हमारे निर्णायकों की कुछ निहित व्यस्तताओं के चलते दिसंबर माह की प्रतियोगिता के परिणामों को प्रकाशित करने मे कुछ विलम्ब हुआ, जिसके लिये हम पाठकों और प्रतिभागियों से क्षमाप्रार्थी हैं। कविता अपने समय से संवाद करने और उसकी धड़कनों को अपने जेहन के दस्तावेज मे दर्ज करने की सशक्त माध्यम है। तो यूनिप्रतियोगिता हमारे प्रतिभागियों के लिये कविता की कला को समझने और अपने आप को मांजने का महत्वपूर्ण माध्यम रही है। इसी वजह से तमाम कवि/कवियत्रियाँ परिणाम की फ़िक्र किये बिना निरंतर हर माह इसमे भाग लेते हैं।
दिसंबर माह का संस्करण इस प्रतियोगिता के अबाध आयोजन की अड़तालिसवीं कड़ी था। प्रतियोगिता मे इस बार कुल 40 कविताएं शामिल हुई थीं। जिन्हे कि पांच निर्णायकों द्वारा दो चरणों मे आंका गया। पहले चरण के 3 निर्णायकों की पसंद के आधार पर 20 कविताओं ने दूसरे चरण मे जगह बनाई जिसमे दो निर्णायकों ने अपनी कसौटी पर उनको परखा। अंतिम अंक सूची के आधार पर कविताओं का वरीयता क्रम निर्धारित किया गया। निर्णायकों के मुताबिक इस माह कई अच्छी कविताओं के शामिल होने से शीर्ष कविताओं का क्रम निर्धारित कर पाना एक कठिन काम भी रहा, जो हमारे लिये खुशी की बात है। अंतिम अंक-तालिका के आधार पर स्वप्निल कुमार आतिश की कविता ’सड़क’ को इस बार की यूनिकविता का गौरव हासिल हुआ है। आतिश पिछले कई माह से युनिप्रतियोगिता के अहम हिस्सा रहे हैं और उनकी तमाम गज़लें और नज़्में पहले भी शीर्ष दस मे शामिल हुई हैं। मगर अभी तक उनकी कविताएं यूनिकविता बनने के पायदान से कुछ पीछे रह जाती थीं। मगर इस बार की उनकी कविता को सभी जजों ने शीर्ष पर रखा और इस तरह पिछले साल की अंतिम प्रतियोगिता के यूनिकवि का खिताब आतिश को हासिल हुआ है।
यूनिकवि: स्वप्निल कुमार ’आतिश’
युवा कवि आतिश की पैदाइश गाजीपुर (उ.प्र.) की रही। घर मे पहले से ही पढ़ने-लिखने का माहौल था और साहित्यिक संस्कार और समझ अपनी माँ से हासिल हुए। दिल्ली मे ग्रेजुएशन के लिये आये और तब से इसी शहर के हो कर रह गये। आतिश ने बायोटेक से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। पहली बार जगजीत सिंह की गायी मिर्जा ग़ालिब की ग़ज़लें सुनते हुए ग़ालिब को समझने की ललक जागी। फिर उनकी शायरी का सफ़हा-दर-सफ़हा खूबसूरत सफ़र इतना दिलचस्प और मानीखेज लगा कि शायरी से गहरा रिश्ता कायम हो गया। उसके बाद रही कसर गुलज़ार साहब की नज़्मों ने पूरी कर दी। तब से गज़लों, नज्मों और कविताओं से शुरू हुआ सिलसिला बदस्तूर जारी है। गुलज़ार के अलावा निदा फ़ाज़ली, दुष्यंत कुमार, बच्चन और कुँअर बेचैन की रचनाओं ने भी गहरा असर डाला है। आतिश नज्मों-कविताओं के अलावा स्क्रिप्ट राइटिंग, अनुवाद वगैरह से भी जुड़े हैं। कई गज़लें-नज़्में पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित भी हुई हैं। किसी दिन मुम्बई जा कर खुद की स्क्रिप्टों पर काम करने की ख्वाहिश है। साथ ही अपनी मातृभाषा भोजपुरी को भी कला-साहित्य मे इज्जत दिलाने का मंसुबा भी रखते हैं। फिलहाल अपनी पहचान बनाने की कोशिश और तलाश जारी है। हिंद-युग्म पर एक कवि और पाठक के तौर पर खासे सक्रिय रहे हैं।
प्रस्तुत कविता सड़क को सरकारी विकास के प्रतीक के रूप मे इस्तेमाल करती है और इसी बहाने विकास के किसी समाज के भविष्य से कायम अनसुलझे रिश्ते की गिरहें खोलने की कोशिश करती है।
सम्पर्क: 8826308023
यूनिकविता: सड़क
अब पक्की हो गयी है,
कच्ची थी तो तन्नी सा
बरम बाबा के पास
रुक जाती थी,
अब भी रूकती है
पता है उसे
कि कच्चियै हो जायेगी
फिर एक दिन ..!
सड़क जब कच्ची थी
त फेंकूआ के घर
लड़का हुआ था,
सड़क पक्की होते होते
बच्चे का नाम
घूरा धरा गया,
नहीं बदलता
नाम रखने का तरीका
सड़क पक्की होने से...!
जब सडक कच्ची थी
गांव का एगो आसिक
सोचता था
“रख दें एक अँजूरी
जो भैंसही का पानी आसमान में
त फलानी
आजो चाँद देख लेगी,
सड़क पक्की हो गयी
पर ऊ
आजो वइसहीं सोचता है...!
सुदेसर बिदेसर के जाल में
आजो कुछ नहीं फंसता,
नदी में मछरी
सड़क पक्की हो जाने से
थोरही आ जायेगी ..!
चहेंटुआ पहले ठाकुर साब किहाँ
काम करता था
सड़क बनते ही
बम्बई भाग गया
अब बर्तन धोता है
एगो होटल में...!
सड़क पक्की होने से
खाली सड़क पक्की होती है
नहीं पक्का होता गांव का भाग्य,
हाँ
बढ़ जाता है खतरा
गांव के सहर चले जाने का
या सहर के गांव में आ जाने का ।
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पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इसके अतिरिक्त दिसंबर माह के शीर्ष 10 के अन्य कवि जिनकी कविताएं हम यहाँ प्रकाशित करेंगे और जिन्हे समयांतर की वार्षिक सदस्यता दी जायेगी, उनका क्रम निम्नवत है
सौरभ राय ’भगीरथ’
अनिल कार्की
नरेंद्र तोमर
सुरेंद्र अग्निहोत्री
डॉ नागेश पांडेय ’संजय’
धर्मेंद्र कुमार सिंह
वसीम अकरम
ऋतु वार्ष्णेय
डॉ अनिल चड्डा
शीर्ष दस के अतिरिक्त हम जिन चार अन्य कविताओं का प्रकाशन इस प्रतियोगिता के अंतर्गत करेंगे, उनके रचनाकारों के नाम हैं
सुधीर गुप्ता ’चक्र’
संगीता सेठी
चारु मिश्रा ’चंचल’
राजेश पंकज
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 7 फ़रवरी 2011 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले शेष कवियों के नाम निम्नांकित हैं
अश्विनी कुमार राय
स्वामी आनंद प्रसाद मनसा
रिक्की पुरी
नूरैन अंसारी
सुधांशु शेखर पांडेय ’प्रफ़ुल्ल’
मृत्युंजय श्रीवास्तव साधक
पुष्पेंद्र पटेल
डिम्पल मलहोत्रा
शन्नो अग्रवाल
स्नेह सोनकर ’पीयूष’
बोधिसत्व कस्तुरिया
डाँ ज्योति शोनक
विवेक जैन
धर्मेंद्र मन्नू
जोमयिर जिनि
अनिरुद्ध यादव
सनी कुमार
नीरज पाल
दीपक कुमार
अनामिका घटक
विमला किशोर
मनोज सिंह भावुक
विनय मलिक
सीमा स्मृति मलहोत्रा
प्रदीप वर्मा
अनवर सुहैल
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
सबसे पहले तो आतिश जी को यूनिकवि बनने पर बधाई। बहुत सुंदर तरीके से लिखी गई शानदार कविता है। अंतिम पंक्तियों ने इसे नई उँचाई प्रदान कर दी है। बधाई
Aatish sa'ab... badhaai mere yaar. meri nazar me to tum har baar ke Unikavi ho.
सड़क पक्की होने से
खाली सड़क पक्की होती है
नहीं पक्का होता गांव का भाग्य,
हाँ
बढ़ जाता है खतरा
गांव के सहर चले जाने का
या सहर के गांव में आ जाने का ।
शानदार आतिश जी बधाई
bahut bahut bandhai swapnil ....:)
behad khoobsoorat tarike se kavita kahi hai ....sadak se G T rod jyada door nahi hai bas tum ese hi likhte jao ..dhero shubhkaamnayen :):)
आतिश जी बधाई
पता नहीं इन सड़कों से विकास अन्दर आता है कि सरलता बाहर चली जाती है।
स्वप्निल को ढेर सारी बधाइयाँ !
Atish Sahab ji ko baut bahut badhayi .......... maine aapko padane ke liye bahut utsuk rahta hoon.....
आंचलिक भाषा कविता को और भी खूबसूरत बना रही है...
प्रिय बंधुवर स्वप्निल आतिश जी को यूनिकवि बनने पर हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
सभी मित्रों के लिए शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
स्वपनिल को पढना हमेशा एक नए अनुभव से गुज़रना रहा है। यह कविता भी अपवाद नहीं है। उसे ढेरों बाधाइयां और शुभकामनाएं।
aap ko bahut bahut badhai.
sahi kaha hai pata nahi sadak ganv se kya kya le jaye aur kya kya andr beke
punah badhai
rachana
गाँव के घूरे की सोंधी महक लिए हुए सच्ची सुच्ची रचना जो भावुक कर गयी...
बहुत बहुत सुन्दर रचना...
'atishji'ki kavita jameeni sachchai ko hridyangam karti hui dil o dimag ki tadap hai. aisi rachnayen premchand,fadeeshwar nath renu aur baba nagarjun ki lekhni ko aage badhatin hain .
rachna sammanit hui ,sammanniy hai.
bahut-bahut badhai !
हिन्दयुग्म , निर्णायक मंडल, साथी कवियों/शायरों, और आप सभी दोस्तों को बहुत बहुत शुक्रिया यह सम्मान देने और इस योग्य समझने के लिए....
सादर
आतिश
kavita bahut acchi lagi........
sumit bhardwaj
बहुत-बहुत बधाई ।
Sir mai bhi kavitaye likhta hu ap se kaise jud sakta hu
भाषा में लालित्य है ........नोस्टालजिया में बहुत दूर ले जाते हैं आतिश जी .....आनंद आ गया....
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