सभी कविताप्रेमियों को ईद और गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ। आज के इस शुभ-अवसर पर हम अगस्त 2010 की यूनप्रतियोगिता के परिणाम लेकर उपस्थित हैं। धीरे-धीरे यह आयोजन अपने 45वें पायदान पर कदम रख चुका है। आज हम इस प्रतियोगिता के 44वें आयोजन के परिणाम की चर्चा कर रहे हैं।
परिणामों की बात करने से पहले हम एक खास प्रतियोगी का जिक्र करना ज़रूरी समझ रहे हैं। जोमयिर जिनी नाम की युवा कवयित्री हिन्द-युग्म की इस प्रतियोगिता पिछले कई महीनों से भाग ले रही हैं। जोमयिर केन्द्रीय विद्यालय नं. १, ईटानगर में कक्ष 10वीं की छात्र हैं। ये गैर हिन्दी भाषी हैं, लेकिन हिन्दी में कविताएँ लिखती हैं। हम इसी महीने इनकी कुछ कविताएँ (प्रतियोगिता वाली हीं) प्रकाशित करेंगे।
अगस्त माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में कुल 55 कविता प्रविष्टियाँ शामिल की गई थी। जजमेंट 2 चरणों में 55 जजों द्वारा कराया गया। पहले चरण के 3 जजों की पसंद के आधार पर 21 कविताएँ दूसरे चरण के 2 जजों को भेजी गईं। आखिरकार सुभाष राय की कविता ने बाजी मारी। इस तरह से हिन्द-युग्म के अगस्त माह के यूनिकवि सुभाष राय चुने गये। सुभाष राय की एक कविता पिछले महीने भी प्रकाशित हुई थी।
यूनिकवि- सुभाष राय
जन्म जनवरी 1957 में उत्तर प्रदेश में स्थित मऊ नाथ भंजन जनपद के गांव बड़ागांव में। शिक्षा काशी, प्रयाग और आगरा में। आगरा विश्वविद्यालय के ख्याति-प्राप्त संस्थान के. एम. आई. से हिंदी साहित्य और भाषा में स्रातकोत्तर की उपाधि। उत्तर भारत के प्रख्यात संत कवि दादू दयाल की कविताओं के मर्म पर शोध के लिए डाक्टरेट की उपाधि। कविता, कहानी, व्यंग्य और आलोचना में निरंतर सक्रियता। देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं, वर्तमान साहित्य, अभिनव कदम, अभिनव प्रसंगवश, लोकगंगा, आजकल, मधुमती, समन्वय, वसुधा, शोध-दिशा में रचनाओं का प्रकाशन। ई-पत्रिका अनुभूति, रचनाकार, कृत्या और सृजनगाथा में कविताएँ। कविताकोश और काव्यालय में भी कविताएं शामिल। अंजोरिया वेब पत्रिका पर भोजपुरी में रचनाएँ। फिलहाल पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय।
आवास-158, एमआईजी, शास्त्रीपुरम, आगरा ( उत्तर प्रदेश)।
फोन-09927500541
यूनिकविता- इतिहास के अनुत्तरित प्रश्न
मैं जब भी वर्तमान से मुठभेड़ करना चाहता हूँ
बार-बार इतिहास अपने निर्मम और विकृत चेहरे
के साथ आकर खड़ा हो जाता है मेरे सामने
अपने तमाम अनबूझे, अनुत्तरित सवालों के साथ
हुक्मरां कहते हैं भूल जाओ इसे, आगे बढ़ो
मत उखाड़ो गड़े मुर्दे, दफ्न रहने दो उन्हें जमीन में
क्योंकि वे उखड़े तो नये खतरे उभरेंगे
दुर्गंध लोगों के दिमागों को गंदा करेगी
परिजनों, पूर्वजों के जिस्म पर घाव देख
लोग अपना गुस्सा भड़कने से रोक नहीं पायेंगे
कब्रिस्तान से सड़कों पर निकल आयेंगे कबंध
एक-दूसरे से उलझते हुए, टकराते हुए
वर्तमान पर भयानक अट्टहास करते हुए
वे डरते हैं कि इतिहास उनके काले चिट्ठे खोल देगा
उनके चेहरे से नकाब नोंच कर फेंक देगा
उन्हें गैर-जिम्मेदार, धूर्त, नंगा और पाखंडी करार देगा
यादें ताजा हो उठेंगी और लहूलुहान हो उठेंगे जिस्म
उन्हें इतिहास इसलिए पसंद नहीं है क्योंकि
उसके पन्नों में वे दिखते हैं हत्यारों के जुलूस को
ललकारते हुए, उनका सरेआम नेतृत्व करते हुए
गांधी के लहू से लिखी इबारत को खारिज करते हुए
चुनौती के अंदाज में नयी स्थापनाएँ अनावृत करते हुए
कि खादी का तलवार से भी रिश्ता हो सकता है
कि अहिंसा को खून से खास परहेज नहीं
कि राजनीति का मतलब है केवल छल-छद्म
कि जनता को कह सकते हो बेवकूफों की भीड़
कि नेता वक्त पर बन सकता है आदमखोर भी
उन्हें इतिहास इसलिए भी नापसंद है क्योंकि
वे तब खामोश रहकर इंतजार करते रहे
जब सरयू का निर्मल पानी थरथरा रहा था
तट पर इकट्ठे लाखों लोगों के घातक तुमुलघोष से
इतिहास का चेहरा जर्द पड़ गया था देखकर
कुल्हाड़ियों, फावड़ों, कुदालों से लैस हमलावरों को
कानून और संविधान को पागलों के एक सरगना ने
जकड़ रखा था अपनी ताकतवर भुजाओं में
गुलाम वर्दियों में कसमसाने का भी साहस नहीं था
वे अपनी बंदूकें कंधे पर संभाले सुकून से
तूफान के गुजर जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे
कई सदियां सिर पर उठाये एक इमारत कांप रही थी
आस-पास के छायादार पेड़ अपनी जड़ों से
खुद को बाँधे हुए मजबूर और बेजान हो गये थे
यकायक भीड़ के पैरों तले रौंदे जाने के भय से
जब समय के एक पल में शताब्दियों की स्मृति
ढहकर बिखर गयी, धूल में बदल गयी
विशाल हिंदुस्तान के सीने, गले और पांव से
जिंदा शहरों के जिस्म से खून टपकने लगा
तब वे कानून की भाषा बोलते सड़क पर आये
वक्त उनके भविष्य पर पंजे गड़ाता हुआ जा चुका था
वे जानते हैं कि उनकी चुप्पी में भी एक आवाज थी
एक निहायत कमीनी, छलभरी चालाक आवाज
वे कुछ पाना चाहते थे इस तरह चुप रहकर
इतिहास के पन्ने पलटे तो यह सच बार-बार
लोगों की हड्डियों में पुराने दर्द की तरह उभरेगा
और वे मचल उठेंगे सबक सिखाने के लिए
उन्हें इतिहास से इसलिए भी एलर्जी है क्योंकि
जब ट्रेन के सिर्फ एक डिब्बे की लपट में
गांधी का समूचा गृहराज्य जल उठा था
तब भी सत्ता की लगाम उन्हीं के हाथ में थी
पर बहाना था उनके पास अपनी विवशताओं का
धुएं से काला पड़ गया था सारा आसमान
अंधी हत्याओं की गंध से बोझिल थीं हवाएं
क्षोभ और पीड़ा से दहकती अहिंसा की धरती
संभाल नहीं पा रही थी अपने सीने में
सैकड़ों बेकुसूर परिवारों के मरे हुए सपने
राजमहल में रची जा रही थीं साजिशें
छुरे तेज किये जा रहे थे अंधेरी रातों में
मुहल्ले-मुहल्ले की गर्दन कतर देने के लिए
त्रिशूलों के मृत्यु-नाद से दबी कातर चीखें
पहुँची तो जरूर होगी उनके कानों तक
फिर भी चुप रह जाने का अक्षम्य अपराध
याद दिलाते हैं रक्तरंजित पन्ने इतिहास के
इतिहास पर किसी का वश नहीं चलता
वह कभी झूठ भी नहीं बोलता
इसीलिए वे डरते हैं इतिहास से
वर्तमान को सहेजने की कोशिश में
विनम्र, निश्छल दिखने का अभ्यास करते हैं
पर शायद वे ठीक से जानते नहीं कि
इतिहास के बिना वर्तमान टिकता नहीं
भविष्य के सपने जमीन पर नहीं आते
इसलिए जब भी वर्तमान की चर्चा होगी
उन्हें इतिहास का सामना करना ही पड़ेगा
पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं-
कैलाश चंद्र जोशी
पियूष पंड्या
आशुतोष माधव
स्नेह सोनकर 'पियूष'
प्रवीण कुमार 'स्नेही'
रोहित रुसिया
विनीत अग्रवाल
संजय कुमार दानगढ़वी
कौशल किशोर
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 3 अन्य कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
सनी कुमार
धर्मेन्द्र मन्नू
आकर्षण कुमार गिरि
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 30 सितम्बर 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। शीर्ष 21 कवियों के नाम अलग रंग से लिखित है।
रवि मिश्र
स्वप्निल तिवारी 'आतिश'
अपर्णा भटनागर
अलोक उपाध्याय
रिक्की पुरी
अनिता निहलानी
विरेन्द्र कौशल
दीपक कुमार
अनिरुद्ध यादव
सूफी
ऋषभ मिश्रा
कृष्ण चंद्र
संगीता सेठी
रजनी
विवेक विमल
ऋतू सरोहा 'आंच'
डा. राजीव श्रीवास्तवा
सुधीर गुप्ता 'चक्र'
गीता 'अरविन्द'
अरविन्द कुरिल
जोमयिर जिनी
अंजू गर्ग
विरेन्द्र
महेंद्र वर्मा
राजेश 'अकेला'
राजेश कश्यप
डा. अनिल चड्ढा
विजय कुमार शर्मा
मृत्युंजय
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
अमृता कौंडल
मोहन बिजेवर
सुमन 'मीत'
राजीव थेपडा
आदर्श मौर्या
दामोदर लाल 'जांगिड'
सोनल चौहान
विजय प्रकाश सिंह
दीपाली संगवान 'आब'
कविता रावत
आँचल सिंह
सीत मिश्रा
नोट- हम यूनिपाठक/यूनिपाठिका का सम्मान वार्षिक पाठक सम्मान के तौर पर सुरक्षित रख रहे हैं। वार्षिक सम्मानों की घोषणा दिसम्बर 2010 में की जायेगी और उसी महीने हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव 2010 में उन्हें सम्मानित किया जायेगा।
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34 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुभाश रय जी व अन्य विजेताओं को बहुत बहुत बधाई। सुभाश राय जी के कविता के लिये निशब्द हूँ लाजवाब प्रस्तुति। बधाई।
इस निर्णय को मैं विनम्रतापूर्बक स्वीकार करता हूं. पर मेरी कविता के साथ जो तस्वीर छपी है, वह मेरी नहीं है.
subhash ji ki kavitaon se guzarana apne main ek itihas se guzarana hi hai.
सुभाष राय जी की कविता वास्तव में इस पुरस्कार के सर्वथा योग्य थी... उन्हें बहुत-२ बधाई और हिन्दयुग्म परिवार को एक और प्रतियोगिता के सफलता पूर्वक संपन्न करने के लिए बधाई.. मैं भी यही कहने आया था कि आपने पिछले माह के विजेता की तस्वीर लगा दी.. ये सुभाष राय जी नहीं हैं..
धव्यवाद, आप ने तस्वीर सही लगा दी.
Shubhash ray ji ki kavita kai dimagi tantuon ko hilati hai..subhash ji badhai sweekaren
बहुत बधाई यूनिकवि सुभाष राय जी को और साधुवाद इस प्रयास को जो प्रतिभाओं को पहचान उनका समादर कर रहा है !
कृपया अन्यथा न लें,मुझे लगता है सुभाष जी की इस कविता को चुनकर हिन्दयुग्म ने अपना मान बढ़ाया है। निसंदेह सुभाष जी अपनी कविता में इतिहास का सवाल उठाकर कल,आज और कल के साथ जो मुठभेड़ कर रहे हैं वह समय का तकाजा है। गंभीर रचनाकारों का दायित्व है कि इस विमर्श को और आगे ले जाएं। सुभाष जी को बहुत बहुत बधाई।
आदरणीय भाई सुभाष जी की
पुरस्कृत कविता में
एक भी भेड़ नजर नहीं आई
सब जगह मौलिकता ही भरी पाई
और दिखलाई दी हर रंग में रंगी रोशनाई
मुक्के (मूठ) तो खूब मारे हैं
वही तो ताकत हैं
जो बरपी बन कर आफत है
पर भेड़ों को मुक्के न मारकर
उन्हें मारे भी नहीं नहीं जाने चाहिए
जबकि असली हकदार वही हैं
मुक्के खाने के।
इतिहास के बहाने
पूरे आजतक को निचोड़ दिया है
विश्वास है वे ऐसे ही निचोड़ते रहेंगे
हमारे नेता इस के सर्वथा काबिल हैं,
उन्हें इस कविता के माध्यम से
पुरस्कृत किया जाना भला लगा है।
मैं लंबी कवितायें नहीं पढ़ पाता लेकिन कुछ कवितायें इस तरह परत दर परत खुलती जाती हैं कि एहसास ही नहीं होता एक लंबी कविता से गुजरने का, बस यही खिंचाव है इस कविता में। विषय में आमंत्रित करती हुई। बहुत बहुत बधाई।
मुबारक़बाद.
बहुत बहुत बधाई सुभाष जी .....
सुबह देखी दूसरी तस्वीर थी तो लौट गयी कि ये कोई और सुभाष राय हैं ...पर आपकी मेल पे फिर आई तो पता चला तस्वीर ही गलत थी .....!!
आपकी कविताओं कि तो पहले ही तारीफ कर चुकी हूँ ....
बहुत ही सुलझी और मेहनत से लिखी गयी होती हैं ....!!
badhai subhashji...aisee kavitaon ka chayan karke 'hindiyugm' ka samman barhaa hai. aapki lambi-vichar-kavitaa is samay ko samajhane k liye paryapt hai. kavitaa jab apne samay ka dard aur apne samay k cheharon ki padtaal karti hai to vah jan-gan-man se jud jatee hai.subhash ki ki kavitaa mey hi vah takat hai ki use sammanit kiyaa jaye.
इस पुरस्कार के असली अधिकारी आप ही थे बहुत-बहुत बधाई
सुभाष जी की यह रचना निसंदेह उन साहित्यकारों को अवश्य पढ़नी चाहिए जो कविता के मरने की बात करते हैं. उनको यह सम्मान दिया जाना, हिंदी कविता को सम्मान देने जैसा है. मेरी बधाई स्वीकारें
सुभाष जी,
बहुत कॉमन सी बात उठाई है आपने अपनी रचना में, नए पन का अभाव है, अक्सर सोशल रचनायें इन्ही विषयों पर लिखी जाती रही हैं, उस् पर रचना इतनी लंबी है कि अमूमन लोग पढ़ने से कतराते हैं, और वाह वाह कर के चले जाते हैं.
एक खास बात और, मैं इस रचना को लेख/आलेख कह सकती हूँ, कविता नहीं..!!
@हिन्दयुग्म.
मैं फिर कहूँगी, मैं इसे आलेख कह सकती हूँ, कविता नहीं. और कविता के मंच पर इसे प्रथम
स्थान पर रखना मुझे पचा नहीं. ये मेरी पर्सनल राय हो सकती है.
या तो फिर ये भी हो सकता है कि कलम उठा कर कुछ भी सोशल लिख दीजिए, और टॉप पर आ जाइये.
माफ कीजियेगा मैं किसी को ठेस पहुचना नहीं चाहती, परन्तु इस तरह सोशल टोपिक पसंद करने वाले लोगो की so called पसंद के चक्कर में बहुत से ऐसे लेखक पीछे छूट जाते हैं, जो करते deserve हैं टॉप पर आना.
@सुबह देखी दूसरी तस्वीर थी तो लौट गयी कि ये कोई और सुभाष राय हैं ...पर आपकी मेल पे फिर आई तो पता चला तस्वीर ही गलत थी .....!!
:)
:)
achchaa lekh likhaa hai aapne...
badhaayi...
बधाई ..... यूनिकवि सुभाष राय जी को बहुत बधाई ..
Deepalee jee, main naheen samajhata ki koi bhee kavita samajik vishay se hatkar ho sakatee hai.jahaan tak pratham sthan par aane ka sawal hai, mera ap se nivedan hai ki agar saamarthy hai to aap ko yah sthan prapt karana chahiye. meree shubhkaamanaayen.
सुभाष जी को बहुत बहुत बधाई.इतिहास से मुठभेड़ करती वर्तमान की यह कविता बहुत से प्रश्नों को छेड़ती है-जो हमें निरुत्तर और निहत्था छोड़ देते हैं.बेहतर...
सुभाष जी ने कुछ अच्छे संस्मरण भी लिखे हैं.उनकी यह साहित्यिक यात्रा फलदायी हो यही कामना है.
हिंद युग्म पर सुभाष राय की फोटो ने असमंजस पैदा किया और हटने से पहले'आगरा' ने रोक लिया /कविता के स्वरुप ने फिर अलगाव पैदा किया परन्तु कविता के शब्द शब्द ने पकड़ा /इतिहास के साथ यह संघर्ष मानवीय संवेदना से भरा है./हार्दिक बधाई/
सुभाष जी,
धन्य है वो निर्णायक जिन्होंने आपका सामर्थ्य पहचाना,
अगर मैं निर्णायक होती तो आलम कुछ और ही होता.
दीपाली जी, मैं किसी काल्पनिक सवाल में नहीं उलझना चाहता, पर आप की ऐसी टिप्पड़ियों के बाद मैंने आप की बेचैनी का कारण जानने की कोशिश की. वह मुझे पता चल गया पर मैं चुप रहूंगा. लोग अपने आप जान लेंगे.
ha ha ha.. Very funny.. Bharam mein jeena alag mazaa hai.. Nhi?
मैं जब भी वर्तमान से मुठभेड़ करना चाहता हूँ,बार-बार इतिहास अपने निर्मम और विकृत चेहरे के साथ मेरे सामनेआकर खड़ा हो जाता है ... हुक्मरान अपने तमाम अनबूझे, अनुत्तरित सवालों के साथ कहते हैं कि इसे भूल जाओ , आगे बढ़ो गड़े मुर्दे मत उखाड़ो , उन्हें जमीन मे दफ़न रहने दो..... क्योंकि वे उखड़े तो नये खतरे उभरेंगे और दुर्गंधलोगों के दिमागों को गंदा करेगी ...अपने परिजनों, पूर्वजों के जिस्म पर घाव देख कर लोग अपना गुस्सा भड़कने से रोक नहीं पायेंगे...और कब्रिस्तान से सड़कों पर कबंध निकल आयेंगे ...एक-दूसरे से उलझते हुए, टकराते हुए.... वर्तमान पर भयानक अट्टहास करते हुए ...वे डरते हैं कि इतिहास उनके काले चिट्ठे खोल देगा और उनके चेहरे से नकाब नोंच कर फेंक देगा.....उन्हें गैर-जिम्मेदार, धूर्त, नंगा और पाखंडी करार देगा...यादें ताजा हो उठेंगी और लहूलुहान हो उठेंगे जिस्म ...उन्हें इतिहास इसलिए पसंद नहीं है क्योंकि उसके पन्नों में वे दिखते हैं हत्यारों के जुलूस को ललकारते हुए, उनका सरेआम नेतृत्व करते हुए....
......................................................................
देखिये भाई साहब..
जहां तक कविता कहने की बात है..जो अपने लिखा है वो सीधा सीधा इस तरह से पढने में आ रहा है....हिंद युग्म पर एक तो कहानी कलश है..एक बैठक भी...जहां इस तरह के विचारोतेजक आर्टिकल छपते हैं...
हमें कविता की कोशिश तक नज़र नहीं आई कहीं...
शायद हमारी ही तरह दीपाली जी को भी कविता की ज़्यादा समझ नहीं है..सो यह स्थान प्राप्त करने का सामर्थ्य भी नहीं है...
आपको एक बार फिर शानदार लेख के लिए बधाई...
मैं जब भी वर्तमान से मुठभेड़ करना चाहता हूँ,बार-बार इतिहास अपने निर्मम और विकृत चेहरे के साथ मेरे सामनेआकर खड़ा हो जाता है ... हुक्मरान अपने तमाम अनबूझे, अनुत्तरित सवालों के साथ कहते हैं कि इसे भूल जाओ , आगे बढ़ो गड़े मुर्दे मत उखाड़ो , उन्हें जमीन मे दफ़न रहने दो..... क्योंकि वे उखड़े तो नये खतरे उभरेंगे और दुर्गंधलोगों के दिमागों को गंदा करेगी ...अपने परिजनों, पूर्वजों के जिस्म पर घाव देख कर लोग अपना गुस्सा भड़कने से रोक नहीं पायेंगे...और कब्रिस्तान से सड़कों पर कबंध निकल आयेंगे ...एक-दूसरे से उलझते हुए, टकराते हुए.... वर्तमान पर भयानक अट्टहास करते हुए ...वे डरते हैं कि इतिहास उनके काले चिट्ठे खोल देगा और उनके चेहरे से नकाब नोंच कर फेंक देगा.....उन्हें गैर-जिम्मेदार, धूर्त, नंगा और पाखंडी करार देगा...यादें ताजा हो उठेंगी और लहूलुहान हो उठेंगे जिस्म ...उन्हें इतिहास इसलिए पसंद नहीं है क्योंकि उसके पन्नों में वे दिखते हैं हत्यारों के जुलूस को ललकारते हुए, उनका सरेआम नेतृत्व करते हुए....
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देखिये भाई साहब..
जहां तक कविता कहने की बात है..जो अपने लिखा है वो सीधा सीधा इस तरह से पढने में आ रहा है....हिंद युग्म पर एक तो कहानी कलश है..एक बैठक भी...जहां इस तरह के विचारोतेजक आर्टिकल छपते हैं...
हमें कविता की कोशिश तक नज़र नहीं आई कहीं...
शायद हमारी ही तरह दीपाली जी को भी कविता की ज़्यादा समझ नहीं है..सो यह स्थान प्राप्त करने का सामर्थ्य भी नहीं है...
आपको एक बार फिर शानदार लेख के लिए बधाई...
मैं जब भी वर्तमान से मुठभेड़ करना चाहता हूँ,बार-बार इतिहास अपने निर्मम और विकृत चेहरे के साथ मेरे सामनेआकर खड़ा हो जाता है ... हुक्मरान अपने तमाम अनबूझे, अनुत्तरित सवालों के साथ कहते हैं कि इसे भूल जाओ , आगे बढ़ो गड़े मुर्दे मत उखाड़ो , उन्हें जमीन मे दफ़न रहने दो..... क्योंकि वे उखड़े तो नये खतरे उभरेंगे और दुर्गंधलोगों के दिमागों को गंदा करेगी ...अपने परिजनों, पूर्वजों के जिस्म पर घाव देख कर लोग अपना गुस्सा भड़कने से रोक नहीं पायेंगे...और कब्रिस्तान से सड़कों पर कबंध निकल आयेंगे ...एक-दूसरे से उलझते हुए, टकराते हुए.... वर्तमान पर भयानक अट्टहास करते हुए ...वे डरते हैं कि इतिहास उनके काले चिट्ठे खोल देगा और उनके चेहरे से नकाब नोंच कर फेंक देगा.....उन्हें गैर-जिम्मेदार, धूर्त, नंगा और पाखंडी करार देगा...यादें ताजा हो उठेंगी और लहूलुहान हो उठेंगे जिस्म ...उन्हें इतिहास इसलिए पसंद नहीं है क्योंकि उसके पन्नों में वे दिखते हैं हत्यारों के जुलूस को ललकारते हुए, उनका सरेआम नेतृत्व करते हुए...
सुभाष राय जी व अन्य विजेताओं को बहुत बहुत बधाई साथ में सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
इतिहास के बिना वर्तमान टिकता नहीं
भविष्य के सपने जमीन पर नहीं आते
इसलिए जब भी वर्तमान की चर्चा होगी
उन्हें इतिहास का सामना करना ही पड़ेगा
ek saargarbhit kavita!
bahut-bahut badhai.
Manoj Bhawuk
www.manojbhawuk.com
Subhash ji bahut bahut badhayi.....Vartmaan se muthbhed mein itihaas ko khoob aade haath liya aapne.....
Kintu samay ki mitti bahut thodi hi uthayi aapne..Shayad bahut purani lashon se durgandh nahi aati...isliye......Gujraat dango ki pida bahut dukhdayi hai.....par godhra ki vibhats ghatna ko Mahaj el dibbe ki lapat kehna bhi bahut saal gaya man ko.. yahan mera abhipray kisi ko galat sahi thehraane ka nahi hai...DOno hi haadse sharmnaak the manavta ke liye....Ek baar swayam hi vichaar kijiyega ....
pun: badhayi
यूनिकवि सुभाष राय जी को बहुत-बहुत बधाई इस बेहतरीन एवं भावमय प्रस्तुति के लिये ।
इसलिए जब भी वर्तमान की चर्चा होगी
उन्हें इतिहास का सामना करना ही पड़ेगा
वर्तमान की नीव इतिहास से जुडी है... और फिर इतिहास को नकारा तो नही जा सकता..
सुन्दर रचना
विचारोत्तेजक भी
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)