माँ का दु:खी होना वाजिब है
क्योंकि
उसने बहुत दिन से
अपने बेटे को
खिलखिलाते नहीं देखा
माँ का दु:खी होना वाजिब है
क्योंकि
वह देखती है
कि जब सब सो जाते हैं
तो जागता रहता है
बस उसका अपना अधेड़ होता बेटा।
और जाने क्या-क्या लिखता रहता है
उसका लिखा माँ पढ़ती है
अखबारों में, पत्रिकाओं में
बेटे के दु:ख
बेटे की लिखी
कविताओं में, नज्मों में,
कहानियों में
हालाँकि
उसे वे सब
बहुत समझ नहीं आती
पर उसके होते हुए
बेटा दु:ख कागजों पर क्यों लिखता है ?
क्यों नहीं बेटा पहले की तरह
दु:खी होकर
उसके आँचल का
सहारा लेता
सोचती है मां
और दुखी हो जाती है
माँ का दु:खी होना सचमुच वाजिब है
--यूनिकवि डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम'
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
केवल इतना ही कहना चाह रहा हूं कि इन परिस्थितियों में निसंदेह मां का दुःखी होना वाजिब ही है।
जबरदस्त पंक्तियां, दोस्त।
सच में मां का दु:खी होना वाजिब है
सच ही कहा श्याम जी,
माँ का दु:खी होना सचमुच वाजिब है!!!!
अंतिम पंक्तियाँ बहुत सही लिखी गई हैं..
धन्यवाद
kitni pyari rachna hai mujhe bahut achchhi lagi
badhai
rachana
बिल्कुल सही कहा आपने - माँ का दु:खी होना सचमुच वाजिब है
यूनिकवि डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' जी ,
आपकी कविता बहुद सुन्दर है..और कथ्य काफी हद तक पहुचने मै सफल भी रही है
परन्तु जब मैंने कविता का शीर्षक पढ़ा तो मन मै जिस तरह की जिज्ञासा पैदा हुई थी.. की क्यों है मा का दुखी होना वाजिब.. तुमारी कविता उस चरम तक नहीं पहुँच पायी..
आप ने विषय बहुत सुन्दर चुना था.. और आप इस बार इस से कई बेहतर लिख सकते थे
PS :- ये मेरी व्यक्तिगत राय है
सादर
शैलेश
क्योंकि
वह देखती है
कि जब सब सो जाते हैं
तो जागता रहता है
बस उसका अपना अधेड़ होता बेटा।
और जाने क्या-क्या लिखता रहता है
बहुत बढ़िया लिखा है. माँ इसी का नाम है.
इस गंभीर कविता में थोड़ी चुटकी :
बेटा पढ़ने लिखने के बदले
ये क्यों कागज काले करता है दुखी होना...
खेद है कि मैं अपनी राम-कहानी कह गया
हालाँकि
उसे वे सब
बहुत समझ नहीं आती
पर उसके होते हुए
बेटा दु:ख कागजों पर क्यों लिखता है ?
क्यों नहीं बेटा पहले की तरह
दु:खी होकर
उसके आँचल का
सहारा लेता
बहुत अच्छा श्याम जी आज बेटे माँ से दूर होते जा रहे है उस पर एक अच्छी कविता
श्याम जी!
एक बार फिर से आपकी रचना ने दिल को छू लिया है।
बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक ’तन्हा’
ekbar fir vajib baat.
alok singh "sahil"
आप सभी ने कविता को इस तरह लिया जैसे मां शिशु को अपनी गोद में लेती है=शुक्रिया...शुक्रिया........
आपका सदा सा
श्यामसखा
क्यों नहीं बेटा पहले की तरह
दु:खी होकर
उसके आँचल का
सहारा लेता
सोचती है मां
और दुखी हो जाती है
माँ का दु:खी होना सचमुच वाजिब है
आधुनिक माम दुखी नहीं होगी, बेटे की रचनाओं को पढ्कर अब उसने प्रोत्साहन देने की क्षमता ही नहीं लिखने की क्षमता भी अर्जित कर ली है.
मां बेटे के लिखने से नहीं उसके दुख से और दुख से मां ,बेटे के बीच आई संवादहीनता से दुखी है राष्ट्रप्रेमी जी-मां के प्रेम को समझे,मां का दुख भी सम्झ जाएंगे।कनिका
अच्छी कविता
atyant samvedansheel aur bhavuk kavita hai.
क्यों नहीं बेटा पहले की तरह
दु:खी होकर
उसके आँचल का
सहारा लेता
kavita achhi to hai hi sath hi sangrahneey bhi !
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