वह अभी-अभी उस नई बस में दाखिल हुआ था,
उसकी कमीज़ से ताज़ी स्याही सी महक आ रही थी
वह किताब उसने अपनी बगल में दबा रखी थी
जो खरीदी थी पिछले पुस्तक मेले से उनचास रुपयों में
वो अकेला ही था जो खुश था
इस आखिरी बस में
मानो अपनी जेब में छुपा रखा हो उसने आज का डूबा सूरज
और कल वक्त होते ही उसे बिखेर देगा क्षितिज पर
वह देख नहीं पाया कि इस आखिरी बस में
लोग उसे अजीब सी नज़रों से देख रहे थे
कुछ ने अपनी खिड़कियाँ सरका ली थी
(वो सोच रहा था थोड़ी ज्यादा ही गर्म है ये जनवरी )
अपनी किताब के चमकते कवर को देखता वो ये देख नहीं पाया
कि लोगों ने अपनी नाक रुमाल से ढँक ली थी
और जैसे ही उसने अपनी किताब खोली
मानो हंगामा हो गया
शोर मचने लगा
दुकानें धडाधड़ बंद होने लगी
सायरन बजने लगे
दो हाथों ने खींच कर उसे उतार लिया
और बंद कर दिया शहर की उस नए कैदखाने में
जो बनाया गया था अभी
शहर की एक पुस्तकालय को तोड़कर
खिड़कियाँ बंद थीं, रुमाल जेबों में वापिस जा चुके थे
आखिरी बस का सफर जारी था
(अप्रैल २००८ के यूनिकवि पावस नीर की दूसरी रचना)
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
14 कविताप्रेमियों का कहना है :
waah u r excellent pavas... keep it up
बहुत गहरा भाव व्यक्त करती कविता
(वो सोच रहा था थोड़ी ज्यादा ही गर्म है ये जनवरी )
अपनी किताब के चमकते कवर को देखता वो ये देख नहीं पाया
कि लोगों ने अपनी नाक रुमाल से ढँक ली थी
कड़वा सच्च बयान करती पंक्तियाँ |आपकी कविता पाठक को बहुत सोचने पर मजबूर करती है ....सीमा सचदेव
आपके पहली कविता की तरह यह भी लाजवाब रचना है
गहरा भाव है कविता ka
बहुत खूब
लगभग अद्भुत :)
लिखते रहिए।
पावस जी आप बहुत अच्छा लिखतें हैं , कहीं बहुत गहराई के भाव छिपे होते हैं आपकी कविताओं में और कहीं एक मासूमियत या भोलापन , यह कविता भी बहुत कुछ कह रही है और सोचने पर विवश कर रही है, ऐसे ही लिखते रहें , शुभकामनाएँ , पूजा अनिल
पावस जी,
छोटी-छोटी जानकारियों के माध्यम से आपने बहुत हीं बड़ी (लंबाई में नहीं, बल्कि अर्थ में) रचना लिख डाली है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
सबका धन्यवाद
पावस नीर सशक्त हस्ताक्षर हैं। आने वाला कल इनका ही है। एक बेहतरीन रचना जो मथ कर रख दे, केवल असाधारण कलम से ही निकलती है...
*** राजीव रंजन प्रसाद
मित्र,
यह सच है कि तुम्हारी रचना बड़े गहरे गोते लगा रही है |
ऐसे ही कायम रखिये ...
--अवनीश तिवारी
बहुत सुन्दर...
बहुत अच्छे पावस,ऐसे ही लिखते रहो और हाँ इतनी तारीफ़ से अपनी दिशा और गति को विचलित व्मत होने देना. शुभकामनाएं
आलोक सिंह "साहिल"
पावस नीर जी बहुत अच्छा .ऐसे हीं लिखते रहिये.बहुत बहुत शुभकामनायें.
इस कविता का सार क्या कोई एक पंक्ति मे समझा सकता है?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)