यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम इस सत्य को पुनः स्थापित करते हैं कि किसी भाषा और उसके साहित्य का विकास दुनिया में कहीं भी और किसी के भी द्वारा हो सकता है, बशर्ते सच्चे मन का सेवक हो।
हिन्द-युग्म पर बहुत से कवि और पाठक हिन्दी के जन्मस्थल भारत के बाहर से आते हैं। यद्यपि वे भारत से संबंध रखते है, फिर भी अपनी मिट्टी से काफी समय से दूर हैं और विदेश में भी पूरे जतन से निज भाषा और निज साहित्य की सेवा कर रहे हैं।
अप्रैल माह से एक रूसी व्यक्ति वसेवोलोड पापशेव यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। उनका मानना है कि वो एक दिन यूनिकवि बनकर रहेंगे। फिलहाल शुरूआत है। जानकारी के लिए बता दें कि उन्हें यूनिकोड (हिन्दी) टाइपिंग आती है।
मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए कुल ४५ कविताएँ प्राप्त हुई थीं, दो चरणों में ७ जजों द्वारा निर्णय कराये जाने के बाद मॉरिशस निवासी गुलशन सुखलाल की कविता 'मेरे अजन्मे पुत्र' को प्रथम स्थान की कविता चुना गया। गुलशन इससे पहले और २ बार इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुके हैं, तथापि इनकी पुरानी कविताओं ने हमारे निर्णायकों को बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया था। गुलशन सुखलाल के बारे में बहुत अधिक जानकारी हमारे पास नहीं है क्योंकि यूनिकवि के निर्णय के बाद परिचय और चित्र आदि के लिए हमने इनसे संपर्क साधा (ईमेल द्वार), परंतु इन्होंने अभी तक कोई उत्तर नहीं भेजा। फिर हमने गूगल पर (इनकी ईमेल आईडी के साथ) सर्च किया, तब इनका फ़ेसबुक प्रोफाइल मिला, जहाँ से हमें यह चित्र मिला। एक और सूत्र के अनुसार दक्षिण एशिया केंद्र द्वारा प्रायोजित एक कार्यक्रम 'द्वीपों के समूह को राष्ट्रीयता की तलाश' पर मॉरिशस विश्वविद्यालय में शोधरत गुलशन सुखलाल ने अपना भाषण दिया था। भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद के एक सूत्र पर मॉरिशस के एलूमनियों की सूची है, उसमें गुलशन सुखलाल का नाम सबसे ऊपर है और निम्नलिखित विवरण है-

Address : Mahatma Gandhi Rd, Petit Raffray
Tel. : 2820005, Mob:7890702
Email:
gulshansooklall@yahoo.co.uk
gulshansooklall@hotmail.com
Period of Study : 1995 to 2000
University : Delhi
College : Hansraj
Course/s : B.A. (Hons) Hindi, M.A. Hindi
Present Occupation : Lecturer, MGI (Mahatma Gandhi Institue, Mauritius)
Financing : General Cultural Scholarship, ICCR
Comments : The exp. of study in India are undeniably the best ;moments in student life. As far as suggestions are concerned, I believe many things might have changed in the six years since I have been back. Yet the two major areas requiring urgent attention from the authorities have been dissemination prior to departure for India and the arrival arrangements that follow and secondly lodging for international scholars. One very meaningful change that can be brought about is the setting of small forums for ICCR scholars within each univ. for cultural and exp. sharing. Such forums may arrange for international students to have first hand exp. of Indian family life and culture. The ICCR summer or winter tours fail in this objective as the students visit places more as tourists and not as cultural ambassadors.
पूर्णिमा वर्मन जी ध्यान दिलाया कि इनकी प्रोफाइल और इनकी कविताएँ अनुभूति पर भी उपलब्ध हैं।
यदि आप खोजें तो आपको कुछ अन्य जानकारियाँ भी प्राप्त हो सकती हैं।
पुरस्कृत कविता- मेरे अजन्मे पुत्र
कुछ शब्द हैं तुम्हारे लिए
मेरे अजन्मे पुत्र...
आने से पहले ही तुम्हारे
सपनों, ईरादों, योजनाओं की बनाता जा रहा हूँ मैं कतारें
कुछ रहेंगी याद और
कुछ जाऊँगा भूल।
कुछ काम हैं तुम्हारे लिए
मेरे अजन्मे पुत्र
बड़ा होते हुए या
बड़ा होने पर...
याद दिलाना मुझे
कि तुम्हारे भविष्य
तुम्हारी सफलता, स्वास्थ्य, सौन्दर्य
और तुम्हारी भावनाओं का निर्णय
दुनिया के दूसरे कोने में बैठा कोई मार्कैटिंग गुरू
अपने विज्ञापनों के लुभावने शब्दों से
अपनी कौड़ी के मोल बिकने वाले सामानों से
नहीं करेगा।
याद दिलाना मुझे कि
यदि आज मैं तुम्हारे लिए
ये शब्द लिख पा रहा हूँ
तो इसलिए नहीं
कि मैं प्रमाण पत्रों के पीछे भागा हूँ
याद दिलाना कि
पीठ पर किताबों का बोझ लादे
देश के भविष्य के जिस बढ़ते हुजूम की
मैं निन्दा करता रहा हूँ
उसी में तुम्हें ढकेल कर
अपने कर्तव्यों की इति न समझूँ ।
याद दिलाना कि मैं तुम्हें
इस काबिल बनाऊँ कि
तुम भी ऐसे शब्द लिख पाओ
अपने अजन्मे पुत्र के लिए
याद दिलाना कि
तुम इसलिए नहीं होगे अलग
या बेहतर
ग़रीब पड़ोसी के
बच्चे से
कि तुम हो साफ़ सुथरे
सफर करते हो गाड़ी में
या क्योंकि वह
सरकारी पठशाला में पढ़ता है।
याद दिलाना मुझे तुम
कि मेरी गाड़ी, मेरे घर,
मेरी नौकरी और पगार की तरह
तुम
दोस्तों-दुश्मनों के सामने
मेरा बड़प्पन जताने के
साधन नहीं हो
’शोपीस’ नहीं जिसमें
बचपन में ही
दुनिया भर का ज्ञान
क्विज़ के उत्तरों की पोथियाँ
और सभी सम्भव कलाएँ भरकर
मैं माध्यम बनाकर
अपना अहम् संतुष्ट करूँ ।
याद दिलाना मुझे कि
मैं तुम्हें याद दिलाऊँ
मेरी सम्पत्ति,
ओहदा, मान, नाम
नहीं हैं बपौति तुम्हारी
कमाया है मैंने
कमाना होगा तुम्हें भी ।
याद दिलाना
कि मैं तुम्हें
मिट्टी में खेलने दूँ
बारिश में भीगने दूँ
धीमी गति से चलने दूँ
साईकल से गिरने दूँ
दोस्तों से भिड़ने दूँ
हाथ से खाने दूँ
खुलकर हँसने दूँ
अपनी बात कहने दूँ
और यदि कभी,
तुम्हारी नज़रों में ‘सुपर-हीरो’
तुम्हारा यह पिता अपनी
बाहरी और भीतरी कमज़ोरियों के सामने
अपनी नपुंसकता का प्रमाण देने लगे
तो तुम
उसे ये सभी बातें याद दिलाना
क्योंकि तुम्हारे भविष्य के साथ जुड़ा है
मेरा भी भविष्य।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ६॰५, ५॰८, ८॰५
औसत अंक- ६॰७
स्थान- दूसरा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰५, ९, ५॰९, ६॰७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२७५
स्थान- प्रथम
पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।
यूनिकवि गुलशन सुखलाल से यदि अगले कुछ दिनों में संपर्क नहीं हो पाता है तो हिन्द-युग्म शर्तानुसार यह अवसर हम दूसरे स्थान के कवि को देगा। दूसरे स्थान के कवि प्रेम सहजवाला को हम पिछले माह की तरह पुनः आमंत्रित करेंगे
इसलिए प्रेम सहजवाला को दूसरे स्थान की कविता को मिलने वाली पुस्तक के अतिरिक्त प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द पुरस्कार भी दिया जायेगा।
इससे पहले कि हम विजेता पाठकों की बात करें, पूजा अनिल, महक, अल्पना वर्मा और आलोक सिंह साहिल का विशेष आभार व्यक्त करेंगे, ये सभी बहुत धैर्य के साथ हिन्द-युग्म को पढ़ते हैं।
इस बार यूनिपाठिका का खिताब हिन्द-युग्म को मार्च २००८ से लगातार पढ़ रहीं, दो बार से दूसरे स्थान की पाठिका के रूप में पुरस्कृत और बाल-उद्यान को अपनी सुंदर-सुंदर कविताओं से नवाजने वालीं सीमा सचदेव के नाम जाता है।

जन्म:- २ अक्तूबर ,१९७४
जन्म स्थान :- गाँव:- खुइयाँ सरवर ,अबोहर (पंजाब)
लेखन कार्य:- बचपन से ही हिन्दी कविताएँ लिखने में रुचि थी, और बहुत सारी कविताएँ लिखी भी लेकिन सँजो कर न रखने से खो गईं, इन्हें आज तक इसका मलाल है। इन्होंने अपनी पहली कविता आठ या नौ साल की उम्र में लिखी थी। इन्होंने अभी जितना सँजो कर रखा है ,वो है:-
१. मेरी आवाज भाग-१
२. मानस की पीड़ा ( २० भाग ,श्री रामचरित मानस पर आधारित)
३.सञ्जीवनी ( ३ खण्ड काव्य १. ब्रजबाला ,२.कृष्ण-सुदामा , कृष्ण-गोपी प्रेम )
४.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-१ ( बाल-कथाएँ हिन्दी कविता के माध्यम से)
५.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-२
६.आओ सुनाऊँ एक कहानी भाग-३
७.नन्ही कलियाँ
८.आओ गाएँ ( बहुत छोटी बाल-कविताएँ)
9.खट्टी-मीठी यादें (इन्हीं की न भूलने वाली यादों पर आधारित तथा कुछ रेखाचित्र)
10. मेरी आवाज भाग-२ पर कार्य कर रही हैं |
"मेरी आवाज़ भाग-१" ,"मानस की पीड़ा" ,तथा "सन्जीवनी" ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं तथा रचनाकार पर उपलब्ध हैं | "आओ सुनाऊँ एक कहानी" की बहुत सी कथा-काव्य तथा "नन्ही कलियाँ" और "आओ गाएँ" की कुछ कविताएँ "बाल-उद्यान" में प्रकाशित, कुछ कविताएँ वेब हिन्दी मैग्जीन "कृत्या" में प्रकाशित तथा समय समय पर "दक्षिण भारत" हिन्दी पत्रिका में इनकी कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं। जल्दी ही बाकी सभी पुस्तकें भी ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो जाएँगी।
अब ये अपने पति के साथ बंगलूरु (कर्नाटक) में रहती हूँ, पेशे से हिन्दी अध्यापिका हैं। और इनका एक दो वर्ष पाँच माह का बेटा भी है |
पुरस्कार- रु ३०० का नकद ईनाम, रु २०० की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र।
हिन्द-युग्म ने जितना धैर्यवान पाठक पैदा किया है, वो इसके लिए गौरव की बात की है। दूसरे स्थान के पाठक के रूप में हमने चुना है, बहुत अधिक सक्रिय कवि-पाठक देवेन्द्र कुमार पाण्डेय को जो अक्सर ही यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लेते हैं और इनकी कविताएँ शीर्ष १० में जगह बनाती हैं। इन्हें पुरस्कार स्वरूप मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट की जायेंगी।
क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान पर हमने डॉ॰ रमा द्विवेदी और ममता पंडित को रखा है, जिन्होंने भी हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा और हमारा मार्गदर्शन किया तथा हमारा आत्मबल बढ़ाया। इन्हें भी पुरस्कार स्वरूप रोहतक हरियाणा से प्रकाशित त्रैमासिक हिन्दी साहित्यकि पत्रिका 'मसि-कागद' की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट की जायेंगी।
इसके अतिरिक्त पल्लवी त्रिवेदी, देवेन्द्र कुमार मिश्रा, सुमित भारद्वाज, डॉ॰ अनुराग आर्या, अपूर्ण, ने भी हमें खूब पढ़ा। इनका भी बहुत-बहुत धन्यवाद।
इस माह से हिन्द-युग्म को संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी, डॉ॰ एस॰ के॰ मित्तल, बाल किशन और गिरीश बिल्लोर मुकुल के रूप में नये पाठक मिले हैं। हिन्दी को इनसे भी बहुत उम्मीदें हैं।
हमारे पुराने पाठक शैलेश जमलोकि भी १ जून से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। मतलब हम उम्मीद का आकाश चौड़ा कर सकते हैं।
उन १० कवियों के नाम जिनकी कविताएँ शीर्ष १० (अंत की दो कविताओं का प्राप्तांक लगभग बराबर था इसलिए शीर्ष १० में ११ कविताएँ हैं) में स्थान बनाई हैं और जो एक-एक करके जून माह में प्रकाशित होंगी, वे हैं-
प्रेमचंद सहजवाला
यश
पीयूष तिवारी
पल्लवी त्रिवेदी
अरूण मित्तल 'अद्भुत'
देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
केशव कुमार कर्ण
निखिल सचान
अजीत पाण्डेय
सुरिन्दर रत्ती
उपर्युक्त सभी १० कवियों को कवि शशिकांत 'सदैव' की काव्य-पुस्तक 'दर्द की क़तरन' भेंट की जायेगी।
इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रत्येक प्रतिभागी का उतना ही महत्व है क्योंकि एक के न शामिल होने मात्र से आयोजन की सफलता कम होती है। इसलिए हम सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हैं और निवेदन करते हैं कि सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए बारम्बार भाग लें, इस माह की प्रतियोगिता की उद्घोषणा यहाँ है।
निम्नलिखित कवियों ने भी इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसकी शोभा बढ़ाई।
विनय के॰ जोशी
मृदुल कीर्ति
पंकज रामेन्दू मानव
अभिनव झा
सीमा सचदेव
श्याम सखा 'श्याम'
रेनू जैन
डॉ॰ अनिल चड्डा
नीरा राजपाल
मयंक शर्मा
नागेन्द्र पाठक
प्रशेन क्यावल
मैत्रेयी बनर्जी
सुमीत भारद्वाज
सतीश वाघमरे
रितु कुमारी
वीरेन्द्र आर्या
कमलप्रीत सिंह
डॉ॰ एस॰ के॰ मित्तल
शिखा वार्षने
अमित अरूण साहू
अंजु गर्ग
गोविन्द शर्मा
आलोक सिंह साहिल
सविता दत्ता
रचना श्रीवास्तव
सुरेखा आनंदराम भट्ट
अर्चना शर्मा
ममता पंडित
पूनम
देवेन्द्र शर्मा
पूजा अनिल
सी॰ आर॰ राजश्री
वसेवोलोड पापशेव