कहो
तुम कब आओगे
अब तो
पानी में सूरज बुझ चुका
बूढ़ा बरगद
चौपाल से कट चुका है
पनघट के
प्यासे-चटके होंठों से टपकता लहू
धूल बन
गलियों-गलियों भटकता रहा
हवाओं में लगी
नफरत की गाँठ खोलने
क्या तुम आओगे
घर में
ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है
पगडण्डी पर ख़ामोशी
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है
चिड़ियाँ भी अब
फुसफुसा के बोलती हैं
क्या तुम आओगे
इस डर की चुप्पी को आवाज देने
या तुम आओगे
बहते हुये
चाँद के पानी में
ढल के
ओबामा के शब्दों में
भारत-अमेरिका की बातचीत में
फॉरेन रिटर्न का तमगा लिए
सुख-चाशनी की चन्द बूँदे
फटे आँचल में टपकाते
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
उनको अग्नि देने
कहो कब आओगे?
कवयित्री- रचना श्रीवास्तव
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
कहो
तुम कब आओगे
अब तो
पानी में सूरज बुझ चुका
बूढ़ा बरगद
चौपाल से कट चुका है
इंतजार की हद हो गई...बहुत ही खूबसूरत रचना जी...बहुत-बहुत बधाई आपको!
कहो
तुम कब आओगे
अब तो
पानी में सूरज बुझ चुका
बूढ़ा बरगद
चौपाल से कट चुका है
इंतजार की हद हो गई...बहुत ही खूबसूरत रचना जी...बहुत-बहुत बधाई आपको!
ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है
पगडण्डी पर ख़ामोशी
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है
चिड़ियाँ भी अब
फुसफुसा के बोलती हैं
क्या तुम आओगे
प्रेम और इंतज़ार की एक बेहतरीन अभिव्यक्ति...बढ़िया कविता....प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रचना जी
चाँद के पानी में
ढल के
ओबामा के शब्दों में
भारत-अमेरिका की बातचीत में
फॉरेन रिटर्न का तमगा लिए
सुख-चाशनी की चन्द बूँदे
फटे आँचल में टपकाते
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
बहुत सुन्दर कविता रचना जी !
आप ने इंतजार के दर्द को बहुतम सुंदर तरीके से लिखा है
कविता की एक एक लाइन बहुत सुंदर है
बधाई
सोना मेहरा
प्रतीक्षा की लम्बी अवधि की पीड़ा तथा तिल तिल कर घुलते हुए रिश्ते। प्रतिदिन के साथी सूरज,बरगद,चिड़िया,हवा,चोपाल सभी तो हताश हो गए हैं लेकिन चाँदी की कशिश ने प्रवासी को बाँध के रखा है। रचना जी, प्राकृतिक बिम्बों द्वारा आज के युग की इस परिस्थिती को अत्यन्त हृदय स्पर्षी शब्दों में पिरोया है आपने। बहुत गम्भीर अर्थ लिये है यह रचना । बहुत बहुत बधाई ।
शशि पाधा
पनघट के
प्यासे-चटके होंठों से टपकता लहू
धूल बन
गलियों-गलियों भटकता रहा .....
हवाओं में लगी
नफरत की गाँठ खोलने.....
ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है ....
पगडण्डी पर ख़ामोशी
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है....
सुख-चाशनी की चन्द बूँदे
wah kya baat hai sukh chashni shabd chunav jabardast hai
फटे आँचल में टपकाते
या आओगे तब....
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
abhilashaon ke chuk jaane par bhi kya intezar khatm ho payega?
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
उनको अग्नि देने
कहो कब आओगे?
रचना जी....शब्दों का चुनाव अच्छा कहू या भावों का बहाव अच्छा कहूं .बस आपकी कविता के कायल हो गए...हर शब्द में इंतज़ार की खामोश उदासी बोलती है....बहुत खूबसूरत रचना है...अपने- पराये सब के इंतज़ार को इतनी सुंदर अभिव्यक्ति देने पर बधाई
पढ़ कर निशब्द हूँ...
anant peeda ka samavesh hai aur aakhiri panktiyan to kavita ka charam hain.........great.
kavita hai ki chamatkaar ! Bahut achchi abhivyakti...shabaash...
vyakti bahut sunder abhivyakti hai rachna ji sari ki sari kavita bhavmay hai dil ko chuti hai par yeh panktiyan bahut hi achchi lagi
घर में
ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है
पगडण्डी पर ख़ामोशी
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है
चिड़ियाँ भी अब
फुसफुसा के बोलती हैं
क्या तुम आओगे
इस डर की चुप्पी को आवाज देने
virah ka kitna dard hai sannata hai badhai
sadar
amita
कविता पसंद की और अपने विचार भी लिखे इस के लिए आप सभी का आभार.आप के स्नेह शब्द विचारों का मार्गदर्शन करते हैं और मुझे लिखने की प्रेरणा देते हैं
आप सभी का धन्यवाद
रचना
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)