प्रतियोगिता की दूसरी कविता के संग एक नया रचनाकार हिंद-युग्म से जुड़ा है। सौरभ राय ’भगीरथ’ की यह हिंद-युग्म पर प्रथम कविता थी और अपने पहले प्रयास मे ही वो द्वितीय स्थान पर आने मे सफल हुए हैं। 22 वर्ष के सौरभ का जन्म झारखंड के बोकारो नगर मे हुआ। वर्तमान में एम एस रामया इंजीनियरिंग कॉलेज में अंतिम वर्ष के छात्र सौरभ प्रोग्रामिंग में रूचि रखतें हैं। बचपन से ही कविताएँ लिखने का शौक रहा। हिंदी में कविताएँ लिखने के अलावा अंग्रेज़ी में लेख भी लिखते हैं जिन्हे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित भी करते हैं। 'अनभ्र रात्रि की अनुपमा' नाम से अपनी कविताओं का संग्रह प्रकाशित कर चुके हैं। भारतीयता पर लिखे गए अंग्रेजी के लेखों का संग्रह भी प्रकाशनाधीन है, जिनका प्रकाशन एक अमरीकी प्रकाशक कर रहे है कवि महोदय कई वेबसाइट तथा मैगज़ीन में अपनी रचनात्मकता सिद्ध कर रहे हैं |
संपर्क: टाइप III, 8-बी, हटिया रेलवे कॉलोनी, हटिया, रांची-834003
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पुरस्कृत कविता: भारतवर्ष
वो किस राह का भटका पथिक है ?
मेगस्थिनिज बन बैठा है
चन्द्रगुप्त के दरबार में
लिखता चुटकुले
दैनिक अखबार में।
सिकंदर नहीं रहा
नहीं रहा विश्वविजयी बनने का ख़्वाब
चाणक्य का पैर
घास में फंसता है
हंसता है महमूद गज़नी
घास उखाड़ कर घर उजाड़ कर
घोड़ों को पछाड़ कर
समुद्रगुप्त अश्वमेध में हिनहिनाता है
विक्रमादित्य फाह्यान संग
बेताल पकड़ने जाता है।
वैदिक मंत्रो से गूँज उठा है आकाश
नींद नहीं आती है शूद्र को
नहीं जानता वो अग्नि को, इंद्र को
उसे बारिश चहिए
पेट की आग बुझाने को।
सच है-
कुछ भी तो नहीं बदला
पांच हज़ार वर्षों में !
वर्षा नहीं हुई इस साल
बिम्बिसार अस्सी हज़ार ग्रामिकों संग
सभा में बैठा है
पास बैठा है अजातशत्रु
पटना के गोलघर पर
कोसल की ओर नज़र गड़ाए।
काशी में मारे गए
कलिंग में मारे गए
एक लाख लोग
उतने ही तक्षशिला में
केवल अशोक लौटा है युद्ध से
केवल अशोक लड़ रहा था
सौ चूहे मार कर
बिल्ली लौटी है हज से
मेरा कुसूर क्या है ?-
चोर पूछता है जज से।
नालंदा में रोशनी है
ग़ौरी देख रहा है
मुह्हमद बिन बख्तियार खिलजी को
लूटते हुए नालंदा
क्लास बंक करके
ह्वेन सांग रो रहा है
सो रहा है महायान
जाग रहा है कुबलाई खाँ।
पल्लव और चालुक्य लड़ रहें हैं
जीत रहा है चोल
मदुरै की संगम सभा में कवि
आंसू बहाता है
राजराज चोल लंका तट पर
वानर सेना संग नहाता है |
इब्नबतूता दौड़ा चला आ रहा है
पश्चिम से
मार्को पोलो दक्षिण से
उत्तर से नहीं आता कोई उत्तर
आता है जहाँगीर कश्मीर से
गुरु अर्जुन देव को
मौत के घाट उतारकर।
नहीं रही
नहीं रही सभ्यता
सिन्धु-सताद्रू घाटी में
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से
चीखता है भिंडरावाले
गूँज रहा है इन्द्रप्रस्थ
सौराष्ट्र
इल्तुतमिश भाला लेकर आता है
मल्ल देश के आखिरी पडाव तक
चंगेज़ खाँ की प्रतीक्षा में।
कोई नहीं रोकने आता
तैमूर लंग को
बहुत लम्बी रात है
सोमनाथ के बरामदे में
कटा हुआ हाथ है।
लड़ रहें हैं राजपूत वीर
आपस में
रानियाँ सती होने को
चूल्हा जलाती हैं।
चमक रहा है ताजमहल
धुल रहा है मजदूरों का खून
धुल रहा है
कन्नौज
मथुरा
कांगरा
कृषि कर हटाकर
तुगलक रोता है-
"पानी की किल्लत है
झूठ है
झूठ है सब
केवल राम नाम सत् है"
वास्को डि गामा ढूंढ रहा है
कहाँ है ?
कहाँ है भारतवर्ष ?
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
कैनवस पर खूब सारे रंगों से सजी खूबसूरत कविता..
ज़िन्दगी में,दुनिया में कुछ भी घटता रहे..आखिर में सत्य तो राम नाम ही है...
पंच लाइन...वास्को डि गामा ढूंढ रहा है
कहाँ है ?
कहाँ है भारतवर्ष ?
:)
इतिहास गड्मगड हो गया है, भारत का भी।
itihas ke patron aur ghatnaon ko vartman se jodne wali bejod rachna ..
shabdon ka chayan,bhav,kathy,aur pravah bahut sundar.
सुन्दर रचना बहुत - बहुत बधाई हो !
bahot sundar rahna..badhaiii
सौरभ जी ,
बहुत ही सराहनीय और दिमाग को कुरेदती हुई कविता . प्राचीन को अर्वाचीन से जोड़ने का नया अंदाज . आपकी कवितायों में नए लहू में उठती लहर को देखा जा सकता है.आपकी सृजन गाथा में छपी कवितायों से भी मैं बहुत प्रभावित हुआ . बधाई और शुभकामनाएं .
कमल किशोर सिंह , अमेरिका
कहाँ है भारतवर्ष ...वास्को दी गामा ही नहीं खुद भारतीय भी ढूंढ रहे है ...शब्दों ने पीड़ा को बखूबी व्यक्त किया है !
सौरभ जी ,
बहुत ही सराहनीय और दिमाग को कुरेदती हुई कविता . प्राचीन को अर्वाचीन से जोड़ने का नया अंदाज . आपकी कवितायों में नए लहू में उठती लहर को देखा जा सकता है.आपकी सृजन गाथा में छपी कवितायों से भी मैं बहुत प्रभावित हुआ . बधाई और शुभकामनाएं .
कमल किशोर सिंह , अमेरिका
एक सशक्त कविता है जो इतिहास और मिथकों की तमाम गलियों से गुजरते हुए उस सोने की चिड़िया को खोजने की कोशिश करती है..जो छद्म आत्मबोधों, पूर्वाग्रहों और विस्मृति के सघन जंगल मे कहीं गुम हुई थी..
हुम्म, कुछ नया है इस कविता में, एक अलग अंदाज है कवि का, जो उसे दूसरों की भीड़ में से एकदम अलग खड़ा करता है। बधाई
rachna na sirf acchi hai balki ek marg darshak hai .... vaskodigama ko dikhaane kee koshish kar rahi hai...dekh lo ...ab aisa hai bharat varsh.. bahut hi umda lekhan
भाई सौरभ राय 'भागीरथ' जी, भारत की खोज का आपका यह 'भागीरथ प्रयास' काफ़ी प्रभावशाली है| आप अपने जीवन काल में खूब उन्नति करें, यही प्रार्थना है परम पिता परमेश्वर से|
बेहतरीन ।
धन्यवाद
आप मेरी और भी कविताएँ यहाँ पढ़ सकते हैं- http://souravroy.com/poems/
kvitaa me bhaarat kee khoz bahut hee nayaa,yunik vichaar hai kaviyaa man ko chu gai.cupe bhaavo ko samaghnaa hogaa tabhee bhaarat kee khoz puree hogee.ham sach-much bhul chuke hai apanee baarteeytaa ko .cotee umar me gaharee soch .kalam ko our daardaar banaa kar likho.badhaai.
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