'सम्भावना डॉट कॉम' का विमोचन करते केदारनाथ सिंह, आनंद प्रकाश और शैलेश भारतवासी
आप इस पूरे कार्यक्रम को सुन भी सकते हैं, आपको ऐसा प्रतीत होगा कि आप भी कार्यक्रम में उपस्थित हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें-
कुल प्रसारण समय- 1 घंटा 37 मिनट । अपनी सुविधानुसार सुनने के लिए यहाँ से डाउनलोड करें।
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19वाँ विश्व पु्स्तक मेला के दौरान 6 फरवरी 2010 को हिन्द-युग्म ने अपना वर्ष 2009 के वार्षिकोत्सव का आयोजन किया, जिसमें वर्ष 2009 में मासिक प्रतियोगिता यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता से चुने गये 12 यूनिकवियों को सम्मानित किया गया, 38 यूनिकवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह 'सम्भावना डॉट कॉम' का विमोचन हुआ और कुछ यूनिकवियों का काव्यपाठ भी हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी के मूर्धन्य कवि केदारनाथ सिंह ने की। 'सम्भावना डॉट कॉम' पर टिप्पणी करने के लिए प्रसिद्ध आलोचक आनंद प्रकाश और कवि मदन कश्यप मौज़ूद थे। संचालन निखिल आनंद गिरि ने किया।
इंटरनेटीय समूह हिन्द-युग्म दिसम्बर 2008 से वार्षिकोत्सव मनाना आरम्भ किया है। इस आयोजन के माध्यम से हिन्द-युग्म अपनी गतिविधियों से इंटरनेट के बाहर की दुनिया को परिचित कराना चाहता है। वर्ष 2008 के वार्षिकोत्सव में हिन्द-युग्म ने उपस्थित दर्शकों को हिन्दी (यूनिकोड) टाइपिंग, ब्लॉग मेकिंग के बारे में जानकारी दी थी। वरिष्ठ कथाकार राजेन्द्र यादव को मुख्य अतिथि बनाया था ताकि वे भी हिन्दी की इंटरनेटीय परम्परा का करीब से साक्षात्कार कर सकें और हिन्द-युग्म को उनका मार्गदर्शन मिल सके कि इसे किस तरह से आगे बढ़ना चाहिए।
चूँकि हिन्द-युग्म साल 2010 के विश्व पुस्तक मेले में शिरकत कर ही रहा था तो तय किया गया कि इसी दौरान वर्ष 2009 का वार्षिकोत्सव मनाया जाय ताकि बहुत बड़े जन समुदाय तक अपनी पहुँच बनाई जा सके। हिन्द-युग्म ने 'इंटरनेटीय साहित्य गैरस्तरीय है' मिथक को तोड़ने के लिए hindyugm.com पर पिछले 4 सालों में प्रकाशित 38 सम्भावनाशील कवियों की प्रतिनिधि कविताओं को 'सम्भावना डॉट कॉम' को प्रकाशित किया, जिसका लोकार्पण वार्षिकोत्सव में ही किया जाना तय किया गया।
कार्यक्रम की औपचारिक शुरूआत अतिथियों को पुष्पगुच्छ और स्मृति-चिह्न भेंट करके हुई। इसके बाद यूनिकवि अखिलेश श्रीवास्तव ने काव्यपाठ किया। अखिलेश श्रीवास्तव ने अपनी 'बहन' और 'विदर्भः कर्जे में कोंपल' कविताओं का पाठ किया। इसके पश्चात संचालक निखिल आनंद गिरि ने आकांक्षा पारे को काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया। आकांक्षा ने 'मुक्तिपर्व', 'औरत के शरीर में लोहा' आदि कविताओं का पाठ किया।
कार्यक्रम के अगले चरण में 'सम्भावना डॉट कॉम' का विमोचन वरिष्ठ कवि केदरानाथ सिंह, प्रसिद्ध आलोचक आनंद प्रकाश और इस संग्रह के संपादक शैलेश भारतवासी ने किया। इस संग्रह में 38 नेटारूढ़ी कवियों की प्रतिनिधि कविताओं को संकलित किया गया है। इस संग्रह में हिन्द-युग्म पर प्रकाशित 6 नेपाली कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया है।
'सम्भावना डॉट कॉम' पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध आलोचक आनंद प्रकाश ने कहा कि निश्चित रूप से मेरे लिए यह नया अनुभव है। अब तक हम कविताओं को या तो किसी संकलन में पढ़ते थे या किसी पत्रिका में, लेकिन मेरे लिए यह पहली बार है कि ये कविताएँ पहले से ही नेट पर प्रकाशित हैं और हम इसे पुस्तक के रूप में देख रहे हैं। आमतौर पर लोग नये का विरोध करते हैं, लेकिन मैं इस नये प्रयोग का स्वागत करूँगा। इंटरनेट तकनीक में असीमित संभावनाएँ हैं और मेरे ख्याल से इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना होगा ताकि वे भी अपनी रचनाओं को बड़े पाठकवर्ग तक पहुँचा सकें।
उन्होंने कहा कि मैं इसी संग्रह की भूमिका से कुछ बातों का उल्लेख करना चाहूँगा जिससे मेरी बात आगे बढ़ेगी। उन्होंने भूमिका में लिखित एक वाक्य 'बाज़ार का शिकार मनुष्य' पर अपनी मतभिन्नता भी व्यक्त की और कहा कि यदि हम खुद को बाज़ार का शिकार कहते हैं तो इसका मतलब यह है कि बाज़ार एक बाहरी तत्व है, वो हमसे अलग है। मेरे ख्याल से इस पर दुबारा सोचने की ज़रूरत है।
आनंद प्रकाश ने 38 के 38 यूनिकवियों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि और कार्यक्षेत्र का बकायदा उल्लेख करते इस बात को रेखांकित किया कि इस संग्रह में संकलित लगभग सभी कवि हिन्दी साहित्य से पाठ्यक्रम के तौर पर नहीं जुड़े हैं। इसका मतलब की संवेदना की खेती करने का अधिकार केवल विश्वविद्यालयों के हिन्दी प्रोफेसरों या लिटरेचर के विद्यार्थियों को नहीं है और इस बात की पुष्टि इस संग्रह में संकलित कविताएँ करती भी हैं। आनंद प्रकाश जी ने कुछ कविताओं की पंक्तियों को पढ़कर उनकी तारीफ की और आलोचक की दृष्टि से कुछ सवाल खड़े किये, जिसमें अखिलेश श्रीवास्तव की 'विदर्भः कर्जे में कोंपल;, 'हँसी', अनुराधा श्रीवास्तव की 'नारी क्यों मौन रहती है', अपूर्व शुक्ल की 'समय की अदलत में', 'इक्कीसवीं सदी का भविष्य' आदि कविताओं की पंक्तियों का उल्लेख किया।
निखिल आनंद गिरि ने मनीष वंदेमातरम् की एक कविता 'इस फागुन मेरे गाँव ज़रूर से ज़रूर आना' का पाठ किया। कार्यक्रम को एकरसता की स्थिति से बचाने के लिए संभाषणों के बाद काव्यपाठ रखा गया था। गौतम राजरिशी ने अपनी ग़ज़ल 'चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से' को गाकर प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के मध्य में इस कार्यक्रम के एक और अतिथि कवि मदन कश्यप का आना हुआ। उनके स्वागत के बाद कार्यक्रम आगे बढ़ा। इसके तुरंत बाद साल 2009 के यूनिकवियों का सम्मान हुआ। सम्मान-पत्र स्वीकार करने के लिए मुकेश कुमार तिवारी, अखिलेश कुमार श्रीवास्तव, अपूर्व शुक्ल और रवीन्द्र शर्मा 'रवि' उपस्थित थे। सभी यूनिकवियों को यह सम्मान-पत्र शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰प्र॰) द्वारा दिया गया। सभी कवियों को सम्मान-पत्र के साथ-साथ उपहार-पत्रक भी दिये गये, जिन्हें सिहोर वापिस भेजकर यूनिकवि रु 1000 मूल्य तक की पुस्तकें इनाम स्वरूप प्राप्त कर सकते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने कहा कि मैं इन कविताओं को एक आस्वादक(रसिक) के रूप में पढ़ना चाहूँगा। युवा कवियों का नया संकलन देखो तो जल्दी मत करो। प्रतीक्षा करो, उन्हें फलने दो, बढ़ने दो। आलोचना के मूल्य और मापदंड प्रतीक्षा करें। ये कविताएँ इक्कीसवीं सदी की आवाज़ें हैं, नई आवाज़ें हैं, मैं इन्हें उँगली नहीं दिखाऊँगा, मैं इनका स्वागत करूँगा।
केदारनाथ जी ने आगे कहा पिछले साठ-पैसठ वर्ष से मैं कविता को देख-पढ़-समझ रहा हूँ, लेकिन जब मैंने इन कविताओं की भाषा और उसके तेवर को देखा तो थोड़ा चौका कि जो प्रसाद-पंत-निराला के समय की भाषा थी, और जो आपकी भाषा है, कितनी लम्बी छलांग है। हिन्दी भाषा तो पिछले 100 सालों में बनी है, कविता की भाषा तो अब तैयार हुई है। मुझे लगता है कि आपके पास कविता लिखने के लिए भाषा तैयार है। आपकी कविताओं का तेवर अलग है, कहने के अंदाज़ में थोड़ा नयापन है, पृथक हैं आप। इस संग्रह में कई धरातल की कविताएँ हैं। कई तरह की शैलियाँ हैं। जब कविताएँ आपका हाथ पकड़ लें, जाने न दें तो समझो कि कविता सफल है। इस संग्रह की कई कविताओं ने मुझे रोका-टोका। कुछ ऐसे कवि जिनमें खास तरह की प्रौढ़ता दिखाई पड़ती है। नाम तो कई हैं, लेकिन मैं खास तौर से गौरव सोलंकी की चर्चा करना चाहूँगा। इनकी कविताओं में क्षितिज तक पहुँचने के बाद की प्रौढ़ता का एहसास होता है।
अपने वक्तव्य में केदारनाथ सिंह ने गौरव सोलंकी की कविता 'जरा सी अनपढ़ता और बहुत सारी बेवकूफी के लिए' और पावस नीर की कविता 'जुलाई का पहला हफ्ता' को उपस्थित दर्शकों को पढ़कर भी सुनाया। (अपनी टिप्पणियों के साथ)
कार्यक्रम के अगले चरण में उमेश पंत ने 'कश्मीर' कविता, अपूर्व शुक्ल ने 'समय की अदालत में' कविता और देवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने 'आयल वेलेन्टाइन' कविता का पाठ किया।
अंत में हिन्द-युग्म के वरिष्ठ सदस्य प्रेमचंद सहजवाला ने उपस्थित अतिथियों और दर्शकों को धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में हिन्द-युग्म के सदस्यों के अलावा हास्य कवयित्री सरोजिनी प्रीतम, विदेश से हिन्दी साहित्य साधना में रत युवा कवयित्री कविता वाचक्नवी जैसे गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।
तस्वीरों में-
कार्यक्रम की शुरूआत पहले मंच सजाते हिन्दयुग्मी
संचालक निखिल आनंद गिरि
कार्यक्रम की शुरूआत में उपस्थित दर्शक
मंच पर अतिथियों को बिठाते सफादक शैलेश भारतवासी
केदारनाथ सिंह और आनंद प्रकाश
दर्शक
दर्शक
मुख्य अतिथि केदारनाथ सिंह को स्मृति-चिह्न और पुष्पगुच्छ भेंट करतीं नीलम मिश्रा
मुख्य वक्ता आनंद प्रकाश को स्मृति-चिह्न और पुष्पगुच्छ भेंट करतीं आकांक्षा पारे
काव्यपाठ करते यूनिकवि अखिलेश कुमार श्रीवास्तव
काव्यपाठ करतीं युवाकवयित्री आकांक्षा पारे
विमोचनोपरांत सम्भावना डॉट कॉम पर अपने हस्ताक्षर दर्ज करते मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता
सम्भावना डॉट कॉम की सहस्ताक्षरित प्रति ग्रहण करते युवा कवि प्रमोद कुमार तिवारी
अपना वक्तव्य देते आनंद प्रकाश
काव्यपाठ करते मेजर गौतम राजरिशी
यूनिकवि सम्मान ग्रहण करते मुकेश कुमार तिवारी
यूनिकवि सम्मान ग्रहण करते अपूर्व शुक्ल
यूनिकवि सम्मान ग्रहण करते रवीन्द्र शर्मा रवि
यूनिकवि सम्मान ग्रहण करते अखिलेश कुमार श्रीवास्तव
काव्यपाठ करते देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
हिन्दी युग्म के उद्देश्यों व गतिविधियों ने यह
प्रमाणित कर दिया है कि इण्टरनेट का साहित्य मात्र साहित्य होता है, माध्यमों के बदल जाने से उसमें कोई हीनता नहीं आ जाती है।
सर्वप्रथम मैं हिन्दयुग्म के सभी सदस्यों और हिन्दयुग्म से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी हिन्दी के साधकों से क्षमा प्रार्थी हूँ कि मैं इस वार्षिकोत्सव में उपस्थित नही हो पाया...तत्पश्चात दिल से बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ कि अनुपस्थित रहने के बावजूद सारे कार्यक्रम का विवरण मुझे आप लोगों के माध्यम से मिला...हिन्दी के लिए हिन्दयुग्म के सराहनीय कार्य की जितनी प्रशंसा की जाय कम है... भारत के सभी लोगों के लिए यह एक गर्व की बात है....सभी सदस्यों को बहुत बहुत बधाई....बस ऐसे ही हिन्दयुग्म सफलता के शिखर को छूती रहें. शुभकामनाएँ!!!
कार्यक्रम की बधाई.
गौतम राजर्षि और देवेन्द्र कुमार पाण्डेय, इन दोनों कैप्शन में एक ही चित्र दो बार लग गया है, कृपया ठीक कर लें.
यह आधुनिक तकनीक का ही कमाल है कि उस दिन के हर पल को हम ज्यों का त्यों यहाँ देख-सुन सकते हैं. पहले किसी कार्यक्रम की अखबारी रिपोर्टिंग में काट-छांट या अतिशयोक्ति को देखकर मन खिन्न होता था लेकिन अब यह शिकायत किसी को नहीं होगी ऐसा लगता है.
"कल की मेरी कमी आज मुझे ही खल गयी"
काश मैं उस घड़ी का हिस्सा होता .....
हिंदी युग्म का शत शत धन्यवाद
मैं हिंद -युग्म का वार्षिकोत्सव में सम्मान लेने के लिए नहीं आ सकी . काश !दूरियां --------
"मैं गया वक्त नहीं हूँ ,लोट के न आ सकूँ ."
सारा सचित्र वृत्तान्त पढ़ा ,सुना .प्रेरणाप्रद चलचित्र की तरह लगा .
हिंद -युग्म को जग में अपनी मौलिक सोच ,लक्ष्यों से सफलता का उत्कृष्ट सौपान मिले .
सभी प्रतिभागियों को बहुत-बहुत बधाई! आनंद आ गया वहां के सामारोह की झलकियां देखकर... काश वार्षिकोत्सव पुस्तक विमोचन के बाद तुरंत होता तो हम भी उन सभी प्रतिभागियों की कविताओं को रुबरु सुन पाते जिन्हें साईट पर पढना अच्छा लगता है।
सभी प्रतिभागियों को बहुत-बहुत बधाई, समारोह के समाचार पढ़कर एवं झलकियाँ देख बहुत ही आनंद आया , एक बार फिर से हिंद युग्म परिवार एवं सभी को बहुत बहुत बधाई , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
डा.रमा द्विवेदी.....
हिन्द युग्म के आयोजन की जानकारी पढ़कर आयोजन की गरिमा का स्वत: ही भान हो जाता है। हिन्द युग्म प्रगति पथ पर सदैव अग्रसर रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ सभी सम्मानित कवियों को बधाई...
डा.रमा द्विवेदी.....
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