प्रतियोगिता की सातवीं कविता की रचयिता स्मिता पाण्डेय वाराणसी (सारनाथ) में रहती हूँ। बचपन से ही साहित्य में रुचि रही है। जब भी किसी बात ने इनके मन को छुआ, बस उसे कविता के रूप में कागज़ पर उतार दिया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा हूँ। पहली कविता छठवीं कक्षा में लिखी थी और अब जीवन पर्यंत साहित्य से जुड़े रहने की इच्छा है। इनकी एक कविता 'तक़लीफ़ तो होती है' पिछले महीने प्रकाशित हो चुकी है।
पुरस्कृत कविता- तुम्हारे इंतज़ार में........
हाँ
बहुत वक़्त बीत गया,
शायद सदियाँ...
ठीक से याद नहीं,
आखि़री बार कब देखा तुम्हें
पर॰॰॰ फिर भी...
तुम जाते ही नहीं,
अभी तक यहीं हो...
मेरी सांसों में!
कल जब छत पर खडी़
अकेली जूझ रही थी
अपनी उदासियों से,
हवा के झोंके की तरह
तुम्ही नें बाहों में
भर लिया था मुझे !
उस दिन
जब सभी मेरे लिये
तालियाँ बजा रहे थे,
खुशी बनकर
तुम्हीं छलक आए थे
मेरी आँखों से !
रात में जब सो नहीं
पा रही थी मैं,
चाँदनी बनकर
तुमने ही सहलाया था
मुझे प्यार से!
मंदिर की भीड़ से
घबराकर जब कोने में
बैठ गई थी मैं,
विश्वाश की तरह
तुम्हीं मेरी बाँहें थामकर
ईश्वर के करीब
ले आए थे मुझे !
उस लाइब्रेरी में,
जहाँ घंटों साथ होते थे हम
आज भी जाती हूँ मैं...
पहले की ही तरह
१० बजते ही
अब भी नज़रें
घडी़ पर चली जाती हैं,
लगता है अभी आओगे तुम
हाथ में किताब लिए...
बार-बार दरवाज़े की ओर
देखती हूँ,
पर तुम नहीं आते !
कभी वैसे ही चले आओ
हाथ में किताब लिए,
मैं आज भी तुम्हें
उसी लाइब्रेरी में मिलूँगी,
तुम्हारे इंतज़ार में..........
प्रथम चरण मिला स्थान- आठवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- सातवाँ
पुरस्कार- कवयित्री निर्मला कपिला के कविता-संग्रह 'सुबह से पहले' की एक प्रति
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30 कविताप्रेमियों का कहना है :
tumhaare intjaar me likhne ki jaroorat to nahi thi,
baaki pyaar aur vishvaas ki upmaayen achchi lagi .
waakayi inki likhi hui kavita bahut hi behtreen hai...dil ko khol kar rakh diya hai
किशोर कलम से भावभरी रचना पाकर अच्छा लगा. शुभकामनाएँ
good one
Avaneesh Tiwari
हर उम्र का एक जुदा आसमान होता है.....ये आसमान भी खूब लगा ...बहुत अच्छे.
अमृता की नज़्म याद आ गयी मै तेनु फिर मिलांगी!
कविता बहुत अच्छी लगी, मुझे ऐसी ही दर्द भरी कविताए पसंद आती है
सुमित भारद्वाज
वाकई अच्छी रचना है ... इतनी कम उम्र और इतना अच्छा लेखन।
ये इंतजार का भाव सुन्दर लगा।
बहुत ही सुंदर रचना,,
बहुत ही कम उम्र में,,,,,,,
बहुत ही अछि लगी बेटा,,,
शाबाश,,ऐसे ही लिखो,,,कमाल लिखते हो आप,,,
magar aapki is rachnaa ko ,aur bhi pahalaa sthaan milna chaahiye tha,
kavita choti aur sundar hai...wakai kabile tareef
----Anupama
स्मिता जी,
बहुत ही अच्छी कविता के लिये बधाई.
मुकेश कुमार तिवारी
यह कविता हिंदी की है या उर्दू की? हिन्दयुग्म तो हिंदी शब्दों को प्रोत्साहन देता है?
कविता कई जगहों पर फ़िल्मी अंदाज़ के संवादों में बदल जाती है. भगवान् भला करे हिन्दयुग्म का और कविता का!
हिंदी वाले-उर्दू वाले ,नुक्ताचीनी में रहे,
पर ग़ज़ल वाला ग़ज़ल में खो गया पीने के बाद,,,
मुझे दुबारा कमेंट करने आना पडा,
अक्सर ही शे'र को उपर से गुजरते देखा है ,,,इसलिए,,,,,
मेरे ख्याल से,,,(और शायद अधिक तरों के ख्याल से,),,
यदि आप बच्ची के लिखे की तारीफ नहीं कर सकते तो चलिए बुराई कर दीजिये,,आपका अधिकार है ,,आपकी समझ है,,,,
मगर कम से कम मासूम को अपना हिंदी उर्दू वाला पाठ तो ना पढाएं,,,,,
कविता में प्रयोग किये सभी शब्द आम आदमी के शब्द हैं,,,,इनसे अधिक इमानदारी से और क्या लिखा जायेगा,,,??
स्मिता बेटे,
एकदम ऐसे ही लिखो ..,..कभी भी आम बोलचाल के शब्दों में से हिंदी उर्दू को छांट कर अलग मत करना....नहीं तो कविता का सारा मजा खो दोगी,,,,,
भले ही कोई हर हाल में आलोचना ही करता रहे,,,,, एकदम ध्यान मत दो,,,
अगर मेरी बात को आजमाना है,,,तो अपनी इसी कविता को इन साहेब की तरह से लिख कर देखो,,,,आपको खुद मालूम हो जायेगा,,,,,
ahsan bhaai ,
abaap theek nahi kar rahen hain ,aap kabhi to dil ki bhi suna kijiye ,hamesha dimaag se kaam nahi chalta ,khaaskar kavita likhte samay ,aap kuch bhi likhen hum sab chupchap hajam kar jaayen dakaar bhi n len aur aap lahoulvilakubbat .
मनु जी ,
गम इस कदर बढे की मै घबरा के पी गया ,
आजकल आपके शेरों में पीना काफी आ रहा है ,बच्चे बिगड़ जायेंगे मनु जी ,कुछ इनका भी तो ख्याल करिए |शेर अच्छा था इसलिए कमेन्ट भी लिख ही दिया |आपकी रश्मि
को लेकर की गयी हौसलाफजाई भी हमे बेहद पसंद आई |शुक्रिया
मनु साहेब ,
आम बोलचाल की भाषा की आड़ में हिंदी शब्दों के प्रयोग न करने से ही हिंदी को उस का अधिकार पूर्ण सम्मान नहीं मिल पा रहा है . हिन्दयुग्म समालोचना का अंतिम पडाव नहीं है.
नीलम जी,
भगवान् साक्षी है सदैव ऋणात्मक tippadiyaan ही नहीं कीं हैं. रचनाओं को खूब खूब सराहा भी है. जो जब जैसा लगा लिख दिया बिना किसी पूर्वाग्रह के.
भाई जान,
आप अपनी दूसरी टिप्पणी में तो काफी संभाले हैं ,,मगर पहली में आपने भी मिले जुले शब्द ही इस्तेमाल किये हैं,,,जब आप अपने कमेंट में वो शब्द नहीं डाल सके जिनकी आप हिमायत कर रहे हैं,,,,,,
तो स्मिता अपनी कविता में कैसे और क्यूँ डाल ले,,,,??
जिस विषय पर मैं कमेंट कर रहा हूँ,,,,उस पर मेरे इतने लम्बे चौडे कमेंट किसी ने डिलीट करवा दिए हैं,,,,,( हिंद युग्म पर नहीं) बहुत से लोग एकदम शुद्ध हिंदी में लिखते हैं,,,हम कभी भी सलाह नहीं देते के थोडा सिंपल लिखो,,,,,अगर अच्छा लगता है तो उन शब्दों का अर्थ ढूंढते हैं,,,,,ना समझ आये तो पूछने में भी कोई बुराई नहीं समझते,,,,,
आप ने लिखा है के बिना किसी पूर्वाग्रह के,,
मुझे नहीं पता के आपने क्यों लिखा और मुझे क्यों नहीं हजम हो रहा,,,,,,खैर,,,
नीलम जी,
आपने जिस चीज का ध्यान दिलाया उसके लिए आभार,,,,मगर फिलहाल तो मुझे ये फिक्र थी के अगर किसी बच्चे ने ऐसी टिप्पणियों से हतोत्साहित होकर कलम छोड़ दी तो क्या होगा,,,,,
शुक्र है के हमने ये पोस्ट दोबारा देख ली,,,,,नहीं तो इस तरह की आलोचना का नन्हें मन पर क्या फर्क पड़ता ये सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है,,,,,
कहा नहीं जा सकता,,,
ना हिंदी में,,,
ना
उर्दू में,,,,,,,,,,,,,
स्मिता बिटिया,
अपनी उम्र के हिसाब से बहुत ही अच्छा लिखा है आपने. अपने को हताश और निराश न होने दो. आपको किसी की नज़र न लगे. बस अपने में हिम्मत और विश्वास रखो और लेखनी जो लिखना चाहे वह लिखो. हिंदी और उर्दू ही तो हम सब बोलते आये हैं हमेशा. यह दोनों ही एक दुसरे में इतने समाये हुए हैं आम जीवन की बोल-चाल में कि हर समय कविता लिखते समय पूरी तरह से अलग नहीं किया जा सकता है इनको. कभी-कभी की बात और रही. कविता लिखने समय भाषा पर हथकडियां नहीं डालीं जातीं और भावों पर कोई पाबंदी नहीं होती. वर्ना कविता और लिखने-पढने वालों का मज़ा किरकिरा हो जाता है. ढेरों प्यार.
humne galti se tumhaara naam kisi comment me rashmi likh diya hai ,maaf karna tumhaara naam to smita hai ,ab nahi bhulenge
protsaahan ke liye sabhi pathkon ko bahut-bahut dhanyavaad...khaaskar manu uncle aur neelam aunti ka...sach mein , ye hindi urdu wali baat...man ko kuch achhee nahi lagi thi...hum bachhe jis mahaul mein padhte hain...wahan baatcheet ke dauran kabhi ye dhyan nahi dete ki shabd hindi hai ya urdu...ya kahin baat ka andaaz filmi to nahi hai...aur kavita mein apni saari bhavna utha k waise k waise hi rakh di thi...hindi-urdu shabdon par dhyan deti to banawat aa jati naa..isiliye...
meri parikshaayein chal rahi hain isliye abhar vyakt karne mein thoda vilambh hua.
अब ये कमेंट देखना और लिखना छोडो,,,,और परिक्षा पर ध्यान दो,,,,
वरना daant भी लगेगी,,,,,,
हिंदी में भी,,
और उर्दू में भी,,,
हा,,हा,,,,हा,,,,,,,,,हा,,,,,,,,,,,,,
स्मिता जी,
मुहब्बत के जिस अहसास को आपने बड़ी संजीदगी से लफ्जों में पिरोया है, उसे पढ़कर मुझे लगता है कि आप सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखतीं बल्कि जीने के लिए लिखतीं हैं.
कविता की आखरी पंक्तियाँ "ख़ुशी बनकर तुम्ही चालक आये थे" भी इस बात का पता देती हैं कि आपमें ऐसा कोई छुपा है जो शायद उम्र भर किसी को तड़पाता रहता है. माफ़ करना यही हालात ऐसी संजीदा कृतियों के लिए ज़रूरी भी है.
कविता यकीनन पुरस्कृत होना ही थी.
बहुत-बहुत मुबारकबाद.
दिनेश "दर्द", उज्जैन (म.प्र.)
तुम कौन सी वाली लिब्रेरी की बात कर रही हो ? मै एक दिन आया था...तुम नहीं मिली मुझे....
हा हा हा...
ऐसे ही मजाक कर रहा हू..
बहुत सुन्दर भावो को लिए है तुम्हारी कविता....
बेहद पसंद आई
सादर
शैलेश
इतनी छोटी सी उम्र इतने अच्छे शब्दों का चयन बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति बहुत-बहुत बधाई
एवं शुभकामनाएं ।
स्मिता पाण्डेय
"मैं आज भी तुम्हें उसी लाइब्रेरी में मिलूँगी"
बहुत ही बेहतरीन ...
शब्दों का आकर्षण ...
अपनेपन का एह्सास ...
bahut achchha ! varanasi ka naam roshan karengi. kaasi sahitya aur shiksha ki nagari....
apki kaivta bahut hi bahtarin hai aur mujha to asa lagta hjai ki jaisa apna mera wayktitava ko hi sabdo ka roop main bayan kar diya ho...
dhanyawada....
hardik subhkamnaya.......
good derd ko shwar dena hi kivata hai. keep it up per derd main dub mat jana.
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