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Thursday, April 09, 2009

दोहा गोष्ठी- 11 -जो मनु वह दोहा लिखे


जो मनु वह दोहा लिखे, पढ़े-गुने हो धन्य.
सत-शिव-सुन्दर छंद यह, इस सा छंद न अन्य.

मन आल्हादित देखकर, प्रतिभा का रजनीश..
शन्नो पूजा अजित मनु, तपन मुदित अवनीश.

''कब मनु जी दोहा लिखें, थके राह तक नैन.
जब तक दोहा न रचें, मिले न मन को चैन.''

दोहा कक्षा नायिका, शन्नो जी इस बार.
बहुत तेज हैं धाविका, सबको दिया पछार.

शन्नो जी से ही करें, चर्चा का आरम्भ.
सर्वाधिक दोहे रचे, बनीं सुदृढ़ स्तम्भ.

शब्द-चयन की सुगढ़ता, अर्थ दे मन को चैन
चतुर्थ चरण में ११ के स्थान पर १२ मात्राएँ...,

'शब्द-चयन सुगढ़ बनाये, अर्थ से मिलता चैन.'
मात्राएँ १३-११ के स्थान पर १४-१२ हैं...



अवनीश एस तिवारी

कहती प्रियसी अब लिखो ,
११२ ११२ ११ १ २
बीती जाती रैन ||
२२ २२ २१
-- 'प्रियसी' गलत, सही शब्द है 'प्रेयसी', सही शब्द का प्रयोग करने पर मात्राएँ १४, संतुलन के लिए 'कहती' को 'कहे' करें तो भाव या अर्थ को क्षति हुए बिना त्रुटी-सुधर संभव है. यूं कहें:
कहे प्रेयसी अब लिखो, बीती जाती रैन. / कहे प्रियतमा अब लिखो, बीती जाती रैन.

मनु जी सही दिशा में सोच रहे हैं. उनके सुझाव भी विचारणीय हैं.
"बोली सजनी अब लिखो, निकली आधी रैन"

तपन शर्मा-
शायरी के कायल मनु, दोहा करे बेचैन
अंतिम चरण में १२ मात्रा..., 'दोहा हरता चैन' करने से भाव वही, त्रुटि दूर...

शन्नो...
१. पकड़ लेखनी हाथ में,
१+१+१ २+१+२ २+१ २ =१३
मनु मन को दे चैन
१+१ १+१ २ २ २+१ = ११
शाबाश... बिलकुल सही.
२ अब लिखि भी ले मनु कछू
१+१ १+१ २ २ १+१ १+२ = १३
गुरु होंय बेचैन
१+२ २+१ २+२+१ = ११
लिखी, कछू व होंय...अशुद्ध प्रयोग...इनसे बचिए...
अब लिख भी ले मनु तनिक, गुरुवर हैं बेचैन...एक विकल्प है.

३.'सलिल'-वारि की बूँद पी
१+१+१ २+१ २ २+1 २ = १३
पा ले अतुलित चैन
२ २ १+१+१+१ २+१ =११
-- सही है. वाह!

४. मीठे बोल मिश्री घुले
२+२ २+१ १+२ १+२ = १३
कड़वे बोल कुनैन
१+१+२ २+१ १+२+१ = ११
'श्र' में दो ध्वनियाँ 'श' तथा 'र' मिश्रित हैं.. उच्चारण में संयुक्त अक्षर की अर्ध ध्वनि आधा श 'मि' के साथ जुड़ कर उसे दीर्घ कर देगा. 'मिश्' + री = मिश्री, मात्रा ४, ३ नहीं, 'मीठे' के स्थान पर 'मधुर' करने से भाव व अर्थ बदले बिना मात्र संतुलन ठीक हो सकता है. 'मधुर बोल मिश्री घुले, कड़वे बोल कुनैन' -सही प्रतीक chayan के लिए badhayee.

शन्नो
शुभ-शुभ बोलो मनु जी, कहीं ऐसा न होय १३+११
१ १ १ १ २ २ १ १ २ = १२ आपने १३ कैसे गिनीं?
हम हों कक्षा से बाहर, मिले ठौर ना कोय. १३+११
१ १ २ २ २ २ २ १ १ = १४ ( क + आधा क + शा = कक्षा, क+आधा क + श = क्ष)

shanno said...
सॉरी!
तीसरे चरण में एक मात्रा की कमी रह गयी थी. शायद मनु जी को ऐसी गलतियाँ महसूस न हो पायें पर मुझे उस मात्रा की कमी पूरी किये बिना बेचैनी हो रही थी इसलिए सुधार करना आवश्यक हो गया. और जल्दी से मनु जी के नाम में ज़रा सी तबदीली लानी पडी, क्योंकि जल्दी में कुछ और न सूझा. इसके लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ. आशा है कि मनु जी कोई समस्या नहीं खड़ी करेंगे.

शुभ-शुभ बोलो मनू जी, कहीं ऐसा न होय
हों हम कक्षा के बाहर, मिले ठौर ना कोय.

'मनु' को 'मनू करने के स्थान पर बोलो' को 'बोलिए' करें तो कैसा हो? देखिये
मनु जी! शुभ-शुभ बोलिए...होय-कोय से बचिए...कक्षा के कारण मात्रा १३ के स्थान पर १४ हैं.
मनु जी! शुभ-शुभ बोलिए, अशुभ न कहिये और.
हम कक्षा से दूर हों, मिले न भीतर ठौर.

-. अजित जी
जब श्रद्धा औ इडा मिले
11 12 2 12 12= 13
जगते मनु के बैन।
112 11 2 21 = 11
जब श्रद्धा औ इडा मिले
१ १ २ २ २ १ २ १ २ = १४ ( श्रृद्धा = श्र + आधा द + धा = २ +२ = ४, द्ध में दो ध्वनियाँ 'द' आधा तथा 'ध' हैं, 'आधा द' का आघात 'श्र' पर होता है,) इडा और श्रृद्धा मिलें = १३
बैन = बात, वचन, बोल, जगते मनु के बैन...वचन कैसे जगेंगे?...नैन जग सकते हैं... इडा-श्रद्धा के युग्म का अच्छा प्रयोग...साधुवाद, 'इडा और श्रद्धा मिलें, चाहें मनु के बैन...कैसा रहेगा?
तपन शर्मा
शेरों को करते पसंद,
२ २ २ १ १ २ १ २ १ = १४?
शे'र सुहाते हैं उन्हें, दोहा छीने हैं.
२ १ १ २ १ १ १ २ = १३
शन्नो जी
मृग-तृष्णा में भटक के, ना खोवे सुख चैन'' - सही है,
मृग-तृष्णा में भटककर, मत खोये सुख-चैन. में प्रवाह?
आतुर बोली लेखनी, ना हो अब बेचैन'' -सही, उचित लगे तो 'ना' को 'मत' कर ले
आज पढाया आपने कैसा अदभुत पाठ
सभी लगें गंभीर से करते थे जो ठाठ - वाह!...बिलकुल सही, मनु जी! दोहाकारों की संसद में दमदार प्रवेश के लिए बधाई...
शन्नो जी -
हल्दी-गाँठ पाय चूहा, ना पंसारी होय.
२ २ २ १ २ १ २ २ = १४?
बिल्ली समझे आँख मूँद,देख सके ना कोय.
२ २ १ १ २ २ १ २ १ = १४?
जल बिन सींचे बीज, न पेड़ कभी बन पायें
बौर बिन वृक्षों पर, कोयल गीत ना गायें.
दूध नहाया काग, न हंस कभी हो पाये.
पढ़कर बस दो अक्षर, न ही पंडित कहलाये.
अक्षर = अ + आधा क + श + र = २ + १ + १ = ४ मात्रा), होय, कोय से बचें...यह शब्द रूप सदियों पहले व्यव्हार में थे, अब खडी हिन्दी में दोष माने जाते हैं... , कुण्डली को बार-बार पढें तो लय मन में बैठ जायेगी, फिर मात्रा गिनना नहीं होंगी...अपने आप सही मात्रा आ जायेंगी...उदाहरण मनुजी.
मनु जी
शन्नो जी मत सोचिये तुच्छ स्वयं को आप
गिनती मात्रा छंद का जारी रखिये जाप -- शाबाश!, बिलकुल सही.

गप्प गोष्ठी के समापन से पूर्व एक और सच्ची घटना- कबीर को अपने युग में समाज से लगातार संघर्ष करना पड़ा. जब उन्हें महात्मा के रूप में पहचाना जाने लगा तो बहुत से मौकापरस्त उनसे नाता जोड़ कर अपना उल्लू सीधा करने की जुगत में भीड़ गए. ऐसे ही दो व्यक्ति थे उजी के पीर तथा झूँसी के शेख.तकी साधना के प्रारंभिक दिनों में कबीर ने इनसे संपर्क किया तथा उन्हें आध्यात्मिक दृष्टि से शून्य पाकर स्वामी रामानंद के शिष्यत्व ग्रहण किया. गुरु वंदना करते हुए कबीर ने लिखा-

राम नाम का पटंतरै, देबी को कछु नाहिं.
क्या लै गुरु संतोशिए, हौंस रही मन माहिं.


उजी के पीर तथा झूँसी के शेख ने यह मिथ्या प्रचार कराया की कबीर उनका चेला है. कबीर को यह झूठ सहन नहीं हुआ. वे न तो झगड़ना चाहते थे की उनकी शांति तथा साधना भंग होती, न ही अपने नाम पर ठगी देखना चाहते थे. सांप मरे..लाठी न टूटे... पर यह कैसे हो? अंततः, दोहा ही ऐसे आदे समय में कबीर के काम आया. उन्होंने दोनों ठगों को ललकारते हुए दोहे कहे-

शेख अकरदी-सकरदी, मानहुं वचन हमार.
आदि-अंत और जुग-जग, देखहु दीठ पसार.
नाना नाच नाचे के, नाचे नट के मेख.
घट-घट अविनासी अहै, सुनहु तकी तुम सेख.
कबीर की साफगोई से घबराकर दोनों फिर कभी उनकी राह का रोड़ा नहीं बने.
कर उद्घाटन सत्य का, दोहा हुआ प्रसन्न.
सत्य न जो पहचानता, होता 'सलिल' विपन्न.


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22 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

आदरणीय आचार्य जी,
दोहों में दोषों को सुधारने व सही-गलत के बारे में ज्ञान कराने का बहुत धन्यबाद. इसके लिए मैं आपकी बहुत आभारी हूँ. आगे से इन सब बातों को ध्यान में रखने की पूरी चेष्टा करूंगी. और जहाँ पर आपके बिचार से मैं सही थी उसमें आपका प्रोत्साहन पा कर मन उल्लसित हो गया.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मनु जी,
बधाई हो! आपके दोहों में कोई त्रुटियां न होने से आप दोहा-लेखन में top कर गए हैं. result announce हो गया है. आपने अपने दिमाग को दोहा-मनन करके बिलोया और आपकी प्रतिभा मक्खन की तरह तैर कर ऊपर आ गयी. आपकी इस fast progress के बारे में जानकर इतनी प्रसन्नता हो रही है कि बता नहीं सकती. आचार्य जी आपसे बहुत खुश हैं. आपके और दोहों के पढ़ने का इंतज़ार रहेगा.

शिक्षा पा दोहा रचा, जगा आपका ज्ञान
उभरी प्रतिभा देखकर, सब कितने हैरान.

श्याम सखा‘श्याम’ का कहना है कि -

इस सा छंद न अन्य.
इस सा से लय में बाधा आती है-चाहें तो इसे - ऐसा छंद न अन्य.कर देखें
श्याम सखा‘श्याम’

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

धन्यवाद आचार्य।
लेकिन एक बात बताइये... मैं जब भी दोहा लिखता हूँ..फिर मात्रायें गिनने लगता हूँ.. मान लीजिये मुझे दोहा लिखना आ गया.. फिर भी क्या हर बार मैं मात्रायें ही गिनता रहूँगा..क्या ऐसा भी होगा कि जो भी लिखो उसमें मात्रायें अपने आप ही ठीक लिखी जायें...
माफ़ कर दीजियेगा...पर वैसे ही बैठे बिठाये दिमाग में ये सवाल आ गया इसलिये पूछ बैठा.. क्या इतने वर्षों के अभ्यास के बाद आप अब भी मात्रायें गिनते हैं?

दोहा लेखन के बाद, मात्रा हर पल गिनूँ,
क्या वो दिन भी आयेगा, बिन गिने दोहा लिखूँ..

Divya Narmada का कहना है कि -

दोहा लेखन का जिसे, हो जाता अभ्यास.
मात्रा वह गिनता नहीं. हो जाता आभास.
मनु ने दो दोहे लिखे, दोनों बिलकुल ठीक.
मात्रा गिनने की नहीं, कभी चले वे लीक.
लय का सारा खेल है, अगर समझ लें आप.
बिन मात्रा दोहा जगत में जायेंगे व्याप.

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

धन्‍यवाद आचार्य जी, गलती दयी सुधार
‍संग मिले जब आपका, आते नए विचार।

manu का कहना है कि -

शिक्षा पा दोहा रचा, जगा आपका ज्ञान
उभरी प्रतिभा देखकर, सब कितने हैरान.

सब कितने हैरान मगर देखो शन्नो जी,
यहाँ भी मुख्य आप भला कैसी मन मर्जी
श्याम सखा भी देख ज़रा समझाने आये
"बे-तख-लुस" की बात में हाँ "मीलाने" आये
------------- --------

जरा मात्राओं को जबरदस्ती उठाने और गिराने की कोशिश कर रहा था,,,,
सॉरी,,,,

आज मनु के हाथ से हाथ मिलाने आये,
ये शायद सही हो आचार्या,,,
पहले वाला मेरा एक्सपेरिमेंट गलत था ना..??

manu का कहना है कि -

अरे,,, वो कुंडली वाला काम तो रह ही गया शायद,,,,, जहां पहले वाले शब्द आने चाहिए,,,,

ज़रा दोबारा देखें आचार्या,,,
और इसी में जोड़ लें,,,,,

कहें अजीत भी गलती देख के दे दें दीक्षा
पाएंगे ऐसे ही सब दोहा की शिक्षा,,,,

ज़रा जल्दी में था आचार्या,,,,,( नंबर देते समय थोडा ध्यान दीजियेगा,,,)

:::::::::::))))))))

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मनु जी,
आप शायद बेखबर हैं कि आप बाजी मार ले गये दोहा लिखने में,और मैं...मैं..मैं तो बस गिनती ही गिनते रह गयी यहाँ (और अब भी गिन रही हूँ बड़े ध्यान से).

मनु का कहना मानकर, करने बैठी जाप
गिनती रह गयी मात्रा, बाजी जीते आप.

सबको कक्षा में पछाड़ कर आप सर्र से आगे बढ़ गये और सबको आश्चर्य चकित कर दिया. वाह! क्या चमत्कार कर दिखाया! मेरे नाम का दोहा हमेशा सुरक्षित रहेगा. धन्यवाद.

मनन,चिंतन,जतन करके,जड़मति होत सुजान
लगन लगाकर पढो तब, मिल पाता है ज्ञान
मिलता सबको ज्ञान, ज्ञान का अंत न कोई
मन में उठे उमंग, तो रोक सके न कोई
'शन्नो' कहती सुनो, कुछ भी ना रहता सदा.
फिर भी करते रहो, सबका भला यदा-कदा.

manu का कहना है कि -

मनन जतन से ही हुए जड़मति सभी सुजान
लगन लगा कर जब पढें मिल जाता है ज्ञान
मिल जाता है ज्ञान न ज्ञान का अंत है कोई
मन में उठे उमंग तो रोक सके ना कोई
'शन्नो' कहती सुन मनु कब रहता ये जीवन
कर तू भी संजीव सलिल के जैसा चिंतन

शायद ऐसे ना करें,, शन्नो जी,,,
आचार्य से पूछ कर,,,,?

kyaa aachaarya ,,yahaan do jagah KOI shabd sahi hai....?
ghazal ke sher me to ye galat lagtaa hai...

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

sorry!
गुरु जी, मनु जी, कुंडली में जरा correction करने की बात मन में आई. दिमाग की बत्ती dim हो जाती है कभी-कभी. फिर पोस्ट करते ही अचानक तेज हो जाती है. पुरानी समस्या है हमेशा की तरह.
मनन,चिंतन,जतन करके,जड़मति होत सुजान
लगन लगा कर पढ़ो तब, मिल पाता है ज्ञान
मिल पाता है ज्ञान, ज्ञान का अंत न कोई
मन में उठे उमंग, तो रोक सके न कोई
'शन्नो' कहती सुनो, राम-नाम लेकर सदा
इस जग में कुछ करो,सबका भला यदा-कदा.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अरे वाह!
मनु जी, बाजी पर बाजी लिये जा रहे हैं आप तो. correction के लिए धन्यबाद. आचार्य जी का समय आपने बचा दिया. कुंडली में दोहे के चारों चरण में आपका किया सुधार अच्छा लगा और फिर आखिर के चार चरण भी जो आपके अपने हैं. मुझे पूरा यकीन है कि गुरु जी भी समर्थन करेंगें. दोहा-भगवान की बहुत उपासना करी है, ऐसा लगता है. Talk about me....मनन, चिंतन और जतन के बाद भी मैं जड़मति ही रह गयी. अफ़सोस!

manu का कहना है कि -

शन्नो जी,
आपके यदा कदा देख कर ध्यान आया के शायद muhe bhi अंतिम शब्द बड़ी मात्रा का लगाना हो,,

मिल पाता है ज्ञान, ज्ञान का अंत न कोई

अब मुझे लग रहा है के ये वाली लाइन मैंने खामखाह ही छेड़ दी,,,,बल्कि बहुत ही गलत छेड़ दी,,,, वेरी सोरी शन्नो जी,,,,,
हमारे करेक्शन वाली लाइन से ये वाली लाइन ज्यादा सही लग रही है ..
क्या आचार्या अगर ये आखिरी वाली मात्रा बड़ी के बजाय छोटी ही रखू.... तो क्या कुंडली के बजाय कुछ और बनेगा या एक दम गलत हप जायेगा....

'शन्नो' कहती सुनो, राम-नाम लेकर सदा
इस जग में कुछ करो,सबका भला यदा-कदा.

शन्नो जी, आचार्य जी,

ये लाइने अटक रही थी,,,,,
अभी बड़ी मुश्किल से गिनती मार कर चेक की तो गिनती के हिसाब से एकदम सही लगी ( या हो सकता है के हमारी गुनती ही गलत हो,,,,:::)))कृपया इसका भी बताये,,,

राम-नाम......और यदा-कदा एक साथ बोलने में दिक्कत हो रही है...
नहीं शन्नो जी....?

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