निर्भिक होकर उड़ चल अपनी डगर को
अम्बर सा आँचल लिये, तुम्हारी “माँ” है
रँज-ओ-ग़म के बादल भी काफ़ूर हो जायेंगे
आशियाने में पास तुम्हारे, तुम्हारी “माँ” है
किसकी तलाश में भटक रहा है मदार-मदार
काशी क्या, हरम क्या, बस तुम्हारी “माँ” है
ममता की गहराई से हार गया समन्दर भी
देख तेरी मुस्कान, जी रही तुम्हारी “माँ” है
तेरे कदमों की आहट से बढ़ जायेगी धड़कनें,
जाने कब से इंताजर में बैठी तुम्हारी “माँ” है
कवियों की करतूतों से, भ्रमित न हो तू
मु-अत्तर गुल्सिताँ सिर्फ़ तुम्हारी “माँ” है
उपमाओं से ना बदल शख़्सियत ऐ ‘कवि’
उसे “माँ” ही रहने दे, वो तुम्हारी “माँ” है
******************************************
रँज-ओ-ग़म = दुख: और दर्द
मदार = मोड़
हरम = मक्का का पवित्र स्थान
मु-अत्तर = खुश्बूदार
अम्बर सा आँचल लिये, तुम्हारी “माँ” है
रँज-ओ-ग़म के बादल भी काफ़ूर हो जायेंगे
आशियाने में पास तुम्हारे, तुम्हारी “माँ” है
किसकी तलाश में भटक रहा है मदार-मदार
काशी क्या, हरम क्या, बस तुम्हारी “माँ” है
ममता की गहराई से हार गया समन्दर भी
देख तेरी मुस्कान, जी रही तुम्हारी “माँ” है
तेरे कदमों की आहट से बढ़ जायेगी धड़कनें,
जाने कब से इंताजर में बैठी तुम्हारी “माँ” है
कवियों की करतूतों से, भ्रमित न हो तू
मु-अत्तर गुल्सिताँ सिर्फ़ तुम्हारी “माँ” है
उपमाओं से ना बदल शख़्सियत ऐ ‘कवि’
उसे “माँ” ही रहने दे, वो तुम्हारी “माँ” है
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रँज-ओ-ग़म = दुख: और दर्द
मदार = मोड़
हरम = मक्का का पवित्र स्थान
मु-अत्तर = खुश्बूदार
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34 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविराज,क्या खूब लिखा है,..बस बहुत देर से हिन्द-युग्म पर मन नही ठहर रहा था कि आज सूना-सूना क्यूँ लग रहा है,..मगर अभी जिसका इन्तजार था शायद वो आपकी कविता ही थी,..
बहुत सुन्दर लिखते है आप।सभी कि सभी पक्तियाँ बहुत भाव-पूर्ण है,..
निर्भिक होकर उड़ चल अपनी डगर को
अम्बर सा आँचल लिये, तुम्हारी “माँ” है
तेरे कदमों की आहट से बढ़ जायेगी धड़कनें,
जाने कब से इंताजर में बैठी तुम्हारी “माँ” है
माँ को मेरा शत-शत प्रणाम।
सुनीता(शानू)
मज़ा आ गया कविराज जी.. सचमुच बड़ी ही अच्छी पंक्तियाँ लिखी हैं आपने...|
निर्भिक होकर उड़ चल अपनी डगर को
अम्बर सा आँचल लिये, तुम्हारी “माँ” है
कवियों की करतूतों से भ्रमित ना हो तू
मुअत्तर ए गुलसिता सिर्फ़ तुम्हारी माँ है
सारी लाईनें उल्लेखित करने योग्य हैं...
एक संपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई |
मातृदिवस पर एक श्रेष्ठ कृति एवं कृतिकार को हार्दिक शुभ कामनाऐं।
sahi kahte hain aap .. bahut shresth aur sundar shabadon mein piroya hai Maa ke wyaktitw ko.. uske sneh ko.. mamtaw ko.. Maa to bas Maa hai..
bahut acche kaviraj ab to aap urdu kavi ban gaye........
बहुत सुन्दर कविता रची है आपने । हर पंक्ति भावपूर्ण है ।
घुघूती बासूती
मातृदिवस पर
एक श्रेष्ठ कृति
क्या खूब लिखा है,..
तेरे कदमों की आहट से बढ़ जायेगी धड़कनें,
जाने कब से इंताजर में बैठी तुम्हारी “माँ” है
कविराज
बधाई |
मातृदिवस पर .....
मां...
......
तुम क्या नहीं हो..मां... ?
तुम आंख हो मेरी
जिससे मैं देखती
ब्रहमाण्ड को.
तुम मेरी शिराओं में ,
बहता हुआ रक्त हो ,
जो मुझे देता है जीवन,
तुम हड्डी, मांस-
मज्जा हो.
जो मुझे देती है ताकत
अपने पावों पर
खडे होने की,
तुम दिमाग हो,
जो मुझे कराता है अहसास ,
सही गलत का ,
तुम ईश्वर हो,
क्योंकि तुम स्रष्टि का कारण हो,
उत्पत्ति का निमित्त हो.
तुम मां हो...
तुम्हें........
शत - शत -नमन
सस्नेह
गीता (शमा)
कविराज अच्छी कविता है । आनंद आया ।
mamta ki gaherai se haar gaya samander bhi...
dekh ker tumhari muskaan jee rahi hai tumhari maa....
giriraj ji....
maa ke liye to jub bhi kuch kaha jata hai ....maa jaise samne aa jaati hai.....
nirbhik hoker ur chali apni dager ko.....wah.....mamta ke aage saare aasmaan jhuk jate hai......aapki rachna ek khoobsorat ahesaas hai...
mein is site ko jyada dekha nahi hai.....lakin chama mangte huye ek baat kahena chahti hoo....ki rachna ki jo line pasand hoti hai ...vo hum copy kerke comment mein paste nahi ker sakte.....aisa kyo...?
kyoki koi line jyada pasand aati hai unko highlight kerne ka man kerta hai.....aur yaad nahi raheti......
meri painting ko aapne is mahan rachna ke saath diya....usko bhi apne arth mil gaye...
thanks for sharing
archana
कुछ मैं भी जोड़ना चाहूँगा गिरिराज जी आपकी इज़ाज़त से ---
निस्वार्थ प्रेम का दर्पण - माँ ही तो है...
पूजा का दीप पावन - माँ ही तो है....
माँ दिवस पर आपकी रचना मन को बहुत भाई ....
बहुत सुन्दर .....
ममता की गहराई से हार गया समन्दर भी
देख तेरी मुस्कान, जी रही तुम्हारी “माँ” है
तेरे कदमों की आहट से बढ़ जायेगी धड़कनें,
जाने कब से इंताजर में बैठी तुम्हारी “माँ” है
हर पंक्ति सुन्दर है...
ज़िंदगी जब भी उदास हो कर तन्हा हो आई
माँ तेरे आँचल के घने छावं की बहुत याद आई
दिल जब भी भटका जीवन के सेहरा में
माँ की प्रीत ने एक नयी रहा जीवन को दिखाई
ranju ......
maine yah panna pahalee bar khola hai. kaviraj ko ek maa ka aasheerwad.ab main bheekavita padaa karungee.karuna kakani
गिरिराज जी
मातृ दिवस पर इससे बेहतर रचना हो ही नहीं सकती थी। यह रचना हर हृदय को स्पर्श करेगी, कोमल भावना का सशक्त प्रस्तुतिकरण:
किसकी तलाश में भटक रहा है मदार-मदार
काशी क्या, हरम क्या, बस तुम्हारी “माँ” है
उपमाओं से ना बदल शख़्सियत ऐ ‘कवि’
उसे “माँ” ही रहने दे, वो तुम्हारी “माँ” है
बहुत बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
कविता सुन्दर है, मगर क्या अनावश्यक उर्दू के प्रयोग से बचा नहीं जा सकता. अर्थ मालूम न होने पर पूरी कविता के मजे का कबाड़ा हो जाता है, हिन्दी के सरल शब्द भी हैं.
अच्छी पंक्तियाँ हैं..
निर्भिक होकर उड़ चल अपनी डगर को
अम्बर सा आँचल लिये, तुम्हारी “माँ” है
Mothers Day ka rang zabardast chaya hua hai....
किसकी तलाश में भटक रहा है मदार-मदार
काशी क्या, हरम क्या, बस तुम्हारी “माँ” है
कवियों की करतूतों से, भ्रमित न हो तू
मु-अत्तर गुल्सिताँ सिर्फ़ तुम्हारी “माँ” है
वैसे इस ग़ज़ल रूपी कविता को पढ़कर पाठक यह नहीं कह सकता कि कवि का यह प्रथम प्रयास है। कुछ भाव बहुत स्वभाविकता से उभर कर सामने आये हैं-
किसकी तलाश में भटक रहा है मदार-मदार
काशी क्या, हरम क्या, बस तुम्हारी “माँ” है
संजय बेंगाणी की प्रतिक्रिया से मैं भी इत्तेफ़ाक रखता हूँ कि आपने जो उर्दू के शब्द प्रयोग किये हैं वो खाड़ (या सेवइयाँ) में नमक जैसे लगते हैं।
मातृदिवस पर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई कविराज|
ममता की गहराई से हार गया समन्दर भी
देख तेरी मुस्कान, जी रही तुम्हारी “माँ” है.
शायद, किसी भी मनुष्य के जीवन में सबसे प्रभावशाली महिला उसकी माँ ही होती है,
न तो उस माँ के प्रभाव को भूल सकते हैं और न ही उसके त्याग को।
गिरिराज जी ने सही मौके पर सही रचना लिखने का सफल प्रयास किया।
लेकिन, बाद चार पंक्तियाँ मुझे स्पष्ट नहीं हो पायीं, कृपया प्रकाश डालें।
मातृदिवस पर हार्दिक शुभ कामनाऐं।
सारी लाईनें उल्लेखित करने योग्य हैं ।
किसकी तलाश में भटक रहा है मदार-मदार
काशी क्या, हरम क्या, बस तुम्हारी “माँ” है
क्या खूब ।
पूरी कविता भावपूर्ण है । बधाई |
कविराज जी,
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ बुनी हैं आपने, सचमुच दिल खुश हो गया । ऊर्दु क प्रयोग भी उम्दा है ।
....साधुवाद
MAA sabdh ki wyakhya karna muskil hi nahi namumkin baat hai.
mgar app ek mhan kavi hai isliye apki kosis srhniye hai,dil ko chu jane wali hai.
magar app se niwedn hai ki ayesi kavita likhte rhiye,is tarah ki kavita mothers day ke alawa bhi likhte rahiye.
kavita ki har pankti kabile tarif hai.
"ममता की गहराई से हार गया समन्दर भी
देख तेरी मुस्कान, जी रही तुम्हारी “माँ” है"
शुभकामनायें कविराज
आप जैसे कवियों का श्रेष्ठ लेखन ही युग्म का प्राण है
सुन्दर कविता है, प्यारे भाव
और मातृदिवस के उपलक्ष्य पर युग्म पर ऐसी कविता ने आनन्द कई गुना बढा दिया
हार्दिक बधाई
बेंगाणी जी की सलाह पर गंभीरता से सोचें
सस्नेह
गौरव शुक्ल
जहा मेरी माँ है, मेरा वही आशियाना
कही भी जाऊँ यही लौट के है आना
किस धर्म को मानू मुझे पता ही नही
मैने तो उसे ही अपना भगवन है माना
बहूत अच्छा लिखा है भईया, उर्दू शब्द का प्रयोग और अच्छा लगता जब हरेक पंक्ति मे होता, तो ये पूरी तरह उर्दूमय रचना होती :)
बहूत सुन्दर धवल पावन और कोमल एहसासो से भरी रचना है।
माँ है तो जीवन है :)
giriraj ji ,maan ke upar jitna bhi likhiye kam hi hota hai. Lekin aapne apka kaam bakhubi nibhaya hai.
achchi gazal ban pari hai.
badhai sweekarein.
बधाई।
Kaviraaj Aapki.
Kalam ne jo jadoo kiya hai aankho ke samne "Maa" ke naam ka;
Tamnna bas yahi ke kalam ke niche naam yahi aaye "Maa' ke hi naam ka;
Likhti hi jaaye kalam lahu ke jaise, jo ho sirf desh ke kaam ka;
Chalne ka hi naam jindgi hai, koi waqt aur pal nahi yaha aaraam ka;
Yogdaan apna dete rahiye is sanskriti ki khatir, jis se achha desh aur Jahaan ka.
Hind-Yugm ko Pranaam.
very inpressive...........
bahut aache, kya khoob likha hai
माँ के लिए जितनी कविता लिखी जाएं, उतनी कम हैं।आपकी रचना पढ़कर भी माँ की तस्वीर आँखों के समने घूम जाती है।
किसकी तलाश में भटक रहा है मदार-मदार
काशी क्या, हरम क्या, बस तुम्हारी “माँ” है
इसे पढ़्के किसी ईश्वर की जरुरत नहीं रह जाती,
कविराज, अनुपम कृति के लिये बधाई स्वीकारें।
निर्भिक होकर उड़ चल अपनी डगर को
अम्बर सा आँचल लिये, तुम्हारी “माँ” है
mere paas shabd nahi hai......maa ki mamta ko mera pranam......bahut hi achchi lagi mujhe.....
गिरिराज जी,
ममता की गहराई से हार गया समुन्दर भी
देख तुम्हारी मुस्कान जी रही तुम्हारी 'माँ'है.
बहुत, बहुत, बहुत सही कहा.
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