आज क्रांतिकारी ग़ज़लगो, हिन्दी ग़ज़ल के अग्रदूत दुष्यंत कुमार जिन्होंने ग़ज़ल को नई व्यंजना दी, तेवरों को मान दिया, व्याकरणों का अतिक्रमण करके भी जनग्राह्यता बनाये रखी, का जन्मदिवस है और कितना सुखद संयोग है कि हमने जिन्हें अगस्त माह का यूनिकवि चुना है, उन्होंने भी ग़ज़ल जैसी रचना लिख भेजी थी, जिसे हमारे निर्णायक मंडली ने प्रथम चुना है।
यूनिकवि प्रतियोगिता का आयोजन विगत् २० महीनों से हिन्दी कविता-लेखन, उसका पठन और इंटरनेट पर हिन्दी की अपनी लिपि में लिखने को प्रोत्साहित करने हेतु हो रहा है। २०वें आयोजन में ४६ कवियों ने भाग लिया। दो चरणों में निर्णय कराया गया, प्रथम चरण के ५ जजों द्वारा दिये गये अंकों के औसत के आधार पर २५ कविताओं को अंतिम दौर के जजमेंट के लिए भेजा गया, जहाँ शेष २ जजों के दिये गये अंकों और पिछले चरण के औसत के औसत के आधार पर पराग अग्रवाल की ग़ज़ल को यूनिकविता चुना गया।
पराग अग्रवाल
पेशे से आर्किटेक्ट पराग अग्रवाल इन दिनों दिल्ली में धन उगाह रहे हैं, मूलरूप से धार (म॰ प्र॰) के रहने वाले हैं। ग़ज़ल लिखना-पढ़ना पसंद करते हैं।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
मेरी रातों के परिंदे बेशजर हो गए ................
नींदें बंज़र हो गयीं ख्वाब समंदर हो गए ......................
मैंने इनसे कहा था के जागते रहना ............
ख्वाब सो के उठे तो चद्दर हो गए ...............
वक़्त ने अपने चेहरे से मुखातिब कराया उन्हें .....
अपनी नज़र से उतरे तो हमनज़र हो गए ..............
यूं अंजाम हुआ उनकी हसरत-ए-परवाज़ का ..........
आईने घर से निकले तो दर-बदर हो गए .............
आरजू-ए-हरम पूरी तो हो गयी लेकिन ................
मेरी हवाओं के दायरे मुख्तसर हो गए ............
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३, ४॰५, ७॰५, ६॰४५, ७
औसत अंक- ५॰६९
स्थान- आठवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰५, ९, ६॰६९ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰३९६६
स्थान- प्रथम
पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु १०० तक की पुस्तकें।
चूँकि यूनिकवि ने सितम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविता प्रकाशित करने का वचन दिया है, अतः शर्तानुसार रु १०० प्रत्येक कविता के हिसाब से रु ३०० का नग़द इनाम दिया जायेगा।
यूनिकवि पराग अग्रवाल को तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी की ओर से 'येलो पिरामिड' भेंट की जायेगी तथा यूनिकवि को डॉ॰ गरिमा तिवारी से मेडिटेशन पर एक पैकेज का ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने का अधिकार होगा (लक पैकेज़ छोड़कर)।
इस बार हम शीर्ष १५ कविताओं का प्रकाशन करेंगे ताकि पाठकों की निर्णायक दृष्टि भी सभी स्तरीय कविताओं पर पड़ सके। शीर्ष १५ के अन्य १४ कवि हैं-
वीनस केसरी
सुरेन्द्र कुमार अभिन्न
कनुप्रिया
दिव्य प्रकाश दुबे
मयंक सक्सेना
रूपम चोपड़ा (RC)
केतन कनौजिया
पंकज उपाध्याय
सुधीर सक्सेना 'सुधि'
सुजीत कुमार सुमन
देवेन्द्र कुमार मिश्रा
पुष्कर चौबे
रचना श्रीवास्तव
लक्ष्मी ढौंडियाल
उपर्युक्त लिखित नामों में से शीर्ष ९ कवियों को मसि-कागद की ओर से कुछ चुनिंदा पुस्तकें दी जायेंगी। साथ ही साथ संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य संग्रह 'समर्पण' भेंट करेंगे।
उपर्युक्त कवियों से निवेदन है कि अगस्त माह की अपनी कविता-प्रविष्टि को न तो अन्यत्र कहीं प्रकाशित करें ना प्रकाशनार्थ भेजें क्योंकि हम इस माह के अंत तक एक-एक करके प्रकाशित करेंगे।
इसबार पाठकों में उस तरह की ऊर्जा नहीं दिखी जो जुलाई महीने में देखने को मिलती है। वैसे कुछ लोग कहते भी हैं कि अगस्त महीना विचारों के बदलने का समय होता है। शायद तभी कुछ नये पाठक टिप्पणी करने का विचार बना रहे होंगे वहीं कुछ पाठक न करने का। लेकिन हम तो यही निवेदन करेंगे कि नये पढ़ने और टिपियाने का मन बनायें और पुराने भी कमेंट करते रहे।
अगस्त माह के पाठकों में से वीनस केसरी और दीपाली मिश्रा ने लगभग बराबर ही पढ़ा। दीपाली के टिप्पणियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक रही। वीनस अगस्त के दूसरे सप्ताह से टिप्पणियाँ करते दिखे, हालाँकि वो हिन्द-युग्म को पिछले ७ महीनों से पढ़ रहे हैं। शुभ संकेत है कि वो अब पाठक और कवि दोनों रूपों में कूद पड़े हैं।
दीपाली मिश्रा
इस माह के यूनिपाठक पुरस्कार के लिए हमने चुना है पाठिका दीपाली मिश्रा को। दीपाली मिश्रा, जौनपुर (उत्तर प्रदेश) की रहने वाली हैं और वर्तमान समय में अपना परास्नातक भूगोल विषय में कर रही हैं। इन्हें साहित्य पढ़ना और संगीत सुनना बेहद पसंद है जोकि हिन्द-युग्म के द्वारा अब और बढ़ गया है। इन्होंने अपनी पहली कविता नौवीं कक्षा में लिखी थी-"हमको आगे बढ़ाना होगा" जोकि इनके छोटे भाई की कविताओं से प्रेरित थी. आगे चलकर ये प्रशाशनिक सेवा में जाना चाहती हैं।
पुरस्कार और सम्मान- रु ३०० का नक़द पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र और रु २०० तक की पुस्तकें।
यूनिपाठिका दीपाली मिश्रा को तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी की ओर से 'येलो पिरामिड' भेंट की जायेगी तथा यूनिपाठिक को डॉ॰ गरिमा तिवारी से मेडिटेशन पर एक पैकेज का ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने का अधिकार होगा (लक पैकेज़ छोड़कर)।
निस्संदेह दूसरे स्थान के पाठक के रूप में हम चुनेंगे वीनस केसरी को, जिनकी टिप्पणियों से यह साफ झलकता है कि इन्हें साहित्य की गहरी समझ है, और जिस ऊर्जा से ये हमें पढ़ रहे हैं, हमें आशा है कि आगे भी पढ़ते रहेंगे। इन्हें हम मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट करेंगे।
हमें बहुत पढ़ने वालों में स्मार्ट इंडियन भी शामिल हैं, जो अब हिन्द-युग्म का हिस्सा भी हैं। रचना श्रीवास्तव हमें पढ़ तो रही हैं, परंतु टिप्पणियाँ रोमन में ही करती हैं, हम उनसे आग्रह करेंगे कि वो देवनागरी में टिप्पणी देना शुरू करें।
तीसरे और चौथे स्थान के पाठक के रूप में हमने रखा है नीलम मिश्रा और सुमित भारद्वाज को, जिन्हें मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें भेंट की जायेंगी।
ऊपर्युक्त सभी पाठकों को मसि-कागद पत्रिका का ताज़ा अंक भी दिया जायेगा।
हम निम्नलिखित कवियों का भी धन्यवाद करते हैं, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर इसे सफल बनाया और यह निवेदन करते हैं कि सितम्बर २००८ की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में भी अवश्य भाग लें।
चंद्रकांत सिंह
संजय सेन सागर
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
गौतम राजरिशी
तपन शर्मा
पीयूष पण्डया
सविता दत्ता
निशा त्रिपाठी
संदेश दीक्षित
कमलप्रीत सिंह
दीपाली मिश्रा
अनुराग शर्मा
प्रदीप मानोरिया
अरुण अद्भुत
सीमा स्मृति
विवेक रंजन श्रीवास्तव"विनम्र"
सतीश वाघमरे
ब्रह्मनाथ त्रिपाठी 'अंजान'
विपिन जैन
सुमित भारद्वाज
रश्मि सिंह
भारती यादव
मनीष जैन
नीलम मिश्रा
सुमन कुमार सिंह
डॉ॰ गरिमा तिवारी
पुनीत सिन्हा
संदीप कुमार
सी॰ आर॰ राजश्री
नीलिमा
सनत जैन
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
sabse pehle bahut mubarak ho, tumhe, pratham isthaan par aane ke liye, ek alag soch ke maamle me, ye gazal bahut umda namuna hain,
:) khuda tumhe aise hi safalta ki sidiya chadata rahe....
parag bahoot bahoot mubarak ho.. bahoot he aachi gazal likhi hai aapne...
paraag...bahut mubarak...:)
बहुत बहुत मुबारक हो पराग
प्रदीप मनोरिया
gajal bilkul bhi bahar me nahi hai, mujhe bahut nirasha ho rahi hai
Adbhut
पराग बधाई हो....शानदार ग़ज़ल है दिल जीत लिया
मैंने इनसे कहा था के जागते रहना ............
ख्वाब सो के उठे तो चद्दर हो गए ...............
उम्दा !!
आरजू-ए-हरम पूरी तो हो गयी लेकिन ................
मेरी हवाओं के दायरे मुख्तसर हो गए ............
क्या बात है भाई. बहुत ही उम्दा, मुबारकबाद कुबूल करें ....
पराग जी, दीपाली जी, दोनों यूनिकवि और यूनिपाठक को सफलता के लिए बहुत बहुत बधाई । पराग जी की ग़ज़ल यद्यपि कुछ ऊँचे स्तर की है कि सामान्य रूप से भावों की गहराई मुझे समझ में नहीं आ पा रही है पर जितनी समझ आ रही है, उससे वह बहुत अच्छी लग रही है । और मेरी दृष्टि से सबसे अधिक बधाई के पात्र वीनस केसरी जी हैं कि दोनों ही मोर्चों पर द्वितीय स्थान प्राप्त किया है ।
पराग अग्रवाल जी की ग़ज़ल ठीक से न समझ पाने का कारण मुझे ग़ज़ल का अभ्यास न होना है । वास्तव में काव्य का आनन्द उठाने के लिए सहृदय होना आवश्यक है और सहृदय होने के लिए तीन बातें आवश्यक हैं-
१- काव्य के अनुशीलन के अभ्यास के कारण मन निर्मल हो जाए
२- वर्णनीय से तन्मय होने की क्षमता आ जानी चाहिए,
३- और उस अभ्यास के कारण अपने ही हृदय से साक्षात् संवाद करने की क्षमता पनप जानी चाहिए ।
अभिनवगुप्त जी का सहृदय का लक्षण है - येषां काव्यानुशीलनाभ्यासवशात् विशदीभूते मनोमुकुरे वर्णनीयतन्मयीभवनयोग्यता, ते स्वहृदय-संवादभाजाः सहृदयाः ॥
प्रायः हिन्दी जगत् में, खासकर अपने को विशेष प्रगतिशील मानने वालों में सहृदय के विषय में गलत धारणा बन गई है कि सहृदय केवल उच्च वर्ग का ही हो सकता था क्योंकि उसी के पास काव्य और काव्यशास्त्र पढ़ने के साधन हो सकते हैं । अतः काव्य के अधिकारित्व के लिए सहृदयत्व की कठिन शर्त रखकर काव्य को आम जन की पहुँच से दूर रखा गया । पर सहृदय की उक्त परिभाषा इस बात का निराकरण कर देती है । यदि मैं एम फिल का छात्र होकर भी ग़ज़ल को ठीक से नहीं समझ सकता तो यदि कोई कहे कि यह ग़ज़ल मेरे लिए नहीं है, तो कोई ज्यादती नहीं होगी । और सहृदय होने के लिए शर्त काव्य का अनुशीलन है, उसके लिए काव्य का शौक जरूरी है, शास्त्रज्ञान नहीं । और काव्य का अनुशीलन तो आधार है, मुख्य शर्त है- मन का निर्मल हो जाना, योग से नहीं, इसी काव्य के अभ्यास से, और दूसरी मुख्य शर्त है कि वर्णनीय काव्य में तन्मय हो जाने की क्षमता हो, तथा तीसरी और सबसे महत्त्वपूर्ण शर्त है कि अपने हृदय से बात करना उसे आता हो । अब आप ही देखिए, इन शर्तों में कहाँ किसी कुलीन का एकाधिकार बचता है ?
सभी विजेताओं को बधाइयाँ। पराग की कविता की खास बात यह है कि इसमें इस्तेमाल 'दर-बदर', 'समंदर', 'चद्दर', 'मुख़्तसर' आदि शब्द लुभाते हैं। प्रतिभागियों की संख्या तो कम-अधिक होती रहती है। आशा है कि इसबार के प्रतिभागी अपनी कवितारूपी पत्थर को प्रतियोगिता रूपी आसमान में तबियत से उछालेंगे और दुष्यंत को श्रद्धाँजलि देंगे।
आप सभी नवपल्ल्वितों को बधाई -श्यामसखा`श्याम;
sabhi vijetaon ko badhaiyan
कवि काव्य सिर्फ़ अपने लियेलिखता है , रचना के समय कवि की भावना के आलावा कोई और बात उसके मन में नही रहती , और रही बात आम से कविता या साहित्य की दूरी की, तो कोई भी रचना जो साहित्य कहलाने का अधिकार रखती है , वह किसी पाठक को ध्यान में रख कर नही लिखी जाती . और जो लिखी जाती है, उसे साहित्य कहना उचित नही , क्योकि उस रचना का उद्देश्य अभिव्यक्ति न रह कर कुछ और हो जाता है
पराग जी ,
सबसे पहले ढेर सारा बधाई स्वीकार करें .
बहुत ही बढ़िया रचना की है आपने . निर्णायक मंडल को गजल के सुरूर में डूबा दिया और पाठक पिपासु आपके पराग पायल में मस्त हो गए .
धन्यवाद
राजेश कुमार पर्वत
bahut bhaut mubaarak ho......laajawaab mishre hain.badhaai
पराग जी और दीपाली जी को हार्दिक बधाइयाँ
पराग जी आपकी गजलनुमा कविता अच्छी लगी
अगर आप कोशिश करते तो ग़ज़लनुमा कविता को बहर में करके एक अच्छी गजल तैयार कर सकते थे
- आपका वीनस केसरी
मैंने इनसे कहा था के जागते रहना ............
ख्वाब सो के उठे तो चद्दर हो गए ...............
पराग जी ! बहुत अच्छी गजल है।
पर हिन्द-युग्म की कुछ कविताओं में
बहुत सारे विराम चिन्हों को देख कर बड़ा
अजीब लगता है। केवल विराम-चिहों के ढेर लगा कर काव्य निखारा नहीं जा सकता
जैसे कि "कवि की बेटी" ( अभिषेक जी ! सावधान!) के अन्त में ढेर सारे प्रश्न वाचक चिन्हों
का क्या औचित्य था?
पराग जी आपको प्रथम आने पर बहुत बहुत बधाई- काश मुझे भी गजल लिखनी आती. दिवाकर मिश्र का चिंतन अद्भुत है. उनकी टिपण्णी पर गौर करने वाला एक अच्छा समीक्षक बन सकता है.
मेरी रातों के परिंदे बेशजर हो गए ................
नींदें बंज़र हो गयीं ख्वाब समंदर हो गए......
जीतने उम्दा भाव है उतना ही उम्दा कला पक्ष ......सभी काफ़ी कुछ कह चुके और कुछ कह कर उनकी पुनरावरत्ती नही करूँगा....
वैसे सिर्फ़ भाव से ही नही मैं आपके व्यवसाय मे भी सहपाठी हूँ...जानकर खुशी होगी की आप किस महाविद्यालय के छात्र रह चुके है क्यूंकी मैं भी .. . का छात्र हूँ....
शुभाकांक्षाएँ..... :)
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