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Thursday, January 29, 2009

समय चक्र और 16 कवितायें







काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन




विषय - चित्र पर आधारित कवितायें

चित्र - मनुज मेहता

अंक - बाइस

माह - जनवरी २००९





वर्ष २००९ के प्रथम काव्य-पल्लवन को लेकर हम हाजिर हैं। ये महीना है जनवरी का। ये महीना बताता है कि समय चल रहा है। नये वर्ष का आगमन है और पिछला वर्ष पीछे छूट गया है। यही महीना होता है मौसम में बदलाव का। मकर सक्रांति का। रात का समय कम होने और दिन का समय बढ़ने का। समय के चलते रहने के प्रतीक इस माह में हम भी लाये हैं १६ कविताओं का समागम। ये कवितायें आधारित हैं नीचे दिये गये चित्र पर। इस माह के काव्य-पल्लवन की उद्घोषणा में मनुज मेहता के चित्र को काफी पसंद किया गया। देखना यह है कि हमारे पाठक इन कविताओं को कितना पसंद करते हैं।

Manuj Mehta

आवश्यक सूचना: यदि आप भी अपना कोई चित्र अथवा फोटो जनवरी माह के काव्य-पल्लवन के अंक के लिये भेजना चाहें, तो हमें ३० जनवरी २००९ तक kavyapallavan@gmail.com पर भेजें। कृपया ध्यान रहें कि आपकी तस्वीर अथवा स्केच कहीं भी प्रकाशित न हुए हों।

आपको हमारा यह प्रयास कैसा लग रहा है?-टिप्पणी द्वारा अवश्य बतायें।

*** प्रतिभागी ***
श्याम सखा ’श्याम’ | विवेक रंजन श्रीवास्तव | रचना श्रीवास्तव | सीमा सचदेव | ज्योति बाला खरे | शारदा अरोड़ा | एम ऐ शर्मा " सेहर" | मंजु गुप्ता | शामिख फ़राज़ | दिलशेर दिल | देवेन्द्र कुमार मिश्रा | सी.आर.राजश्री | रश्मि सिंह | कमलप्रीत सिंह | सुनील कुमार ’सोनू’ | सुरिन्दर रत्ती

~~~अपने विचार, अपनी टिप्पणी दीजिए~~~




समय सीमा
न रहती तो
बहुत देर बतियाते हम
अगर
सामने बैठे रहते तो कब याद आते हम
बात से यूँ ही
नई बात निकलती है
रिश्तों में उष्मा हो
तो कड़वाहट मोम बन पिघलती है
मोम की देह में
धागे की अस्थियाँ रहती हैं
मन में
पीड़ा,
पीड़ा में
खण्डित सपनों की बस्तियाँ रहती हैं
हर धड़्कन
बस यही बात मुझसे बार-बार कहती है
समय के साथ-साथ
देह,
देह के साथ-साथ
साँस
साँस के साथ ही तो
आस की नदियाँ बहती है।
जो बस एक बात कहती है
सपनों में
मन, हीरामन बन जाता है
एक
एक·के बाद दुसरी
फिर आखिरी
यानि तीसरी कसम खाता है
तीसरी कसम
यानि मोह से दूर रहेगा
अपनी
व्यथा नहीं किसी से कहेगा
कहने-सुनने
में फिर समय सीमा
की बात आ जाती है
उजला सा दिन होता है खत्म
स्याह रात आ जाती है
अन्धेरे में
नयनों के दीप जगाते हम
समय सीमा
न रहती तो कितना बतियाते हम

--श्याम सखा ’श्याम’



समय के ब्लैक बोर्डपर
यादगार
पदचिन्ह छोड़ जाने की कोशिश में
रात दिन
अनवरत
भागमभाग कर रहे हैं हम !
चल रही है घड़ी
चल रही है दुनियाँ !
मनाते हैं हम
कोई दिन, कोई दिवस
बताने को
उसकी महत्ता !
दरअसल
दिन, दिवस, महीने
महान नही होते,
महान होते हैँ हमारे
किये गये कार्य,
जो बना देते हैं किसी क्षण को
चिरस्मरणीय!
या पोत देते हैं, कालिख
तारीख पर!

--विवेक रंजन श्रीवास्तव



समय के चाल की
कोई आवाज नही होती
पर सुनाई
बहुत तेज देती है
कुछ पल
इस से चुरा के
जो अपने आंचल पर बिखराती हूँ
दर्द के कांटे
स्वयम में चुभता पाती हूँ
ये देता है एक हाथ से
दो हाथो से लेलेता है
बादल निचोड़
कुछ छीटे
तपते जीवन पर बिखरता तो है
पर सूरज बन
उस नमी को पी जाता है
अपनी मौज में झूमता गुजरता है
कितनी सांसे टूटी ,फूल बिखरे
इन बातों से
दमन इसका कब छलनी होता है
बेवफाई का बोझ ले के
नजाने ये कैसे जीता है
रुक जाता उस रोज जो
कुछ अपने बचा लेती मै
देता जो थोडी मोहलत
गले उनको लगा लेती मै
दिल की गर्द झड़ने में लगी थी मै
तभी समय ने
मुझको छू के कहा
रुक गया जो पल भर भी
कायनात सारी थम जायेगी
दर्द की झडी
जो लगाये बैठी हो
कभी ख़त्म न हो पायेगी
ये पल बीतेगा
तो अगला पल ,
दस्तक देगा दहलीज़ पर तेरी
अपनी तो कहदी तुमने
पर देखो तो मज़बूरी मेरी
गलती कर के हर कोई
इल्जाम मुझ पर धर देता है
कर के खड़ा
कटहरे में मुझको
स्वयम
ब इज्ज़त बरी होजाता है
आज है कांटे तो बुरा हूँ मै
कल जब फूलों पर चलोगी
तो क्या याद करोगी मुझको
खुशी और गम लेके
सभी की झोली में
टपकता हूँ
चलो ,अभी चलता हूँ
उम्मीद की किरण
सुख का सूरज
तेरे आंगन में उगाना है
छाव धूप में उलझते हुए
मुझको बीत जाना है

--रचना श्रीवास्तव



१.समय का पहिया न रुका है
न रुकेगा
बस हर कोई उसके सम्मुख झुकेगा

२.समय की गति बलवान है
पर जो उसे नाप पाए
वही तो महान है

३. समय के पद-चिन्हों पर
चलकर मिलती नहीं
मंजिल कभी

४.जो समय पर समझ आ जाए
ज्ञान कहलाता है
जो समय से पहले समझ जाए
महान कहलाता है

५. समय को पकड पाना भी
अब आसान है
देखो बच्चों मे छुपे बूढों को
जिनके सम्मुख बडे भी नादान हैं

६.समय के साथ कदम हमें
मिलाना न आया
चले जब भी इसके पीछे
तो इसने खूब रुलाया
७. समय के साथ कदम मिलाकर
चलने का जमाना
हुआ अब पुराना
और वक्त से आगे चलने का राज
हमने कभी न जाना

८.समय का चक्र कहीं हम
जो रोक पाते
तो समय की कमी का कभी
बहाना न बनाते

९.समय ने देखो हमे
क्या से क्या बना दिया
कल सपना बुना था
आज स्वयं मिटा दिया

१०. समय बीत जाता है
छोड जाता है याद
गुलाम बना रखा सबको
बस स्वयं ही आजाद

११. समय के कदमों की
आहट नहीं होती
चुपचाप आकर गुजर जाए
तो मन मे कभी राहत नहीं होती

१२.क्यों कभी कभी समय
जैसे रुक सा जाता है
पीडा के झंझावात मे
बवंडर लाता है

१३.पीडा की काली अंधियारी रातों मे
समय गुजारे न गुजरता है
शायद दुख की परछाई से
आगे निकल्ने मे
यह भी डरता है

१४. समय कभी किसी का
साथ नहीं निभाता है
पर जो इसका साथ निभाए
यह उसी का हो जाता है

१५.आने वाला समय अभी
इतिहास बन जाएगा
वर्तमान को भविष्य का आईना दिखाएगा

--सीमा सचदेव



माँ...
मत मारो...
मुझे कोख में ही....
माँ.... मैं भी....
जीना चाहती हूँ.....
ये कैसा अंधेरा है...?
माँ....
मैं भी....
दुनिया देखना चाहती हूँ.....
मैं अभी....
बेज़ुबां हूँ माँ....
ये वक़्त ऐसा क्यूँ है....
हर कोई.....
मेरी मौत बनके.....
क्यूँ खड़ा है.....?
क्यूँ पापा.....?
आप मौन क्यूँ है.....?
माँ.....! अब....
तुमको ही आगे आना होगा...!
तभी ये तेरी बेटी बचेगी....!
माँ....
ग्यान की रोशनी फैलानी होगी...
तुझे ही....
ये काली चादर हटानी होगी.....
देखो माँ..!
अब सुबह भी होने को है....!
देखो माँ....
पाँच बजने वाले हैं.....
और....
तुम हो की....
अभी तक सोई हो...?
हे माँ...
अब तो जागो...!
और अपनी बेटी को बचा लो...!
अब तो जागो माँ....
अब तो जागो....................!!!!!

--ज्योति बाला खरे



१)
वक्त कुछ यूँ थमा

वक्त कुछ यूँ थमा
लम्बी लम्बी यात्राएं
क़दमों में कुछ यूँ ठहरीं
कदम बोलते खड़े
वक्त ठहर गया
वक्त कुछ यूँ थमा
घड़ी की टिक-टिक
तयशुदा समय ले कर
सांझ आई
मंजर बदल गया
वक्त कुछ यूँ थमा
जीवन कुछ यूँ थमा
वक्त है बोलता खड़ा
निशान बोलेंगे
सफर बदल गया
सुबह के पास कहीं
अँधेरा गहरा है
काली रातों का पहरा है
काल के हाथ कहीं
जीवन बहल गया


2 )
वक्त चलता रहा
सुबह और शाम
दिन-रात वक्त चलता रहा
तू सोया रहा
वक्त सपने भरता रहा
रात से डरा तू
ख़ुद को छलता रहा
सुबह का राज़
रात के सीने मई पलता रहा
क़दमों की लकीरों के परे
वही देख पायेगा
भोर की किरण
जो जमीं से जुदा
और वक्त की डोर थामे चलता रहा
3)
अक्स
काल चक्र चलता रहा, आदमी हिलता रहा
कदम जब जब रुके , वक्त का पहरा रहा
कैद कर लिये क़दमों में, नक्श बोलते खड़े
वक्त तो थमा नही , अक्स बोलते खड़े
--शारदा अरोड़ा



अब ये सागर शान्त है
पहले कई बार इसमें
ज्वार भाटा आये
और गये
रह गये
समय के गीत गुनगुनाते
कुछ अवशेष
तुम्हारी बाहें
नभ का विस्तार लिए
मौन सहेजती
सिमटना मेरा
तुम्हारे मन आँगन में
अधरों पर
गुलमोहोर की रंगत लिए
खिलखिलाना मेरा
अनदेखा कर
समय की गति को
भाव विभोर हो
बादल बन
विचरना मेरा
अकस्मात उस दिन
चले जाना तुम्हारा
बिना दोषारोपणक किए
इस तरह
बारिश के बाद
स्वच्छ आकाश से
विलुप्त होता
सुंदर इन्द्रधनुष
तब से
अब तक
उत्तर तलाशते
वेदना रहित
ठूठ की तरह जड़ होता
मेरा समय
करवट न ले पाया
ठहर गया वही !!!

--एम.ए. शर्मा ’सेहर’



घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो
नववर्ष पर मुंबई में हुई मैराथन की दौड़
मची धावकों में वक़्त चाल की होड़
हिन्द-युग्म की स्पर्धा का है वह चित्र
साधना के उच्च शिखरों को मिली जीत
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

फूल सा है जीवन
कब है मुरझा जाए
बुलबुलों सा है जीवन
करता हम से छल
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

इन नन्हें पैरों को
लक्ष्य पर बढ़ने दो
आए कितनी बाधाएं
उन्हें गर्तिमति दो
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

स्वप्न हो फिर साकार
फैले जग में नवप्रभात
नव-नव चरण बन
बने युग का प्रमाण
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

समय तुम से है चलता
नहीं है कभी रूकता
हमें दो अपना नाम
आए हम जग के काम
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

बढ़े जब जिसके कदम
सफलता ने लिया तभी दम
भरे हम में लगन हरदम
आस विश्वास न हो कम
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

समय की तुम पाबंद हो
समय पर चलना सीखा दो
वक्त पर हर काम हो
वह चाल हमें बता दो
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

तुम्हीं जग की सत्य की डगर
निर्भय बन देती खबर
कसौटी पर तुम हो खरी
दो दिशा हमें मानवता की
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

तुम हमारी हो आठ याम
सदा रहे तुम्हारा ध्यान
करें वक्त पर हर काम
फिर लक्ष्य की नहीं होती हार
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

नव वर्ष 2009 संदेश है लाया
घड़ी-गति की रफ्तार होती
रूक गई अगर गति
मृत्यु सी स्थिरता उधर होगी
घडी़ मेरे कदमों का सहारा बनो

--मंजु गुप्ता



यह कौन है जो तीन अक्षरों में छुपा रहता है
यह मौन है और तीन अक्षरों में छुपा रहता है
यह कौन है जो
मुड़ता भी नही, झुकता भी नहीं,
जमता भी नही, थमता भी नहीं,
किसने चला के इसे छोडा है कि
रुकता भी नही, थकता भी नहीं
यह कौन है जिसके
गुज़रे हुए लम्हों को याद कहते हैं
यह कौन है जिसके
आने वाले पलों को ख्वाब कहते हैं.
हाँ समय है जो तीन अक्षरों में छुपा रहता है
सब पे हुकूमत है इसकी और
तीन अक्षरों में बसा रहता है

--शामिख फ़राज़



जाने क्या था, मगर कुछ हुआ था!
काला-काला सा क्या छा गया था!

वक़्त कैसा यहाँ आ गया था!
आज सूरज कहीं सो गया था!

उस घड़ी दिल दहलने लगा था,
एक पल ही तो बच्चा जिया था!

उसको लड़की बनाया खुदा ने,
जुर्म उसका भला इसमे क्या था!

कोख में तूने क्यूँ मार डाला,
उसको पैदा तो होने दिया था!

उसने देखा न था अपनी माँ को,
और पापा को भी खो दिया था!

"लाश" वो बेज़ुबां पूछती है,
'माँ' बता तूने ये क्यों किया था!

"दिल" मेरा, दिल को थामे हुए 'बस'
वक़्त की चाल पे रो रहा था!

--दिलशेर 'दिल'



माँझी हो न निराश,
जीवन सागर में उठते ज्वार ।
प्रभु में आशा रख, विश्वास,
खेता चल पतवार ।।

सुख-दुख का मेल है,
प्रकृति का खेल है।
खेलता चल इसे,
हिम्मत न हार ।।
जीवन सागर----------------

शशि हो न उदास,
गृहण के बाद आये पूनम की रात ।
हर रजनी के अंत में, आता सदा प्रभात
वक्त का कर इंतिजार।।
जीवन सागर --------------

क्रांति के बाद ही,
होता सदा सुधार।
पतझर के बाद आये,
बसंत बहार।।
जीवन सागर---------------

दृढ हो संकल्प,
अटल रख विश्वास।
धैर्य और साहस से,
सिंधु करेगा पार ।।
जीवन सागर----------------

--देवेन्द्र कुमार मिश्रा



देखो इन पैरों को ........
छोटे छोटे ये खूबसूरत पाँव समय के साथ साथ
पल- पल बढ़ते रहते
गिरते सम्बलते आगे चलते
ठोकर खाकर मजबूत बनते
इन पैरों में अजीब से शक्ति है
मंजिल की ओर बढ़ने की गति है
दुनिया में अपनी जगह बनने की लगन है
वक्त के संग संग चलने की स्फ्रूति है
क्षितिज तक पहुँचने की क्षमता है
बुराईयों को जड़ से उकाढ़ने का वैराग्य है
तिमिर से जूझने का अडिग विश्वास है
मुशिकिलों का सामना करने का अटूट साहस है
देखो देखो इन पैरों को ......
अपना हाथ देकर इन्हे सम्भालों
सही रास्ता चुनने में इनकी मदद करों
इन पर नज़र रखों कहीं ये पैर भटक न जाए
वक्त की बेडियों में बंधकर कहीं ये लडखडा न जाए
इनका हौसला बढ़ावो कहीं ये बहक न जाए
देखो देखो इन पैरों को ......
महसूस करों इनकी आहट को
अरे ये तो अपने ही बचपन की
आहट है जिसे भी..........
अपनी तरह लंबा रास्ता तय करना है

--सी.आर.राजश्री



वक्त के आईने से
झांक रहा अपना ही अक्श
दीवार पर सजी तस्वीरे पूछे
कौन है ये शख्श
है सफ़ेद जिसके बाल
और चेहरे पर झुर्रिया
ढीला कुरता और ऊँचा पायजामा
झुकी कमर व हाथो मैं दवाइया
नाते-रिश्तो की लम्बी पंक्ति
तालियों की गडगडाहट ,और तगमे
समटने मैं लगी रही जीवन शक्ति
की अब अपना चेहरा देख कर
अपना आइना ही पूछे सवाल
बुझने को आ गयी अब जीवन मिशाल
समय ने किया कैसा कमाल
चलता रहा वो अपनी चाल
पलटते रहे कैलेंडर के पन्ने
बीतते रहे दिन पर दिन
गुजरते रहे साल पर साल .....
.................साल पर साल......

--रश्मि सिंह



गुज़रते वक़्त के साथ
थकन का अहसास
हम में से किसी को भी
निढाल कर देता है
हाथों की लकीरें पढ़ पाने
पढ़ लेने के बाद
बहुत बार व्यक्ति विशेष का
भविष्य जानना बता पाना सम्भव होता है
लेकिन पावों के तलवों पर
उभर आयी ये रेखाएं
एक लंबे सफर और
सतत संघर्ष का प्रतीक हें
अपने चाही चुनी पगडंडियों पर
पूरी आस्था के साथ
लगातार चलने वाले इन पावों ने
दुनिया की ऊंचाइयों को
सफलतापूर्वक मापा है
जब तक जीवन है ,संघर्ष है
और संघर्ष जीवन का ही दूसरा नाम है
ऐसे मे उच्चतम शिखर पर
पहुँचने की ललक के बावजूद
एक थकन का अनुभव हो आना
कितना सहज और स्वीकार्य है

--कमलप्रीत सिंह



सो रह गया उसका अमर पहचान

देखो वक़्त की सिलवटें पे कोई
छोड़ दिया अपना पद-निशान
मिट गया उसकी हस्ती सारी
रहा गया उसका अमर पहचान

अँधेरा उसे रोक न पाया
घडी की सुई भी टोक न पाया
भूकंप तो फटा ही होगा आगे-पीछे
आग की लपटे मगर उसे झोक न पाया
आज कहलाये वो शख्स महान
सो रह गया उसका अमर पहचान

धुन का पक्का सपने में चूर होगा
साहस-धैर्य -उर्जा से वो भरपूर होगा
हँस के स्वीकारता होगा चुनौतियों को
बंदा हठी वो खुदा में भी मशहूर होगा
थामा होगा बाजूओं में आंधी-तूफान
सो रह गया उसका अमर पहचान

कल और कल की सोच में
वो आज बर्बाद न किया होगा
मस्तमौला मनमौजी अल्हड़ सा
तन-मन से आजाद जिया होगा
मर्म जिंदगी के लिया होगा जान
सो रह गया उसका अमर पहचान.
सुख से अलगाव जैसी रिश्ता होगी
दुःख से गुलाब जैसी मित्रता होगी
मथ दिया होगा सौ-सौ समुद्र को
खुद जहर पीकर अमृत बांटा होगा लोगों को
कर्म से प्रसन्न हो गया भगवान
सो रह गया उसका अमर पहचान.

इस पद-निशान से जो
किरणे निकलती होगी
सूर्य जहाँ पहुँच न पाए
ये वहां चमकती होगी
तमस भरी जिंदगी में
लाता होगा नव-विहान
सो रह गया उसका अमर पहचान.

बाहरी आदमी के खोली में
अन्दर का आदमी सोया हुआ है
जो जगा न पाए उसको
अभागा वही आदमी रोया हुआ है
मै के भीतर 'मै' को जाना होगा
तभी सौ फीसदी दिल से लोग करते बखान
सो रह गया उसका अमर पहचान.

--सुनील कुमार ’सोनू’



भारत भूमि संतों की भूमि,
हमारी संस्कृति की एक अलग छाप,
विश्व में शायद कहीं नहीं, ऐसी प्रथा,
प्रभु राम के वनवास जाने के पश्चात,
रामजी की चरण पादुका को ही अपना सर्वस्व मान कर,
राज्य किया भारत जी ने,
कितना आदर और प्यार झलकता है,
एक संदेश दिया विश्व को,
के हम चरण पूजा करके भी,
निष्काम भाव से सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं,
चरण वंदना में हमारा ही लाभ छुपा है,
आशीर्वाद के रूप में,
ये लाभ बिना मूल्य के मिलता हो तो इसको पाने का,
प्रयास हमको अवश्य करना चाहिए
ये आशीर्वाद एक रामबाण दावा और हथियार मिला,
जीवन की गाड़ी को चलाने की ऊर्जा,
चरण धूलि का भी एक अलग ही महत्त्व है,
चरना धूलि मस्तक पर लगा कर
लोग फुले नहीं समाते, अपना सौभाग्य मानते है,
समय बदला, युग बदला पर,
हमारी संस्कृति हमारे शुद्ध विचार नहीं बदले,
संतों के आशीर्वाद से,
गुरु वंदना, हरी चरणों का रूप ध्यान करके,
अगर हमारे कष्टों निवारण होता है
तो हमें इसका प्रयास अवश्य करना चाहिए

--सुरिन्दर रत्ती



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30 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सभी कवियों को उनकी रचनायों के लिए बधाई.
shamikh.faraz@gmail.com

Unknown का कहना है कि -

वक्त के आईने से
झांक रहा अपना ही अक्श
दीवार पर सजी तस्वीरे पूछे
कौन है ये शख्श
bahut hi acha laga ye word
to hai hi sath main ye prenna deta hai ki bastawik main --- waqt apne dun main gujar jata hai -- waqt ke sat jawani ka aksh dekte dekte budapa main badal jata hai--bahut accha rasmi ji--bahut kub--likte rahiya

Unknown का कहना है कि -

kul milkar sahi ki rachna thik hai
sabhi ne samay ke mahatwo se ru ba ru karaya hai samay ki raftar ki pahchanee ki bhaut hi acchi preenaa di hai--- jai hind jai bharat

Anonymous का कहना है कि -

itni jhakaas kavitaaen......
salam-salam kaviraj(sare kavi)
www.sunilkumarsonubsa75.blogspot.com
sunilkumarsonus@yahoo.com

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

श्याम जी ,
रिश्तों में उष्मा हो
तो कड़वाहट मोम बन पिघलती है


बहुत सही कहा |

विवेक रंजन श्रीवास्तव भाई,

बहुत सुंदर लगी रचना |
सच के करीब |

रचना श्रीवास्तव जी,
रचना अच्छी है |
लेकिन बड़ी होने के कारण ज़रा भारी होती है |

सीमा सचदेव जी,
रचना अच्छी है |
और भावपूर्ण होती तो मजा आता |

ज्योति बाला खरे जी,
सुंदर है | समय और नारी समस्या को जोडा है |

शारदा अरोड़ा जी,

कामल का लिखा है |
बहुत सुंदर |


एम.ए. शर्मा ’सेहर’ जी,

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है |
बधाई|

मंजु गुप्ता जी,
नही मजा आया |
और कुछ होता तो ....?

शामिख फ़राज़ भाई ,
कम शब्दों में बहुत अच्छा कहने का प्रयास हुया है |

दिलशेर 'दिल' जी,
वाह !! सुंदर शेर बने हैं |

देवेन्द्र कुमार मिश्रा जी,

हर रजनी के अंत में, आता सदा प्रभात - इस पंक्ति के अतिरिक्त सभी सुंदर लगीं |
यह कुछ बहर से बाहर लगी |

सी.आर.राजश्री जी,
नही जमा |
और बढिया चाहिए |

रश्मि सिंह जी,
एक लयात्मक लगी रचना |

कमलप्रीत सिंह जी, रती जी और सोनू जी की रचनाएं अच्छी हैं |

सभी को बधाई |


अवनीश तिवारी

समयचक्र का कहना है कि -

सभी प्रतिभागियों को समयचक्र की और से हार्दिक बधाई जो आप सभी ने बेहद उम्दा रचनाये लिखी . आभार

Divya Narmada का कहना है कि -

काल पुरूष के पाँव पर,
पडी शनी की दृष्टि.
कदम कभी रुकते नहीं,
चाहे रोके सृष्टि.
धक्-धक् धड़कन घड़ी की,
या दिल की आवाज़.
काला लिए सफेद को,
साथ कहो क्या राज़.
काँटों-संग आगे बढो,
थक मत-रुक मत मीत.
रुका चुका झुक मिटेगा,
बनकर मात्र अतीत.
ज्योति जला रचना करें,
जाग्रत रहे विवेक.
नेह नर्मदा में नहा,
नवल रचें नित नेक.

manu का कहना है कि -

वक्त ठहरा है कहीं झील के पानी की तरह ,
चन्द लम्हे हुए बेताब ,गुजर जाने को....

अजनबी दर्द ने हैराँ किया दीवाने को....

चन्द लम्हों को शिकायत है मेरी आंखों से,
वक्त के जोर सितम से जो की नावाकिफ हैं,

दिल परीशान है मंजिल का पता पाने को..........

Anonymous का कहना है कि -

" दिल ढूंढता है फ़िर वो ही , फुरसत के रात दिन..
बैठे रहे...............................

जानां किए हुए...............

मनु

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

क्या बात है मनु जी..
दिल ढूँढता है फिर वही... बहुत अच्छा गाना याद दिला दिया आपने...

एक और गीत है..
वक्त के दिन और रात, वक्त के कल और आज..
वक्त की हर शय गुलाम, वक्त का हर शय पे राज

manu का कहना है कि -

तपन जी,

वक्त जब चुप सी खींच जाता है ,
तब जबां खोलते हैं ज़ख्म मेरे ..

.............

manu का कहना है कि -

वक्त ने झाडा है जब भी दामन
ख़ाक बन कर गिरे है ज़ख्म मेरे

manu का कहना है कि -

वक्त ने हर इक शै सुखा डाली,
देख, फ़िर भी हरे हैं ज़ख्म मेरे

Dilsher Khan का कहना है कि -

शुक्रिया अवनीश जी,
कम शब्दों में सीधे-सटीक कमेंट्स करने का तरीका पसंद आया!
=दिलशेर 'दिल'

SUNIL KUMAR SONU का कहना है कि -

yon nirantar chalta raha waqt ka pahiya,hamne use pakarna chaha to mano aur tez chal di.

आलोक साहिल का कहना है कि -

श्याम जी,सहर जी,देवेन्द्र जी,देल्शेर्त जी और फ़राज़ जी आपकी रचनायें खास तौर पर पसंद आईं........
बाकी अन्य साथियों ने भी लाजवाब प्रयास किया सबको साधुवाद...........
आलोक सिंह "साहिल"

Ria Sharma का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
Ria Sharma का कहना है कि -

अवनीश जी और साहिल जी !
सराहना केलिए तहे दिल शुक्रिया !!!

सभी प्रतिभागियों को बधाई !!!

manu का कहना है कि -

रचनाएँ सभी की अच्छी रही...
अलग अलग सोच लिए ..अलग अलग अंदाज़ लिए ..अपने अपने तरीके से चित्र को लिखती हुई ....रचना जी का.....कल जब फूलों पर चलोगी...हो खरे जी का एकदम अलग नजरिया हो....सीमा जी का अपना अंदाज हो...शामिख जी ...का अपना ...सब मिलते जुलते और कुछ अलहदा अलहदा तस्वीर की तस्वीर बयान करती.....
सभी को बधाई.....सभी को मुबारक बाद..............
अगले काव्य पल्लवन की प्रतीक्षा में..................

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

इस बार कविताये कम है लेकिन सभी परिपक्व है
निम्नलिखित पंक्तियां प्रभावशाली लगी |
*
सामने बैठे रहते तो कब याद आते हम
बात से यूँ ही
नई बात निकलती है
रिश्तों में उष्मा हो
तो कड़वाहट मोम बन पिघलती है
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दिन, दिवस, महीने
महान नही होते,
महान होते हैँ हमारे
किये गये कार्य,
*
आज है कांटे तो बुरा हूँ मै
कल जब फूलों पर चलोगी
तो क्या याद करोगी मुझको
*
समय कभी किसी का
साथ नहीं निभाता है
पर जो इसका साथ निभाए
यह उसी का हो जाता है
*
तब से
अब तक
उत्तर तलाशते
वेदना रहित
ठूठ की तरह जड़ होता
मेरा समय
करवट न ले पाया
ठहर गया वही !!!
*
हार्दिक बधाई और आभार !
*
विनय के जोशी

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thanks avneesh ji
=jyotibala khare

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shukriya manu ji,
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हौसला अफ़जाई का शुक्रिया विनय जी

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