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Sunday, August 01, 2010

जी रहे हैं मौत के हालात में...


अब यक़ीं आया उन्हें इस बात में
जल गया सारा शहर उस रात में

बोरियां भर-भर के ले आये ज़हर
बांटता था अमरिका ख़ैरात में...

जब कभी रोना हुआ चुपचाप से,
हो गए आकर खड़े, बरसात में

भीड़ में, दफ्तर में, मुर्दे हर जगह
जी रहे हैं, मौत के हालात में....

थालियों में रोटियां थी, ख्वाब थे,
बेड़ियां जकड़ी हुई थीं हाथ में....

धूप में भी प्यास की मजबूरियां,
प्यार की ये शर्त भी थी साथ में...

था वो पत्थरदिल, खुदा मैं कह गया
कुछ समझ आता नहीं जज़्बात में

निखिल आनंद गिरि

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

M VERMA का कहना है कि -

थालियों में रोटियां थी, ख्वाब थे,
बेड़ियां जकड़ी हुई थीं हाथ में....
बहुत खूब
शानदार गज़ल

दिपाली "आब" का कहना है कि -

ise kehte hain
crisp..
Karari gazal baithak babu. :)

vandana gupta का कहना है कि -

हालात का जैसा दर्दिला चित्रण किया है उससे इंसान सोचने को मजबूर हो जाता है कि किन हालात मे इंसान हर पल मर - मर के जी रहा है…
कल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

Prem Chand Sahajwala का कहना है कि -

जब कभी रोना हुआ चुपचाप से,
हो गए आकर खड़े, बरसात में

बहुत ही Intelligent शेर. शेष गज़ल अच्छी.

अपूर्व का कहना है कि -

सिर्फ़ तारीफ़ करना ही काफ़ी नही होगा निखिल भाई..याद रखना होगा इसे..बार-बार पढ़ना होगा..आपकी रचनाओं मे संवेदनशील जीवन-दृष्टि सामने आती है..कवि सिर्फ़ आत्मलीन नही रहता..बल्कि वैयक्तिक दुखों को समाज की वृहद विसंगतियों के साथ जोड़ के देखता है..फिर कोई भावना, कोई पीड़ा निजी नही रह जाती..कविता का दर्द भी सामाजिक होता है..

थालियों में रोटियां थी, ख्वाब थे,
बेड़ियां जकड़ी हुई थीं हाथ में....

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

Thaliyon me rotiyaan aur murde wala sher..kamal lage.. :-)

Sudhi का कहना है कि -

Ye gazal padhke dushyant kumar yaad aa gaye

सदा का कहना है कि -

थालियों में रोटियां थी, ख्वाब थे,
बेड़ियां जकड़ी हुई थीं हाथ में....

धूप में भी प्यास की मजबूरियां,
प्यार की ये शर्त भी थी साथ में...

गहरे भावों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Unknown का कहना है कि -

आनंद जी,
सभी शे'र उम्दा लगे...पढ़ा तो दुबारा पढने का मन(कई बार पढ़ गया) किया...सच्चे हालातों और छटपटातें एहसासों को आपके शेरो में पढ़कर अच्छा लगा...

-sunny

Anonymous का कहना है कि -

था वो पत्थरदिल, खुदा मैं कह गया
कुछ समझ आता नहीं जज़्बात में
बधाई!. ..हर एक शेर नए खयालातो से बुना गया है..सुन्दर अति सुन्दर....

Aruna Kapoor का कहना है कि -

भीड़ में, दफ्तर में, मुर्दे हर जगह
जी रहे हैं, मौत के हालात में....


.......किन परिस्थियों मे जी रहे है लोग!..कितनी मजबूरियां है!.... दर्दनाक चित्रण आपने इस कविता में उतारा है, जो महसूस किया जा सकता है!

Divya Prakash का कहना है कि -

भाई वाह ....

विश्व दीपक का कहना है कि -

निखिल भाई!
क्या कहूँ... कुछ हीं ग़ज़लें ऐसी होती हैं जो दिल और दिमाग को दोनों को छूती हैं। कहीं ग़ज़लगो भावनाओं की बहाव में बहते-बहते रदीफ़-काफ़िया-बहर को भूल चुका होता है तो वहीं दूसरी ओर कुछ शायर इन्हीं नियमों का पालन करने को ग़ज़ल लिखना समझतें हैं।

मैं आपकी यह ग़ज़ल एक साँस में पढ गया और कहीं भी कोई रूकावट आड़े नहीं आई। मेरे हिसाब से आपने ग़ज़ल के सारे नियमों का पालन किया है (मैं यह कह तो रहा हूँ यद्यपि मुझे खुद नियमों का पूरा ज्ञान नहीं)... और साथ हीं साथ भावनाओं को जरा भी कमजोर नहीं होने दिया है।

आप निस्संदेह हीं बधाई के पात्र हैं। ऐसे हीं दिल और दिमाग लगाकर लिखते रहिए :)

-विश्व दीपक

SURINDER RATTI का कहना है कि -

ikhil Ji,

Waah Bahut Badhiya
थालियों में रोटियां थी, ख्वाब थे,
बेड़ियां जकड़ी हुई थीं हाथ में....
surinder Ratti - Mumbai

Avanish Gautam का कहना है कि -

जब कभी रोना हुआ चुपचाप से,
हो गए आकर खड़े, बरसात में

यह वाला सबसे अच्छा लगा!

himani का कहना है कि -

थालियों में रोटियां थी, ख्वाब थे,
बेड़ियां जकड़ी हुई थीं हाथ में....
हमेशा की तरह बेहतरीन

manu का कहना है कि -

जब कभी रोना हुआ....

बहुत शानदार शे'र ..

manu का कहना है कि -

और...


था वो पत्थरदिल, खुदा मैं कह गया
कुछ समझ आता नहीं जज़्बात में

कमाल..कमाल...कमाल.....!!!

rachana का कहना है कि -

जब कभी रोना हुआ चुपचाप से,
हो गए आकर खड़े, बरसात में
bahut sunder bhav
थालियों में रोटियां थी, ख्वाब थे,
बेड़ियां जकड़ी हुई थीं हाथ में....

bebasi ka achchha chitran hai
badhai
rachana

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