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Wednesday, January 19, 2011

कौन हो तुम


प्रतियोगिता की तीसरी कविता के रचनाकार अनिल कार्की हैं। पिथौरागढ़ के अनिल जुलाई-2009 के यूनिकवि रह चुके हैं। यह हिंद-युग्म पर उनकी दूसरी कविता है। हिंदी के शोधार्थी अनिल की प्रस्तुत कविता सुपरिचित कवि आलोक धन्वा की लंबी कविता ब्रूनो की बेटियाँ को पढ़ कर पैदा हुए अंतर्मंथन से निःस्रत है। कविता स्त्री-अस्तित्व की मूलभूत पहचान जैसे जटिल सवाल से जूझने की कोशिश करती है।

पुरस्कृत कविता: कौन हो तुम?

वो तुम नहीं थी
जिनकी याद जंग लगे टिन जितनी भी नहीं रही
और न ही तुम क्षितिज पर फसल काट रही औरतों मे
हो।
तुम कौन हो?
प्रश्नवाचक चिन्ह की तरह
जिसका उत्तर
पूर्ण विराम के साथ नहीं दिया जा सकता।
एक पुरानी किताब,
या एक लम्बी कविता,
जिसका रचना-विधान जानने की कोशिश कर रहा हूँ
इन दिनों
जिसकी लय
जिसका अर्थ
जिसमें बुनी गयी हो फन्टेसी
प्रतीक-बिम्ब
अनुभूत यथार्थ, अजनबीयत, मिथक, नाटकीयता
और एक विचार विसंगतियों के बीच।
जिससे पनपता है
कविता जैसी किसी चीज का अस्तित्व

फिर भी कहीं किसी कोने में
केवल एक प्रश्न
सदैव के लिए
युगों से
युगों के बाद भी
जिसका एकान्त होने न होने के बीच सुलगता है
सदियों के भीतर

डनलप के गद्दों के बीच की स्थिति सा
माणा या गंजी की अन्तिम सीमा पर
देश की सीमा के साथ बाँधा गया भूभाग हो तुम
या फिर समझौता की कोई एक्सप्रेस
जिन्हें तय करते है देश के सत्ताधारी लोग
फिर भी इस आधी रात को
जब हीटर के तार सुलग रहे हैं
और तब कैसे सुलगती है कविता
सेंचुरी के पन्नों के भीतर
रेनोल्ड्स की इस कलम से
बेहतर शब्द निकाल लेने की जिद कहाँ तक जायज है

जब तुम सुलग रही हो
मध्य हिमालय की बर्फ ढ़की पहाड़ियों में कहीं
तब नदियाँ कैसे दे सकती है
शीतल पानी
फिर भी तुम्हारे अपने किले है
तुम्हारे अपने झण्ड़े है
तुम्हारे अपने गीत है
वही गीत जो तुम्हारा खसम गाता था
गुसांईयों के दरबार में
और तुम नाचती थी फटी धोती में
ओ हुड़किया की हुड़क्याणी
तुम भुन्टी थी
और तुम्हारा खसम सुन्दरिया
जिसने आजीवन दरवाजे पर बैठकर
गुसाईयों के घर में चाय पी-
गिलास धोकर उल्टा कर दिया
ताकि सूख सके
जिल्लत भरी जिन्दगी
तुम्हारे लिए कौन था?
तुम्हारे लिए कौन है?

काने धान की पोटली भर संवेदना थी तुम
या ठाकुरों के कुल देवता के मंदिर से बचा हुआ
गड्ड-मड्ड शिकार-भात
और कुछ नहीं
फिर भी कौन थी तुम
जिसके होने में महकता रहा
मध्य हिमालय का लोक जीवन।
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पुरस्कार -   विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

प्रवीण पाण्डेय का कहना है कि -

कुछ लोगों की उपस्थिति परिवेश को महका जाती है।

ManPreet Kaur का कहना है कि -

bouth hee aacha shabad likhe hai aapne.... very nice blog

Dear Friends Pleace Visit My Blog Thanx...
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‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

ये पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर लगीं,

काने धान की पोटली भर संवेदना थी तुम
या ठाकुरों के कुल देवता के मंदिर से बचा हुआ
गड्ड-मड्ड शिकार-भात
और कुछ नहीं
फिर भी कौन थी तुम
जिसके होने में महकता रहा
मध्य हिमालय का लोक जीवन।

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

भाई अनिल कार्की जी आपकी कविता पढ़ के पहली बार लगा कि अगली मर्तबा हिंद युग्म को ग़ज़ल न भेज कर एक कविता भेजूँ| विचार मग्न करती बोध गम्य और भाव प्रवण कविता है ये| बहुत बहुत बधाई बन्धुवर|

HEMANT BINWAL का कहना है कि -

ANIL JI AACHA LIKHTE HAIN, KAFI PAHLE SE PARICHAY HAI ANIL JI SE.

HEMANT BINWAL का कहना है कि -

BAHUT KHUB

Deepak Tiruwa का कहना है कि -

आहा ..

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