दोहा जनगण-मन बसा, सुख-दुःख में दे साथ.
संकट में संबल बने, बढ़कर थामे हाथ.
हम अंग्रेजी द्विपदियों का आनंद शन्नो जी के सौजन्य से ले रहे हैं.
1. अंग्रेजी के couplets बहुत ही अकेलेपन का अहसास लिए होते हैं, मिनिमलिस्टिक (न्यूनतमवादी) अर्थात कम से शब्दों का प्रयोगकर बात कहना.
2. दोहों की तरह दो पंक्तिओं के होते हैं (single stanza) या दो से अधिक पंक्तिओं के भी (large stanza) वाले भी. मेरा मतलब है कि पंक्तियों के समूह. कम लम्बी तथा अधिक लम्बी द्विपदियाँ
3. दोहों की तरह उनमे भी अपने विचार, भावनाएँ या सारगर्भित बातें कम शब्दों में कही जाती हैं.
4. उनमें भी लय होती है लेकिन हमेशा लय होना जरूरी नहीं होता.
5. उनमें हिंदी के दोहों की तरह मात्राओं की झंझट नहीं होती. (अंगरेजी में जो-जैसा लिख जाता है वैसा ही पढ़ा नहीं जाता. कई ध्वनियों यथा ण,ढ, ढ़, ड़ आदि के लिए वर्ण नहीं हैं. इसलिए मात्रा की परंपरा विकसित नहीं हुई किन्तु पदांत में ध्वनि समय का प्रयास किया जाता है...यद्यपि हिंदी के ध्वनि समय की तुलना में यह कहीं नहीं ठहरता)
6. इनके भी लिखने के कई तरीके होते हैं कुछ उदाहरण हैं जैसे कि:
छोटा 'short couplet' नाम है 'iambic'
एक उदाहरण देखिये यहाँ:
In to my empty head there come
a cotton beach, a dock wherefrom
बँटा 'split couplet' इसकी पहली पंक्ति का नाम 'iambic pentameter' है व छोटी पंक्ति का नाम होता है 'iambic meter'.
एक उदाहरण देखिये यहाँ:
The weighty seas are rowled from the deeps
In mighty heaps,
And from the rocks' foundations do arise
To kiss the skies.
(पदांत: डीप्स-हीप्स, अराइज-स्काइज...)
'Heroic couplet' इसकी दोनों पंक्तियाँ 'iambic pentameter' में हैं.
एक उदाहरण देखिये यहाँ:
Wave after waves in hills each other crowds
As if the deep resolved to storm the clouds.
(पदांत: क्राउड्स-क्लाउड्स )
'Alexandrine heroic couplet' 'iambic hexameter' में है.
एक उदाहरण देखिये यहाँ:
And that black night, That blackness was sublime
I felt distributed through space and time
(पदांत: सबलाइम-टाइम)
One foot upon a mountain top. One hand
under the pebbles of panting strand
(पदांत: हैण्ड- स्ट्रैंड )
One ear in Italy, one eye in Spain
In caves my blood, and in the stars, my brain.
(पदांत: स्पेन-ब्रेन)
बहुत समय पहले 1999 में जब लन्दन में Millennium Dome बना था तब उस पर मैंने एक poem लिखी थी उसमें की कुछ पंक्तियाँ यहाँ दे रही हूँ:
Like a giant spiky hat
Or, a crown for a king to wear
Looking over the crystal water
With all the glory and splendour.
Under the blue sky, hot Sun
Rain or raging thunder
We wait to unfold your secrets
O, worlds greatest wonder.
एक poem और written long ago:
All those happy
moments of wait.
All my hopes
crushed by fate.
Let me drown
all my sorrows, fears
And painful memories
in the sea of tears.
There won't be anything
more peaceful than to
Sleep in the blissful
hands of death.
मेरा अपना कहना है यहाँ:
कपलेट की गिटपिट में, बना सब कुछ कीमा
न लय का कोई बंधन, न मात्रा की सीमा.
हिंदी के दोहे मधुर, कपलेट की न जीत
कुछ ही कपलेट अच्छे, हिंदी सबकी मीत.
अब मनु जी के लिए इतना सुंदर कार्टून बनाने की ख़ुशी में अंग्रेजी में दो chinese दोहे:
Once there was a dragon
who was alone carrying a lantern.
एक और:
Happiness peace and lots of good wishes
Eat plenty of prawns and tasty fishes.
अब देखें दोहे का वैविध्य:
संस्कृत दोहा:
वृक्ष-कर्तनं करिष्यति, भूत्वांधस्तु भवान्.
पदे स्वकीये कुठारं, रक्षकस्तु भगवान्..
-शास्त्री नित्य गोपाल कटारे
मैथली दोहा:
की हो रहल समाज में?, की करैत समुदाय?
किछु न करैत समाज अछि, अपनहिं सैं भरिपाय..
-
ब्रम्हदेव शास्त्री
अवधी दोहा:
राम रंग महँ जो रँगे, तिन्हहिं न औरु सुहात.
दुनिया महँ तिनकी रहनि, जिमी पुरइन के पात..
डॉ. गणेशदत्त सारस्वत
बृज दोहा:
जु ज्यों उझकी झंपति वदन, झुकति विहँसि सतरात.
तुल्यो गुलाल झुठी-मुठी, झझकावत पिय जात..
-महाकवि बिहारी
भले-बुरे सब एक सौं, जौ लौं बोलत नांहिं.
जान पडत है काग-पिक, ऋतु वसंत के मांहि..
-कवि वृन्द
बुन्देली दोहा:
कीसें कै डारें विथा, को है अपनी मीत?
इतै सबइ हैं स्वारथी, स्वारथ करतइ प्रीत.
- रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'
नौनी बुन्देली लगत, सुनकें मौं मिठियात.
बोलत में गुर सी लगत, फर-फर बोल्ट जात..
-पं. रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर'
बघेली दोहे
मूडे माँ कलशा धरे, चुअत प्यार की बूँद.
अँगिया इमरत झर रओ, लीनिस दीदा मूँद..
-गंगा कुमार 'विकल'
पंजाबी दोहे
हर टीटली नूं सदा तो, उस रुत दी पहचाण.
जिस रुत महकां बाग़ विच, आके रंग बिछाण..
-निर्मल जी
पहलां बरगा ना रिहा, लोकां दा किरदार.
मतलब दी है दोस्ती, मतलब दे ने यार..
-डॉ. हरनेक सिंह 'कोमल'
दोहे के कुछ और रंग देखेंगे अगली गोष्ठी में. अन्य भाषाओँ / बोलिओं के दोहे आमंत्रित हैं.
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
हर भाषा के दोहों ने मुग्ध कर दिया......बहुत सुन्दर
गुरु जी कप-प्लेट का, छोडिये भी चक्कर
चाय गिलास में पीलें, डालें तनिक शक्कर
जैम में है क्या रखा, खाओ बस गुलकंद
कपलेट को अब भूलें, गाओ अपने छंद.
आचार्य जी,
मेरे कार्य में आपने अपनी ज्ञान-गंगा से पानी मिला कर उसे और शुद्ध कर दिया है. उसके लिए बहुत आभार. समय मिलते ही आपके आदेश का पालन करूंगी. तब तक के लिये.....
इच्छा पूरी मैं करुँ, अब बहुत अनिवार्य
हे ईश्वर, क्या करुँ, करें पूरन कार्य.
लज्जित न मुझे करें, करके मुझे नमन
मैं अपने श्रद्धा-सुमन, करती हूँ अर्पन.
अब मनु जी अलाप रहे, बहुत अनोखा राग
अंतरिक्ष पर जाऊंगा, मैं जल्दी ही भाग.
गुरु जी दया कीजिये, खींचें मनु के कान
मस्ती सारा दिन करें, बहुत बने शैतान.
पैर कुल्हाडी मारी, शन्नो इतनी त्रस्त
अजित की पताका कहाँ, खाली है अब हस्त.
What a nice article is here
portraiting the couplet,
Am working on doha
need to improve yet.
जानकारी के लिए आचार्यजी और शन्नो जी का आभार |
अवनीश तिवारी
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छ्या नहीं फल लागे अति दूर
मफाइलुन मुत्फ़ाइलुन फेलुन फाल फ़ऊल
फ़यिलातुन फेलुन फऊ फ़यिलातुन मफऊल
आचार्य प्रणाम,
पहले मैंने यूं कोशिश करके देखि,,,,
फिर कुछ और ध्यान देकर के एक और देखि जो के मुझे इस से सरल लगी,,,,
सही गलत आप बताएं,,,,,
फेलुन फेलुन फ़ाइलुन फेलुन फेलुन फाय,,,,,,,,,,,,,,,
इसी तरह के दोहा के लिए ये वाली बहर जो के मुझे पहले वाली से आसान औ सही लगी ,,सो ये लाया हूँ,,,,,,आप देख कर बताये,,,,,
शुरू में लगा के ये काम बेहद मुश्किल है,,,पर करने लगा तो आराम से हो गया,,,,
लेकिन एक अजीब बात भी हुई,,,,,
जाने क्यूं ये करते हुए भीतर से कई बार आवाज आई के मैं ये काम ना करुँ,,,,,,,
पर क्यूंकि इंटरेस्ट आ चुका था.... और आपने कहा था ,,,सो कर दिया,,,,,,
पर भीतर कुछ है जो यहाँ पर,,,इस बारे में सोचने से रोक रहा है,,,,,
हो सकता है के आपको ये मेरा होम वर्क ठीक लगे और आप इसे ओ,के, कर दें,,,,,
बेशक मेरा ज्ञान भी बढा और मुझे दोहे के अलावा बहर को भी जानने का मौका मिला ,,
पर जाने क्या है के मुझे ये सब करके खुशी नहीं महसूस हुई,,,,,
आशा है के आप इस बारे में भी मुझे बतायेंगे,,,,,
या शायद वो मेरे भीतर वाली बहर ,,,,,,इस बाहरी जानकारी से कुछ आहात हुई,,???
जाने क्या है,,,,,,पर कुछ है जरूर,,,,,,,,!!!!!!!!!!
मनु जी,
आपने तो आज कमाल कर दिया और गुरु जी की आज्ञा का पालन करके कुछ होम वर्क कर लाये. वेरी गुड बॉय! आज जो मैंने आपकी शिकायत की है गुरु जी से उसके लिये आपसे माफ़ी चाहती हूँ अपने कान खुद ही खींचकर. आपने जो भी लिखा है अच्छा ही होगा लेकिन अपने पल्ले कुछ भी नहीं पड़ा. यह सब क्या है, कौन सी भाषा है आदि सवाल दिमाग को खा रहे हैं. आप मुझपर हँसना चाहें तो free हैं हंसने के लिये. पर हेल्प! मुझे कोई समझाये कि इस सबका क्या मतलब है और मैं भी कैसे समझ सकती हूँ. आपकी बहादुरी की दाद देती हूँ मनु जी, आगे भी आप ऐसे ही गुड बॉय बने रहिये तो मैं भी जल्दी से छुट्टी पर हो आऊँ .
शन्नोजी ने कड़ी मेहनत करके हमें अंग्रेजी दोहों के बारे में बताया। लगता है अंग्रेजों ने हमसे ज्ञान लेने की कोशिश की लेकिन वे छंद तो बना नहीं सके अत: मुक्त छंद में ही अपनी बात कह दी और हमारे आधुनिक विद्वानों ने भी इसे ही अपना लिया। अब मनुजी भी बहर के बारे में संक्षिप्त में बता दें तो एक तुलनात्मक अध्ययन हो जाएगा। यह तो समझ आ गया है कि जैसे हमारे दोहों के प्रकार होते हैं वैसे ही गजल में बहर होती है। लेकिन शिल्प की दृष्टि से दोनों में कितना अन्तर है यह तो मनुजी ही बताएंगे।
शन्नो जी,
इसमें कमाल जैसी कोई बात नहीं है,,,और न ही ये कोई भाषा है,,,,न इसका कोई मतलब,,,,
जैसे दोहे में शब्द का वजन करने के सूत्र हैं,,,जगन मगन यमाता वगैरह होते हैं,,,ऐसे ही ग़ज़ल में शेर का वजन कने के सूत्र हैं,,,जैसे,,,
(खीरा) फेलुन (मुख से ) फेलुन
(काटिए) फ़ाइलुन
(मलिए) फेलुन (नोन) फेलुन
(लगाए) फाय,
इसमें,,,,,,,,,,,(नो --फे) (न लगाए--- लुनफाय )
ऐसे होगा.....
रहिमन ( फेलुन ) कड़वे ( फेलुन) मुखन को (फ़ाइलुन)
चाही (फेलुन)
(yahi सजाय ...फेलुन फाय...)----इसमें एक मात्रा आगे पीछे है पर कुल वजन बराबर है,,,,,या हो सकता है के ये दोहा ही मुझे एकदम सही याद ना आ रहा हो,,,,
है वही दोहे वाला,,,,
(फेलुन फेलुन फ़ाइलुन ---१३ ) (फेलुन फेलुन फाय------११ )
अब तक कभी ये सब जानना जरूरी नहीं समझा था ,,,इस होमवर्क के चलते जाना गया,,,,,
दिमाग की ज़रा सी कसरत हो गई इस बहाने,,,,,
अजित जी,
अंग्रेजो ने शायद हम से ही छंद लिए हो,,,,,क्यूंकि मुझे इस के बारे में एकदम से नहीं पता मेरे लिए तो कप प्लेट चाय पीने के सामान से अधिक और कुछ नहीं,,,:::::::::)))))))))))
और ये भी हो सकता है के गजल भी दोहे से प्रेरित होकर बनी हो,,,इसकी भी मुझे जानकारी नहीं है,,,,,
दोहे की जो धुन मन में बसी है बचपन से वो ये है जो ऊपर लिखी है,,,,, ये भी २३ तरह के होते हैं अब पता लगा है,,,,,,जितना भी जान सका अच्छा लगा,,,,,दोहे में कोई मात्र गिराई नहीं जाती,,,
हर शब्द जैसे लिखा है वैसे ही पूरे वजन सहित पढा जाता है,,,,,
गजल के शेर में ऐसा नहीं होता,,,,,इसमें शब्द की मात्रा को गिरा सकते हैं laai में लाने के लिए,,,
पर वही मात्राए जिन्हें गिराने की इजाजत आपकी जबान दे दे,,,,,
मैंने क्यूंकि बहर को जाना नहीं है या कहे के पढा नहीं है,,,,इसलिए ये बताना मेरे लिए मुश्किल है के कौन सी मात्राए कैसे और क्यूं गिराई जा सकती है ,,,,,ये तो मैं सामने बैठकर ही कह सकता हूँ,,,लिख कर नहीं,,,,पर कही कही देखा गया है के बहुत से लोग मात्रा को उस जगह गिराते हैं जहां पर हमारी जबान इजाजत नहीं देती,,,,ये बात गजल की खूबी को दोष बना देती है,,
चाहे किसी भी किताब का हवाला दिया जाए,,,पर मैं वही मानता हूँ जो मेरा दिल मान ले,,,
लगता है कुछ ज्यादाही हो गया,,,,
अच्छा,अच्छा....मनु जी, अब अपनी मोटी बुद्धि में आया कि आप क्या कह गये थे. आज तक हिन्दयुग्म को जानने के पहले कभी भी इस बहर नाम को नहीं सुना था. अपनी अल्प बुद्धि पर शर्म व तरस आ रहा है. कितना कुछ होता है इस दुनिया में जानने को और अंत दम तक कोई भी सब कुछ नहीं सीख पाता है. लेकिन फिर भी संतुष्ट रहना पड़ता है. आचार्य जी तो हैं ही आचार्य जी पर आप और अजित जी भी माशाअल्लाह. तो बहर का मतलब है Types या प्रकार और इनमें भी मात्राएं होती हैं. इस जानकारी को इतनी अच्छी तरह से समझाकर देने के लिए अति धन्यबाद.
It’s hard to find knowledgeable people on this topic, but you sound like you know what you’re talking about! Thanks
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