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Thursday, August 05, 2010

उत्तराखंड का पहला यूनिकवि (परिणाम)


हिन्द-युग्म पर आयोजित होने वाली यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता एक ग्लोबल प्रतियोगिता है, जिसमें दुनिया भर के हिन्दी-कवि और उनकी कविताओं के रसज्ञ भाग लेते हैं। जनवरी 2007 से यह हर महीने आयोजित हो रही है। आज हम इसके 43वें संस्करण के परिणाम लेकर उपस्थित हैं। 43वीं यूनिकवि प्रतियोगिता (जो कि जुलाई 2010 में आयोजित की गई थी) में कुल 46 कवियों ने भाग लिया।

निर्णय 2 चरणों में सम्पन्न हुआ। पहले चरण में 4 जज और दूसरे चरण में 2 जज शामिल थे। पहले चरण में सभी जजों को अपनी पसंद की 10 कविताओं को चुनने का कार्यभार सौंपा गया। पहले चरण के निर्णायकों ने अपनी पसंद की 10 कविताओं को 10 में से अंक भी दिये। इस प्रकार कुल 24 कविताएँ दूसरे चरण के निर्णय के लिए चुनी गयीं।

दूसरे चरण में 2 निर्णायक शामिल थे। इन दो निर्णायकों द्वारा 24 कविताओं को दिये गये अंकों और पहले चरण के जजों द्वारा दिये गये अंकों के औसत तथा पसंदों की संख्या के आधार पर शीर्ष 24 कविताओं के क्रम निर्धारित किये गये।

पहली बार हमें 43वें कवि के रूप में उत्तराखंड राज्य से यूनिकवि मिला है। पिछले 42 महीनों से ऐसा संयोग नहीं आया कि इस नये राज्य से हमें कोई यूनिकवि मिल सके, जबकि उत्तराखंड राज्य हिन्दी कवियो का गढ़ है।

यूनिकवि- अनिल कार्की

इनकी उम्र पच्चीस वर्ष है। उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के मुवानी पीपलतड़ बरला से इन्होंने अपनी जीवन यात्रा आरंभ की, इनका परिवार पूरी तरह निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार है। दुनिया के यथार्थ में से जो इनकी दुनिया का छोटा सा यथार्थ था, इनका अपना जनपद और गाँव था, दुनिया के इस कोने में साहित्य के अपने माइने थे। वह इन्हें कभी विचारधारओं में जकड़े हुए नही मिले, ये सच्चाई हैं कि इन्होंने बहुत ज्यादा अध्ययन भी नही किया है। अब जाकर पिछले तीन सालों में मैने कुछ किताबों का अध्ययन अपने बड़े भाई रूपेश डिमरी जिन्होंने इन्हें किताबों की दुनिया से परिचय करवाया, किया उनमें - पाश, गोरख पाण्डे, नागार्जुन, मुक्तिवोध, त्रिलोचन, रघुवीर सहाय, शमशेर, मंगलेश डबराल, श्याम मनोहर जोशी, श्रीलाल शुक्ल, भीष्म सहानी, काशीनाथ सिंह, राजेन्द्र यादव, विष्णु सखाराम खांड़ेकर की ययाति, खुशवंत सिह, आदि थे। वर्तमान में पिथौरागढ़ से ही समकालीन कविता की पत्रिका का संपादन करते हुए कुमाँऊ विश्वविद्यालय डीएसबी परिसर नैनीताल से डॉ. शिरीष कुमार मौर्य के निर्देशन में हिन्दी शोधकार्य कर रहे हैं। ये अपने मित्र पंकज भट्ट का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इन्हें हिन्द-युग्म में कविता भेजने के लिए प्रेरित किया।
फोन संपर्क- 9456757646
पता- ग्राम,पोस्ट- भदेलवाड़ा ऐंचौली
जिला -पिथौरागढ़
पिन-252630

यूनिकविता- मौन अपेक्षित है


जिला पुस्तकालय पिथौरागढ़ में दीवार पर टंगी तख्ती ‘मौन अपेक्षित है’ और सामने टेबल पर बैठी हमउम्र लड़की को देखकर-

किताबें,
कुछ-कुछ शोर,
गूँजता है-
एक नई किस्म की कम्पनी है।
एक पौधशाला।
व्यवस्था के नए चाकर यहीं पैदा होते हैं अब,
पूछो- सब आई.ए.एस., पी.सी.एस.,
मास्टरों, प्रोफेसरों की लम्बी कतार,
यहीं से निकलेगी कल,
ये वही जगह है- जहाँ दीवार पर टंगी है एक तख्ती,
जिस पर लिखा है- मौन अपेक्षित है।
कभी-कभार समाजशास्त्र, इतिहास, भूगोल पढ़ते हुए-
हल्के से निकल आती है,
लचर व्यवस्था की बात।
फिर दूसरे ही पल सावधान हो जाते हैं यह कहकर सब-
क्या लेना व्यवस्था से हमें, ये करियर की लड़ाई है।
इन टेबलों पर बैठ चाय पी लेने
या व्याख्यान दे देने से नहीं बचने वाली,
कविता, कहानी की अस्मिता।
वो बेच दी जायेगी
अलग-अलग फ्लेवरों में तुम्हारे ही सामने।
खुद को हिजड़ा कहने में भी तालियाँ नहीं बजेंगी।
कभी-कभी प्रतियोगिता परीक्षा की,
मोटी किताब के बीच हँसता है-
एक चेहरा कुछ देर के लिए,
तो लगता है, चालीस करोड़ भूखे नंगों का देश भी
हँसेगा, मुस्कुरायेगा।
हमने सोचा था कि धरती बहुत बड़ी है।
उसकी परिधि पर मानवता का महायज्ञ होगा।
और हम धीरे-धीरे अन्दर की ओर सिमटेंगे।
किसी केन्द्र बिन्दु पर।
कौन सा केन्द्र बिन्दु?
प्रेमिका की नाभि पर आधुनिकता देखने का निर्णय हमारा है।
उसके अधखुले जिस्म को चाट लेने का ख्वाब हमने ही सजाया है।
नहीं इस तरह नहीं!
बस घिन से थूक देने से काम नहीं चलेगा!
ये देश अकेले हमारा या अकेले उनका नहीं है।
ये चालीस करोड़ भूखे-नंगों का देश है, लूले और लंगड़ों का भी।
ये रिक्शा, टम्पो, इक्का, तांगा, बैलगाड़ी का देश है।
और कहाँ धरे के धरे रह गये तुम्हारे पोलियो के टीके!
चोरो! पुराने माल को हाईब्रिड बनाकर बेच रहे हो!
इस तरह कैमेस्ट्री, फिजिक्स, गणित का ट्यूशन पढ़ा लेना-
बुद्धिजीवी बन जाना नहीं होता।
किसी बार में बैठकर बियर की चुस्कियों के साथ,
शोषितों की बात करना अच्छा लगता है।
किसी अखबार का सम्पादक बन जाना भी अच्छा है।
और सुनो! क्यों पढ़ रही हो ये सब?
इसलिए न कि! अब लड़के पढ़ी-लिखी पत्नियाँ माँगते हैं।
ये मोटी किताबें दूल्हे पाने के लिए नहीं,
दूल्हे बने सत्ता के खिलाफ़ हथियार हैं।
आधुनिकता के मायने, फिगर मेन्टेन कर-
पतली कमर लचकाते हुए रैम्प पर उतरना नहीं होता है।
ये सब के सब वहशी चीर-फाड़ डालेंगे तुम्हें!
और तुम कानून की दुहाई देते रहना,
इस तरह नहीं-
कमीना होकर भी लड़ना अच्छा तो है-
दूध का धुला कोई नहीं होता।
पर मौन बिल्कुल अपेक्षित नहीं है!
ये तख्ती जो पुस्तकालय में टंगी है-
जिसपे लिखा है ‘मौन अपेक्षित है’
ये तख्तियाँ कल तुम्हारे घरों पे होंगी,
ये तख्तियाँ कल हमारे गले में डाल देंगी सरकारें।
मौन अपेक्षित नहीं है।
बस आज समझ लेना होगा-
मौन को अपेक्षित मान लेना ही-
मुखर हो जाने का सवाल है।
सवाल छोटा है पर-
बहुत बड़ा है मौन होना,
इस मौन के खिलाफ।
पुरस्कार और सम्मान-   विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।

इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं-

शेखर मल्लिक
योगेंद्र वर्मा व्योम
एम वर्मा
अपर्णा भटनागर
खन्ना मुजफ़्फ़रपुरी
स्वप्निल तिवारी आतिश
सुधीर गुप्ता 'चक्र'
मनोज वर्मा मनु
डिम्पल मलहोत्रा


हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 6 अन्य कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-

राजेश पंकज
दीपक कुमार
महेंद्र वर्मा
अनवर सुहैल
सुभाष राय
आलोक उपाध्याय 'नज़र'

उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 अगस्त 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।

हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। शीर्ष 24 कवियों के नाम अलग रंग से लिखित है।

सुरेंद्र अग्निहोत्री
अनिता निहलानी
हरदीप राणा कुँअर जी
विवेक जैन
जोमयिर जिनी
ऋतु सरोहा 'आँच'
शामिख फ़राज
अश्विनी राय
मनसा आनंद मानस
लोकेश उपाध्याय
खान साब खान
सीमा सिंहल ’सदा’
सनी कुमार
हरप्रीत धंजल
अनिरुद्ध यादव
अशोक कुमार शर्मा
आलोक गौर
शील निगम
हरकीरत हकीर
उषा वर्मा
विभोर मिश्र खज़िल
आशीष पंत
अंजू गर्ग
विनय कृष्ण
संगीता सेठी
सुमिता केशवा
प्रदीप वर्मा
कमल किशोर सिंह
रश्मि सिंह
नरेंद्र कुमार तोमर

नोट- हम यूनिपाठक/यूनिपाठिका का सम्मान वार्षिक पाठक सम्मान के तौर पर सुरक्षित रख रहे हैं। वार्षिक सम्मानों की घोषणा दिसम्बर 2010 में की जायेगी और उसी महीने हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव 2010 में उन्हें सम्मानित किया जायेगा।

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

दिपाली "आब" का कहना है कि -

maun apekshit hai...
Par hum chup nahi reh sakte.. Hehe


kya kavita kahi hai, ise kehte hain real poetry.. Dil see khud b khud waah nikal aaye, Ultimate.. Khuda jor e kalam aur kare.. Likhte rahiye

दर्पण साह का कहना है कि -

उत्तराखंड के (से) पहले यूनिकवि अनिल कार्की को हार्दिक शुभकामनाएं.शेष सभी प्रतिभागियों को भी. प्रतियोगिता के निरंतर सफल आयोजन हेतु हिंद युग्म के सभी कार्यकर्ताओं को बधाई.
कविता बेहतरीन है. बस एक बात जो रुकते रुकते कह देना चाहता हूँ कविता स्त्री सरोकारों और नारी विमर्श के पेराग्राफ (लाइनों ) में भटकते हुए पुनः वापिस आती हुई सी लगती है. पुनः
इस कविता को पढ़ के पाश की कोई कविता (सबसे खतरनाक....) याद हो आई जो इस कविता की सफलता ही कहलाएगी.

कार्की ज्यू भल लागो यार तुमुकी देख बेर यां...
..देखो कब्बे भविष्य में मिलुंड ले होल. :)

Nikhil का कहना है कि -

सचमुच, पाश-धूमिल सब याद आ गए कविता पढ़कर...इसे तो लालकिले पर इस 15 अगस्त को गूंजना चाहिए.....हम ऐसा कर सकते हैं....मैं आवाज़ देने को तैयार हूं.....
पहाड़ों से निकली इस मौन दहाड़ के लिए अनिल जी को बधाई....हिंदयुग्म पर आपका स्वागत है....

दिपाली "आब" का कहना है कि -

nikhil ji sahi kaha, aur aap awaaz denge to yeh jaroor goonjegi.

VIHAAN का कहना है कि -

अनिल जी को ढेर सारी बधाईया..........................
बेहतरीन कविता के लिए आधार प्रदान करने हेतु पिथोरागढ़ की लायब्रेरी को भी धन्यवाद..... और सामने बैठी उस हमउम्र लड़की को भी...

ई दुनिया मैं अनिल जी पहला कदम ही धमाकेदार है, उम्मीद है आगे और बेहतरीन कविताएँ पढने को मिलेगी. उनके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाये.........

आलोक उपाध्याय का कहना है कि -

अनिल जी बहुत ही खूबसूरत रचना और बेहद ही जिवंत
ढेर सारी शुभकामनाएं ....लगे रहिये ..इसी तरह दमदार लिखते रहिये
आलोक उपाध्याय

M VERMA का कहना है कि -

सवाल छोटा है पर-
बहुत बड़ा है मौन होना,
इस मौन के खिलाफ।
मौन के खिलाफ मौन होने का ही तो परिणाम है कि मौन होने के लिये विवश कर दिये गये हैं.
सार्थक भाव की कविता ... सुन्दर
बधाई

सदा का कहना है कि -

अनिल जी को ढेर सारी बधाई, यूनिकवि के लिये, इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

अपूर्व का कहना है कि -

प्रतियोगिता के बहाने एक और युवाकवि हिंद-युग्म के मंच से जुड़ा है..अनिल जी और हिंद-युग्म को बधाई..आशा है आगे भी उनकी अच्छी कविताएं इस मंच पर पढ़ने को मिलती रहेंगी...सभी प्रतिभागियों को भी शुभकामनाएँ

Aruna Kapoor का कहना है कि -

यूनिकवि अनिल गार्गी को बधाई!... निखिलजी की आवाज में इस कविता को सुनना... बहुत अच्छा अनुभव रहेगा!

Anonymous का कहना है कि -

अनिल कार्की जी को पहले उत्तराखंडी यूनिकवि के लिए बनने के लिए हार्दिक बधाई! सभी प्रतिभागियों को भी बधाई! अनिल जी अच्छा लगा उत्तराखंड के गौरव को आपने बढ़ाया है..कार्की ज्यू तुमुल अपुण पहाड़ क नाम उच्च कर हालो..जी रया ..अपुण खूब नाम कमाया...तुमुन के खूब खूब बधाई!!

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

Anil ji ko yunikavi banne par badhai...behad shandar kavita....hindyugm ka subhagya hai ki samay samay par aise kavi milte rahte hain unhe..

विजय प्रकाश सिंह का कहना है कि -

अनिल जी को बधाई । वाकई अच्छी कविता है ।

निर्णायक मण्डल से एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि सामाजिक परिस्थितियों की विसंगतियों से इतर भी जो अन्य विषय हैं , उन पर लिखी कविताओं को भी स्थान मिलना चाहिए । इस प्रकार यह मंच बहुआयामी होगा ।

कविता रावत का कहना है कि -

उत्तराखंड के पहले यूनिकवि अनिल कार्की को हार्दिक शुभकामनाएं.
बेहतरीन कविता के लिए धन्यवाद.....

Nayanjabalpuri का कहना है कि -

ek ek akshar ki maar lohe ke hathode jaisi hai. Bhala gungi baheri vyavasthayen in shabdon ko sunne ka sahas kahaan se juta payegi. unka to hit isee mein hai ki maun rahkar malai kahate rahen.

Anjani Kr. Sinha,Jabalpur M.P.

Kripya meri blog dekhen--
nayanjabalpuri-srijan.blogspot.com

Mohan Swaroop का कहना है कि -

उत्तराखण्डकी प्राकृतिक छटा, ये हरियाली पहाडे, ये नागवेली नदीयाँ, पतितपावनी भागीरथी ये सारे होकर भी यहाँके मानुषोँ को साहित्य प्रति उदासीनता देखकर बहुत दुःख लगता था । मैँ भी बिगत पाँच साल से ये प्राकृतिक छटायोँ को लुट लुट कर साहित्य सृजना कर रहा हूँ । ये सारे देखकर मन श्रृगारिक बनजाता हैँ और ये हाथ कलम पकडनेको उद्धत हो जाता हैँ । किन्तु मेरा जन्म नेपाल मेँ होने से हिन्दी भाषा मे उतना ज्यादा दख्खल नही है और कोही भी हिन्दी साहित्य पढा भी नही हूँ । मै बोलता हूँ हिन्दी लेकिन सोचता हूँ नेपाली मे और सृजना भी नेपाली मे होता हैँ । आज पहिली बार मोबाईल फोन के जरिये हिन्दी युग्म मै आनेको मिला और उसमे भी यिस राज्य का प्रथम युनिकवि अनिल कार्की बदाई लेख्ने को मिला । मै अपनेको कृत्य कृत्य समझता हूँ ।
मैँ वादा करता हूँ जल्दी ही मैँ भी यिस प्रतियोगिता मे प्रतियोगि के रुप मे हिन्दी रचना लेकर उतरुंगा ।
अनिल कार्की जी को फिर एकबार बदाई ।

मोहन स्वरूप
जाह्नवी धाम, गंगोरी
गंगोत्री रोड,
उत्तरकाशी 249193
उत्तराखण्ड ।
swaroopjiuki@gmail.com

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