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Wednesday, May 27, 2009

दोहा गाथा सनातन: 18- शब्द-सूर्य अज्ञान तम


सूर्य अस्त हो या उदय, देता है संदेश.
तम पी जग उजियार दे, मिलती खुशी अशेष..
शब्द-सूर्य अज्ञान तम, का करता है नाश.
नेह-नर्मदा बन 'सलिल', तब छू मन-आकाश..

दोहा के उद्भव, विकास, प्रभाव, सृजन, प्रकार तथा उपयोग पर दोहा गाथा में लगातार हम चर्चा कर रहे हैं. पत्र, सन्देश, प्रतिक्रिया, नव छंद निर्माण के पश्चात् इस सत्र में देखिये दोहा का एक नया प्रयोग

दोहा संग्रह की दोहा समीक्षा
(कृति विवरण: होते ही अंतर्मुखी, दोहा संग्रह, दोःकर: स्वामी श्यामानंद सरस्वती 'रौशन', पृष्ठ ११२, सजिल्द, बहुरंगी आकर्षक आवरण, १५० रु., आकार डिमाई, विद्या भगत प्रकाशन, रानी बाग, दिल्ली ३४.)

विश्व वांग्मय में नहीं, दोहा जैसा छंद.
छंदराज यह सूर्य सम, हरता तिमिर अमंद..
जन-जीवन पर्याय यह, जन-मानस का मित्र.
अंकित करता शब्दशः आँखों देखे चित्र..
होते ही अंतर्मुखी, दोहा रचिए आप.
बहिर्मुखी हो देखिये, शांति गयी मन-व्याप..
स्वामी श्यामानंद ने, रौशन शारद-कोष.
यह कृति देकर किया है, फिर दोहा- जयघोष..
सारस्वत वरदान सम, दोहा अद्भुत छंद.
समय सारथी सनातन, पथ दर्शक निर्द्वंद..
गीति-गगन में सोहता, दोहा दिव्य दिनेश.
अन्य छंद सुर किन्तु यह, है सुर-राज सुरेश..
सत्-चित-आनंद मन बसे, सत्-शिव-सुन्दर देह.
शेष अशेष विशेष है, दोहा निस्संदेह..
दो पद शशि-रवि, रात-दिन, इडा-पिंगला जान.
बना स्वार्थ परमार्थ को, बन जा मन मतिमान..
स्वामी श्यामानंद को है सरस्वती सिद्ध.
हर दोहा-शर कर रहा, अंतर्मन को बिद्ध..
होते ही अंतर्मुखी, रौशन हुआ जहान.
दीखता हर इन्सान में बसा हुआ भगवान्..
हिंदी उर्दू संस्कृत पिंगल में निष्णात.
शब्द-ब्रम्ह आराधना, हुई साध्य दिन-रात..
दोहा-लेखन साधना, करें ध्यान में डूब.
हर दोहा दिल को छुए, करे प्रभावित खूब..
पढिये-गुनिये-समझिये, कवि के दोहे चंद.
हर दोहे की है अलग, दीप्ति-उजास अखंड..
''दोहा कहना कठिन है, दुष्कर है कवि-कर्म.
कितनों को आया समझ, दोहे का जो मर्म..''--पृष्ठ १७
''दोहा कहने की कला, मत समझो आसान.
धोखा खाते हैं यहाँ, बड़े-बड़े विद्वान्..'' -''--पृष्ठ १७
सरल-शुद्ध शब्दावली, सरस उक्ति-माधुर्य.
भाव, बिम्ब, लय, कथ्य का, दोहों में प्राचुर्य..
''दोहे में मात्रा गिरे, है भारी अपराध.
यति-गति हो अपनी जगह, दोहा हो निर्बाध..''--पृष्ठ १७
प्रेम-प्यार को मानते, हैं जीवन का सार.
स्वामी जी दे-पा रहे, प्यार बिना तकरार..
''प्यार हमारा धर्म है, प्यार दीन-ईमान.
हमने समझा प्यार को, ईश्वर का वरदान..''--पृष्ठ २२
''उपमा सच्चे प्रेम की, किससे दें श्रीमान?
प्रेम स्वयं उपमेय है, प्रेम स्वयं उपमान..''--पृष्ठ २१
दिखता रूप अरूप में, है अरूप खुद रूप.
द्वैताद्वैत भरम मिटा, भिक्ष्क लगता भूप..
''रूप कभी है छाँव तो, रूप कभी है धूप.
जिससे प्रगत रूप है, उसका रूप अनूप''--पृष्ठ २४
स्वामी जी की संपदा, सत्य-शांति-संतोष.
देशप्रेम, सत् आचरण, संयम सुख का घोष..
देख विसंगति-विषमता, कवि करता संकेत.
सोचें-समझें-सुधारें, खुद को खुद अभिप्रेत..
''लोकतंत्र में भी हुआ, कैसा यह उपहास?
इंग्लिश को कुर्सी मिली, हिंदी को वनवास..''--पृष्ठ २७
''राजनीति के क्षेत्र में सबके अपने स्वार्थ.
अपने-अपने कृष्ण हैं, अपने-अपने पार्थ..''--पृष्ठ ३८
''ले आया किस मोड़ पर सुन्दरता का रोग.
देह प्रदर्शन देखते आंखें फाड़े लोग..''--पृष्ठ ४३
''कैसे इनको मिल गया, जनसेवक का नाम?
खून चूसना ही अगर, ठहरा इनका काम..''--पृष्ठ ५३
शायर सिंह सपूत ही, चलें तोड़कर लीक.
स्वामी जी काव्य पढ़, उक्ति लगे यह ठीक..
''रोती रहती है सदा, रात-रात भर रात,
दिन से होती ही नहीं, मुलाकात की बात..''--पृष्ठ ६२
कवि कहता है- ''व्यर्थ है, सिर्फ किताबी ज्ञान.
करना अपने ढंग से, सच का सदा बखान..'
''भौंचक्के से रह गए द्वैत और अद्वैत.
दोनों पर भारी पड़ा, केवल एक लठैत..''--पृष्ठ ६४
''मँहगा पड़ता है सदा, माटी का अपमान.
माटी ने माटी किया, कितनों का अभिमान..''--पृष्ठ ८३
'गंता औ' गन्तव्य का, जब मिट जाता द्वैत.
बने आत्म परमात्म तब, शेष रहे अद्वैत..
''चलते-चलते ही मिला, मुझको यह मन्तव्य.
गंता भी हूँ मैं स्वयम, और स्वयं गन्तव्य..''--पृष्ठ ११०
दोहे श्यामानंद के, 'सलिल' स्नेह की धार.
जो पड़ता वह डूबता, डूबा लगता पार..
अलंकार, रस, बिम्ब, लय, भाव भरे भरपूर.
दोहों को पढ़ सीखिए, दोहा छंद जरूर..
दोहा-दर्पण दिखाता, 'सलिल'-स्नेह ही सत्य.
होते ही अंतर्मुखी, मिटता बाह्य असत्य..
रचिए दोहे और भी, रसिक देखते राह.
'सलिल' न बूडन से डरे, बूडे हो भव-पार..

सम-सामयिक श्रेष्ठ दोहा संग्रहों में से एक यह कृति हर दोहप्रेमी को रचेगी.
कोइ प्रश्न या शंका न होने से गोष्ठियों का क्रम भंग किया जाता है. प्रश्नों के उत्तर सम्बंधित पाठ की टिप्पणी अथवा अगले पाठ में दिए जाते रहेंगे.
अगले पाठ में दोहे के कुछ और प्रकारों से परिचित होंगे.. तब तक नमन.

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Science Bloggers Association का कहना है कि -

दोहा गाथा पढ कर अच्छा लगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Manju Gupta का कहना है कि -

Dhoha gatha sargharvith aur sharthak hai.
Roshan mai ra per kaval ak o ki matra honi chahia.
Manju Gupta

manu का कहना है कि -

दोहे पढ़कर मजा आया आचार्य,
पर कुछ कमी सी नहीं खटक रही....?....(दोहों में नहीं...कक्षा में....!!!!!!!.....)

दोहा कक्षा नायिका ,कहाँ गयी इस बार
उनके कथ्य-विशेष की, मत बूझें सरकार,

मत बूझें सरकार, विलक्षणता तो देखें.
बेशक हों नव-छात्रा, आतुरता तो देखें,

कहे मनु, हे इश्वर और न लो ये परिक्षा,
वापस लौटें शीघ्र, हमारी, जाने-कक्षा
...
कुछ और भी भूल रहा हूँ...
प्रणाम आचार्या....( भूल गया था)

दिव्य नर्मदा divya narmada का कहना है कि -

मंजु जी!

उर्दू के शब्दकोशों में 'रोशन' और 'रौशन' दोनों रूप दिए गए हैं और दोनों का अर्थ समान है. उपनाम रखना कवी का अधिकार है, वह जिस रूप में लिखे उसे संपादित नहीं किया जा सकता.

मनु जी मेरी ओर से, कमी न किंचित शेष.
सहभागी भी जुड़े हैं, लेकर प्यास अशेष.

ऊँच-नीच ही ज़िन्दगी, घट-बढ़ ही सत्य.
चन्द्र कला सम आप हम, करते कार्य अनित्य.

Dora Shaw का कहना है कि -

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Priya Gupta का कहना है कि -

मुझे आपका लेख बहुत अच्छा लगा मैं रोज़ आपका ब्लॉग पढ़ना है। आप बहुत अच्छा काम करे हो..

v k का कहना है कि -

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