सुमित इस जानकारी के लिए धन्यवाद गुरू जी
मुझे पुराने गीतो और गजलो को सुनने का शौक है और मै सुनता भी हूँ पर रूकन ढूढने मे सफलता अभी तक नही मिली, कई बार एक ही गजल को जब दो अलग अलग गायक गाते है तो लय ही बदल जाती है तब समझ नही आता कि कौन सी गज़ल सुनकर रूकन तय करूँ।
उत्तर : सुमित जी दरअस्ल में धुन भले ही बदल जाये पर ना तो रुक्न बदलते हैं और ना ही उस ग़ज़ल की बहर बदलती है । दरअस्ल में ये जो सारा का सारा खेले है ये केवल उच्चारण का ही है । और इसीलिये तो कहा जाता है कि अगर आपकी ग़ज़ल पूरी तरह से बहर में होगी तो उसको कोई भी गायक किसी भी धुन में बांध कर अपने हिसाब से गा सकता है । जिसे कोई भी गा सके उसका अर्थ ही है कि ग़ज़ल पूरी तरह से बहर में है और मात्राओं का ध्यान रख कर लिखी गई है । रुक्न तय करने के लिये होता ये है कि हम उस ग़ज़ल का बातचीत के लहजे में पढ़ते हैं और फिर तलाशते हैं कि कहां पर भंग आ रहा है । हालंकि एक मुश्किल काम है पर फिर भी हम आने वाली कक्षाओं में उसको सीखेंगें ही ।
योगेश गाँधी गुरू जी नमस्कार
शुक्रिया, कक्षाएं दोबारा से शुरू करने के लिये। बस एक अनुरोध है, अगर वह सम्भव हो तो। जैसे ही यहाँ कोई कक्षा का पोस्ट हो, तो मुझे इ-मेल आ जाये, तो बहुत बढ़िया होगा। मैं भूलकर भी कक्षा को मिस्स नही करना चाहता। इस लिये ऐसा कह रहा हूँ
बाकी आपकी अगली कक्षा का इंतज़ार रहेगा
उत्तर - नियंत्रक की ओर से योगेश जी, इस पृष्ठ के दायीं ओर ऊपर के हिस्से में देखें, लिखा मिलेगा 'स्थाई पाठक बनें', उसमें अपनी ईमेल आईडी डाल दें, आपको रोज़ के सभी पोस्ट मिलने लगेंगे।
गज़ल की कक्षायें दोबारा से शुरू हो गयी, जान कर अति प्रसन्नता हुई।
मात्राओ को गिन्ना अभी तो बहुत अच्छे से नही आता, हां मगर अब मेरी सारी गज़लों मे काफ़िया बिल्कुल सही बैठता है। अभ्यास के साथ मात्राओ को भी गिन्ना सीख जाऊँगा। बस कभी कभी शब्दों और विचारों की कमी खलती है। उसके लिये भी कोई उपाय बतायें।
गुरूजी को चरण-स्पर्श!
गज़ल-कक्षा पुनः शुरू हुई और बेचैन मन को शांति मिली..
इस लघु-दिर्घ के खेल पे एक शक था कि दिर्घ तो अक्सर जरूरत के मुताबिक गिर कर लघु हो जाता है,किन्तु क्या ये छूट है लघु उठ कर दिर्घ बन जाय?जैसे "दीवार" या "दीवाना" के साथ जैसे हम कर सकते हैं,क्या अन्य शब्दों के साथ भी कर सकते हैं क्या?मसलन "हुआ" , "किया" , लिया"-क्या इन शब्दों के साथ "दीवार’ जैसी स्वतंत्रता है?उत्तर - गौतम वैसा कर तो सकते हैं जैसे हम दिखने को कभी कभी दीखना कर देते हैं । किन्तु वैसा करने में भी एक समस्या है कि सभी जगह ऐसा नहीं होता है केवल वहीं होगा जहां पर दीर्घ का उच्चारण भी मान्य हो जैसे दीखना में है । क्योंकि दीखना भी बोला जाता है और दिखना भी । तो बात वही है कि अगर वैसा उच्चारण होता है तो हम कर सकते हैं । दूसरा ये कि ऐसा करने पर एक समस्या ये होगी कि साफ नज़र आयेगी हमारी ग़रीबी के कितने ग़रीब हैं हम शब्दों के मामले में कि एक शब्द का कोई दूसरा पर्यायवाची ही नहीं ढ़ूढ पा रहे हैं । या फिर मात्राओं का संयोजन ही ऐसा नहीं कर पा रहे हैं कि एब दब जाये । हूआ कीया दीया तो वैसे भी उच्चारण में कही होता नहीं है । मगर पुरानी कुछ ग़ज़लों में कहीं कहीं मिलता है ।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
गुरू जी को चरण-स्पर्श और ढेरों धन्यवाद ..बड़े दिनों से उलझन थी इस बात पर
और संयोजकों से निवेदन था कि गुरूजी की इन नई कक्षाओं का लिंक भी "गज़ल कैसे सीखें" में पुराने लिंकों के साथ क्रमवार सजा दें तो कृपा होगी..
गुरुदेव हम प्रश्न् करें न करें लेकिन आप को पढ़ कर गुनने की सदा कोशिश करते हैं....हर पाथ के अंत में अगर किसी ग़ज़ल की तकती अ भी कर दिया करें तो हम जैसे शिष्यों पर कृपा होगी.
नीरज
प्रणाम
आने वाली कक्षाओ मे कुछ देर से आ पाऊँगा, अभी कुछ समय के लिए मै परीक्षा और project बनाने मे व्यस्त हूँ ,काफिया और रदीफ तो मेरा सुधर गया है,बस बहर की जानकारी पूरी होते ही गज़ल लिखना फिर शुरू के दूँगा
वैसे मैने दो गज़ले भी लिखी थी, लेकिन बहर मे नही लिख पाया
सुमित भारद्वाज
प्रणाम
आने वाली कक्षाओ मे कुछ देर से आ पाऊँगा, अभी कुछ समय के लिए मै परीक्षा और project बनाने मे व्यस्त हूँ ,काफिया और रदीफ तो मेरा सुधर गया है,बस बहर की जानकारी पूरी होते ही गज़ल लिखना फिर शुरू के दूँगा
वैसे मैने दो गज़ले भी लिखी थी, लेकिन बहर मे नही लिख पाया
सुमित भारद्वाज
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