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Wednesday, May 27, 2009

तांडव


मांगता नहीं प्रभु तुमसे कुछ
हैं नहीं कुछ मेरे अरमान .
बिना दिये सामर्थ्य दीन को
नहीं कराना कभी विषपान .

विषपान नही कर सकता नर
रावण को देते अमृत दान .
न्याय तुम्हारा कैसा हे शिव ?
पी खून हुये दैत्य बलवान .

कलयुग में हैं भेजे तुमने
धरा पे क्या सारे हैवान
पाताल, नरक कर के खाली
तुमको क्या मिल गया भगवान .

हर कूचे में बसते रावण
एक राम का नही है काम .
आज जरूरत प्रलय नृत्य की
छोड़ के आओ अपना धाम .

नेत्र तीसरा खोलो पल भर
कर दो समूल दैत्य संहार
ले करवट फिर से धरा उठे
होने लगे शिव शिव गुंजार .

कवि कुलवंत सिंह

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Neeraj Kumar का कहना है कि -

sundar hai, thought-provoking hai..

रंजना का कहना है कि -

Sundar sarv hitkari kavita/prarthna...

Aabhar.

प्रिया का कहना है कि -

हर कूचे में बसते रावण
एक राम का नही है काम .
आज जरूरत प्रलय नृत्य की
छोड़ के आओ अपना धाम .

sachchi kavita.. ye lines bahut pasand aayi

manu का कहना है कि -

आज जरूरत प्रलय-नृत्य की ,
छोड़ के आओ अपना धाम...

खूब...सुंदर...

Unknown का कहना है कि -

भगवान् शिव को नमन ............

कविता के विषय में इतना ही कहूँगा:

"मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मुहब्बतों कि कहानिया
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो"

mohammad ahsan का कहना है कि -

badhaayi. badhiya vyangya.
bas ek shabd 'haivaan', jo ki urdu ka tha, khatakta raha.

Kavi Kulwant का कहना है कि -

thanks to all of you dear friends..

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