मांगता नहीं प्रभु तुमसे कुछ
हैं नहीं कुछ मेरे अरमान .
बिना दिये सामर्थ्य दीन को
नहीं कराना कभी विषपान .
विषपान नही कर सकता नर
रावण को देते अमृत दान .
न्याय तुम्हारा कैसा हे शिव ?
पी खून हुये दैत्य बलवान .
कलयुग में हैं भेजे तुमने
धरा पे क्या सारे हैवान
पाताल, नरक कर के खाली
तुमको क्या मिल गया भगवान .
हर कूचे में बसते रावण
एक राम का नही है काम .
आज जरूरत प्रलय नृत्य की
छोड़ के आओ अपना धाम .
नेत्र तीसरा खोलो पल भर
कर दो समूल दैत्य संहार
ले करवट फिर से धरा उठे
होने लगे शिव शिव गुंजार .
कवि कुलवंत सिंह
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
sundar hai, thought-provoking hai..
Sundar sarv hitkari kavita/prarthna...
Aabhar.
हर कूचे में बसते रावण
एक राम का नही है काम .
आज जरूरत प्रलय नृत्य की
छोड़ के आओ अपना धाम .
sachchi kavita.. ye lines bahut pasand aayi
आज जरूरत प्रलय-नृत्य की ,
छोड़ के आओ अपना धाम...
खूब...सुंदर...
भगवान् शिव को नमन ............
कविता के विषय में इतना ही कहूँगा:
"मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मुहब्बतों कि कहानिया
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो"
badhaayi. badhiya vyangya.
bas ek shabd 'haivaan', jo ki urdu ka tha, khatakta raha.
thanks to all of you dear friends..
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