से इन्हें लिखने की प्रेरणा मिली। वाणिज्य में परास्नातक कवयित्री सीमा गुप्ता नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीज, गुड़गाँव में महाप्रबंधक की हैसियत से काम कर रही हैं। इनकी रचनाएँ 'हरियाणा जगत', 'रेपको न्यूज़' आदि जैसे कई समाचार पत्रों में कई बार प्रकाशित हो चुकी हैं। मुख्यरूप से ये दुःख, दर्द और वियोग आदि पर कविताएँ लिखती हैं, जिसका ये कोई कारण नहीं बता पाती हैं, बस्स खुद को सहज महसूस करती हैं।

साहित्य से अलग इनकी दो पुस्तकें 'गाइड लाइन्स इंटरनल ऑडटिंग फॉर क्वालिटी सिस्टम' और 'गाइड लाइन्स फॉर क्वालिटी सिस्टम एण्ड मैनेज़मेंट रीप्रीजेंटेटीव' प्रकाशित हो चुकी हैं।

संपर्क-
सीमा गुप्ता
महा प्रबंधक,
नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीज
प्लॉट नं॰ १९४, फेज़-१
उद्योग विहार, गुड़गाँव- १२२००१



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

यूनिपाठिका सीमा गुप्ता तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।



शैलेश चंद्र जमलोकि की टिप्पणियाँ दिन-प्रतिदिन व्यस्क होती जा रही हैं, वो एक पाठक से अच्छे समीक्षक बनते जा रहे है, मगर टिप्पणियाँ करने में नियमित नहीं है, जबकि सबसे अधिक की संख्या में हिन्द-युग्म पर टिप्पणियाँ वही करते हैं। इसलिए एक बार फिर से हम इन्हें दूसरे स्थान का पाठक चुनते हैं और यह उद्‌घोषणा करते हैं कि विश्व पुस्तके मेला २००८ से इन्हें कुछ पुस्तकें प्रेषित करेंगे।

तीसरे स्थान पर हमने पाठिका महक को चुना है, यद्यपि इन्होंने सभी टिप्पणियों को रोमन में ही लिखा है, फिर भी ये पढ़ने में बहुत सक्रिय हैं। हम इनसे आग्रह करेंगे कि कृपया ये भी हिन्दी में टंकण करना आरम्भ कर दें। एक-दो दिनों में इतनी अभ्यस्त हो जायेंगी कि हिन्दी में कमेंट लिखने में आनंद मिलने लगेगा। इन्हें हमप्रो॰सी॰बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' की पुस्तक 'वतन को नमन' भेंट करते हैं।

चौथे स्थान के पाठक के रूप में हमने चुना है दिव्य प्रकाश दूबे को, जो हिन्द-युग्म पढ़ते ज़रूर कम हैं, लेकिन जहाँ भी टिप्पणी करते हैं सशक्त हस्ताक्षर छोड़ जाते हैं। इन्होंने 'क्या यही प्यार है' वाले विमर्श को बहुत सुंदर गति दी है। इन्हें पाना भी हिन्द-युग्म का सौभाग्य है। इन्हें भी हम प्रो॰सी॰बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' की पुस्तक 'वतन को नमन' भेंट करते हैं।

इसके अतिरिक्त दिव्या माथूर, मधु, ममता गुप्ता, गीता पंडित आदि पाठिकाओं ने भी हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा और हम आशा करते हैं कि ये भी इतना पढ़ेंगी कि यूनिपाठिका का निर्णय मुश्किल हो जायेगा।

दिवाकर मिश्र भी हमेशा की तरह फार्म में थे। काव्य-पल्लवन के ताज़े अंक पर इनकी प्रतिक्रियाएँ तो देखते ही बनती हैं।

हम अवनीश एस॰ तिवारी का विशेष धन्यवाद देना चाहेंगे जिनके प्रयासों से हिन्द-युग्म को नये पाठक ही नहीं वरन स्थान-स्थान पर सम्मान भी मिल रहा है।

टॉप १० कवियों के अन्य ९ कवियों के नाम जिन्हें कथाकार सूरज प्रकाश द्वारा सम्पादित पुस्तक 'कथा दशक' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी और जिनकी कविताएँ एक-एक करके प्रकाशित होंगी, निम्नलिखित हैं-

पंकज रामेन्दू 'मानव'
डॉ॰ मीनू
कवि दीपेन्द्र
विनय के जोशी
हरिहर झा
विपिन चौधरी
दिव्य प्रकाश दूबे
प्रेम सहजवाला
बर्बाद देहलवी

उन अन्य दस कवियों के नाम जो टॉप २० की शोभा बढ़ा रहे हैं और जिनकी कविताएँ १-१ करके २९ फरवरी से पहले प्रकाशित होंगी-

सुनील प्रताप सिंह
सुदर्शन गुप्ता 'मौसम'
ममता गुप्ता
पावस नीर
संजीव कुमार गोयल
आलोक सिंह 'साहिल'
प्रगति सक्सेना
नीतू तिवारी
अमिता मिश्र 'नीर'
पुष्यमित्र

उपर्युक्त सभी कवियों से निवेदन है कि २९ फरवरी २००७ तक न अपनी कविता कहीं प्रकाशित करें और न हीं कहीं प्रकाशनार्थ भेजें।

इस बार कवियों की सूची लम्बी है। निम्नलिखित कवियों का भी हम धन्यवाद करते हैं जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया और निवेदन करते हैं कि आगे भी इसी प्रकार हिन्द-युग्म के सभी आयोजनों में शिरकत करते रहें।

राजन पाठक
दिव्या माथूर
सुमन कुमार सिंह
महेश चंद्र गुप्ता 'खलिश'
अश्वनी कुमार गुप्ता
शिवानी सिंह
निर्भीक प्रकाश
सतीश वाघमरे
अवनीश एस॰ तिवारी
अजय शुक्ला
सीमा गुप्ता
शम्भू नाथ
जगदीप सिंह
महक
पूरण भारद्वाज
साकेत सम्राट
राजीव सारस्वत
अमित खरे
नदीम अहमद 'कवीश'
नरेश राणा
जावेद अली 'खुश्बू'
रविन्दर टमकोरिया 'व्याकुल'
अंजु गर्ग
रूपेश श्रीवास्तव
पंकज झा
शैलेश चंद्र जमलोकि
शाहिद 'अजनबी'
अमरदीप
विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'
संजय साह

सभी विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई।

डॉक्टर कवयित्री इंजीनियर पाठक (नवम्बर अंक के परिणाम)


अक्टूबर और नवम्बर के महीने में इतने पर्व-त्यौहार आते हैं कि कोई भी अपने घर जाने, अपनों से मिलने के अलावा किसी भी और चीज़ के बारे में सोच नहीं पाता। ऐसे में हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में प्रतिभागियों की संख्या घटना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन अक्टूबर माह की प्रतियोगिता में ३४ कवियों के भाग लेने के बावजूद, नवम्बर माह के प्रतिभागियों की संख्या ४१ तक पहुँच गई।

आज हम इसी अंक का परिणाम लेकर प्रस्तुत हैं। हमेशा की तरह चार चरणों में जजमेंट का काम पूरा हुआ। पहले चरण के दो निर्णायकों द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर २७ कविताओं को दूसरे दौर में जाने का अवसर मिला, जहाँ उनकी भिड़ंत तीन नये निर्णायकों से थी और साथ में पुराने अंक भी लेकर चलना था।

तीसरे चरण के जज के पास १५ जा पाईं, जहाँ टॉप १० कविताओं का निर्णय हो सका। अंतोगत्वा कवयित्री डॉ॰ अंजलि सोलंकी की 'क्षणिकाएँ' प्रथम रहीं। यह दूसरा अवसर है कि कोई कवयित्री यूनिकवयित्री बन रही है। इससे पहले अगस्त माह में अनुराधा श्रीवास्तव यूनिकवयित्री रह चुकी हैं।

यूनिकवयित्री- डॉ॰ अंजलि सोलंकी

इनका जन्म 19-09-1980 को उत्तर प्रदेश के जिवाना ग्राम में हुआ। शिक्षा संगरिया (राजस्थान) से शुरू हुई। अभी तक जारी है। फिलहाल चण्डीगढ़ में MD PATHOLOGY का फाइनल इयर है। लिखनो का शौक या लत बचपन से ही पड़ गई थी, जो भी मन मे आया लिख डाला। सभी रचनायें इन्हीं तक ही सीमित रहीं। बचपन मे काफी पढ़ा है मगर अभी साहित्य पर पकड़ कुछ कमज़ोर है। फिर भी अपनी सरल भाषा में भावनाओं को पिरोने कि कोशिश जारी है। कुछ वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद अब लिखना शुरू किया है।

पुरस्कृत कविता- क्षणिकाएँ

1
तेरा वादा,
एक अनकहा प्रश्न
एक अनसुना उत्तर,
एक अनाचाहा विवाद,
एक अभागा सा रिश्ता....

2.
आज रात जी भर के रो लूँ
सुना है
कल दर्द की नीलामी में,
अन्धेरा भी बिकेगा.....

3 .
युग बीते फैसले सुनते-सहते
चल
दुनिया का आखिरी निर्णय
हम सुना डाले.....

4
मेरी जिद के चर्चे जमाने में है
हुआ कुछ नहीं,
मैंने सच को सच कहा था...

5
मेले में भीड़,
उमड़ती है,
बिखरती है,
लौट जाती है, भग्न अवशेष छोड़कर
तेरे वादों की तरह...

6
इस शहर की दोस्ती
तेरे वादों जैसी है
बिन बात जन्म लेती है,
कभी मरती नहीं,
मगर
कम्बख्त निभती भी नहीं....

7
तुमने ही कहा था,
हर आंसू दफना देना
मैं कब्रिस्तान में रहने लगी हूँ
थोड़ी जगह और चाहिये.....




प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰२, ६॰५
औसत अंक- ६॰३५
स्थान- तेरहवाँ




द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ७॰६, ७, ६॰३५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२३७५
स्थान- दूसरा




तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-यदि शब्द चयन में अधिक सतर्कता बरती जाती तो क्षणिकाएं और बेहतर हो सकती थीं
अंक- मौलिकता: ४/३ कथ्य: ३/२॰५ शिल्प: ३/२
कुल- १०/७॰५
स्थान- तीसरा




अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
सभी क्षणिकायें कथ्यपूर्ण हैं और इस विधा के पैनेपन की शर्त का निर्वाह करती हैं। बिम्बों में भी गहरायी है।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ७॰५/१०
कुल योग: १४॰५/२०




पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने दिसम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम।

यूनिकवयित्री डॉ॰ अंजलि सोलंकी तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।




चित्र- चूँकि क्षणिकाओं के किसी समूह में अलग-अलग तरह के भाव होते हैं, अतः इस पर पेंटिंग बनवाना एक जबरदस्ती होती, इसलिए बिना चित्र के ही हम क्षणिकाएँ प्रकाशित कर रहे हैं।



यूनिकवयित्री डॉ॰ अंजलि सोलंकी जी की क्षणिकाओं का गुजराती अनुवाद विजयकुमार दवे ने अभी-अभी किया है। और अपने गुजराती ब्लॉग पर यहाँ प्रकाशित किया है। डॉ॰ अंजलि सोलंकी की कविताएँ गुजराती पाठकों तक पहुँची, इसके लिए हम विजयकुमार दवे जी के आभारी हैं।


हमें यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि पिछले माह हमें बहुत से ऊर्जावान पाठक मिले। ८० से अधिक प्रविष्टियों के प्रकाशित होने के बावज़ूद पाठकों ने अधिकाधिक पोस्टों को पढ़ा और टिप्पणियाँ की।

इस बार के यूनिपाठक अवनीश एस तिवारी ने तो हिन्द-युग्म के सभी मंचों को पढ़ा, यहाँ तक कि काव्य-पल्लवन की २५ कविताओं पर अलग-अलग टिप्पणी की। हम सहृदय धन्यवाद के साथ यूनिपाठक का सम्मान इन्हें दे रहे हैं।

यूनिपाठक- अवनीश एस॰ तिवारी

जन्म- २७-०५-१९८१
शिक्षा- बी. ई. अभियंता (कंप्यूटर)
संप्रति- कंप्यूटर प्रोग्रामर के रूप में मुम्बई में कार्यरत
रुचि- हिन्दी साहित्य विशेष कर हिन्दी गद्य
भारतीय संस्कृति को जानना
अमिताभ बच्चन की फिल्में देखना और किशोर कुमार के गाने सुनना

प्रिय कवि- मैथलिशरण गुप्त जी, निराला, बच्चन और आज के - हरि ओम पवार जी, देवल आशीष और बहुत सारे।

प्रिय मंच संचालक- अशोक चक्रधर जी, कुमार विश्वास जी |
ईश्वर, माता - पिता के आशीर्वाद और आप सभी के स्नेह से जीवन के हर क्षेत्र मे सफलता पाना ही लक्ष्य है |
मुम्बई का पूरा पता -
A1, 702 Neelyog Apartment Gaurishankar wadi-2, Pant nagar , Ghatkopar(E), Mumbai-40075
मोबाइल- 9819851492
ईमेल- anish12345@gmail.com



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिपाठक अवनीश एस॰ तिवारी तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।



दूसरे स्थान पर हमारे पुराने पाठक रणधीर 'राज' हैं। इन्होंने १-१५ नवम्बर तक तो हमें खूब पढ़ा लेकिन बाद में ये अपनी परिक्षाओं में व्यस्त हो गये, नहीं तो अवनीश जी को कड़ी टक्कर मिलती।

चूँकि पिछली बार इन्हें हम 'कोई दीवाना कहता है' और 'निकुंज' दोनों भेंट कर चुके हैं, अतः इन्हें हिन्द-युग्म की ओर से कथाकार सूरज प्रकाश द्वारा सम्पादित कहानी-संग्रह 'कथा दशक' भेंट कर रहे हैं।

तीसरे स्थान पर हमें कम लेकिन गम्भीरता से पढने वाले रविन्दर टमकोरिया 'व्याकुल' हैं। दो और पाठकों को हम एक ही स्थान यानी चौथे स्थान पर रखकर पुरस्कृत करना चाहेंगे। शैलेश जमलोकी जिन्होंने बहुत शिद्दत से हमें पढ़ना शुरू किया है, तथा आलोक कुमार सिंह 'साहिल' जिन्होंने पहले तो रोमन में ही टिप्पणियाँ की लेकिन अब हिन्दी (यूनिकोड) भी सीख लिये हैं। उम्मीद करते हैं कि ये सभी पाठक इस माह से अपनी धुआँधार टिप्पणियों द्वारा हमारा प्रोत्साहन करेंगे।

उपर्युक्त तीनों पाठकों को कवि कुलवंत सिंह की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी।

इसके अतिरिक्त हम मीनाक्षी, परमजीत बाली, आशा जोगलेकर, सन्नी चंचलानी, कुमुद अधिकारी, डॉ॰ रामजी गिरि, राम चरण वर्मा 'राजेश', मनीष कुमार, अनिता कुमार और सागर चन्द नाहर आदि का विशेष आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने हमें बहुत कम पढ़ा लेकिन गंभीरता से पढा। हम यह अनुरोध करेंगे कि आप हमारे नियमित पाठक बनकर हमारा प्रोत्साहन करें।

टॉप १० के अन्य नौ कवियों के नाम जिनको प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नक़ाबों के शहर में' भेंट की जायेगी तथा एक-एक इनकी कविताएँ प्रकाशित होंगी, निम्नलिखित हैं-

सीमा गुप्ता
ऋतुराज
दिव्या श्रीवास्तव
पंखुड़ी कुमारी
आनंद गुप्ता
पंकज रामेन्दू मानव
मंजिल
शिवानी सिंह
डॉ॰ सी॰ जयशंकर बाबू

टॉप २० के अन्य १० कवियों के नाम जिनकी कविताएँ दिसम्बर माह में एक-एक करके प्रकाशित होंगी, वो हैं-

दिव्य प्रकाश दूबे
हरिहर झा
अमिता मिश्र 'नीर'
मनुज मेहता
रविकांत पाण्डेय
देव मेहरा
कवि दीपेन्द्र (दीपेन्द्र शर्मा)
रविन्दर टमकोरिया 'व्याकुल'
आलोक कुमार सिंह 'साहिल'
दिनेश गेहलोत

उपर्युक्त कवियों से निवेदन है कि कृपया वो अपनी कविताएँ ३१ दिसम्बर तक अन्यत्र न प्रकाशित करें/करायें।

शेष २१ कवियों के नाम जिनकी कविताएँ भी सराहनीय थीं और जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। हम यह निवेदन भी करेंगे कि इस प्रतियोगिता के परिणामों को सकारात्मक लेते हुए पुनः और पुनः इसमें भाग लें क्योंकि बहुत से कवियों ने इस आयोजन को काव्य-कार्यशाला मानकर कई बार भाग लिया है और अब वो यूनिकवि हैं।

अवनीश एस॰ तिवारी
आशीष मौर्य
सुमन कुमार सिंह
तपन शर्मा
निर्जीव (दिवेश मेहता)
सन्नी चंचलानी
विजयकुमार दवे
दिनेश चन्द्र जैन
गौरव पोटनीस
विनय चन्द्र पाण्डेय
पीयूष मिश्रा
विनय माघु
अमलेन्दू त्रिपाठी
साधना दुग्गड़
अंजू गर्ग
राम चरण वर्मा
आशीष दूबे
राहुल उपाध्याय
अनुभव गुप्ता
अमित सिंह
कीर्ति वैद्य

अंत में सभी का धन्यवाद।

इस माह की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्‌घोषणा हो चुकी है। कृपया आप सभी भाग लें। पूरा विवरण यहाँ है।

दशम् यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम


ओ आस्था के अरुण!
हाँक ला
उस ज्वलन्त के घोड़े
खूँद डालने दे
तीखी आलोक-कशा के तले तिलमिलाते पैरों को
नभ का कच्छा आँगन!

बढ़ आ, जयी !
सँभाल चक्रमण्डल यह अपना

('कितनी नावों में कितनी बार' से)


प्रत्येक माह हिन्द-युग्म भी हिन्दी काव्य के नवअरुणों का आव्हान करता है। अक्टूबर माह में हमने दसवीं बार 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' के माध्यम से कविता के नव हस्ताक्षरों से उनका चक्रमण्डल सँभालने की गुहार की थी।

३४ कवियों ने हमारी पुकार सुनी। हर बार की तरह इन कवियों के ज्वलन्त घोड़ों ने ४ चरणों के ७ जजों के साथ दौड़ लगाई। २२ कविताएँ दूसरे दौर में पहुँचीं, १५ तीसरे में, तो १० अंतिम में।

अंत में बचे रह गये, अपनी पताका 'कवि की बेटी' के साथ अक्टूबर माह के यूनिकवि अभिषेक पाटनी

यूनिकवि- अभिषेक पाटनी

जन्मतिथि- १८ सितम्बर १९७७

शिक्षा- 'पत्रकारिता व जन्सम्प्रेषण' में स्नात्कोत्तर (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी)
हिन्दी-साहित्य में सनात्कोत्तर (पटना विश्वविद्यालय, पटना)

उपलब्धियाँ- राँची स्थित स्पेनिन संस्था द्बारा 'स्पेनिन सृजन सम्मान २००७' से सम्मानित
तमाम हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ व निबंध प्रकाशित

रुचियाँ- रचनात्मक लेखन और गीत-संगीत सुनना।

उद्देश्य- पत्रकारिता के माध्यम से समाज के विस्थापित नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना

स्थायी पता- क्वार्टर न0 - १२, रोड न0 -३, श्री कृष्ण नगर, पटना (बिहार)-८००००१

पत्राचार पता- बी- १३, प्रथम तल, सेक्टर - १५, अलका सिनेमा के पीछे, नोएडा (उत्तर प्रदेश)-२०१३०१

ईमेल- patni12@gmail.com, मोबाइल-९९७१५८१७१४

पुरस्कृत कविता- कवि की बेटी

कवि की बेटी
उसके लिये तो
जन्म से ही
श्रंगारिक स्रोत थी
कभी अल्हड़
कभी नवयौवना
कभी प्रौढ़ा
और
कभी मर्दिनी का
रूप लिये
उसकी तमाम
कविताओं की
अद्वितीय नायिका!

किंतु
उस रूप में
कभी नहीं
ढली
जिस रूप में
कल
बाज़ार में
कुछ लोगों ने
उसे देखा
घूरा
छुआ
और
अंतत: भोगा (?)

जी हाँ! सरेआम
कवि की बेटी
सामूहिक बलात्कार
की शिकार हुई.

कवि ने
अपनी कल्पना में
उसे हर रूप में
ढाला था
रंगा था
पर.....
इस रंग की उसने
कल्पना तक नहीं की थी
(दूसरों के लिये भी नहीं)

उसकी बेटी
उसकी लेखनी से
कई युगों में
ढलती रही
किंतु
इतनी बड़ी नहीं हुई
जितना कल
कुछ लोगों ने
उसे बलात
बना डाला था!

अब वह
शब्दों के ढेर से
कैसे उसकी
तार-तार हुई
ज़िन्दगी को ढाँपेगा?
और
उन कविताओं का
क्या होगा
जिनकी नायिका के
हर रूप में
वह ढली है?

क्या वे कवितायें
फिर पढ़ी जायेंगी?
क्या उन कविताओं को
पढ़ा जा सकता है????




प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ७॰५,७
औसत अंक- ७॰१७
स्थान- छठवाँ




द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰१, ७॰५,
औसत अंक- ६॰३०
स्थान- सातवाँ




तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-किसी घटना को कविता में ढालना बड़े जोखिम का काम है।जोखिम इसलिए कि सीधे-सीधे विचार या मत प्रकट करना तो बहुत आसान है। बहुत आत्मसात करना होगा। कथ्य का चुनाव नई तरह से किया है। कल्पना का रंग भरने का प्रयास अच्छा है।
अंक- ६॰१
स्थान- छठवाँ




अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
यह कविता जिन शब्दों में बुनी जानी चाहिये थी, कवि के तेवरों ने वैसा ही प्रस्तुतिकरण किया है। कवि की प्रेरणा, कवि की बेटी की परिणति और फिर यह प्रश्न कि “क्या उन कविताओं को पढ़ा जा सकता है????” उस नासूर की ओर इशारा करता है जो कि हमारे समाज की काया पर है।
कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १६॰५/२०




पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने नवम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम और पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिकवि अभिषेक पाटनी तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।




चित्र- जैसाकि हमने उद्‌घोषणा की थी कि इस बार हम टॉप १० की सभी कविताओं पर हमारे चित्रकारों द्वारा चित्र भी प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे, तो यूनिकविता पर चित्र बना भेजा है श्रीमती स्मिता तिवारी ने।

पाठकों में भी इस बार पहले से ज्यादा घमासान रहा।

शिवानी सिंह और रणधीर "राज" जिस तरह की विश्लेषात्मक प्रतिक्रियाएँ देने में लगे थे, उससे लग रहा था कि इस बार यूनिपाठक चुनना बहुत मुश्किल होगा, परन्तु पता नहीं क्यों माह के तीसरे पड़ाव पर इनकी प्रतिक्रियाएँ नहीं आईं। हम अनुरोध करेंगे कि आपदोनों पुनः सक्रिय हो जाय।

यूनिपाठिका का ख़िताब इस बार श्रीमती गीता पंडित के नाम जाता है, जिन्होंने हमारी हर एक गतिविधि पर नज़र रखी और हमारा उत्साहवर्धन किया।

यूनिपाठिका- गीता पंडित

परिचय- गीता पंडित का परिचय पढ़िए उन्हीं की जुबानी।

परिचय क्या, एक अनवरत खोज है मेरी, स्वयं को जानने की। जान पाऊँ, तो संभवतः 'उस' को जान पाऊँ जो अभीष्ट है। लेखनी ही माध्यम है इस खोज की। साहित्य साधना है, कर रही हूँ। फलेच्छा क्योंकि गीता-धर्म नहीं है, इसलिये गीता पंडित साधना-रत है, केवल। रसिक हूँ, अतः समय और अवसर मिलते ही संगीत-कार्यक्रमों में सम्मिलित
होने की उत्कंठा बनी रहती है। यदा-कदा नाटकों मे मंच-स्पर्श भी किया। घर की दीवारों पर लगे तैल-चित्रों में अपने ही विचारों को चित्रित कर पाने में अंशतः सफलता मिली। यूँ सफलता तो सागर-शोधन की तरह है।
एम.ए.इंग.(लिट.) और फिर एम.फिल.(लिंग्विस्टिक्स) किया, किंतु रूप गृहिणी का ही है। श्रद्धेय जनक, प्रसिद्ध कवि श्री "मदन शलभ" का वरद-हस्त इस विधा में रत रहने की प्रेरणा रहा है। किसी गीत के पहले दो बोल पिता ने घुट्टी में दे दिये होंगे..... उसी गीत को पूर्ण करने के प्रयास मे लगी हूँ। वो जहाँ हैं, वहीं से मेरे स्व-धर्म और स्व-कर्म पर दृष्टि रखें।
शेष शारदे के हाथ।

संपर्क- १९९ ग्राउंड फ़्लोर, गंगा-लेन, सेक्टर-५, वैशाली (गाजियाबाद)-उत्तर प्रदेश
ईमेल- gieetika1@gmail.com



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति। (यह पुरस्कार हमने पिछली बार इन्हें भेजा है, अतः यह पुस्तक हम इस बार तृतीय स्थान के पाठक को भेंट कर रहे हैं)।

यूनिपाठिक गीता पंडित तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।


दूसरे स्थान के पाठक के लिए हमने चुना है समीक्षात्मक टिप्पणियाँ लिखने वालीं पाठिका शिवानी सिंह को। इन्हें पुरस्कार स्वरूप कवि कुलवंत सिंह की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति तथा डॉ॰ कुमार विश्वास की काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जाती है।

तीसरे स्थान के पाठक के रूप में एक और नया चेहरा हमारे सामने आता है, रणधीर "राज" का। इनके उत्साह का क्या कहें ! इनकी एक एक टिप्पणी कविता का सार-तत्व है। कविताओं को बिलकुल निचोड़ लेते हैं ये। इन्हें भी पुरस्कार स्वरूप कवि कुलवंत सिंह की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति तथा डॉ॰ कुमार विश्वास की काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जाती है।

अवनीश तिवारी जो कि अनिश के नाम से प्रतिक्रियाएँ करते हैं, हिन्द-युग्म को मिला नया उपहार हैं। हमारी हर गतिविधि पर दृष्टि ही नहीं रखते, बल्कि उनमें भाग भी लेते हैं। इन्होंने बहुत सी टिप्पणियों का उपहार हमें दिया है, हम भी इन्हें चतुर्थ स्थान के पाठक का सम्मान अर्पित करते हैं। कवि कुलवंत सिंह इन्हें अपनी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट करेंगे।

इनलोगों के अतिरिक्त विकास मलिक, रविन्दर टमकोरिया, दिवाकर मणि, आशा जोगलेकर इत्यादि ने हमें पढ़ा, सराहा, सलाह दी। हिन्द-युग्म आप सभी से गुज़ारिश करता है कि हमारे इस सकारात्मक प्रयास में बराबर साथ देते रहें।

साथ ही साथ हम अपने पुराने यूनिपाठकों जैसे सुनील डोगरा 'ज़ालिम', आर्य मनु और कुमार आशीष से अनुरोध करेंगे कि हिन्द-युग्म के निरंतर परिमार्जित करने में हमारा साथ देते रहें।

अभी तक हम परिणाम के साथ शीर्ष ४ कविताएँ प्रकाशित करते थे। लेकिन बहुत से पाठकों की शिकायत थी कि इतनी सारी बातें, कविताएँ और पेंटिंगें एक साथ देखने-सुनने से उनका असली मज़ा चला जाता है। इसलिए हमने निर्णय लिया कि इस बार से हम एक-एक करके कविताएँ, कवियों का परिचय व उनपर बनीं पेंटिंगें प्रकाशित करेंगे।

टॉप १० के अन्य ९ कवियों के नाम जिनमें से शुरू के ६ कवियों को हम डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक "मैं चल तो दूँ" की स्वहस्ताक्षरित प्रति वो क्रमशः ८वें, ९वें और दसवें स्थान के कवियों को सृजनगाथा की ओर से 'विहंग' भेजेंगे, निम्नलिखित हैं-

मंज़िल
तपन शर्मा
अंजलि सोलंकी कठपालिया
कुमार आशीष
कवि कुलवंत सिंह
सुनील प्रताप सिंह (तेरा दीवाना)
सन्नी चंचलानी
रवीन्दर टमकोरिया
सुनीता यादव

टॉप २० के अन्य १० कवियों के नाम जिनकी कविताएँ १-१ करके नवम्बर माह में हिन्द-युग्म पर प्रकाशित होंगी।

हरि एस॰ बाजपेई
श्यामल किशोर झा
पंकज रामेन्दू मानव
अरुण मिश्रा
अनुराधा शर्मा
सुनील डोगरा 'ज़ालिम'
सौम्या अपराजिता
प्रगति सक्सेना
रजनीश सचान
हरिहर झा

उपर्युक्त सभी प्रतिभागी कवियों से निवेदन है कि जिस कविता के साथ आप प्रतियोगिता में भाग लिए थे, कृपया उसे ३० नवम्बर तक अन्यत्र प्रकाशित न करें/करवायें।

निम्न कवियों ने भी प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारा हौसला बढ़ाया है। हम इनसे यहीं उम्मीद करते हैं कि वो परिणाम को सकारात्मक लेंगे और बढ़-चढ़कर इस बार भी यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लेंगे।

दिव्या श्रीवास्तव
अमलेन्दु त्रिपाठी
प्रतिष्ठा शर्मा
सुमन कुमार सिंह
दिनेश गहलोत
पारुल्क (पारुल कुमारी)
अभिषेक कुमार
विजय मधू
आशुतोष कुमार मिश्रा (मासूम)
शिवानी सिंह
संदीप सिंह
मनुज मेहता
साधना दुग्गड़
अवनीश एस॰ तिवारी

सभी प्रतिभागियों का बहुत-बहुत धन्यवाद। हिन्दी को जिस ऊर्जा की आवश्यकता है, वो हमें आप सभी से मिल रही है। सहयोग देना ज़ारी रखिए।

नवम्बर माह की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' से संबंधित पूरी जानकारी यहाँ है।

आठवीं प्रतियोगिता के परिणाम


अथर्ववेद का कथन है-

रुहो रुरोह रोहितः (अथर्ववेद १३।३।२६)

अर्थात् उन्नति उसकी होती है, जो प्रयत्नशील है। और यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि हिन्द-युग्म टीम प्रयत्नशील है एवम् इसकी उन्नति सुनिश्चित है। उन्नति के प्रारम्भिक लक्षण दिखने भी लगे हैं। पिछले ८ महीनों से हम 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' का आयोजन कर रहे हैं। पहली बार हमारी प्रतियोगिता में ६ यूनिकर्मियों ने भाग लिया था। आज हम जिस अगस्त अंक का परिणाम लेकर प्रस्तुत हैं, उसमें कुल ३६ कवियों ने भाग लिया।

जनवरी माह में दैनिक पाठकों की संख्या ५० के आसपास थी, अगस्त माह में वो भी ८०० से ऊपर चली गई। ये सब पाठकों के प्रोत्साहन और हमारी टीम की मेहनत के प्रतिफल हैं।

यह स्वभाविक भी है, जब प्रतिभागी बढ़ेंगे, जजों को भी अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। अब तक प्रथम चरण के जजों को सभी कविताएँ सौंपी जाती थी, लेकिन इस बार चूँकि कविताएँ अधिक की संख्या में थीं, इसलिए बेहतर निर्णय के लिए प्रथम चरण के निर्णय को दो उपचरणों में विभाजित किया गया। एक उपचरण में दो जज रखे गये जिन्हें १८-१८ कविताएँ सौंपी गईं। सभी के अंकों का सामान्यीकरण करके श्रेष्ठ २२ कविताएँ चुनी गईं, जिन्हें द्वितीय चरण के जज को भेजा गया।

यहाँ हम यह बताते चलें कि क्रमिक दो-तीन कविताओं के प्राप्ताकों में इतना कम अंतर होता है (अमूमन दशमलव के दूसरे या तीसरे स्थान का अंतर) कि हमें हमेशा श्रेष्ठ १०, १२ या १५ चुनने में बहुत तकलीफ़ होती है। लेकिन तुरंत इस बात की खुशी होती है कि अधिकांश प्रतिभागी इसे भी सकारात्मक लेते हैं और बारम्बार प्रयास करते हैं।

प्रायः हम दूसरे चरण के निर्णय के बाद १० कविताओं को चुनते हैं, लेकिन १० से १३ वें स्थान तक की कविताओं के प्राप्तांक में इतना कम अंतर था कि टॉप ‍१३ कविताएँ लेनी पड़ीं। यही हाल तीसरे चरण का हुआ। हम अंतिम जज को ६ कविताएँ भेजना चाहते थे, लेकिन कविताओं में इतनी सशक्त प्रतिस्पर्धा थी कि आठ भेजनी पड़ी।

अंतिम चरण का निर्णय बहुत ही कठिन रहा। आज हम शुरूआत की जिन ४ कविताएँ प्रकाशित करने जा रहे हैं, उनको कोई क्रम नहीं दिया जा सकता। लेकिन चूँकि यूनिकविता चुननी थी। आखिरकार अंतिम निर्णयकर्ता ने 'कन्या भ्रूण हत्या' को यूनिकविता चुना। बहुत खुशी की बात है कि हमसे नित नये कवि जुड़ रहे हैं। इस बार के यूनिकवि राहुल पाठक का चेहरा हम सबके लिए नया है। मिलते/मिलवाते हैं इनसे-

यूनिकवि- राहुल पाठक

परिचय-
इनका जन्म छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में अगस्त 1982 को हुआ जहाँ पर इनकी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा हुई। कवि के माता- पिता दोनों ही अध्यापक हैं। इनकी मौसी जी राज्यपाल द्वारा सर्वश्रेष्ठ अध्यापक के पुरस्कार से जब सम्मानित हुईं तब इन पर बहुत प्रभाव पड़ा। चूँकि कवि की मौसी जी ही इनके विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका थी अतः हिंदी विषय में इनकी रुचि प्रारंभ से ही रही। हिंदी के अनेक महान कवियों की रचनाएँ इन्हें बचपन में ही कंठस्थ हो गयी थीं। राष्ट्र कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी का इनपर बहुत प्रभाव रहा है। विद्यालयकालीन शिक्षा के बाद इन्होंने इंदौर की आई. पी. एस. एकेडेमी में M.C.A. { MASTAR OF COMPUTER APPLICATION} में प्रवेश लिया और अभी अंतिम वर्ष के छात्र हैं। अध्ययन समाप्त होने के पूर्व ही कैप जैमिनी नामक कंपनी में इनका चयन हो चुका है। अध्ययन में व्यस्तता के चलते साहित्य-संसार से संपर्क बिल्कुल टूट गया था। जब यह हिन्द-युग्म के यूनिकवि विपुल शुक्ला के संपर्क में आए तब साहित्य में रुचि उत्पन्न हुई और नयी प्रेरणा से लेखन कार्य शुरू हो गया।

पुरस्कृत कविता- कन्या भ्रूण हत्या

ठीक कुछ छः माह की
नव मैं इस धरा पर
आने को तत्पर
पर हाय दुर्भाग्य!
मै अबला, बला
परिवार के सदस्यों को
मेरे रिश्तेदारों को
ख़ुद पिता को
दादा-दादी को
नापसंद
मेरा तयशुदा अंत
कुविचार-विमर्श और डील
जल्लाद तैयार क्रुवर डील

रोती माँ क्षमादन माँगती मेरा
बेबस लाचार
दीन मुक़र्रर
अर्थी तैयार
मैं और माँ उस पार
चाकुओं-औज़ारो का मेला
हमारा कुछ पल का साथ अकेला
आती चिमटी पेरों पार मेरे
सहमती, जीवनदान
माँगती अकेली मैं
चीत्कार इस बार
भीषण दर्द पैर उस पार
बिलखती मैं
गर्भगृह का अंधकार
अंतरनाद
पुनः जकड़
पकड़-पकड़
अंग-अंग
भंग-भंग
मेरे आँसुओं से भीगता माँ का पेट
खींचता मेरा शरीर
टूटता नाभि का जुड़ाव
माँ और मेरा
अंतिम छुवन
उसकी घुटन

अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्रणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होने छः माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ७॰६६४७
औसत अंक- ८॰५८२३
स्थान- छठवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५८२३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰५४११
स्थान- ग्यारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता ठीक बन पड़ी है व तादात्म्य स्थापित करने में सफल भी। यदि टंकित करने के बाद एक बार देख लिया जाता तो कई परिवर्तन हो सकते। आगे और अभ्यास से बेहतर रचना की अपेक्षा की जा सकती है।
अंक- ५॰५
स्थान- तीसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता सम-सामयिक तो है ही। प्रवाह कविता के प्राण हो गये हैं। कविता का आरंभ नितांत साधारण है किंतु कवि ने शब्दों को ऐसा चुना है कि पाठक जुड़ता जाता है। और दूसरा अंतरा प्रवाह और भाव दोनों में डुबोने की क्षमता रखता है। संवेदना और शिल्प दोनों ने मिल कर कविता को उँचाई प्रदान की है विषेशकर कविता का अंतिम पैरा:

अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्राणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होंने छ: माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया

स्तब्ध करने वाली पंक्तियाँ है। समाज की नपुंसकता को उकेरती हैं। बिम्ब, भाव, प्रवाह और समसामयिकता.....बहुत बधाई कविवर।

कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८॰५/10
कुल योग: १६॰५/२०
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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने सितम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम और।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिकवि राहुल पाठक तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।
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पिछले दो महीनों से स्मिता तिवारी की व्यस्तता के कारण हम यूनिकविता के साथ उनकी पेंटिंग प्रकाशित नहीं कर पा रहे थे, मगर इस बार यह बताते हुए हम बहुत खुश हैं कि इस बार एक नहीं, वरन दो-दो पेंटर की पेंटिंगें इस कविता के साथ प्रकाशित कर रहे हैं।

पहली पेंटिंग है, इस बार के काव्य-पल्लवन की कुछ कविताओं पर कैनवास खींच चुके अजय कुमार की।

और दूसरी है हमारे-आपके लिए बिलकुल नये पेंटर सिद्धार्थ सारथी की पेंटिंग। यह पेंटिंग भी सभी पाठकों को समर्पित।

इस बार पाठकों में बहुत घमासान रहा। रचना सागर, विपिन चौहान 'मन', रविकांत पाण्डेय और शोभा महेन्द्रू हमारे ऐसे पाठक रहे हैं, जिनकी टिप्पणियों की संख्या के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जा सकता क्योंकि उस मामले में कोई किसी से कम नहीं है।

मगर शोभा महेन्द्रू ने जिस आवृत्ति और ऊर्जा से हमें पढ़ा है, वो शायद अतुलनीय है। ऊर्जा और उत्साह की जो आहुति इस यज्ञ प्रयास में ये सभी पाठक डाल रहे हैं, निश्चित रूप से उसकी तुलना पुरस्कारों से नहीं की जा सकती। बस हम नमन कर सकते हैं। इन चारों के मध्य वर्गीकरण का हमारा कोई भी आधार कमज़ोर होगा। इसलिए यूनिकवि की तरह यूनिपाठक चुन रहे हैं।

यूनिपाठिका- शोभा महेन्द्रू

परिचय-
इनका जन्म उत्तरांखण्ड की राजधानी देहरादून में १४ मार्च सन् १९५८ में हुआ। हिन्दी साहित्य में प्रारम्भ से ही रुचि रही। विद्यार्थी काल में ही शरद, प्रेमचन्द, गुरूदत्त, भगवती शरण, शिवानी आदि को पढ़ा। लेखन में भी बहुत रुचि प्रारम्भ से ही रही। हमेशा अपने जीवन के अनुभवों को डायरी में लिखा। कभी आक्रोश, कभी आह्लाद, कभी निराशा लेखन में अभिव्यक्त होती रही किन्तु जो भी लिखा स्वान्तः सुखाय ही लिखा। लेखन के अतिरिक्त भाषण, नाटक और संगीत में इनकी विशेष रुचि है। इन्होंने गढ़वाल विश्व विद्यालय से हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की है। वर्तमान में फरीदाबाद शहर के 'मार्डन स्कूल' में हिन्दी की विभागाध्यक्ष हैं। हिन्दी के प्रति सबका प्रेम बढ़े और हिन्दी भाषा बोलने और सीखने में सब गर्व का अनुभव करें, यही इनका प्रयास है।
चिट्ठा- अनुभव
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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिपाठिक शोभा महेन्द्रू तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।
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दूसरे स्थान पर हमने रखा है हमारे सक्रियतम पाठक रविकांत मिश्र को। तीसरे स्थान पर हैं विपिन चौहान 'मन' और चौथे स्थान पर काबिज़ हैं रचना सागर। तीनों को कवि कुलवंत सिंह की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति। विपिन चौहान 'मन' को एक बार और 'निकुंज' भेजी गई थी, लेकिन उनकी शिकायत है कि अभी तक यह पुस्तक उन्हें नहीं मिली। अब तो दुबारा भेजी जा रही है, पक्का मिलेगी। यद्यपि उद्‌घोषणा के अनुसार रविकांत पाण्डेय को डॉ॰ कुमार विश्वास की काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' मिलनी चाहिए, लेकिन वो भी हम रचना सागर को भेंट कर रहे हैं क्योंकि हम किताबों को अधिकतम हाथों में सौंपना चाहते हैं न कि अधिकतम किताबों को एक हाथ में। यह पुस्तक विपिन चौहान 'मन' को पिछले माह भेज दी गई थी। इसलिए रचना जी इसकी हकदार हैं।

इसके अतिरिक्त हमारे स्थाई पाठक, सहयोगी, मार्गदर्शक तपन शर्मा, गीता पंडित, पीयूष पण्डया, घुघुती बासूती, कमलेश, राकेश, संजीत त्रिपाठी आदि ने खूब पढ़ा। हम उम्मीद करते हैं कि हमें और नये पाठक मिलेंगे और वर्तमान पाठक भी अपनी श्रद्धा बनाये रखेंगे।

फ़िर से कविताओं का रूख़ करते हैं। कहने के लिए दूसरे स्थान की कविता (वैसे सभी प्रथम हैं) का शीर्षक भी 'कविता' ही है। इसके रचनाकार हैं रविकांत पाण्डेय। इनकी कविता 'मिट गया हूँ मैं' ने पिछली बार भी टॉप १० में ज़गह बनाई थी। इस बार भी इनका टॉप में बने रहना इनकी रचनात्मक शक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

कविता- कविता

कवयिता- रविकांत पाण्डेय, कानपुर


मेरी कविता.....
पढ़ना मत, चूक जाओगे
बन सके यदि
जीओ इसे, जान जाओगे.......
कि
कविता को जन्म देने के लिए
गुजरना पड़ता है कवि को
प्रसव-पीड़ा से....
कि
कविता ज्यों-ज्यों बड़ी होती है
देना पड़ता है-
वस्त्र-तन ढँकने को,
अन्न-भूख मिटाने को........
कि
कविता जब जवान होती है
शृंगार माँगती है......
कि
कविता झेलती है-
कभी गरीबी का दंश भी
जहाँ शौक दम तोड़ देते हैं
कभी पलती है राजसी ठाट में
जहाँ अभावों के बादल नही होते........
कि
कभी पड़ती है
छाया अकाल मृत्यु की
और कभी लाँघ जाती है कविता
इस देहरी को
और बन जाती है
समयातीत।
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰१९३७५, ८॰८२१४२
औसत अंक- ८॰५०७५८९
स्थान- आठवीं
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ८॰५०७५८९(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰७५३७९४
स्थान- सातवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-अलग विषय पर लिखी इस कविता में प्रौढ़ता की सम्भावनाएँ निहित हैं। रचनाशीलता की गुत्त्थियाँ खोलने का प्रयास करती रचना में गद्य व स्फीति अतिरिक्त आ गए हैं।
अंक- ५॰२
स्थान- चौथा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता क्या है? क्यों है? कैसी है...कवि का मंथन गहरा है। विचारों की परिपक्वता के साथ कवि के विषय किस तरह बदलते हैं, सुन्दरता से प्रस्तुत हुआ है।

कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १६/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें। कुमार विश्वास की ओर से 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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हमारे सदस्यों की चिंता थी कि हमें जम्मु शहर से बहुत कम पाठक मिलते हैं, लेकिन इस बार के तीसरे स्थान के कवि विनय मघु ने यह सिद्ध किया कि अब हम वहाँ भी पहुँच रहे हैं। और सिर्फ पहुँचे ही नहीं बल्कि स्तरीय कवि को जोड़ भी पा रहे हैं। मघु जी की कविता 'नन्ही छाती' इस परिणाम की तीसरी कविता है।

कविता- नन्ही छाती

कवयिता- विनय मघु, जम्मु


नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है।

वह
छाती जिस में
दिखता नहीं कोई उभार
और
जिसमें बहती नहीं
कभी दूघ की नदियाँ
जिसकी मांग बरसों
से कर रही हैं,
एक
चुटकी भर सिंदुर का
इंतजार
ताकि,
वह भी
औरों की तरह
माथे पर सजा सके बिंदिया
बनाने वाले ने जिसे
छोड़ दिया दुनिया
में
निवस्त्र
अपने नंगे
जिस्म को
लालची भेड़ियों
की नज़रों से
बचाने के लिए
ओढ़ लेती हैं
जो एक
चादर
जो
आग से तापती हैं

वो
ओरों को
क्या दु:ख देगी,
जो अपने
जख्मों पर मरहम
छुपते-छुपते मलती हैं

नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है

दोपहर
जो
रामायण सी पवित्र
है।
फूलों की पंखुड़ियों की तरह
कोमल
तथा
हिमालय की बर्फ सी
दिल से
साफ है
उस जैसी
और
कौन
अभागन होगी,
जो अपनी ही
आग
में आहिस्ता-आहिस्ता
पिघलती है,

नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है।

जो
बरसों
से
बैठी हैं राधा की तरह
पत्थरों के पनघट पर
और
नयनों से जिसके
आंसुओं की धारा बह रही हैं
जो चुप है होंठों से
मगर
दिल से
भाम-भाम
पुकार रही हैं
हा!
वह दोपहर
ही तो है
जो एक एक बूंद को तड़पती है,
जो हर पल आग में जलती है,
बादलों के दर-दर भटकती है,
और
अक्सर अभागन
लौट आती है
खाली हाथ
बिना कुछ पाये,
निराशा के सिवाये।
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰५, ८॰६३६३६३
औसत अंक- ८॰५६८१८१
स्थान- सातवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५६८१८१(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९४५
स्थान- बारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
प्रतीक का निर्वाह आद्यंत हुआ है। अर्थ की अन्विति,बिम्ब व प्रतीक व्यवस्था अच्छी बन पडी है। कविता का मुहावरा व लयात्मकता भी भली लगती है। कवि में सम्भावनाएँ हैं । वर्तनी ठीक करने पर भी ध्यान देना होगा।
अंक- ६
स्थान- प्रथम
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
इस कविता के भीतर की संवेदना झकझोर देती है। चित्रण और दोपहर के साथ कवि ने जो संकल्पना जोड़ी है कि पढ़ते हुए वह जलन पाठक के भीतर भी महसूस होने लगती है। सहजता कवि ने अपनायी है और कविता को कहीं भी कमजोर नहीं पड़ने दिया है। कविता में पंक्तियों को तोड़ते हुए कई स्थानों पर कवि असावधान हुआ है किंतु उसके शब्द संवेदना उकेरने में कहीं भी असफल नहीं हुए।

कला पक्ष: ७॰५/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५॰५/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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पिछली बार टॉप १० में न पहुँच पाये विजय दवे ने पुनः प्रयास किया और यह सिद्ध कर दिया कि उनकी आवाज़ को कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। उनकी 'तुम कब आओगी' शृंखला की तीन कविताएँ ४वें स्थान पर रही।

कविता- तीन कविताएँ ( तुम कब आओगी ?)

कवयिता- विजय दवे, भावनगर (गुजरात)


१) तुम कब आओगी ?

मेरी आंखों में उमड़ते हुए समंदर की हर एक बूँद में
तेरी तस्वीर बंद है .
तेरी हर एक तस्वीर को मैं झांका करता हूँ
चोरी-चोरी, चुपके-चुपके .
मेरे होठों पर कई दिनों से
तितली बैठने नहीं आयी .
मेरी आंखों में कई दिनों से
एक कटी-पतंग उड़ रही है .

मेरे कानों में निरव स्वर ने
झंकार देना छोड़ दिया है .
मेरी अंगुलियों ने स्पर्श संवेदना
गंवा दी है .

मैं एक बुत-सा बन गया हूँ
मुझे पारसमणि की तलाश है .
तुम कब आओगी ?

(२) तुम कब आओगी ?

रात के अंधेरों ने
मुझे बिस्तर पर तड़पते हुए देखा है .
कभी-कभार खुली आंखें
सपना देख रही होती है .
बगल में रहे पेड़ के पत्तों की खड़खड़ाहट
झांका करती है ,
मेरे बिस्तर पर , जो मेरे जिस्म से
भरा पड़ा होता है .

चुपके-चुपके याद दस्तक दे जाती है
मेरे उद्विग्न मन के पट पर
और
उस रात मैं ज़िंदा जलाया जाता हूँ
- उन यादों के हाथों , जो तेरे जाने के बाद आती हैं
मेरे कानों में तेरे अट्टहास की आवाज़
गुंजने लगती है .
उस दिन मेरा बिस्तर मुझे
मेरी आंखों के नीचे गीला हुआ मिलता है
फिर मैं अपने आपको पूछ बैठता हूँ

तुम कब आओगी ?

(३) तुम आओगी या नहीं ?

अध खुली आंखों में इंतज़ार ने
अभी-अभी टपकना शुरू किया है .
टेबुल पर पड़ी किताब के पन्ने
छत पर लटके पंखे से उलटते रहते है .
तुम आओगी या नहीं
यह मुझे नहीं पता
मगर
हर रोज़ तुम्हारी याद सपनों में आकर
मुझे जागने को विवश कर देती है .
कभी उत्तर मिलेगा या नहीं
कि
तुम आओगी या नहीं ?
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ९॰५
औसत अंक- ९॰५
स्थान- प्रथम
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-९, ९॰५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ९॰२५
स्थान- दूसरा
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
प्रतीक्षा व वियोग को व्यक्त करती इन पंक्तियों की सम्वेदना प्रभावशाली है।कवि के पास स्थितिविशेष को सहजता से रूपायित करने की सूझ है। अतिरिक्त गद्यात्मकता से बचा जा सकता था । वर्तनी की चूकें सुधार ली जानी चाहिएँ।
अंक- ५॰७
स्थान- दूसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
'तुम कब आओगी?' के तीनों भाग बहुत सुन्दर बन पड़े हैं। कवि के बिम्बों को पढ़ते हुए अनेक स्थानों पर गुलजार के बिम्बों सा अनूठापन दिखा। संपूर्णता में बेहद उत्कृष्ट रचनायें।

कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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अब हम बात करते हैं टॉप १० रचनाकारों में से अन्य ६ की (जिनमें से कई नये हैं), जिनको कवयित्री डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी।

अनिता कुमार
विपिन चौहान 'मन'
पंकज रामेन्दू मानव
आनंद गुप्ता
सुनीता यादव
संतोष कुमार सिंह

इसके अतिरिक्त २६ कवि और हैं जिनका हम धन्यवाद करते हुए यह निवेदन करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लें और पुनः प्रयास करें।

अजय कुमार आईएएस
आशिष दूबे
सुनील कुमार सिंह (तेरा दीवाना)
संजय लोधी
डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना
पीयूष दीप राजन
पीयूष पण्डया
दिव्य प्रकाश दूबे
श्रीकांत मिश्र 'कांत'
कवि कुलवंत सिंह
मनोहर लाल
पागालोकी बरात
हरिहर झा
अनुभव गुप्ता
जन्मेजय कुमार
शोभा महेन्द्रू
हिमांशु दूबे
ममता किशोर
आशुतोष मासूम
उत्कर्ष सचदेव
दीपक गोगिया
हेमज्योत्सना पराशर
तपन शर्मा
प्रदीप गावन्डे
प्रवीण परिहार
रिंकु गुप्ता

निवेदन- सभी प्रतिभागी कवियों से निवेदन है कि वो कृपया अपनी रचनाओं को ३० सितम्बर २००७ तक कहीं प्रकाशित न करें/करवायें, क्योंकि हम अधिक से अधिक कविताओं को युग्म पर प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे।

अंत में सभी प्रतिभागियों का हार्दिक धन्यवाद करते हुए हम यह निवेदन करते हैं कि इसी प्रकार हमारे आयोजनों का हिस्सा बनकर हमारा उत्साह बढ़ाते रहें।

सितम्बर माह की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्‌घोषणा यहाँ की जा चुकी है।

धन्यवाद।

ज़ज़ असमंजस में (प्रतियोगिता के परिणाम)


हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के मार्च अंक के परिणामों की घोषणा करने से पहले सभी सदस्यों को धन्यवाद दे लेना उचित समझूँगा। १ फरवरी २००७ से ३१ मार्च २००७ तक प्रतिदिन औसतन ९५ पाठकों ने हिन्द-युग्म को पढ़ा और यदि बात सिर्फ़ मार्च महीने की की जाय तो यह आँकड़ा १०० को पार करके १०४ तक पहुँच जाता है। जबकि महीने भर में ४० से भी अधिक प्रविष्टियों पर किसी ख़ास दिन को छोड़ दिया जाय तो नारद से हमें ८-१० से अधिक हिट्स नहीं मिलते। मतलब नारद से दैनिक आगंतुकों की संख्या को १० माना जा सकता है, यदि हिन्दी ब्लॉग्स से भी इतना ही मान लिया जाय और १२-१५ हिट्स सदस्य कवियों के भी मान लिये जाय तब भी ७० नये पाठक हमें रोज़ पढ़ रहे हैं। मतलब यह आँकड़े हमारी पूरी टीम के हौसलों को बढ़ाने वाले हैं। निःसंदेह ये फल सदस्य कवियों की मेहनत से ही मिल सके हैं। हर कवि अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश कर रहा है। यद्यपि टिप्पणियों की संख्या फिर भी अधिकतम २० तक ही पहुँचती है। इसका कारण गिरिराज जी के अनुसार अधिकांश लोगों को यह न पता होना कि टिप्पणी कैसे की जाय, है। इसके लिए गिरिराज जी इस विषय पर एक सरल लेख तैयार कर रहे हैं। आशा है इस महीने से टिप्पणियों की संख्या में इज़ाफ़ा होगा।

सबसे बड़ी ख़बर और शुभ सूचना इस प्रतियोगिता के लिए यह थी कि इस बार कुल १३ प्रतिभागियों ने भाग लिया और उसमें से भी एक कवि ने उसके ही कथनानुसार पहली बार कविता लिखी। यूनिकवि का निर्णय चार चरणों में किया गया। तृतीय चरण की निर्णयकर्ता को ६ कविताओं में से तीन कविताओं का चयन करना था। जिसके लिए उन्हें पूरे एक दिन का समय दिया गया था, मगर अगले ही दिन उन्होंने क्षमा माँग ली और कहा कि छः की छः कविताएँ आपस में इतनी सुंदर और बेहतरीन हैं कि तीन छाँटना बहुत मुश्किल। उन्होंने एक और दिन का समय माँगा, उन्हें दिया गया, पर इतना होने पर भी वो तीन कविताओं को छाँटने में सफल नहीं हो सकीं और ४ कविताओं को अंतिम निर्णयकर्ता को भेज दीं। असली परीक्षा तो अंतिम निर्णयकर्ता की ये कविताएँ ले रही थीं। ढाई दिनों में अंतिम निर्णयकर्ता यह नहीं तय कर सके कि कौन है श्रेष्ठ कविता। उन्होंने मुझे फ़ोन भी किया। मैंने कहा कि करना तो है ही। मरता क्या न करता। बमुश्किल अंक प्रणाली द्वारा वरुण स्याल यूनिकवि हुए और उनकी कविता 'मिलन' को सर्वाधिक १७ अंक मिले।

जैसाकि कल की उद्‌घोषणा में हमने कहा था कि अब हमें सृजनगाथा के रूप में पुस्तक-वितरण का प्रायोजक भी मिल गया है। अतः हमने यह तय किया कि यूनिकवि तो वरुण स्याल ही होंगे मगर शेष ३ कविताओं को भी सांत्वना पुरस्कार के रूप में सृजनगाथा की ओर से पुस्तकें भेंट की जायेंगी।
सम्पूर्ण विवरण निम्नवत हैं-

वरुण स्याल (यूनिकविः मार्च अंक)

वरुण स्याल का जन्म दिल्ली नगर में हुआ। ये सदा दिल्ली के वासी रहे हैं। स्कूल के समय से ही कविता पढने एवम् लिखने में इनकी रुचि रही है। वर्तमान में आई आई टी दिल्ली में नागरिक अभियान्त्रिकी शाखा के अंतिम वर्ष के छात्र हैं। कॉलेज में आने के उपरान्त केवल अंग्रेज़ी में ही कविता लिखते रहे, परन्तु कभी भी तृप्ति का अनुभूति नहीं हुई। अब जब हिन्दी में कविता लिखने लगे हैं, तब से सच मानिये एक नया-सा रास्ता दिखाई पड़ा है।

सम्पर्क-
वरुण स्याल
ईसी-१२, कुमायुँ छात्रावास,
आई आई टी दिल्ली, हौज़ खास,
नई दिल्ली-११००१६
ई-मेल- varun.co.in@gmail.com

पुरस्कृत कविता- मिलन

शीत के घुँघरू, ग्रीष्म की झुनझुन,
डाल पे कू-कू पंछी का कलरव,
सुबह का सूरज लाल सा हरदम,
शीत की धूप का शीतल अनुभव।

रात्रि दुलहन की याद में हरपल,
विरह वेदना से अति चंचल,
दिनभर ताप के ताप को सहता,
प्रेमी की भाँति धरा का आँचल।

रात से पहले शाम की खुशबू,
शाम का सपना, पवन है मद्धम,
काली घटा की साड़ी में लिपटी,
रात की कोमल देह की कंपन।

हाथों में चूड़ी, पैरों में पायल,
अति सुसज्जित रात की दुलहन,
पायल की झंकार से गूँजित,
अश्रु से भीगा धरा का आँगन।

धीरे-धीरे इस हवा में बहता,
हवा में बहता, इस धरा पे बहता,
अँधकार का परदा, आगे बढता,
आगे बढता, गिरता रहता।

बाहों में बाहें डाले जब-जब,
करे चुंबन, करे आलिंगन,
रात्रि और इस धरा का मिलना,
अति सुंदर एवम् अति पावन।

समय नहीं एक रेखा पथ भर,
चक्र की भाँति घूमे हरदम,
कल के बाद आज का आना,
रात के बाद ताप का आना,
कठोर पिता सा करे विदाई,
दुलहन का जाना, दिन का आना।

संपूर्ण हुआ यह मिलन सुनहरा,
वाष्प की भाँति गया अँधेरा,
विरह विषाद विदाई के संग-संग,
सूर्य की किरणें लाईं सवेरा।


अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
यद्यपि कई जगह गीत में रवानगी खटकती है तथापि अनूठे बिम्बों, कवि की भाषा और भावना पर सुन्दर पकड़ इसे उत्कृष्ट रचना बनाती है। भावनाओं को सही शब्दों में किस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं उसका अच्छा उदाहरण है यह रचना, उदाहरणार्थ-

“शीत के घुँघरू, ग्रीष्म की झुनझुन,
डाल पे कू-कू पंछी का करलव”

“काली घटा की साड़ी में लिपटी,
रात की कोमल देह की कंपन”

“कल के बाद आज का आना,
रात के बाद ताप का आना,
कठोर पिता सा करे विदाई,
दुलहन का जाना, दिन का आना”

“विरह विषाद विदाई के संग-संग,
सूर्य की किरणें लाईं सवेरा.....”

यद्यपि “धरा का आँचल” बिम्ब से मेरी सहमति नहीं है क्योंकि रात्रि को दुल्हन के रूप में प्रयुक्त कर कवि धरा को प्रेमी कहना चाह रहा है । आँचल स्त्रीद्योतक बिम्बों के साथ ही प्रयुक्त होता तो बेहतर था। तथापि कविता की सबसे अच्छी बात यह है कि यह भावों को ले कर भटकती नहीं है।

मूल्यांकन
कलापक्ष: ८.५/१0
भाव पक्ष: ८.५/१0
योग: १७/२०

पुरस्कार व सम्मान-
वरुण स्याल को 'मिलन' कविता के लिए रु ३००/- का नकद पुरस्कार, रु १००/- तक की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र दिये जा रहे हैं। चूँकि यूनिकवि ने अप्रैल माह की तीन अन्य सोमवारों को भी कविता-पोस्टिंग करने का वचन दिया है, अतः उन्हें प्रति सोमवार रु १००/- के हिसाब से रु ३००/- और नकद इनाम के रूप में दिये जा रहे हैं।

इसके अतिरिक्त पिछले माह के यूनिपाठक अजय यादव की ओर से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कृति 'उवर्शी' भेंट की जा रही है।


२) दूसरे स्थान पर इंदौर के युवा कवि विपुल शुक्ला की कविता 'नीलगिरि की शाखें' रही। इस कविता को प्रतियोगिता में भेजते समय कवि विपुल शुक्ला ने लिखा था-
"श्रीमान! यदि मैं आपका यूनिकवि बनता हूँ तो हिन्द-युग्म का सबसे कम उम्र का यूनिकवि होऊँगा। मेरी उम्र १८ वर्ष है। आप मेरी कविता पर विचार अवश्य करें"
विचार भी किया गया, परंतु अंतिम निर्णयकर्ता से यदि उन्हें ०.५ अंक और मिल गये होते तो यूनिकवि बन गये होते। हमने भी उनके इस संदेश का प्रतिउत्तर दिया था, उसमें जो लिखा था उसे यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है-
"आप कृपया कभी यह न सोचें कि आपकी कविता की अनदेखी होगी। हम आपकी रचना को चार अनुभवी कवियों के समक्ष रखेंगे। सभी कवियों में से जिसकी रचना श्रेष्ठ होगी, उसे ही यूनिकवि चुना जायेगा। विजयी किसी एक को ही होना है। मान लीजिए कि इस बार आप विजयी नहीं होते हैं तो अगली बार कोशिश कीजिए। आपने वो कहावत सुनी होगी- करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान। रसरी आवत-जात है सिल पर पड़त निशान।"

कविता- नीलगिरि की शाखें


वो नीलगिरी की शाखें,
खिड़की के पल्लों से टकराते हुए,
जैसे कोई अपना झाँके.
एक भीनी सी गंध भर जाती है साँसों मे,
और पत्तियाँ मुझे ताकें.

निर्जीव होकर भी सजीव,
एक ममतामयी मिठास देती हैं मुझको,
उन्हें देख लगता है ,
कि मैं अकेला नहीं हूँ अब.

कमरे के पीछे खड़े पेड़,
अब बुज़ुर्ग लगते हैं मेरे,
और कमरे मे गिरी पत्तियाँ
जैसे आशीर्वाद के घेरे.

शाखाओं पर बनते बिगड़ते,
माँ-बाबा के चेहरे.
मेरी खुशियों मे लेते हिलौरे,
जैसे झूमते से.

और दुख मे खड़े शांत चित्त,
गिरा देते हैं अपनी पत्तियाँ
एक दिन मैं नहीं होता,
और कमरे में आती शाखें,
काट दी जाती हैं
मैं जानता हूँ यह सच कि,
दुनिया को दूसरों की मिठास,
नहीं भाती है.

शंखों के साथ ही,
कट जाती है वो डोर भी,
सितारों से,
जिन्हें दादी कहती थी,
कि मेरे माँ-बाबा हैं वे.

और दो गीली रेखाएँ,
चेहरे को बाँटती हुईं
आ गिरती हैं उन पत्तियों पर
जो शाखाओं ने छोड़ी थी कमरे में
सूखे धरातल पर
सूखी पत्तियाँ.

अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
'नीलगिरी की शाखें' एक उत्कृष्ठ कविता है। भावनाएँ स्वत: कविता को एक श्वास में पढने पर मजबूर करती हैं और ठहर कर सोचने पर भी। कितनी साधारण घटना, कितनी उन्नत सोच!

“वो नीलगिरी की शाखें,
खिड़की के पल्लों से टकराते हुए,
जैसे कोई अपना झाँके.
एक भीनी सी गंध भर जाती है साँसों में,
और पत्तियाँ मुझे ताकें”

”शाखाओं पर बनते बिगड़ते,
माँ-बाबा के चेहरे”

”और दो गीली रेखाएं,
चेहरे को बाँटती हुईं
आ गिरती हैं उन पत्तियों पर
जो शाखाओं ने छोड़ी थी कमरे में. सूखे धरातल पर
सूखी पत्तियाँ”

जो बात कमरे के भीतर झांक रही शाखाओं से मन को गहरे पकड रही थी वही “कमरे के पीछे खड़े पेड़” से भ्रमित होती है। रचना उच्चकोटि की है।

मूल्यांकन
कलापक्ष: ७.५/१०
भाव पक्ष: ९/१०
योग: १६.५/२०

पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से कविताओं की पुस्तकें भेंट की जा रही हैं।

३) तीसरे स्थान की कविता 'विरह एकाकी' के कवि कमलेश नाहता 'नीरव' भी दुर्भाग्यशाली रहे। ये भी मात्र १ अंक से बिछड़ गये। ये कविता को यूनिकोड में टाइप करने में तो असमर्थ रहे, परन्तु अपनी डायरी के पन्नों का स्कैनित रूप दिखाकर हमें धन्य कर दिया। शायद अब वे यूनिकोड में टंकण सीख भी गये हों, जैसा भी होगा, जब वे इस बार प्रतियोगिता के लिए अपनी कविता भेजेंगे तो यह बात स्पष्ट हो जायेगी।

कविता- विरह एकाकी

भर पूर्णिमा चाँद की उन्मद्ता
गदराई , शरमाई
सहमी सी एक मधुलता ।
नदी किनारे कल- कल बहते पानी
में भीगी ;
स्निग्ध सुरभित फूलों को
छूकर झुलसी ।

' पर वोह न आये । '

स्मृति पटल के बदरंग पट पर
ये अकुशल चितेरी
करती रंगों से रैला-रैली ।

बैठी तट , लिए भीगे सिहरते अंग ।
चिर निमिष मॆं करती मंथित
मधुर सारे क्षण ।
प्यासे नयनों में क्यों आँसू बन छलका रुधिर ?
निशब्द अधरों से क्यों आज कहती
बातें बहकी बहकी ?

सूर्य डूबा,
पर धूप सा लिए तन
चुगती, भरती मुक्ता तारों की एक डाली ।
' यह मैं उन्हें दूँगी । '
कहती खुद से क्षण - उन्मद अभिमानी ।

विस्मित यामिनी ; चलत- चलते।
गुजरा नीरद यूँ सिहरते।
तारा- गण करे प्रश्न
आख़िर प्रणय ऐसा क्यों कोमलते ?
सूने नयनों में क्यों साध जलती
अमर लय बन रोते -रोते ?

प्रयत्न प्रतिउत्तर का न सहज न सरल।
अधरों पर फैली स्मित रेखा निस्सीम
देती कतार नेत्रों को ही छल।
लौ फिर भी आशा की प्रबुद्ध सबल
भरती झंझा में संकल्प पल- प्रतिपल ।

मिलन संक्षिप्त फिर विरह एकाकी रत मन ,
किंचित स्मृति भी देती पुलक बन्धन ।
कुसुम बिखरे पथ की जिसने चाह भूली
विशल्य पथ का फिर उसे कैसा आश्वासन।
अखंड तेरा प्रणय , अखंड तेरा प्रण ।

अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
बहुत सुन्दरता से कवि ने “पर वोह न आये " कह कर विरह को उड़ेल कर रख दिया। कई बिम्ब कविता को उँचाई तक ले जाते हैं, जैसे-

”प्यासे नयनों में क्यों आँसू बन छलका रुधिर ?”

”निशब्द अधरों से क्यों आज कहती बातें बहकी बहकी ?”

”भरती मुक्ता तारों की एक डाली, यह मैं उन्हें दूँगी”

”कुसुम बिखरे पथ की जिसने चाह भूली,
विशल्य पथ का फिर उसे कैसा आश्वासन”

कविता का आरंभ बहुत प्रभावित करता है किंतु पूरी कविता पढते हुए धीरे-धीरे शब्दों में कविता उलझती जाती है और भ्रमित भी करती है।

मूल्यांकन
कलापक्ष:
८.५/१०
भाव पक्ष: ७.५/१०
योग: १६/२०

पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से कविताओं की पुस्तकें भेंट की जा रही हैं।


४) सबसे अधिक तारीफ करनी होगी हमारे पिछले माह के यूनिपाठक अजय यादव की। उन्होंने दो-तीन बार गूगल चैट के दौरान मुझसे कहा कि वह भी कविता लिखना चाहते हैं, उन्हें विषय नहीं मिल रहा है। मैंने कहा कि प्रेम से शुरूआत करना अच्छा रहेगा। उन्होंने कहा कि उसपर कविता करना बहुत मुश्किल है जिसे महसूस न किया हो। मैंने कहा कि भैया, जिस विषय पर आप अच्छा सोच सकें, बेहतर सोच सकें, उसपर लिखिए। और क्या कहने! पहली बार ग़ज़ल लिखी और इस प्रतियोगिता की अंतिम चार कविताओं में जगह बना ली।

कविता- ग़ज़ल

उन्हें ज़िन्दगी की दुआ न दे
जिन्हें मौत ही सुकून है
यहाँ चैन नहीं है इक घड़ी
बस ज़ुनून ही ज़ुनून है

मिट गईं दिलों की वो हसरतें
खो गईं वो बचपने की शरारतें
बुझ गईं दिलों से सबके चाहतें
हर हाथ पे लगा किसी का खून है

मिल बैठते थे देर तक
और दिल की कहते सुनते थे
बदल गये वो दोस्त सब
मैं वो मैं नहीं तू वो तू न है

हमें जिसकी बहार पे नाज़ था
वो चमन भी अब तो नहीं रहा
हरियाली तमाम ख़ाक हुई
गुलों में पहली सी वो बू न है।

क्या लोग थे, क्या दौर था
क्या ज़िन्दगी का तौर था
हर काम में सब साथ थे
अब आदमी में वो खू न है

कभी तो दिन वो आयेंगे
जब 'अजय' को लोग चाहेंगे
जब हम भी कह ये पायेंगे
कि जहाँ में कोई उदू न है।

खू = आदत, उदू/अदू = दुश्मन

अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
अच्छी ग़ज़ल है, कहीं-कहीं रवानगी खटकती है। प्रत्येक शेर सुन्दर है, अत: किसी एक को उद्धरित नहीं कर रहा हूँ।

मूल्यांकन
कलापक्ष:
७/१०
भाव पक्ष: ७/१०
योग: १४/२०

पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से कविताओं की पुस्तकें भेंट की जा रही हैं।


अब बात करनी होगी पाठकों की। यद्यपि यह हमारे लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि कवि तो लिखकर भेज देता है और पूरे महीने के लिए छुट्टी पा जाता है। मगर पाठक हिन्द-युग्म के अच्छे और बुरे हर प्रकार के दिनों में साथ निभाते हैं। इस बार पुनः पाठकों के बीच मुकाबला बहुत तगड़ा था। अजय यादव की टिप्पणियों को तो पढ़कर मन में यही सवाल उठता है कि वे कविता पढ़ने के लिए इतनी ऊर्जा कहाँ से लाते हैं। मगर इस बार सबसे अधिक ऊर्जा दिखाईं कवयित्री रंजना भाटिया ने। उन्होंने अधिकतम कमेंट ही नहीं किये वरन् कमेंट को भी कई बार कविता रूप में लिखा। पिछली बार भी उन्होंने कुल १९ टिप्पणियाँ की थीं, परंतु अजय भाई को पीछे नहीं कर पायी थीं। मगर इस बार उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखा। मतलब श्रीमती रंजना भाटिया हमारी यूनिपाठिका हैं।

यूनिपाठिका- श्रीमती रंजना भाटिया

परिचय-

जन्मतिथि-१४ अप्रैल,१९६६
शिक्षा-बी.ए.,बी.एड, पत्रकारिता में डिप्लोमा

जन्म हरियाणा के रोहतक ज़िले के कलनौर गाँव में हुआ। आरम्भिक शिक्षा दिल्ली में और कॉलेज जम्मू से किया। बचपन से ही लिखने में रुचि थी। कई लेख और कविता शुरू में दैनिक जागरण, अमर उजाला और भाटिया प्रकाश [मासिक पत्रिका] आदि में छपे, फिर घर में व्यस्त होने के कारण लिखना सिर्फ़ डायरी तक सीमित रह गया। सैकड़ों कविता लिखी हुई हैं। १२ साल तक स्कूल में अध्यपिका रहीं। लगभग दो वर्षों तक मधुबन पब्लिशर के साथ जुड़ी रहीं जहाँ इन्हें उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के उपन्यासों की प्रूफ़-रीडिंग और एडीटिंग का अनुभव प्राप्त हुआ। फ़िलहाल घर में हैं और बच्चों को पढ़ाती हैं। अब कुछ समय से नेट में कई फ़ोरम में लिखती हैं। कविता और हिंदी-साहित्य में विशेष रुचि है। बच्चन ,अमृता प्रीतम और दुष्यंत जी को पढ़ना बहुत पसंद है।

सम्पर्क-
चिट्ठा- कुछ मेरी कलम से
ई-मेल- ranjanabhatia2004@gmail.com

पुरस्कार व सम्मान-

रु ३००/- का नकद पुरस्कार
रु २००/- तक की पुस्तकें
एक प्रशस्ति-पत्र

(पहले यूनिपाठक को प्रशस्ति-पत्र नहीं दिया जाता था। परन्तु रंजना भाटिया ने हमारा ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया, अतः इस माह से हम यूनिपाठकों को भी प्रशस्ति-पत्र देने शुरू कर रहे हैं)


९ अन्य कवियों ने जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारा उत्साहवर्धन किया, हम उनके भी शुक्रगुज़ार हैं। यह आवश्यक नहीं कि हमारा यूनिकवि का निर्णय किसी गुणवत्ता की परिपाटी या मानक हो। चूँकि किसी न किसी को लेना था, इस बार हमने वरुण स्याल को चुना है। आप प्रतियोगिता में पुनः भाग लीजिए। अगला नं॰ आपका होगा, इसमें कोई संशय नहीं है।

1) रंजना भाटिया
2) डॉ॰ गरिमा तिवारी
3) ऋषिकेश खोड़के 'रुह'
4) अमिताभ भूषण
5) सूर्यपाल सिंह चौहान कुँअर
6) पृथ्वीराज कुमार
7) विशाखा
8) विजय दवे
9) सखी सिंह
हम पुनः निवेदन करेंगे कि आप लोग इस प्रतियोगिता में बढ़-चढ़कर हिस्सा लीजिए। हमारे प्रयासों को सफल बनाइए। इस बार की प्रतियोगिता के आयोजन की घोषणा हम कल यहाँ कर चुके हैं। इसे देखें और अवश्य भाग लें।


दोनों विजेताओं, सभी प्रतिभागियों और सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद।


यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम


पिछले दस दिनों से पाठकों और प्रतिभागियों के मेल हमें मिलते रहे जिसमें वे पूछते रहे कि फ़रवरी माह की प्रतियोगिता के परिणाम कब घोषित हो रहे हैं? हमारे नियमित पाठक, स्तरीय तथा गैरस्तरीय दोनों प्रकार की कविताओं के रसज्ञ, गौरव शुक्ला जी ने तो हद ही कर दी, यह बताये जाने पर भी कि परिणाम ५ मार्च को घोषित होंगे, कई बार वही सवाल करते रहे। पाठक को जब इस तरह का इंतज़ार हो तो किसका उत्साह चौगुना नहीं होगा! हम खुद परेशान रहते हैं कि ज़ल्दी से माह का प्रथम सोमवार आये और पुरस्कारों की उद्‌घोषणा की जा सके।



१५ फ़रवरी (अंतिम तिथि) तक, जब 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' के लिए कुल ९ रचनाएँ मिलीं तो मन बहुत खुश हुआ कि चलो पिछली बार की ६ रचनाओं के स्थान पर इस बार देढ़ गुनी कविताएँ मिली हैं। मगर १७ फ़रवरी एक प्रतिभागी अमित कपूर ने सूचना दी कि उनकी कविता उस बार के काव्यालय में प्रकाशित हो गयी है। अब बचीं ८। हमारे एक निर्णयकर्ता ने एक और कविता को इस दौड़ से बाहर कर दिया। हुआ यह कि उस कविता को कवि ने किसी और शीर्षक से अनुभूति पर प्रकाशित करवा रखी थी, हमारे यहाँ शीर्षक बदलकर भेज दी। वो तो शुक्र हो हमारे निर्णयकर्ता की पठनियता का, कि चोरी पकड़ी गयी।



मगर तब तक हम दो चरणों का निर्णय ले चुके थे। और वे दोनों कविताएँ अंतिम ५ में पहुँच गयी थीं, यानी इसके कारण किसी और के पेट पर लात पड़ती। सारी प्रक्रिया दुहरानी पड़ी, मगर खुशी की बात यह रही कि अंतिम तीन में फिर से वही कविताएँ पहुँचीं जो इन दोनों को निकालने पर बची थीं।






तब ही हिन्द-युग्म के सदस्यों ने यह सुझाया कि चोरी को पकड़ने का कोई नायाब तरीका निकालना पड़ेगा, केवल गूगल सर्च काम नहीं आयेगा। गौरव शुक्ला जी को फ़िल्टर बनाने का निर्णय किया गया। माना जाता है कि अंतरज़ाल की कोई एक भी यूनिकोडित/गैरयूनिकोडित कविता उनकी नज़रों से नहीं बची है।






अंतिम तीन कविताओं में मुकाबल इतना तगड़ा था कि हमारे अंतिम निर्णयकर्ता, ३ घण्टों की जद्दोजहद के बावजूद भी सर्वश्रेष्ठ रचना का निर्णय नहीं कर पाये। मरता क्या न करता। नया टूल आजमाया। कविताओं के भाव-पक्ष तथा कला-पक्ष को अलग-अलग करके मूल्यांकित किया। तब कहीं जाकर यह तय किया जा सका कि गौरव सोलंकी फ़रवरी माह के यूनिकवि हैं, जिनकी कविता 'नारी, तुम केवल श्रद्धा नहीं हो' को तीनों में सबसे अधिक अंक मिले। जिसके लिए उन्हें रु ३००/- का नकद पुरस्कार, रु १००/- तक की गुलज़ार की कविताओं की एक पुस्तक तथा प्रशस्ति-पत्र दिया जा रहा हैं। चूँकि गौरव सोलंकी जी ने इस माह के आने वाले तीन सोमवारों को भी अपनी कविता प्रकाशित करने का वादा किया है, अतः उन्हें प्रति सोमवार रु १००/- के हिसाब से रु ३००/- की अतिरिक्त धनराशि दी जाती है।






यूनिकवि का परिचय-

गौरव सोलंकी
आयु-20 वर्ष
जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ लेकिन शिक्षा-दीक्षा संगरिया(राजस्थान) में हुई.घर में साहित्यिक वातावरण होने से बचपन से ही साहित्य की ओर विशेष रुझान रहा.15 वर्ष की आयु में काव्य-लेखन आरंभ किया.वर्तमान में आई.आई.टी. रुड़की में बी.टेक. तृतीय वर्ष में अध्ययन कर रहे हैं.
आई.आई.टी. रुड़की की साहित्यिक पत्रिका 'क्षितिज' के मुख्य सम्पादक हैं.अनेक कहानियाँ एवं कविताएं लिख चुके हैं. वर्तमान में महत्त्वाकांक्षाओं और सपनों पर एक उपन्यास लिख रहे हैं.प्रमुख कहानियाँ 'सपने, इच्छाएं, ज़िन्दगी...', 'नरगिस', 'श्राद्ध', 'अपराजिता' हैं. 'नारी, तुम केवल श्रद्धा नहीं हो' की एक शृंखला लिखी है.अन्य कविताओं में 'जो होगा, देखा जायेगा', 'सीता होने पर', 'तुम ज़िन्दा हो', 'मैं झूठा हूं' प्रमुख हैं.

पता-
गौरव सोलंकी
पुत्र श्री युवराज सोलंकी (वरिष्ठ अध्यापक)
वार्ड नं.-21
गुरूनानक बस्ती
संगरिया
जिला-हनुमानगढ़ (राजस्थान)
पिन कोड-335063

पाठक खुद देखें कि मुकाबला कितना मुश्किल था, इसके लिए हम तीनों कविताओं को अंतिम-निर्णयकर्ता के मूल्यांकन के साथ प्रकाशित कर रहे हैं।




नारी, तुम केवल श्रद्धा नहीं हो! (पुरस्कृत कविता)





आहिस्ता बोलो,
आवाज आई थी ऊपर कहीं से,
क्या मैंने गलत कहा था?
मैंने तो यही कहा था,
नारी, तुम केवल श्रद्धा नहीं हो!
तुम्हारा हृदय अलग है मेरे हृदय से,
जो कभी प्रेम करता है असीमित
और कभी आभास करवाता है तुम्हारे हृदयहीन होने का
और चंचलता तो श्रद्धेय नहीं होती ना
चंचलता दर्शनीय हो सकती है, श्रवणीय हो सकती है,
पर पूजनीय कभी नही,
तुम एक सुन्दर प्रतिमा की देवी हो,
निराकार ईश्वर कभी नहीं,
समकक्ष हो तुम ईश्वर के
अपनी चंचलता के उन चरम क्षणों मे,
अनापेक्षित,
अविश्वसनीय,
अदर्शनीय,
अश्रवणीय,
दूसरे चरम क्षणों में तुम हो.
कुछ भी नहीं हो तुम सचमुच,
फिर तुम्हीं क्यों सब कुछ हो?
तुम्हीं जननी हो,
मानवता की श्रंखला,
फिर कभी तुम अमानवीय क्यों बन जाती हो?
कोमलांगी कहलाती हो तुम,
फिर कभी पाषाण क्यों बनती हो?
पीयूष-स्रोत हो तुम,
फिर कभी विष क्यों उगलती हो?
तुम विश्व-शक्ति हो,
तुम मुझे हरा सकती हो,
तुम विश्वमाता हो,
तुम अपरजिता हो,
तुम भावना हो,
तुम कामना हो,
तुम जानकी हो,
पर तुम कैकेयी क्यों हो?
तुम माँ हो,
फिर इतनी निर्दयी क्यों हो?
तुम अर्द्धांगिनी हो,
तुम अधूरी हो,
सम्पूर्ण नहीं हूं मैं भी
पर तुम भी क्यों जरूरी हो?
काश
तुम्हारा खूबसूरत चेहरा,
सम्मोहक आँखें
और नागिन से बाल,
कुछ योगदान कर पाते तुम्हारे हृदय के पुनर्निर्माण मे!





कवि- गौरव सोलंकी



ज़ज़मेंट-"नारी, तुम केवल श्रद्धा हो" एक सशक्त भाव है किन्तु कवि ने "तुम केवल श्रद्धा नहीं हो" को विचार बना दिया है

"और चंचलता तो श्रद्धेय नहीं होती ना
चंचलता दर्शनीय हो सकती है, श्रवणीय हो सकती है,
पर पूजनीय कभी नही,
तुम एक सुन्दर प्रतिमा की देवी हो,
निराकार ईश्वर कभी नहीं"

"कुछ भी नहीं हो तुम सचमुच,
फिर तुम्हीं क्यों सब कुछ हो?"

थोड़ा भटकाव कविता के अंत में है जहाँ कवि यह सिद्ध करनें में कमजोर रहा है कि "खूबसूरत चेहरा", "सम्मोहक आँखें", "नागिन से बाल" का श्रद्धा से किस प्रकार संबंध हैं हाँ "कुछ योगदान कर पाते तुम्हारे हृदय के पुनर्निर्माण मे" कह कर "तुम केवल श्रद्धा नहीं हो" विचार के साथ अंततः न्याय कर सका है

कला पक्ष : ८.५/१०, भाव पक्ष: ७.५/१० कुल अंक १६/२०


लेखक


अक्षरों और शब्दों का
विशाल वृत बना लिया
किताबों का घर तो बना
पर अपनों के बीच न रह पाया
व्याकरण और समास के साथ
अलंकार और उपनाम जोडें
पद्म विभूषण से तो हो गया विभूषित
पर सेहरे का कर्त्तव्य न निभा पाया
खींचे कई रेखा चित्र
लिख डाले कई संस्मरण
कहानी-कविता से हो गए
अनगिनत कागज़ रंगीन
पर बिना लिखे रिक्त ही रहा
कोरे श्याम्पट्ट सा जीवन
अब विवश हुए जा रहे हैं प्राण
परवश में जा रहा है जीवन
पर आज भी अपनों के साथ
बाँध न पाया बंधन


कवयित्री- स्वर्ण ज्योति


ज़ज़मेंट- कवि की भाषा पर पकड़ प्रशंसनीय है कविता का प्रवाह भी सुन्दर है बात कहने के लिये कवि को सरलता-सहजता ही पसंद है, बिम्बों का बहुत अधिक न तो प्रयोग है न ही कवि ने उनके प्रयोग की आवश्यकता महसूस होने दी है



"..पर सेहरे का कर्त्तव्य न निभा पाया", "..पर बिना लिखे रिक्त ही रहा कोरे श्याम्पट्ट सा जीवन", "..पर आज भी अपनों के साथ बाँध न पाया बंधन" कविता हृदय के बहुत भीतर न भी पहुँचती हो, हृदय तक तो पहुँचती ही है



कला पक्ष : ८.०/१०, भाव पक्ष: ७.५/१० कुल अंक १५.५/२०



हाट


यह सत्संग चौक है
यह बाजला चौक
यहाँ हाट लगता है
रोज–रोज प्रतिदिन
देश में अनेक ऐसे चौक हैं
गली मुहल्लों में¸शहरों में
जहाँ ऐसे हाट लगते हैं
रोज–रोज प्रतिदिन।

साग सब्ज़ियाँ नहीं बिकती है यहाँ
और न ही बिकते हैं यहाँ
खाद्व–खाद्दान्न या पशु मवेशी
ये इन्सानों का हाट है
यहाँ मनुष्य बिकते हैं
रोज–रोज दिन–प्रतिदिन।
प्रकृति की सुन्दरतम रचना
बिकती है यहाँ
उनका श्रम बिकता है
खुन पसीना बिकता है
रोज–रोज दिन–प्रतिदिन.।
ऐसा मुकाम भी आता है
जीवन में उनके
श्रम बेचकर भी जब
बुझती नहीं ज्वाला पेट की।
तब बिकती है आत्मा उनकी
चेतना बिकती है
बहु–बेटियाँ बिकती हैं
घर–बार बिकता है
रोज–रोज प्रतिदिन।
चढ़ता सूरज वैसे तो
प्रतीक है आशा का
पर चढ़ता सूरज
क्षीण करता है संभावना
इनके बिकने की
आशा निराशा का यह
खेल चलता रहता है
रोज–रोज प्रतिदिन।
बिकता है वह खरीदते हैं हम
कीमत कोई और तय करता है
साठ रूपये प्रतिदिन
अपनी कीमत भी नहीं
कर सकता है तय वह
बिकने को मजबूर है
तयशुदा कीमत पर
रोज–रोज प्रतिदिन।
कीमत बढ़ती रहती है
हर चीज की
रोज–रोज प्रतिदिन
पर इनकी कीमत रहती है
स्थिर गरीबी की तरह
वह महज एक कीड़ा है
हम इन्सानों के बीच
उसे हम मजदूर कहते हैं
उसे बस रेंगना है
और कुचला जाना है
हमारे झूठे अहम तले
रोज–रोज प्रतिदिन।

साम्यवाद हो या समाजवाद
या चाहे कोई और वाद
नारे सारे खोखले ही रहेंगे
तब तक जब तक
ये हाट लगते रहेंगे
आत्मा बिकती रहेगी
चेतना बिकती रहेगी
घर–बार बिकते रहेंगे
बहू–बेटियाँ बिकती रहेंगी
रोज–रोज प्रतिदिन।।


कवि- वरुण रॉय


ज़ज़मेंट- यह एक सुन्दर प्रयास है कवि की सोच प्रशंसनीय है यद्यपि शब्द इतने सुन्दर विषय को पूरी तरह चित्रित नही कर सके ये पंक्तियाँ सर्वाधिक प्रभावी हैं"


"साम्यवाद हो या समाजवादया चाहे कोई और वादनारे सारे खोखले ही रहेंगे"



कला पक्ष : ६.५/१०, भाव पक्ष: ७.०/१० कुल अंक १३.५/२०



सबसे कठिन प्रतियोगिता तो पाठकों के बीच देखने को मिली। रंजु जी, गरिमा जी, डिवाइन इंडिया, उपस्थित और अजय यादव जी ने तो कवियों को खूब पुचकारा। इस बार के यूनिपाठक अजय यादव जी ने तो इतिहास रच डाला। ७ फ़रवरी को शैलेश भारतवासी से यूनिकोड टंकण के टूल के बारे में पहली बार पूछा और शुरू कर दिया कविताओं पर टिप्पणी देना। २८ फ़रवरी तक कुल मिलाकर २५ टिप्पणियाँ की। इन्हें सबसे कड़ी टक्कर मिल रही थी उपस्थित जी से, क्योंकि उनकी टिप्पणियाँ एक तरह के शोधपत्र होते हैं। मगर पता नहीं क्या हुआ, वे पिछले १५ दिनों से गधे की सिंग की तरह अंतरज़ाल जगत से गायब हैं।
यूनिपाठक 'अजय यादव' को हिन्द-युग्म' की ओर से रु २००/- तक के हिन्दी-कविताओं की पुस्तकें भेजी जा रही हैं।


यूनिपाठक का परिचय-


नाम- अजय यादव
संप्रति- एक्शन कन्स्ट्रक्शन इक्युपमेन्ट लिमिटेड नामक कम्पनी में "सूचना प्रौद्योगिकी सहायक'' के रूप में कार्यरत



संपर्क-सूत्र-


अजय यादव


मकान न॰- ११६१


गली न॰- ५४ संजय कॉलोनी


एन॰आई॰टी॰ फरीदाबाद


हरियाणा (१२१००५)



इस बार हमारे पास यूनिकवि व यूनिपाठक के लिए एक-एक उपहार भी है। कवयित्री स्वर्ण ज्योति जी इन दोनों को अपनी कविताओं की पुस्तक 'अच्छा लगता है' की एक-एक प्रति प्रेषित कर रही हैं। स्वर्ण ज्योति जी एक गैर हिन्दी-भाषी क्षेत्र से हैं। मातृभाषा कन्नड़ है, पिछले २५ वर्षों से केन्द्र शासित प्रदेश 'पाण्डिचेरी' में निवास कर रही हैं, जहाँ की भाषा तमिल है। इन विषम परिस्थितियों के बावजूद भी इतना हिन्दी-प्रेम! हिन्दी-बलॉगिंग में भी सक्रिय हैं। इनकी अनूदित कृतियाँ साहित्यिक वेबज़ीन सृजनगाथा के मार्च संस्करण में भी प्रकाशित हुयी हैं। इनकी हिन्दी-कविताओं की पुस्तक 'अच्छा लगता है' की समीक्षा दैनिक समाचार पत्र 'नई दुनिया' के २७ नवम्बर २००६ के इंदौर संस्करण में प्रकाशित हुयी थी। वर्तमान में कवयित्री हिन्दी में शोधरत् हैं।


लेखकों और पाठकों से अनुरोध है कि कृपया आप प्रतियोगिता में सक्रिय रूप से भाग लें। हमारा उत्साहवर्धन करें।
रचनाकारों के पास १५ मार्च २००७ तक का समय है।
और पाठकों के लिए तो रोज़ का दिन प्रतियोगिता का दिन है। सम्पूर्ण जानकारी यहाँ है।