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Tuesday, February 16, 2010

बिकाऊ शहर में हर ओर अब बाज़ार बाक़ी हैं


सभी सपने नहीं टूटे अभी दो चार बाकी हैं
कहो अश्कों से आँखों में अभी अंगार बाकी हैं

खुदाया ये तेरी दुनिया में इतना फर्क सा क्यों है
कहीं पर भूख बाकी है कहीं ज़रदार बाकी हैं

खरीदारी बची है या बचे हैं बेचने वाले
बिकाऊ शहर में हर ओर अब बाज़ार बाक़ी हैं

अभी भी ज़िन्दगी का जश्न हम मिलकर मनाते हैं
हमारे देश में अब भी कई त्यौहार बाक़ी हैं

हमे हैरान होकर देखते हैं देखने वाले
मिटाया है हमे हर बार हम हर बार बाक़ी हैं

यूनिकवि-रवीन्द्र शर्मा 'रवि '

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजना का कहना है कि -

आःह्ह....लाजवाब.....सिम्पली ग्रेट !!!

हर शेर मन बाँध गया और अपने आप ही दादों की झड़ी लग गयी...
लाजवाब...लाजवाब...लाजवाब ग़ज़ल....किस शेर को तारीफ के लिए चुनुं और किसे छोडूँ,समझ नहीं आरहा...बेहतरीन रचना...

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

एक दमदार ग़ज़ल के लिए बधाई |

अवनीश

भारतीय नागरिक - Indian Citizen का कहना है कि -

शानदार है. यूनिकवि शब्द से मेरा परिचय नहीं हुआ. कृपया बतायें.

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

वाह! दमदार गज़ल.
..बधाई.

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

Indian Citizen,

unikavi ke baare mein jaanne ke liye isse padhein:

http://niyam.hindyugm.com/2007/01/blog-post.html

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

हमे हैरान होकर देखते हैं देखने वाले
मिटाया है हमे हर बार हम हर बार बाक़ी हैं

लाजवाब ग़ज़ल बधाई!!

rachana का कहना है कि -

हमे हैरान होकर देखते हैं देखने वाले
मिटाया है हमे हर बार हम हर बार बाक़ी हैं
sahi kaha aap ne .kuchh to hai humme .अभी भी ज़िन्दगी का जश्न हम मिलकर मनाते हैं
हमारे देश में अब भी कई त्यौहार बाक़ी हैं
bahut pyari baat
aap ko badhai ho itni sunder gazal ke liye
rachana

manu का कहना है कि -

मुक्त कंठ से प्रशंशा रवि जी...
वाह ..वाह..वाह..........

मतले से लेकर आखिरी शे'र गौर करने काबिल...

Anonymous का कहना है कि -

हमे हैरान होकर देखते हैं देखने वाले
मिटाया है हमे हर बार हम हर बार बाक़ी हैं
सबसे खूबसूरत शेर...वैसे पूरी गज़ल अपने आप में दमदार है। मजा आ गया नयी बात है..हर बार..हर शेर में...बहुत-बहुत बधाई रवि जी!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

खुदाया ये तेरी दुनिया में इतना फर्क सा क्यों है
कहीं पर भूख बाकी है कहीं ज़रदार बाकी हैं

खरीदारी बची है या बचे हैं बेचने वाले
बिकाऊ शहर में हर ओर अब बाज़ार बाक़ी हैं
लाजवाब गज़ल है रवि जी को बधाई आपका धन्यवाद्

Anonymous का कहना है कि -

अभी भी ज़िन्दगी का जश्न हम मिलकर मनाते हैं
हमारे देश में अब भी कई त्यौहार बाक़ी हैं

बहुत ही सुन्दर पंक्तिया, रविजी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

अति Random का कहना है कि -

मिटाया है हमे हर बार हम हर बार बाक़ी हैं
sach he to hai ..

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