रोज सुबह
अखबार वाला
सावधानी से टाँग जाता है
दरवाजे पर
अखबार।
जानता है
कि जमीन पर फेंक दिया
तो काट कर फाड़ देगा
इस घर का जंगली कुत्ता।
हाँ !
पालतू होते हुए भी
जंगली है मेरा कुत्ता
नहीं चाहता
कि पढूं अखबार
जानूं समाचार।
उसे क्या मतलब इस बात से
कि हुआ हो शहर के एक ही घर में
सामुहिक नरसंहार
तीन बेटियों के साथ
ट्रेन से कटकर मर गई हो माँ
बच्चे को स्कूल छोड़ते वक्त
खींच ली हो किसी ने
महिला के गले से
सोने की चेन
उठा ली गई हो
स्कूल जाती लड़की
मिली हो लाश
मासूम बच्चे की
चौराहे पर
घूस लेते रंगे हाथ
पकड़ा गया हो
सरकारी दफ्तर का बाबू
हो गई हो
अफशर को पीटने वाले विधायक की
जमानत मंजूर
राह चलते
गोली मारकर
लूट लिया गया हो
प्रतिष्ठित व्यापारी
या.....
सड़क हादसे में
चली गई हों
चार और जानें।
मूर्ख नहीं जानता
कि मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूँ
मुझे जाननी है
हर छोटी-बड़ी खबर
मैं उसकी तरह
कुत्ता नहीं हूँ
जिसे होती है हरदम
सिर्फ रोटी की चिंता
किस्मत के मारे
अपने हुए
तो प्रकट करनी है
गहरी संवेदना
गैर हुए
तो लेनी है
संतोष की सांस।
कवि- देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
किस्मत के मारे
अपने हुए
तो प्रकट करनी है
गहरी संवेदना
गैर हुए
तो लेनी है
संतोष की सांस।
बहुत खूब देवेन्द्र जी ! इन्सान और कुत्ते में कितना
कम फ़र्क होता है। पर इस फ़र्क को बनाये रखने के लिये इन्सान अखबार को पढ़ लेता है ।
बहुत अच्छी रचना बहुत-बहुत बधाई!
मूर्ख नहीं जानता
कि मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूँ
मुझे जाननी है
हर छोटी-बड़ी खबर
मैं उसकी तरह
कुत्ता नहीं हूँ
जिसे होती है हरदम
सिर्फ रोटी की चिंता
sahi kataaksh
aadmi ki savednhinta ko bhut hi ache dhag se prstut karne par badhai
सरल,सहज शैली में लोक संवेदनाओं का यथार्थ दर्शाया है ,दो शब्दों में वर्तनी की गलती लगी है .मैत्री भाव से बता रही हूं.जैसे अफसर ,सामूहिक
संवेदनाओं से भरपूर एक अच्छी रचना... बधाई
नाज़िम नक़वी
आदरणीय मंजू जी-
वर्तनी की गलती बताने के लिए धन्यवाद। गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। पाठकों को हुई असुविधा के लिए मुझे खेद है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
बहुत बेहतर ... हाँ! यह समझ नहीं की चोट कुत्ते पर थी या इंसानियत पर
aaj itminan se blog padhne baithi hoon aur itna kuch accha padhne ko mil raha hai ki main vismit
hoon;unhi mein se ek hai ye rachna.badhai.
अपनी सुविधा से जताई जा सकने वाली संवेदना पर करारा व्यंग्य करती कविता..
बहुत शुभकामनायें ..!!
बहुत ही सुन्दर कविता. कटाक्ष का तरीका बढ़िया लगा. अंत बहुत सुन्दर ठंग से बयां किया. कही भी आपने खुलकर कोई बात नहीं की. सब कुछ शब्दों में छुपाकर कहा है. हकीकत में यही चीज़ कविता होती है.
मैं उसकी तरह
कुत्ता नहीं हूँ
जिसे होती है हरदम
सिर्फ रोटी की चिंता
किस्मत के मारे
अपने हुए
तो प्रकट करनी है
गहरी संवेदना
गैर हुए
तो लेनी है
संतोष की सांस।
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