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Tuesday, February 17, 2009

स्मिता पाण्डेय को तक़लीफ़ तो होती है


प्रतियोगिता की दसवीं कविता शायद सबसे कम उम्र की कवयित्री की है। इनसे कम उम्र के कवियों की कविताएँ तो हिन्द-युग्म प्रकाशित हुई हैं, लेकिन ये सबसे युवा कवयित्री हैं। कवयित्री स्मिता पाण्डेय वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय में बी॰ए॰ प्रथम वर्ष की छात्रा हैं। इनकी बचपन से ही साहित्य में रुचि रही। जब भी किसी बात ने इनके मन को छुआ, बस उसे कविता के रूप में काग‍‌ज़ पर उतार दिया। पहली कविता छठवीं में लिखी थी और अब जीवन पर्यंत साहित्य से जुड़े रहने की इच्छा है।

पुरस्कृत कविता- तक़लीफ़ तो होती है

मुझे पता है
जिंदगी हमेशा एक सीधी
लकीर पर नहीं चलती।
मैंने अक्सर देखा है
कलियों के खिलने पर
फ़िज़ा की रौनक
और एक दिन उसका
"पूजा" या "अरथी" के नाम पर
तोड़ लिया जाना।
मुझे पता है,
पर तकलीफ़ तो होती है।
मैं जानती हूँ
दुनिया के लिए
कोई अपना नहीं होता।
मैंने अक्सर देखा है,
धूप में पेड़ की छाँव में
खड़े लोग,
और सर्द रातों में
उसकी बाँहे काट कर
जला दिया जाना।
मैं जानती हूँ,
पर तकलीफ़ तो होती है।
मैं समझती हूँ,
दिल की सुनना,
हमेशा सही नहीं होता।
मैंने अक्सर देखा है
दीए की रौशनी पर
पतंगे का मोहित होना ,
और उसी की लौ से
जलकर उसका मर जाना।
मैं समझती हूँ,
पर तकलीफ़ तो होती है।


प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- २, ६॰७५, ६॰७५
औसत अंक- ५॰१६६७
स्थान- तेरहवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ६, ५॰१६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰३८८८
स्थान- पाँचवाँ


अंतिम चरण के जजमेंट में मिला अंक-
स्थान- दसवाँ
टिप्पणी- सिर्फ़ शब्द और संवेदनायें ही अच्छी कविता नहीं रच सकती, उसके भावावेग और अंतर्वस्तु में संतुलन के लिये गहरा जीवनानुभव और पका हुआ इन्द्रियबोध भी उतना ही जरूरी कारक है कविता को प्रभावी और आत्मीय बनाने के लिये। साथ ही कवि की आत्मबद्धता से कविता जितनी मुक्त होगी उतनी ही वह व्यापक हो पायेगी और उसका सामाजिक मूल्य उसी अनुपात में बढ़ता चला जायेगा।


पुरस्कार- ग़ज़लगो द्विजेन्द्र द्विज का ग़ज़ल-संग्रह 'जन गण मन' की एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।

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22 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

मैंने अक्सर देखा है
दीए की रौशनी पर
पतंगे का मोहित होना ,
और उसी की लौ से
जलकर उसका मर जाना।
मैं समझती हूँ,
पर तकलीफ़ तो होती है।

" सुंदर अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत शुभकामनाये"

Regards

Unknown का कहना है कि -

मैं जानती हूँ
दुनिया के लिए
कोई अपना नहीं होता।
मैंने अक्सर देखा है,
धूप में पेड़ की छाँव में
खड़े लोग,
और सर्द रातों में
उसकी बाँहे काट कर
जला दिया जाना।
मैं जानती हूँ,

अच्छी कविता
फूल पेड और पतंगो के लिए संवेदना कविता की सुन्दरता को बढाता है

Shamikh Faraz का कहना है कि -

smita ji mujhe aapki kavita bahut pasand aai. khaustor par aapne jo misal di hain wo. agr waqt mile to mera blog bhi padhen. dhanyavad

manu का कहना है कि -

dam daar kavitaa..........
smitaa ji ko badhaai.....
is kavitaa ko sthaan aur pahle milnaaa chahiye tha....

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत बढ़िया स्मिता जी.. बहुत अच्छा लिखा आपने..
बधाई...

Anonymous का कहना है कि -

संवेदना से भरी सुंदर कविता
बधाई
लिखती रहिये कविता और भी सुंदर हो जायेगी
रचना

सुनीता शानू का कहना है कि -

एक बेहतरीन और संवेदनशील कविता...सचमुच तकलीफ़ तो जरूर होती है...हमेशा ऎसे ही लिखती रहें...शुभकामनाऎं.

अभिषेक आर्जव का कहना है कि -

सुंदर कविता ! बहुत ही सुंदर ढंग से जीवन के विरोधाभासों को निरुपित किया है !

अभिषेक आर्जव का कहना है कि -

और फिर यहाँ कविता प्रकाशित हुयी इसके लिए भी बधाईयाँ !

--A STUDENT,BA-III,LINGUISTICS,BHU.

Anonymous का कहना है कि -

आपकी कविता मुझे तो अच्छी लगी!और भावना को भी समझ पाई हूँ!बहुत-२ बधाई!

संगीता स्वरुप ( गीत ) का कहना है कि -

स्मिता,
बहुत कम उम्र में आपने ज़िन्दगी का फलसफा बयां किया है..काफी कुछ अनुभव बांटा है आपने. फूल पेड़, पतंगे के माध्यम से बहुत कुछ कह रही हैं. पढ़ना अच्छा लगा.
बधाई

Ria Sharma का कहना है कि -

उत्तम प्रयास स्मिता जी
लिखतीं रहें

बधाई !!!

Unknown का कहना है कि -

is umr me itni taqleef ,itni behtareen bhavovyakti ,jindgi me
tarkki ke sabhi raaste khul jaay ,tumhaare liye ,isi umeed ke saath .

Himanshu Pandey का कहना है कि -

बहुत सारी अनुभूतियां व्यक्त हो गयीं हैं यहां. कविता के साथ जरूरी है कि वह व्यापक सरोकार की कविता हो बजाय आत्मबद्ध अभिव्यक्ति के.
आपकी इस कविता ने प्रभावित किया, और अच्छा लग रहा है इतनी छोटी-सी उम्र में हिन्द-युग्म का पुरस्कार.

क्या स्मिता बनारस की ही रहने वाली भी हैं, अथवा अध्ययन ही हो रहा है वहां?

आलोक साहिल का कहना है कि -

स्मिता जी,
आपकी तकलीफ से इनकार नहीं किया जा सकता...
यही तो कवि मन है जिसे इन चीजों से तकलीफ हो जाती है और फ़िर कोई कविता जन्म ले लेती है...
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति..आगे और भी अच्छा लिखे इसी कामना के साथ
आलोक सिंह "साहिल"

आलोक उपाध्याय का कहना है कि -

Smita ji bahut khoob...


Ek gaur se dekho to dikhne wala dard bayan kiya hai aapne


aapki ki ye kavita sabko aur aap ko mubark ho

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

इतनी कम उम्र में इतनी गहरी सोच....
प्रशंसनिए है और बधाई के योग्य है.....

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

आह... तकलीफ तो सचमुच बहुत होती है..

और तुम्हारी कविता पढ़ कर...वाकई उसका एहसास कुछ बढ़ ही गया..

बहुत सुन्दर..और सार्थक रचना है..

सादर
शैलेश

सदा का कहना है कि -

मुझे पता है
जिंदगी हमेशा एक सीधी
लकीर पर नहीं चलती।
मैंने अक्सर देखा है
कलियों के खिलने पर
फ़िज़ा की रौनक
और एक दिन उसका
"पूजा" या "अरथी" के नाम पर
तोड़ लिया जाना।
मुझे पता है,
पर तकलीफ़ तो होती है

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति बधाई

श्याम जुनेजा का कहना है कि -

ek kavi ki chahey jo bhi umar ho par uske pas har umar ka man hota hai

kaviman to nisarg se prapt hota hai par kavita ka kase jana
hamari mehnat par nirbhar karta hai

Anonymous का कहना है कि -

bahut sundar

murar का कहना है कि -

bhut kubsurat rachna hai

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