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Saturday, August 08, 2009

मैं चल पडती हूँ


स्मिता पाण्डेय की अन्य कविताएँ

  1. तक़लीफ़ तो होती है

  2. तुम्हारे इंतज़ार में........

नदी के किनारे
ठंडी हवा,
ठिठुरती ठंड में
गर्म धूप,
गर्म रजाई में
उनींदी आँखें,
माँ से बतियाना
और प्याली भर चाय...

दिल तो कहता है रुक जाऊँ...
मगर मैं चल पड़ती हूँ।

भविष्य की तलाश में,
किताबों में
जिंदगी ढूँढ़ते हुए,
साल दर साल
वक़्त बीतता जाता है,

भागते-भागते जब ये एहसास होता है...
दिल तो कहता है रुक जाऊँ...
मगर मैं चल पड़ती हूँ।

बातों-बातों में
जब माँ कहती है,
"मैं तो बूढ़ी हो चली..."
तो दिल में टीस सी उठती है,

क्या मेरा बचपन भी......
अभी तो बहुत सी बातें करनी है इससे,

दिल तो कहता है रूक जाऊँ...
मगर मैं चल पड़ती हूँ।

--स्मिता पाण्डेय

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

अमिता का कहना है कि -

स्मिता जी आपने तो मेरे दिल की बात लिख दी.
भविष्य की तलाश में,
किताबों में
जिंदगी ढूँढ़ते हुए,
साल दर साल
वक़्त बीतता जाता है,

बातों-बातों में
जब माँ कहती है,
"मैं तो बूढ़ी हो चली..."
तो दिल में टीस सी उठती है,

क्या मेरा बचपन भी......
अभी तो बहुत सी बातें करनी है इससे,

बहुत अच्छा लिखा है. धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिए.
सादर
अमिता

अमिता का कहना है कि -

माफ़ कीजिये स्मिता जी मुझे फिर आना पढा. आपके बारे मैं पढने के बाद पता लगा कि आप तो बहुत छोटी हैं इस अनुभव के लिए फिर भी इतनी सुंदर कविता लिख दी. मुझे तो पी एच दी करते वक़्त ये एह्साह हुआ था. बहुत सुंदर बहुत ही अच्छा लिखती हैं मेरी दुआएं आपके साथ है.
ऐसे ही लिखती रहिये.
अमिता

Manju Gupta का कहना है कि -

मन के भाव खूबसूरती के साथ कविता में उकेरे है . बधाई .

manu का कहना है कि -

आईला .....!!!!!
फिर आई वो छोटी बच्ची ..
बड़ी बड़ी बातों को लेकर...
जो मुझे कहना था वो अमिता जी कह ही चुकी है...
(पी.एच.डी. को छोड़कर..)
::))
बहुत सोचती है ये स्मिता भी..
पढ़ कर बेहद अच्छा लगा...

gazalkbahane का कहना है कि -

सह्ज सरल भाषा में अन्तस की बात हुई/बधाई
श्याम सखा श्याम

gazalkbahane का कहना है कि -

सह्ज सरल भाषा में अन्तस की बात हुई/बधाई
श्याम सखा श्याम

सदा का कहना है कि -

बातों-बातों में
जब माँ कहती है,
"मैं तो बूढ़ी हो चली..."
तो दिल में टीस सी उठती है,

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

Shamikh Faraz का कहना है कि -

क्या लाजवाब कविता है. अंत हुआ सुन्दर शब्दों के साथ

क्या मेरा बचपन भी......
अभी तो बहुत सी बातें करनी है इससे,

दिल तो कहता है रूक जाऊँ...
मगर मैं चल पड़ती हूँ।

neelam का कहना है कि -

smita beta नदी के किनारे
ठंडी हवा,
ठिठुरती ठंड में
गर्म धूप,
गर्म रजाई में
उनींदी आँखें,
माँ से बतियाना
और प्याली भर चाय...

दिल तो कहता है रुक जाऊँ...
मगर मैं चल पड़ती हूँ।

achchi kavita ,jeevan chalne ka hi naam hai ,hm chaah kar bhi ruk nahi sakte ,achcha likhti ho likhti hi rahna chaahe kaise bhi haalaat ho ,

Kuldeep Pal का कहना है कि -

स्मिता

तुम्हारे लिखे शब्दों की चाशनी बहुत ही मीठी है

आलोक उपाध्याय का कहना है कि -

इत्तेफाक की बात है कि मैं आपकी कविताओं को बहुत बाद में पढ़ पता हूँ और उसके बारे में कुछ कह पाता हूँ ..मेरी बातें शायद आप तक

न पहुंचे फिर भी ....
चल परता हूँ कुछ लिखने .....


"बातों-बातों में
जब माँ कहती है,
"मैं तो बूढ़ी हो चली..."
तो दिल में टीस सी उठती है,"

super super ...super .....बड़ी ही common सी बात... पर बड़े ही संजीदा मोड़ पर कह डाली आपने
बधाई हो
आलोक उपाध्याय "नज़र"

Anupama Tripathi का कहना है कि -

माँ से बतियाना
और प्याली भर चाय...

दिल तो कहता है रुक जाऊँ...
मगर मैं चल पड़ती हूँ।


वक़्त का साथ निभाती हुई कोमल अभिव्यक्ति -
बहुत सुन्दरता से ह्रदय की तीस का वर्णन किया है
बधाई एवं शुभकामनाएं.

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