वफ़ा ने टूट कर यूं अपना दिल सम्भाला है
ग़ज़ल में जब भी तेरा अक्स मैंने ढाला है
तेरी जफ़ायें है इल्मे-इलाहियात मुझे
तेरा ख्याल, मेरी रूह का उजाला है
उसी के टूटने बनने से है हयात मेरी
वो एक ख्वाब जो मैंने नज़र में पाला है
वो इत्मीनान से मुझको हलाक कर के गया
जिसे मैं समझा था, बंदा ये देखा-भाला है
किये सवाल जो खुद से तो पाया है अक्सर
के मैंने खुद को अजब कशमकश में डाला है
शमा को दी कभी तूफ़ान की निगेहबानी
दवा का काम कभी ज़हर से निकाला है
भला सा होता है यूं तो कलाम अपना भी
पर उनके कहने का अंदाज़ ही निराला है
*इल्मे-इलाहियात--- जीवन-दर्शन
--मनु बेतखल्लुस
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32 कविताप्रेमियों का कहना है :
उसी के टूटने बनने से है हयात मेरी
वो एक ख्वाब जो मैंने नज़र में पाला है
सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
श्याम सखा श्याम
भला सा होता है यूं तो कलाम अपना भी
पर उनके कहने का अंदाज़ ही निराला है
बढिया शेरो की बढिया ग़ज़ल है.बधाई .
मनु जी,
अब तो आप न हमारा भी नाम लिख ही लीजिये आपकी ग़ज़लों की दीवानीओं मैं...
Ada di says....
मालूम है आप हँसे होंगे लेकिन 'दीवानीओं' से अच्छा शब्द मुझे मिला ही नहीं...और ये मैंने अभी अभी बनाया है जो सबसे अलग है आपकी ग़ज़ल की तरह
हा हा हा हा हा ..
मनु जी
वाह वाह क्या लिखा है जवाब नहीं .आप की सोचों की दाद देती हूँ एक एक शब्द दिल को छूने वाले हैं
ये दो शेर तो कमाल है
शमा को दी कभी तूफ़ान की निगेहबानी
दवा का काम कभी ज़हर से निकाला है
तेरी जफ़ायें है इल्मे-इलाहियात मुझे
तेरा ख्याल, मेरी रूह का उजाला है
सादर
रचना
वो इत्मीनान से मुझको हलाक कर के गया
जिसे मैं समझा था, बंदा ये देखा-भाला है...
...mujhe yaad hai apni ghazal ka wo sher
"qutl kar ke kaat li usne zaban meri,
nahi chahta shikayat ki jagah banana"
for manu, di and muflis ji:
ek bikhri si mitti tha jeevan "darshan"
ise aapne hi saanche main dhala hai,
किये सवाल जो खुद से तो पाया है अक्सर
के मैंने खुद को अजब कशमकश में डाला है
शमा को दी कभी तूफ़ान की निगेहबानी
दवा का काम कभी ज़हर से निकाला है
अति सुन्दर.
उसी के टूटने बनने से है हयात मेरी
वो एक ख्वाब जो मैंने नज़र में पाला है
शमा को दी कभी तूफ़ान की निगेहबानी
दवा का काम कभी ज़हर से निकाला है
भला सा होता है यूं तो कलाम अपना भी
पर उनके कहने का अंदाज़ ही निराला है
मनु जी... मनु जी ...
ये हैं लाजवाब शेर ..
सच में जीवन दर्शन को भी दर्शाते हुवे
Great !!
मनु जी,
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। आज वाकई शमा को तूफ़ान की निगेहबानी की जरूरत है। बधाई।
उसी के टूटने बनने से है हयात मेरी
वो एक ख्वाब जो मैंने नज़र में पाला है
वो इत्मीनान से मुझको हलाक कर के गया
जिसे मैं समझा था, बंदा ये देखा-भाला है
बहुत बढ़िया शेर हैं ... बधाई.
अल्फाज़ ओ फ़न ओ लताफ़त, सभी तो हैं इस ग़ज़ल में
लगता है शाएर ने रूह फूँक कर चश्मा ए सखुन निकाला है
उसी के टूटने बनने से है हयात मेरी
वो एक ख्वाब जो मैंने नज़र में पाला ह
लाजवाब बधाइ
मनु जे मेरी उपर वली टिप्पणी पर मत गौर करें वो तो औपचारिकतावश क दिया आपकी गज़ल पर तो मै कुछ भी नहीं कह सकती मुझे अभी गज़ल आती नहीं तो कहूँ क्या मगर भाव सारी गज़ल के दिल को छू गये मै तो बस आशीर्वाद ही दे सकती हूँ सो ढेरों आशीर्वाद हैं
किये सवाल जो खुद से तो पाया है अक्सर
के मैंने खुद को अजब कशमकश में डाला है
बड़े भाई मनु जी नमस्कार आजकल आपके कलम से खुछ ज्यादा ही नायब उम्दा गज़लें कही जा रही है ये मुझे बहोत दूर से समाचार प्राप्त हुआ है ,,, मगर सिर्फ शे'र के बारे में अगर कहूँ तो हुजूर ये सिर्फ एक शे'र आपको ग़ज़ल के बुलंदियों पे पहुंचाने के लिए काफी है क्या खून कही है आपने जनाब... वाह मजा आगया कमाल है ये तो ...अब तो ऐसा लगता है के ग़ज़ल के आपके दिवानो के फेहरिस्त कम होती जायेंगी जब से दिवानियाँ बढेंगी .... बहोत बहोत बधाई मेरे तरफ से भी कुबूल की जाये क्यूँ जॉन...
अर्श
बहुत सुंदर शब्द हैं गजल लेखन का ज्ञान मुझे नहीं है पर गीत गजल कविता मेरे लिए भावों की अभिव्यक्ति है. और आपकी गजल का एक एक भाव मन को छूने वाला है जीवन का अनुभव बताता है. आपकी यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
वो इत्मीनान से मुझको हलाक कर के गया
जिसे मैं समझा था, बंदा ये देखा-भाला है
भला सा होता है यूं तो कलाम अपना भी
पर उनके कहने का अंदाज़ ही निराला है
धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिए
सादर
अमिता
शमा को दी कभी तूफ़ान की निगेहबानी
दवा का काम कभी ज़हर से निकाला है...
वाह...मनु जी जबर्दस्त लिखते हो आप... मजा आ गया...
शमा को दी कभी तूफ़ान की निगेहबानी
दवा का काम कभी ज़हर से निकाला है...
वाह..
मनु जी,
ये आप क्या कर रहे हैं? हिन्दयुग्म पर आपने अपनी नायाब गज़लों से तहलका मचा रखा है आजकल. एक से एक बढ़कर.....आये दिन.....वाह! वाह!
तेरी जफ़ायें है इल्मे-इलाहियात मुझे
तेरा ख्याल, मेरी रूह का उजाला है
लाजबाब! Superb!
तारीफ़ में इसकी मैं क्या क्या न कहूं
आपकी ग़ज़ल तो शर्बत का इक प्याला हैं.
मैं गजल पर टिप्पणी करते डरता हूँ -----मुझे यह विधा बहुत कठिन लगती है----
डरता हूँ कि कहीं फाइलातून-फाइलातून समझ कर तारीफ कर दिया और तभी कोई अफलातून प्रकट हो कहने लगा-
फाइलातून-फाइलातून नहीं यह तो मफाइलातून -मफाइलातून है किस मूरख ने तारीफ कर दी ---
--मगर मनु जी आप की गजलों ने मुझे इतना प्रभावित किया कि सब भय त्याग कर यहाँ लिखने आ गया।
ईश्वर आपकी लेखनी को धार और पाठकों का भरपूर प्यार दे।
--बधाई स्वीकारें।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
"तेरा ख्याल, मेरी रूह का उजाला है"
ये मिस्रा मेरा हुआ मनु जी। कल देर रात गये की बातचीत...और ये लिंक न मिलता तो कुछ खूबसूरत शेरों से वंचित ही रह जाता मैं तो।
"वो इत्मीनान से मुझको हलाक कर के गया/जिसे मैं समझा था, बंदा ये देखा-भाला है"- अहा !! और इस शिर्षक वाले शेर का तो कहना ही क्या।
बहर कई जगह पर खटका-सा दे रहा है वैसे तो मुझे, शायद उस्ताद लोग ठीक से बता पायेंगे, लेकिन चंद मिस्रों ने दिल लूट लिया..
ओह गोड़,,,,,,,,,
मेजर साहिब,
अब इस का पोस्टमार्टम करके देखना पडेगा,,,,,,???????????
सभी दोस्तों का बहुत बहुत शुक्रिया...
न सिर्फ गजल को पसंद करने के लिए....बल्कि मुझ पर अपना स्नेह बनाए रखने के लिए..
एक बार फिर से आभार...
manu saheb,
main ne t'areef mein jaan nikaal di aur aap shukriya ada karain ge itni kanjoosi se. waah janaab. aaendah se main bhi t'areef mein kanjoosi karron ga, soch lijiye!
shaaer mere dil ko wasii'a kar zara
shukr mein na bukhl se kaam le abhi
- mohammad ahsan
वफ़ा ने टूट कर यूं अपना दिल सम्भाला है
ग़ज़ल में जब भी तेरा अक्स मैंने ढाला है
उसी के टूटने बनने से है हयात मेरी
वो एक ख्वाब जो मैंने नज़र में पाला है
bahot khoob ,behad umda
मनु जी...
बंधू क्या अच्छी ग़ज़ल कही है... इतने लोगों की प्रतिक्रियीएं इस बात की गवाह हैं कि ये लोगों के दिलों तक घर करने में भी कामयाब रही... अल्लाह करे ज़ोरे क़लम और ज़ियादा...
नाज़िम नक़वी
मनु जी,
हेड लाइन पढ़ कर आपकी ग़ज़ल होने का भ्रम हुआ था , और जब यह भ्रम सच निकला तो बहुत ख़ुशी हुई.
सिर्फ अच्छी है......., बहुत अच्छी है....., कह देना आपकी ग़ज़ल के साथ अन्याय होगा.... पर मुश्किल यह है कि आपकी ग़ज़ल के सामने कोई तारीफ़ के लायक शब्द मिल नहीं रहे ....अब हमारी मुश्किल समझ जाइए और मुबारकबाद कुबूल कीजिये :)
शुक्रिया मेजर साहिब,,,
एक जगह पे अटका लगा...और वो शब्द के सही और आम उच्चारण के कारण..
हम शमा शब्द का आम तौर पे प्रयोग करते हैं जब की सही शब्द शम्म'अ है,,,
कभी दी शम्म'अ को तूफ़ान की निगहबानी...
ऐसे कर सकते हैं....तो शमा का सही उच्चारण आ जाएगा...शम्म'अ..
इसके अलावा और क्या खटका है .... कृपया मेरी मदद करें ढूँढने में...
हमें तो बस वो जहानारा की गजल पे पता है
किसी की याद में दुनिया को हैं भुलाए हुए...
:)
एक बार फिर आपका आभार...
अरे कहीं कुछ नहीं अटक रहा है बेतखल्लुस साब...हम तो बस आपके साथ खिंचाई कर रहे थे...मुझे लगा कि कमेंट पढ़ते ही आपका फोन आयेगा...मैंने तो उसे बकायदा धुन में गा कर पढ़ा था...और जहाँ तक ’शमा’ की बात है तो याद है एक दिन आपने ही कहा था कि हम और आप ग़ज़ल वाले हैं न कि हिंदी-उर्दू वाले। प्रचलित उच्चारण शमा का है वो बिल्कुल सही बैठ रहा है धुन पर...
और ये आखिरी शेर मेरे लिये है क्या?
हा!हा!! मजाक कर रहा हूँ हुजूरssssssss...
manu ji, kamaal kar ditaa, waah waah .....
किये सवाल जो खुद से तो पाया है अक्सर
के मैंने खुद को अजब कशमकश में डाला है
Surinder Ratti
वफ़ा ने टूट कर यूं अपना दिल सम्भाला है
बहुत ही सुन्दर हर शेर लाजवाब आभार
सब ने इतनी तारीफ लिखा दी की मेरे लिए कुछ बचा ही नही
फिर भी अपनी पसंद का शे'र बताना तो पडेगा ही
तेरी जफ़ायें है इल्मे-इलाहियात मुझे
तेरा ख्याल, मेरी रूह का उजाला है
सलाम स्वीकारे (हिंदी उर्दू का इससे बढ़िया मेल क्या होगा )
सादर
मनु जी आपकी shayeri का जवाब नहीं, सबसे अच्छी बात जो मुझे लगती है वो है रवानी. हर शे'र अपनी रवानी में होता है.
शमा को दी कभी तूफ़ान की निगेहबानी
दवा का काम कभी ज़हर से निकाला है
achchhi gazal......
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