फटाफट (25 नई पोस्ट):

Saturday, September 12, 2009

अखबार


रोज सुबह
अखबार वाला
सावधानी से टाँग जाता है
दरवाजे पर
अखबार।

जानता है
कि जमीन पर फेंक दिया
तो काट कर फाड़ देगा
इस घर का जंगली कुत्ता।

हाँ !
पालतू होते हुए भी
जंगली है मेरा कुत्ता
नहीं चाहता
कि पढूं अखबार
जानूं समाचार।

उसे क्या मतलब इस बात से
कि हुआ हो शहर के एक ही घर में
सामुहिक नरसंहार

तीन बेटियों के साथ
ट्रेन से कटकर मर गई हो माँ

बच्चे को स्कूल छोड़ते वक्त
खींच ली हो किसी ने
महिला के गले से
सोने की चेन

उठा ली गई हो
स्कूल जाती लड़की

मिली हो लाश
मासूम बच्चे की
चौराहे पर

घूस लेते रंगे हाथ
पकड़ा गया हो
सरकारी दफ्तर का बाबू

हो गई हो
अफशर को पीटने वाले विधायक की
जमानत मंजूर

राह चलते
गोली मारकर
लूट लिया गया हो
प्रतिष्ठित व्यापारी

या.....
सड़क हादसे में
चली गई हों
चार और जानें।

मूर्ख नहीं जानता
कि मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूँ
मुझे जाननी है
हर छोटी-बड़ी खबर

मैं उसकी तरह
कुत्ता नहीं हूँ
जिसे होती है हरदम
सिर्फ रोटी की चिंता

किस्मत के मारे
अपने हुए
तो प्रकट करनी है
गहरी संवेदना
गैर हुए
तो लेनी है
संतोष की सांस।

कवि- देवेन्द्र कुमार पाण्डेय

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

11 कविताप्रेमियों का कहना है :

Harihar का कहना है कि -

किस्मत के मारे
अपने हुए
तो प्रकट करनी है
गहरी संवेदना
गैर हुए
तो लेनी है
संतोष की सांस।
बहुत खूब देवेन्द्र जी ! इन्सान और कुत्ते में कितना
कम फ़र्क होता है। पर इस फ़र्क को बनाये रखने के लिये इन्सान अखबार को पढ़ लेता है ।

neeti sagar का कहना है कि -

बहुत अच्छी रचना बहुत-बहुत बधाई!

neelam का कहना है कि -

मूर्ख नहीं जानता
कि मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूँ
मुझे जाननी है
हर छोटी-बड़ी खबर

मैं उसकी तरह
कुत्ता नहीं हूँ
जिसे होती है हरदम
सिर्फ रोटी की चिंता
sahi kataaksh

शोभना चौरे का कहना है कि -

aadmi ki savednhinta ko bhut hi ache dhag se prstut karne par badhai

Manju Gupta का कहना है कि -

सरल,सहज शैली में लोक संवेदनाओं का यथार्थ दर्शाया है ,दो शब्दों में वर्तनी की गलती लगी है .मैत्री भाव से बता रही हूं.जैसे अफसर ,सामूहिक

Anonymous का कहना है कि -

संवेदनाओं से भरपूर एक अच्छी रचना... बधाई
नाज़िम नक़वी

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

आदरणीय मंजू जी-
वर्तनी की गलती बताने के लिए धन्यवाद। गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। पाठकों को हुई असुविधा के लिए मुझे खेद है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Admin का कहना है कि -

बहुत बेहतर ... हाँ! यह समझ नहीं की चोट कुत्ते पर थी या इंसानियत पर

लता 'हया' का कहना है कि -

aaj itminan se blog padhne baithi hoon aur itna kuch accha padhne ko mil raha hai ki main vismit
hoon;unhi mein se ek hai ye rachna.badhai.

वाणी गीत का कहना है कि -

अपनी सुविधा से जताई जा सकने वाली संवेदना पर करारा व्यंग्य करती कविता..
बहुत शुभकामनायें ..!!

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर कविता. कटाक्ष का तरीका बढ़िया लगा. अंत बहुत सुन्दर ठंग से बयां किया. कही भी आपने खुलकर कोई बात नहीं की. सब कुछ शब्दों में छुपाकर कहा है. हकीकत में यही चीज़ कविता होती है.

मैं उसकी तरह
कुत्ता नहीं हूँ
जिसे होती है हरदम
सिर्फ रोटी की चिंता

किस्मत के मारे
अपने हुए
तो प्रकट करनी है
गहरी संवेदना
गैर हुए
तो लेनी है
संतोष की सांस।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)